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डेली न्यूज़

  • 20 Aug, 2019
  • 48 min read
शासन व्यवस्था

केंद्रीय बलों की सेवानिवृत्ति आयु में वृद्धि

चर्चा में क्यों?

केंद्रीय गृह मंत्रालय ने केंद्रीय सशस्त्र पुलिस बल (Central Armed Police Force-CAPF) के सभी कर्मचारियों की सेवानिवृत्ति आयु 60 वर्ष निर्धारित कर दी है।

प्रमुख बिंदु:

  • मंत्रालय का यह फैसला दिल्ली उच्च न्यायालय के उस निर्णय के बाद आया है जिसमें न्यायालय ने सरकार को सभी CAPF कर्मियों के लिये एक निश्चित सेवानिवृत्ति आयु निर्धारित करने को कहा था।
  • गौरतलब है कि इससे पूर्व सिर्फ केंद्रीय औद्योगिक सुरक्षा बल (Central Industrial Security Force-CISF) और असम राइफल्स (Assam Rifles) में ही सभी रैंक के अधिकारी एक निश्चित आयु यानी 60 वर्ष में सेवानिवृत्ति होते थे।
  • उपरोक्त के अतिरिक्त शेष चार बलों यानी केंद्रीय रिज़र्व पुलिस बल (Central Reserve Police Force-CRPF), सीमा सुरक्षा बल (Border Security Force-BSF), भारत-तिब्बत सीमा पुलिस (Indo Tibetan Border Police-ITBP) और सशस्त्र सीमा बल (Sashastra Seema Bal) में सेवानिवृत्ति आयु दो श्रेणियों में होती थी।
    • कमांडेंट और उससे नीचे की रैंक पर सेवानिवृत्ति आयु 57 वर्ष थी।
    • वहीं डीआईजी (DIG) और उससे ऊपर के रैंक पर सेवानिवृत्ति आयु 60 वर्ष थी।

आर्थिक सर्वेक्षण और सेवानिवृत्ति आयु:

  • आर्थिक सर्वे के मुताबिक, भारत में जीवन प्रत्याशा औसतन 60 वर्ष होने वाली है।
  • वहीं बीते कुछ सालों में महिलाओं की उम्र 13.3 और पुरुषों की उम्र 12.5 वर्ष बढ़ गई है।
  • सर्वेक्षण में यह सुझाव दिया गया है कि देश पर बढ़ती हुई जनसंख्या और पेंशन के दबाव को कम करने के लिये रिटायरमेंट की उम्र बढ़ा देनी चाहिये।

केंद्रीय सशस्त्र पुलिस बल

(Central Armed Police Force-CAPF):

  • CAPF के अंतर्गत मुख्यतः 5 पुलिस सशस्त्र बल आते हैं।
  • केंद्रीय सशस्त्र पुलिस बल पूरी तरह से गृह मंत्रालय के अधीन आता है और इसका रक्षा मंत्रालय से कोई भी संबंध नहीं है।
  • राज्य में दंगा फसाद, सीमा पर हुई छोटी-मोटी झड़प और उग्रवाद जैसी समस्याओं से निपटना इसके मुख्य कार्यों में शामिल हैं।
  • CAPF का नेतृत्व आर्मी कमांडर के बजाय एक आईपीएस (IPS) अधिकारी करता है।
  • CAPF के अंतर्गत मुख्य पुलिस सशस्त्र बल:
    • सीमा सुरक्षा बल (Border Security Force-BSF)
    • केंद्रीय रिज़र्व पुलिस बल (Central Reserve Police Force-CRPF)
    • केंद्रीय औद्योगिक सुरक्षा बल (Central Industrial Security Force-CISF)
    • भारत-तिब्बत सीमा पुलिस (Indo Tibetan Border Police-ITBP)
    • सशस्त्र सीमा बल (Sashastra Seema Bal)

स्रोत : द हिंदू


शासन व्यवस्था

निकोटीन जहर के रूप में वर्गीकृत

चर्चा में क्यों?

कर्नाटक राज्य ने इलेक्ट्रॉनिक सिगरेट के उत्पादन और बिक्री पर प्रतिबंध के प्रवर्तन को मज़बूत करने के लिये निकोटीन (Nicotine) को कर्नाटक जहर (पॉजिशन एंड सेल) नियम, 2015 [Karnataka Poisons (Possession and Sale) Rules, 2015] के तहत एक जहरीले पदार्थ के रूप में वर्गीकृत किया है।

  • अत्यधिक जहरीले रसायन जो हवा में गैस या वाष्प के रूप में बहुत कम मात्रा में भी उपस्थित होने से जीवन के लिये खतरनाक हो सकते हैं, उन्हें वर्ग A के तहत अधिसूचित किया जाता है।
    • इसके अंतर्गत साइनोजेन (Cyanogen), हाइड्रोसाइनिक एसिड (Hydrocyanic Acid), नाइट्रोजन परॉक्साइड (Nitrogen Peroxide), फॉसजीन (Phosgene) आदि आते हैं।
    • इस संबंध में एक गजट अधिसूचना पिछले महीने प्रकाशित हुई थी तथा नए नियमों को अब कर्नाटक जहर (पॉजिशन एंड सेल) नियम, 2019 [Karnataka Poisons (Possession and Sale) Rules, 2019] कहा जाता है।

प्रमुख बिंदु

  • कर्नाटक के खाद्य सुरक्षा विभाग के सूत्रों के अनुसार, निकोटीन एक अत्यधिक विषैला और लिपोफिलिक कोलीनर्जिक एल्कालॉइड (Lipophilic Cholinergic Alkaloid) है जो पैरासिम्पेथेटिक तंत्रिका तंत्र (Parasympathetic Nervous System) को प्रभावित करता है।
  • वर्तमान में निकोटीन में कोई पोषक गुण नहीं पाया जाता है तथा इसके गंभीर स्वास्थ्य खतरों और संभावित रूप से जहरीली/विषैली प्रकृति के कारण यह खाद्य सुरक्षा एवं मानक अधिनियम की धारा 2,3 एवं 4 के तहत भोजन में उपयोग के लिये निषिद्ध है।
  • उल्लेखनीय है कि निकोटीन विषाक्तता के लिये अभी तक कोई भी ज्ञात एंटीडोट (Antidote) नहीं है।
  • इलेक्ट्रॉनिक सिगरेट छोटी सी बैटरी से चलने वाले उपकरण हैं जो धूम्रपान करने वालों को तंबाकू के समान अनुभव प्रदान करने के लिये तरल निकोटीन (Liquid Nicotine) को वाष्पित करते हैं।

निकोटीन

  • निकोटीन एक प्लांट एल्कलॉइड (Alkaloid) है जिसमें नाइट्रोजन पाया जाता है।
  • यह तंबाकू के पौधे सहित कई अन्य पौधों में भी पाया जाता है साथ ही इसे कृत्रिम रूप से भी उत्पादित किया जा सकता है।
  • निकोटीन में शामक (Sedative) एवं उत्तेजक (Stimulant) दोनों गुण पाए जाते हैं।
  • निकोटीन का उपयोग ई-सिगरेट में एक प्रत्यक्ष पदार्थ के रूप में किया जाता है इसमें निकोटीन की मात्रा लगभग 36 मिलीग्राम तक होती है। हालाँकि सिगरेट में भी 1.2 से 1.4 मिलीग्राम तक निकोटीन होता है।
  • तंबाकू उत्पादों को चबाने या सूंघने से आमतौर पर धूम्रपान की तुलना में शरीर में अधिक निकोटीन प्रवेश करता है।
  • हालाँकि कर्नाटक राज्य सरकार ने जून 2016 में ई-सिगरेट की बिक्री और उत्पादन पर प्रतिबंध लगा दिया था, लेकिन अभी भी यहाँ पर निकोटीन कार्ट्रिज तथा ई-सिगरेट की अवैध बिक्री एवं तस्करी बड़े पैमाने पर जारी है।
  • ई-सिगरेट को अक्सर सिगरेट पीने में कटौती करने या पूरी तरह से धूम्रपान करने के तरीके के रूप में विपणन किया जाता है, इसे धूम्रपान छोड़ने के लिये सहायक के रूप में भी बेचा जाता है।

इलेक्ट्रॉनिक सिगरेट/ई-सिगरेट

  • ई-सिगरेट या इलेक्ट्रॉनिक निकोटिन डिलिवरी सिस्टम (Electronic Nicotine Delivery System- ENDS) एक बैटरी संचालित डिवाइस है, जो तरल निकोटीन, प्रोपलीन, ग्लाइकॉल, पानी, ग्लिसरीन के मिश्रण को गर्म करके एक एयरोसोल बनाता है, जो एक असली सिगरेट जैसा अनुभव प्रदान करता है।
  • यह डिवाइस पहली बार वर्ष 2004 में चीनी बाज़ारों में ‘तंबाकू के स्वस्थ विकल्प’ के रूप में बेची गई थी।
  • विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के अनुसार, वर्ष 2005 से ही ई-सिगरेट उद्योग एक वैश्विक व्यवसाय बन चुका है। वर्तमान में इसका बाज़ार लगभग 3 अरब डॉलर का है।
  • ई-सिगरेट ने अधिक लोगों को धूम्रपान शुरू करने के लिये प्रेरित किया है, क्योंकि इसका प्रचार-प्रसार ‘हानिरहित उत्पाद’ के रूप में किया जा रहा है। किशोरों के लिये ई-सिगरेट धूम्रपान शुरू करने का एक प्रमुख साधन बन गया है।
  • भारत में 30-50% ई-सिगरेट्स ऑनलाइन बिकती हैं और चीन इसका सबसे बड़ा आपूर्तिकर्त्ता देश है। भारत में ई-सिगरेट की बिक्री को अभी तक उचित तरीके से विनियमित नहीं किया जा सका है। यही कारण है कि बच्चे और किशोर इसे आसानी से ऑनलाइन खरीद सकते हैं।
  • पंजाब राज्य ने ई-सिगरेट को अवैध घोषित किया है। राज्य का कहना है कि इसमें तरल निकोटीन का प्रयोग किया जाता है, जो वर्तमान में भारत में अपंजीकृत ड्रग के रूप में वर्गीकृत है।
  • रिपोर्ट के अनुसार, ई-सिगरेट पीने वाले लोगों में श्वसन और जठरांत्र संबंधी रोग हो जाते हैं।
  • स्वास्थ्य विभाग के एक अध्ययन के अनुसार, ई-सिगरेट युवा पीढ़ी को पारंपरिक सिगरेट का उपयोग करने के लिये प्रोत्साहित करती है।
  • ऐसे चॉकलेट जिसमें निकोटीन की दो मिलीग्राम मात्रा पाई जाती है, को नशामुक्ति में मदद करने की अनुमति दी गई है। ई-सिगरेट निर्माता अपनी बिक्री के लिये इस क्लॉज का दुरुपयोग करते हैं।

स्रोत: द हिंदू


सामाजिक न्याय

खसरे पर WHO की रिपोर्ट

चर्चा में क्यों?

विश्व स्वास्थ्य संगठन की नवीनतम रिपोर्ट के अनुसार विश्व में खसरे का प्रकोप तेज़ी से बढ़ रहा है।

वर्तमान परिदृश्य:

  • वर्ष 2006 के बाद वर्ष 2019 की पहली छमाही में खसरे के सबसे ज़्यादा मामले दर्ज किये गए हैं। वर्ष 2016 के बाद से ही खसरे के मामलों में लगातार वृद्धि हो रही है।
  • डेमोक्रेटिक रिपब्लिक ऑफ कांगो, मेडागास्कर और यूक्रेन में इस वर्ष खसरे के सबसे ज़्यादा मामले दर्ज किये गए हैं। हालांँकि मेडागास्कर के स्वास्थ्य मंत्रालय के बेहतर और प्रभावी टीकाकरण कार्यक्रम से वहाँ खसरे के मामले पिछले वर्षों की तुलना में कम दर्ज किये गए हैं।
  • अंगोला, कैमरून, चाड, कज़ाकिस्तान, नाइजीरिया, फिलीपींस, दक्षिण सूडान, सूडान और थाईलैंड में भी खसरे का प्रकोप देखा जा रहा है।
  • संयुक्त राज्य अमेरिका में पिछले 25 वर्षों की तुलना में सबसे अधिक खसरे के मामले दर्ज किये गए हैं। WHO की रिपोर्ट के अनुसार, यूरोप में इस वर्ष के पहले छह महीनों में खसरे के 90,000 मामले दर्ज किये गए जो वर्ष 2018 के पूरे वर्ष के 84,462 दर्ज मामलों से ज़्यादा हैं।

खसरा (Measles)

  • श्वसन प्रणाली में वायरस, विशेष रूप से मोर्बिलीवायरस (Morbillivirus) के जीन्स पैरामिक्सोवायरस (Paramicovirus) के संक्रमण से होता है।
  • इसके लक्षणों में बुखार, खाँसी, नाक का बहना, लाल आँखें और सामान्यीकृत मेकुलोपापुलर एरीथेमाटस चकते शामिल हैं।
  • शुरुआती दौर में मस्तिष्क की कोशिकाओं (Brain Cell) में सूजन आ जाती है और कुछ समय बाद (विशेष रूप से समस्या के गंभीर होने पर) व्यक्ति का मस्तिष्क क्षतिग्रस्त हो जाता है।
  • विश्व भर में स्वास्थ्य देखभाल प्रणालियों के बावजूद भी लोग खसरे के कारण गंभीर बीमारी और विकलांगता से ग्रसित हैं।

खसरे के प्रसार का कारण:

  • सामान्यतः यह कम खसरा टीकाकरण कवरेज वाले देशों में ही फैलता है लेकिन वर्तमान परिदृश्य में यह उच्च राष्ट्रीय टीकाकरण दर वाले देशों में भी फैल रहा है।
  • खसरा समुदायों, भौगोलिक क्षेत्रों और आयु-समूहों के बीच टीका कवरेज की असमानताओं के परिणामस्वरूप फैलता है।
  • लोग पर्याप्त प्रतिरक्षा के बगैर खसरे के संपर्क में आते हैं, तो उनमें भी खसरा बहुत तेज़ी से फैल जाता है।
  • गुणवत्तापूर्ण स्वास्थ्य सेवा या टीकाकरण सेवाओं तक पहुंँच, संघर्ष और विस्थापन, टीकों के बारे में गलत जानकारी या टीकाकरण की आवश्यकता के बारे में कम जागरूकता, इत्यादि कारकों से भी खसरा का प्रसार बढ़ रहा है।
  • WHO और यूनिसेफ के आँकड़ों के अनुसार, जुलाई 2019 में 86% बच्चों को खसरे के टीके की पहली खुराक और केवल 69% बच्चों को ही दूसरी खुराक मिल पाई। इस प्रकार की लापरवाहियों की वजह से भी खसरे का अधिक प्रसार हो रहा है। WHO के स्पष्ट दिशा-निर्देश हैं कि खसरे के जड़ से उन्मूलन हेतु दोनों ही टीके आवश्यक हैं।
  • WHO के दिशा-निर्देशों के बाद भी अभी तक 23 देशों ने खसरे के टीके की दूसरी खुराक हेतु कोई राष्ट्रीय कार्यक्रम नहीं शुरू किया हैं।

खसरे के प्रसार को रोकने के प्रयास:

वैश्विक स्तर पर

  • WHO और यूनिसेफ, रेडक्रास सोसायटी के साथ मिलकर वैश्विक स्तर पर प्रभावित क्षेत्रों में टीकाकरण अभियान चला रहे हैं।
  • गावी एलायंस (Global Alliance for Vaccines and Immunisation- GAVI Alliance) के सहयोग से भी टीकाकरण को बढ़ावा दिया जा रहा है।

गावी एलायंस (Global Alliance for Vaccines and Immunisation- GAVI Alliance)

  • यह एक अंतर्राष्ट्रीय संगठन है जिसका उद्देश्य सरकारी और निजी संस्थाओं को एक साथ लाकर टीकाकरण के प्रसार को बढ़ाना है।
  • इसका मुख्य उद्देश्य रोगों से प्रभावित गरीब उन देशों की सहायता करना है जहाँ वित्त की कमी की वजह से टीकाकरण की गतिविधियाँ संपन्न नहीं हो पा रही हैं।
  • इसके सचिवालय जिनेवा और वाशिंगटन में स्थित हैं।
  • WHO देशों में खसरे के प्रसार को रोकने हेतु स्वास्थ्य सेवाओं को मज़बूत करने और आवश्यक टीकाकरण कवरेज को बढ़ाने में सहयोग कर रहा है।
  • WHO ने यात्रियों को यात्रा से कम-से-कम 15 दिन पहले खसरे का टीका लगाने संबंधी दिशा-निर्देश जारी किये हैं।

भारत के स्तर पर:

  • भारत में सार्वभौमिक प्रतिरक्षण कार्यक्रम (Universal Immunisation Programme -UIP) के तहत खसरे का टीकाकरण कार्यक्रम चलाया जा रहा है।
  • भारत में मिशन इंद्रधनुष के माध्यम से भी खसरा उन्मूलन के प्रयास किये जा रहे हैं।

सार्वभौमिक प्रतिरक्षण कार्यक्रम

(Universal Immunisation Programme -UIP):

  • भारत का सार्वभौमिक टीकाकरण कार्यक्रम विश्व के सबसे बड़े सार्वजनिक स्वास्थ्य कार्यक्रमों में से एक है। यह विश्व में सबसे अधिक लागत प्रभावी सार्वजनिक स्वास्थ्य कार्यक्रम है।
  • इस कार्यक्रम की शुरुआत वर्ष 1985 में की गई थी।
  • इस कार्यक्रम के तहत गुणवत्तापूर्ण वैक्सीन का उपयोग करना, अधिक-से-अधिक लाभार्थियों की पहुँच सुनिश्चित करना, टीकाकरण स्तरों का आयोजन करना और भौगोलिक प्रसार एवं क्षेत्रीय विविधता को कवर करने जैसे पक्षों को शामिल किया गया है।

मिशन इंद्रधनुष:

  • केंद्रीय स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय द्वारा दिसंबर, 2014 में मिशन इन्द्रधनुष की शुरुआत की गई थी।
  • स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय ने वर्ष 2017 में पूर्ण टीकाकरण कवरेज में तेज़ी लाने और निम्न टीकाकरण कवरेज वाले शहरी क्षेत्रों एवं अन्य इलाकों पर अपेक्षाकृत ज़्यादा ध्यान देने हेतु ‘तीव्र मिशन इंद्रधनुष’ लॉन्च किया था।
  • तीव्र मिशन इंद्रधनुष के तहत उन शहरी क्षेत्रों पर अपेक्षाकृत ज़्यादा ध्यान दिया जा रहा है, जिन पर मिशन इंद्रधनुष के तहत ध्यान केंद्रित नहीं किया जा सका था।

स्रोत: डाउन टू अर्थ


भारतीय अर्थव्यवस्था

विलय और अधिग्रहण हेतु ग्रीन चैनल

चर्चा में क्यों?

भारतीय प्रतिस्पर्द्धा आयोग (Competition Commission of India-CCI) ने कुछ निश्चित प्रकार के विलय और अधिग्रहण (Mergers and Acquisitions-M&A) को मंज़ूरी देने के लिये एक ग्रीन चैनल (Green Channel) की शुरुआत की है।

प्रमुख बिंदु:

  • प्रतिस्पर्द्धा कानून समीक्षा समिति ने अपनी रिपोर्ट में दिवालिया समाधान प्रक्रिया में सुधार के उपायों का सुझाव दिया।
    • समिति द्वारा की गई सिफारिशों में सबसे प्रमुख है कुछ निश्चित विलय और अधिग्रहण सौदों की स्वतः मंज़ूरी के लिये एक ‘ग्रीन चैनल’ का निर्माण। इसमें मुख्यतः वे सौदे शामिल हैं जो दिवाला और दिवालियापन संहिता (Insolvency and Bankruptcy Code-IBC) के तहत आते हैं।

क्या मतलब है ‘ग्रीन चैनल’ का?

  • ग्रीन चैनल के निर्माण की सिफारिश प्रतियोगिता कानूनों की समीक्षा करने वाली उच्च स्तरीय समिति द्वारा की गई है।
  • ग्रीन चैनल कुछ शर्तों के आधार पर निश्चित प्रकार के विलय और अधिग्रहण को शीघ्र मंज़ूरी देने के लिये एक स्वचालित प्रणाली की अनुमति देता है।
  • ग्रीन चैनल यह कार्य कुछ पूर्व लिखित मापदंडों के आधार पर करेगा।
  • इसकी शुरुआत का प्रमुख उद्देश्य भारत में व्यापार को आसान बनाने की ओर एक कदम बढ़ाना है।
  • ग्रीन चैनल की अवधारणा पहले से ही सिंगापुर, ऑस्ट्रेलिया, न्यूज़ीलैंड, मलेशिया और इंडोनेशिया जैसे देशों में मौजूद है।

विलय का अर्थ:

विलय का अभिप्राय उस स्थिति से होता है जिसमें दो या दो से अधिक कंपनियाँ एक नई कंपनी के निर्माण हेतु एक साथ आती हैं। विलय का प्रमुख उद्देश्य प्रतिस्पर्द्धा को कम करना और एक निश्चित क्षेत्र में अपनी क्षमता को बढ़ाना होता है।

अधिग्रहण का अर्थ:

जब कोई एक व्यावसायिक इकाई किसी दूसरी व्यावसायिक इकाई को खरीदती है तो उसे अधिग्रहण कहा जाता है। सबसे मुख्य बात यह है कि इसके अंतर्गत किसी भी नई कंपनी का गठन नहीं किया जाता है।

विलय और अधिग्रहण में अंतर:

  • विलय और अधिग्रहण में सबसे बड़ा अंतर यही है कि विलय के अंतर्गत एक नई कंपनी का निर्माण किया जाता है, जबकि अधिग्रहण के अंतर्गत किसी भी नई कंपनी का निर्माण नहीं होता है।
  • विलय का उद्देश्य प्रतिस्पर्द्धा को कम करना होता है, जबकि अधिग्रहण का उद्देश्य तात्कालिक विकास करना होता है।
  • विलय में कानूनी औपचारिकताएँ अधिक होती हैं, जबकि अधिग्रहण में विलय की अपेक्षा कम कानूनी औपचारिकताएँ होती हैं।

भारतीय प्रतिस्पर्द्धा आयोग

(Competition Commission of India-CCI):

  • भारतीय प्रतिस्पर्द्धा आयोग की स्थापना 14 अक्तूबर, 2003 को की गई थी।
  • प्रतिस्पर्द्धा अधिनियम के अनुसार, इस आयोग में एक अध्यक्ष एवं छः सदस्य होते हैं, सदस्यों की संख्या 2 से कम तथा 6 से अधिक नहीं होनी चाहिये लेकिन अप्रैल 2018 में केंद्रीय मंत्रिमंडल ने भारतीय प्रतिस्पर्द्धा आयोग में CCI का आकार एक अध्‍यक्ष और छह सदस्‍य (कुल सात) से घटाकर एक अध्‍यक्ष और तीन सदस्‍य (कुल चार) करने को मंज़ूरी दे दी है।
  • सभी सदस्यों को सरकार द्वारा ‘नियुक्त’ (Appoint) किया जाता है।
  • इस आयोग के प्रमुख कार्यों में निम्नलिखित शामिल हैं-
    • प्रतिस्पर्द्धा को दुष्प्रभावित करने वाले चलन (Practices) को समाप्त करना एवं टिकाऊ प्रतिस्पर्द्धा को प्रोत्साहित करना।
    • उपभोक्ताओं के हितों की सुरक्षा करना।
    • भारतीय बाज़ार में ‘व्यापार की स्वतंत्रता’ सुनिश्चित करना।
    • किसी प्राधिकरण द्वारा संदर्भित मुद्दों पर प्रतियोगिता से संबंधित राय प्रदान करना।
    • जन जागरूकता का प्रसार करना।
    • प्रतिस्पर्द्धा से संबंधित मामलों में प्रशिक्षण प्रदान करना।

स्रोत : द हिंदू (बिज़नेस लाइन)


भारतीय अर्थव्यवस्था

गैर-कृषि जिंस गोदाम

चर्चा में क्यों ?

WDRA और SEBI गैर-कृषि जिंस गोदामों के विनियमन हेतु मानक स्थापित करने का प्रयास कर रहे हैं।

प्रमुख बिंदु:

  • गोदाम विकास और विनियामक प्राधिकरण (Warehousing Development and Regulatory Authority- WDRA) कृषि वस्तुओं के भंडारण हेतु गोदामों का नियमन करता है।

गोदाम विकास और विनियामक प्राधिकरण

(Warehousing Development and Regulatory Authority- WDRA):

  • WDRA का गठन 26 अक्तूबर, 2010 को गोदाम ( विकास और विनियामक) अधिनियम 2007, के तहत किया गया था।
  • WDRA को गोदामों के विकास और विनियमन के लिये नियम बनाने संबंधी कार्य सौंप् गया है।
  • इस प्राधिकरण में एक अध्यक्ष और दो सदस्य होते हैं जिन्हें केंद्र सरकार द्वारा नियुक्त किया जाता है।
  • WDRA भारत सरकार के खाद्य और सार्वजनिक वितरण विभाग के तहत एक वैधानिक प्राधिकरण है।
  • इस प्राधिकरण का मुख्यालय नई दिल्ली में स्थित है।
  • कृषि और गैर-कृषि जिंसों के गोदामों के मानदंडों की आवश्यकताएँ अलग-अलग होती हैं। इसलिये अब गैर-कृषि गोदामों हेतु अलग मानक बनाए जा रहे हैं।
  • भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड (The Securities and Exchange Board of India- SEBI) नेपोर्टफोलियो निवेशकों को म्यूचुअल फंड और हेज फंड के अतिरिक्त वस्तुओं में भी निवेश करने की अनुमति दी है।
  • इसके साथ ही SEBI ने डेरिवेटिव (Derivatives) एक्सचेंजों को कच्चे तेल और प्राकृतिक गैस के अतिरिक्त अन्य सभी वस्तुओं के डेरिवेटिव (Derivatives) का निपटान करना अनिवार्य कर दिया है।
  • कृषि गोदामों को विनियमित किये जाने के दौरान इलेक्ट्रॉनिक रसीदें भी दी जाती हैं, साथ ही डेरिवेटिव एक्सचेंजों ने व्यापारियों के लिये ऐसी रसीदें देना अनिवार्य कर दिया है।

भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड

(Securities and Exchange Board of India-SEBI)

  • भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड की स्थापना भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड अधिनियम, 1992 के प्रावधानों के अनुसार 12 अप्रैल, 1992 को हुई थी।
  • इसका मुख्यालय मुंबई में है।
  • इसके मुख्य कार्य हैं -
    • प्रतिभूतियों (Securities) में निवेश करने वाले निवेशकों के हितों का संरक्षण करना।
    • प्रतिभूति बाज़ार (Securities Market) के विकास का उन्नयन करना तथा उसे विनियमित करना और इससे संबंधित या इसके आनुषंगिक विषयों का प्रावधान करना।

स्रोत: बिज़नेस स्टैण्डर्ड


जैव विविधता और पर्यावरण

पर्यावरण मंज़ूरी की समय-सीमा

चर्चा में क्यों?

सरकार द्वारा रियल स्टेट सेक्टर से जुड़ी किसी भी परियोजना को पर्यावरणीय मंज़ूरी मिलने में लगने वाले समय को घटाकर 60 दिन किये जाने का प्रयास किया जा रहा है।

प्रमुख बिंदु

  • 5-ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था के महत्त्वाकांक्षी लक्ष्य को पूरा करने के लिये सरकार परियोजनाओं को मिलने वाली पर्यावरणीय मंज़ूरी की प्रक्रिया को तेज़ करते हुए निवेश में वृद्धि करने का प्रयास कर रही है।
  • जैसा कि पर्यावरण मंत्री द्वारा दावा किया गया है, वर्ष 2014 से पूर्व पर्यावरणीय मंज़ूरी मिलने में 640 दिनों का समय लगता था, जिसे घटाकर 108 किया गया, जल्द ही इसे 60 दिन करने का विचार किया जा रहा है।

पर्यावरण मंज़ूरी प्रक्रिया

पर्यावरण मंज़ूरी देने की प्रक्रिया में निम्नलिखित को शामिल किया जाता हैं:

Environmental clearance

  • संदर्भ की शर्तें (Specifying Terms of Reference-ToR) निर्दिष्ट करना।
  • पर्यावरणीय प्रभाव आकलन (Environmental Impact Assessment-EIA) रिपोर्ट तैयार करना।
  • सार्वजनिक परामर्श (Public Consultation) करना।

किसी भी नई परियोजना की शुरूआत या मौजूदा परियोजना में संशोधन के लिये पर्यावरणीय मंज़ूरी एक वैधानिक आवश्यकता होती है।

स्रोत: द हिंदू


जैव विविधता और पर्यावरण

भारत सल्फर-डाईऑक्साइड (SO2) का सबसे बड़ा उत्सर्जक

चर्चा में क्यों?

हाल ही में ग्रीनपीस (Greenpeace), एक पर्यावरणीय गैर-सरकारी संगठन की रिपोर्ट के अनुसार, भारत दुनिया में सल्फर डाइऑक्साइड (SO2) का सबसे बड़ा उत्सर्जक है, जो वैश्विक स्तर पर मानवजनित सल्फर-डाई-ऑक्साइड उत्सर्जन में 15% से अधिक का योगदान देता है।

प्रमुख बिंदु

  • भारत के सल्फर डाइऑक्साइड (SO2) का सबसे बड़ा उत्सर्जक होने का प्राथमिक कारण पिछले एक दशक में देश में कोयला आधारित बिजली उत्पादन का विस्तार है।
  • रिपोर्ट के अनुसार, भारत में SO2 का सर्वाधिक उत्सर्जन कोयला आधारित पॉवर प्लांट (Thermal Power Plants) द्वारा किया जाता है।
  • भारत में प्रमुख SO2 उत्सर्जन हॉटस्पॉट मध्य प्रदेश में सिंगरौली; तमिलनाडु में नेवेली और चेन्नई; ओडिशा में तलचर एवं झारसुगुड़ा; छत्तीसगढ़ में कोरबा; गुजरात में कच्छ; तेलंगाना में रामागुंडम तथा महाराष्ट्र में चंद्रपुर एवं कोराडी हैं।
  • देश के अधिकांश बिजली संयंत्रों में फ्लू-गैस डिसल्फराइज़ेशन तकनीक (Flue-Gas Desulphurisation-FGD) का अभाव है।

नोट: इन हॉटस्पॉट की पहचान NASA (National Aeronautics and Space Administration) के OMI (Ozone Monitoring Instrument) सैटेलाइट द्वारा की गई है।

वैश्विक संदर्भ में बात करें तो

  • रूस, दक्षिण अफ्रीका, ईरान, सऊदी अरब, भारत, मेक्सिको, संयुक्त अरब अमीरात, तुर्की और सर्बिया में सबसे अधिक SO2 उत्सर्जन हॉटस्पॉट पाए गए हैं।
  • अमेरिका व चीन नवीकरणीय ऊर्जा के प्रयोग को बढ़ावा देकर SO2 उत्सर्जन को कम करने की क्षमता प्राप्त कर चुके हैं। चीन ने उत्सर्जन मानकों व प्रवर्तन में सुधर किया है।
  • भारत, सऊदी अरब और ईरान में पॉवर प्लांट व अन्य उद्योगों के कारण वायु प्रदूषण में बढ़ोतरी हो रही है। SO2 के उत्सर्जन में वैश्विक रैंकिंग में भारत का प्रथम स्थान है क्योंकि यहाँ अधिकतम हॉटस्पॉट हैं।

So2 Emision

वायु प्रदूषण एवं SO2

रिपोर्ट के अनुसार, वायु प्रदूषण में SO2 उत्सर्जन का महत्त्वपूर्ण योगदान है। जीवाश्म ईंधन का उपयोग करने के कारण पॉवर प्लांट और अन्य औद्योगिक गतिविधियाँ SO2 उत्सर्जन के सबसे बड़े स्रोत हैं।

  • SO2 उत्सर्जन वायु प्रदूषण का एक महत्त्वपूर्ण कारक है। वायुमंडल में इसकी सांद्रता अधिक होने पर यह सल्फर के ऑक्साइड (SOX) का निर्माण करता है।
  • SOX अन्य यौगिक के साथ प्रतिक्रिया कर सूक्ष्म कणों का निर्माण करता है जो कि वायु मंडल में Particulate Matter (PM) की मात्रा को बढ़ाता है।

वायु प्रदूषण के प्रभाव

  • वायु प्रदूषण सार्वजनिक स्वास्थ्य के लिये चिंता का सबसे बड़ा कारण है।
  • विश्व की 91% जनसंख्या उन क्षेत्रों में निवास करती है जहाँ बाह्य वायु प्रदूषण (Outdoor Air Pollution) का स्तर विश्व स्वास्थ्य संगठन (World Health Organization-WHO) द्वारा जारी किये गए सुरक्षित स्तर से कहीं अधिक है। इसके परिणामस्वरूप प्रतिवर्ष 4.2 मिलियन लोगों की मौत हो जाती है।

भारत द्वारा SO2 उत्सर्जन को नियंत्रित करने के प्रयास

  • वर्ष 2015 में पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय (MOEF&CC) ने कोयला आधारित पॉवर प्लांट द्वारा SO2 उत्सर्जन को कम करने हेतु सभी पॉवर प्लांट में FGD तकनीक के प्रयोग को अनिवार्य किया है।
  • सभी कोयला आधारित पॉवर प्लांटस को वर्ष 2022 तक FGD तकनीक से युक्त किया जाना है, जबकि दिल्ली-एनसीआर में स्थित पॉवर प्लांट के लिये यह समय-सीमा वर्ष 2019 है।

Flue-Gas Desulphurisation-FGD

  • FGD जीवाश्म-ईंधन आधारित पॉवर प्लांट से निष्कासित फ्लू गैसों से साथ ही अन्य प्रक्रियाओं से उत्सर्जित (जैसे कचरा क्षरण आदि ) सल्फर डाइऑक्साइड (SO2) को पृथक करने की तकनीक है।
  • जीवाश्म-ईंधन आधारित पॉवर प्लांट से निष्कासित फ्लू गैस में उपस्थित SO2 को एक अवशोषण प्रक्रिया (Absorption Process) के माध्यम से नियंत्रित किया जा सकता है जिसे FGD कहा जाता है। FGD प्रणाली में आर्द्र स्क्रबिंग (Wet Scrubbing) या ड्राई स्क्रबिंग (Dry Scrubbing ) शामिल होती है।
  • Wet FGD प्रणाली में फ्लू गैसों को एक अवशोषक के संपर्क में लाया जाता है यह अवशोषक तरल या ठोस सामग्री का घोल होता है। SO2 इस अवशोषक में घुल जाता है या प्रतिक्रिया करके इसमें समाहित हो जाता है।
  • यही प्रक्रिया Dry FGD प्रणाली में भी प्रयोग होती है जिसमे अवशोषक के रूप में लाइमस्टोन प्रयोग किया जाता है।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस, द हिंदू


शासन व्यवस्था

रेलवे सुरक्षा बल में शामिल होंगे कोरस कमांडो

चर्चा में क्यों?

हाल ही में विघटनकारी ताकतों से होने वाले खतरे को ध्यान में रखते हुए रेलवे सुरक्षा बल (Railway Protection Force-RPF) में कोरस अर्थात् कमांडो फॉर रेलवे सिक्योरिटी (Commandos for Railway Security-CORAS) को शामिल किया गया है।

कोरस

  • हमेशा से रेल यात्रियों के समक्ष आने वाले खतरे से निपटने के लिये एक विशेष और प्रशिक्षित कार्यबल के गठन की आवश्यकता महसूस की जाती रही है।
  • वर्तमान में रेलवे विभाग रणनीतिक और आर्थिक रूप से महत्त्वपूर्ण कई परियोजनाएँ चला रहा है और कोरस (CORAS) के शुरू होने से न केवल इन परियोजनाओं के संदर्भ में आने वाली चुनौतियों का निपटारा हो सकेगा बल्कि इसके माध्यम से रेलवे यात्रियों से संबंधित चुनौतीपूर्ण परिस्थितियों से निपटा भी जा सकेगा।
  • कोरस में शामिल कमांडो प्रतिष्ठित संस्थानों में प्रशिक्षित हैं और किसी भी अनिश्चित स्थिति का सामना करने में सक्षम हैं।

लक्ष्य:

  • विश्व स्तरीय क्षमताओं को विकसित करना ताकि क्षति, गड़बड़ी, ट्रेन परिचालन में व्यवधान, हमला/बंधक/अपहरण, संबंधित क्षेत्र में आपदा आदि परिस्थितियों में विशेष सहायता प्रदान की जा सके।
  • वर्गीकृत प्रतिक्रिया के सिद्धांत (Doctrine of Graded Response) को अपनाते हुए, भारतीय रेलवे और इसके उपयोगकर्त्ताओं को ठोस सुरक्षा प्रदान करने के लिये प्रभावी बल का उपयोग किया जा सके।

मुख्य विशेषताएँ:

  • इसके अंतर्गत RPF/RPSF से चुने गए अभिप्रेरित और इच्छुक युवा कर्मचारियों को ही शामिल किया जाएगा।
  • कोरस में अधिकतर कर्मी 30-35 वर्ष के बीच की औसत आयु के बीच होंगे जिसके कारण कोरस सदैव ही युवा जोश से पूर्ण रहेगा।
  • कोरस में शामिल होने के लिये उच्च स्तर का शारीरिक मानक निर्धारित किया गया है।
  • कोरस के कमांडो को वामपंथ (Left Wing Extremism-LWE)/उग्रवाद/आतंकवाद प्रभावित रेल क्षेत्रों में तैनात किया जाएगा।

स्रोत : पीआईबी


आंतरिक सुरक्षा

जम्मू-कश्मीर जन सुरक्षा अधिनियम

चर्चा में क्यों?

हाल ही में भारतीय प्रशासनिक सेवा (Indian Administrative Services-IAS) के एक पूर्व अधिकारी को जम्मू-कश्मीर जन सुरक्षा अधिनियम (J&K Public Safety Act-PSA) के तहत बंदी बनाया गया।

अधिनियम के बारे में

  • जम्मू और कश्मीर जन सुरक्षा अधिनियम को 8 अप्रैल, 1978 को जम्मू-कश्मीर के राज्यपाल से मंज़ूरी प्राप्त हुई थी।
  • इस अधिनियम को शेख अब्दुल्ला की सरकार ने इमारती लकड़ी की तस्करी को रोकने और तस्करों को "प्रचलन से बाहर" रखने के लिये एक सख्त कानून के रूप में प्रस्तुत किया था।
  • यह कानून सरकार को 16 वर्ष से अधिक उम्र के किसी भी व्यक्ति को मुकदमा चलाए बिना दो साल की अवधि हेतु बंदी बनाने की अनुमति देता है।
  • यदि राज्य सरकार को यह आभास हो कि किसी व्यक्ति के कृत्य से राज्य की सुरक्षा को खतरा है तो उसे 2 वर्षों तक प्रशासनिक हिरासत में रखा जा सकता है और यदि किसी व्यक्ति के कृत्य से सार्वजनिक व्यवस्था को बनाए रखने में कोई बाधा उत्पन्न होती है तो उसे 1 वर्ष की प्रशासनिक हिरासत में लिया जा सकता है।
  • PSA के तहत हिरासत के आदेश संभागीय आयुक्तों या ज़िला मजिस्ट्रेट द्वारा जारी किये जा सकते हैं।
  • अधिनियम की धारा 22 अधिनियम के तहत "अच्छे विश्वास" में की गई किसी भी कार्रवाई के लिये सुरक्षा प्रदान करती है।
  • इस अधिनियम के प्रावधानों के अनुसार हिरासत में लिये गए किसी भी व्यक्ति के खिलाफ कोई मुकदमा, अभियोजन या कोई अन्य कानूनी कार्यवाही नहीं की जाएगी।

अधिनियम से जुड़े मुद्दे

  • इसे अक्सर "बेरहम" (Draconian) कानून के रूप में जाना जाता है।
  • हालाँकि शुरुआत से ही कानून का व्यापक रूप से दुरुपयोग किया गया और वर्ष 1990 तक तत्कालीन सरकारों द्वारा राजनीतिक विरोधियों को हिरासत में लेने के लिये इसका उपयोग किया गया।
  • जुलाई 2016 में आतंकी बुरहान वानी के मारे जाने के बाद राज्य में व्यापक अशांति फैल गई थी, जिसके बाद सरकार ने अलगाववादियों पर नकेल कसने के लिये PSA को (विस्तार योग्य हिरासत अवधि के साथ) लागू किया।
  • अगस्त 2018 में राज्य के बाहर भी PSA के तहत व्यक्तियों को हिरासत में लेने की अनुमति देने के लिये अधिनियम में संशोधन किया गया था।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


विविध

Rapid Fire करेंट अफेयर्स (20 August)

  • 19 अगस्त को दुनियाभर में विश्व मानवतावादी दिवस या विश्व मानवता दिवस (World Humanitarian Day) का आयोजन किया जाता है। यह दिन उन लोगों की स्मृति में मनाया जाता है जिन्होंने विश्व स्तर पर मानवतावादी संकट में अपनी जान गंवाई या मानवीय उद्देश्यों के कारण दूसरों की सहायता हेतु अपने प्राणों की बाज़ी लगा दी।16 वर्ष पूर्व वर्ष 2003 में इराक की राजधानी बगदाद में इसी दिन संयुक्त राष्ट्र मुख्यालय पर हमला किया गया था, जिसमें 22 संयुक्त राष्ट्र कर्मी मारे गए थे। इसके बाद दिसंबर 2008 में संयुक्त राष्ट्र महासभा के 63वें सत्र में 19 अगस्त को विश्व मानवतावादी दिवस के रूप में नामित करने का निर्णय लिया गया था। यह दिन दुनियाभर में मानवीय ज़रूरतों पर ध्यान आकर्षित करने पर ध्यान केंद्रित करते हुए इन्हें पूरा करने में अंतर्राष्ट्रीय सहयोग के महत्त्व को दर्शाता है। वर्ष 2019 के लिये इस दिवस की थीम Women Humanitarians रखी गई है।
  • प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के सिंगल यूज प्लास्टिक के इस्तेमाल पर रोक लगाने के आह्वान के बाद केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय ने इस दिशा में काम शुरू कर दिया है। मंत्रालय की सबसे बड़ी चिंता शीतल पेय और मिनरल वाटर की बोतल, दूध की थैलियां और चिप्स जैसी चीज़ों की पैकिंग में प्लास्टिक के इस्तेमाल को रोकने की है। गौरतलब है कि दैनिक इस्तेमाल वाला प्लास्टिक बहुत कम बार रिसाइकल हो पाता है। जब लोगों में स्वयं ऐसे प्लास्टिक को इस्तेमाल न करने की इच्छा होगी तभी निर्माता कंपनियाँ वैकल्पिक पैकेजिंग पर विचार करेंगी। इसके लिये मंत्रालय व्यापक स्तर पर अभियान चलाने जा रहा है, जिसमें राज्य सरकारों से लेकर नगर निगमों के स्तर तक स्थानीय शासन की भागीदारी सुनिश्चित की जाएगी और स्वयंसेवी संस्थाओं की भी मदद ली जाएगी। इस अभियान का उद्देश्य गांधी जयंती से पहले सिंगल यूज प्लास्टिक का न्यूनतम इस्तेमाल किया जाना है। विदित हो कि कुछ राज्य सरकारों ने पहले ही इस प्रकार के प्लास्टिक पर प्रतिबंध लगा रखा है। सिक्किम देश का पहला राज्य था जिसने वर्ष 1998 में प्लास्टिक का इस्तेमाल पूरी तरह बंद कर दिया। कुछ समय बाद उसने प्लास्टिक की बोतल भी बेचना बंद कर दिया। तीन साल पहले हिमाचल प्रदेश ने भी प्लास्टिक की थैलियों के इस्तेमाल करने पर प्रतिबंध लगा दिया। पिछले साल महाराष्ट्र सरकार ने भी पूर्ण प्रतिबंध लगाने की घोषणा की थी, हालाँकि कुछ समय पहले उसने प्लास्टिक की बोतलों को कंपनियों द्वारा वापस खरीदने यानी बाई बैक की योजना के साथ बेचने का विकल्प खोल दिया। इनके अलावा जम्मू-कश्मीर, उत्तराखंड, उत्तर प्रदेश, पंजाब, हरियाणा, राजस्थान, कर्नाटक, छत्तीसगढ़, अरुणाचल प्रदेश, नगालैंड, त्रिपुरा और मध्य प्रदेश में सिंगल यूज़ प्लास्टिक प्रतिबंधित है।
  • उत्तराखंड में चारों धाम को जोड़ने वाली केंद्र सरकार की आल वेदर रोड परियोजना को सर्वोच्च न्यायालय ने मंज़ूरी दे दी है। लेकिन इस योजना के तहत रोकी गई अन्य परियोजनाओं पर काम अगले आदेश तक रुका रहेगा। इसके लिये पर्यावरण प्रभाव आकलन (EIA) समिति की मंज़ूरी लेनी होगी। बता दें कि चार धाम परियोजना का उद्देश्य सभी मौसम में इस पहाड़ी राज्य के चार पवित्र स्थलों- यमुनोत्री, गंगोत्री, केदारनाथ और बद्रीनाथ को जोड़ना है। इस परियोजना के पूरा हो जाने के बाद हर मौसम में चारधाम यात्रा की जा सकेगी। इसे चुनौती देने वाली याचिका में कहा गया है कि यदि इस परियोजना को मंज़ूरी दी जाती है तो पर्यावरण को 10 पनबिजली परियोजनाओं द्वारा होने वाले नुकसान के बराबर क्षति होगी। NGT ने पिछले साल 26 सितंबर को परियोजना पर निगरानी रखने के लिये एक समिति का गठन किया था। यह समिति परियोजना के पर्यावरण प्रबंधन योजना के क्रियान्वयन की देखरेख के लिये बनाई गई थी। गौरतलब है कि इस परियोजना के तहत 900 किलोमीटर लंबी सड़कों का निर्माण हो रहा है। अभी तक 400 किमी. सड़कों का चौड़ीकरण किया जा चुका है। एक अनुमान के मुताबिक इसके लिये अभी तक 25 हजार पेड़ों की कटाई हो चुकी है, जिससे पर्यावरणविद चिंतित हैं।
  • पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय ने इसी वर्ष 25 जून को राष्ट्रीय संसाधन दक्षता नीति का मसौदा जारी किया था तथा नागरिकों सहित सभी भागीदारो से टिप्पणी और सुझाव आमंत्रित किये थे, जिन्हें अब जारी कर दिया गया है। 2.6 ट्रिलियन डॉलर के सकल घरेलू उत्पाद के साथ भारत आज विश्व में सबसे तेज़ी से बढ़ने वाली अर्थव्यवस्थाओं में से एक है। भारत में वर्ष 1970 में जहाँ 1.18 बिलियन टन की सामान खपत होती थी, वहीं वर्ष 2015 में यह छह गुना बढ़कर 7 बिलियन टन के स्तर पर पहुँच गई। सामान की खपत, बढ़ती हुई जनसंख्या, तेज़ी से हो रहे शहरीकरण और बढ़ती हुई आकांक्षाओ के चलते इसके ओर बढ़ने की उम्मीद है। संसाधन क्षमता में वृद्धि और अतिरिक्त कच्चे सामान का प्रयोग वृद्धि, संसाधन बाधा और पर्यावरण के प्रति देखभाल संबंधी भविष्य की समस्याओ का निवारण करेगा।
  • भारत ने संयुक्त राष्ट्र के निवासी समन्वय प्रणाली के लिये विशेष उद्देश्य न्यास कोष में 10 लाख डॉलर का योगदान दिया है। इस वैश्विक निकाय का यह कोष सभी भागीदारों के योगदान तथा वित्तीय लेन-देन का पारदर्शी एवं प्रभावी तरीके से लेखा-जोखा रखने के लिये बनाया गया है। इसके अलावा भारत संयुक्त राष्ट्र के अभियानों के लिये शांतिरक्षक और पुलिस बल भी मुहैया कराता है और इस मद में संयुक्त राष्ट्र पर भारत का 3.8 करोड़ रुपये बकाया है। यह संयुक्त राष्ट्र के वार्षिक आकलन का एक तिहाई है। भुगतान में देरी से संयुक्त राष्ट्र के शांति रक्षा अभियानों पर भी असर पड़ता है।

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