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डेली न्यूज़

  • 22 Aug, 2019
  • 59 min read
शासन व्यवस्था

NRC की अंतिम सूची

चर्चा में क्यों?

31 अगस्त, 2019 को प्रकाशित होने वाला अंतिम राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर (National Register of Citizens-NRC) देश में चर्चा का महत्त्वपूर्ण विषय बना हुआ है।

अंतिम NRC संबंधी प्रमुख बिंदु:

  • इस संदर्भ में गृह मंत्रालय ने स्पष्ट किया है कि असम में NRC की अंतिम सूची में शामिल नहीं होने वाले लोगों को विदेशी अधिकरण (Foreigners’ Tribunal) में उनके बहिष्कार के खिलाफ अपील करने के लिये 120 दिन का समय दिया जाएगा।
    • इस संदर्भ में NRC नियमों के तहत ट्रिब्यूनल के समक्ष अपील करने के लिये सिर्फ 60 ही दिन का समय दिया गया है, परंतु अब गृह मंत्रालय इन नियमों में संशोधन पर विचार कर रहा है।
  • विदेशी अधिनियम 1946 (Foreigners Act 1946) और विदेशी (ट्रिब्यूनल) के आदेश 1964 (Foreigners (Tribunals) Order 1964) के प्रावधानों के तहत केवल विदेशी ट्रिब्यूनल को ही किसी व्यक्ति को विदेशी घोषित करने का अधिकार है।
  • अतः सिर्फ NRC में किसी व्यक्ति का नाम शामिल न होने से यह आवश्यक नहीं हो जाता कि वह व्यक्ति विदेशी है।
  • हालाँकि NRC का अंतिम प्रकाशन भारत निर्वाचन आयोग (Election Commission of India-ECI) के लिये एक बड़ी कानूनी चुनौती होगी।
  • वर्ष 1997 में ECI ने राज्य की मतदाता सूची को संशोधित करते हुए असम के मतदाताओं की एक नई श्रेणी ‘डी वोटर’ (D Voter) का निर्माण किया था।
    • डी वोटर असम में मतदाताओं की वह श्रेणी है जिनकी नागरिकता या तो संदिग्ध है या विवादास्पद स्थिति में है।
  • असम के मतदाताओं की डी वोटर श्रेणी में मौजूद लोग तब तक वहाँ के चुनाव में मतदान नहीं कर सकते जब तक कि इस संदर्भ में विदेशी ट्रिब्यूनल द्वारा आदेश न सुना दिया जाए।

विदेशी अधिकरण

(Foreigners’ Tribunal):

  • विदेशी अधिकरण एक अर्द्ध-न्यायिक निकाय है जिसका निर्माण इस विषय पर अपनी राय प्रस्तुत करना है कि क्या कोई व्यक्ति विदेशी अधिनियम, 1946 के तहत विदेशी है या नहीं है।
  • विदेशी अधिकरण का निर्माण उपरोक्त प्रश्न पर विचार करने हेतु आवश्यकतानुसार केंद्रीय गृह मंत्रालय (MHA) द्वारा किया जाता है।
  • विदेशी अधिकरण से संपर्क स्थापित करने के लिये एक व्यक्ति को सक्षम बनाने हेतु विदेशी (ट्रिब्यूनल) के आदेश 1964 को वर्ष 2019 में संशोधित किया गया था। इससे पूर्व केवल राज्य प्रशासन ही किसी संदिग्ध के विरुद्ध विदेशी अधिकरण में याचिका दायर कर सकता था।

कैसे निर्धारित की जाती है नागरिकता?

  • नागरिकता किसी व्यक्ति और राज्य के बीच संबंध को दर्शाती है। किसी भी राज्य की सामाजिक व राजनीतिक व्यवस्था के तहत केवल उन्ही लोगों को मौलिक अधिकार प्राप्त होते हैं जो उस राज्य के नागरिक होते हैं।
  • विश्व में नागरिकता प्रदान करने के प्रमुखतः दो सिद्धांत होते हैं - 1) जन्म स्थान के आधार पर नागरिकता और 2) रक्त संबंधों के आधार पर नागरिकता। भारतीय नेतृत्व सदैव ही जन्म स्थान के आधार पर नागरिकता देने के पक्ष में रहा है, वहीं रक्त संबंधों के आधार पर नागरिकता देने के विचार को भारतीय संविधान सभा ने यह कहते हुए खारिज कर दिया था कि यह भारतीय लोकनीति (Indian Ethos) के विरुद्ध है।
  • नागरिकता संविधान के तहत संघ सूची का विषय है और संसद के विशिष्ट क्षेत्राधिकार के तहत आता है।
  • भारतीय संविधान ‘नागरिकता’ शब्द को परिभाषित नहीं करता, परंतु संविधान के अनुच्छेद 5 से 11 तक भारतीय नागरिकता प्राप्त करने योग्य लोगों की विभिन्न श्रेणियों का विवरण दिया गया है।

उल्लेखनीय है कि संविधान के अन्य प्रावधानों (जो कि 26 जनवरी, 1950 को लागू हुए) के विपरीत उपरोक्त अनुच्छेदों (5 से 11) को संविधान निर्माण के साथ यानी 26 नवंबर, 1949 को ही लागू कर दिया गया था।

  • संविधान लागू होने के पश्चात् दिसंबर 1955 में नागरिकता अधिनियम, 1955 पारित किया गया जो सरकार को उन व्यक्तियों की नागरिकता निर्धारित करने का अधिकार देता है जिनके विषय में कोई संदेह है।
  • नागरिकता अधिनियम में अब तक कुल चार बार (वर्ष 1986, 2003, 2005 और 2015) संशोधन किया जा चुका है।

भारतीय नागरिक का निर्धारण

  • अनुच्छेद 5 - यह अनुच्छेद संविधान के प्रारंभ में प्रत्येक व्यक्ति की नागरिकता निर्धारित करने हेतु बनाया गया था। इसके तहत भारत में पैदा हुए सभी लोगों को भारतीय नागरिकता दी गई थी, यहाँ तक कि जो लोग भारत में बसे थे परंतु यहाँ पैदा नहीं हुए थे, उन्हें भी भारत का नागरिक माना गया, क्योंकि उनके माता-पिता भारत में पैदा हुए थे। इसके अलावा वे लोग जो कम-से-कम पाँच वर्षों से भारत में रह रहे थे उन्हें भी भारतीय नागरिकता का हकदार बनाया गया था।
  • अनुच्छेद 6 - आज़ादी के पश्चात् हुए विभाजन के कारण कई लोग पाकिस्तान से आकर भारत में बस गए थे। संविधान का अनुच्छेद 6 इस बात की व्यवस्था करता है कि यदि कोई व्यक्ति, जिसके माता-पिता या फिर दादा-दादी भारत में पैदा हुए थे, 19 जुलाई, 1949 से पहले पाकिस्तान से आकर भारत में बसा है तो उसे स्वतः ही भारतीय नागरिकता प्राप्त हो जाएगी।
  • अनुच्छेद 7 - यह अनुच्छेद इस बात की व्यवस्था करता है कि जो लोग 1 मार्च, 1947 के बाद पाकिस्तान चले गए थे, परंतु बाद में पुनर्वास परमिट पर वापस आ गए उन्हें भारतीय नागरिकता मिल सके। यह अधिनियम उन लोगों के लिये अधिक सहानुभूतिपूर्ण था जो लोग विभाजन के बाद पाकिस्तान तो चले गए, परंतु उन्होंने जल्द ही लौटने का निर्णय कर लिया था।
  • अनुच्छेद 8 - भारत के बाहर रहने वाले भारतीय मूल का कोई भी व्यक्ति, जिसके माता-पिता या दादा-दादी भारत में पैदा हुए थे, खुद को भारतीय भारतीय नागरिक के रूप में मान्यता देने के लिये पंजीकृत कर सकता है।
  • अनुच्छेद 9 - यदि किसी व्यक्ति ने स्वेच्छा से किसी विदेशी राज्य की नागरिकता ग्रहण कर ली है तो उपरोक्त अनुच्छेदों के आधार पर मिली उसकी भारतीय नागरिकता समाप्त हो जाएगी।

क्या कहता है नागरिकता अधिनियम 1955?

  • यह अधिनियम मुख्यतः एक ऐसे अवैध प्रवासी को परिभाषित करता है, जिसने एक वैध पासपोर्ट के बिना भारत में प्रवेश किया हो या वीज़ा परमिट की समाप्ति के बाद देश में रह रहा हो।
  • यह अधिनियम अवैध प्रवासियों को भारतीय नागरिकता प्राप्त करने से रोकता है।
  • इस अधिनियम के अंतर्गत किसी व्यक्ति के भारत का नागरिक बनने के लिये योग्यता संबंधी कुछ मानदंड निर्धारित किये गए हैं: -
    • नागरिकता के आवेदन से पहले व्यक्ति ने लगातार कम-से-कम 12 महीनों तक भारत में निवास किया हो।
    • 12 महीने की अवधि से पहले भी बीते 14 सालों में से 11 साल तक व्यक्ति भारत में रहा हो।

नागरिकता अधिनियम के प्रमुख संशोधन

  • 1986 का संशोधन - नागरिकता अधिनियम में इस बात की व्यवस्था की गई थी कि जो भी लोग भारत में जन्मे हैं वे भारतीय नागरिक होंगे, परंतु 1986 के संशोधन में यह निर्धारित किया गया कि भारतीय नागरिक वे होंगे जो 26 जनवरी, 1950 के बाद तथा 1 जुलाई, 1987 से पहले भारत में पैदा हुए हैं।
  • 2003 का संशोधन - बांग्लादेश से होने वाली घुसपैठ को ध्यान में रखते हुए तत्कालीन सरकार ने उपरोक्त नियमों को और अधिक कठोर बना दिया था। संशोधन के तहत इस बात की व्यवस्था की गई थी कि 4 दिसंबर, 2004 को या उसके बाद पैदा हुए लोगों के लिये उनके स्वयं के जन्म के अलावा, उनके माता-पिता दोनों या किसी एक का भारतीय नागरिक होना आवश्यक है। इस प्रतिबंधात्मक संशोधन के साथ भारत लगभग रक्त संबंधों के आधार पर नागरिकता देने के सिद्धांत की ओर अग्रसर हो गया था।

क्या है नागरिकता (संशोधन) विधेयक?

  • नागरिकता अधिनियम 1955 में संशोधन करने वाले इस नागरिकता संशोधन विधेयक-2016 में पड़ोसी देशों (बांग्लादेश, पाकिस्तान, अफगानिस्तान) से आए हिन्दू, सिख, बौद्ध, जैन, पारसी तथा ईसाई अल्पसंख्यकों (मुस्लिम शामिल नहीं) को नागरिकता प्रदान करने की बात कही गई है, चाहे उनके पास ज़रूरी दस्तावेज़ हों या नहीं।
  • प्रस्तावित विधेयक के माध्यम से नागरिकता अधिनियम की अनुसूची 3 में संशोधन का प्रस्ताव भी किया गया है ताकि वे 11 वर्षों के बजाय 6 वर्ष पूरे होने पर नागरिकता के पात्र हो सकें। इससे वे ‘अवैध प्रवासी’ की परिभाषा से बाहर हो जाएंगे।
  • यह संशोधन पड़ोसी देशों से आने वाले मुस्लिम लोगों को ही ‘अवैध प्रवासी’ मानता है, जबकि लगभग अन्य सभी लोगों को इस परिभाषा के दायरे से बाहर कर देता है।

असम के विवाद की जड़ क्या है?

  • 80 के दशक में अखिल असम छात्र संघ (All Assam Students Union-AASU) ने अवैध तरीके से असम में रहने वाले लोगों की पहचान करने तथा उन्हें वापस भेजने के लिये एक आंदोलन शुरू किया। AASU के 6 साल के संघर्ष के बाद वर्ष 1985 में असम समझौते (Assam Accord) पर हस्ताक्षर किये गए थे।
  • तदनुसार, असम समझौते के तहत 1986 में नागरिकता अधिनियम में संशोधन कर उसमें एक नई धारा (6A) जोड़ी गई।
  • इस समझौते के तहत 1951 से 1961 के बीच असम आए सभी लोगों को पूर्ण नागरिकता और वोट का अधिकार देने का फैसला हुआ।
  • 1961 से 1971 के बीच आने वाले लोगों को नागरिकता तथा अन्य अधिकार दिये गए, लेकिन उन्हें मतदान का अधिकार नहीं दिया गया।
  • इस समझौते का पैरा 5.8 कहता है: 25 मार्च, 1971 या उसके बाद असम में आने वाले विदेशियों को कानून के अनुसार निष्कासित किया जाएगा।
  • असम विवाद पुनः चर्चा का विषय बन गया है, क्योंकि असम के राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर को अपडेट किया जा रहा है ताकि 1971 के बाद बांग्लादेश से आए सभी लोगों को वापस भेजा जा सके।

राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर

(National Register of Citizens-NRC)

  • NRC वह रजिस्टर है जिसमें सभी भारतीय नागरिकों का विवरण शामिल है। इसे 1951 की जनगणना के बाद तैयार किया गया था। रजिस्टर में उस जनगणना के दौरान गणना किये गए सभी व्यक्तियों के विवरण शामिल थे।
  • इसमें केवल उन भारतीयों के नामों को शामिल किया जा रहा है जो कि 25 मार्च, 1971 के पहले से असम में रह रहे हैं। उसके बाद राज्य में पहुँचने वालों को बांग्लादेश वापस भेज दिया जाएगा।
  • NRC उन्हीं राज्यों में लागू होती है जहाँ से अन्य देश के नागरिक भारत में प्रवेश करते हैं। NRC की रिपोर्ट ही बताती है कि कौन भारतीय नागरिक है और कौन नहीं।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


जैव विविधता और पर्यावरण

जल प्रदूषण है आर्थिक वृद्धि में बाधक

चर्चा में क्यों?

हाल ही में ‘क्वालिटी अननोन : द इनविज़िबल वाटर क्राइसिस’ (Quality Unknown : The Invisible Water Crisis) नाम से जारी विश्व बैंक (World Bank) की एक रिपोर्ट में दावा किया गया है कि प्रदूषित पानी कुछ देशों में आर्थिक वृद्धि की दर को एक-तिहाई तक कम कर रहा है।

रिपोर्ट के प्रमुख निष्कर्ष:

  • जल प्रदूषण से प्रभावित होती है देश की आर्थिक विकास दर:
    • जब बायोलॉजिकल ऑक्सीजन डिमांड (Biological Oxygen Demand-BOD) एक निश्चित सीमा को पार कर जाती है, तो उस क्षेत्र में जीडीपी की वृद्धि एक-तिहाई कम हो जाती है।
    • बायोलॉजिकल ऑक्सीजन डिमांड - पानी के जैविक प्रदूषण और समग्र जल की गुणवत्ता मापने का एक उपाय।
    • मध्यम आय वाले देशों में जहाँ औद्योगिक विकास के कारण BOD एक बढ़ती हुई समस्या है, जीडीपी की वृद्धि दर आधे से कम रह गई है।
  • निम्न आर्थिक विकास दर के कारण:
    • पानी में नाइट्रोजन की उपस्थिति लोगों की जीवन प्रत्याशा दर को कम कर रही है, जिसके कारण देश की मानव संसाधन उत्पादकता में कमी आ रही है।
    • इसके अतिरिक्त पानी में लवणता की उपस्थिति से कृषि पैदावार में कमी आती है।
  • पानी की गुणवत्ता के समक्ष चुनौतियाँ:
    • कृषि की गहनता (Intensification of Agriculture) का प्रभाव
    • भूमि उपयोग में परिवर्तन
    • जलवायु परिवर्तन के कारण अधिक परिवर्तनशील वर्षा पैटर्न
    • देशों के विकास के कारण बढ़ता औद्योगीकरण
  • आगे की राह:
    • जल गुणवत्ता की चुनौती से निपटने के लिये सर्वप्रथम यह आवश्यक है कि उसके स्तर का निर्धारण किया जाए। दुनिया को विश्वसनीय, सटीक और व्यापक जानकारी की आवश्यकता है ताकि नई खोज की जा सके, साक्ष्य आधारित निर्णय लिये जा सकें और नागरिकों को कार्यवाही के लिये प्रेरित किया जा सके।
    • दुनिया के प्रदूषण को कम करने के लिये कानून (Legislation), कार्यान्वयन (Implementation) और प्रवर्तन (Enforcement) जैसी कुछ महत्त्वपूर्ण चुनौतियाँ भी हैं।
    • अपशिष्ट जल के उपचार पर भी ध्यान दिया जाना आवश्यक है, क्योंकि यह प्रदूषण और मलबे को हटाने में मदद करके देश के स्वास्थ्य, खाद्य सुरक्षा और अर्थव्यवस्था के लिये महत्त्वपूर्ण साबित हो सकता है।

स्रोत: वर्ल्ड बैंक


भारतीय समाज

विवाह की एक समान आयु

चर्चा में क्यों?

हाल ही में दिल्ली उच्च न्यायालय में याचिका दायर कर पुरुषों और महिलाओं के लिये विवाह की एक समान आयु की मांग की गई है।

विवाह की आयु: इतिहास

  • भारतीय दंड संहिता ने वर्ष 1860 में 10 वर्ष से कम आयु की लड़की के साथ किसी भी प्रकार के शारीरिक संबंध को अपराध की श्रेणी में रखा था।
  • उपरोक्त प्रावधान को वर्ष 1927 में आयु कानून 1927 के माध्यम से संशोधित किया गया, जिसने 12 वर्ष से कम आयु की लड़कियों के साथ विवाह को अमान्य बना दिया। इस कानून का विरोध राष्ट्रवादी आंदोलन के रूढ़िवादी नेताओं द्वारा किया गया क्योंकि वे इस प्रकार के कानूनों को हिंदू रीति-रिवाजों में ब्रिटिश हस्तक्षेप मानते थे।
  • बाल विवाह निरोधक अधिनियम 1929 के अनुसार महिलाओं और पुरुषों के विवाह की न्यूनतम आयु क्रमशः 16 और 18 वर्ष निर्धारित की गई थी। इस कानून को शारदा अधिनियम के नाम से भी जाना जाता है, हरविलास शारदा न्यायाधीश और आर्य समाज की सदस्य थीं।

संविधान का दृष्टिकोण:

  • विशेष विवाह अधिनियम, 1954 और बाल विवाह निषेध अधिनियम, 2006 भी महिलाओं और पुरुषों के लिये विवाह की न्यूनतम आयु क्रमशः 18 और 21 वर्ष निर्धारित करते हैं।
  • कानून विवाह की न्यूनतम आयु के माध्यम से बाल विवाह और नाबालिगों के अधिकारों के दुरुपयोग को रोकते हैं। विवाह के संबंध में विभिन्न धर्मों के व्यक्तिगत कानूनों के अपने मानक हैं, जो अक्सर रीति-रिवाजों को दर्शाते हैं।
  • इस्लाम में यौवन प्राप्ति को नाबालिगों के विवाह के लिये व्यक्तिगत कानून के तहत वैध माना जाता है।
  • हिंदू धर्म में हिंदू विवाह अधिनियम 1955 की धारा 5 (iii) के तहत दुल्हन और वर की न्यूनतम आयु क्रमशः 18 और 21 वर्ष निर्धारित की गई थी। इस अधिनियम के अनुसार बाल विवाह गैरकानूनी नहीं था लेकिन विवाह में नाबालिग के अनुरोध पर इस विवाह को शून्य घोषित किया जा सकता था।

विवाह की आयु से संबंधित मुद्दे:

  • पुरुषों और महिलाओं के लिये विवाह की अलग-अलग आयु का प्रावधान कानूनी विमर्श का विषय बनता जा रहा है। इस प्रकार के कानून रीति-रिवाजों और धार्मिक प्रथाओं का एक कोडीकरण है जो पितृसत्ता में निहित हैं।
  • विवाह की अलग-अलग आयु, संविधान के अनुच्छेद 14 ( समानता का अधिकार) और अनुच्छेद 21 (गरिमा के साथ जीवन जीने का अधिकार) का उल्लंघन करती है।
  • विधि आयोग ने वर्ष 2018 मे परिवार कानून में सुधार के एक परामर्श पत्र में तर्क दिया कि पति और पत्नी की अलग-अलग कानूनी आयु रूढ़िवादिता को बढ़ावा देती है।
  • विधि आयोग के अनुसार, पति और पत्नी की आयु में अंतर का कानून में कोई आधार नहीं है क्योंकि पति या पत्नी का विवाह में शामिल होने का तात्पर्य हर तरह से समान है और वैवाहिक जीवन में उनकी भागीदारी भी समान होती है।
  • महिला अधिकारों हेतु कार्यरत कार्यकर्त्ताओं ने भी तर्क दिया है कि समाज के लिये यह केवल एक रूढ़ि मात्र है कि एक समान आयु में महिलाएँ, पुरुषों की तुलना में अधिक परिपक्व होती हैं और इसलिये उन्हें कम आयु में विवाह की अनुमति दी जा सकती है।
  • महिलाओं के खिलाफ भेदभाव के उन्मूलन संबंधी समिति (Committee on the Elimination of Discrimination against Women- CEDAW) जैसी अंतर्राष्ट्रीय संस्थाएँ भी ऐसे कानूनों को समाप्त करने का आह्वान करती हैं जो पुरुषों की अपेक्षा महिलाओं में अलग भौतिक और बौद्धिक परिपक्वता संबंधी विचारों से घिरे हैं।

महिलाओं के खिलाफ भेदभाव के उन्मूलन संबंधी समिति

(Committee on the Elimination of Discrimination against Women- CEDAW):

  • यह स्वतंत्र विशेषज्ञों का एक समिति है जो महिलाओं के खिलाफ भेदभाव के सभी रूपों के उन्मूलन पर अभिसमय के कार्यान्वयन की निगरानी करती है।
  • CEDAW समिति में विश्व भर से महिला अधिकारों के 23 विशेषज्ञ शामिल हैं।
  • वे देश जो इस प्रकार की संधि के पक्षकार बन गए हैं, अभिसमय के क्रियान्वयन संबंधी प्रगति रिपोर्ट समिति को नियमित रूप से सौंपने के लिये बाध्य हैं।

वर्तमान दृष्टिकोण:

सर्वोच्च न्यायालय ने वर्ष 2014 में राष्ट्रीय विधिक सेवा प्राधिकरण बनाम भारत संघ के निर्णय में कहा कि तीसरे लिंग के रूप में ट्रांसजेंडरों को भी अन्य सभी मनुष्यों की तरह समान कानूनों में समान अधिकार मिलना चाहिये।

सर्वोच्च न्यायालय ने वर्ष 2019 में जोसेफ शाइन बनाम भारत संघ (Joseph Shine v Union of India) मामले में व्यभिचार (Adultery) को रद्द करते हुए कहा कि इस प्रकार के कानून लैंगिक रूढ़ियों के आधार पर महिलाओं से विभेद करते हैं जो महिलाओं की गरिमा संबंधी समानता का उल्लघंन भी करते हैं।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


भारतीय अर्थव्यवस्था

FPI हेतु नए मापदंड

चर्चा में क्यों?

हाल ही में भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड (Securities and Exchange Board of India- SEBI) ने विदेशी पोर्टफोलियो निवेशकों (Foreign Portfolio Investors-FPIs) के लिये नियामकीय व्यवस्था को सरल बनाने के लक्ष्य से नए मानदंडों को जारी किया है।

प्रमुख बिंदु:

  • इन मापदंडों को जारी करने का एक उद्देश्य FPI के बहिर्गमन (Outflows) की जाँच करना भी है, क्योंकि आँकड़ों के अनुसार, जुलाई 2019 से अगस्त 2019 के बीच 22,000 करोड़ रुपए से अधिक के शेयर बेचे गए थे।
  • ज्ञातव्य है कि बजट 2019 में सरकार द्वारा सुपर-रिच (Super-Rich) पर उच्च कर लगाने के बाद FPI भारतीय बाज़ार से अपना पैसा वापस ले रहे हैं।
  • उपरोक्त समस्या को ध्यान में रखते हुए एच. आर. खान समिति (H. R. Khan committee) की सिफारिश के आधार पर FPI नियमों को फिर से तैयार किया गया है।

FPI हेतु संशोधित नियम:

  • पुराने नियमों के अनुसार, यह आवश्यक था कि सभी FPIs में कम-से-कम 20 प्रतिशत निवेशक हों, परंतु अब इस नियम को समाप्त कर दिया गया है।
  • विदेशी निवेशकों के लिये KYC (Know Your Customer-KYC) दस्तावेज़ की आवश्यकता का भी सरलीकरण किया गया है।
  • इसी के साथ अब अन्य देशों के वे केंद्रीय बैंक भी स्वयं को (भारत में) FPI के रूप में पंजीकृत करा पाएंगे जो बैंक ऑफ इंटरनेशनल सेटेलमेंट (Bank for International Settlement-BIS) के सदस्य नहीं हैं।
    • SEBI के अनुसार, इस तरह की इकाइयाँ अपेक्षाकृत दीर्घकालिक और कम जोखिम वाली होती हैं क्योंकि ये प्रत्यक्ष/अप्रत्यक्ष रूप से सरकार द्वारा ही नियंत्रित की जाती हैं।
  • FPI को घरेलू या विदेशी निवेशक को प्रतिभूतियों के ऑफ-मार्केट हस्तांतरण की अनुमति दी गई है।
  • SEBI ने फैसला किया है कि अब FPI को तीन श्रेणियों की बजाय दो श्रेणियों- श्रेणी I और II में ही वर्गीकृत किया जाएगा।
    • SEBI ने FPI की श्रेणी- III की अवधारणा को हटा दिया है।

उपरोक्त परिवर्तन नियामक ढाँचे को अधिक निवेशक-अनुकूल बनाएंगे।

  • FPI नियमों में बदलाव के अलावा, SEBI ने इनसाइडर ट्रेडिंग (Insider Trading) को रोकने के लिये व्हिसल-ब्लोअर (Whistle-Blowers) को पुरस्कृत करने का भी निर्णय लिया है।

इनसाइडर ट्रेडिंग

(Insider Trading)

  • इसका तात्पर्य सार्वजनिक रूप से कारोबार करने वाली कंपनी की प्रतिभूतियों की अंदरूनी जानकारी, जो अभी तक सार्वजनिक नहीं हुई है, का उपयोग कर उन्हें खरीदने या बेचने से है।
  • आंतरिक जानकारी किसी भी ऐसी जानकारी को संदर्भित करती है जिसके परिणामस्वरूप एक निवेशक का निर्णय पर्याप्त प्रभावित हो सकता है।
  • उदाहरण के लिये- एक सरकारी कर्मचारी नए पारित होने वाले विनियमन के बारे में अपने ज्ञान के आधार पर काम करता है और विनियमन की जानकारी सार्वजनिक होने से कंपनी के शेयरों को खरीदकर और किसी अन्य कंपनी या फर्म को लाभान्वित कर सकता है।

स्रोत: द हिंदू


शासन व्यवस्था

शासन निष्ठा: शिक्षकों का प्रशिक्षण कार्यक्रम

चर्चा में क्यों?

केंद्रीय मानव संसाधन विकास मंत्रालय ने प्राथमिक स्तर पर शिक्षा को सशक्त बनाने के लिये एक राष्ट्रीय मिशन 'नेशनल इनीसिएटिव फॉर स्कूल हेड्स एंड टीचर्स होलीस्टिक एडवांसमेंट’ अर्थात् निष्ठा (National Initiative for School Heads and Teachers Holistic Advancement-NISHTHA) पहल शुरू की है।

प्रमुख बिंदु

  • इसके साथ-साथ निष्ठा की वेबसाइट, प्रशिक्षण मॉड्यूल, प्राइमर बुकलेट और एक मोबाइल एप भी लॉन्च की गई है।

उद्देश्य:

  • छात्रों में महत्त्वपूर्ण सोच को प्रोत्साहित करने और बढ़ावा देने के लिये शिक्षकों को प्रेरित एवं प्रशिक्षित करना।

NISHTHA

निम्नलिखित बिंदुओं पर ध्यान दिया जाएगा:

  • सिखने का परिणाम
  • योग्यता-आधारित शिक्षा और परीक्षण
  • शिक्षार्थी केंद्रित शिक्षाशास्त्र
  • स्कूली सुरक्षा
  • व्यक्तिगत-सामाजिक गुण
  • समावेशी शिक्षा
  • आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस सहित शिक्षण-प्रशिक्षण में सूचना एवं प्रौद्योगिकी का प्रयोग
  • योग सहित स्वास्थ्य और कल्याण
  • पुस्तकालय, इको-क्लब, युवा क्लब, किचन गार्डन सहित स्कूली शिक्षा में अन्य पहल
  • स्कूल नेतृत्व के गुण
  • पर्यावरणीय मुद्दे
  • प्री-स्कूल, पूर्व-व्यावसायिक शिक्षा (Pre-vocational Education) और स्कूल-आधारित मूल्यांकन
  • उद्देश्य: लगभग 42 लाख प्रतिभागियों की क्षमता का निर्माण करने के लिये सभी सरकारी स्कूलों में प्राथमिक स्तर पर सभी शिक्षकों और स्कूलों के प्रमुखों को शामिल करना

लक्ष्य:

  • लगभग 42 लाख प्रतिभागियों की क्षमता का निर्माण करना।
  • सभी सरकारी स्कूलों में प्राथमिक स्तर पर शिक्षकों और स्कूल प्रमुखों को शामिल करना।
  • राज्य शैक्षिक अनुसंधान और प्रशिक्षण परिषद (State Councils of Educational Research and Training-SCERTs) और ज़िला शिक्षा और प्रशिक्षण संस्थान (District Institutes of Education and Training-DIETs) के संकाय सदस्य।
  • सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में ब्लॉक संसाधन समन्वयक (Block Resource Coordinators) और क्लस्टर संसाधन समन्वयक (Cluster Resource Coordinators) की व्यवस्था करना।

कार्यान्वयन:

  • प्रशिक्षण राज्य और संघ शासित प्रदेशों द्वारा चिन्हित किये गए 33120 की रिसोर्स पर्सन्स (Resource Persons-KRPs) और स्टेट रिसोर्स पर्सन्स (State Resource Persons-SRP) द्वारा सीधे तौर आयोजित किया जाएगा, जिन्हें राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसंधान एवं प्रशिक्षण परिषद (National Council of Educational Research and Training-NCERT) राष्ट्रीय प्रशिक्षण शैक्षिक योजना और प्रशासन संस्थान (National Institute of Educational Planning and Administration-NIEPA), केंद्रीय विद्यालय संगठन (KVS), नवोदय विद्यालय समिति (NVS), केंद्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड (CBSE) और गैर-सरकारी संगठन द्वारा चिन्हित किये गए 120 नेशनल रिसोर्स पर्सन्सद्वारा प्रशिक्षित किया जाएगा।
  • कार्यक्रम की प्रमुख विशेषताएँ गतिविधि आधारित मॉड्यूल हैं जिनमें अंतर्निहित निरंतर प्रतिक्रिया तंत्र, ऑनलाइन निगरानी और समर्थन प्रणाली, प्रशिक्षण की आवश्यकता और प्रभाव का विश्लेषण (प्री और पोस्ट प्रशिक्षण) शामिल हैं।
  • निष्ठा के लिये प्रशिक्षण मॉड्यूल राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों तथा CBSE, KVS, NVS, स्कूलों के प्रधानाचार्यों और कैवल्य फाउंडेशन, टाटा ट्रस्ट, अजीम प्रेमजी फाउंडेशन और अरबिन्दो सोसाइटी जैसे गैर-सरकारी संगठनों के सुझावों को शामिल करते हुए एक परामर्श प्रक्रिया के माध्यम से विकसित किया गया है

MOODLE (Modular Object-Oriented Dynamic Learning Environment) पर आधारित एक मोबाइल एप और लर्निंग मैनेजमेंट सिस्टम (Learning Management System-LMS) NCERT द्वारा विकसित किया गया है।

  • LMS का उपयोग रिसोर्स पर्सन्स और टीचर्स के पंजीकरण, संसाधनों के प्रसार, ट्रेनिंग गैप और प्रभाव विश्लेषण, निगरानी, ​​सलाह और प्रगति का ऑनलाइन आकलन करने के लिये किया जाएगा।
  • सुचारू सुगमता, शिक्षकों की सहायता के लिये डिजिटल सामग्री और प्रौद्योगिकी सक्षम शिक्षण पद्धतियों की उपलब्धता सुनिश्चित करने के लिये इस विशाल क्षमता निर्माण कार्यक्रम को प्रौद्योगिकी के साथ एकीकृत किया गया है।

यह विश्व का अपनी तरह का सबसे बड़ा शिक्षक प्रशिक्षण कार्यक्रम है। क्लासरूम ट्रांसजेक्शन्स पर टिकाऊ प्रभाव सुनिश्चित करने के लिये यह एकीकृत प्रशिक्षण कार्यक्रम में परामर्शदाता के प्रावधान सहित प्रशिक्षण पश्चात हस्तक्षेप सन्निहित है।

स्रोत: द हिंदू


अंतर्राष्ट्रीय संबंध

सूडान में नई संप्रभु परिषद

चर्चा में क्यों?

हाल ही में सूडान में प्रधानमंत्री अब्दुल्ला हमदोक (Abdalla Hamdok) की नई सरकार सत्ता में आई है।

प्रमुख बिंदु

  • ऐसा पहली बार है कि सूडान के राष्ट्रपति उमर अल-बशीर जो कि वर्ष 1989 से सत्तासीन है, का तख्तापलट करते हुए सूडान पूर्ण सैन्य शासन के अधीन नहीं है।
  • नए संप्रभु परिषद ने ट्रांज़िशनल मिलिट्री काउंसिल (Transitional Military Council-TMC) का स्थान लिया है जो कि उमर अल-बशीर को हटाए जाने के बाद बनाई गई थी।
  • 11 सदस्यों वाला यह नई संप्रभु परिषद (New sovereign council) नागरिकों के प्रभुत्त्व वाली एक शाषी परिषद है, लेकिन इसका नेतृत्व जनरल अब्देल फतह अल-बुरहान (Omar al-Bashir) करेंगे, जो पहले TMC (Transitional Military Council) का नेतृत्व कर रहे थे।
  • 39 महीने की संक्रमण अवधि के दौरान पहले 21 महीनों के लिये जनरल बुरहान सूडान का नेतृत्व करेंगे, जब तक कि सूडान में एक पूर्ण नागरिक सरकार का गठन नहीं होता।

Sudan

उमर अल-बशीर

  • पिछले कुछ माह से बशीर के खिलाफ लगातार प्रदर्शन हो रहे थे।
  • पूर्व में सेना अधिकारी रहे ओमर अल बशीर वर्ष 1989 में सेना के तख़्तापलट के बाद सत्ता पर काबिज हुए थे।
  • उनके शासन काल में सूडान को भयंकर गृहयुद्ध का सामना करना पड़ा। वर्ष 2005 में साउथ सूडान में गृहयुद्ध समाप्त हुआ और वर्ष 2011 में यह एक नया देश बना।
  • लेकिन देश के पश्चिमी हिस्से दारफ़ुर में एक और गृहयुद्ध छिड़ गया और बशीर पर युद्ध अपराध कराने के आरोप लगे।
  • अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय की ओर से जारी गिरफ़्तारी वारंट के बावजूद बशीर ने वर्ष 2010 और 2015 का चुनाव जीता। हालाँकि उनके पिछले चुनाव के दौरान विपक्ष ने चुनाव का बहिष्कार करने का आह्वान किया था।
  • गिरफ्तारी वारंट के कारण बशीर की अंतर्राष्ट्रीय यात्राओं पर प्रतिबंध लगा दिया गया था। बावजूद उन्होंने मिस्र, सउदी अरब और दक्षिण अफ़्रीका की यात्राएँ कीं।
  • वर्ष 2015 में दक्षिण अफ्रीका के एक न्यायालय में उनकी गिरफ्तारी पर सुनवाई शुरू हुई तो वह अपना दौरा ख़त्म कर सूडान वापस लौट गए।

कौन हैं अब्दुल्ला हमदोक?

  • इनका जन्म वर्ष 1956 में सूडान के मध्य कोर्डोफन (Kordofan) प्रांत में हुआ।
  • मैनचेस्टर विश्वविद्यालय से इन्होंने आर्थिक अध्ययन में PhD की उपाधि प्राप्त की।
  • 1990 के दशक में जिम्बाब्वे में अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन (International Labour Organization-ILO) के मुख्य तकनीकी सलाहकार और बाद में आइवरी कोस्ट में अफ्रीकी विकास बैंक (African Development Bank) में प्रमुख नीति अर्थशास्त्री के रूप में कार्य किया।
  • नवंबर 2011 से अफ्रीका के लिये संयुक्त राष्ट्र आर्थिक आयोग (Economic Commission for Africa-ECA) के उप-कार्यकारी सचिव के रूप में सेवा की।

स्रोत: द हिंदू


अंतर्राष्ट्रीय संबंध

भारत-बाल्टिक देश

चर्चा में क्यों?

भारत के उपराष्ट्रपति 17-21 अगस्त तक लिथुआनिया (Lithuania), लातविया (Latvia) और एस्टोनिया (Estonia) की यात्रा पर रहे जो भारत की ओर से इन तीन बाल्टिक देशों की पहली उच्च स्तरीय यात्रा है।

प्रमुख बिंदु

  • उपराष्ट्रपति की इन तीन बाल्टिक राष्ट्रों की यात्रा से भारत के संबंध इस क्षेत्र के महत्त्वपूर्ण देशों के साथ मज़बूत होंगे।
  • उपराष्ट्रपति ने संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (United Nationas Security Council-UNSC) की सदस्यता के विस्तार एवं सुधारों के साथ ही भारत की स्थायी सदस्यता का समर्थन करने के लिये लातविया और लिथुआनिया का आभार व्यक्त किया।
  • उपराष्ट्रपति ने भारत-लातविया बिजनेस फोरम (India-Latvia Business Forum) को संबोधित किया और द्विपक्षीय व्यापार तथा आर्थिक सहयोग को बढ़ाये जाने का आह्वान किया।
  • उपराष्ट्रपति ने लातविया के राष्ट्रीय पुस्तकालय में राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की प्रतिमा का अनावरण भी किया।
  • उपराष्ट्रपति की एस्टोनिया यात्रा में द्विपक्षीय संबंधों (Bilateral Relations) के विकास के साथ-साथ संयुक्त राष्ट्र (UN) और अंतर्राष्ट्रीय संगठनों (International Organisations) में संभावित सहयोग पर बातचीत शामिल रही।

बाल्टिक देश

  • बाल्टिक देशों में यूरोप का उत्तर-पूर्वी क्षेत्र और बाल्टिक सागर के पूर्वी किनारे पर स्थित देश एस्टोनिया, लातविया और लिथुआनिया शामिल हैं।

Baltik country

  • बाल्टिक देश पश्चिम और उत्तर में बाल्टिक सागर से घिरे हुए हैं जिसके नाम पर क्षेत्र का नाम रखा गया है।
  • वर्ष 1991 में इन देशों की चुनी हुई तत्कालीन सरकारों ने जनता के भारी समर्थन के साथ सोवियत संघ सोशलिस्ट रिपब्लिक (Union of Soviet Socialist Republics-USSR) से स्वतंत्रता की घोषणा की।
  • बाल्टिक क्षेत्र प्राकृतिक संसाधनों से समृद्ध नहीं है। हालाँकि एस्टोनिया खनिज तेल उत्पादक है लेकिन इस क्षेत्र में खनिज और ऊर्जा संसाधनों का एक बड़ा हिस्सा आयात किया जाता है।
  • बाल्टिक अर्थव्यवस्था के लिये कृषि बहुत महत्त्वपूर्ण व्यवसाय है। आलू, अनाज और चारे की फसलों का उत्पादन, डेयरी और पशुपालन आदि यहाँ की प्रमुख आर्थिक गतिविधियाँ हैं।
  • भारत और बाल्टिक देशों के बीच ऐतिहासिक संपर्क और भाषायी मूल की समानता (Common linguistic Roots) विद्यमान हैं।
  • बाल्टिक देशों की अत्याधुनिक तकनीक और नवाचार परिवेश भारत के विशाल बाज़ार और इन तकनीकी आवश्यकता के पूरक हैं।

स्रोत: PIB


जैव विविधता और पर्यावरण

अवैध बाघ व्यापार

चर्चा में क्यों?

हाल ही में वर्ल्ड वाइल्डलाइफ फंड (World Wildlife Fund-WWF) और इंटरनेशनल यूनियन फॉर कंजरवेशन ऑफ नेचर (International Union for Conservation of Nature) की साझेदारी में TRAFFIC द्वारा संकलित 'Skin and Bones Unresolved: An Analysis of Tiger Seizures from 2000-2018' शीर्षक रिपोर्ट सामने आई है, जिसमें वर्ष 2000 से वर्ष 2018 के बीच हुए बाघों और उनके अंगों के अवैध वैश्विक व्यापार की पुष्टि की गई है। 

  • यह वन्यजीव व्यापार निगरानी नेटवर्क TRAFFIC द्वारा बाघ के व्यापार पर प्रकाशित रिपोर्ट की श्रृंखला का चौथा प्रसंस्करण है।

Tiger count

रिपोर्ट के प्रमुख बिंदु

  • कुल मिलाकर वर्ष 2000 से वर्ष 2018 तक 32 देशों और क्षेत्रों में वैश्विक स्तर पर 2,359 बाघों के संबंध में अनुमान व्यक्त किये गए। इनमें से लगभग 95% की बरामदगी उन देशों में दर्ज की गई जिन्हें बाघों का निवास स्थान कहा जाता हैं।
  • जीवित बाघों और उनके शवों (पूर्ण शरीर) के अलावा उनकी त्वचा, हड्डियों या पंजे जैसे विभिन्न रूपों में बाघ के अंगों को जब्त किया गया। जब्त किये गए सामानों में बाघों की त्वचा सबसे अधिक पाई गई।
  • इस रिपोर्ट के अनुसार जब्त किये गए सामानों के आधार पर बाघों की संख्या का अनुमान लगाया गया। 
  • हर साल औसतन 60 जब्ती की गई, यानी हर साल लगभग 124 बाघों को जब्त किया गया। 
  • जब्ती की घटनाओं की सबसे अधिक संख्या वाले शीर्ष तीन देश भारत (कुल बरामदगी 463 या 40.5%), चीन (126 या 11.0%) तथा इंडोनेशिया (119 या 10.5%) हैं।

भारत के संदर्भ में

  • हालाँकि बाघों की नवीनतम जनगणना में भारत की बाघों की आबादी 2,967 बताई गई है, तथापि ट्रैफिक रिपोर्ट के अनुसार वर्ष 2016 के WWF के अनुमान के अनुसार भारत में कुल 2,226 हैं। वैश्विक बाघ आबादी का 56% भारत में निवास करती है।
  • भारत जब्ती की घटनाओं (463, या सभी बरामदगी का 40%) के साथ-साथ बाघों की जब्ती (626 या 26.5%) की सबसे अधिक संख्या वाला देश है।
  • जब्त किये गए बाघ के अंगों के संदर्भ में भारत में बाघों की खाल/त्वचा (38%), हड्डियों (28%) और पंजे एवं दांत (42%) का हिस्सा सबसे अधिक था।

निष्कर्ष

बाघ जैसे पशु पारिस्थितिक तंत्र के स्वास्थ्य एवं विविधता में प्रमुख भूमिका निभाते हैं, साथ ही बाघ भारत का राष्ट्रीय पशु भी है। इस संदर्भ में भारत सरकार ने वर्ष 1973 में प्रोजेक्ट टाइगर की शुरुआत की। वर्ष 1973 से अब तक बाघों की संख्या में अच्छी खासी वृद्धि हुई है तथा मौजूदा समय में बाघ भारत में अपनी पारिस्थितिक क्षमता के करीब पहुँच चुके हैं। जीवों की संख्या में वृद्धि स्वस्थ पारिस्थितिक तंत्र का संकेतक होता है। अतः भारत को ऐसे संघर्षों में कमी करने के लिये जीवों के आवास क्षेत्र में वृद्धि तथा बफर क्षेत्रों आदि के निर्माण जैसे कार्यों पर ध्यान केंद्रित करना चाहिये। 

स्रोत: द हिंदू


विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी

भारत के एंटी-सैटेलाइट परीक्षण का मलबा

चर्चा में क्यों?

नासा (NASA) के ऑर्बिटल डेब्रिस प्रोग्राम ऑफिस (Orbital Debris Program Office) द्वारा अंतरिक्ष मलबे के आकलन पर जारी एक रिपोर्ट के अनुसार, भारत द्वारा मार्च 2019 में किये गए एंटी-सैटेलाइट परीक्षण (Anti-Satellite Test) अथवा मिशन शक्ति के मलबे का कुछ हिस्सा अभी तक ऑर्बिट में मौजूद है।

प्रमुख बिंदु

  • रिपोर्ट के अनुसार मलबे के बड़े आकार के पहचान योग्य 101 में से 49 टुकड़ों की ऑर्बिट में उपस्थिति का पता चला है, जबकि छोटे टुकड़ों के भी ऑर्बिट में होने की संभावना है जिनकी पहचान संभव नहीं है।
  • रिपोर्ट के आकलन के अनुसार भारत के इस परीक्षण से मलबे के लगभग 400 टुकड़े पैदा हुए। जिसमें से कुछ टुकड़ों ने अंतर्राष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन (International Space Station) के लिये खतरा उत्पन्न कर दिया।
  • रिपोर्ट के अनुसार, सार्वजनिक उपग्रह सूची (Public Satellite Catalogue) में 101 मलबे के टुकड़ों को दर्ज़ किया गया था।

भारत का पक्ष

  • Defence Research & Development Organisation (DRDO) के अनुमान के अनुसार यह परीक्षण लो अर्थ ऑर्बिट (Low Earth Orbit) में होने के कारण इससे पैदा हुआ मलबा पृथ्वी के वातावरण में प्रवेश कर स्वत: नष्ट हो जाना चाहिये था।
  • नासा की यह रिपोर्ट भारत के एंटी-सैटेलाइट टेस्ट (Anti-Satellite Test) के कारण पैदा हुए मलबे की मात्रा का पहला विश्वसनीय अनुमान है।
  • हालाँकि भारतीय एजेंसियों के पास मलबे को ट्रैक करने के लिये कोई स्वतंत्र तरीका नहीं है परंतु परीक्षण के समय मलबे के विनष्टीकरण व विखंडन से संबंधित इनके अनुमान लगभग सही साबित हुए हैं।
  • रिपोर्ट के अनुसार, अंतरिक्ष में भारत के 97 कार्यात्मक और गैर-कार्यात्मक लेकिन अक्षुण्ण उपग्रहों के साथ ही ट्रैक करने योग्य 157 अंतरिक्ष मलबे के टुकड़े है जो की सभी देशों द्वारा अंतरिक्ष में भेजे गए कुल 19,404 बड़ी वस्तुओं की तुलना में एक बहुत छोटा अनुपात है। इनमें से प्रयुक्त रॉकेटों के 14,432 अवशेष मलबे और कबाड़ में परिवर्तित हो चुके हैं।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


सामाजिक न्याय

सुपर 50: आदिवासी छात्रों के सपनों को पूरा करने हेतु एक पहल

चर्चा में क्यों?

महाराष्ट्र के जनजातीय विकास विभाग (Tribal development department) ने पेस एजुकेशनल ट्रस्ट (Pace Educational Trust) के साथ मिलकर युवा आदिवासी छात्रों, जो कि डॉक्टर और इंजीनियर बनने के इच्छुक हैं, के लिये सुपर 50 (Super 50) नामक एक शैक्षणिक कार्यक्रम शुरू किया है।

प्रमुख बिंदु

  • यह कार्यक्रम पटना के आनंद कुमार और उनके सुपर 30 (Super 30) के कार्य से प्रेरित है, जो IIT की प्रवेश परीक्षाओं में बैठने के लिये पिछड़े क्षेत्र के मेधावीछात्रों को तैयार करते हैं।
  • सुपर 50 कार्यक्रम राज्य के 50 सबसे मेधावी आदिवासी छात्रों को परामर्श देगा और उन्हें इंजीनियरिंग और मेडिकल परीक्षाओं के लिये तैयार करेगा।

कश्मीर सुपर 50

  • प्रोजेक्ट कश्मीर सुपर 50, भारतीय सेना, सेंटर फॉर सोशल रिस्पॉन्सिबिलिटी एंड लीडरशिप (CSRL) और PETRONET LNG Limited (PLL) की संयुक्त पहल है जिसकी शुरुआत मार्च 2013 में कश्मीर क्षेत्र में आर्थिक रूप से कमज़ोर वर्ग के बच्चों की शैक्षिक स्थिति को मज़बूत करने के लिये की गई थी।
  • यह 11 माह की अवधि वाला एक कार्यक्रम है जिसमें हर साल 50 छात्रों का चयन किया जाता है और उन्हें IIT-JEE, JKCET और अन्य प्रमुख इंजीनियरिंग संस्थानों की प्रवेश परीक्षा हेतु पूरी तरह से मुफ्त आवासीय कोचिंग प्रदान की जाती है।
  • छात्रों को एक समर्पित संकाय के तहत वागड़ पेस ग्लोबल स्कूल, विरार में प्रशिक्षित किया जाएगा तथा कोचिंग में सीबीएसई पाठ्यक्रम की कक्षा XI और XII शामिल होंगे और NEET और JEE जैसी प्रवेश परीक्षाओं की तैयारी होगी।
  • यह दो साल का आवासीय कार्यक्रम होगा, जहाँ छात्रों को हॉस्टल और मेस की सुविधा, टैबलेट, NCERT की किताबें और करियर काउंसलिंग की सुविधा प्रदान की जाएगी।

पृष्ठभूमि

  • महाराष्ट्र सरकार द्वारा जारी सरकारी अधिसूचना के अनुसार, पेस अकादमी ने उन आदिवासी छात्रों के लिये परियोजना का प्रस्ताव दिया, जिन्होंने अपनी दसवीं कक्षा की परीक्षाएँ पास कर ली हैं। जनजातीय विकास विभाग ने इसके मूल्यांकन हेतु एक कार्य समिति का गठन किया और केंद्र सरकार के समक्ष एक प्रस्ताव प्रस्तुत किया। अनुमोदन प्राप्त करने के बाद, विभाग ने 28 जून को प्रवेश परीक्षा का पहला दौर तथा 14 जुलाई को दूसरा दौर आयोजित किया गया।
  • मूल्यांकन के बाद 34 छात्रों को इंजीनियरिंग कोर्स के लिये और 16 को मेडिकल कोर्स प्रशिक्षण कार्यक्रम के लिये चुना गया। सभी चयनित छात्र सरकार द्वारा संचालित आदिवासी आश्रम स्कूल, एकलव्य आवासीय विद्यालय आदि से हैं।

स्रोत: द हिन्दू


विविध

Rapid Fire करेंट अफेयर्स (22 August)

  • भारत की यात्रा पर आए जाम्बिया के राष्टूपति एडगर लूंगू और पीएम मोदी के बीच दिल्ली के हैदराबाद हाउस में जब द्विपक्षीय मसलों पर बात हुई तो दोनों नेताओं ने दोनों देशों के संबंधों के विभिन्न पहलुओ पर व्यापक एवं उपयोगी चर्चा की। दोनों नेताओं ने इस बात पर जोर दिया कि रक्षा सहित कारोबार, निवेश संबंधों को और बढ़ाने से दोनों देशों को लाभ होगा। दोनों देशों ने रक्षा सहयोग, खनन सहित चुनाव आयोगों के बीच सहयोग बढ़ाने को लेकर 6 अलग-अलग क्षेत्रों में 6 सहमति पत्रों पर हस्ताक्षर भी किये ।भारत जाम्बिया को 1000 टन चावल और 100 टन दुग्ध पाऊडर उपलब्ध कराएगा। जाम्बिया वायुसेना बेस पर भारत 5 अग्निशमन दमकल तैनात करेगा। जाम्बिया के सशस्त्र बलों की क्षमताओं को बढ़ाने में सहायता के लिये भारतीय सैन्य एवं वायुसेना की प्रशिक्षण टीम को जाम्बिया में तैनात किया जाएगा। ज़ाम्बिया के राष्‍ट्रपति एडगर लुंगु ने भारत-जाम्बिया बिजनेस मीट में भी हिस्सा लिया। ज्ञातव्य है कि जाम्बिया दक्षिण अफ्रीका में स्थित एक भू-आबद्ध देश है। इसकी सीमा उत्तर में कांगो, उत्तर-पूर्व में जिम्बाब्वे और बोत्सवाना, दक्षिण में नामीबिया और पश्चिम में अंगोला से मिलती है।
  • अध्यापक शिक्षा पर दो दिवसीय अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन का आयोजन हाल ही में नई दिल्ली में किया गया। सम्मेलन में भारत और अन्‍य देशों के विशेषज्ञों ने अध्‍यापक शिक्षा की वर्तमान स्थिति, शिक्षण में नवाचार, शिक्षण में सूचना और संचार प्रौ़द्योगिकी का समावेश, अध्‍यापक शिक्षा का अंतर्राष्ट्रीयकरण जैसे विषयों पर चर्चा की। इस सम्मेलन की थीम जर्नी ऑफ टीचर एजुकेशन: लोकल टू ग्‍लोबल रखी गई थी। इसका आयोजन राष्‍ट्रीय अध्‍यापक शिक्षा परिषद (NCTE) के रजत जयंती समारोह के अंतर्गत किया गया। इसके अलावा मानव संसाधन विकास मंत्रालय ने 22 अगस्‍तको दुनिया के सबसे बड़े अध्‍यापक शिक्षा कार्यक्रम की शुरुआत की। इस कार्यक्रम का नाम निष्‍ठा (नेशनल इनिशिएटिव ऑन स्‍कूल टीचर्स हेड हॉलिस्टिक एडवांसमेंट-NISHTHA) है। इस मिशन के तहत 42 लाख अध्‍यापकों को प्रशिक्षण दिया जाएगा।
  • बाल्टिक देशों से संबंधों में और मज़बूती लाने के लिये 17 से 21 अगस्त तक उपराष्ट्रपति वेंकैया नायडू ने लिथुआनिया, लातविया और एस्तोनिया का दौरा किया। यह भारत की ओर से तीन बाल्टिक देशों की पहली उच्चस्तरीय यात्रा थी। दौरे के पहले चरण में लिथुआनिया (राष्ट्रपति गीतानस नोसदा) की राजधानी विलनियस पहुँचे, जहाँ दोनों देशों के बीच कुछ समझौता ज्ञापनों पर हस्ताक्षर किये गए। यात्रा के दूसरे चरण में भारत और लातविया (राष्ट्रपति इगिल्स लेवित्स) के बीच राजधानी रीगा में सांस्कृतिक आदान-प्रदान के समझौते पर हस्ताक्षर किये गए। इसके बाद एस्तोनिया (राष्ट्रपति केर्ति कलजुलैद ) की राजधानी तालिन में दोनों देशों ने संस्कृति, शिक्षा एवं आर्थिक सहभागिता पर ज़ोर देते हुए द्विपक्षीय संबंधों को आगे बढ़ाने का संकल्प जताया। विदित हो कि बाल्टिक राज्य या बाल्टिक देश उन बाल्टिक क्षेत्रों को कहते हैं, जिन्हें रूसी साम्राज्य से प्रथम विश्व युद्ध के समय स्वतंत्रता मिली थी। इनमें लिथुआनिया, लातविया और एस्तोनिया आते हैं।
  • भारत में सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जस्टिस मदन बी. लोकुर ने हाल ही में फिजी के सर्वोच्च न्यायालय में न्यायाधीश की शपथ ली। वे फिजी में अप्रवासी पैनल का हिस्सा होंगे और उनका कार्यकाल तीन साल का होगा। फिजी के राष्ट्रपति जिओजी कोनरोते ने कार्यकारी चीफ जस्टिस कमल कुमार की मौजूदगी में जस्टिस लोकुर को शपथ दिलाई। यह पहला मौका है जब कोई भारतीय जज किसी दूसरे देश की शीर्ष अदालत में जज बना है। जस्टिस लोकुर वर्ष 1981 में सुप्रीम कोर्ट में वकील और 1998 में एडिशनल सॉलिसिटर जनरल नियुक्त हुए। इसके बाद उन्होंने दिल्ली हाईकोर्ट में अतिरिक्त न्यायाधीश का कार्यभार भी संभाला। जुलाई 1999 में वे हाईकोर्ट के जज बनाए गए। इसके अलावा जस्टिस लोकुर गुवाहाटी और आंध्र प्रदेश हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश भी रहे। जून 2012 में वे सुप्रीम कोर्ट के जज बने तथा 31 दिसंबर, 2018 को सेवानिवृत्त हुए थे।
  • कैबिनेट की नियुक्ति समिति ने केंद्रीय गृह सचिव राजीव गौबा को अगला कैबिनेट सचिव नियुक्त किया। उनका कार्यकाल दो साल का होगा। झारखंड कैडर के 1982 बैच के IAS अधिकारी राजीव गौबा शुरू में कैबिनेट सचिवालय में विशेष कार्याधिकारी के तौर पर काम संभालेंगे और बाद में मौजूदा कैबिनेट सचिव पी.के. सिन्हा की जगह देश के टॉप ब्यूरोक्रेट की जिम्मेदारी लेंगे। उनका कार्यकाल 30 अगस्त से दो साल तक होगा। इसके साथ ही अजय कुमार को नया रक्षा सचिव नियुक्त किया गया है, जो 1985 बैच के केरल काडर के IAS अधिकारी हैं। वे वर्तमान रक्षा संजय मित्रा की जगह लेंगे, जो दो साल से अधिक समय से रक्षा सचिव हैं और इस साल जून में कार्यकाल के पूरा होने पर उन्हें तीन महीने का विस्तार दिया गया था। इनके अलावा सुभाष चंद्र को रक्षा उत्पादन सचिव नियुक्त किया गया है। 1986 बैच के IAS अधिकारी सुभाष चंद्र कर्नाटक काडर से हैं। बृज कुमार अग्रवाल को सचिव लोकपाल नियुक्त क्या गया है। वह 1985 बैच के IAS अधिकारी हैं और हिमाचल प्रदेश काडर से हैं।

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