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डेली न्यूज़

  • 21 Aug, 2019
  • 55 min read
शासन व्यवस्था

ई-शासन पर शिलांग घोषणा पत्र

चर्चा में क्यों?

8-9 अगस्‍त, 2019 को शिलांग (मेघालय) में ई-शासन पर 22वें राष्‍ट्रीय सम्‍मेलन का आयोजन किया गया। इस सम्मेलन के दौरान ई-शासन पर शिलांग घोषणा-पत्र (Shillong Declaration) को अंगीकार किया गया।

ई-शासन पर राष्‍ट्रीय सम्‍मेलन

  • ई-शासन पर राष्ट्रीय सम्मलेन का आयोजन इलेक्ट्रॉनिक और सूचना प्राद्योगिकी मंत्रालय (Ministry of Electronics & Information Technology- MeitY), भारत सरकार (Government of India) तथा मेघालय सरकार (State Government of Meghalaya) के सहयोग से प्रशासनिक सुधार और लोक शिकायत विभाग (Department of Administrative Reforms & Public Grievances-DARPG) ने किया।
  • ई-शासन पर 22वें राष्‍ट्रीय सम्‍मेलन का विषय था– ‘डिजिटल इंडिया: सफलता से उत्‍कृष्‍टता’ (Digital India: Success to Excellence)

सम्मेलन के दौरान यह संकल्प लिया गया कि-

भारत सरकार और राज्य सरकारें सरकारी सेवाओं के साथ नागरिकों के अनुभव को बेहतर बनाने के लिये निम्नलिखित विषयों पर सहयोग करेंगी:

  1. भारत सरकार और राज्य सरकार द्वारा भारत एंटरप्राइज़ आर्किटेक्चर (India Enterprise Architecture-IndEA) का समय पर कार्यान्वयन कर सरकारी सेवाओं के साथ नागरिकों के अनुभव को बेहतर बनाना और देश भर में ई-गवर्नमेंट एप्लीकेशनों के बीच अंतःसक्रियता (Interoperability) और एकीकरण (Integration) के लिये एकल साइन-ऑन को बढ़ावा देकर सरकारी सेवाओं के साथ नागरिकों के अनुभव में सुधार करना।IndEa
  2. उत्तर पूर्वी (पूर्वोत्तर) राज्यों में कनेक्टिविटी को बेहतर बनाने के लिये कदम उठाते हुए, ज़मीनी स्तर पर दूरसंचार कनेक्टिविटी के मुद्दों को संबोधित करके और व्यापक दूरसंचार विकास योजना तैयार करना और उसे लागू करना।
  3. सफल राज्य स्तरीय ई-गवर्नेंस परियोजनाओं और डोमेन-आधारित परियोजनाओं (Domain-Based Projects) के एकीकरण को ध्यान में रखते हुए उन्हें सामान्य एप्लिकेशन सॉफ्वेयर (Common Application Software) के साथ स्थानांतरित करना।
  4. सेवा प्रदाता से सेवा सक्षमता के लिये सरकार की भूमिका में एक बड़ा बदलाव करके जीवन सुगमता (Ease of Living) और कारोबार में सुगमता (Ease of Doing Business) सुनिश्चित करना।
  5. पूर्वोत्तर राज्यों में इलेक्ट्रॉनिक्स सेक्टर स्किल काउंसिल की गतिविधियों को बढ़ाने के लिये कदम उठाना और शिलांग में एक इलेक्ट्रॉनिक्स कौशल केंद्र (Electronics Skill Center) खोलने की संभावना का पता लगाना।
  6. ई-ऑफिस के उपयोग को बढ़ावा देना और पूर्वोत्तर राज्यों के राज्य सचिवालयों और ज़िला स्तर के कार्यालयों में पेपर के कम प्रयोग को बढ़ावा देना।
  7. पूर्वोत्तर भारत में नागरिकों के अनुभव को बेहतर बनाने के लिये ई-सेवाओं के वितरण की गुणवत्ता में सुधार करना।
  8. भारत को वैश्विक क्लाउड हब के रूप में विकसित करना और डिफ़ॉल्ट रूप से क्लाउड पर सरकारी अनुप्रयोगों एवं डेटाबेस के विकास की सुविधा प्रदान करना।
  9. ई-गवर्नेंस का समाधान खोजने के लिये उभरती हुई तकनीकों को अपनाना।
  10. स्टार्टअप और स्मार्ट उद्यमिता (Smart Entrepreneurship) के माध्यम से स्मार्ट गाँवों एवं स्मार्ट शहरों पर ध्यान केंद्रित करने के साथ डिजिटल इंडिया परियोजनाओं (Digital India Projects) को बढ़ावा देना।

ई-शासन

ई-शासन में ‘ई’ का तात्पर्य इलेक्ट्रॉनिक से लगाया जाता है। सामान्य रूप से ई-शासन का अर्थ है सरकारी क्रियाकलापों एवं परियोजनाओं आदि में सूचना संचार तकनीकी (ICT) का प्रयोग करते हुए लोक-कल्याणकारी राज्य के लक्ष्यों को प्राप्त करना।

ई-शासन के क्षेत्र में भारत सरकार की पहल

  • ई-कार्यालय (e-office)
  • वीज़ा एवं विदेशी रजिस्ट्रेशन एवं ट्रैकिंग (VFRT)
  • UID, पेंशन
  • बैंकिंग, पोस्ट ऑफिस आदि का कंप्यूटरीकरण
  • अपराध एवं अपराधियों से संबंधित नेटवर्क की मॉनीटरिंग
  • सार्वजनिक वितरण प्रणाली में ICT का प्रयोग
  • प्रत्यक्ष लाभ स्थानांतरण योजना (DBT) का प्रयोग
  • ‘डिजिटल इंडिया’ नामक कार्यक्रम से लोग की ई-साक्षरता को बढ़ावा
  • एशिया के देशों के साथ तुलनात्मक अध्ययन के अनुसार भारत को ई-तकनीक के क्षेत्र में निवेश की आवश्यकता है।

ई-गवर्नेंस को लागू करने संबंधी तकनीकी अवसंरचना, महत्त्वपूर्ण मुद्दों की पहचान, कुशल मानव संसाधन एवं ई-साक्षर नागरिकों की आवश्यकता पड़ती है। इसके लिये आवश्यक है कि डिजिटल असमानता को दूर करते हुए सभी को समान सूचना प्लेटफॉर्म उपलब्ध कराए जाएं।

स्रोत: PIB


अंतर्राष्ट्रीय संबंध

अमेरिका की ग्रीन कार्ड नीति में परिवर्तन

चर्चा में क्यों?

हाल ही में अमेरिका ने अपनी ग्रीन कार्ड नीति (Green Card Policy) में बड़ा बदलाव करते हुए ‘पब्लिक चार्ज’ (Public Charge) के अर्थ को विस्तृत करने का फैसला लिया है।

  • अमेरिका के नए नियम 15 अक्तूबर, 2019 को आधिकारिक रूप से लागू हो जाएंगे, जिसके बाद यह आशा की जा रही है कि अमेरिका का कानूनी आप्रवासन (Legal Immigration) काफी हद तक कम हो जाएगा।

क्या कहती है मौजूदा परिभाषा?

  • यूनाइटेड स्टेट सिटीज़नशिप एंड इमीग्रेशन सर्विसेज़ (United States Citizenship and Immigration Services-USCIS) की आधिकारिक वेबसाइट पर दी गई परिभाषा के अनुसार, “अयोग्यता निर्धारण के उद्देश्य से ‘पब्लिक चार्ज’ का अर्थ उस व्यक्ति से है जो निर्वाह के लिये मुख्य रूप से सरकार पर निर्भर रहने की संभावना रखता है”।
  • उपरोक्त परिभाषा के अंतर्गत आने वाले कार्यक्रमों में शामिल हैं - पूरक सुरक्षा आय (Supplemental Security Income-SSI), ज़रूरतमंद परिवारों के लिये अस्थायी सहायता (Temporary Assistance for Needy Families-TANF), नकद सहायता, राज्य और स्थानीय सहायता कार्यक्रम और लंबे अवधि के देखभाल कार्यक्रम।
  • सामान्यतः पब्लिक चार्ज की परिभाषा में ‘गैर-नकद लाभ’ (Non Cash Benefits) जैसे - सार्वजनिक विद्यालय, बाल-संरक्षण सेवाएँ, टीकाकरण के लिये सार्वजनिक सहायता, आपातकालीन चिकित्सा सेवाएँ, बच्चों के लिये स्वास्थ्य बीमा कार्यक्रम और नौकरी प्रशिक्षण कार्यक्रम आदि को शामिल नहीं किया जाता है।

क्या होता है यदि एक आप्रवासी पब्लिक चार्ज की परिभाषा में आता है?

  • यदि USCIS के अधिकारियों को लगता है कि कोई व्यक्ति इस परिभाषा के अंतर्गत आ रहा है और यह संभावना है कि वह व्यक्ति जीवन निर्वाह के लिये मुख्य रूप से सरकार पर निर्भर रहेगा तो USCIS के अधिकारी उसे ग्रीन कार्ड देने से इनकार कर सकते हैं।
  • ज्ञातव्य है कि इस आधार पर इनकार करने के लिये आयु, स्वास्थ्य, वित्तीय स्थिति, शिक्षा और कौशल जैसे कारकों पर ध्यान दिया जाता है।
  • पब्लिक चार्ज की अवधारणा सिर्फ ग्रीन कार्ड के संदर्भ में लागू होती है, न कि नागरिकता देने के संदर्भ में, क्योंकि नागरिकता देने के मामले में ग्रीन कार्ड पहले से ही मौजूद होता है।

क्या परिवर्तन किया गया है परिभाषा में?

  • नए नियम के तहत पब्लिक चार्ज की परिभाषा को और अधिक विस्तृत किया गया है तथा इसमें कई अन्य शर्तों को भी जोड़ा गया है।
  • प्रमुख परिवर्तन:
    • पब्लिक चार्ज की परिभाषा में और अधिक कल्याण योजनाओं को जोड़ा गया है।
    • आवेदक द्वारा पहले से लिये गए लाभों पर भी ध्यान दिया जाएगा।
    • इसके अलावा परिवार और व्यक्तिगत आय के मापदंडों को भी परिवर्तित किया गया है।

अमेरिका के इस कदम का प्रभाव

  • इस कदम के आलोचकों ने अमेरिकी सरकार पर आर्थिक और सामाजिक आधार पर भेदभाव करने का आरोप लगाया है। आलोचकों का कहना है कि इस परिवर्तन से अमेरिकी सरकार विकासशील और पिछड़े देशों के नागरिकों को रोकने का प्रयास कर रही है, वहीं दूसरी ओर इस नीति से विकसित देशों के नागरिकों को फायदा पहुँचाने का भी प्रयास किया जा रहा है।
  • इस नियम के संयुक्त राज्य अमेरिका पर संभावित दीर्घकालिक प्रभाव के कारण भी इसकी आलोचना की जा रही है, क्योंकि देश में पहले से रह रहे कानूनी आप्रवासी अब आवश्यक सेवाओं का लाभ उठाने से डरेंगे।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


भारतीय अर्थव्यवस्था

डिबेंचर रिडेम्पशन रिज़र्व

चर्चा में क्यों?

सरकार ने गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों, हाउसिंग फाइनेंस कंपनियों और सूचीबद्ध फर्मों द्वारा डिबेंचर जारी करने के लिये डिबेंचर रिडेम्पशन रिज़र्व (Debenture Redemption Reserve- DRR) के नियमों में परिवर्तन किया है।

प्रमुख बिंदु:

  • कंपनी कानूनों के तहत धन जुटाने वाली संस्थाओं को डिबेंचर रिडेम्पशन रिज़र्व का निर्माण करना होता है।
  • कॉर्पोरेट मामलों के मंत्रालय ने सूचीबद्ध कंपनियों, गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों और हाउसिंग फाइनेंस कंपनियों की 25% DRR आवश्यकता को हटा दिया है।
  • ये नियम सरकारी संस्थानों के साथ निजी संस्थानों पर भी लागू होगें।
  • गैर-सूचीबद्ध कंपनियों के मामले में DRR आवश्यकता को बकाया डिबेंचर के 25% से घटाकर 10% कर दिया गया है।
  • सरकार इस प्रकार के प्रावधानों के माध्यम से कंपनियों द्वारा जुटाई जा रही पूंजी की लागत को कम करने का प्रयास कर रही है।

डिबेंचर रिडेम्पशन रिज़र्व

(Debenture Redemption Reserve- DRR):

  • डिबेंचर जारी करने वाले निगम को कंपनी के डिफॉल्ट होने की संभावना से निवेशकों को बचाने हेतु DRR को बनाए रखना पड़ता है।
  • यह प्रावधान भारतीय कंपनी अधिनियम 1956 में एक संशोधन के माध्यम से वर्ष 2000 से शुरू किया गया था।
  • यह प्रावधान निवेशकों को सुरक्षा प्रदान करता है, क्योंकि डिबेंचर किसी परिसंपत्ति या संपार्श्विक द्वारा समर्थित नहीं होते हैं।
  • वर्तमान में यदि कोई कंपनी 10 मिलियन डॉलर के डिबेंचर जारी करती है तो उसे उन डिबेंचर की परिपक्वता अवधि तक कुल जारी डिबेंचर यानी 10 मिलियन डॉलर के 25% का DRR बनाए रखना होता था।
  • यदि कंपनी इस प्रकार का रिज़र्व नहीं बनाए रख पाती है तो उसे डिबेंचर धारकों को 2% की पेनाल्टी देनी होती थी।
  • इस प्रकार के प्रावधान की वजह से कंपनी की लागत बढ़ जाती थी, साथ ही इससे भारत में व्यापार करने की सुगमता भी प्रभावित हो रही थी।
  • इस प्रकार की नीतियों के माध्यम से सरकार का मुख्य उद्देश्य ईज़ ऑफ़ डूइंग बिज़नेस रैंकिंग में बेहतर प्रदर्शन करना है।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस & द हिंदू


जैव विविधता और पर्यावरण

टार्डिग्रेड

चर्चा में क्यों?

इज़राइल के अंतरिक्षयान बेरेशीट (Beresheet) ने चंद्रमा पर उतरने का प्रयास किया, लेकिन वह सतह पर दुर्घटनाग्रस्त हो गया। इस अंतरिक्षयान के साथ टार्डिग्रेड (Tardigrade) नामक जीवित जीव भी भेजे गए थे।

बेरेशीट (Beresheet) अंतरिक्षयान को स्पेस IL और इज़राइल एयरोस्पेस द्वारा बनाया गया था। यह इज़राइल का पहला निजी वित्तपोषित मिशन था, जिसका उद्देश्य चंद्रमा पर अध्ययन करना था।

प्रमुख बिंदु:

  • टार्डिग्रेड जीवों को पानी के भालू के रूप में भी जाना जाता है, यह जीव पृथ्वी पर उपलब्ध सबसे जटिल संरचना वाले लचीले जीवों में से एक हैं।

Tardigrade

  • प्रश्न यह है कि क्या बेरेशीट यान के दुर्घटनाग्रस्त होने के बाद भी ये टार्डिग्रेड बच गए और चंद्रमा पर रह रहे हैं ?
  • टार्डिग्रेड को केवल माइक्रोस्कोप के माध्यम से ही देखा जा सकता है क्योंकि यह मात्र आधा मिलीमीटर लंबा है।
  • यह एक जलीय जीव है, लेकिन यह भूमि पर भी निवास कर सकता है और वर्ष 2008 के एक अध्ययन में पाया गया कि यह बाहरी अंतरिक्ष के ठंडे वैक्यूम में जीवित रह सकता है।
  • वर्ष 2017 में किये गए एक अन्य अध्ययन में बताया गया कि क्षुद्रग्रहों के टकराने, सुपरनोवा विस्फोट और गामा-किरण के प्रभाव जैसी बड़ी घटनाओं के बाद भी पृथ्वी पर इसके जीवित रहने की संभावना है। टार्डिग्रेड अत्यधिक गर्म और ठंडे तापमान को सहन कर सकता है।
  • टार्डिग्रेड अपने शरीर से पानी को बाहर निकालते हैं और अपनी कोशिकाओं की रक्षा के लिए एक तंत्र स्थापित करते हैं तथा बाद में पानी में रखे जाने पर फिर से जीवित हो सकते हैं।
  • चंद्रमा पर तरल रूप में पानी के कोई साक्ष्य नहीं है, केवल बर्फ की ही संभावना है। तरल पानी के अभाव में यह संभव है कि टार्डिग्रेड्स अपनी वर्तमान स्थिति में ही रहें।
  • टार्डिग्रेड आठ पैरों वाला होता है और भालू की तरह दिखता है, इसके शरीर में चार खंड होते हैं । टार्डिग्रेड सामान्यतः तरल पदार्थ खाता है।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


भारतीय विरासत और संस्कृति

पर्यटन मंत्रियों का राष्ट्रीय सम्मेलन

चर्चा में क्यों?

हाल ही में केंद्रीय पर्यटन मंत्रालय द्वारा राज्य के पर्यटन मंत्रियों के एक दिवसीय राष्ट्रीय सम्‍मेलन का आयोजन किया गया।

प्रमुख बिंदु:

  • इस सम्‍मेलन में 19 राज्‍यों के पर्यटन म‍ंत्रियों, पर्यटन सचिवों और राज्‍यों तथा केंद्रशासित प्रदेशों के वरिष्‍ठ अधिकारियों ने भाग लिया और पर्यटन क्षेत्र के विकास एवं संवर्द्धन से जुड़े विभिन्न मुद्दों पर विचार-विमर्श किया।
  • सम्‍मेलन के दौरान केंद्रीय पर्यटन मंत्री द्वारा अतुल्य भारत पर्यटक सुविधा प्रदाता प्रमाणपत्र (Incredible India Tourist Facilitator Certification-IITFC) पोर्टल लॉन्‍च भी किया गया।
    • IITFC कार्यक्रम देश के नागरिकों के लिये भारत सरकार के पर्यटन मंत्रालय की एक डिजिटल पहल है, ताकि देश के नागरिक तेज़ी से विकसित हो रहे पर्यटन उद्योग का हिस्‍सा बन सकें।
    • यह एक ऑनलाइन कार्यक्रम है जिसके तहत कोई भी व्‍यक्ति पर्यटन स्थल, समय और सुविधा आदि की जानकारी प्राप्त कर सकता है।
  • इसके अलावा सम्मेलन में ‘अतुल्‍य भारत’ (Incredible India) के नए पोर्टल का हिंदी वर्ज़न भी लॉन्‍च किया गया और साथ ही यह घोषणा भी की गई कि जल्द ही इस पोर्टल के अरबी (Arabic), चीनी (Chinese) और स्‍पैनिश (Spanish) वर्ज़न भी लॉन्च किये जाएंगे।
    • यह एक ऑनलाइन पोर्टल है जिससे भारत में पर्यटन और गंतव्य स्थानों के बारे में समस्त जानकारी एक ही स्थान पर उपलब्ध कराई गई है।

पर्यटन का महत्त्व:

  • विदित हो कि पर्यटन विश्व के सबसे बड़े उद्योगों में से एक है। इसके विकास का अनुमान केवल इस तथ्य से ही लगाया जा सकता है कि विश्व भर में पर्यटकों की संख्या वर्ष 1950 के 2.5 करोड़ की तुलना में वर्ष 2016 में 123 करोड़ हो गई।
  • भारत में भी अधिकांश जनसंख्या की जीविका का स्रोत पर्यटन उद्योग ही है। वर्ष 2016 में जीडीपी व देश के कुल रोज़गार में पर्यटन का योगदान क्रमशः 9.6% व 9.3% था।
  • पर्यटन उद्योग का स्थायी रोज़गार के अवसर उपलब्ध कराने और गरीबी निवारण में महत्त्वपूर्ण योगदान है।

पर्यटन के विकास हेतु उपाय:

  • पर्यटकों की संख्‍या बढ़ाने के लिये केंद्र और राज्‍यों के बीच बेहतर सामंजस्‍य सुनिश्चित करना आवश्यक है।
  • विदेशी पर्यटकों के समक्ष भारत की जो छवि बनी हुई है उसे भी बदलने की ज़रूरत है।
  • भारत से जुड़ी किसी भी नकारात्‍मक धारणा को समाप्‍त करने के लिये राज्य व केंद्र को मिल-जुलकर काम करना होगा।
  • सभी राज्‍यों और केंद्रशासित प्रदेशों को भारतीय पुरातत्त्व सर्वेक्षण (Archaeological Survey of India-ASI) की सहायता से अपने धरोहर स्‍थलों के लिये प्रस्‍ताव बनाते समय यूनेस्‍को (UNESCO) के मानकों का पालन सुनिश्चित करना चाहिये।
  • अधिक-से-अधिक पर्यटकों को आकर्षित करने के लिये एडवेंचर टूरिज्म (Adventure Tourism) पर भी फोकस किया जाना चाहिये।

गौरतलब है कि देश में पर्यटन, मुख्यतः रात्रि‍कालीन पर्यटन को बढ़ावा देने के उद्देश्य से संस्‍कृति मंत्रालय ने देश भर में 10 ऐतिहासिक स्‍मारकों को आगंतुकों के लिये रात्रि 9 बजे तक खुला रखने का निर्णय लिया था।

स्रोत: पीआईबी


जैव विविधता और पर्यावरण

राष्ट्रीय संसाधन दक्षता नीति

चर्चा में क्यों?

पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय (Ministry of Environment, Forest and Climate Change) ने राष्ट्रीय संसाधन दक्षता नीति (National Resource Efficiency Policy ) का प्रारूप जारी किया है।

प्रमुख बिंदु:

  • भारत की अर्थव्यवस्था 2.6 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर के साथ सबसे तेज़ गति से बढ़ने वाली अर्थव्यवस्थाओं में से एक है।
  • भारतीय अर्थव्यवस्था में प्राकृतिक संसाधनों की खपत वर्ष 1970 में 1.18 बिलियन टन से बढ़कर वर्ष 2015 में 7 बिलियन टन हो गई है।
  • बढ़ती जनसंख्या और शहरीकरण के साथ ही बढ़ती आकांक्षाओं ने भी संसाधनों की खपत को और बढ़ा दिया है ।
  • इसलिये संसाधन दक्षता को बढ़ावा देने के साथ संधारणीय विकास सुनिश्चित करने के लिए राष्ट्रीय संसाधन दक्षता नीति बनाई जा रही है।
  • पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय ने प्रारूप नीति पर सार्वजनिक / निजी संगठनों, विशेषज्ञों और नागरिकों के सुझावों को आमंत्रित किया है।
  • राष्ट्रीय संसाधन दक्षता नीति का उद्देश्य आर्थिक विकास के साथ-साथ संसाधन सुरक्षा के माध्यम सेपारिस्थितिकी तंत्र को समृद्ध और जैव विविधता को संरक्षित करना है।
  • राष्ट्रीय संसाधन दक्षता नीति के सिद्धांत:
    • प्राथमिक संसाधनों और पारिस्थितिकी तंत्र के साथ संतुलन के आधार पर सतत् विकास लक्ष्यों की प्राप्ति।
    • संसाधनों के कम प्रयोग से अधिक विकास का प्रयास।
    • संसाधनों का न्यूनतम दुरुपयोग।
    • संसाधनों के बेहतर प्रयोग के माध्यम से पर्यावरण को सुरक्षा प्रदान करना साथ ही ज्यादा रोजगार के व्यापार मॉडल का विकसित करना।

राष्ट्रीय संसाधन दक्षता नीति, देश के सभी क्षेत्रों में जैविक और अजैविक संसाधनों की दक्षता के लिये एक व्यापक सहयोगात्मक ढाँचा प्रदान करेगी ताकि आर्थिक संवृद्धि के साथ-साथ पर्यावरण को सुरक्षा प्रदान भी प्रदान किया जा सके।

स्रोत: PIB


सामाजिक न्याय

डॉक्टरों के लिये अनिवार्य ग्रामीण सेवा

चर्चा में क्यों?

उच्चतम न्यायालय (SC) ने केंद्र सरकार और भारतीय चिकित्सा परिषद को सुझाव दिया है कि सरकारी संस्थानों में प्रशिक्षित डॉक्टरों द्वारा ग्रामीण क्षेत्रों में सेवा (कुछ समय तक) को अनिवार्य किया जाए।

पृष्ठभूमि

  • उल्लेखनीय है कि कई राज्यों ने सरकारी संस्थानों में प्रशिक्षण के पश्चात् ग्रामीण क्षेत्रों में सेवा देने की अनिवार्य शर्त (बांड के रूप में) लागू की थी। राज्य सरकारों के इन नियमों को एसोसिएशन ऑफ मेडिकल सुपर स्पेशियलिटी एस्पिरेंट्स एंड रेजिडेंट्स (Association of Medical Super Speciality Aspirants and Residents) और अन्य ने चुनौती दी थी।
  • डॉक्टरों ने यह शिकायत की थी कि ऐसी शर्तें उनके मानवाधिकारों का हनन करती हैं और साथ ही यह बंधुआ मज़दूरी (Forced Labour) जैसा प्रतीत होता है जो कि संवैधानिक अधिकारों (Constitutional Rights) का भी उल्लंघन है।
  • डॉक्टरों का यह भी तर्क था कि ये शर्तें उनके करियर में बाधा भी उत्पन्न करती हैं।

उच्चतम न्यायालय का रुख

  • उच्चतम न्यायालय ने फैसला सुनाया कि देशभर के डॉक्टर जो परा-स्नातक और सुपर स्पेशियलिटी (Super-speciality) मेडिकल कोर्स में दाखिला लेंगे वह उनके द्वारा निष्पादित अनिवार्य बॉण्ड (प्रवेश के समय स्वीकृत) से बंधे होंगे।
  • उच्चतम न्यायालय ने उल्लेख किया कि परा-स्नातक और सुपर- स्पेशियलिटी पाठ्यक्रमों के साथ मेडिकल कॉलेजों को चलाने के लिये विशाल बुनियादी ढाँचे के विकास तथा रखरखाव हेतु वित्त की आवश्यकता पड़ती है, जबकि छात्रों से ली जाने वाली फीस निजी मेडिकल कॉलेजों की तुलना में बहुत कम है। इसके अलावा इन डॉक्टरों को उचित वेतन भी दिया जाता है।
  • अनिवार्य सेवा सार्वजनिक हित में है और समाज के वंचित वर्गों के लिये लाभकारी है, शीर्ष अदालत ने विभिन्न राज्य सरकारों की नीति के पक्ष में फैसला सुनाया, जिसमें परा-स्नातक और सुपर स्पेशियलिटी पाठ्यक्रमों में प्रवेश से पहले डॉक्टरों द्वारा अनिवार्य बॉण्ड निष्पादित किया जाना है।
  • अपीलकर्त्ताओं ने दावा किया कि भारत के संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत गारंटी-कृत उनके अधिकारों का हनन है।
  • उच्चतम न्यायालय ने इस तर्क को इस आधार पर खारिज कर दिया कि कुछ लोगों की गरिमा को सामुदायिक गरिमा से संतुलित करते हुए, तराजू को सामुदायिक गरिमा के पक्ष में झुकना चाहिये।
  • शहरी क्षेत्रों में प्रति 100,000 लोगों के लिये 176 डॉक्टर हैं जबकि ग्रामीण क्षेत्रों में 100,000 लोगों के लिये आठ से भी कम डॉक्टर उपलब्ध हैं और हर साल भारत में 269 निजी और सरकारी मेडिकल कॉलेजों से लगभग 31,000 डॉक्टर स्नातक करते हैं।
  • आंध्र प्रदेश, गोवा, गुजरात, हिमाचल प्रदेश, कर्नाटक, केरल, महाराष्ट्र, ओडिशा, राजस्थान, तमिलनाडु, तेलंगाना और पश्चिम बंगाल जैसे राज्यों ने इन प्रावधानों को लागू किया है।

अनिवार्य बॉण्ड (Compulsory Bonds):

  • यह डॉक्टरों को निर्धारित शर्तों के साथ अपने राज्यों में एक निश्चित अवधि के लिये, ग्रामीण क्षेत्रों में सेवा करने के लिये बाध्य करता है।
  • डॉक्टरों की अंक सूची, प्रमाण पत्र और अन्य दस्तावेज़ भी आमतौर पर राज्य के अधिकारियों द्वारा विशेष पाठ्यक्रम के पूरा होने के बाद रख लिये जाते हैं।

अनिवार्य बॉण्ड की आवश्यकता

  • लोगों को स्वास्थ्य सेवा प्रदान करने की आवश्यकता है किंतु राज्यों में विशेषज्ञों की कमी के चलते सरकारी सहायता के लाभार्थी उन डॉक्टरों की सेवाओं का उपयोग नहीं कर पाते जिनके प्रशिक्षण में सरकार ने अपना योगदान दिया है।
  • राज्य सरकारों ने भारत के संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत समाज के वंचित वर्गों के मौलिक अधिकारों की रक्षा के लिये अनिवार्य सेवा बॉण्ड पेश किया है।

स्रोत: TOI


जैव विविधता और पर्यावरण

भारत में घरेलू वायु प्रदूषण की समस्या

चर्चा में क्यों?

कोलैबोरेटिव क्लीन एयर पॉलिसी सेंटर (Collaborative Clean Air Policy Centre) द्वारा प्रकाशित एक अध्ययन में कहा गया है कि भारत में वायु प्रदूषण का सबसे प्रमुख कारण घरों में ठोस ईंधन को जलाना है।

  • ‘आइडिया ऑफ इंडिया’ (Ideas for India) नामक एक वेबसाइट पर प्रकाशित अध्ययन के मुताबिक, ठोस ईंधन जैसे - लकड़ी, कोयला आदि के प्रयोग से घर के सदस्यों के स्वास्थ्य पर बुरा असर पड़ता है और यह भारत में वायु प्रदूषण के लिये 22 प्रतिशत से 52 प्रतिशत तक ज़िम्मेदार है।

ठोस ईंधन के उपयोग से क्यों बचना चाहिये?

  • लकड़ी, पशुओं का गोबर और कृषि अपशिष्ट कुछ ऐसे ईंधन हैं जो आमतौर पर भारतीय घरों में खाना पकाने, प्रकाश और हीटिंग आदि के लिये ऊर्जा उत्पन्न करने के साधन के रूप में उपयोग किये जाते हैं।
  • इस तरह के ठोस ईंधनों के जलने से पैदा होने वाले कई प्रदूषकों में से एक पार्टिकुलेट मैटर (Particulate Matter-PM) है।

PM का आशय उन कणों या छोटी बूंदों से होता है जिनका व्यास 2.5 माइक्रोमीटर (0.000001 मीटर) या उससे कम होता है और इसलिये इसे PM2.5 के नाम से भी जाना जाता है।

  • इस तरह के कण श्वसन तंत्र में गहराई तक प्रवेश कर सकते हैं और उनके संपर्क में आने से श्वसन एवं हृदय संबंधी रोग पैदा हो सकते हैं।

घरेलू वायु प्रदूषण क्या है और यह कितना खतरनाक है?

  • घरों में ठोस ईंधन के जलने से उत्पन्न PM2.5 का उत्सर्जन घरेलू वायु प्रदूषण (Household Air Pollution-HAP) कहलाता है।
  • उपरोक्त अध्ययन में यह दावा किया गया है कि भारत में हर साल लगभग 800,000 लोगों की मृत्यु सिर्फ और सिर्फ HAP के कारण होती है।
  • कोयले के उपयोग से समय पूर्व होने वाली मृत्यु दर की तुलना में HAP के उपयोग से समय पूर्व होने वाली मृत्यु दर 58 प्रतिशत अधिक है। साथ ही परिवहन से होने वाली मृत्यु दर से यह 1056 प्रतिशत अधिक है।
  • अतः उपरोक्त तथ्यों के आधार पर कहा जा सकता है कि घरेलू वायु प्रदूषण भारत में चिंता का एक बड़ा विषय है और इस पर जल्द-से-जल्द ध्यान दिया जाना चाहिये ताकि इसके इसके कारण होने वाली मौतों की संख्या को कम किया जा सके।

कितने लोग उपयोग करते हैं ठोस ईंधन?

  • आँकड़ों के अनुसार, बिहार, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, उड़ीसा, झारखंड, राजस्थान, छत्तीसगढ़ और असम जैसे राज्यों में लगभग 72.1 प्रतिशत आबादी रोज़ाना ठोस ईंधन का उपयोग करती है।
  • विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार, लगभग 3 बिलियन लोग खाना पकाने और सर्दियों में अपने घरों को गर्म रखने के लिये पारंपरिक स्टोव अथवा चूल्हे में ठोस ईंधन (लकड़ी, लकड़ी का कोयला, कोयला, गोबर, फसल अपशिष्ट) का उपयोग करते हैं।

अध्ययन में दिये गए सुझाव

  • अध्ययन के अनुसार, HAP के कारण होने वाली हानि से निपटने के लिये तत्काल कार्रवाई की आवश्यकता है।
  • इससे निपटने के लिये सरकार को घरों में उपयोग के लिए LPG को बढ़ावा देना चाहिये एवं प्रधानमंत्री उज्ज्वला योजना जैसी अन्य योजनाओं को और अधिक प्रोत्साहित करना चाहिये।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी

टीबी के उपचार हेतु: नई एंटी-ट्यूबरकुलोसिस दवा

संदर्भ

हाल ही में US FDA द्वारा एंटी-ट्यूबरकुलोसिस ड्रग प्रीटोमेनीड (anti-tuberculosis drug pretomanid) को अनुमोदित किया गया। यह दवा प्रतिरोधी टीबी (XDR-TB) से पीड़ित लोगों के इलाज के लिये एक क्रांतिकारी कदम साबित होगा।

टीबी का परिदृश्य

विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के अनुसार, वर्ष 2017 में दुनिया भर में अनुमानित 4.5 लाख लोग MDR-TB (Multidrug-Resistant TB) से (भारत में इनकी संख्या 24% थी) तथा लगभग 37,500 लोग XDR-TB से ग्रसित थे।

नई दवा की पृष्ठभूमि

  • प्रीटोमेनीड (Pretomanid), पिछले 40 वर्षों में FDA द्वारा अनुमोदित की जाने वाली एक मात्र दवा है।
  • इसमें तीन दवाएँ बेडैकिलिन (Bedaquiline), प्रीटोमेनीड (Pretomanid) और लाइनज़ोलिड (linezolid) अर्थात् BPaL निहित है।
  • उच्च सफलता दर- दक्षिण अफ्रीका में परीक्षण के तीसरे चरण में इसकी सफलता दर 90% थी, जबकि XDR-TB और MDR-TB के लिये वर्तमान उपचार सफलता दर क्रमशः 34% और 55% है।
  • HIV- HIV और TB से ग्रसित लोगों के लिये इस दवा को काफी प्रभावी और सुरक्षित पाया गया।
  • कम अवधि- उच्च प्रतिरोधी टीबी का इलाज करने के लिये लगभग 20 दवाओं का 18-24 महीनों तक उपयोग किया जाता था जबकि इसके विपरीत BPaL रेजिमेन का सेवन सिर्फ छह महीने तक करना होगा।
  • प्रभावी और बेहतर बर्दाश्त योग्य- यह बैक्टीरिया को नष्ट करने में अधिक प्रभावी और शक्तिशाली है।
  • समय की आवश्यकता- दवाओं के बढ़ते प्रतिरोध के कारण जिन लोगों को प्रीटोमेनिड-आधारित आहार की आवश्यकता होती है, उनकी संख्या बढ़ रही है। ऐसे में यह दवा प्रभावी साबित हो सकती है।

चुनौतियाँ

  • MDR-TB से पीड़ित केवल कुछ प्रतिशत लोगों को इलाज मिल रहा है जबकि उपलब्ध MDR-TB दवाओं पर प्रतिक्रिया नहीं करने वाले लोगों की वास्तविक संख्या इससे कहीं अधिक है।
    • वहनीय क्षमता- इस दवा के निर्माण में इस बात पर गौर की जानी चाहिये कि क्या इसे और सस्ता बनाया जा सकता है अथवा विकासशील देशों में कम कीमतों पर उपलब्ध कराया जा सकता हैं ताकि XDR-TB और MDR-TB के सबसे अधिक बोझ से पीड़ित देशों पर इसका भार कुछ कम हो सकें।

न्यूयॉर्क स्थित एक अंतर्राष्ट्रीय गैर सरकारी संगठन (NGO) TB अलायन्स, जिसने दवा का विकास और परीक्षण किया है, ने उच्च आय वाले बाज़ारों के लिये एक जेनेरिक-दवा निर्माता के साथ एक विशेष लाइसेंसिंग समझौते पर हस्ताक्षर किये हैं। भारत सहित लगभग 140 निम्न और मध्यम आय वाले देशों में कई निर्माताओं को इस दवा का लाइसेंस दिया जाएगा।

स्रोत: द हिंदू


भारतीय अर्थव्यवस्था

सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों हेतु परामर्श प्रक्रिया

चर्चा में क्यों?

वित्त मंत्रालय ने सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों (PSB) से कहा है कि शाखा स्तर पर अधिकारियों के साथ एक महीने की परामर्श प्रक्रिया शुरू करें ताकि बैंकिंग क्षेत्र को सुव्यवस्थित करने के लिये सुझाव प्राप्त किये जा सकें और वर्ष 2024-25 तक देश को 5 ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था बनाने का लक्ष्य प्राप्त करने में मदद मिल सके।

प्रमुख बिंदु

  • परामर्श प्रक्रिया को तीन चरणों में विभाजित किया गया है, पहली शाखा या क्षेत्रीय स्तर पर, इसके बाद राज्य स्तर पर तथा तीसरी केंद्रीय स्तर पर। इसका समापन दिल्ली में राष्ट्रीय स्तर पर दो दिवसीय मंथन के साथ होगा।
  • 17 अगस्त, 2019 से शुरू होने वाले एक महीने के इस अभियान से प्राप्त सुझावों का उपयोग बैंकिंग क्षेत्र के भविष्य के विकास के लिये एक रोडमैप तैयार करने के लिये इनपुट के रूप में किया जाएगा।

प्रक्रिया का एजेंडा

  • क्षेत्र-विशिष्ट मुद्दों के साथ बैंकिंग की प्रदर्शन समीक्षा और सिंक्रनाइज़ेशन (Syncranisation)।
  • शाखाओं का मूल्यांकन स्वच्छ ऋण (पानी और स्वच्छता क्षेत्र में उधार), वित्तीय समावेशन (Financial inclusion) और महिला सशक्तीकरण, प्रत्यक्ष लाभ हस्तांतरण (Direct Benifit Transfer), डिजिटल अर्थव्यवस्था, ATM उपयोग और प्रदर्शन तथा कॉर्पोरेट सामाजिक ज़िम्मेदारी (Corporate Social Responsbility), आदि विषयों पर करना।
  • बैंकों के सामने मौजूद चुनौतियों गैर-निष्पादित परिसंपत्तियों (NPA), कम लाभ आदि का समाधान खोजना।
  • किसानों की आय दोगुना करने, जल संरक्षण को बढ़ावा देने, आर्थिक विकास हेतु बुनियादी ढाँचे के विकास आदि के लिये ऋण को उपलब्ध कराने में बैंकों की भूमिका बढ़ाना।
  • हरित अर्थव्यवस्था (Green Economy) का समर्थन, शिक्षा ऋण और सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम उद्यम (MSME) तथा निर्यात जैसे अन्य क्षेत्रों में सुधार।

पृष्ठभूमि

  • देश की अर्थव्यवस्था 5 साल के सबसे निचले स्तर यानी 6.8% पर आ गई है।
  • ऑटोमोबाइल सेक्टर (Automobile Sector) दो दशकों में अपने सबसे खराब संकट का सामना कर रहा है और रिपोर्ट में ऑटोमोबाइल और अन्य सहायक उद्योगों में हज़ारों की संख्या में नौकरियों के छिन जाने का संकट बताया गया है।
  • रियल एस्टेट (Real Estate) क्षेत्र में, ऐसे मकानों की संख्या में वृद्धि हुई है जिन्हें बेचा नहीं जा सका है, जबकि तेज़ी से आगे बढ़ने वाली उपभोक्ता सामान (FMCG) कंपनियों ने पहली तिमाही (अप्रैल - जून, 2019) में गिरावट दर्ज की है।
  • बैंक, पॉलिसी दरों में ढील नहीं दिये जाने जैसे आरोपों का सामना कर रहे हैं। भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) ने फरवरी और जून, 2019 के बीच रेपो दर (Rapo Rate) में 75 आधार अंकों की कटौती की थी, लेकिन बैंकों ने केवल 29 आधार अंकों के कमी की तथा ऋणों की ब्याज दरों में ज़्यादा कमी देखने को नहीं मिली।
  • हालाँकि, बैंकों द्वारा उद्योगों को दिया गया ऋण जून 2018 की तिमाही में 0.9% था जबकि 2019 की इसी अवधि में 6.6% तक की वृद्धि दर्ज की गई है, वहीं इसी अवधि के दौरान MSME क्षेत्र में रोजगार सृजन 0.7% से 0.6% तक घट गया है ।
  • हालाँकि बैंकों के NPA में सुधार हुआ है। वाणिज्यिक बैंकों का कुल बेड लोन (Bad Loan) 2018-19 में 9.34 लाख करोड़ रुपए से घटकर 1.02 लाख करोड़ रुपए रह गया है।

स्रोत: द हिंदू


भारतीय अर्थव्यवस्था

प्रत्यक्ष कर संहिता समिति के सुझाव

चर्चा में क्यों?

हाल ही में प्रत्यक्ष कर कानून (Direct Tax Legislation) के नए प्रस्तावित संस्करण के प्रारूप पर सुझाव देने के लिये गठित पैनल ने अपनी रिपोर्ट सरकार को प्रस्तुत की है।

प्रमुख बिंदु

Scripting a new code

  • प्रत्यक्ष कर कानून (DTC) पर गठित इस पैनल ने व्यक्तिगत आयकर स्लैब (slab) में बदलाव, प्रक्रियाओं और विधिक कार्यवाहियों के सरलीकरण द्वारा अनुपालन बोझ को कम करने के प्रावधान आदि के संबंध में सुझाव प्रस्तुत किये है।
  • पैनल ने लाभांश वितरण कर (Dividend Distribution Tax) और न्यूतम वैकल्पिक कर (Minimum Alternate Tax-MAT) में कुछ बदलावों का भी सुझाव दिया है।
  • इस पैनल का गठन वर्ष 2017 में आयकर अधिनियम ( Income-tax Act) की समीक्षा करने व प्रत्यक्ष कर कानून के प्रारूप पर सरकार को सुझाव देने हेतु किया गया।
  • संहिता में प्रस्तावों का उद्देश्य व्यक्तिगत, कॉर्पोरेट आय और पूंजीगत लाभ के कराधान में निश्चितता लाना है।
  • कर कानून में सुधार का उद्देश्य ‘व्यापार सुगमता’ (Ease of Doing Business) को प्रोत्साहित करना, अनुपालन बोझ (Compliance Burden) और कर विवादों (Tax Disputes) को कम करना है।

पैनल के सुझाव

  • इस पैनल ने क़ानूनी विवादों के प्रबंधन के लिये आयकर कानून की धारा 147 और 148 में संशोधन का सुझाव दिया है। इन धाराओं में संशोधन से अधिकारियों को पूर्वनिर्धारित मानदंडों के आधार पर कर निर्धारण के मामलों को फिर से शुरू करने के लिये सशक्त किया जा सकेगा। वर्तमान में 40% मुकदमें करदाता (Assessee) द्वारा कर अधिकारी के कर निर्धारण के मामले को फिर से शुरू करने के निर्णय को चुनौती देने से संबंधित हैं। कर अधिकारी 6 वर्ष तक करदाता (Assessee) के खातों की जाँच कर सकेगा।
  • पैनल ने कर संबंधी मामलों को मज़बूत कारणों के आधार पर ही पुनः शुरू करने की सिफारिश की है। सामान्यत: कर संबंधी मामलों की जाँच बैंकों, वित्तीय संस्थानों तथा अन्य स्रोतों के आधार पर शुरू कर दी जाती है।
  • पैनल ने कर संबंधी मामलों को पुन: शुरू करने के लिये कर राशि की सीमा को बढ़ाने की सिफारिश की है। वर्तमान में यह राशि एक लाख रुपए है।
  • पैनल ने Central Board of Direct Taxes-CBDT को करदाताओं के प्रति अधिक जवाबदेह बनाने की सिफारिश की है।
  • पैनल ने कर अनुपालन के बोझ (Reduced Burden of Tax Compliance) को कम करने की सिफारिश की है। साथ ही कर अनुपालन को सर्वोत्तम प्रक्रियायुक्त, वैश्विक रुझानों के संगत और करदाताओं के अनुकूल बनाते हुए कर आधार (Tax Base ) में वृद्धि की सिफारिश की है।
  • पैनल ने कर अनुपालन व प्रशासनिक उद्देश्यों के लिये कृत्रिम बुदिधमत्ता (Artificial Intelligence) के प्रयोग की सिफारिश की है।
  • पैनल ने प्रत्यक्ष कर प्रशासन में सहयोगी अनुपालन (introducing collaborative compliance in direct tax administration) को शुरू करने की सिफारिश की है इसके तहत बैंकों, वित्तीय संस्थानों व GST नेटवर्क के डेटा को एकीकृत कर इसका उपयोग ‘कर योग्य आय’ का पता लगाने में किया जा सकेगा।

कॉर्पोरेट टैक्स (Corporate Tax)

  • सरकार 400 करोड़ रूपए प्रतिवर्ष टर्नओवर वाली कंपनियों पर भी कॉर्पोरेट टैक्स की दर को 30% से घटाकर 25% करेगी। अभी तक यह छूट 250 करोड़ रूपए प्रतिवर्ष टर्नओवर वाली कंपनियों तक सीमित थी।
  • सरकार ने पिछले पाँच वर्षों में 99.3% कंपनियों के लिये चरणबद्ध तरीके से कॉर्पोरेट टैक्स की दर में 30% से 25% की कमी की है।
  • हालाँकि केवल 0.7% बड़ी कंपनियां जो इस छूट से लाभान्वित नहीं होती हैं परंतु वे कुल कॉर्पोरेट टैक्स संग्रह का लगभग 80% योगदान करती हैं।
  • प्रस्तावित कॉरपोरेट कर में कमी भारतीय कंपनियों व विदेशी कंपनियों पर सामान रूप से लागू होगी।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


विविध

Rapid Fire करेंट अफेयर्स (21 August)

  • सेना मुख्‍यालय द्वारा किये गए विस्‍तृत आंतरिक अध्‍ययन के आधार पर रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने सेना मुख्‍यालय को पुनर्गठित करने के बारे में कुछ निर्णयों को मंज़ूरी दे दी है। इसके तहत तीनों सेनाओं के प्रतिनिधित्‍व सहित सेना प्रमुख के अधीन एक अलग सतर्कता प्रकोष्‍ठ बनाया जाएगा। फिलहाल अनेक एजेंसियों के माध्‍यम से सेना प्रमुख के लिये सतर्कता संबंधी क्रियाकलाप किया जाता है और इसमें किसी एक एजेंसी का हस्‍तक्षेप नहीं है। मानवाधिकारों के मुद्दों पर ध्यान केंद्रित करने के लिये उप-सेना प्रमुख के अधीन अपर महानिदेशक (मेजर जनरल रैंक के अधिकारी) के नेतृत्‍व में एक विशेष मानवाधिकार अनुभाग स्थापित करने का निर्णय लिया गया है। यह मानव संसाधन संबंधी किसी प्रकार के उल्लंघन की रिपोर्ट की जाँच करने के लिये शीर्ष बिंदु होगा। गौरतलब है कि स्वतंत्रता दिवस पर राष्ट्र को संबोधित करते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सैन्य बलों की क्षमताओं को और बेहतर बनाने के लिये चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ की नियुक्ति का एलान किया था।
  • 20 अगस्त को सुबह 3 लाख 84 हज़ार किलोमीटर की दूरी तय करके भारत का मिशन चंद्रयान-2 चंद्रमा की कक्षा में प्रवेश कर गया। इस जटिल ऑपरेशन के बाद अब अंतरिक्ष यान को चंद्रमा के ध्रुवों के ऊपर अंतिम कक्षा में प्रवेश कराया जाएगा, जहां चंद्रमा की सतह से इसकी दूरी 100 किलोमीटर होगी। संभावना है कि चंद्रयान-2 आने वाले 7 सितंबर को चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर लैंड करेगा, लेकिन इस पर लैंड करने से पहले चंद्रयान-2 के लूनर कैप्चर मिशन में सफलता हासिल करना काफ़ी अहम था।

Landing on Moon

विदित हो कि चंद्रयान-2 को 22 जुलाई को आंध्र प्रदेश के श्रीहरिकोटा स्थित सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र से इसरो के सबसे भारी रॉकेट जीएसएलवी-मार्क 3 द्वारा प्रक्षेपित किया गया था।

  • 20 अगस्त का दिन दुनियाभर में विश्व मच्छर दिवस (World Mosquito Day) के रूप में मनाया जाता है। ब्रिटिश चिकित्सक सर रोनाल्ड रास की स्मृति में इसे मनाया जाता है। उन्होंने वर्ष 1897 में यह खोज की थी कि मनुष्य में मलेरिया के संचरण के लिये मादा मच्छर उत्तरदायी है। लंदन स्कूल ऑफ हाइजीन और ट्रॉपिकल मेडिसिन ने विश्व मच्छर दिवस मनाने की शुरूआत वर्ष 1930 में की थी। गौरतलब है कि मच्छर विश्व के सबसे प्राणघाती कीटों में से एक हैं। इसमें मनुष्यों के भीतर रोग प्रसारित और रोग संचारित करने की क्षमता है। मच्छर कई प्रकार के होते हैं, जो कि कई प्रकार के रोगों के संवाहक हो सकते हैं। वेक्टर रोगों के लिये एडीज़, एनाफेलीज़, क्यूलेक्स मच्छर (जीवित जीव, जो कि मनुष्यों या कीटों से मनुष्यों के बीच संक्रामक रोग प्रसारित कर सकते हैं) माध्यम के रूप में कार्य करते है। WHO की रिपोर्ट के अनुसार दुनियाभर में हर साल करीब 10 लाख लोगों की मौत मच्छरजनित रोगों से हो जाती है। मलेरिया, डेंगू, चिकुनगुनिया और ज़ीका मच्छरजनित रोगों में प्रमुख हैं। राष्ट्रीय वेक्टरजनित रोग नियंत्रण कार्यक्रम की एक रिपोर्ट के मुताबिक वैश्विक स्तर पर भारत में लगभग 71% मलेरिया के मामले पाए जाते हैं, जो दुनिया में सबसे अधिक हैं।
  • वर्ष 2019 के लिये राष्ट्रीय खेल पुरस्कारों की घोषणा कर दी गई है, जिनका चयन पूर्व अर्जुन पुरस्कार विजेताओं, द्रोर्णाचार्य पुरस्कार विजेताओं, खेल पत्रकारों/विशेषज्ञों/ कमंटेटरों और खेल प्रशंसकों की चयन समितियों द्वारा किया गया है। खेल पुरस्कार 2019 के लिये गठित चयन समिति के अध्यक्ष सर्वोच्च न्यायालय के सेवानिवृत्त न्यायाधीश मुकुंदकम शर्मा थे। विदित हो कि विभिन्न खेलों में उत्कृष्टता को मान्यता देने और पुरस्कृत करने के लिये राष्ट्रीय खेल पुरस्कार हर साल दिये जाते हैं। राजीव गांधी खेल रत्न पुरस्कार चार वर्ष की अवधि के दौरान खेलों के क्षेत्र में सबसे शानदार और उत्कृष्ट प्रदर्शन करने वाले खिलाड़ी को दिया जाता है। इस वर्ष यह पुरस्कार कुश्ती में विश्व चैंपियन रहे बजरंग पूनिया तथा पैरा एथलीट दीपा मलिक को दिया जा रहा है। अर्जुन पुरस्कार 4 वर्षों के दौरान लगातार उत्कृष्ट प्रदर्शन करने के लिये दिया जाता है तथा इस वर्ष इसके लिये 19 खिलाडी चुने गए हैं। द्रोणाचार्य पुरस्कार प्रतिष्ठित अंतर्राष्ट्रीय खेल प्रतियोगिता में पदक विजेता तैयार करने वाले कोच को प्रदान किया जाता है। खेलों के विकास में जीवन पर्यन्त योगदान (लाइफ टाइम अचीवमेंट) देने के लिये ध्यानचंद पुरस्कार दिया जाता है। कॉरपोरेट संस्थाओं (निजी और सार्वजनिक क्षेत्र दोनों में) और उन व्यक्तियों को राष्ट्रीय खेल प्रोत्साहन पुरस्कार दिया जाता है जिन्होंने खेलों के प्रोत्साहन और विकास के क्षेत्र में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। अंतर-विश्वविद्यालय प्रतियोगिताओं में कुल मिलाकर शीर्ष प्रदर्शन करने वाले विश्वविद्यालय को मौलाना अबुल कलाम आजाद ट्रॉफी प्रदान की जाती है।
    • राष्ट्रपति भवन में 29 अगस्त, 2019 को विशेष रूप से आयोजित समारोह में राष्ट्रपति द्वारा पुरस्कार विजेताओं को पुरस्कार प्रदान किये जाएंगे। राजीव गांधी खेल रत्न पुरस्कार विजेताओं को पदक, प्रशस्ति पत्र के अलावा साढ़े सात लाख रूपए का नकद पुरस्कार दिया जाएगा। अर्जुन, द्रोणाचार्य और ध्यानचंद पुरस्कार विजेताओं को लघु प्रतिमा, प्रमाण पत्र और 5-5 लाख रुपए का नकद पुरस्कार दिया जाएगा। राष्ट्रीय खेल प्रोत्साहन पुरस्कार 2019 में संस्था को एक ट्रॉफी और प्रमाण पत्र दिया जाता है। राष्ट्रीय खेल प्रोत्साहन पुरस्कार विजेताओं को ट्रॉफी और प्रमाण पत्र दिये जाएंगे। अंतर-विश्वविद्यालय प्रतियोगिताओं में कुल मिलाकर श्रेष्ठ प्रदर्शन करने वाले विश्वविद्यालय को ट्रॉफी, 10 लाख रुपए की पुरस्कार राशि और प्रमाण-पत्र दिया जाएगा।

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