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डेली न्यूज़

  • 17 Aug, 2019
  • 55 min read
भूगोल

पश्चिमी घाट

चर्चा में क्यों?

नेशनल सेंटर फॉर अर्थ साइंस स्टडीज़ (National Centre for Earth Science Studies- NCESS) के वैज्ञानिकों की एक टीम ने भारी वर्षा और विनाशकारी बाढ़ की निरीक्षण के बाद बताया कि पश्चिमी घाट के संरक्षण के संधारणीय प्रयास में शिथिलता भविष्य के लिये अत्यंत विनाशकारी हो सकती है।

पश्चिमी घाट: 

  • पश्चिमी घाट ताप्ती नदी से लेकर कन्याकुमारी तक भारत के 6 राज्यों तमिलनाडु, कर्नाटक, केरल, गोवा, महाराष्ट्र और गुजरात में फैला है।
  • पश्चिमी घाट,भारत के सबसे ज़्यादा वर्षण क्षेत्रों में से एक है साथ ही यह भारतीय प्रायद्वीप की जलवायु को महत्त्वपूर्ण रूप से प्रभावित भी करता है। 
  • प्रायद्वीपीय भारत की अधिकांश नदियों का उद्गम पश्चिमी घाट से ही होता है। इसलिए दक्षिण भारत का संपूर्ण अपवाह तंत्र पश्चिमी घाट से ही नियंत्रित होता है।
  • पश्चिमी घाट से गोदावरी, कृष्णा, कावेरी और पेरियार नदियों का उद्गम होता है जो संपूर्ण दक्षिण भारत की सिंचाई की जीवनरेखा हैं। इन नदियों के जल का उपयोग सिंचाई के साथ ही  विद्युत उत्पादन के लिए भी किया जाता है।
  • पश्चिमी घाट भारतीय जैव विविधता के सबसे समृद्ध हॉटस्पॉट में से एक है, साथ ही यह कई राष्ट्रीय उद्यानों और वन्यजीव अभयारण्यों को भी समावेशित करता है। 
  • पश्चिमी घाट में चाय, कहवा, रबर और यूकेलिप्टिस जैसी वाणिज्यिक कृषि की जाती जो अर्थव्यवस्था के दृष्टिकोण से महत्त्वपूर्ण है। 

पश्चिमी घाट से संबंधित मुद्दे: 

  • भूस्खलन (Landslide): 
    • इन क्षेत्रों में भू-संचालन, भूमि उप-विभाजन, पार्श्व प्रसार (दरार) और मिट्टी की कटाई से भूस्खलन का लगातार खतरा बना रहता है। इस प्रकार की स्थितियांँ केरल के त्रिशूर और कन्नूर ज़िलों में विशेष रूप से पाई जाती हैं। 
    • अत्यधिक वर्षा, अवैज्ञानिक कृषि और निर्माण गतिविधियांँ भी भूस्खलन हेतु जिम्मेदार  है।
    • पश्चिमी घाट के अधिकांश ढलानों का उपयोग फसलों को उगाने हेतु किया जाता है  जिससे कृषि के दौरान प्राकृतिक जल निकासी प्रणालियांँ अवरुद्ध हो जाती हैं। जो भूस्खलन की प्रायिकता को बढ़ाते हैं। 

निगरानी नेटवर्क (Monitoring network):

  • केंद्रीय पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय ने NCESS की सिफारिशों के आधार पर उच्च क्षेत्रों में भूस्खलन मॉनीटरिंग स्टेशनों का एक नेटवर्क स्थापित किया है।
  • ध्वनिक उत्सर्जन तकनीक (Acoustic Emission Technology) के प्रयोग के माध्यम से  स्थानीय समुदाय को भूस्खलन की प्रारंभिक चेतावनी दी जाती है।

जैव विविधता (Biodiversity):

  • इस क्षेत्र की प्रमुख पारिस्थितिकीय समस्याओं में जनसंख्या और उद्योगों का दबाव शामिल है।
  • पश्चिमी घाट में होने वाली पर्यटन गतिविधियों से भी इस क्षेत्र पर और यहाँ की वनस्पति पर दबाव बढ़ा है।
  • नदी घाटी परियोजनाओं के अंतर्गत वन भूमि का डूबना और वन भूमि पर अतिक्रमण भी एक बड़ी समस्या है।
  • पश्चिमी घाट की जैव विविधता के ह्रास का बड़ा कारण खनन है।
  • चाय, कॉफी, रबड़, यूकेलिप्टस की एक फसलीय कृषि व्यवस्था इस क्षेत्र की जैव विविधता को प्रभावित कर रही है।
  • रेल और सड़क जैसी बुनियादी ढाँचा परियोजनाएँ भी इस क्षेत्र की पारिस्थितिकी पर दबाव डालती हैं।
  • भू-क्षरण और भू-स्खलन जैसे प्राकृतिक तथा मानवीय कारणों से भी पश्चिमी घाट की जैव विविधता प्रभावित हुई है।
  • तापीय ऊर्जा संयंत्रों के प्रदूषण के कारण भी जैव विविधता प्रभावित हो रही है।

बाढ़ (Flood): 

  • पश्चिमी घाट की अधिकांश नदियाँ खड़े ढलानों से उतरकर तीव्र गति से बहती हैं। जिसके कारण वे पुराने बांधों को आसानी से तोड़ देती हैं साथ ही वनों की कटाई के बाद कमज़ोर हुई ज़मीन को आसानी से काट भी देती हैं।
  • पुराने बांधों की समय पर मरम्मत न होना सदैव बाढ़ को आमंत्रित करता है।
  • पश्चिमी घाट के संरक्षण को लेकर बनाई गई गाडगिल समिति ने भी बांधों की स्थिति पर चिंता व्यक्त की थी।                                                                

पश्चिमी घाट के संरक्षण को लेकर गाडगिल और कस्तूरीरंगन समिति (Gadgil and Kasturirangan Committee) की अनुशंसाएँ:

  • पश्चिमी घाट के संरक्षण को लेकर गाडगिल और कस्तूरीरंगन समिति का गठन किया गया था।
  • गाडगिल समिति ने पश्चिमी घाट के लिये तीन पर्यावरण संवेदनशील ज़ोन (Ecologically Sensitive Zones- ESZ) का विचार रखा गया था। जिसमें ESZ-1 के क्षेत्र में किसी भी प्रकार की मानवीय गतिविधियों का निषेध किया गया था 
  • इसके विपरीत कस्तूरीरंगन  समिति ने ESZ का श्रेणीगत विभाजन न करते हुए कुल पश्चिमी घाट के 37% क्षेत्र को ESZ घोषित किया 
  • गाडगिल समिति ने जहाँ सभी प्रकार के ऊर्जा संयंत्रों का विरोध किया वहीं कस्तूरीरंगन  समिति ने हाइड्रो पॉवर प्रोजेक्टों की अनुमति दी।  
  • दोनों समितियों द्वारा बड़े स्तर पर बांधों के निर्माण की मनाही की गई।  
  • इसी प्रकार दोनों समितियों द्वारा संरक्षण हेतु नीतियों के क्रियान्वयन की शुरुआत के लिये  बॉटम टू टॉप दृष्टिकोण की अनुशंसा की गई थी।  
  • पर्यावरण संरक्षण अधिनियम 1986 के तहत पश्चिमी घाट पारिस्थिकी प्राधिकरण (Western Ghats Ecology Authority- WGEA) की स्थापना की सिफारिश की गई थी

गाडगिल और कस्तूरीरंगन  समिति की आलोचना: 

  • इन सिफारिशों को पर्यावरण हितैषी तो माना गया लेकिन इसमें किसानों, स्थानीय समुदायों को विशेष वरीयता नही दी गई।
  • पश्चिमी घाट को पर्यावरण संवेदनशील ज़ोन घोषित करने संबंधी प्रावधान भी व्यावहारिकता से दूर ही प्रतीत हुए।
  • ऊर्जा सुरक्षा, विकास, राजस्व जैसे मुद्दों को भी दरकिनार कर दिया गया था।

आगे की राह: 

  • पर्यावरण संवेदनशील ज़ोन (Ecologically Sensitive Zones- ESZ) की व्यवस्था को लागू करने से पहले पश्चिमी घाट का विस्तृत अध्ययन कराया जाना चाहिये। विस्तृत अध्ययन के बाद संवेदनशील क्षेत्रों की पहचान करके उन क्षेत्रों को ESZ घोषित किया जाए
  • बहुफसलीय व्यवस्था पर ज़ोर दिया जाए साथ ही किसानों के बीच इसके प्रभाव और फायदों संबंधी जागरूकता का भी प्रसार किया जाए 
  • भू-संचलन गतिविधियों का अध्ययन करके संवेदनशील क्षेत्रों में बांधों का निर्माण न होने दिया जाए
  • कृषि और वनों के अतिरिक्त  आजीविका हेतु जैसे मत्स्यन, समुद्री कृषि जैसे विकल्पों को अपनाने के प्रयास किये जाएँ
  • तापीय ऊर्जा के अतिरिक्त सागरीय, पवन और जलीय ऊर्जा के निर्माण एवं प्रयोग पर ज़ोर दिया जाएँ
  • पर्यावरण संवेदनशील ज़ोन में जनसंख्या के प्रसार पर रोक लगाई जाए साथ ही शहरी नियोजन में नवीन वैज्ञानिक और प्रासंगिक विधियों का प्रयोग किया जाए

स्रोत: द हिंदू एवं लाइवमिंट


जैव विविधता और पर्यावरण

संरक्षित क्षेत्र में परियोजनाओं को मंज़ूरी

चर्चा में क्यों?

हाल ही में पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवेर्तन मंत्रालय (MOE & FCC) द्वारा संरक्षित क्षेत्र के बफर ज़ोन (Buffer Zone) में विकासात्मक गतिविधियों के लिये पर्यावरणीय मंज़ूरी की प्रक्रिया में संशोधन किया गया है।

प्रमुख बिंदु 

  •  MOE & FCC द्वारा जारी कार्यालय आदेश के अनुसार, वन्यजीव अभ्यारण्य या नेशनल पार्क के अधिसूचित इको-सेंसिटिव ज़ोन (Eco-Sensitive Zone-ESZ) की सीमा के बाहर परंतु  नेशनल पार्क की परिधि के 10 किमी. के अंदर तक शुरु होने वाली परियोजनाओं के लिये राष्ट्रीय वन्यजीव बोर्ड (National Board for Wildlife-NBWL) की पूर्व अनुमति की आवश्यकता नहीं होगी।
  • इस क्षेत्र में स्थापित होने वाली परियोजनाओं के लिये MOE & FCC  की विशेषज्ञ मूल्यांकन समिति (Expert Appraisal Committee-EAC) द्वारा अनुमति प्रदान की जाएगी।
  • नए नियमों के अनुसार, अधिसूचित ESZ में या नेशनल पार्क की सीमा के एक किलोमीटर के भीतर, दोनों में से जो ज्यादा होगा में खनन कार्यो पर प्रतिबंध रहेगा।
  • उच्चतम न्यायालय के निर्देशों के अनुसार अनेक राज्यों ने संरक्षित क्षेत्र के चारों ओर 10 किमी. तक के क्षेत्र को ESZ घोषित नही किया है। कुछ राज्यों में कुछ मीटर से लेकर एक किलोमीटर तक के बफर ज़ोन हैं, जबकि कुछ राज्यों ने ESZ घोषित ही नहीं किया है। 
  • ऐसे मामलों में जहाँ ESZ की अधिसूचना प्रारूप चरण (Draft Stage) में है वहाँ भी NBWL की अनुमति आवश्यक होगी।
  • वर्ष 2002 की वन्यजीव संरक्षण रणनीति (The Wildlife Conservation Strategy of 2002) द्वारा अभ्यारण्य के चारों ओर 10 किमी. के बफर ज़ोन (Buffer Zone) की स्थापना की अनुशंसा की गई। 

नए नियमों का नकारात्मक पक्ष 

  • नए नियम संरक्षित क्षेत्र के चारों ओर 10 किमी परिधि के क्षेत्र के संरक्षण मूल्यों और उनके  महत्त्व को कम कर सकते है। 
  • ये नियम पर्यावरणीय मंजूरी के समय वन्यजीवों से संबंधित समीक्षा को सुनिश्चित करने के महत्त्व को कम करते हैं।  

वन्यजीव संरक्षण रणनीति, 2002

(The Wildlife Conservation Strategy of 2002)

  • इस रणनीति को वर्ष 2002 में आयोजित भारतीय वन्य जीव बोर्ड की 21 वीं बैठक में अपनाया गया।  
  • इस रणनीति के तहत नेशनल पार्क व वन्य जीव अभ्यारण्य की सीमा से 10 किमी की परिधि के क्षेत्र को पारिस्थितिकी  संवेदनशील क्षेत्र (ESZ) घोषित करना शामिल है।  
  • ESZ को MoEFCC द्वारा पर्यावरण संरक्षण अधिनियम, 1986 के तहत अधिसूचित किया जाता है।  
  • इस रणनीति के मुलभुत उद्देश्य संरक्षित क्षेत्र के चारों ओर कुछ गतिविधियों का विनियमन करना ताकि संरक्षित क्षेत्र के सवेदेंशील परितंत्र पर इन गतिविधियों यथा खनन, पॉवर प्रोजेक्ट आदि  के नकारात्मक प्रभाव को न्यूनतम किया जा सके।

स्रोत: हिंदुस्तान टाइम्स


शासन व्यवस्था

राष्ट्रीय आवश्यक निदान सूची (NEDL)

चर्चा में क्यों ?

भारतीय आयुर्वेद अनुसंधान परिषद् (Indian Council of Medical Research-ICMR) ने देश की पहली राष्ट्रीय आवश्यक निदान सूची (National Essential Diagnostics List -NEDL) जारी की है

प्रमुख बिंदु 

  • भारत विश्व का पहला देश है जिसने ग्रामीण और दूरस्थ क्षेत्रों की विभिन्न स्वास्थ्य सुविधाओं की आवश्यकता के अनुसार नैदानिक परीक्षणों की सूची जारी की है।  
  • विश्व स्वास्थ्य संगठन (World Health Organisation) ने मई  2018 में आवश्यक नैदानिक सूची (EDL) का पहला संस्करण जारी किया। WHO की इस  सूची ने NEDL के लिये संदर्भ के रूप में कार्य किया। NEDL को भारतीय स्वास्थ्य सेवाओं की आवश्यकता की प्राथमिकताओं के आधार तैयार किया  गया है। 
  • भारत में नैदानिकी को चिकित्सा उपकरण नियम, 2017 ( Medical Device Rules, 2017) के नियामक प्रावधानों के तहत विनियमित किया जाता है।
  • नैदानिकी (चिकित्सा उपकरणों व इन विट्रो नैदानिकी),  ड्रग और कास्मेटिक अधिनियम, 1940 (Drugs and Cosmetics Act, 1940)  तथा ड्रग और कॉस्मेटिक्स नियम, 1945 (Drugs and Cosmetics Rules 1945)  के अधीन ड्रग विनियमन के  फ्रेमवर्क द्वारा नियमित होता है।
    • NEDL को ग्रामीण स्तर के साथ ही प्राथमिक, द्वितीयक व तृतीयक  स्वास्थ्य देखभाल के लिये भी तैयार किया गया है।
    • यह सार्वजनिक स्वास्थ्य प्रणाली के अलग-अलग  स्तरों पर परीक्षणों की विस्तृत रेंज प्रदान करने के लिए नि: शुल्क नैदानिक सेवा पहल (Free Diagnostics Service Initiative-FDI) और स्वास्थ्य मंत्रालय की अन्य नैदानिक पहलों का निर्माण करता है।
    • वर्ष 2015 में FDI को शुरू किया गया।
    • इस पहल के तहत राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन (National Health Mission-NHM) के माध्यम से सभी राज्यों को सार्वजनिक स्वास्थ्य सेवाओं के लिये नि:शुल्क आवश्यक नैदानिक  प्रयोगशाला और रेडियोलोजी उपलब्ध करवाई जा रही है।
    • NEDL में  नियमित रोगी देखभाल के परीक्षण करते हुये और संचारी (communicable) और गैर-संचारी (non- communicable) रोगों के निदान के लिए सामान्य प्रयोगशालाओं का एक समूह शामिल है।
    • NEDL विशिष्ट रोगों को उनके रोग बोझ (disease burden) के आधार पर  नैदानिक परीक्षणों को शामिल करता है। इन रोगों में वेक्टर जनित रोग (मलेरिया, डेंगू, फाइलेरिया, चिकनगुनिया, जापानी इंसेफलाइटिस), लेप्टोस्पाइरोसिस (Leptospirosis), तपेदिक, हेपेटाइटिस ए, बी सी और ई, एचआईवी, सिफलिस (Syphilis) आदि शामिल है।
  • यह प्रधान मंत्री जन आरोग्य योजना (Pradhan mantri janarogya yojna) के तहत स्वास्थ्य और कल्याण केंद्र (HWCs) जैसे नए कार्यक्रमों के लिये प्रासंगिक परीक्षण को  शामिल करता है। 
  • परीक्षणों के अलावा इन विट्रो नैदानिक उत्पादों (In Vitro Diagnostics-IVD) के लिए भी सिफारिश की गई है।
  • नैदानिकी, स्वास्थ्य और जीवन की गुणवत्ता में सुधार करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। 
  • ICMR के आकलन के अनुसार राज्यों द्वारा अपनाये जाना, स्थानीय मानक नैदानिक प्रोटोकॉल और उपचार दिशानिर्देशों के साथ सामंजस्य, अपेक्षित अवसंरचना का प्रावधान, प्रक्रिया और मानव संसाधन, External Quality Control System (EQAS) सहित गुणवत्ता की जांच सुनिश्चित करना आदि NEDL के कार्यान्वयन के समक्ष प्रमुख चुनौतियाँ है।

स्रोत: द हिंदू


विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी

कृषि क्षेत्र स्टार्टअप्स में वृद्धि

चर्चा में क्यों?

NASSCOM के अनुसार कृषि क्षेत्र से संबंधित स्टार्ट-अप्स में 25 प्रतिशत की बढ़ोतरी तथा वित्तपोषण में 2014 से लेकर अब तक 10 गुना वृद्धि हुई है।

प्रमुख बिंदु

  • फसल की कटाई के बाद प्रायः भारतीय किसानों को लगभग 93000 करोड़ रुपए का नुकसान उठाना पड़ता है, एग्रीटेक स्टार्टअप्स का एक समूह अब मांग को संचालित करने वाले कोल्ड चेन (Cold Chain), वेयरहाउस मॉनिटरिंग सॉल्यूशंस (Warehouse Monitoring Solution) और मार्केट लिंकेज प्रणाली (Market Linkage Process) पर कार्य कर उस अंतर को पाटने की कोशिश कर रहा है जो किसानों की आय को काफी बढ़ा सकता है।
  • हाल ही में जारी "एग्रीटेक इन इंडिया: इमर्जिंग ट्रेंड्स इन 2019" (Agritech in India: Emerging Trends in 2019) की अपनी रिपोर्ट में NASSCOM ने उल्लेख किया कि वैश्विक स्तर पर कृषि प्रौद्योगिकी क्षेत्र में कुल 3100 स्टार्टअप हैं, जिनमें से 450 से अधिक भारत में हैं। इस क्षेत्र में भारत ने साल-दर-साल 25% की दर से विकास किया है।
  • वित्तपोषण के संबंध में स्टार्टअप को वर्ष 2013-14 की तुलना में वर्ष 2017-18 में 10 गुना अधिक धन प्राप्त हुआ। 

उत्पादन का नष्ट होना एक गंभीर समस्या

  • सरकारी आँकड़ों के अनुसार, फसल के उत्पादन के पश्चात् फल और सब्जी के क्षेत्र में सबसे ज़्यादा नुकसान होता है, जहाँ 16% उत्पाद बेकार हो जाते हैं। इस मुद्दे को संबोधित करते हुए कुछ सबसे बड़े एग्रीटेक सौदों को लक्षित किया गया है जो निन्ज़ाकार्ट (Ninzacart) और क्रॉफार्म (Crofarm) जैसे डिजिटल प्लेटफार्म के माध्यम से सीधे बाज़ार में संपर्क बनाएंगे।
  • ये प्लेटफार्म खेत से लेकर बाज़ार तक के व्यावसायिक क्षेत्रों को विकसित करने या किसानों के उत्पादन को होटल, रेस्तराँ और कैफे तक सीधे पहुँचाने में समर्थन कर सकते हैं।
  • अन्य नवाचारों में गुणवत्ता ग्रेडिंग के लिये इमेज सेंसिंग(image sensing), इंटरनेट ऑफ थिंग्स (internet of things) पर आधारित भंडारण की निगरानी और मंडियों के डिजिटलीकरण के साथ-साथ किसान उत्पादक संगठनों (FAOs) को शामिल किया गया है।

प्रौद्योगिकी समाधान

  • अन्य स्टार्टअप्स फसल उत्पादकता बढ़ाने के लिये प्रौद्योगिकी समाधान प्रदान करते हैं। बिग डेटा एनालिटिक्स (big data analytics), आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (arificial intelligence) और रिमोट सेंसिंग (rimote sensing) का उपयोग करते हुए भूमि प्रबंधन ( land management), फसल चक्र की निगरानी (crop cycle monitoring) और कटाई की ट्रेसिंग (harvest traceability) की जा सकती है।
  • एक अन्य समूह का उद्देश्य किसानों के क्रेडिट मुद्दों को हल करना, कम लागत और कृषि उपकरणों के लिये समय पर वित्तपोषण प्रदान करना और वर्चुअल क्रेडिट कार्ड का उपयोग करके कम लागत वाले डिजिटल ऋण तक पहुँच प्रदान करना है।

निष्कर्ष

NASSCOM के अनुसार, भारत का कृषि क्षेत्र अपने डिजिटल परिवर्तन की दिशा में तेज़ी से आगे बढ़ रहा है और स्टार्टअप परिवेश न केवल इसमें महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है बल्कि नित नए नवाचार भी कर रहा है। कृषि में प्रौद्योगिकी को अपनाने के लिये हमेशा एक संस्थागत ढाँचे की आवश्यकता होती है और प्रौद्योगिकी कंपनियाँ नए व्यवसाय मॉडल के साथ कृषि परिदृश्य में सेंध लगाने की कोशिश कर रही हैं।

स्रोत: टाइम्स ऑफ इंडिया 


भारतीय अर्थव्यवस्था

स्वर्ण मुद्रीकरण योजना में बदलाव

चर्चा में क्यों?

हाल ही में भारतीय रिज़र्व बैंक ने स्वर्ण मुद्रीकरण योजना (Gold Monetization Scheme-GMS) को अधिक उदार बनाते हुए जमाकर्त्ताओं को अपने सोने (Gold) को सीधे बैंकों और रिफाइनरों (Refiners) के पास जमा करने की अनुमति दे दी है।

प्रमुख बिंदु:

  • गौरतलब है कि इससे पूर्व किसी भी जमाकर्त्ता को सर्वप्रथम उन संग्रह और शुद्धता परीक्षण केंद्रों (Collection and Purity Testing Centres-CPTCs) के पास अपना सोना जमा करवाना होता था जिन्हें भारतीय मानक ब्यूरो द्वारा मान्यता प्राप्त है।
  • इसके बाद CPTCs जमाकर्त्ताओं को जमा किये गए सोने के लिये प्रमाणपत्र देते थे और उस प्रमाणपत्र के आधार पर बैंक उस व्यक्ति का खाता खोल देते थे।
  • आँकड़ों के अनुसार, इस योजना के तहत अब तक केवल 16 टन सोना ही एकत्रित किया जा सका है और इसके आधार पर यह कहा जा सकता है कि यह योजना भारतीय जमाकर्त्ताओं को अपनी ओर आकर्षित करने में असफल रही है।
  • असफलता का कारण:
    • इस योजना की असफलता का मुख्य कारण योजना के प्रति बैंकों की उदासीनता को माना जा रहा है, साथ ही बैंकों को CPTCs के साथ व्यवहार करने में आने वाली चुनौतियाँ भी इस संदर्भ में बड़ी बाधाएँ हैं।
  • वार्ताओं की एक लंबी श्रृंखला के बाद RBI ने यह निर्णय लिया है कि अब जमाकर्त्ता सीधे बैंकों के पास भी जा सकता है।
  • रिज़र्व बैंक के इस कदम से मंदिरों, फंड हाउस, ट्रस्टों और यहाँ तक कि सरकारी संस्थाओं को भी CPTCs के स्थान पर बैंकों के साथ व्यवहार करने में सहजता महसूस होगी।
  • RBI ने सभी बैंकों को निर्देश दिया है कि वे जल्द-से-जल्द सभी राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों में अपनी ब्रांचों का निर्धारण करें जहाँ वे लोगों द्वारा जमा किये जाने वाले सोने को स्वीकार करेंगे।

स्वर्ण मुद्रीकरण योजना 
(Gold Monetization Scheme-GMS):

  • इस योजना की शुरुआत वर्ष 2015 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा की गई थी।
  • इसके तहत कोई भी व्यक्ति, चैरिटेबल संस्था, केंद्र सरकार, राज्य सरकार, सरकारी संस्थान, सामाजिक संस्थान आदि अपना सोना बैंक में जमा कर सकता है।
  • इस पर उन्हें 2.25% से 2.50% तक ब्याज मिलता है एवं परिपक्वता अवधि के पश्चात् वे इसे सोना अथवा रुपए के रूप में प्राप्त कर सकते हैं।
  • इस योजना की खास बात यह है कि पहले लोग सोने को लॉकर में रखते थे और इसके लिये कुछ राशि भी देनी होती थी, लेकिन अब लॉकर लेने की ज़रूरत नहीं पड़ती है और इस पर कुछ निश्चित ब्याज भी मिलता है।
  • ‘स्वर्ण मुद्रीकरण योजना’ भारत द्वारा बड़े पैमाने पर किये जाने वाले स्वर्ण आयात को कम करने के लिये प्रारंभ की गई थी क्योंकि स्वर्ण आयात भारत के व्यापार घाटे (Trade Deficit) की एक बड़ी वज़ह है।
  • इस योजना के तहत लोग अपने बेकार पड़े सोने को ‘सावधि जमा’ के रूप में बैंक में जमा कर सकते हैं।
  • सरकार को आशा थी कि इस पहल से घरों एवं मंदिरों में बेकार पड़ा सोना बड़ी मात्रा में बैंकों में जमा होगा जिसे पिघलाकर जौहरियों एवं अन्य प्रयोक्ताओं को प्रदान किया जा सकेगा। इस प्रकार सोने के पुनर्चक्रण के माध्यम से सोने के आयात को घटाया जा सकेगा।

स्रोत: बिज़नेस स्टैंडर्ड 


विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी

SUPRA योजना

चर्चा में क्यों?

वैज्ञानिक और इंजीनियरिंग अनुसंधान को वित्तपोषित करने के उद्देश्य से विज्ञान और इंजीनियरिंग अनुसंधान बोर्ड (Science and Engineering Research Board-SERB) एक नई योजना की घोषणा करने पर विचार कर रहा है।

प्रमुख बिंदु

  • वैज्ञानिक और उपयोगी गहन अनुसंधान उन्नति (Scientific and Useful Profound Research Advancement-SUPRA) नाम से इस योजना की शुरुआत उन अनुसंधानों को आकर्षित करने के लिये की गई है जो किसी समस्या के लिये लीक से हटकर समाधान खोज रहे हैं।
  • इसके अतिरिक्त इस योजना का कार्य उन विचारों को वित्तपोषित करना है जो अध्ययन के नए क्षेत्रों, नई वैज्ञानिक अवधारणाओं, नए उत्पादों और प्रौद्योगिकियों को जन्म दे सकते है।

क्या है SUPRA योजना में?

  • इस योजना के अंतर्गत वैज्ञानिक और इंजीनियरिंग क्षेत्र में कार्य करने वाले लोगों को वित्तीय सहायता प्राप्त करने के लिये SERB के समक्ष एक प्रस्ताव रखना होगा।
  • इस प्रस्ताव की प्रारंभिक जाँच SERB द्वारा गठित शीर्ष वैज्ञानिकों के एक पैनल द्वारा की जाएगी।
  • उपरोक्त चरण को पार करने के पश्चात् प्रस्ताव का मूल्यांकन प्रत्येक विषय के लिये विशेष रूप से गठित विशेषज्ञ समीक्षा समिति द्वारा किया जाएगा।
  • SERB के अनुसार, इस समिति को पूर्ण स्वतंत्रता होगी कि यदि उसे लगता है कि किसी विशेष प्रस्ताव के मूल्यांकन के लिये विशेषज्ञता भारत में मौजूद नहीं है, तो वह उस विशेषज्ञता को विदेशों से भी प्राप्त कर सकती है।
  • इस योजना के तहत पहले वर्ष में 15 से 30 प्रस्तावों को वित्तपोषित करने की योजना बनाई जा रही है, इस संख्या को आगे के वर्षों में और अधिक बढ़ा दिया जाएगा।
  • वित्तपोषण के लिये मंज़ूरी प्राप्त होने पर एक प्रस्ताव को तीन सालों के लिये आर्थिक सहायता प्रदान की जाएगी, इस अवधि को 2 वर्ष और बढ़ाया जा सकता है।

विज्ञान और इंजीनियरिंग अनुसंधान बोर्ड 
(Science and Engineering Research Board-SERB):

  • यह एक सांविधिक निकाय है जिसकी स्थापना संसद के अधिनियम (द साइंस एंड इंजीनियरिंग रिसर्च बोर्ड एक्ट, 2008) द्वारा की गई थी।
  • बोर्ड की अध्यक्षता विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग में भारत सरकार के सचिव द्वारा की जाती है। इसके अलावा देश के वरिष्ठ सरकारी अधिकारी और प्रसिद्ध वैज्ञानिक इस बोर्ड के सदस्य होते हैं।
  • बोर्ड की स्थापना का उद्देश्य:
    • विज्ञान और इंजीनियरिंग में बुनियादी अनुसंधान को बढ़ावा देना।
    • बुनियादी अनुसंधान हेतु वैज्ञानिकों, शैक्षणिक संस्थानों, अनुसंधान एवं विकास प्रयोगशालाओं और अन्य एजेंसियों को वित्तीय सहायता प्रदान करना।

स्रोत: बिज़नेस स्टैंडर्ड 


भारतीय अर्थव्यवस्था

NBFC हेतु नए दिशा-निर्देश

चर्चा में क्यों?

RBI द्वारा गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों (Non-Banking Financial Companies- NBFC) को कृषि, सूक्ष्म और लघु उद्यमों तथा प्राथमिक क्षेत्र के तहत आवास श्रेणियों को ऋण में प्राथमिकता देने संबंधी नए दिशा-निर्देश जारी किये गए हैं।

प्रमुख बिंदु:

  • बैंकों को अपने कुल प्राथमिक ऋण क्षेत्र (Priority Sector Lending- PSL) में से 5% इन क्षेत्रों को ऋण देने की अनुमति होगी।
  • इस कदम से बैंकों द्वारा NBFC विशेषकर आवासीय वित्त कंपनियों (Housing Finance Companies- HFCs) के क्षेत्रक में ऋण की आपूर्ति बढ़ने की उम्मीद है। वर्तमान में यह क्षेत्र अत्यधिक तरलता संकट का सामना कर रहा है।
  • RBI ने कहा है कि नवीनतम दिशा-निर्देश चालू वित्त वर्ष तक मान्य होंगे, इसके बाद उनकी फिर से समीक्षा की जाएगी।
  • ऑन-लेंडिंग मॉडल (On-lending Model) के तहत दिये गए ऋण को परिपक्वता की अवधि तक PSL के रूप में वर्गीकृत किया जाएगा।
  • वर्तमान ऑन-लेंडिंग दिशा-निर्देशों के तहत बैंकों द्वारा HFC क्षेत्र को दिये गए ऋण को PSL के तहत वर्गीकृत किया जाएगा।

जब कोई संगठन किसी दूसरे संगठन से ऋण लेकर किसी तीसरे क्षेत्र को ऋण देता है तो इसे ऑन-लेंडिंग मॉडल (On-lending Model) कहते हैं। उदाहरण के तौर पर; बैंकिंग क्षेत्र की कोई इकाई केंद्रीय बैंक से ऋण लेकर उसे किसी गैर-बैंकिंग क्षेत्र जैसे- आवासीय क्षेत्र को ऋण प्रदान करें।

  • इस व्यवस्था के तहत कृषि क्षेत्र को 10 लाख रुपए, सूक्ष्म और लघु उद्यमों और HFC को 20 लाख रुपए तक के ऋण प्रदान किये जाएँगे।

प्राथमिक ऋण क्षेत्र 
(Priority Sector Lending- PSL)

  • प्राथमिकता प्राप्त क्षेत्र से तात्पर्य उन क्षेत्रों से है जिन्हें भारत सरकार और भारतीय रिज़र्व बैंक देश की मूलभूत ज़रूरतों के विकास के लिये महत्त्वपूर्ण मानते हैं और इन क्षेत्रों को अन्य क्षेत्रों पर प्राथमिकता दी जाती है।
  • सामान्यतः इन क्षेत्रों को समय पर पर्याप्त मात्रा में ऋण की आपूर्ति नहीं हो पाती है, इसलिये  केंद्रीय बैंकों द्वारा संपूर्ण ऋण में से इन क्षेत्रों का कोटा निर्धारित कर दिया जाता है। इस प्रकार की कोटा व्यवस्था को ही प्राथमिक ऋण क्षेत्र (Priority Sector Lending कहा जाता है।
  • वर्ष 2016 में RBI द्वारा जारी परिपत्र के अनुसार, PSL की आठ व्यापक श्रेणियों में कृषि, सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम, निर्यात ऋण, शिक्षा, आवास, सामाजिक अवसंरचना, नवीकरणीय ऊर्जा तथा कुछ अन्य क्षेत्र शामिल हैं।

स्रोत: द हिंदू बिजनेस लाइन 


जैव विविधता और पर्यावरण

अमेरिकी वन्यजीवों के संरक्षण से संबंधित प्रावधान

चर्चा में क्यों?

ट्रंप प्रशासन ने यू.एस. लुप्तप्राय प्रजाति अधिनियम (Endangered Species Act) को लचीला बनाने के लिये कदम उठाए हैं तथा राज्य के वकीलों और सामान्य संरक्षण समूहों द्वारा जोखिम वाली प्रजातियों की रक्षा के लिये की जाने वाली कानूनी कार्रवाई को हतोत्साहित किया।

प्रमुख बिंदु:

  • 1970 के दशक में विलुप्तप्राय प्रजातियों (Extinct Species) गंजा ईगल, ग्रे व्हेल और घड़ियाल आदि को संरक्षित करने का श्रेय लुप्तप्राय प्रजाति अधिनियम को जाता है। किंतु यह अधिनियम ड्रिलिंग और खनन तथा अन्य कंपनियों के लिये परेशानी का कारण बना हुआ था क्योंकि इनसे संबंधित कार्यों के लिये भूमि के विशाल क्षेत्र की आवश्यकता थी और इस अधिनियम के प्रावधानों के चलते कंपनियों को अनुमति मिलने में कठिनाई होती थी।
  • अधिनियम के संरक्षण को कमज़ोर करने के पीछे अमेरिकी राष्ट्रपति के कई उद्देश्य थे, जैसे तेल, गैस और कोयला उत्पादन में वृद्धि हेतु मौजूदा नियमों को तेज़ी से लागू करना, साथ ही संघीय भूमि के लिये चराई, खेती और लॉगिंग के स्थान को बढ़ावा देना।

परिणाम

  • चूँकि प्रकृति में उपस्थित सभी प्रजातियाँ पारिस्थितिकी (ecosystem) का अहम हिस्सा होती हैं तथा प्राकृतिक संतुलन को बनाए रखने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं। अतः इनकी विलुप्ति पारिस्थितिकी असंतुलन को बढ़ावा देगी तथा पर्यावरण की क्षति का कारण बनेगी।
  • इन परिवर्तनों से वह प्रथा समाप्त हो जाएगी जो खतरे से घिरी प्रजातियों को स्वत: ही सुरक्षा प्रदान करती है और अधिकारियों को निर्देशित करती है कि जानवरों को कैसे सुरक्षित रखा जाए।
  • इससे पर्यावरणीय विकास से ज़्यादा आर्थिक विकास को महत्त्व मिलेगा जिससे आपदाओं को बढ़ावा भी मिलेगा और मानवीय जनजीवन को क्षति पहुँचेगी।
  • इसका सबसे अधिक प्रभाव जनजातियों पर पड़ेगा क्योंकि वे प्रकृति के अत्यंत समीप होती हैं तथा कुछ वन्यजीवों से उनकी धार्मिक भावनाएँ भी जुड़ी होती है। इस प्रकार ट्रंप के इस फैसले से जनजातियों की संप्रभुता का हनन होगा।

आगे की राह

  • चूँकि पर्यावरण पर किसी भी प्रकार का खतरा संपूर्ण विश्व के लिये विनाशकारी है। अतः ट्रंप प्रशासन के इस फैसले को परिवर्तित करने हेतु UNFCCC जैसी वैश्विक संस्थाओं को आगे आने की ज़रुरत है।
  • वन्यजीवों की सुरक्षा को सुनिश्चित करने के लिये ग्रीन पीस (Green Peace) जैसे गैर-सरकारी संगठन, पर्यवारणविद व नागरिक आपस में सहयोग कर सकते हैं।

स्रोत: टाइम्स ऑफ इंडिया 


भारतीय अर्थव्यवस्था

प्लास्टिक उद्योग

चर्चा में क्यों?

सरकार के साथ हाल ही में हुई बैठक में प्लास्टिक निर्माताओं (Plastic manufacturers) ने प्लास्टिक उद्योग में सूक्ष्म, लघु, मध्यम उद्यमों (Micro, Small, Medium Enterprises-MSMEs) के लिये निर्यात प्रोत्साहन योजनाओं को शुरू किये जाने का आह्वान किया है।

प्रमुख बिंदु

  • निर्माताओं ने रियायती दरों पर सभी औद्योगिक गलियारों में उपलब्ध भूमि का 25% MSMEs को आवंटित करने की मांग की है।
  • प्लास्टिक उद्योग ने सार्वजनिक निजी भागीदारी मॉडल के तहत MSMEs के लिये विश्वस्तरीय बुनियादी ढाँचे की भी मांग की है, जिसमें भौतिक आधारभूत संरचना, ज्ञान अवसंरचना (knowledge infrastructure), उद्भवन केंद्र (Incubation centres), ई-प्लेटफॉर्म, बी2बी पहुँच और प्रौद्योगिकी एवं MSMEs के लिये नवाचार समर्थन शामिल हैं।
  • प्लास्टिक  उद्योग ने सरकार से MSMEs को ऋण देने को अधिक सुविधाजनक बनाने की अपील की।
  • इसने प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से स्वदेशीकरण से उत्पन्न आय पर प्रत्यक्ष कर छूट के साथ-साथ पाँच साल की अवधि के लिये आयात प्रतिस्थापन (Import substitution) छूट की भी मांग की।
  • इसने विदेशों में निर्मित प्लास्टिक प्रसंस्करण मशीनों (Plastic processing machines) पर एंटी-डंपिंग शुल्क (Anti-dumping duty) को हटाने की भी मांग की है।

प्लास्टिक उद्योग की चुनौतियाँ 

  • प्लास्टिक, जो कि कच्चे तेल से उत्पन्न होने वाला बहुलक है, कार्बन की लंबी श्रृंखलाओं से तैयार होता है। यही कारण है कि पूरी तरह से विघटित होने में इसे वर्षों लग जाते हैं।
  • फेंकी हुई प्लास्टिक धीरे-धीरे अपघटित होती है एवं इसके रसायन आसपास के परिवेश में घुलने लगते हैं। यह समय के साथ और छोटे-छोटे घटकों में टूटती जाती है और हमारी खाद्य श्रृंखला में प्रवेश करती है।
  • प्लास्टिक मिट्टी की उर्वरा शक्ति को भी खत्म करता है क्योंकि इसके जलने से जहाँ ज़हरीली गैस निकलती है वहीं यह मिट्टी में पहुँच कर भूमि की उर्वरा शक्ति को नष्ट करता है।
  • एक नए शोध से पता चला है कि भूजल में भी माइक्रोप्लास्टिक मौजूद है, जो हमारे शरीर को हानि पहुँचाकर कई बीमारियों का शिकार बना सकता है। वातावरण में मौजूद प्लास्टिक टूटकर माइक्रोप्लास्टिक बन जाता है। यह माइक्रोप्लास्टिक समुद्री जीवों की आँत और गलफड़ों में जमा हो जाता है और उनके जीवन के लिये खतरा पैदा करता है।
  • पॉली विनाइल क्लोराइड (Poly Vinyl Chloride-PVC), पॉलीप्रोपाइलीन (Polypropylene-PP), पॉलीइथिलीन (Polyethylene-PE) जैसे कच्चे माल की उपलब्धता।
  • प्लास्टिक प्रोसेसर (plastic processors) द्वारा आयातित मशीनरी पर एंटी डंपिंग ड्यूटी।

सुझाव

  • बायो-प्लास्टिक्स का उत्पादन करना, जो बायोमास जैसे नवीकरणीय पदार्थों से तैयार किया जाता है।
  • देश में प्लास्टिक कचरा प्रबंधन के बुनियादी ढाँचे को बढ़ावा देना।

स्रोत: द हिंदू


भारतीय अर्थव्यवस्था

विदेशी मुद्रा भंडार में वृद्धि

चर्चा में क्यों?

भारतीय रिज़र्व बैंक (Reserve Bank of India-RBI) द्वारा जारी नवीनतम आँकड़ों के अनुसार, विदेशी मुद्रा परिसंपत्ति में वृद्धि के फलस्वरूप भारत का विदेशी मुद्रा भंडार 1.620 बिलियन डॉलर बढ़कर 430.572 बिलियन डॉलर हो गया है।

प्रमुख बिंदु:

  • एक निश्चित समय पर किसी देश के पास उपलब्ध कुल विदेशी मुद्रा उसकी ‘विदेशी मुद्रा परिसंपत्ति’ होती है।
  • किसी देश के ‘विदेशी मुद्रा भंडार’ (Foreign Exchange Reserves) से आशय उस देश की विदेशी मुद्रा परिसंपत्तियों, स्वर्ण भंडार, विशेष आहरण अधिकार (Special Drawing Rights-SDRs), अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष में रिज़र्व ट्रेन्च (Reserve Tranche) आदि से है।
  • विदेशी मुद्रा भंडार किसी देश की अंतर्राष्ट्रीय निवेश स्थिति का एक महत्त्वपूर्ण हिस्सा होता है।
  • आधिकारिक तौर पर RBI न तो किसी विशेष विनिमय दर और न ही विदेशी मुद्रा भंडार को लक्षित करता है, लेकिन विदेशी मुद्रा बाज़ार में अस्थिरता को कम करने के लिये RBI विदेशी मुद्रा भंडार बनाए रखता है।
    • विदेशी मुद्रा भंडार का प्रयोग RBI द्वारा उस स्थिति में किया जाता है जब रुपया डॉलर के मुकाबले अस्थिर हो जाता है।
  • गौरतलब है कि वर्तमान में चीन के पास सबसे ज़्यादा विदेशी मुद्रा भंडार (लगभग 3.2 ट्रिलियन डॉलर) है। भारत इस श्रेणी में छठे स्थान पर है।

रिज़र्व ट्रेन्च

(Reserve Tranche)

रिज़र्व ट्रेन्च वह मुद्रा होती है जिसे प्रत्येक सदस्य देश द्वारा अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (International Monetary Fund-IMF) को प्रदान किया जाता है और जिसका उपयोग वे देश अपने स्वयं के प्रयोजनों के लिये कर सकते हैं। इस मुद्रा का प्रयोग सामान्यतः आपातकाल की स्थिति में किया जाता है।

विशेष आहरण अधिकार 

(Special Drawing Rights-SDRs)

  • SDR को IMF द्वारा 1969 में अपने सदस्य देशों के लिये अंतर्राष्ट्रीय आरक्षित संपत्ति के रूप में बनाया गया था।
  • SDR न तो एक मुद्रा है और न ही IMF पर इसका दावा किया जा सकता है।
  • आरंभ में SDR को 0.888671 ग्राम सोने के बराबर परिभाषित किया गया था, जो उस समय एक डॉलर के बराबर था, परंतु ब्रेटन वुड्स प्रणाली (Bretton Woods System) के पतन के बाद SDR को मुद्राओं की एक टोकरी के रूप में फिर से परिभाषित किया गया था।

इस टोकरी में पाँच देशों की मुद्राएँ शामिल हैं- अमेरिकी डॉलर (Dollar), यूरोप का यूरो (Euro), चीन की मुद्रा रॅन्मिन्बी (Renminbi), जापानी येन (Yen), ब्रिटेन का पाउंड (Pound)।

स्रोत: टाइम्स ऑफ इंडिया


विविध

Rapid Fire करेंट अफेयर्स 17 अगस्त

  • 73वें स्वतंत्रता दिवस पर लाल किले के प्राचीर से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने संबोधन में जल जीवन मिशन शुरू करने का ऐलान किया। इस मिशन के तहत हर घर में पाइप के जरिये पानी पहुँचाने का लक्ष्य है और सरकार इस पर साढ़े तीन लाख करोड़ रुपए खर्च करेगी। जल-जीवन मिशन के लिये केंद्र और राज्य सरकारें साथ मिलकर काम करेंगे. देश में अभी करीब 50 प्रतिशत परिवारों को पाइप के जरिये पानी नहीं मिल पा रहा है। उल्लेखनीय सरकार ने वर्ष 2024 तक हर घर में नल के जरिये पानी पहुंचाने का लक्ष्य रखा है। इसका ज़िक्र जुलाई में पेश बजट में भी किया गया था। सभी तक नल से जल पहुँचाने और जल स्रोतों के संरक्षण के लिये जल शक्ति नाम से एक नया मंत्रालय बनाया गया है।
  • 16 राज्यों की सरकारों ने वस्त्र क्षेत्र में क्षमता निर्माण के लिये योजना- समर्थ (SCBTS) को आगे ले जाने के लिये वस्त्र मंत्रालय के साथ सहमति पत्र पर हस्ताक्षर किये हैं। इस योजना के अंतर्गत मंत्रालय के साथ साझेदारी करने के लिये 18 राज्यों ने सहमति दी थी। शुरुआत में, मंत्रालय ने इस योजना को कार्यान्वित करने के लिये राज्य सरकारों द्वारा नामित एजेंसियों को 3.5 लाख से ज़्यादा लक्ष्य आवटित किये हैं। प्रशिक्षण के बाद इन लाभार्थियों को वस्त्र से संबंधित विभिन्न गतिविधियों में रोज़गार उपलब्ध कराया जाएगा। यह कार्यक्रम कताई और बुनाई के अलावा वस्त्र क्षेत्र की पूरी मूल्य श्रृंखला को कवर करता है। प्रशिक्षण कार्यक्रम के अंतर्गत उन्नत प्रौद्योगिकी में आधार पर आधारित बायोमैट्रिक उपस्थिति प्रणाली, सीसीटीवी रिकॉर्डिंग, समर्पित कॉल सेंटर, मोबाइल एप पर आधारित सूचना प्रणाली और ऑनलाइन निगरानी जैसी विशेषताएँ शामिल हैं। वस्त्र क्षेत्र में लगे श्रमिकों में से 75% और मुद्रा ऋण के लाभार्थियों में से 70% महिलाएँ हैं। वस्त्र क्षेत्र में भारत का वैश्विक बाजार में हिस्सा बहुत कम है और इसमें रोज़गार सृजन की अपार संभावनाएं मौजूद हैं। कपड़ा उद्योग में 16 लाख प्रशिक्षित कुशल कामगारों की कमी है, इसीलिये समर्थ योजना में कामगारों के कौशल विकास के लिये उच्च मानक स्थापित किये गए हैं ताकि उद्योग द्वारा उन्हें आसानी से रोज़गार प्रदान किया जा सके। विदित हो कि संस्थागत क्षमता तथा उद्योग और राज्य सरकारों के साथ कायम किये गए सहयोग का लाभ उठाने की दृष्टि से आर्थिक मामलों की मंत्रिमंडलीय समिति ने वर्ष 2017-18 से वर्ष 2019-20 तक एक नई कौशल विकास योजना ‘समर्थ’- वस्त्र क्षेत्र में क्षमता निर्माण के लिये योजना को स्वीकृति दी थी। वस्त्र उद्योग की कौशल संबंधी आवश्यकताओं को पूरा करने के लिये यह रोजगारोन्मुख कार्यक्रम है। इस योजना का लक्ष्य 1300 करोड़ रुपए के अनुमानित परिव्यय के साथ कताई और बुनाई को छोड़कर वस्त्र की पूरी मूल्य श्रृंखला में वर्ष 2020 तक 10 लाख युवाओं का कौशल विकास करना है।
  • उद्योग एवं आंतरिक व्यापार संवर्धन विभाग ने हाल ही में 4 नये भौगोलिक संकेतकों (GI) को पंजीकृत किया है। तमिलनाडु के डिंडीगुल जिले के पलानी शहर के पलानीपंचामिर्थम, मिज़ोरम के तल्लोहपुआन एवं मिजोपुआनचेई और केरल के तिरुर के पान के पत्ते को पंजीकृत GI की सूची में शामिल किया गया है। डिंडीगुल जिले के पलानी शहर की पलानी पहाड़ियों में अवस्थित अरुल्मिगु धान्दयुथापनी स्वामी मंदिर के पीठासीन देवता भगवानधान्दयुथापनी स्वामी के अभिषेक से जुड़े प्रसाद को पलानीपंचामिर्थम कहते हैं। इस प्रसाद को एक निश्चित अनुपात में पांच प्राकृतिक पदार्थों- केले, गुड़-चीनी, गाय के घी, शहद और इलायची को मिलाकर बनाया जाता है। पहली बार तमिलनाडु के किसी मंदिर के प्रसादम को GI टैग दिया गया है। तवलोहपुआन मिजोरम का एक भारी, अत्यंत मजबूत एवं उत्कृष्ट वस्त्र है जो तने हुए धागे, बुनाई और जटिल डिज़ाइन के लिये जाना जाता है। इसे हाथ से बुना जाता है। मिज़ो भाषा में तवलोह का मतलब एक ऐसी मज़बूत चीज़ होती है जिसे पीछे नहीं खींचा जा सकता है। मिज़ो समाज में तवलोहपुआन का विशेष महत्त्व है और इसे पूरे मिजोरम राज्य में तैयार किया जाता है। आइज़ोल और थेनज़ोल शहर इसके उत्पादन के मुख्य केंद्र हैं। मिज़ोपुआनचेई मिज़ोरम का एक रंगीन मिज़ो शॉल/वस्त्र है जिसे मिज़ो वस्त्रों में सबसे रंगीन माना जाता है। मिज़ोरम की प्रत्येक महिला का यह एक अनिवार्य वस्त्र है और यह इस राज्य में विवाह के अवसर पर पहने जाने वाली महत्त्वपूर्ण पोशाक है। मिज़ोरम में मनाए जाने वाले उत्सवों के दौरान होने वाले नृत्यों और औपचारिक समारोहों में प्रायः इस पोशाक का ही उपयोग किया जाता है। केरल के तिरुर के पान के पत्ते की खेती मुख्यत: तिरुर, तनूर, तिरुरांगडी, कुट्टिपुरम, मलप्पुरम और मलप्पुरम जिले के वेंगारा प्रखंड की पंचायतों में की जाती है। इसके सेवन से अच्छे स्वाद का एहसास होता है और इसके साथ ही इसमें औषधीय गुण भी होते हैं। आमतौर पर इसका उपयोग पान मसाला बनाने में किया जाता है और इसके कई औषधीय, सांस्कृतिक एवं औद्योगिक उपयोग भी हैं।
  • गौरतलब है कि GI टैग उन उत्पादों को दिया है जो किसी विशिष्ट भौगोलिक क्षेत्र में ही पाए जाते हैं और उनमें वहाँ की स्थानीय विशेषताएँ अंतर्निहित होती हैं। GI टैग लगे किसी उत्पाद को खरीदते समय ग्राहक उसकी विशिष्टता एवं गुणवत्ता को लेकर आश्वस्त रहते हैं। GI टैग वाले उत्पादों से दूरदराज़ के क्षेत्रों में ग्रामीण अर्थव्यवस्था को लाभ होता है, क्योंकि इससे कारीगरों, किसानों, शिल्पकारों और बुनकरों की आमदनी बढ़ती है।
  • सभी फॉरमेट्स में टीम इंडिया के क्रिकेट कप्तान विराट कोहली एक दशक यानी 10 वर्षों में अंतर्राष्ट्रीय क्रिकेट में 20 हज़ार रन बनाने वाले विश्व के पहले खिलाड़ी बन गए हैं। वेस्ट इंडीज के खिलाफ हालिया वन-डे सीरीज़ में अपने वन-डे करियर का 43वाँ शतक लगाकर उन्होंने यह कारनामा अंजाम दिया जो क्रिकेट इतिहास में आज तक कोई बल्लेबाज़ नहीं कर सका था।

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  • विराट कोहली ने क्रिकेट के तीनों फॉर्मेट में मिलाकर 20,502 रन बनाए हैं, जिनमें से 20,018 रन उन्होंने वर्तमान दशक में बनाए हैं। उन्होंने टेस्ट और टी-20 इंटरनैशनल में वर्ष 2010 में शुरुआत की थी, जबकि वन-डे में वर्ष 2008 में ही उन्होंने खेलना शुरू कर दिया था।

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