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डेली न्यूज़

  • 19 Aug, 2019
  • 75 min read
भूगोल

जनसंख्या विस्फोट और प्रजनन दर

चर्चा में क्यों?

73वें स्वतंत्रता दिवस पर राष्ट्र को संबोधित करते हुए प्रधानमंत्री ने ‘जनसंख्या विस्फोट’ पर प्रकाश डाला और इस चिंता से निपटने के लिये ‘सामाजिक जागरूकता’ की आवश्यकता को रेखांकित किया। हालाँकि रुझानों से संकेत मिलता है कि देश में प्रजनन दर की रोकथाम के संदर्भ में लगातार सुधार आया है।

कुल प्रजनन दर

(Total Fertility Rate)

  • प्रजनन दर का अर्थ है बच्चे पैदा कर सकने की आयु (जो आमतौर पर 15 से 49 वर्ष की मानी जाती है) वाली प्रति 1000 स्त्रियों की इकाई के पीछे जीवित जन्में बच्चों की संख्या। लेकिन अन्य दरों (जन्म तथा मृत्यु दर) की तरह यह दर भी अशोधित दर ही होती है यानी कि यह संपूर्ण जनसंख्या के लिये मोटे तौर पर एक स्थूल औसत दर होती है और इसमें विभिन्न आयु वर्गों में पाए जाने वाले अंतर का कोई ध्यान नहीं रखा जाता।
  • विभिन्न आयु वर्गों के बीच पाया जाने वाला अंतर कभी-कभी संकेतकों के अर्थ को प्रभावित करने में बहुत महत्त्वपूर्ण हो सकता है। इसीलिये जनसांख्यिकीविद् भी आयु विशेष की दर का हिसाब लगाते हैं।
  • इस बात को कहने का एक दूसरा तरीका यह है कि सकल प्रजनन दर ‘स्त्रियों के एक विशेष वर्ग द्वारा उनकी प्रजनन आयु की अवधि में पैदा किये गए बच्चों की औसत संख्या के बराबर होती है (प्रजनन आयु की अवधि का अनुमान एक निश्चित अवधि में पाई गई आयु विशेष की दरों के आधार पर लगाया जाता है)।

नमूना पंजीकरण प्रणाली

(The Sample Registration System-SRS)

  • SRS एक दोहरी रिकॉर्ड प्रणाली पर आधारित है और इसकी शुरुआत गृह मंत्रालय के अधीन रजिस्ट्रार जनरल कार्यालय द्वारा वर्ष 1964-65 में जन्म और मृत्यु के आँकड़ों को पंजीकृत करने के उद्देश्य से की गई थी।
  • तब से SRS नियमित रूप से आँकड़े उपलब्ध करा रहा है।
  • SRS के तहत एक अंशकालिक गणक (गणना करने के लिये नियुक्त व्यक्ति) द्वारा गाँवों/शहरों के जन्म और मृत्यु दर की निरंतर गणना की जाती है और एक पूर्णकालिक गणक द्वारा अर्द्धवार्षिक पूर्वव्यापी सर्वेक्षण किया जाता है।
  • इन दोनों स्रोतों से प्राप्त आँकड़ों का मिलान किया जाता है। बेमेल और आंशिक रूप से सुमेलित आँकड़ों को फिर से सत्यापित किया जाता है ताकि सही एवं स्पष्ट गणना की जा सके और वैध आँकड़े प्राप्त हो सकें।
  • हर दस साल कि अवधि में नवीनतम जनगणना के परिणामों के आधार पर SRS नमूना में संशोधन किया जाता है।

उच्च TFR वाले राज्य

सात राज्यों ने राष्ट्रीय औसत 2.2 से अधिक दर्ज किया है- उत्तर प्रदेश (3.0), बिहार (3.2), मध्य प्रदेश (2.7), राजस्थान (2.6), असम (2.3), छत्तीसगढ़ (2.4) और झारखंड (2.5) जो कि 2011 की जनगणना में कुल जनसंख्या का लगभग 45% है।

  • गुजरात और हरियाणा में 2.2 का TFR दर्ज किया गया है, जो प्रतिस्थापन दर (Replacement Rate) से अधिक है, लेकिन राष्ट्रीय औसत (National Average) के बराबर है।

निम्न TFR वाले राज्य

  • केरल (1.7), तमिलनाडु (1.6), कर्नाटक (1.7), महाराष्ट्र (1.7), आंध्र प्रदेश (1.6) और तेलंगाना (1.7) की प्रदर्शन प्रजनन दर और TFR के लिये जनसंख्या प्रतिस्थापन की आवश्यक दर से कम रही है।
  • पश्चिम बंगाल (1.6), जम्मू-कश्मीर (1.6) और ओडिशा (1.9) में भी वर्ष 2017 में कम TFR होने का अनुमान लगाया गया था।

TFR में रुझान का कारण

  • वर्ष 2017 की नवीनतम रिपोर्ट में रेखांकित किया गया है कि वर्ष 1971 और वर्ष 1981 के बीच TFR 5.2 से घटकर 4.5 तथा वर्ष 1991 से वर्ष 2017 के बीच 3.6 से घटकर 2.2 हो गया है।
  • ग्रामीण-शहरी विभाजन के साथ-साथ महिलाओं की साक्षरता के स्तर के प्रति रुझान में भी भिन्नता होती है।
  • SRS से पता चलता है कि जहाँ एक ओर ‘निरक्षर’ महिला औसतन 2.9 बच्चों को जन्म देती है वहीं एक ‘साक्षर’ महिला कम (2.1) बच्चों को जन्म देती है।
  • एक स्नातक या उससे अधिक शिक्षित महिला के लिये TFR 1.4 बच्चे हैं। इसी तरह शहरी क्षेत्रों में आमतौर पर ग्रामीण क्षेत्रों की तुलना में कम TFR पाया गया है।
  • प्रजनन दर में यह गिरावट जनगणना में दर्ज कुल जनसंख्या वृद्धि में भी परिलक्षित होती है।
  • वर्ष 2001 की जनगणना और वर्ष 2011 की जनगणना के बीच के अंतराल की अवधि (Intervening Period) में निर्णायक जनसंख्या वृद्धि में वर्ष 1971 की जनगणना के बाद गिरावट देखी गई है।

स्रोत: हिंदुस्तान टाइम्स


कृषि

किसान क्रेडिट कार्ड

चर्चा में क्यों?

हाल ही में बैंकों ने किसान क्रेडिट कार्ड (Kisan Credit Card-KCC) सेचुरेशन कैंपेन (Saturation campaign) शुरू किया है, इसका उद्देश्य ऐसे किसानों जिन्हें अभी तक ऋण प्रदान नहीं किया जा सका है, को उनकी ऋण की आवश्‍यकताओं (कृषि संबंधी खर्चों) की पूर्ति के लिये पर्याप्‍त एवं समय पर ऋण की सुविधा प्रदान करना है।

प्रमुख बिंदु

  • कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय (Ministry of Agriculture and Farmers’ Welfare) के अनुसार, वर्तमान में 14.5 करोड़ परिचालन भूमि जोत (Operational Landholdings) के मुकाबले 6.92 करोड़ KCCs हैं।
  • KCC के तहत उधारकर्त्ता को एक ATM सह-डेबिट कार्ड जारी किया जाता है (स्‍टेट बैंक किसान डेबिट कार्ड) ताकि वे ATMs एवं POS टर्मिनलों से आहरण कर सकें। KCC एक विविध खाते का स्‍वरूप है। इस खाते में कोई जमा शेष रहने की स्‍थिति में उस राशि पर बचत खाते के समान ब्‍याज मिलता है। KCC में 3 लाख रुपए तक की राशि पर प्रसंस्‍करण शुल्‍क नहीं लगाया जाता है।
  • सेचुरेशन को सुनिश्चित करने के साथ-साथ, बैंक आधार कार्ड को बैंक खातों से तत्काल लिंक करने के लिये भी कदम उठा रहे हैं क्योंकि KCC खातों के साथ आधार संख्या के लिंक न होने पर कोई ब्याज सबवेंशन नहीं दिया जाएगा।
  • इसके अलावा सरकार ने KCC के सेचुरेशन के लिये कई पहलें की हैं जिसमें पशुपालन और मत्स्यपालन के कार्य में लगे किसानों को जोड़ना, KCC के तहत ऋण का कोई प्रक्रिया शुल्क नहीं देना और संपार्श्विक मुक्त (Collateral Free) कृषि ऋण की सीमा को 1 लाख रुपए से बढ़ाकर 1.6 लाख रुपए करना शामिल है।

पृष्ठभूमि

  • किसान क्रेडिट कार्ड योजना की शुरुआत वर्ष 1998 में की गई थी।
  • किसानों की ऋण आवश्‍यकताओं (कृषि संबंधी खर्चों) की पूर्ति के लिये पर्याप्‍त एवं समय पर ऋण की सुविधा प्रदान करना, साथ ही आकस्‍मिक खर्चों के अलावा सहायक कार्यकलापों से संबंधित खर्चों की पूर्ति करना। यह ऋण सुविधा एक सरली कार्यविधि के माध्‍यम से यथा- आवश्‍यकता के आधार पर प्रदान की जाती है।
  • KCC में फसल कटाई के बाद के खर्चों, विपणन हेतु ऋण, किसान परिवारों की उपभोग संबंधी आवश्यकताओं, कृषि परिसंपत्तियों के रखरखाव के लिये कार्यशील पूंजी और कृषि से संबद्ध गतिविधियों, कृषि क्षेत्र में निवेश ऋण की आवश्यकता को शामिल किया गया है।
  • किसान क्रेडिट कार्ड योजना (KCC) को वाणिज्यिक बैंकों, RRBs, लघु वित्त बैंकों (Small Finance Banks) और सहकारी संस्थाओं द्वारा कार्यान्वित किया जाता है।

ब्‍याज सबवेंशन (छूट) योजना

Interest Subvention Scheme

  • इसका लक्ष्य किसानों को 7 प्रतिशत प्रतिवर्ष की ब्याज दर पर 3 लाख रुपए तक का अल्पकालिक फसली ऋण प्रदान करना है।
  • ऋणदाता (उधार देने वाले) संस्थान जैसे- PSBs और निजी क्षेत्र के वाणिज्यिक बैंक सरकार द्वारा प्रस्तावित 2 प्रतिशत का ब्‍याज सबवेंशन (छूट) प्रदान करते हैं।
  • यह नीति वर्ष 2006-07 से लागू हुई।
  • ब्‍याज सबवेंशन (छूट) योजना (Interest Subvention Scheme) का क्रियान्वयन नाबार्ड और RBI द्वारा किया जा रहा है।

स्रोत: PIB


भारतीय राजनीति

ई- कोर्ट

चर्चा में क्यों?

हाल ही में पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय ने फरीदाबाद में अपना पहला आभासी न्यायालय/वर्चुअल कोर्ट (Virtual Court) यानी ई-कोर्ट लॉन्च किया है।

प्रमुख बिंदु

  • यह वर्चुअल कोर्ट पूरे हरियाणा राज्य के ट्रैफिक चालान मामलों को निपटाएगा।
  • यह परियोजना भारत के सर्वोच्च न्यायालय की ई-समिति के मार्गदर्शन में शुरू की जाएगी।
  • आभासी अदालतों के माध्यम से अदालत में उपस्थित हुए बिना ही सूचना एवं संचार प्रौद्योगिकी (Information and Communication Technology- ICT) के उपयोग से मुकदमे को ऑनलाइन ही निपटा लिया जाएगा।

ई-कोर्ट परियोजना

  • ई-कोर्ट परियोजना की परिकल्पना ‘भारतीय न्यायपालिका में सूचना एवं संचार प्रौद्योगिकी (ICT) के कार्यान्वयन के लिये राष्ट्रीय नीति एवं कार्ययोजना-2005’ के आधार पर की गई थी।
  • ई-कोर्ट मिशन मोड प्रोजेक्ट (e-Courts Mission Mode Project), एक पैन-इंडिया प्रोजेक्ट (Pan-India Project) है, जिसकी निगरानी और वित्त पोषण देश भर में ज़िला न्यायालयों के लिये न्याय विभाग, कानून एवं न्याय मंत्रालय, भारत सरकार द्वारा की जाती है।

परियोजना की परिकल्पना

  • ई-कोर्ट प्रोजेक्ट लिटिगेंट चार्टर (e-Court Project Litigant's Charter) में विस्तृत रूप में कुशल और समयबद्ध नागरिक-केंद्रित सेवाएँ प्रदान करना।
  • न्यायालयों में निर्णय समर्थन प्रणाली को विकसित, स्थापित एवं कार्यान्वित करना।
  • अपने हितधारकों तक सूचना की पारदर्शी पहुँच प्रदान करने के लिये प्रक्रियाओं को स्वचालित करना।
  • गुणात्मक एवं मात्रात्मक न्यायिक परिणामों में वृद्धि के लिये न्याय प्रणाली को सस्ता, सुलभ, लागत प्रभावी, पूर्वानुमेय, विश्वसनीय तथा पारदर्शी बनाना।

ई- समिति

  • ई-समिति एक निकाय है जो तकनीकी संचार एवं प्रबंधन संबंधी परिवर्तनों के लिये सलाह देता है।
  • यह भारतीय न्यायपालिका का कम्प्यूटरीकरण कर राष्ट्रीय नीति तैयार करने में सहायता के लिये भारत सरकार द्वारा सर्वोच्च न्यायालय से प्राप्त एक प्रस्ताव के अनुसरण में बनाया गया है।
  • ई-समिति की स्थापना वर्ष 2004 में न्यायपालिका में IT के उपयोग तथा प्रशासनिक सुधारों के लिये एक गाइड मैप प्रदान करने के लिये की गई थी।
  • ई-समिति के कामकाज से संबंधित सभी व्यय जिसमें अध्यक्ष, सदस्यों और सहायक कर्मचारियों के वेतन तथा भत्ते आदि शामिल हैं, भारत के सर्वोच्च न्यायालय द्वारा स्वीकृत बजट से प्रदान किये जाते हैं।

स्रोत: द हिंदू


शासन व्यवस्था

स्वच्छ नगर एप

चर्चा में क्यों?

कुछ समय पहले केंद्रीय आवास एवं शहरी मामलों के मंत्रालय ने स्वच्छ सर्वेक्षण 2020 की शुरुआत की थी जिसकी थीम है ‘स्वच्छता हमारा अधिकार है’। मंत्रालय ने अपशिष्ट जल के उपचार हेतु ‘स्वच्छ नगर एप’ (Swachh Nagar App) और वाटर प्लस (Water+) प्रोटोकॉल भी शुरू किया है जो स्वच्छ सर्वेक्षण 2020 में शहरों की स्वच्छता रैंकिंग का हिस्सा बन जाएंगे।

परिचय

  • इस एप की कई विशेषताएँ हैं जैसे- शहरी स्थानीय निकायों द्वारा कचरा संग्रहण कार्य को मार्ग व वाहन की निगरानी के ज़रिये ट्रैक करना, नागरिकों को सूचना देना, उपयोगकर्त्ता शुल्क को ऑनलाइन जमा करना और एक प्रभावी शिकायत निवारण तंत्र का होना।
  • इस प्रकार यह एप निगरानी के अभाव में पृथक कचरे के संग्रहण और कचरा वाहनों व कचरा बीनने वालों को ट्रैक करने जैसे प्रभावी कचरा प्रबंधन के रास्ते में आने वाले कई प्रश्नों का समाधान करेगा।
    • यह एप आगरा, पलवल और पोर्ट ब्लेयर में पहले से ही कार्य कर रहा है और अब इसे पूरे देश में विस्तारित किया जाएगा।

वाटर प्लस (Water+) प्रोटोकॉल

  • वाटर प्लस प्रोटोकॉल का उद्देश्य यह सुनिश्चित करने के लिये दिशा-निर्देश जारी करना है कि शहरों और कस्बों के अनुपचारित अपशिष्ट जल को पर्यावरण में निष्काषित नहीं किया जाएगा, ताकि स्वच्छता मूल्य श्रृंखला की स्थिरता को सक्षम बनाया जा सके।
    • यदि कोई शहर 100% अपशिष्ट जल उपचारित करता है और उपचारित अपशिष्ट जल के 10% का उपयोग सुनिश्चित करता है, तो उसे Water+ का टैग दिया जा सकता है।

mSBM एप

  • इस कार्यक्रम में AI यानी आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस युक्त mSBM एप को भी प्रारंभ किया गया, यह एक मोबाइल एप है जिसे राष्ट्रीय सूचना विज्ञान केंद्र (NIC) ने विकसित किया है। यह बैकएंड में आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) प्रारूप का उपयोग करते हुए अपलोड की गई फोटो में लाभार्थी का चेहरा और टॉयलट सीट को पहचानने में मदद करता है।
  • यह एप व्यक्तिगत घरेलू शौचालयों के लिये आवेदकों को फोटोग्राफ अपलोड करने के बाद SBM-U के तहत उनके आवेदन की स्थिति को रियल टाइम यानी उसी समय जानने की सुविधा देगा।
  • यह एप संबंधित शहरी स्थानीय निकाय के नोडल अधिकारी को आवेदन के सत्यापन और मंज़ूरी में भी मदद करेगा जिससे आवेदकों के लिये प्रक्रिया समय को बहुत अधिक कम किया जा सकेगा।

स्वच्छ भारत मिशन-शहरी

Swachh Bharat Mission-Urban

  • घर, समाज और देश में स्वच्छता को जीवनशैली का अंग बनाने के लिय सार्वभौमिक साफ-सफाई का यह अभियान 2 अक्तूबर, 2014 में शुरू किया गया।
  • इस अभियान में दो उप-अभियान शामिल हैं- स्वच्छ भारत अभियान (ग्रामीण) तथा स्वच्छ भारत अभियान (शहरी)। इस अभियान में जहाँ ग्रामीण इलाकों के लिये ‘पेयजल और स्वच्छता मंत्रालय’ व ‘ग्रामीण विकास मंत्रालय’ जुड़े हुए हैं, वहीं शहरों के लिये शहरी विकास मंत्रालय ज़िम्मेदार है।

मिशन का उद्देश्य:

  • भारत में खुले में शौच की समस्या को समाप्त करना अर्थात् संपूर्ण देश को खुले में शौच करने से मुक्त (ओ.डी.एफ.) घोषित करना, हर घर में शौचालय का निर्माण, जल की आपूर्ति और ठोस व तरल कचरे का उचित तरीके से प्रबंधन करना है।
  • इस अभियान में सड़कों और फुटपाथों की सफाई, अनधिकृत क्षेत्रों से अतिक्रमण हटाना, मैला ढोने की प्रथा का उन्मूलन करना तथा स्वच्छता से जुड़ी प्रथाओं के बारे में लोगों के व्यवहार में सकारात्मक परिवर्तन लाना शामिल हैं।

इस मिशन के 6 प्रमुख घटक हैं:

  • व्यक्तिगत घरेलू शौचालय
  • सामुदायिक शौचालय
  • सार्वजनिक शौचालय
  • नगरपालिका ठोस अपशिष्ट प्रबंधन
  • सूचना और शिक्षित संचार (IEC) तथा सार्वजनिक जागरूकता
  • क्षमता निर्माण
    • अगस्त 2019 तक 24 राज्यों और 3,800 से अधिक शहरों को खुले में शौच मुक्त (Open Defecation-Free:ODF) प्रमाणित किया गया है।
    • 98% से अधिक शौचालयों के निर्माण के लक्ष्य को पूरा कर लिया गया है।

स्रोत: द हिंदू


जैव विविधता और पर्यावरण

सुंदरबन के संरक्षण हेतु डिस्कवरी और WWF के बीच समझौता

चर्चा में क्यों?

विश्व के एकमात्र मैंग्रोव बाघ निवास स्थान सुंदरबन को संरक्षित करने के लिये डिस्कवरी इंडिया और WWF इंडिया के बीच एक समझौता हुआ है।

प्रकृति के संरक्षण हेतु विश्वव्यापी कोष

Worldwide Fund for Nature-WWF

  • WWF का गठन वर्ष 1961 में हुआ तथा यह पर्यावरण के संरक्षण, अनुसंधान एवं रख-रखाव संबंधी विषयों पर कार्य करता है।
  • इससे पूर्व इसका नाम विश्व वन्यजीव कोष (World Wildlife Fund) था।
  • इसका उद्देश्य पृथ्वी के पर्यावरण के क्षरण को रोकना और एक ऐसे भविष्य का निर्माण करना है जिसमें मनुष्य प्रकृति के साथ सामंजस्य स्थापित कर सके।
  • WWF द्वारा लिविंग प्लैनेट रिपोर्ट (Living Planet Report), लिविंग प्लैनेट इंडेक्स (Living Planet Index) तथा इकोलॉजिकल फुटप्रिंट कैलकुलेशन (Ecological Footprint Calculation) प्रकाशित की जाती है।
  • इसका मुख्यालय ग्लैंड (स्विट्ज़रलैंड) में है।

प्रमुख बिंदु:

  • सुंदरबन में जलवायु-स्मार्ट गाँव स्थापित करने हेतु WWF इंडिया और डिस्कवरी इंडिया; सरकारी एजेंसियों, सिविल सोसायटी के साझेदारों तथा वैज्ञानिक संस्थानों के साथ मिलकर कार्य कर रहे हैं ताकि सुरक्षित आजीविका, जैव विविधता और पारिस्थितिकी तंत्र सेवाओं को सुनिश्चित किया जा सके।

सुंदरबन:

  • सुंदरबन पश्चिम बंगाल के उत्तर और दक्षिण 24 परगना ज़िले के 19 विकासखण्डों में फैला हुआ है।
  • यह भारत और बांग्लादेश दोनों में फैला दलदलीय वन क्षेत्र है तथा यहाँ पाए जाने वाले सुन्दरी नामक वृक्षों के कारण प्रसिद्ध है।
  • भारतीय क्षेत्र में स्थित सुंदरबन यूनेस्को (UNESCO) के विश्व धरोहर स्थल (World Heritage Site) का हिस्सा है।
  • यह 9,630 वर्ग किलोमीटर में फैला गंगा-ब्रह्मपुत्र डेल्टा का हिस्सा है। इस क्षेत्र में 104 द्वीप हैं।
  • यहाँ जीव-जंतुओं की लगभग 2,487 प्रजातियाँ हैं।
  • सुंदरबन में पाए जाने वाले प्रसिद्ध बाघ (रॉयल बंगाल टाइगर) यहाँ की जलीय परिस्थितियों के अनुकूल हो गए हैं और वे तैर भी सकते हैं।
  • यहाँ पर एशियाई छोटे पंख वाले ऊदबिलाव, गंगा डॉल्फिन, भूरे और दलदली नेवले तथा जंगली रीसस बंदर भी पाए जाते हैं।
  • कुछ समय पहले ही सुंदरबन को भारत का 27वाँ रामसर स्थल घोषित किया गया है।
  • परियोजना क्षेत्र में एश्चुरी पारिस्थितिकी तंत्र पर जलवायु परिवर्तन के प्रभावों जैसे कई अन्य मुद्दों के समाधान हेतु प्रौद्योगिकी का उपयोग संबंधी परीक्षण किया जाएगा।
  • इस परियोजना के तहत पश्चिम बंगाल वन निदेशालय और IISER कोलकाता के साथ सहयोग से सुंदरबन में दो पारिस्थितिक वेधशालाएँ स्थापित की जाएंगी।
  • WWF इंडिया इस क्षेत्र में पहले से ही स्थायी आजीविका, स्वच्छ ऊर्जा तक पहुंँच और प्रभावी मानव-वन्यजीव संघर्ष प्रबंधन हेतु कार्य कर रहा है।
  • WWF इंडिया और डिस्कवरी इंडिया के बीच साझेदारी का मुख्य उद्देश्य सुंदरबन में बाघों के लिये शिकार और उनके निवास स्थान के प्रभावी प्रबंधन हेतु वन निदेशालय की सहायता करना और मानव-बाघ संघर्ष को कम करना है।
  • इस पहल में जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिये कम लागत वाले उपायों के माध्यम से कृषि उत्पादकता बढ़ाने और फसल कैलेंडर को समायोजित करने पर भी ध्यान केंद्रित किया गया है।
  • सुंदरबन हेतु यह परियोजना वैश्विक परियोजना प्रोजेक्ट कैट (Project CAT) का हिस्सा है।

बाघ संरक्षण हेतु प्रयास

  • प्रोजेक्ट कैट (Project CAT):
    • प्रोजेक्ट CAT यानी Conserving Acres for Tigers बाघों और अन्य लुप्तप्राय वन्यजीवों के लिये बेहतर भविष्य सुनिश्चित करने हेतु डिस्कवरी की एक परियोजना है।
    • बाघों के स्वस्थ्य विचरण हेतु एक बड़े क्षेत्र की जरूरत होती है, इसलिये इस पहल के माध्यम से उनके लिये पर्याप्त क्षेत्र की व्यवस्था की जाएगी, साथ ही इस परियोजना के माध्यम से वन संरक्षण को भी बढ़ावा मिलेगा।
    • बाघों की सुरक्षा व्यवस्था में बेहतर संसाधनों, अतिरिक्त प्रशिक्षण और रेंजर्स के लिये उच्च-प्रौद्योगिकी का समावेश किया जाएगा।
    • सामुदायिक शिक्षा और प्रशिक्षण के माध्यम से मनुष्य-वन्यजीव संघर्षों को कम किया जाएगा।
  • TX2:
    • GTI (Global Tiger Initiative) के तहत वर्ष 2010 में बाघ संरक्षण हेतु सेंटपीटर्सबर्ग घोषणा को अपनाया गया था।
    • इस घोषणा का लक्ष्य बाघों की संख्या बढ़ाकर दोगुना करना है।
    • यह कार्यक्रम WWF द्वारा 13 टाइगर रेंज देशों में क्रियान्वित किया जा रहा है।
  • ग्लोबल टाइगर इनिशिएटिव (Global Tiger Initiative- GTI)
    • विश्व बैंक द्वारा वैश्विक पर्यावरण सुविधा के सहयोग से इस कार्यक्रम को वर्ष 2008 में प्रारंभ किया गया था।
    • इस कार्यक्रम को 13 टाइगर रेंज देशों (बांग्लादेश, भूटान, कंबोडिया, चीन, भारत, इंडोनेशिया, लाओस, मलेशिया, म्यांमार, नेपाल, थाईलैंड, रूस और वियतनाम) में क्रियान्वित किया गया था।
  • चीता पुनर्प्रवेश प्रोजेक्ट:
    • इस प्रोजेक्ट की शुरुआत वर्ष 2009 में की गई थी।
    • इस कार्यक्रम की नोडल एजेंसी राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण है।
    • सबसे पहले इस योजना के तहत मध्य प्रदेश के कुनोपालपुर अभयारण्य और राजस्थान के शाहगढ़ क्षेत्र को चुना गया है।
    • मध्य प्रदेश में स्थित नौरादेही वन्यजीव अभयारण्य को चीता पुनर्प्रवेश हेतु चुना गया है क्योंकि इस क्षेत्र के खुले वन चीतों के तीव्र गति से विचरण हेतु आदर्श हैं।

स्रोत: द हिंदू बिज़नेसलाइन


आंतरिक सुरक्षा

रक्षा क्षेत्र में ‘मेक इन इंडिया’

चर्चा में क्यों?

हाल ही में रक्षा मंत्री ने रक्षा खरीद प्रक्रिया (Defence Procurement Procedure- DPP) 2016 और रक्षा अधिप्राप्ति नियमावली (Defence Procurement Manual- DPM) 2009 की समीक्षा के लिये महानिदेशक (अधिग्रहण) की अध्यक्षता में एक समिति के गठन को मंज़ूरी दी है।

प्रमुख बिंदु

  • इस समिति को अपनी सिफारिशें पेश करने के लिये 6 महीने का समय दिया गया है।
  • इस समिति का उद्देश्य परिसंपत्ति के अधिग्रहण से लेकर लाइफ साइकल सपोर्ट (Life Cycle Support) तक निर्बाध प्रवाह सुनिश्चित करने हेतु प्रक्रियाओं को संशोधित एवं संरेखित करना है।
  • रक्षा खरीद प्रक्रिया (DPP) 2016 तथा रक्षा अधिप्राप्ति नियमावली (DPM) 2009 में संशोधन किया जाएगा।
  • इन प्रक्रियाओं को व्यवस्थित करने से सामान के अधिग्रहण से लेकर लाइफ साइकल सपोर्ट तक निर्बाध प्रवाह सुनिश्चित होगा और सरकार की मेक इन इंडिया पहल मज़बूत होगी।
  • समिति के विचारणीय विषयों में शामिल हैं:
    • DPP 2016 और DPM 2009 में दी गई प्रक्रियाओं को संशोधित करना ताकि प्रक्रियात्मक अड़चनों तथा जल्दबाज़ी में रक्षा अधिग्रहण प्रक्रिया में आने वाली बाधाओं को दूर किया जा सके।
    • DPP 2016 और DPM 2009 के प्रावधान, जहाँ भी लागू हों उन्हें अनुकूल तथा मानकीकृत करने का प्रावधान।
    • भारतीय उद्योग की अधिक-से-अधिक भागीदारी सुनिश्चित करने और मज़बूत रक्षा औद्योगिक आधार विकसित करने के लिये नीति एवं प्रक्रियाओं को सरल बनाना।
    • जहाँ भी लागू हो नई अवधारणाओं जैसे कि जीवन चक्र लागत, जीवन चक्र सहायता कार्य प्रदर्शन आधारित लॉजिस्टिक्स, ICT, लीज़ अनुबंध, कोडिफिकेशन और मानकीकरण की जाँच करना तथा उन्हें शामिल करना।
    • भारतीय स्टार्टअप और अनुसंधान एवं विकास को बढ़ावा देने के प्रावधान शामिल करना।
    • कोई अन्य पहलू जो अधिग्रहण प्रक्रिया को परिष्कृत करे और ‘मेक इन इंडिया’ पहल का समर्थन करने में योगदान दे।
  • समिति को अपनी सिफारिशें प्रस्तुत करने के लिये छह महीने का समय दिया गया है।

‘मेक इन इंडिया’ अभियान

  • 'मेक इन इंडिया' के तहत सरकार ने वर्ष 2025 तक GDP में मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर का हिस्सा बढ़ाकर 25% करने का लक्ष्य रखा है।
  • इसका उद्देश्य मुख्यतः देश की विनिर्माण क्षमता को मज़बूत करना है और इसके तहत वर्ष 2022 तक 100 मिलियन रोज़गारों के सृजन का लक्ष्य तय किया गया है।
  • यह पहल निम्नलिखित चार स्‍तम्‍भों पर आधारित है, जिन्‍हें न केवल मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर बल्कि अन्‍य क्षेत्रों में भी उद्यमिता को बढ़ावा देने के लिये चिंहित किया गया है:
    • नई प्रक्रियाएँ: 'मेक इन इंडिया' उद्यमिता को बढ़ावा देने के लिये 'व्‍यवसाय करने में आसानी (Ease of Doing Business)' के एकमात्र सबसे महत्त्वपूर्ण कारक के रूप में पहचान करता है।
    • व्‍यवसाय के वातावरण को आसान बनाने के लिये पहले ही कई पहलें शुरू की जा चुकी हैं।
    • नई अवसंरचना: सरकार औद्योगिक कॉरीडोर और स्‍मार्ट सिटी का विकास करने, अत्‍याधुनिक प्रौद्योगिकी से युक्‍त विश्‍वस्‍तरीय अवसंरचना और उच्‍च गति वाली संचार व्‍यवस्‍था का निर्माण करने की इच्‍छुक है।
    • तीव्र पंजीकरण प्रणाली और आईपीआर पंजीकरण हेतु बेहतर अवसंरचना के ज़रिये नवप्रयोग और अनुसंधान क्रियाकलापों के लिये सहायता दी जा रही है।
    • उद्योग के लिये कौशल की आवश्‍यकता को पहचाना जाना है तथा तद्नुसार कार्यबल के विकास का कार्य शुरू किया जाना है।
    • नए क्षेत्र: रक्षा उत्‍पादन, बीमा, चिकित्‍सा उपकरण, निर्माण और रेलवे अवसंरचना को बड़े पैमाने पर एफडीआई के लिये खोला गया है।
    • इसी प्रकार बीमा और चिकित्‍सा उपकरणों में एफडीआई की अनुमति दी गई है।
    • नई सोच: देश के आर्थिक विकास में उद्योगों को भागीदार बनाने के लिये सरकार सहायक की भूमिका निभाएगी न कि विनियामक की।

स्रोत: PIB


भारतीय अर्थव्यवस्था

स्टार्टअप को बढ़ावा देने हेतु नीतिगत सुधार

चर्चा में क्यों?

हाल ही में कॉरपोरेट मामलों के मंत्रालय (Ministry of Corporate Affairs) ने भारत के स्टार्टअप वातावरण को बढ़ावा देने हेतु कुछ नीतिगत सुधारों को मंज़ूरी दी है।

प्रमुख बिंदु:

  • इस कदम से स्टार्टअप को फंड जुटाने में मदद मिलेगी, जबकि कंपनी पर प्रमोटरों (Promoters) का नियंत्रण भी बरकरार रहेगा।

कौन होता है प्रमोटर या प्रवर्तक?

  • प्रमोटर का तात्पर्य ऐसे व्यक्ति या व्यक्तियों के समूह से है जो कंपनी के प्रवर्तन का कार्य करता है। सामान्यतः व्यापार/कंपनी शुरू करने वाले व्यक्ति को ही प्रमोटर कहते हैं।
  • इससे पूर्व यह नियम था कि यदि किसी स्टार्टअप को डिफरेंशियल वोटिंग राइट्स (Differential Voting Rights-DVR) वाले शेयर जारी करने हों तो उसे कम-से-कम तीन साल तक वितरण योग्य लाभ कमाना ज़रूरी होता था, परंतु अब इस नियम को समाप्त कर दिया गया है।
  • इसके अलावा भारतीय कंपनियों को अब डिफरेंशियल वोटिंग राइट्स वाले अधिक शेयर जारी करने की भी अनुमति दे दी गई है।
    • इस नियम के लागू होने से पूर्व एक कंपनी केवल 26 प्रतिशत DVR ही जारी कर सकती थी, परंतु अब इसे परिवर्तित कर 74 प्रतिशत कर दिया गया है।

डिफरेंशियल वोटिंग राइट्स

(Differential Voting Rights-DVR):

  • किसी भी स्टार्टअप के संस्थापक या प्रमोटर कंपनी पर तब अपना नियंत्रण खो देते हैं जब वे अधिक-से-अधिक फंड जुटाने के चक्कर में ज़्यादा-से-ज़्यादा समता अंश (Equity Shares) जारी कर देते हैं। संस्थापकों की इस समस्या को DVR के माध्यम से आसानी से हल किया जा सकता है।
  • DVR शेयर एक सामान्य समता अंश की तरह ही होते हैं, लेकिन इनकी स्थिति में एक-शेयर, एक-वोट के सामान्य नियम का पालन नहीं किया जाता है।
  • यह कई नए निवेशकों के आने के बाद भी प्रमोटरों को कंपनी पर नियंत्रण बनाए रखने में मदद करता है।

मंत्रालय के इस कदम का महत्त्व:

  • इससे पूर्व अधिक-से-अधिक फंड की चाह में स्टार्टअप के संस्थापक या प्रमोटर विदेशी निवेशकों को कंपनी के समता अंश जारी करते थे जिससे कारण वे कंपनी पर अपना अधिकार खो देते थे।
    • परंतु इस परिवर्तन के पश्चात् सभी संस्थापक कंपनी पर अपना नियंत्रण बनाए रखने में सक्षम होंगे।
  • उपरोक्त दो बदलावों से स्टार्टअप इकोसिस्टम (Startup Ecosystem) को बढ़ावा मिलने की उम्मीद है।
  • इससे उन भारतीय कंपनियों को भी मज़बूती मिलेगी जिनका अतिक्रमण बड़े निवेशकों द्वारा उनके बाज़ार का फायदा उठाने के उद्देश्य से कर लिया गया है।
    • उदाहरण के लिये वर्ष 2018 में वालमार्ट द्वारा फ्लिपकार्ट का अधिग्रहण।

स्रोत: द हिंदू (बिज़नेस लाइन)


भारतीय अर्थव्यवस्था

ऑटोमोबाइल सेक्टर में मंदी

चर्चा में क्यों?

सोसाइटी ऑफ इंडियन ऑटोमोबाइल मैन्युफैक्चररस (Society of Indian Automobile Manufacturers-SIAM) द्वारा जारी आँकड़ों के मुताबिक बीते जुलाई माह में देश भर में सभी प्रकार के वाहनों की बिक्री में 18.71 प्रतिशत की गिरावट आई है। जुलाई में बेचे गए कुल वाहनों की संख्या जून के मुकाबले 22.45 लाख से घटकर 18.25 लाख इकाई तक आ गई। वाहनों की बिक्री में आई यह गिरावट विगत 19 वर्षों में सबसे अधिक है।

  • ऑटो सेक्टर में सबसे खराब प्रदर्शन दैनिक आधार पर उपयोग किये जाने वाले वाहनों के खंड (Segments) का रहा है। इस खंड में लगभग 31 प्रतिशत की गिरावट दर्ज की गई।
  • ऑटोमोबाइल सेक्टर (Automobile Sector) लगभग एक साल पहले शुरू हुई इस मंदी को रोकने में असफल रहा है और हालत इस हद तक खराब हो चुके हैं कि इस सेक्टर की कई दिग्गज कंपनियों को अपने उत्पादन कार्य तक को रोकना पड़ा है। एक अनुमान के मुताबिक, उत्पादन कार्य के रुकने से इस सेक्टर में लगभग 2.15 लाख लोगों को रोज़गार से हाथ धोना पड़ा हैं।

क्या हुआ है ऑटोमोबाइल सेक्टर को?

इस सेक्टर के लिये वित्तीय वर्ष 2018-19 की शुरुआत काफी अच्छी रही थी और इस वित्तीय वर्ष की पहली तिमाही (अप्रैल-जून 2018) में वाहनों की बिक्री 18 प्रतिशत बढ़कर लगभग 70 लाख इकाईयों तक पहुँच गई थी, परंतु जैसे-जैसे समय आगे बढ़ता गया ऑटो सेक्टर मंदी की गिरफ्त में आता गया और इस सेक्टर की वर्तमान परिस्थितियाँ काफी चिंताजनक हो गई हैं। ऑटो सेक्टर की मंदी का अंदाज़ा इसी बात से लगाया जा सकता है कि इस सेक्टर में सबसे आगे रहने वाली कंपनी मारुती (Maruti) को जुलाई 2018 की तुलना में जुलाई 2019 में 36.7 प्रतिशत का नुकसान हुआ है।

बिक्री न बढ़ने का कारण

बीते कई महीनों में ईंधन की बढ़ी हुई कीमतों, अधिक ब्याज़ दरों और वाहन बीमा लागत में वृद्धि के कारण वाहनों की कुल लागत में काफी बढ़ोतरी हुई है। ऐसे वातावरण में त्योहारों का सीज़न भी मांग में वृद्धि करने में विफल रहा जिसके कारण वाहन कंपनियों के पास वाहनों का बड़ा स्टॉक जमा हो गया।

इसके अलावा गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों (Non-Banking Financial Companies-NBFC) का वित्तीय संकट भी इस गिरावट का प्रमुख कारण रहा है, क्योंकि ग्रामीण बाज़ार में बिकने वाले आधे से अधिक वाहन NBFC द्वारा ही वित्तपोषित किये जाते हैं और यदि NBFC सेक्टर वित्त प्रदान नहीं करेगा तो इसका सीधा असर वाहनों की बिक्री पर भी देखने को मिलेगा।

इसके अतिरिक्त ऑटो सेक्टर में मंदी का एक बड़ा कारण प्रत्यक्ष रूप से GST को भी माना जा रहा है। वर्तमान में सभी वाहनों पर GST की दर 28 प्रतिशत है जिसके कारण वाहनों की कुल लागत में भी बढ़ोतरी हो जाती है। अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर चल रहे व्यापार युद्ध के प्रभाव को भी भारतीय ऑटोमोबाइल सेक्टर की मंदी का एक प्रमुख कारण माना जा रहा है।

उपरोक्त कारणों के परिणामस्वरूप ही वाणिज्यिक वाहनों और दुपहिया वाहनों सहित सभी वाहन श्रेणियों में नकारात्मक वृद्धि दर दर्ज की जा रही है। इससे पहले यह आशा व्यक्त की गई थी कि यह गिरावट चुनाव की वज़ह से सामने आ रही है और चुनाव खत्म होते ही वाहनों की मांग में फिर वृद्धि होगी, परंतु ऐसा नहीं हुआ।

लोग क्यों नहीं खरीद रहे हैं वाहन?

यह अनुमान है कि कुछ उपभोक्ता नए भारत स्टेज (BS)-VI उत्सर्जन मानक वाले वाहन खरीदने का इंतज़ार कर रहे हैं, जिसे 1 अप्रैल, 2020 से लागू करने का फैसला लिया गया है। उद्योग से जुड़े कुछ लोगों ने यह भी चिंता ज़ाहिर की है कि सरकार द्वारा इलेक्ट्रिक वाहनों पर बहुत ज़्यादा ध्यान देना भी खरीदारों को पेट्रोल और डीज़ल वाहनों की खरीद को स्थगित करने के लिये प्रोत्साहित कर सकता है।

ऑटोमोबाइल सेक्टर में रोज़गार की स्थिति?

भारत में ऑटोमोबाइल उद्योग सबसे ज़्यादा रोज़गार प्रदान करने वाले उद्योगों में से एक है जो कि प्रत्यक्ष अथवा अप्रत्यक्ष रूप से लगभग 37 मिलियन लोगों को रोज़गार देता है। देश की GDP में इसका 7 प्रतिशत से भी अधिक का योगदान है, परंतु लंबे समय तक मांग में कमी के कारण उद्योग के उत्पादन में काफी गिरावट आई है और इस क्षेत्र में नौकरियाँ भी काफी कम हो गई हैं। आँकड़ों के मुताबिक इस सेक्टर में मांग में कमी के कारण देशभर में तकरीबन 300 डीलरशिप बंद हो गई हैं। ऑटोमोटिव कंपोनेंट मैन्युफैक्चरर्स एसोसिएशन ऑफ इंडिया (Automotive Component Manufacturers Association of India) द्वारा चेतावनी दी गई थी कि यदि लंबे समय तक इस सेक्टर की यही स्थिति बनी रहती है तो लगभग 10 लाख नौकरियों के समाप्त होने का खतरा बना हुआ है और यदि ऐसा होता है तो यह भारतीय अर्थव्यवस्था के लिये बड़े रोज़गार संकट को जन्म देगा।

ऑटोमोबाइल सेक्टर की मांग

ऑटोमोबाइल सेक्टर नए लॉन्च और ऑफर के बावजूद भी बिक्री में आई गिरावट को काबू करने में असफल रहा है और ऐसे में इस सेक्टर की मांग यह है कि इस संबंध में तत्काल सरकारी हस्तक्षेप किया जाए। उद्योग की मांग है कि 28 प्रतिशत की मौजूदा GST दर को 18 प्रतिशत किया जाए ताकि वाहनों के मूल्य में तत्काल गिरावट हो सके। इसके अलावा यह भी मांग की जा रही है कि NBFC संकट से निपटने के लिये सरकार द्वारा तत्काल कुछ उपाय किये जाए और इलेक्ट्रिक वाहनों के लिये नीति को स्पष्ट किया जाए। हाल ही में उद्योग प्रतिनिधियों और वित्त मंत्री के बीच हुई बैठक में भी पूर्वलिखित मांगों को दोहराया गया है।

स्रोत: द हिंदू


अंतर्राष्ट्रीय संबंध

भारत-भूटान संबंध

चर्चा में क्यों ?

हाल ही में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भारत और भूटान के बीच सहयोग के संदर्भ में एक नया खाका प्रस्तुत किया, प्रधानमंत्री की घोषणा के अनुसार अब जल विद्युत क्षेत्र (Hydel Power Sector) के अतिरिक्त अंतरिक्ष, शिक्षा और स्वास्थ्य जैसे नए क्षेत्रों में भूटान के साथ सहयोग किया जाएगा।

मुख्य बिंदु

  • प्रधानमंत्री ने भूटान के अधिक-से-अधिक छात्रों को बौद्ध धर्म जैसे पारंपरिक क्षेत्रों में अध्ययन करने के लिये भारत आने का निमंत्रण दिया है।
  • इस यात्रा के दौरान भारतीय प्रधानमंत्री द्वारा 720 मेगावाट की मांगदेछु जल विद्युत परियोजना का उद्घाटन किया गया।
  • भारत और भूटान ने संयुक्त रूप से ग्राउंड अर्थ स्टेशन (Ground Earth Station) और SATCOM नेटवर्क का उद्घाटन किया, जिसे भूटान में दक्षिण एशिया उपग्रह के उपयोग के लिये इसरो की सहायता से विकसित किया गया है। यह अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी के उपयोग के माध्यम से भूटान के विकास को सुविधाजनक बनाने संबंधी भारत की प्रतिबद्धता का प्रतीक है।
  • भारत, भूटान के साथ ई-स्कूलों (e-schools), अंतरिक्ष (space) और डिजिटल भुगतान (Digital Payment) से लेकर आपदा प्रबंधन तक बड़े पैमाने पर सहयोग करने की कोशिश कर रहा है। इस समय भूटान के चार हज़ार से अधिक छात्र भारत में अध्ययनरत हैं तथा इस संख्या में और अधिक वृद्धि की जा सकती है।
  • भारत के प्रमुख IIT और भूटान के प्रतिष्ठित विश्वविद्यालय के बीच कनेक्टिविटी से शिक्षा एवं अनुसंधान के क्षेत्र में अधिक सहयोग संभव होगा, किंतु भारत में भूटानी छात्रों की गिरती हुई संख्या चिंता का विषय है।
  • कुछ विद्वानों ने भूटान से भारत के आर्थिक संबंधों को फिर से परिभाषित करने की मांग की थी, जिससे भूटान में अधिक निवेश संभव हो सके। इस संदर्भ में प्रधानमंत्री की भूटान यात्रा लाभदायक साबित हो सकती है।

1949 की भारत-भूटान संधि

भारत की आज़ादी के बाद 8 अगस्त, 1949 को भारत और भूटान के बीच दार्जिलिंग में एक संधि पर हस्ताक्षर हुए थे जिसमें अनेक प्रावधान शामिल थे। काफी लंबे समय तक इस संधि के जारी रहने के बाद भूटान के आग्रह पर 8 फरवरी, 2007 को इसमें बदलाव कर इसे अद्यतन बनाया गया। अद्यतन संधि में यह उल्‍लेख है कि भारत और भूटान के बीच स्‍थायी शांति एवं मैत्री होगी।

दोनों देशों के बीच संबंधों को लेकर चुनौतियाँ

  • आज का लोकतांत्रिक भूटान अपनी संप्रभुता के एक महत्त्वपूर्ण आयाम के रूप में स्वतंत्र विदेश नीति के लिये प्रयास कर रहा है ताकि भारत के साथ उसके प्रगाढ़ संबंध बने रहें और चीन सहित अन्य शक्तियों से भी संतुलन सधा रहे। निवेश की आकांक्षा से अपने उत्तर-पूर्व पड़ोसी चीन के प्रति आकर्षण से भूटान इसलिये भी स्वयं को बचाता है, क्योंकि भारत से उसके संबंध बेहद विश्वासपूर्ण रहे हैं।
  • लेकिन डोकलाम की घटना के बाद चीन की विस्तारवादी नीति ने दोनों देशों के सामने सीमा सुरक्षा संबंधी चुनौतियाँ खड़ी कर दी हैं। चीन भूटान के साथ औपचारिक राजनयिक और आर्थिक संबंध स्थापित करने का इच्छुक है तथा कुछ हद तक भूटान के लोग भी चीन के साथ व्यापार और राजनयिक संबंधों का समर्थन कर रहे हैं। इससे आने वाले समय में भारत के सामने कुछ अन्य चुनौतियाँ खड़ी हो सकती हैं।
  • भारत को भूटान की चिंताओं को दूर करने के लिये मज़बूती से काम करने की आवश्यकता है, क्योंकि भूटान में चीनी हस्तक्षेप बढ़ने से भारत-भूटान के मज़बूत द्विपक्षीय संबंधों की नींव कमज़ोर पड़ने का खतरा है। भूटान का राजनीतिक रूप से स्थिर होना भारत की सामरिक और कूटनीतिक रणनीति के लिहाज़ से बेहद महत्त्वपूर्ण है।

निष्कर्ष

विदित हो कि पिछले कई दशकों से भूटान के साथ संबंध भारत की विदेश नीति का एक स्‍थायी कारक रहा है। साझा हितों और पारस्‍परिक रूप से लाभप्रद सहयोग पर आधारित अच्‍छे पड़ोसी के संबंधों का यह उत्‍कृष्‍ट उदाहरण है। यह इस बात का प्रतीक है कि दक्षिण एशिया की साझा नियति है। यही वज़ह है कि आज परिपक्‍वता, विश्‍वास, सम्‍मान और समझ-बूझ तथा निरंतर विस्‍तृत होते कार्यक्षेत्र में संयुक्‍त प्रयास भारत-भूटान संबंधों की विशेषता है।

स्रोत : लाइवमिंट


जैव विविधता और पर्यावरण

जलवायु परिवर्तन पर 28वीं मंत्रिमंडलीय बैठक

चर्चा में क्यों ?

जलवायु परिवर्तन पर संयुक्त राष्ट्र फ्रेमवर्क कन्वेंशन (United Nations Framework Convention on Climate Change-UNFCC) की कॉन्फ्रेंस ऑफ पार्टीज़ (COP-25) की बैठक का आयोजन दिसंबर 2019 में सुनिश्चित किया गया है।

मुख्य बिंदु

  • उल्लेखनीय है कि इस संदर्भ में बेसिक (BASIC) देशों- ब्राज़ील, दक्षिण अफ्रीका, भारत एवं चीन ने 14 से 16 अगस्त तक जलवायु परिवर्तन पर अपनी 28वीं मंत्रिस्तरीय बैठक साओ पोलो (ब्राज़ील) में आयोजित की गई।
  • सभी देशों द्वारा पेरिस समझौते को स्वीकार करने में BASIC समूह महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है।
  • बैठक के अंतिम दिन BASIC समूह ने इस बात पर ज़ोर दिया कि विकसित देशों को जलवायु परिवर्तन से संबंधित अपनी प्रतिबद्धताओं को पूरा करने का प्रयास करने चाहिये, ताकि अल्पविकसित एवं विकासशील देशों पर उत्सर्जन को कम करने हेतु वित्तीय बोझ कम किया जा सके।
  • BASIC देशों ने संयुक्त रूप से विकसित देशों से विकासशील देशों के लिये वर्ष 2020 तक सालाना 100 अरब डॉलर जुटाने का अपना वादा पूरा करने का आग्रह किया है।
  • विकासशील देश यह संभावना व्यक्त कर रहे हैं कि ग्रीन क्लाइमेट फंड (GCF) के तहत विकसित देशों द्वारा वर्ष 2020 तक विकासशील देशों को शमन (Mitigation) और अनुकूलन (Adaptation) की ज़रूरतों को पूरा करने के लिये विभिन्न स्रोतों से संयुक्त रूप से प्रति वर्ष 100 बिलियन डॉलर प्रदान किये जाएंगे।
  • ब्राज़ील, दक्षिण अफ्रीका, भारत और चीन में दुनिया के भौगोलिक क्षेत्र का एक-तिहाई भाग है और दुनिया की आबादी का लगभग 40 प्रतिशत हिस्सा इन्हीं देशों में निवास करता है, अतः जलवायु परिवर्तन से संबंधित खतरों से लड़ने में ये देश बहुत योगदान कर सकते हैं।

BASIC समूह

यह 4 विकासशील देशों - ब्राज़ील, दक्षिण अफ्रीका, भारत और चीन द्वारा 28 नवंबर, 2009 को बनाया गया एक समूह है जिसका उद्देश्य जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिये धारणीय उपायों पर चर्चा करना है।

हरित जलवायु कोष (GCF)

  • यह UNFCCC के तहत् एक अंतर्राष्ट्रीय वित्तीय संस्था है।
  • वर्ष 2009 में कोपेनहेगन में हुए संयुक्त राष्ट्र जलवायु परिवर्तन सम्मेलन में हरित जलवायु कोष के गठन का प्रस्ताव किया गया था जिसे वर्ष 2011 में डरबन में हुए सम्मेलन में स्वीकार कर लिया गया।
  • यह कोष विकासशील देशों को जलवायु परिवर्तन की चुनौतियों से निपटने के लिये सहायता राशि उपलब्ध कराता है।
  • कोपेनहेगेन व कॉनकुन समझौते में विकसित देश इस बात पर सहमत हुए थे कि वर्ष 2020 तक लोक व निजी वित्त के रूप में हरित जलवायु कोष के तहत विकासशील देशों को 100 बिलियन डॉलर उपलब्ध कराया जाएगा।
  • वहीं 19वें संयुक्त राष्ट्र जलवायु परिवर्तन सम्मेलन में वर्ष 2016 तक 70 बिलियन डॉलर देने का लक्ष्य तय किया गया जिसे विकासशील राष्ट्रों ने अस्वीकार कर दिया।
  • उल्लेखनीय है कि नवंबर 2010 में संयुक्त राष्ट्र जलवायु परिवर्तन सम्मेलन के 16वें सत्र (Cop-16) में स्टैडिंग कमिटी ऑन फाइनेंस के गठन का निर्णय किया गया ताकि विकासशील देशों की ज़रूरतों का ध्यान रखा जा सके।

कॉन्फ्रेंस ऑफ़ पार्टीज़

(Conference of Parties-COP)

  • यह संयुक्त राष्ट्र फ्रेमवर्क कन्वेंशन ऑन क्लाइमेट चेंज (United Nations Framework Convention on Climate Change-UNFCCC) के हस्ताक्षरकर्त्ता देशों (कम-से-कम 190 देशों) का एक समूह है, जो हर साल जलवायु परिवर्तन से संबंधित मुद्दों को हल करने के उपायों पर चर्चा करने के लिये बैठक आयोजित करता है।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी

पार्कर सोलर प्रोब

चर्चा में क्यों?

हाल ही में नासा के पार्कर सोलर प्रोब मिशन ने अपने कार्यकाल का एक वर्ष पूरा किया। इस मिशन का उद्देश्य अंतरिक्ष में चुंबकीय बल, प्लाज़्मा, कोरोना और सौर पवन (Solar Wind’s) आदि का अध्ययन करना है।

मिशन के बारे में:

यह मिशन नासा के लिविंग विद ए स्टार (Living With a Star) कार्यक्रम का हिस्सा है।

लिविंग विद ए स्टार (Living With a Star- LWS):

  • लिविंग विद ए स्टार अंतरिक्ष पर्यावरण (Space Environment) को समझने हेतु नासा का एक कार्यक्रम है।
  • सूर्य-पृथ्वी प्रणाली (Sun-Earth System) को प्रभावित करने वाले कारकों को समझने के लिए आवश्यक व्यापक अनुसंधान प्रदान करता है साथ ही यह मौसम के बेहतर पूर्वानुमान में सहायक भी है।
  • यह मिशन अंतरिक्ष में संपन्न होने वाली वाली विभिन्न घटनाओं जैसे सौर तूफ़ान तथा पृथ्वी और अंतरिक्ष प्रणालियों के बीच के अज्ञात संबंधो की जाँच कर रहा है।
  • इस मिशन को फ्लोरिडा स्थित नासा के केप केनेडी स्पेस सेंटर (Complex37- कांप्लेक्स37) से डेल्टा 4 रॉकेट द्वारा वर्ष 2018 में लॉन्च किया गया था।
  • नासा ने पार्कर सोलर प्रोब का नाम प्रख्यात खगोल भौतिकीविद् यूज़ीन पार्कर के सम्मान में रखा है। पहले इसका नाम सोलर प्रोब प्लस था।
  • यूज़ीन पार्कर ने ही सबसे पहले वर्ष 1958 में अंतरिक्ष के सौर तूफान के बारे में भी बताया था।
  • पार्कर सोलर प्रोब की लंबाई 1 मीटर, ऊँचाई 2.5 मीटर तथा चौड़ाई 3 मीटर है।

सौर तूफान:

  • सूर्य की सतह पर कभी-कभी बेहद चमकदार प्रकाश दिखने की घटना को सन फ्लेयर (Sun Flare) कहा जाता है। इस घटना में असीम ऊर्जा निकलती है।
  • इस ऊर्जा के साथ सूर्य से अतिसूक्ष्म नाभिकीय कण भी निकलते हैं। यह ऊर्जा और कण ब्रह्मांड में फैल जाते हैं। इससे बड़े स्तर पर नाभिकीय विकिरण की घटना होती है जिसे सौर तूफान कहा जाता है।
  • सौर तूफान का सौरमंडल पर भी प्रभाव देखा जा रहा है। इस प्रकार की घटना के अध्ययन से वैज्ञानिकों को सूर्य और ब्रह्माण्ड को समझने में मदद मिलने की संभावना है ।
  • सूर्य से लगातार आते आवेशित (Charged) कणों से चुंबकीय क्षेत्र पृथ्वी की रक्षा करता है। ये चुंबकीय शक्तियाँ वायुमंडल के आस-पास कवच का काम करती हैं, लेकिन सौर तूफान के दौरान कई बार आवेशित कण इस चुंबकीय कवच को भेद देते हैं।

मिशन का उद्देश्य:

  • पार्कर सोलर प्रोब के ऊपर 4.5 इंच मोटा कार्बन मिश्रित कवच (Carbon Composite Heat Shield) है जो सूर्य के अत्यधिक ताप से इसकी सुरक्षा करता है, साथ ही इसका शील्ड, फाइबर और ग्रेफाइट (ठोस कार्बन) से तैयार किया गया है।
  • इस मिशन के माध्यम से सूर्य-पृथ्वी प्रणाली के विभिन्न पहलुओं का अध्ययन करना है, साथ ही यह सूर्य के सबसे समीप पहुँचने वाली मानव निर्मित वस्तु है।
  • इसके साथ भेजे गए चार पेलोड सूर्य के चुंबकीय क्षेत्र, प्लाज़्मा और ऊर्जा कणों का परीक्षण कर उनका 3-D चित्र तैयार करते हैं।
  • इस मिशन के माध्यम से सौर पवन के स्रोतों और चुंबकीय क्षेत्र की बनावट तथा उनके डायनामिक्स की जाँच की जा रही है।
  • यह मिशन सूर्य की सतह से इसके कोरोना के ज़्यादा तापमान होने के कारणों का भी अध्यययन करेगा।

कोरोना (Corona):

Corona

  • सूर्य के वर्णमंडल के वाह्य भाग को किरीट/कोरोना (Corona) कहते हैं।
  • पूर्ण सूर्यग्रहण के समय यह श्वेत वर्ण का होता है।
  • सूर्य का कोरोना बाहरी अंतरिक्ष में लाखों किलोमीटर तक फैला है और इसे सूर्य ग्रहण के दौरान आसानी से देखा जाता है
  • किरीट अत्यंत विस्तृत क्षेत्र में पाया जाता है।
  • F कोरोना धूल के कणों से बनती हैं वहीं E कोरोना प्लाज्मा में मौजूद आयनों द्वारा बनती है। इस प्रकार की घटनाओं का विस्तृत अध्ययन अब तक नहीं किया जा सका है।
  • इस मिशन की सहायता से सूर्य के वातावरण से उत्सर्जित होने वाले ऊर्जा कणों को मिलने वाली गति के विषय में भी अध्ययन किया जा रहा है।
  • यह मिशन सूर्य के चारों ओर के हीलियोस्फियर का अध्ययन कर रहा है साथ ही सूर्य के चारों ओर ज़्यादा तापमान होने के कारणों की भी जाँच की जा रहा है।
  • सौर वायु और आवेशित कणों को गति प्रदान करने वाले कारकों का अध्ययन हो किया जा रहा है।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


भूगोल

शेल गैस की खोज तथा जल की समस्या

चर्चा में क्यों?

मई 2019 में पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय (MoEFCC) ने पश्चिम बंगाल में शेल गैस (Shale Gas) भंडार की खोज के लिये एक निजी संस्था को पहली पर्यावरण मंज़ूरी प्रदान की। यह वर्ष 2018 में गुजरात और आंध्र प्रदेश को दी गई मंज़ूरी के अतिरिक्त है।

प्रमुख बिंदु

  • इन परियोजनाओं में शामिल 36 कुओं (पश्चिम बंगाल में 20, गुजरात में 11 और आंध्र प्रदेश में 5) में से प्रत्येक कुएँ से शेल गैस प्राप्त करने के लिये लगभग 3.5-6 मिलियन लीटर ताज़े पानी की आवश्यकता है।
  • पर्यावरण प्रभाव आकलन (Environmental Impact Assessment- EIA) की रिपोर्ट स्पष्ट करती है कि यह पर्यावरण मंज़ूरी केवल शेल गैस भंडार की प्रारंभिक खोज के लिये मांगी गई है। बहरहाल, इस संदर्भ में यह अनुमान व्यक्त किया जा रहा है कि शेल गैस के व्यावसायिक उत्पादन के लिये प्रत्येक कुएँ में फ्रैकिंग (fracking) गतिविधि हेतु 9 मिलियन लीटर तक पानी की आवश्यकता होगी।
  • अभी तक छह राज्यों से 56 स्थलों की पहचान फ्रैकिंग के लिये की गई है। विश्व संसाधन संस्थान (World Resource Institution) के अनुसार ये सभी शेल गैस के कुएँ जल तनाव क्षेत्र के अंतर्गत आते हैं, जिनमें ताज़े पानी की सीमित आपूर्ति होती है।
  • अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर बात करें तो हम पाएंगे की शेल गैस का उत्पादन करने वाले कई देश फ्रैकिंग से संबंधित गतिविधियों के संदर्भ में जल संकट का सामना कर रहे हैं। बुल्गारिया, फ्राँस, जर्मनी, आयरलैंड और नीदरलैंड्स जैसे देशों ने फ्रैकिंग पर प्रतिबंध लगा दिया है। ऐसे देश (अमेरिका, अर्जेंटीना, ब्रिटेन और चीन) जो शेल गैस निष्कर्षण का अनुसरण कर रहे हैं, उन्होंने विशिष्ट जल विनियमों को लागू कर दिया है।
  • EIA रिपोर्ट काफी हद तक अपर्याप्त लगती है, क्योंकि यह स्पष्ट रूप से फ्रैकिंग से संबंधित पानी के मुद्दों को संबोधित नहीं करती हैं। इसके अतिरिक्त इस संदर्भ में MoEFCC द्वारा भी एक विशिष्ट EIA मैनुअल प्रस्तुत करना अभी बाकी है।

शेल गैस क्या है?

  • शेल गैस एक प्रकार की प्राकृतिक गैस है जो शेल में उपलब्ध जैविक तत्त्वों से उत्पादित होती है।
  • शेल गैस को उत्पादित करने के लिये कृत्रिम उत्प्रेरण (Atrificial Stimulation) जैसे‘हाइड्रॉलिक फ्रैक्चारिंग’ (Hydraulic Fracturing) की आवश्यकता होती है।

शेल गैस के निष्कर्षण की विधि और चुनौती

  • शेल गैस निकालने के लिये शेल चट्टानों तक क्षैतिज खनन (Horizontal Drilling) द्वारा पहुँचा जाता है अथवाहाइड्रोलिक विघटन (Hydraulic fracturing) से उनको तोड़ा जाता है क्योंकि कुछ शेल चट्टानों (Shale Rocks) में छेद कम होते हैं और उनमें डाले गए द्रव सरलता से बाहर नहीं आ पाते।
  • अतः ऐसी स्थिति में उनके भण्डार (Reservoir) कुएँ जैसे न होकर चारों ओर फैले हुए होते हैं। इन चट्टानों से गैस निकालने के लिये क्षैतिज खनन (Horizontal Drilling) का सहारा लिया जाता है।
  • हाइड्रोलिक विघटन के लिये संबंधित चट्टानों के भीतर छेद करके लाखों टन पानी, चट्टानों के छोटे-छोटे टुकड़े (Proppant) और रसायन (Chemical Additives) डाला जाता है।
  • उल्लेखनीय है कि हाल के वर्षों में क्षैतिज ड्रिलिंग (Horizontal Drilling) और हाइड्रॉलिक फ्रैक्चारिंग की तकनीकों ने शेल गैस के बड़े भंडारों तक पहुँच को संभव बनाया है।
  • हालाँकि, इस चुनौती को स्वीकार करते हुए हाइड्रोकार्बन महानिदेशालय (DGH) ने शेल गैस निष्कर्षण के दौरान पर्यावरण प्रबंधन पर दिशा-निर्देश जारी किये हैं।
  • इसमें कहा गया है कि फ्रैक्चर तरल पदार्थ की कुल मात्रा परंपरागत हाइड्रोलिक फ्रैक्चरिंग के 5 से 10 गुना है और फ्रैक्चरिंग गतिविधियों में पानी के स्रोतों को कम करने और फ्लोबैक पानी के निपटारे के कारण प्रदूषण का कारण बन सकता है।
  • हालाँकि, पर्यावरण आकलन प्रभाव की प्रक्रिया परंपरागत और गैर-परंपरागत हाइड्रोकार्बन के बीच अंतर नहीं करती है और DGH इस मुद्दे को स्वीकार करता है कि इस क्षेत्र में पारंपरिक एवं अपरंपरागत गैस अन्वेषण के बीच EIA की प्रक्रिया में कोई अंतर नहीं आया है।

आगे की राह

प्राकृतिक-गैस आधारित अर्थव्यवस्था बनने की खोज में सरकार ने शेल गैस के अन्वेषण और उत्पादन को बढ़ावा देने के लिये विभिन्न नीतियाँ लागू की हैं। हालाँकि फ्रैकिंग को दी गई पर्यावरणीय मंज़ूरी शेल गैस परियोजना से संबंधित है, लेकिन इसे EIA रिपोर्ट तैयार करने हेतु एक प्रतिमान नहीं बनाना चाहिये। इसके इतर इसके विषय में अंतर्राष्ट्रीय अनुभव और विशिष्ट जल प्रबंधन मुद्दों के आधार पर जोखिम और लाभ का एक अनुमानित मूल्यांकन किया जाना चाहिये।

स्रोत: बिज़नेस लाइन


विविध

Rapid Fire करेंट अफेयर्स (19 August)

  • नरेंद्र मोदी के दूसरी बार प्रधानमंत्री बनने के बाद अपनी पहली विदेश यात्रा के लिये एक बार फिर भूटान को चुना। इस दौरान भारत और भूटान के बीच 10 विभिन्न क्षेत्रों में सहयोग समझौतों पर हस्ताक्षर किये गए। अंतरिक्ष, विज्ञान, इंजीनियरिंग, न्यायिक और संचार सहित इन सहयोग समझौतों पर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और वहां के प्रधानमंत्री लोटे शेरिंग के बीच शिष्टमंडल स्तर की वार्ता के बाद इन समझौतों पर हस्ताक्षर किये गए। अंतरिक्ष के क्षेत्र में सहयोग समझौते से भूटान को संचार, लोक प्रसारण और आपदा प्रबंधन के क्षेत्र में मदद मिलेगी। साथ ही भूटान की आवश्यकतानुसार अतिरिक्त बैंडविड्थ और ट्रांसपोंडर भी उपलब्ध कराया जाएगा। भूटान में दक्षिण एशिया उपग्रह के इस्तेमाल के लिये इसरो के सहयोग के साथ विकसित सैटकॉम नेटवर्क और ग्राउंड अर्थ स्टेशन की शुरुआत भी की गई। नागरिक उड्डयन, शिक्षा और ज्ञान के क्षेत्र में भी सहयोग समझौतों को अंजाम दिया दोनों देशों ने ऊर्जा क्षेत्र में सहयोग का समझौता भी किया और इसमें बिजली खरीद समझौते पर भारत की पीटीसी इंडिया लिमिटेड और भूटान की ड्रक ग्रीन पावर कॉर्पोरेशन लिमिटेड ने हस्ताक्षर किये। न्यायिक क्षेत्र में सहयोग के लिये भूटान के राष्ट्रीय विधि संस्थान के के साथ समझौता हुआ। भूटान के जिग्मे सिंग्ये वांगचुक स्कूल आफ लॉ और भारत के नेशनल लॉ स्कूल बेंगलुरु के बीच सहयोग के समझौते पर भी हस्ताक्षर किये गए। शिक्षा के क्षेत्र में सहयोग पर भी दोनों देशों के बीच सहमति बनी और भूटान रॉयल विश्वविद्यालय ने IIT कानपुर, दिल्ली, मुंबई और सिलचर के साथ भी सहयोग के समझौतों पर हस्ताक्षर किये गए। नरेंद्र मोदी ने मांगदेछू पनबिजली ऊर्जा संयंत्र की शुरुआत की और भारत-भूटान पनबिजली सहयोग के पाँच दशक पूरे होने के उपलक्ष्य में डाक टिकट भी जारी किया। दक्षेस मुद्रा स्वैप के तहत भूटान की विदेशी विनिमय की ज़रूरत को पूरा करने के लिये वैकल्पिक स्वैप व्यवस्था के तहत उसे अतिरिक्त 10 करोड़ डॉलर उपलब्ध कराए जाएंगे। भारत के नेशनल नॉलेज नेटवर्क और भूटान के ड्रक रिसर्च एंड एजुकेशन नेटवर्क के बीच अंतर-संपर्क की ई-वॉल का भी अनावरण किया गया तथा भारत ने भूटान की पंचवर्षीय योजना में सहयोग जारी रखने की बात कही। इसके अलावा भूटान में रुपे कार्ड की शुरुआत की गई, जिससे डिजिटल भुगतान और व्यापार तथा पर्यटन में संबंध और मज़बूत होंगे।
  • विभिन्न राज्यों के बीच विवादों की जांच करने एवं परामर्श देने वाली अंतर-राज्य परिषद का पुनर्गठन कर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को इसका अध्यक्ष बनाया गया है। इस परिषद में 6 केंद्रीय एवं सभी मुख्यमंत्री सदस्य होंगे। जिन केंद्रीय मंत्रियों को पुनर्गठित परिषद में स्थान दिया गया है उनमें अमित शाह (गृह), निर्मला सीतारमण (वित्त), राजनाथ सिंह (रक्षा), नरेंद्र सिंह तोमर (कृषि), थावर चंद गहलोत (सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता) तथा हरदीप सिंह पुरी (आवास एवं शहरी मामले) शामिल हैं। परिषद में सभी राज्यों तथा विधायिका एवं बिना विधायिका वाले सभी केंद्रशासित प्रदेशों के मुख्यमंत्रियों को सदस्य बनाया गया है। दस अन्य केंद्रीय मंत्रियों को परिषद में स्थायी आमंत्रित का दर्जा दिया गया है। इसके अलावा सरकार ने अंतर-राज्य परिषद की स्थायी समिति का भी पुनर्गठन किया है जिसके अध्यक्ष गृह मंत्री अमित शाह होंगे। इसमें निर्मला सीतारमण, नरेंद्र सिंह तोमर, थावर चंद गहलोत एवं गजेंद्र सिंह शेखावत को सदस्य बनाया गया है। इसमें आठ मुख्यमंत्रियों को भी सदस्य बनाया गया है। विदित हो कि भारत सरकार ने केंद्र और राज्यों के बीच वर्तमान व्यवस्थाओं के कार्यकरण की समीक्षा करने के लिये न्यायमूर्ति आर.एस. सरकारिया की अध्यक्षता में वर्ष 1988 में एक आयोग का गठन किया था। सरकारिया आयोग ने भारत के संविधान के अनुच्छेद 263 के अनुसार सुपरिभाषित अधिदेश के अनुसरण में परामर्श करने के लिये एक स्वतंत्र राष्ट्रीय फोरम के रूप में अंतर-राज्य परिषद स्थापित किये जाने की सिफारिश की थी। इस सिफारिश के अनुसरण में राष्ट्रपति के आदेश के तहत 28 मई, 1990 को अंतर-राज्य परिषद का गठन किया गया था।
  • राष्ट्रीय हरित अधिकरण (NGT) ने पर्यावरण मंत्रालय को निर्देश दिया है कि वह राष्ट्रीय स्वच्छ वायु कार्यक्रम (NCAP) में संशोधन करे। अधिकरण इस कार्यक्रम में वायु प्रदूषण कम करने की समय सीमा को लेकर संतुष्ट नहीं है। विदित हो कि NCAP ने प्रस्ताव किया है कि वर्ष 2024 तक वायु प्रदूषण में 20-30 प्रतिशत की कमी की जाएगी। इसके तहत पीएम2.5 और पीएम10 प्रदूषकों की मौजूदगी को वर्ष 2024 तक वर्ष 2017 के स्तर से 20 से 30 प्रतिशत कम करने का लक्ष्य रखने का प्रस्ताव किया गया है। लेकिन लोगों के स्वास्थ्य पर पड़ रहे बुरे असर और स्वच्छ वायु में सांस लेने के संविधान प्रदत्त मूल अधिकार को देखते ने को कहा गया। इसके लिये NCAP में संशोधन किया जाना चाहिये। गौरतलब है कि देशभर में वायु प्रदूषण के खिलाफ अभियान चलाने के लिये 300 करोड़ रुपए की लागत से इस वर्ष के प्रारंभ में NCAP शुरू किया गया है। यह वायु प्रदूषण की रोकथाम के लिये व्यापक और समयबद्ध रूप से बनाया गया पाँच वर्षीय कार्यक्रम है।
  • 19 अगस्त का दिन दुनियाभर में विश्व फोटोग्राफी दिवस के तौर पर मनाया जाता है। इस दिवस को मनाने के पीछे एक दिलचस्प कहानी है। दरअसल फ्रांसीसी वैज्ञानिक लुईस जेक्स और मेंडे डाग्युरे ने सबसे पहले वर्ष 1839 में फोटो तत्व की खोज की थी। वर्ष 1839 में ही वैज्ञानिक सर जॉन एफ.डब्ल्यू. हश्रेल ने पहली बार 'फोटोग्राफी' शब्द का इस्तेमाल किया था। ब्रिटिश वैज्ञानिक विलियम हेनरी फॉक्सटेल बोट ने निगेटिव-पॉजीटिव प्रोसेस का आविष्कार किया और वर्ष 1834 में टेल बॉट ने लाइट सेंसेटिव पेपर की खोज करके खींची गई फोटो को स्थायी रूप में रखने में मदद की। फ्रांसीसी वैज्ञानिक आर्गो की फ्रेंच अकादमी ऑफ साइंस के लिये लिखी गई एक रिपोर्ट को तत्कालीन फ्रांस सरकार ने खरीदकर 19 अगस्त, 1939 को आम लोगों के लिये फ्री घोषित कर दिया था। इसी उपलब्धि की याद में 19 अगस्त को विश्व फोटोग्राफी दिवस के रूप में मनाया जाने लगा।

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