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डेली न्यूज़

  • 16 Aug, 2019
  • 46 min read
भारतीय अर्थव्यवस्था

बुनियादी ढाँचे पर निवेश की घोषणा

चर्चा में क्यों?

स्वतंत्रता दिवस के मौके पर लालकिले से अपने संबोधन में प्रधानमंत्री ने घोषणा की है कि केंद्र सरकार देश में आधुनिक बुनियादी ढाँचे (Modern Infrastructure) के विकास के लिये 100 लाख करोड़ रुपए का बड़ा निवेश करेगी।

प्रधानमंत्री के अनुसार, 

  • केंद्र सरकार का यह कदम अगले पाँच वर्षों में भारतीय अर्थव्यवस्था के आकार को लगभग 5 ट्रिलियन डॉलर तक पहुँचाने में सहायता करेगा।
  • भारत को ‘ईज़ ऑफ डूइंग बिज़नेस’ की रैंकिंग में शीर्ष 50 देशों की सूची में पहुँचाने के लिये हमें इसी प्रकार के बड़े निवेश और सुधारों (Reforms) की आवश्यकता है।
  • साथ ही कंपनियों को भारत में व्यापार करने के लिये सुगम वातावरण प्रदान करने हेतु भी प्रयास किये जाएंगे।
  • सरकार द्वारा इस राशि का प्रयोग आधुनिक बंदरगाह, राजमार्ग, रेलवे, हवाई अड्डे, अस्पताल और शैक्षणिक संस्थान आदि के निर्माण कार्यों में किया जाएगा।

अन्य महत्त्वपूर्ण बिंदु:

  • गौरतलब है कि वर्ष 2014 में विश्व बैंक द्वारा जारी 'डूइंग बिज़नेस’ रिपोर्ट में भारत 190 देशों में 142वें स्थान पर था। वहीं वर्ष 2019 में जारी 'डूइंग बिज़नेस’ रिपोर्ट में भारत का स्थान 77वाँ था।
  • वर्ष 2019 की रिपोर्ट में भारत के अतिरिक्त पड़ोसी देश चीन और पाकिस्तान की रैंकिंग क्रमशः 46वीं और 136वीं थी।
  • विश्व बैंक 10 मापदंडों के आधार पर 190 देशों को रैंक प्रदान करता है।
  • रैंकिंग के मापदंड:
    • किसी व्यवसाय को शुरू करना
    •  निर्माण परमिट
    •  बिजली प्राप्त करना
    •  संपत्ति पंजीकृत करना
    •  ऋण प्राप्त करना
    •  लघु निवेशकों की रक्षा करना
    •  करों का भुगतान करना
    •  सीमा पार व्यापार
    •  अनुबंधों को लागू करना
    •  दिवालियापन की समस्या को हल करना


स्रोत: द हिंदू


भारतीय अर्थव्यवस्था

नकारात्मक दर नीति

चर्चा में क्यों?

विश्व के कुछ प्रमुख केंद्रीय बैंक आर्थिक विकास को बढ़ाने के उद्देश्य से नकारात्मक दर नीति (Negative Rate Policy) सहित कई अन्य गैर-परंपरागत नीतिगत उपायों का सहारा ले रहे हैं।

प्रमुख बिंदु:

  • वर्ष 2008 में लेहमेन ब्रदर्स (Lehman Brothers) के बंद हो जाने के पश्चात् विश्व की आर्थिक मंदी से लड़ने के लिये कई केंद्रीय बैंकों ने अपनी दरों को घटाकर 0 के आसपास कर दिया था।
  • एक दशक के बाद भी सुस्त आर्थिक विकास दर के कारण कई देशों में ब्याज दर अभी भी कम बनी हुई है।
  • यूरोपीय क्षेत्र सहित स्विट्ज़रलैंड, डेनमार्क, स्वीडन और जापान ने दरों को शून्य से थोड़ा नीचे गिरने दिया है।

नकारात्मक दर नीति कैसे कार्य करती है?

  • नकारात्मक दर नीति के तहत सभी वित्तीय संस्थाओं को केंद्रीय बैंक के पास मुद्रा का अतिरिक्त भंडार रखने के लिये ब्याज का भुगतान करने की आवश्यकता होती है।
  • इस प्रकार केंद्रीय बैंक वाणिज्यिक बैंकों तथा वित्तीय संस्थानों को अधिक-से-अधिक ऋण बाँटने के लिये प्रेरित करने के उद्देश्य से नकदी रखने पर दंडित करता है।
  • यूरोपीय सेंट्रल बैंक (European Central Bank-ECB) ने जून 2014 में अर्थव्यवस्था में तेजी लाने के उद्देश्य से नकारात्मक दरों की शुरुआत की थी, जिसमें ब्याज दर को -0.1% तक कम कर दिया गया था।

नकारात्मक नीति के फायदे और नुकसान?

  • इस प्रकार की नीति के समर्थकों का मानना है कि देश में ऋण की लागत को कम करने का यह सबसे अच्छा उपाय है।
  • इसके अलावा यह देश में निवेश को कम आकर्षक बनाकर वहाँ की मुद्रा दर को कमज़ोर करने में मदद करता है जिसके कारण उस देश को वैश्विक स्तर पर निर्यात लाभ प्राप्त होता है।
  • इसका नकारात्मक पक्ष यह है कि इसके कारण ऋण देने से होने वाली वित्तीय संस्थाओं कमाई में कमी आती है।
  • यदि लंबे समय तक इसकी दरें बनी रहती हैं तो वित्तीय संस्थाओं के स्वास्थ्य पर बुरा असर पड़ता है और वे ऋण देने पर रोक लगा सकती हैं जिसके कारण अर्थव्यवस्था को काफी नुकसान पहुँच सकता है।
  • इसके अतिरिक्त जमाकर्त्ता बैंक में पैसे रखने के बजाय नकदी का विकल्प भी चुन सकते हैं।

इसके दुष्प्रभाव को कम करने के लिये क्या कर रहे हैं केंद्रीय बैंक?

  • बैंक ऑफ जापान (The Bank of Japan-BOJ) ने इस संदर्भ में स्तर आधारित व्यवस्था को अपनाया है, जिसके तहत वितीय संस्थाओं द्वारा जमा की गई राशि के कुछ हिस्से पर -0.1% की दर तय की गई है और बाकी बचे हिस्से पर 0-0.1% की दर तय की गई है।

स्रोत: द हिंदू


जैव विविधता और पर्यावरण

आर्कटिक हिम में माइक्रोप्लास्टिक

चर्चा में क्यों? 

हाल ही में आर्कटिक क्षेत्र में व्यापक स्तर पर माइक्रोप्लास्टिक्स पाए गए हैं जो वायु संदूषण (Air Contamination) को प्रदर्शित करते हैं। वैज्ञानिकों ने स्वास्थ्य पर पड़ने वाले इन कणों के दुष्प्रभाव पर भी चिंता व्यक्त की है।

प्रमुख बिंदु: 

  • एक अध्ययन में वायु के माध्यम से आर्कटिक और आल्प्स क्षेत्रों की बर्फ में फैले माइक्रोप्लास्टिक कणों का पता लगाया गया है। इन माइक्रोप्लास्टिक कणों के कारण श्वसन रोग जैसे स्वास्थ्य जोखिम उत्पन्न हो सकते हैं। 
  • पॉंच मिलीमीटर से कम लंबाई वाले टुकड़ों को माइक्रोप्लास्टिक कणों के रूप में परिभाषित किया जाता है। 
  • प्रत्येक वर्ष नदियों के माध्यम से कई मिलियन टन प्लास्टिक कचरे का महासागरों में प्रवाह होता है। महासागरों में लहरों की गति और सूर्य के पराबैंगनी प्रकाश के कारण प्लास्टिक छोटे- छोटे टुकड़ों में टूट जाता हैं।
  • अल्फ्रेड वेगेनर इंस्टीट्यूट (Alfred Wegener Institute) जर्मनी और इंस्टीट्यूट फॉर स्नो एंड एवलांच रिसर्च (Institute for Snow and Avalanche Research) स्विट्ज़रलैंड के वैज्ञानिकों द्वारा किये गए नए अध्ययन के अनुसार, माइक्रोप्लास्टिक कण वायुमंडल के माध्यम से लंबी दूरी तय करते हैं।
  • वर्ष 2015 से 2017 के बीच साइंस एडवांस (Science Advances) के वैज्ञानिकों ने ग्रीनलैंड में बर्फ का इंफ्रारेड इमेजिंग तकनीक (Infrared Imaging Technique) के माध्यम से विश्लेषण करने के बाद बताया कि बर्फ में अधिकांश माइक्रोप्लास्टिक हवा के माध्यम से ही प्रवेश कर रहे हैं।
  • आर्कटिक क्षेत्र के माइक्रोप्लास्टिक की सांद्रता, पश्चिमोत्तर जर्मनी के सुदूर स्विस, आल्प्स और ब्रेमेन (Bremen) क्षेत्रों की तुलना में कम है। 
  • आर्कटिक क्षेत्र में माइक्रोप्लास्टिक कणों की सांद्रता कम होने के बाद भी ये गंभीर रूप से स्वास्थ्य को हानि पहुँचाने में सक्षम हैं।
  • नए अध्ययन के विपरीत विशेषज्ञ अब तक मानते थे कि हवा के माध्यम से भूमध्य रेखा के पास के पराग (Pollen) आर्कटिक क्षेत्र में समाप्त हो जाते हैं और सहारा रेगिस्तान की धूल हज़ारों किलोमीटर की दूरी तय कर पूर्वोत्तर यूरोप में समाप्त हो जाती है।

माइक्रोप्लास्टिक कणों के प्रभावों पर अभी तक बहुत कम अध्ययन किया गया है। इसलिये इनके कारकों और स्वास्थ्य दुष्परिणामों पर विस्तृत अध्ययन किया जाना चाहिये।

माइक्रोप्लास्टिक्स (Microplastics): 

  • माइक्रोप्लास्टिक्स पाँच मिलीमीटर से कम लंबे प्लास्टिक के टुकड़ें होते हैं।
  • जल निकायों में इनका प्रवेश अन्य प्रदूषकों के वाहक का कार्य करता है। ये खाद्य श्रृंखला में कैंसरजन्य रासायनिक यौगिकों के वाहक होते है।
  • प्रशांत, अटलांटिक और हिंद महासागर में उच्च स्तर के माइक्रोप्लास्टिक्स पाए जाते हैं।

स्रोत: द हिंदू


अंतर्राष्ट्रीय संबंध

वियतनाम-यूरोपीय संघ के बीच मुक्त व्यापार समझौता

चर्चा में क्यों? 

हाल ही में वियतनाम और यूरोपीय संघ के बीच मुक्त व्यापार समझौते पर करार किया गया है। इस समझौते के बाद भारत द्वारा यूरोपीय संघ को निर्यात किये जाने वाले समुद्री खाद्य पदार्थ प्रतिकूल रूप से प्रभावित होगा।

प्रमुख बिंदु: 

  • भारत प्रति वर्ष लगभग 50,000 करोड़ रुपए के समुद्री खाद्य पदार्थों का निर्यात करता है। साथ ही भारत के शीर्ष दस निर्यातक देशों में से चार यूरोपीय संघ से संबंधित हैं।
  • भारत द्वारा यूरोपीय संघ को निर्यात किये जाने वाला समुद्री खाद्य पदार्थ में इस वर्ष गिरावट आने की संभावना है क्योंकि इस निर्यात में भारत के सबसे बड़े प्रतियोगी वियतनाम और यूरोपीय संघ के बीच मुक्त व्यापार समझौता (Free Trade Agreement-FTA) हो गया है।
  • वियतनाम झींगे की खेती में अग्रणी हुआ करता था, लेकिन भारत ने विस्तृत पैमाने झींगा उत्पादन करके इसको पछाड़ दिया।
  • भारत पर यूरोपीय संघ द्वारा झींगा निर्यात पर 6% की दर से सीमा शुल्क लगाया गया है। इसके विपरीत वियतनाम पर शून्य शुल्क है। इस कारण वियतनाम को झींगें के निर्यात में ज़्यादा लाभ होगा। 
  • भारत सरकार के मंत्रालय ने इस संबंध में यूरोपीय संघ से बात करने में असमर्थता व्यक्त की है क्योंकि यूरोपीय संघ भारत में अपने डेयरी उत्पादों के लिये बाज़ार चाहता है। 
  • इसके विपरीत वियतनाम ने FTA पर हस्ताक्षर करके डेयरी उत्पादों को वियतनाम में आने की अनुमति दी हैं।
  • यूरोपीय संघ भारत द्वारा निर्यात किये गए समुद्री खाद्य में से 50% का नमूना परीक्षण करता है, वहीं दूसरी अन्य देशों के निर्यात का मात्र 10% नमूना परीक्षण किया जाता है। जितना अधिक नमूना परीक्षण किया जाता है, उतनी ही अधिक कमियों की संभावना रहती है।
  • भारत के निर्यात पर मुख्य विवाद समुद्री खाद्य में पाया जाने वाला एंटी-बायोटिक अवशेष (Antibiotic Residue) है। 

मुक्त व्यापार समझौता (Free Trade Agreement- FTA)

  • मुक्त व्यापार समझौते का प्रयोग व्यापार को सरल बनाने के लिये किया जाता है। FTA के तहत दो देशों के बीच आयात-निर्यात के तहत उत्पादों पर सीमा शुल्क, नियामक कानून, सब्सिडी और कोटा आदि को सरल बनाया जाता है।
  • इसका एक बड़ा लाभ यह होता है कि जिन दो देशों के बीच में यह समझौता किया जाता है, उनकी उत्पादन लागत बाकी देशों के मुकाबले सस्ती हो जाती है। इसके लाभ को देखते हुए दुनिया भर के बहुत से देश आपस में मुक्त व्यापार समझौता कर रहे हैं।
  • इससे व्यापार को बढ़ाने में मदद मिलती है और अर्थव्यवस्था को गति मिलती है। इससे वैश्विक व्यापार को बढ़ाने में भी मदद मिलती रही है। हालाँकि कुछ कारणों के चलते मुक्त व्यापार समझौते का विरोध भी किया जाता रहा है।


स्रोत: द हिंदू (बिज़नेस लाइन)


भारत-विश्व

एवरेस्ट पर्वतारोहियों के लिये नए नियम

चर्चा में क्यों ?

नेपाल सरकार माउंट एवरेस्ट (Mount Everest) पर्वतरोहियों के लिये सुरक्षा नियमों को कठोर बनाने की दिशा में कार्य कर रही है। इसके लिये नए नियमों को प्रस्तावित किया गया है। इन नियमों का उद्देश्य पिछले दिनों माउंट एवरेस्ट पर पर्वतारोहण के दौरान हुई दुर्घटनाओं की पुनरावृत्ति को रोकना है।

प्रमुख बिंदु

नए प्रस्तावित नियमों द्वारा माउंट एवरेस्ट पर पर्वतारोहियों की संख्या अधिक होने के कारण मानव यातायात जाम (Human Traffic Jams) की घटनाओं को रोकने के साथ ही अनुभवहीन पर्वतारोहियों को भी इस शिखर पर चढ़ाई करने से रोका जा सकेगा।

  • इन नियमों द्वारा माउंट एवरेस्ट पर पर्वतारोहण के लिये जारी किये जाने वाले परमिटों की संख्या को कम किया जा सकेगा।
  • इन नियमों के तहत पर्वतारोही को यह साबित करना होगा कि वह किसी अन्य पर्वत शिखर (जिसकी ऊँचाई न्यूनतम 21,300 फीट हो) पर भी सफलतापूर्वक चढाई कर चुका है।
  • किसी भी पर्वतारोही अभियान का आयोजन व नेतृत्व करने वाली पर्यटन कंपनी को उच्च तुंगता अभियानों (High-Altitude Expeditions) का न्यूनतम 3 वर्ष का अनुभव होना अनिवार्य होगा।
  • नेपाल के पर्यटन विभाग के अनुसार, पर्वतारोहण अभियान के खर्च में कटौती (Cost-Cutting) पर्वतारोहियों को जोखिम में डालने का सबसे बड़ा कारण साबित होती है। इसको रोकने के लिये प्रत्येक पर्वतारोही को अभियान का आयोजन करने वाली कंपनी को किये गए कम-से-कम $35000 डॉलर के भुगतान का प्रमाण पर्यटन विभाग देना होगा।
  • पर्वतारोहियों को परमिट जारी करने से पूर्व उनके स्वास्थ्य व पर्वतारोहण कौशल का परीक्षण किया जाएगा।
  • नेपाल सरकार इन नए नियमों को लागू करने पर विचार कर रही है, परंतु ये प्रस्ताव अभी नेपाली संसद के समक्ष विचाराधीन है। 
  • वर्तमान में एवरेस्ट पर पर्वतारोहियों की संख्या पर कोई प्रतिबंध नहीं है साथ ही पर्वतारोही अभियान दल चढ़ाई के लिये समय का निर्धारण करने के लिये स्वतंत्र है जिसके कारण पर्वतारोही एवरेस्ट की चरम मौसमी दशाओं से बचने के लिये मई की छोटी समयावधि को चुनते हैं और एवरेस्ट पर भीड़-भाड़ की स्थिति उत्पन्न होती है। 

स्रोत: द हिंदू


भारतीय अर्थव्यवस्था

CSR पर गठित इंजेती श्रीनिवास समिति की रिपोर्ट

चर्चा में क्यों ?

हाल ही में कॉर्पोरेट सामाजिक दायित्व (Corporate Social Responsiblity-CSR) पर गठित इंजेती श्रीनिवासन समिति ने अपनी रिपोर्ट वित्त मंत्रालय को प्रस्तुत की है। 

प्रमुख बिंदु 

  • इस समिति ने CSR के अनुपालन के उल्लंघन को सिविल अपराध की श्रेणी में रखकर जुर्माना लगाने की सिफारिश की है। हाल ही में सरकार ने अनुपालन के उल्लंघन की दशा में तीन साल की जेल का प्रावधान किया था। 
  • समिति ने CSR पर खर्च को कर कटौती योग्य (Tax Deductible) करने की सिफारिश की है। 
  • CSR की खर्च न की जा सकी राशि को अगले 3 से 5 वर्षों की अवधि के लिये आगे बढ़ाने (Carry Forward) की सिफारिश की गई है। 
  • समिति ने कंपनी अधिनियम के खंड-7 (SCHEDULE VII) को संयुक्त राष्ट्र के सतत् विकास लक्ष्यों के अनुरूप बनाने की सिफारिश की है। कंपनी अधिनियम के खंड-7 में CSR की राशि को खर्च करने हेतु मान्य गतिविधियाँ शामिल हैं। 
  • CSR में आपदा प्रबंधन, विकलांग कल्याण, विरासत संरक्षण, खेल संवर्द्धन, बुजुर्ग कल्याण आदि से संबंधित कोष को शामिल किया जाना चाहिये। 
  • CSR को एक व्यापक प्रक्रिया बनाकर इसमें सामाजिक समस्याओं के समाधान के लिये नवीन प्रौद्योगिकी उपलब्ध करवाई जानी चाहिये। 
  • CSR को सरकारी योजनाओं में धनराशि की कमी को पूरा करने के संसाधन के रूप प्रयोग नही किया जाना चाहिये। 
  • समिति ने यह भी सिफारिश की है कि 50 लाख रुपए से कम CSR-निर्धारित राशि (CSR-Prescribed Amount) वाली कंपनियों को CSR समिति के गठन से छूट दी जा सकती है। 
  • CSR गतिविधियों के अंतर्गत आने वाली स्थानीय क्षेत्र की प्राथमिकताओं (स्थानीय पर्यावरण पेयजल, शिक्षा आदि) को राष्ट्रीय प्राथमिकताओं के साथ संतुलित करने की भी सिफारिश की गई है। 
  • 5 करोड़ रूपए या इससे अधिक राशि वाले CSR के लिये प्रभाव आकलन अध्ययन (Impact Assessment Studies) भी शुरू करने की सिफारिश की गई है।
  • कॉर्पोरेट मामलों के मंत्रालय (MCA) के पोर्टल पर CSR-कार्यान्वयन एजेंसियों के पंजीकरण की भी सिफारिश की गई है। 

कॉर्पोरेट सामाजिक दायित्व

(Corporate Social Responsiblity-CSR) 

  • CSR से अभिप्राय किसी औद्योगिक इकाई का उसके सभी पक्षकारों, जैसे- संस्थापकों, निवेशकों, ऋणदाताओं, प्रबंधकों, कर्मचारियों, आपूर्तिकर्त्ताओं, ग्राहकों, वहाँ के स्थानीय समाज एवं पर्यावरण के प्रति नैतिक दायित्व से है। 
  • CSR का प्रावधान उन कंपनियों पर लागू होता है, जिनका निवल मूल्य (Net Worth) ₹ 500 करोड़ से अधिक हो या कुल कारोबार (Turnover) ₹1000 करोड़ से अधिक हो या शुद्ध लाभ (Net Profit) ₹5 करोड़ से अधिक हो।
  • CSR के तहत उपरोक्त कंपनियों को अपने पिछले तीन वर्षों के शुद्ध लाभ के औसत का 2% निम्नलिखित गतिविधियों पर खर्च करना पड़ता है:
    • गरीबी व भूख का उन्मूलन।
    • शिक्षा का प्रचार-प्रसार।
    • लिंग समानता व नारी सशक्तीकरण।
    • पर्यावरण संरक्षण।
    • शिशु-मृत्यु दर व मातृ-मृत्यु दर में सुधार।
    • प्रधानमंत्री राष्ट्रीय राहत कोष या अनुसूचित जाति/जनजाति, महिला, अल्पसंख्यक तथा अन्य पिछड़ा वर्ग के सामाजिक-आर्थिक विकास और राहत के लिये केंद्र या राज्य सरकार द्वारा गठित किसी कोष में योगदान आदि।

प्रभाव आकलन अध्ययन

(Impact Assessment Studies) 

  • CSR परियोजनाओं के द्वारा लक्षित लाभार्थियों तथा उनके आस-पास के पर्यावरण पर पड़ने वाले प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष परिवर्तनों का मूल्यांकन प्रभाव आकलन अध्ययन (Impact Assessment Studies) कहलाता है। 
  • यह परियोजना से संबंधित हितधारकों को परियोजना के संपूर्ण प्रभावों व परिणामों को समझने में सहायक होता है।  
  • प्रभाव आकलन अध्ययन परियोजना से संबंधित निर्णय प्रक्रिया को सरल बनाता है। 

स्रोत: द हिंदू , बिज़नेस स्टैंडर्ड


आंतरिक सुरक्षा

रक्षा कर्मचारियों के प्रमुख (CDS) की घोषणा

चर्चा में क्यों?

स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर देश के प्रधानमंत्री ने रक्षा कर्मचारियों के प्रमुख (Cheaf of Defence Staff- CDS) की नियुक्ति की घोषणा की है, जो तीनों सेवा प्रमुखों से ऊपर होगा। यह देश का सबसे बड़ा उच्च स्तरीय सैन्य सुधार है जो कि भारत की जल, थल एवं वायु सेना के एकीकरण में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाएगा व आपस में उनके संपर्क को स्थापित करेगा।

CDS क्या है?

  • CDS का तात्पर्य है सरकार के लिये एक सूत्री सैन्य सलाहकार का होना, जो तीनों सेवाओं के दीर्घकालिक नियोजन, खरीद, प्रशिक्षण एवं लॉजिस्टिक्स का समन्वय करेगा। भविष्य के युद्ध छोटे, शीघ्रगामी और नेटवर्क केंद्रित हो रहे हैं अतः देश की रक्षा प्रणाली को मजबूत करने हेतु तीनों सेवाओं में समन्वय अत्यंत महत्त्वपूर्ण है।
  • देश में किसी भी प्रकार के हमले/गतिरोध से संसाधनों तथा रक्षा बजट पर अधिक पर दबाव बढ़ता है, इसलिये CDS नियुक्ति से संयुक्त योजना व प्रशिक्षण से संसाधनों पर अनुकूल प्रभाव पड़ेगा।
  • CDS तीनों सेवा प्रमुखों में सबसे ऊपर का पद है यह खरीद-फरोख्त को अनुकूलित करने, सेवाओं के बीच दोहराव से बचने तथा प्रक्रिया को सुव्यवस्थित करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाएगा। 
  • भारत एक परमाणु हथियार संपन्न देश है, CDS परमाणु मुद्दों पर प्रधानमंत्री के सैन्य सलाहकार के रूप में भी कार्य करेगा।

पृष्ठभूमि 

  • CDS पद का प्रस्ताव दो दशकों से अस्तित्व में है। इसे सबसे पहले वर्ष 1999 के कारगिल संघर्ष के बाद उच्च सैन्य सुधारों की सिफारिश के लिये नियुक्त के. सुब्रह्मण्यम समिति द्वारा प्रस्तावित किया गया था। लेकिन कुछ मतभेदों के चलते यह आगे नहीं बढ़ सका।
  • वर्ष 2012 में, नरेश चंद्र समिति ने स्टाफ कमेटी (COSC) के स्थायी अध्यक्षों की नियुक्ति की सिफारिश की।
  • लेफ्टिनेंट जनरल डी.बी. शेखतकर द्वारा की गई 99 सिफारिशों में CDS का भी प्रस्ताव किया गया था। समिति ने दिसंबर 2016 में अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत की जिसमें त्रि-सेवाओं से संबंधित 34 सिफारिशें थीं।

वर्तमान स्थिति 

  • वर्तमान में तीन प्रमुखों के वरिष्ठतम के रूप में कर्मचारी समिति के अध्यक्ष (Chairman of the Chiefs of Staff Committee- COSC) ही प्रमुख का कार्य करते हैं। लेकिन यह एक अतिरिक्त भूमिका है और इसका कार्यकाल बहुत छोटा रहता है। 
    • उदाहरण के लिये एयर चीफ मार्शल (ACM) बी.एस. धनोआ ने निवर्तमान नौसेना प्रमुख एडमिरल सुनील लांबा के पश्चात 31 मई को COSC के अध्यक्ष रूप में पदभार संभाला।
  • हालाँकि धनोआ केवल कुछ महीनों के लिये इस भूमिका में रहेंगे क्योंकि वह 30 सितंबर को सेवानिवृत्त हो रहे हैं, उनके बाद सेना प्रमुख जनरल बिपिन रावत COSC के प्रमुख होंगे। 

अन्य देशों के संबंध में स्थिति 

  • सभी प्रमुख देशों विशेष रूप से परमाणु हथियार वाले राज्यों में एक CDS है। UK. जिसमें भारतीय सशस्त्र बल और रक्षा मंत्रालय हैं, में एक स्थायी सचिव होते हैं, जो रक्षा सचिव के बराबर पद धारण करते हैं साथ ही एक का CDS पद भी है।
  • UK सरकार के दिशा-निर्देशों के अनुसार, CDS ब्रिटिश सशस्त्र बलों के पेशेवर प्रमुख होते हैं और सैन्य रणनीतिक कमांडर के रूप में संचालन के लिये ज़िम्मेदार होते हैं। वह रक्षा सचिव और प्रधान मंत्री के सबसे वरिष्ठ सैन्य सलाहकार भी होते हैं।
  • स्थायी सचिव रक्षा क्षेत्र के मामले में सरकार के प्रमुख नागरिक सलाहकार हैं। उनके पास नीति, वित्त एवं योजना से संबंधित प्राथमिक ज़िम्मेदारी होती है, साथ ही वे विभागीय लेखा अधिकारी भी हैं।

आगे की राह 

  • सरकारी सूत्रों द्वारा प्राप्त जानकारी के अनुसार, भारत में रक्षा मंत्रालय जल्द ही CDS के पद के सृजन के लिये प्रक्रिया प्रारंभ कर सकता है।

स्रोत: द हिंदू


जैव विविधता और पर्यावरण

PET बोतलों में कोई हानिकारक रसायन नहीं

चर्चा में क्यों? 

हाल ही में सी.एस.आई.आर.-केंद्रीय खाद्य प्रौद्योगिकी अनुसंधान संस्‍थान (CSIR-Central Food Technological Research Institute-CFTRI), मैसूर द्वारा किये गए व्यापक मूल्यांकन में PET से निर्मित बोतलों व कंटेनर के उपयोग को खाद्य व पेय पदार्थों के भंडारण के लिये सुरक्षित पाया गया है।

प्रमुख बिंदु 

  • CFTRI के विश्लेषण में एंटीमनी (Antimony), आर्सेनिक, बेरियम, कैडमियम, क्रोमियम, कोबाल्ट, लेड, मर्करी, सेलेनियम और जिंक आदि की मात्रा इनकी पहचान की सीमा से नीचे (Below Detection Limits-BDL) यानि .001 मिलीग्राम/किग्रा. पाई गई है।
  • बिस्फेनॉल-ए (Bisphenol-A) की BDL 0.02 मिलीग्राम/किग्रा. पाई गई। इसके साथ ही धातु और फ्थालेट्स (Phthalates) का भी BDL कम पाया गया।

पहचान की सीमा से नीचे

(Below Detection Limits-BDL)

  • BDL से तात्पर्य किसी रसायन की उस न्यूनतम मात्रा से है जिससे कम होने पर शोधकर्त्ताओं द्वारा नियोजित उपकरणों और प्रयोग की गई विधियों के प्रयोग से भी उस रसायन का पता नहीं लगाया जा सकता है।
  • PET (Polyethylene Terephthalate) का प्रयोग प्लास्टिक की बोतलों और डिस्पोजल योग्य खाद्य पैकेट बनाने में होता है जो उच्च तापमान के संपर्क में आने पर हानिकारक रसायनों का रिसाव करता है।

PET क्या है? 

  • PET (Polyethylene Terephthalate) पॉलिएस्टर का एक प्रकार है। 
  • इसका प्रयोग खाद्य पदार्थों और पेय पदार्थों आदि की पैकेजिंग के लिये प्लास्टिक की बोतलों और कंटेनर आदि बनाने में होता है। 
  • इसे खाद्य पैकेजिंग सामग्री के लिये उपयुक्त माना जाता है क्योंकि यह हल्का, गैर-प्रतिक्रियाशील, किफायती है।
  • इस परीक्षण में धातुओं के साथ ही टेरेफ्थेलिक एसिड (Terephthalic Acid), आइसोफैथेलिक एसिड (Isophthalic Acid), एथिलीन ग्लाइकॉल (Ethylene Glycol), BPA (बिस-फिनोल ए) और फ्थालेट्स (Phthalates) को भी मापा गया।
  • BPA (बिस-फिनोल ए) एक सिंथेटिक ऑर्गेनिक कंपाउंड (Synthetic Organic Compound) है जिसको कैंसर व हार्मोन अंसतुलन हेतु उत्तरदायी पाए जाने पर PET के निर्माण में प्रयोग से बाहर कर दिया गया।
  • PET में एंटीमनी की कम मात्रा से यह निष्कर्ष निकलता है कि इन बोतलों का प्रयोग अंत:स्रावी व्यवधान (Endocrine Disruption) के लिये उतरदायी नहीं होता है।
  • इन पदार्थों की मात्रा ‘विशेष स्थानांतरण सीमा’ (Specific Migration Limit) [यूरोपीय संघ के विनियमन मानदंडों] से भी कम है। ‘स्थानांतरण सीमा’ किसी पदार्थ की वह अधिकतम मात्रा होती है जो खाद्य पैकेजिंग सामग्री या खाद्य कंटेनर से भोजन में स्थानांतरित हो सकती है। 

सी.एस.आई.आर.-केंद्रीय खाद्य प्रौद्योगिकी अनुसंधान संस्‍थान

(CSIR-Central Food Research Institute)

  • वर्ष 1950 में स्थापित केंद्रीय खाद्य प्रौद्योगिकी अनुसंधान संस्‍थान (CFRI), CSIR की एक घटक प्रयोगशाला है। 
  • यह संस्थान इंजीनियरिंग विज्ञान ,प्रौद्योगिकी विकास, अनुवादन संबंधी शोध ,खाद्य संरक्षण और सुरक्षा आदि क्षेत्रों में अनुसंधान करता है। 
  • खाद्य प्रौद्योगिकी में अनेक विषयों (Inter-Disciplinary) का अध्ययन शामिल होने के कारण इस संस्थान की परिकल्पना को विभिन्न R&D विभागों और हैदराबाद, लखनऊ और मुंबई में अपने संसाधन केंद्रों (Resource centers) के माध्यम से फलीभूत किया जाता है।

स्रोत: द हिंदू


जैव विविधता और पर्यावरण

पराली जलाने की घटनाओं में कमी

चर्चा में क्यों? 

भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद् (Indian Council Of Agricultural Research-ICAR) के अनुसार, वर्ष 2016 की तुलना में वर्ष 2018 में पराली जलाने की घटनाओं में 41% और वर्ष 2017 की तुलना में 15% की कमी हुई है। 

प्रमुख बिंदु  

  • वर्ष 2018 में हरियाणा और पंजाब के 4500 से अधिक गाँव पराली जलाने से मुक्त घोषित कर दिये गए हैं। इसका अर्थ है कि इस दौरान इन गाँवों में पराली जलाने की एक भी घटना नहीं हुई है। 
  • यह कमी कृषि में मशीनीकरण को प्रोत्साहन देने के साथ पंजाब,हरियाणा, उत्तर प्रदेश और राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली में पराली प्रबंधन संबंधी केंद्रीय योजना के क्रियान्वयन के कारण हुई है। 
  • वर्ष 2018-19 और 2019-20 में केंद्र सरकार ने वायु प्रदूषण को कम करने और फसल अवशेषों के स्व-स्थाने (In-situ) प्रबंधन हेतु सब्सिडी आधारित मशीनरी उपलब्ध करवाने के लिये केंद्रीय क्षेत्रक योजना शुरू की। यह योजना पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश और दिल्ली में क्रियान्वयित की जा रही है। 
  • योजना लागू होने के एक वर्ष के भीतर ही 8 लाख हेक्टेयर क्षेत्र पर ही हैप्पी सीडर मशीन तथा  शुन्य जुताई तकनीक को अपनाया जा चुका है।
  •  ICAR कृषि विज्ञान केंद्रों (Krishi Vigyan Kendra-KVK) के माध्यम से इस योजना को लागू कर रहा है और साथ ही सूचना, शिक्षा एवं संचार (IEC) गतिविधियों के माध्यम से पराली जलाने से होने वाली हानियों के प्रति किसानों में जागरूकता पैदा की जा रही है
  • पराली जलाने से वायु प्रदूषण, मृदा निम्नीकरण, स्वास्थ्य से संबंधित समस्याएँ तथा यातायात में बाधा जैसी समस्याएँ उत्पन्न होती हैं। 

फसल अवशेषों के इन-सीटू प्रबंधन के लिये कृषि में यंत्रीकरण को बढ़ावा देने के लिये केंद्रीय  क्षेत्रक योजना

(Agricultural Mechanization for in-situ Management of Crop Residue)

  • इस योजना को वर्ष 2018 में शुरू किया गया।
  • केंद्रीय स्तर पर इस योजना का संचालन कृषि, सहकारिता और किसान कल्याण विभाग द्वारा किया जा रहा है।
  • इस योजना के लाभार्थियों की पहचान संबंधित राज्य सरकारों द्वारा ज़िला स्तरीय कार्यकारी समिति (DLEC) के माध्यम से की जाती है। इस योजना के तहत स्व-स्थाने फसल अवशेष प्रबंधन मशीनरी को किराये पर लेने के लिये कृषि यंत्र बैंकों की स्थापना की गई है।
  • योजना लागू होने के एक वर्ष के भीतर ही 8 लाख हेक्टेयर क्षेत्र पर ही हैप्पी सीडर मशीन तथा शून्य जुताई तकनीक को अपनाया गया।
  • इस योजना के तहत किसानों को स्व-स्थाने (In-situ) फसल अवशेष प्रबंधन हेतु मशीनों को खरीदने के लिये 50% वित्तीय सहायता प्रदान की जाती है और साथ ही स्व-स्थाने (In-situ) फसल अवशेष प्रबंधन हेतु मशीनरी के कस्टम हायरिंग केंद्रों (Custom Hiring Center) की स्थापना के लिये परियोजना लागत का 80% तक वित्तीय सहायता प्रदान की जाती है।

भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद

(Indian Council of Agricultural Research-ICAR)

  • भारत सरकार के कृषि मंत्रालय के अंतर्गत कृषि अनुसंधान एवं शिक्षा हेतु भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद एक स्वायत्तशासी संस्था (Autonomous Institute) है।
  • इसका मुख्यालय नई दिल्ली में है।
  • बागवानी, मात्स्यिकी और पशु विज्ञान सहित कृषि क्षेत्र में समन्वयन, मार्गदर्शन और अनुसंधान प्रबंधन एवं शिक्षा के लिये यह परिषद भारत का एक सर्वोच्च निकाय है।
  • पृष्ठभूमि- कृषि पर रॉयल कमीशन द्वारा प्रस्तुत रिपोर्ट का अनुसरण करते हुए सोसाइटी रजिस्ट्रीकरण अधिनियम, 1860 के तहत इसका पंजीकरण किया गया था जबकि 16 जुलाई, 1929 को इसकी स्थापना की गई।
  • पहले इसका नाम इंपीरियल काउंसिल ऑफ एग्रीकल्चरल रिसर्च (Imperial Council of Agricultural Research) था।

हैप्पी सीडर (Turbo Happy Seeder-THS)

  • हैप्पी सीडर (Turbo Happy Seeder-THS) ट्रैक्टर के साथ लगाई जाने वाली एक प्रकार की मशीन होती है जो फसल के अवशेषों को उनकी जड़ समेत उखाड़ फेंकती है। 

स्रोत: pib


विविध

Rapid Fire करेंट अफेयर्स 16 अगस्त

  • सांख्यिकी एवं कार्यक्रम कार्यान्वयन मंत्रालय द्वारा हाल ही में जारी एक रिपोर्ट के अनुसार, वित्त वर्ष 2018-19 के लिये पश्चिम बंगाल की विकास दर 12.58 प्रतिशत रही, जो देश में सर्वाधिक है। पश्चिम बंगाल के बाद दूसरे स्थान पर आंध्र प्रदेश है जिसकी आर्थिक वृद्धि दर 11.02 प्रतिशत रही। वित्त वर्ष 2017-18 में भी आंध्र प्रदेश की विकास दर का आँकड़ा लगभग इतना ही था। इसी तरह तीसरे स्थान पर बिहार ने 10.53 प्रतिशत की विकास दर हासिल की है। वित्त वर्ष 2017-18 में भी बिहार की विकास दर दहाई अंकों में थी। गोवा, पंजाब और उत्तर प्रदेश विकास दर के मामले में निचले स्थान पर रहे। ज्ञातव्य है कि वित्त वर्ष 2018-19 के लिये 18 राज्यों और दो केंद्रशासित क्षेत्रों की विकास दर के आँकड़े सांख्यिकी एवं कार्यक्रम कार्यान्वयन मंत्रालय ने अपनी वेबसाइट पर जारी किये हैं, जिन्हें संबंधित प्रदेश सरकारों के आर्थिक और सांख्यिकी निदेशालय से जुटाया गया है। हालाँकि, अरुणाचल प्रदेश, असम, गुजरात, जम्मू-कश्मीर, केरल, महाराष्ट्र, मणिपुर, मेघालय, मिज़ोरम, नगालैंड और त्रिपुरा सहित 11 राज्यों तथा अंडमान निकोबार द्वीपसमूह और चंडीगढ़ सहित दो केंद्रशासित क्षेत्रों की विकास दर के अनुमान अब तक उपलब्ध नहीं हैं। गौरतलब है कि वर्ष 2018-19 में देश की विकास दर 6.8% रही जो विगत पाँच वर्षों में सबसे कम है। हाल ही में मौद्रिक नीति समीक्षा के दौरान रिज़र्व बैंक ने इसके 7% से कम रहने का अनुमान जताया है।
  • हाल ही में युवा कार्यक्रम एवं खेल मंत्री (स्वतंत्र प्रभार) किरेन रिजीजू ने वर्ष 2016-17 के लिये विकास और स्वास्थ्य, मानवाधिकार संवर्द्धन, सक्रिय नागरिकता, समुदाय सेवा, समाज सेवा आदि के विभिन्न क्षेत्रों में उल्लेखनीय कार्य एवं योगदान के लिये एकल (15-29 वर्ष की आयु के बीच) एवं संगठनों को राष्ट्रीय युवा पुरस्कार प्रदान किये। युवा कार्यक्रम एवं खेल मंत्रालय के युवा मामले विभाग द्वारा दिये जाने वाले इन पुरस्कारों का उद्देश्य युवा खिलाड़ियों को राष्ट्रीय विकास एवं समाज सेवा के क्षेत्र में उत्कृष्टता अर्जित करने के लिये प्रेरित करना तथा युवाओं में समुदाय के प्रति ज़िम्मेदारी की भावना विकसित करना है। इसके अलावा युवाओं को प्रोत्साहित कर अच्छे नागरिकों के रूप में उनकी स्वयं की व्यक्तिगत क्षमता में सुधार लाना और समाज सेवा सहित राष्ट्रीय विकास के लिये युवाओं के साथ काम करने वाले स्वयंसेवी संगठनों द्वारा किये गए असाधारण कार्य को सम्मानित करना भी इन पुरस्कारों का उद्देश्य है। एकल पुरस्कार में एक पदक, एक प्रमाणपत्र और 50 हजार रुपए की पुरस्कार राशि दी जाती है। युवा संगठन को दिये जाने वाले पुरस्कार में एक पदक, एक प्रमाणपत्र और 2 लाख रुपए की पुरस्कार राशि होती है।
  • भारतीय विदेश मंत्री एस. जयशंकर की हालिया चीन यात्रा के दौरान भारत और चीन के बीच चार समझौतों पर हस्ताक्षर हुए। इन समझौतों में सांस्कृतिक आदान-प्रदान, स्वास्थ्य सुविधाएँ, खेल और संग्रहालय प्रबंधन में सहयोग के क्षेत्र शामिल हैं। दोनों देश सांस्कृतिक धरोहरों के संरक्षण, सांस्कृतिक गतिविधियों के आयोजन और पुरातात्विक धरोहर स्थलों के प्रबंधन को बढ़ावा देने पर भी सहमत हुए। अपने-अपने राष्ट्रीय खेल एसोसिएशनों, खिलाड़ियों और युवाओं के बीच आदान-प्रदान बढ़ाने पर भी रज़ामंदी हुई, ताकि अंतर्राष्ट्रीय खेल कार्यक्रमों पर सहयोग मज़बूत किया जा सके। दोनों देश वर्ष 2020 के लिये द्विपक्षीय वार्ताओं को लेकर एक कार्ययोजना बनाने तथा चीन के विदेश मंत्रालय और भारतीय विदेश मंत्रालय के बीच ‘प्रोटोकॉल’ को लागू करने पर भी सहमत हुए।
  • सऊदी अरब की कंपनी सऊदी अरैमको (Saudi Aramco) ने रिलायंस इंडस्ट्रीज़ (RIL) के रिफाइनरी और केमिकल कारोबार में 20% हिस्सेदारी खरीदने का फैसला किया है। रिलायंस इंडस्ट्रीज़ में अरैमको 75 अरब डॉलर का निवेश करेगी। यह रिलायंस के इतिहास में अब तक का सबसे बड़ा प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI) होगा। सऊदी अरैमको एक प्रस्तावित स्पेशल परपज़ व्हीकल (एसपीवी) में 20% की हिस्सेदारी लेगी। इस निवेश के तहत सऊदी अरैमको RIL की गुजरात के जामनगर स्थित दो रिफाइनरियों में प्रतिदिन पाँच लाख बैरल या वार्षिक 2.5 करोड़ टन कच्चे तेल की आपूर्ति करेगी। इन दोनों रिफाइनरियों की कुल उत्पादन क्षमता 6.82 करोड़ टन वार्षिक है। ये दोनों रिफाइनरियाँ और केमिकल कारोबार इस SPV का हिस्सा होंगे। आपको बता दें कि सऊदी अरैमको सऊदी अरब की सरकारी पेट्रोलियम कंपनी है और भारत में बड़े पैमाने पर निवेश की इच्छुक है। सऊदी अरैमको संयुक्त अरब अमीरात (UAE) की कंपनी अबु धाबी नेशनल ऑयल कंपनी (ADNOC) के साथ मिलकर महाराष्ट्र के एक मेगा रिफायनरी-सह-पेट्रोकेमिकल कॉम्प्लेक्स में भी 50% फीसदी हिस्सेदारी लेने की योजना बना रही है। यह कॉम्प्लेक्स भारत की सरकारी पेट्रोलियम कंपनियों द्वारा बनाया जा रहा है और इसके निर्माण पर 60 अरब डॉलर का खर्च आने का अनुमान है।
  • ऐश्वर्या पिस्से मोटर स्पोर्ट्स में विश्व पुरस्कार जीतने वाली पहली भारतीय महिला बन गई हैं। उन्होंने हंगरी के वरपालोटा में फेडरेशन इंटरनेशनल द मोटरसाइकिल चैंपियनशिप के फाइनल में महिलाओं की श्रेणी में FIM विश्व कप में जीत हासिल कर इतिहास रचा। इससे पहले ऐश्वर्या ने दुबई में पहला राउंड जीता था, जबकि पुर्तगाल में तीसरे, स्पेन में पाँचवें और हंगरी में चौथे स्थान पर रही थीं। बेंगलुरु की रहने वाली 23 वर्षीय ऐश्वर्या ने 65 अंक अर्जित किये और वह पुर्तगाल की रीटा से चार अंकों से आगे रहीं। विदित हो कि इस प्रतियोगिता का आयोजन एवं संचालन इंटरनेशनल मोटर साइकलिंग फेडरेशन ने किया था। 

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