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डेली न्यूज़

  • 19 Jun, 2020
  • 38 min read
सामाजिक न्याय

गरीब कल्याण रोज़गार अभियान

प्रीलिम्स के लिये:

गरीब कल्याण रोज़गार अभियान

मेन्स के लिये:

गरीब कल्याण रोज़गार अभियान का रोज़गार एवं प्रवासी मज़दूरों के संदर्भ में महत्त्व

चर्चा में क्यों?

COVID -19 महामारी के चलते प्रवासी मज़दूरों के समक्ष उत्पन्न रोज़गार की समस्या को ध्यान में रखते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा 20 जून, 2020 को ‘गरीब कल्याण रोज़गार अभियान’ (Garib Kalyan Rojgar Abhiyan- GKRA) की शुरुआत की जाएगी ।

प्रमुख बिंदु:

  • इस अभियान की शुरुआत प्रधानमंत्री द्वारा वीडियो-कॉन्फ्रेंस के माध्यम से बिहार के खगड़िया ज़िले के ग्राम तेलिहार से की जाएगी।
  • ‘गरीब कल्याण रोज़गार अभियान’ के अंतर्गत सरकार द्वारा लगभग 50 हज़ार करोड़ रुपए का निवेश किया जायेगा।
  • यह 125 दिनों का अभियान होगा, जिसे मिशन मोड रूप में संचालित किया जाएगा।
  • इस अभियान में छ: राज्यों बिहार, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, राजस्थान, झारखंड तथा ओडिशा को शामिल किया गया है।
  • छ: ज़िलों के 25,000 से अधिक प्रवासी श्रमिकों के साथ कुल 116 ज़िलों को इस अभियान के लिये चुना गया है, जिसमें 27 आकांक्षी ज़िले (aspirational districts) भी शामिल हैं।
  • इस कार्यक्रम में शामिल छ: राज्यों के 116 ज़िलों के गाँव कॉमन सर्विस सेंटर (Common Service Centres) तथा ‘कृषि विज्ञान केंद्रों’ (Krishi Vigyan Kendras) के माध्यम से शामिल होंगे, जो कोरोना के कारण लागू शारीरिक दूरी के मानदंडों को भी ध्यान में रखेंगे ।
  • इस अभियान में 12 विभिन्न मंत्रालयों को समनवित किया जाएगा, जिसमें पंचायती राज, ग्रामीण विकास, सड़क परिवहन और राजमार्ग, खान, पेयजल और स्वच्छता, पर्यावरण, रेलवे, नवीकरणीय ऊर्जा, पेट्रोलियम और प्राकृतिक गैस, सीमा सड़कें, दूरसंचार तथा कृषि मंत्रालय शामिल हैं।

अभियान का महत्त्व:

  • इस अभियान को ऐसे समय में शुरू किया जा रहा है जब COVID-19 के प्रकोप के कारण लाखों प्रवासी मज़दूर गाँवों की तरफ लौट रहे हैं जिससे ग्रामीण क्षेत्रों में रोज़गार की समस्या उत्पन्न हो रही है।
  • मनरेगा के तहत काम करने वाले परिवारों की संख्या भी मई 2020 में एक स्तर पर पहुँच गई है।
  • यह अभियान ग्रामीण क्षेत्रों में ही प्रवासी श्रमिकों को रोज़गार प्रदान करने के साथ-साथ गाँवों के टिकाऊ बुनियादी ढाँचे का निर्माण करने में सहायक होगा।
  • यह अभियान प्रवासी श्रमिकों तथा ग्रामीण नागरिकों के सशक्तीकरण तथा उन्हें आत्मनिर्भर बनाने में महत्त्वपूर्ण भूमिका का निर्वहन करेगा अर्थात् गाँवों में ही आजीविका के अवसरों को इस अभियान के माध्यम से विकसित किया जाएगा।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


भारतीय अर्थव्यवस्था

अर्थव्यवस्था के संकुचन की संभावना: एशियाई विकास बैंक

प्रीलिम्स के लिये

एशियाई विकास बैंक

मेन्स के लिये

एशियाई विकासशील देशों पर COVID-19 का प्रभाव, भारत सरकार द्वारा किये गए विभिन्न प्रयास

चर्चा में क्यों?

हाल ही में एशियाई विकास बैंक (Asian Development Bank- ADB) द्वारा जारी एशियाई विकास आउटलुक (Asian Development Outlook) के अनुसार, मौजूदा वित्तीय वर्ष में भारतीय अर्थव्यवस्था में कुल 4 प्रतिशत का संकुचन आ सकता है।

प्रमुख बिंदु

  • एशियाई विकास बैंक (ADB) के अनुसार, भारतीय अर्थव्यवस्था कोरोना वायरस (COVID-19) महामारी के कारण काफी बुरी तरह से प्रभावित हुई है, जिसका प्रभाव जल्द ही भारतीय अर्थव्यवस्था के विकास पर देखने को मिल सकता है।
    COVID-19 के प्रभावस्वरूप दक्षिण एशिया की तमाम अर्थव्यवस्थाओं में समग्र रूप से मौज़ूदा वित्तीय वर्ष में 3 प्रतिशत का संकुचन हो सकता है।

कारण

  • ध्यातव्य है कि सभी उच्च-आवृत्ति वाले संकेतक जैसे क्रय प्रबंधक सूचकांक (Purchasing Manager's Index- PMI) आदि अप्रैल माह में अपने सबसे निचले स्तर पर पहुँच गए हैं।
  • बड़े-बड़े शहरों में अपनी नौकरी गँवाने के बाद सभी प्रवासी कामगार अपने गाँव लौट गए हैं, इतनी समस्याओं का सामने करने के बाद उन्हें उत्पादन के लिये वापस शहरों में लाना काफी चुनौतीपूर्ण है, ऐसे में वित्तीय वर्ष 2020-21 में भारत का उत्पादन काफी धीमा रहने वाला है।
  • ADB का अनुमान है कि वर्ष 2020-21 में एशिया का विकास अपेक्षाकृत काफी धीमा रहेगा, क्योंकि कोरोना वायरस (COVID-19) महामारी को संबोधित करने के लिये अपनाए गए उपायों जैसे लॉकडाउन आदि के कारण आर्थिक गतिविधियों के कार्यान्वयन में बाधा उत्पन्न होती है और मांग भी कमज़ोर होती है।

अन्य एशियाई क्षेत्रों की स्थिति

  • अनुमान के अनुसार, वित्तीय वर्ष 2020-21 में एशिया मुश्किल से 0.1 प्रतिशत की वृद्धि दर के साथ विकास करेगा, जो कि बीते 6 दशकों में सबसे कम विकास दर है।
  • इससे पूर्व वर्ष 1961 में इतनी कम वृद्धि दर्ज की गई थी।
  • वित्तीय वर्ष 2020-21 में पूर्वी एशिया के लिये विकास दर का अनुमान 2.0 प्रतिशत से घटकर 1.3 प्रतिशत हो गया है।
  • एशियाई विकास आउटलुक के मुताबिक, मौजूदा वित्तीय वर्ष (2020-21) में चीन में 1.8 प्रतिशत की सकारात्मक वृद्धि दर्ज करने का अनुमान है, जबकि वित्तीय वर्ष 2019-20 में चीन की आर्थिक वृद्धि दर 6.1 प्रतिशत थी, इस प्रकार स्पष्ट है कि कोरोना वायरस (COVID-19) के कारण चीन के आर्थिक विकास में काफी कमी आई है।
  • दक्षिण पूर्व एशिया में उपभोग, निवेश और व्यापार में व्यापक गिरावट आई है। इस क्षेत्र में मौजूद सभी देशों की समग्र अर्थव्यवस्था में वित्तीय वर्ष 2020-21 में 2.7 प्रतिशत का संकुचन होने का अनुमान है।

एशियाई विकास बैंक

(Asian Development Bank- ADB)

  • एशियाई विकास बैंक (ADB) एक क्षेत्रीय विकास बैंक है। इसकी स्थापना 19 दिसंबर 1966 को हुई थी।
  • ADB का मुख्यालय मनीला, फिलीपींस में है। 1966 में ADB की शुरुआत 31 सदस्यों के साथ हुई थी, किंतु वर्तमान में ADB में कुल 68 सदस्य हैं, जिनमें से 49 एशिया-प्रशांत क्षेत्र के हैं।
  • इसका उद्देश्य एशिया में सामाजिक और आर्थिक विकास को बढ़ावा देना है।
  • ADB विकासशील देशों की उन परियोजनाओं को समर्थन प्रदान करता है जो सार्वजनिक एवं निजी क्षेत्र के सहयोग के माध्यम से आर्थिक विकास की दिशा में कार्य करती हैं।
  • एशियाई विकास बैंक (ADB) द्वारा ‘एशियाई विकास आउटलुक’ नाम से एक रिपोर्ट प्रस्तुत की जाती है, जिसमें एशिया के अधिकांश देशों का आर्थिक विश्लेषण और संबंधित पूर्वानुमान प्रस्तुत किया जाता है।

आगे की राह

  • एशिया महाद्वीप में मौजूद अर्थव्यवस्थाओं पर मौजूदा वित्तीय वर्ष में COVID-19 महामारी का प्रकोप इसी प्रकार जारी रहेगा, बावजूद इसके कि समय के साथ लॉकडाउन को शिथिल किया जा रहा है और आर्थिक गतिविधियों को 'नए सामान्य' परिदृश्य में फिर से शुरू किया जा रहा है।
  • ADB के अनुसार, आने वाले समय में कोरोना वायरस (COVID-19) महामारी और भी गंभीर रूप धारण कर सकती है, जिसका स्पष्ट प्रभाव विभिन्न अर्थव्यवस्थाओं पर देखने को मिलेगा, जिसके कारण वित्तीय संकट से इनकार नहीं किया जा सकता है।
  • आवश्यक है कि विभिन्न सरकारों को COVID-19 के नकारात्मक प्रभाव को कम करने के लिये नीतिगत उपाय अपनाने चाहिये और यह सुनिश्चित करना चाहिये कि अर्थव्यवस्था पर कोरोना वायरस का प्रभाव कम-से-कम हो।

स्रोत: द हिंदू


अंतर्राष्ट्रीय संबंध

रूस-भारत-चीन समूह की आभासी बैठक

प्रीलिम्स के लिये:

रूस-भारत-चीन समूह

मेन्स के लिये:

रूस-भारत-चीन समूह

चर्चा में क्यों?

'विदेश मंत्रालय' (Ministry of External Affairs- MEA) के अनुसार, भारत 23 जून को रूस-भारत-चीन (Russia-India-China- RIC) समूह की होने वाली 'आभासी बैठक' (Virtual Meeting) में भाग लेगा।

प्रमुख बिंदु:

  • RIC की ‘आभासी बैठक' पर भारत-चीन 'वास्तविक नियंत्रण रेखा' (Line of Actual Control- LAC) पर उत्पन्न तनाव के कारण अनिश्चितता की स्थति बनी हुई थी।
  • रूस, भारत तथा चीन के मध्य LAC पर उत्पन्न तनाव को कम करने में 'रचनात्मक संवाद’ (Constructive Dialogue) स्थापित करने में प्रमुख भूमिका निभा सकता है।
  • यहाँ ध्यान देने योग्य तथ्य यह है कि 15 जून को गलवान घाटी (Galwan Valley) में चीनी सैनिकों के साथ मुठभेड़ में कम-से-कम 20 भारतीय सैनिक शहीद हो गए थे।

पृष्ठभूमि:

  • RIC समूह के निर्माण का विचार BRICS समूह से बहुत पहले वर्ष 1998 में तत्कालीन रूसी विदेश मंत्री द्वारा दिया गया था। हालाँकि RIC समूह को उतना महत्त्व नहीं दिया गया जितना BRICS समूह को दिया गया है।
  • यद्यपि तीनों देशों के नेताओं द्वारा संयुक्त राष्ट्र महासभा जैसे बहुपक्षीय सम्मेलनों के दौरान बैठक का आयोजन किया जाता रहा है।

भारत-चीन संबंधों के लिये बैठक का महत्त्व:

  • RIC त्रिपक्षीय समूह होने के कारण, प्राय: इसमें द्विपक्षीय मुद्दों पर चर्चा नहीं की जाती है। रूस ने भारत को RIC की बैठक में किसी भी द्विपक्षीय मुद्दे को न उठाने की सलाह दी है।
  • बैठक में चर्चा किये जाने वाले विषयों का निर्धारण पहले ही किया जा चुका है। अत: नवीन मुद्दों को बैठक में नहीं उठाया जाएगा।
  • भारत भी अपने सीमा विवादों को द्विपक्षीय रूप से हल करने का समर्थन करता है, अत: इस बात की भी पूरी संभावना है कि भारत अपने सीमा विवादों को RIC की बैठक में न उठाए।

RIC का महत्त्व:

  • तीनों देश बहुपक्षीय संस्थानों जैसे संयुक्त राष्ट्र, विश्व व्यापार संगठन, वैश्विक वित्तीय संस्थानों में सुधार का समर्थन करते हैं।
  • तीनों देश अंतर्राष्ट्रीय तथा क्षेत्रीय शांति एवं स्थिरता को बढ़ावा देने के लिये सभी स्तरों पर नियमित रूप से वार्ता का समर्थन करते हैं।
  • तीनों देश BRICS, शंघाई सहयोग संगठन (Shanghai Cooperation Organisation- SCO), पूर्वी एशिया शिखर सम्मेलन (East Asia Summit- EAS), एशिया-यूरोप बैठक (Asia-Europe Meeting- ASEM) जैसे साझा समूहों के माध्यम से आतंकवाद, जलवायु परिवर्तन जैसी वैश्विक चुनौतियों का समाधान करने पर सहमत हैं।
  • तीनों देश यूरेशिया तथा एशिया-प्रशांत क्षेत्र में रणनीतिक अवस्थिति के आधार पर वैश्विक शक्तियाँ हैं।

भारत के लिये RIC का महत्त्व:

  • QUAD (भारत, अमेरिका, जापान तथा ऑस्ट्रेलिया) तथा JAI (जापान-अमेरिका-भारत) जैसे समूह भारत को केवल एक समुद्री शक्ति होने तक ही सीमित कर देंगे, जबकि RIC समूह वास्तव में भारत को महसागरीय शक्ति के साथ-साथ महाद्वीपीय शक्ति के रूप में उबरने में मदद कर सकता है।
  • भारत और चीन दोनों देशों के रूस के साथ बेहतर संबंध है ऐसे में रूस इन दोनों देशों के बीच सेतु का कार्य कर सकता है।

समूह के समक्ष चुनौतियाँ:

  • भारत-रूस के राजनीतिक संबंध अच्छे हैं लेकिन द्विपक्षीय व्यापार या निवेश कम है। इसके विपरीत भारत-चीन व्यापार बहुत अधिक है लेकिन द्विपक्षीय राजनीतिक संबंध अच्छे नहीं हैं।
  • रूस और चीन सुरक्षा परिषद के स्थायी सदस्य हैं जबकि भारत नहीं, अत: यह समूह इस दृष्टि से असंतुलित नज़र आता है।
  • अमेरिका के संबंध में तीनों देशों की नीतियाँ भी बेमेल नज़र आती हैं। रूस और चीन अमेरिका की एशिया-प्रशांत नीति से खुश नहीं हैं वही भारत इस संबंध में अमेरिका का समर्थन करता है।

निष्कर्ष:

  • रूस-भारत-चीन (RIC) समूह एक महत्त्वपूर्ण बहुपक्षीय समूह है, क्योंकि यह तीन सबसे बड़े यूरेशियन देशों को एक साथ लाता है जिनकी भौगोलिक सीमाएँ आपस में जुड़ी हैं। 23 जून को आयोजित की जा रही आभासी बैठक ज़रूरी है क्योंकि इसमें COVID-19 महामारी जैसे महत्त्वपूर्ण मामलों पर चर्चा की जाएगी।

स्रोत: द हिंदू


विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी

क्वांटम उपग्रह आधारित संचार प्रणाली

प्रीलिम्स के लिये:

क्वांटम उपग्रह आधारित संचार प्रणाली

मेन्स के लिये:

क्वांटम उपग्रह आधारित संचार प्रणाली

चर्चा में क्यों?

चीनी वैज्ञानिकों के एक अध्ययन दल ने ‘मिसियस’ (Micius) क्वांटम उपग्रह का प्रयोग कर विश्व में पहली बार ‘क्वांटम इंटेंगलमेंट’ (Quantum Entanglement) पर आधारित लंबी दूरी के बीच ‘क्वांटम क्रिप्टोग्राफी’ (Quantum Cryptography) को सफलतापूर्वक स्थापित किया गया है, जो क्वांटम दूरसंचार के व्यावहारिक इस्तेमाल में एक महत्त्वपूर्ण प्रगति माना जा रहा है।

प्रमुख बिंदु:

  • पान जियान-वी (Pan Jian-Wei), जिन्हें चीन में 'क्वांटम तकनीक का पिता' माना जाता है, के नेतृत्त्व वाली ऑपरेटिंग टीम ने क्वांटम तकनीक की दिशा में कई सफलताओं को प्राप्त किया है।
  • मिसियस उपग्रह के माध्यम से मूल ग्राउंड स्टेशन जो एक-दूसरे से 1,200 किमी. की दूरी पर स्थित थे, के मध्य इंटैंगलमेंट क्वांटम क्रिप्टोग्राफी को सफलतापूर्वक स्थापित किया गया है।
  • इंटैंगलमेंट फोटॉन आपस में संबंधित हल्के कण होते हैं जिनके गुण आपस में संबंधित रहते हैं। यदि किसी एक फोटॉन में हेराफेरी की जाती है, तो इसका प्रभाव दूसरे फोटॉन पर भी होता है।

क्वांटम संचार:

  • क्वांटम क्रिप्टोग्राफी या क्वांटम कुंजी वितरण (Quantum Key Distribution- QKD) सुरक्षित संचार के लिये ‘सममित कूटबद्ध कुंजी’ (Symmetric Encoded Key) के वितरण को सुरक्षित करने की एक तकनीक है। इसमें संचार के लिये फोटॉन जो कि 'क्वांटम कण है, का प्रयोग किया जाता है।
  • विभिन्न QKD प्रोटोकॉल को यह सुनिश्चित करने के लिये डिज़ाइन किया गया है कि संचार में काम आने वाले फोटॉनों में किसी प्रकार की हेराफेरी संपूर्ण संचार प्रणाली को रोक दे।

क्वांटम संचार उपग्रह मिसियस (Micius):

  • मिसियस (Micius) विश्व का प्रथम क्वांटम संचार उपग्रह है, जिसे वर्ष 2016 में लॉन्च किया गया था।
  • उपग्रह का नाम प्राचीन चीनी दार्शनिक मोज़ि (Mozi) के नाम पर रखा गया है।

क्वांटम दूरसंचार में चुनौतियाँ:

  • ऑप्टिकल आधारित QKD का उपयोग कर केवल कुछ किलोमीटर की दूरी तक संचार स्थापित किया जा सकता है, अत: इस समस्या का समाधान करने के लिये उपग्रह आधारित क्वांटम संचार प्रणाली पर कार्य किया जा रहा है।
    • लंबी दूरी के लिये संचार स्थापित करना:

      • अब तक ऑप्टिकल आधारित QKD का उपयोग कर केवल 100 किलोमीटर तक ही सुरक्षित संचार स्थापित किया गया है। हालाँकि रिपीटर (Repeater) के प्रयोग से क्वांटम दूरसंचार की लंबाई बढ़ाई जा सकती है।
      • उदाहरण के लिये विश्व में पहली क्वांटम गोपनीय दूर संचार लाइन पेइचिंग-शांगहाई की लंबाई 2000 किमी. है, जिसमें 32 रिपीटरों का प्रयोग किया गया है।
      • रिपीटर एक इलेक्ट्रॉनिक उपकरण है जो संकेत प्राप्त करता है और इसे आगे पहुँचाता है। ट्रांसमीटरों का विस्तार करने के लिये रिपीटर का उपयोग किया जाता है ताकि सिग्नल लंबी दूरी को कवर कर सके।
  • सुरक्षा का मुद्दा:
    • जब रिपीटर का प्रयोग क्वांटम संचार दूरी बढ़ाने में किया जाता है तो इस रिपीटर की सुरक्षा मानव द्वारा सुनिश्चित की जाती है अत: सूचनाओं के लीक होने का खतरा रहेगा।

शोध का महत्त्व:

  • क्वांटम उपग्रह आधारित लंबी दूरी की संचार तकनीक 'क्वांटम इंटरनेट' की दिशा में प्रमुख कदम होगा।
  • क्वांटम तकनीक के राजनीतिक और सैन्य निहितार्थ हैं जिन्हें अनदेखा नहीं किया जा सकता है।
  • वर्ष 2013 में एडवर्ड स्नोडेन द्वारा पश्चिमी सरकारों द्वारा की जाने वाली इंटरनेट निगरानी के खुलासे के बाद संचार को अधिक सुरक्षित बनाने के लिये चीन जैसे देशों ने क्वांटम क्रिप्टोग्राफी में अनुसंधान बढ़ाने को प्रोत्साहित किया है।

निष्कर्ष:

  • एक लंबी दूरी की क्वांटम संचार संपर्क की सफलता यह बताती है कि हम संचार प्रणाली के नए युग में प्रवेश कर रहे हैं। जहाँ प्रारंभ में देशों की क्वांटम संचार के लिये चीन पर निर्भरता बढ़ सकती है परंतु भविष्य में ये देश स्वयं की क्वांटम उपग्रह संचार प्रणाली विकसित कर सकते हैं।

स्रोत: डाउन टू अर्थ


विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी

उमीफेनोविर औषधि

प्रीलिम्स के लिये:

उमीफेनोविर, केंद्रीय औषधि अनुसंधान संस्थान

मेन्स के लिये:

COVID-19 से बचाव हेतु सरकार द्वारा किये गए प्रयास

संदर्भ?

वैज्ञानिक तथा औद्योगिक अनुसंधान परिषद (Council of Scientific and Industrial Research- CSIR) के तहत कार्यरत केंद्रीय औषधि अनुसंधान संस्थान (Central Drug Research Institute- CDRI) को COVID-19 के उपचार हेतु उमीफेनोविर (Umifenovir) औषधि के नैदानिक ​​परीक्षण के लिये औषधि महानियंत्रक, भारत सरकार से अनुमति मिल गई है।

प्रमुख बिंदु:

  • यह परीक्षण यादृच्छिक (Randomised), डबल ब्लाइंड (Double-blind), प्लेसबो नियंत्रित (Placebo-controlled) होगा तथा इसके द्वारा उमिफेनोविर की प्रभावकारिता, सुरक्षा और सहनशीलता का परीक्षण किया जाएगा।
  • उमीफेनोविर मानव कोशिकाओं में वायरस के प्रवेश को रोकने और प्रतिरक्षा प्रणाली को सक्रिय करने के द्वारा कार्य करती है।
  • इस औषधि की रोगनिरोधक क्षमता अधिक है।
  • उमिफेनोविर मुख्य रूप से इन्फ्लूएंज़ा के इलाज के लिये चीन और रूस में उपलब्ध है, और हाल ही में COVID-19 रोगियों के लिये इसके संभावित उपयोग के कारण प्रमुखता में आई है।
  • उमीफेनोविर अन्य किसी देश में उपलब्ध नहीं है।
  • औषधि के निर्माण और विपणन के लिये मेडिज़ेस्ट फार्मास्यूटिकल्स प्राइवेट लिमिटेड गोवा (Medizest Pharmaceuticals Private Ltd. Goa) को लाइसेंस दिया गया है।
  • CSIR ने रिकॉर्ड समय में उमीफेनोविर के निर्माण के लिये प्रक्रिया प्रौद्योगिकी (Process Technology) विकसित की है।
  • दवा के लिये सभी कच्चा माल स्वदेशी रूप से उपलब्ध है।

केंद्रीय औषधि अनुसंधान संस्थान (Central Drug Research Institute- CDRI):

  • CDRI जैव चिकित्सा अनुसंधान के क्षेत्र में एक अग्रणी अनुसंधान संस्थान है।
  • इसका उद्घाटन भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री पं. जवाहर लाल नेहरू द्वारा 17 फरवरी, 1951 को किया गया था।
  • इसका उद्देश्य देश में औषधि अनुसंधान और विकास के क्षेत्र को मज़बूत करना तथा आगे बढ़ाना है।

यादृच्छिक, डबल ब्लाइंड, प्लेसबो नियंत्रित परीक्षण:

  • यादृच्छिक-
    • यह एक प्रकार का वैज्ञानिक प्रयोग है जिसके अंतर्गत किसी विषय को यादृच्छिक (Randomly) आधार पर दो समूहों में बाँटा जाता है।
    • इसमें से एक समूह में प्रयोग के तौर पर कुछ हस्तक्षेप किये जाते हैं तथा दूसरे समूह का उपचार पारंपरिक तरीके से ही किया जाता है।
    • उसके बाद दोनों प्रयोगों से प्राप्त परिणामों की तुलना की जाती है। इस प्रयोग के परिणाम का उपयोग हस्तक्षेप की प्रभावशीलता का आकलन करने के लिये किया जाता है।
  • डबल ब्लाइंड-
    • इसमें न तो रोगियों को और न ही शोधकर्त्ताओं को पता होता है कि किसे प्लेसबो दिया जा रहा है तथा किस का उपचार किया जा रहा है। यह ये सुनिश्चित करता है कि परीक्षणों के परिणाम शोधकर्त्ताओं और रोगियों के पूर्वाग्रह से प्रभावित नहीं होते हैं।
  • प्लेसबो नियंत्रित-
    • प्लेसबो-नियंत्रित एक प्लेसबो प्राप्त करने वाले नियंत्रण समूह को संदर्भित करता है। यह इसे उन अध्ययनों से अलग करता है जो केवल उपचार देते हैं और परिणाम रिकॉर्ड करते हैं।
    • यहाँ, एक नियंत्रण समूह को प्लेसबो जबकि दूसरे समूह को औषधि (या अन्य उपचार) देकर अध्ययन किया जाता है। इस प्रकार, शोधकर्त्ता प्लेसबो और औषधि के प्रभाव की तुलना कर सकते हैं।

आगे की राह:

  • यदि उमिफेनोविर का नैदानिक ​परीक्षण सफल रहा तो यह COVID-19 के खिलाफ एक सुरक्षित, प्रभावकारी, सस्ती औषधि हो सकती है और राष्ट्रीय कार्यक्रम का हिस्सा हो सकती है।

स्रोत: PIB


भारतीय अर्थव्यवस्था

चीनी आयात पर अंकुश लगाने के लिये एक नई ई-कॉमर्स नीति

प्रीलिम्स के लिये:

आत्मनिर्भर भारत अभियान, DPIIT

मेन्स के लिये:

राष्ट्रीय ई-कॉमर्स नीति का महत्व, देश में ई-कॉमर्स उद्योग के समक्ष चुनौतियाँ और आवश्यक उपाय।

चर्चा में क्यों?

चीन से आयातित वस्तुओं पर अंकुश लगाने के उद्देश्य से, भारत जल्द ही ई-कॉमर्स कंपनियों के लिये यह स्पष्ट करना अनिवार्य कर सकता है कि उनके मंच पर बेची जा रही वस्तुओं को भारत में उत्पादित किया गया है या नहीं।

प्रमुख बिंदु

  • यह क्लॉज़ राष्ट्रीय ई-कॉमर्स नीति मसौदे का भी एक हिस्सा हो सकता है।
  • 31 मार्च, 2020 को समाप्त वित्तीय वर्ष के पहले 11 महीनों में चीन का भारत के साथ लगभग 47 बिलियन डॉलर का व्यापार अधिशेष था।
  • यह एक प्रकार का चेकमार्क (CheckMark) होगा, जिसमें उपभोक्ता भारत में उत्पादित सामान खरीदने का फैसला कर सकते हैं।
  • राष्ट्रीय ई-कॉमर्स नीति मसौदे में भी ई-कॉमर्स कंपनियों को सभी उत्पादों के लिये मार्केटप्लेस पर विक्रेता का विवरण उपलब्ध कराने के लिये अनिवार्य कर दिया गया है।
    • नीति में प्रस्ताव था कि इकाई का पूरा नाम, उसका पता और संपर्क विवरण प्रदान किया जाएगा।

राष्ट्रीय ई-कॉमर्स नीति:

  • ई-कॉमर्स को बढ़ावा देने के उद्देश्य से उद्योग और आंतरिक व्यापार संवर्धन विभाग (Department for Promotion of Industry and Internal Trade- DPIIT) द्वारा इस नीति को तैयार किया है।
    • ई-कॉमर्स के क्षेत्र में उपभोक्ता संरक्षण, डेटा गोपनीयता और हितधारकों हेतु समान अवसर उपलब्ध कराने जैसी समस्याएँ पटल पर आती रही हैं। इन्हीं समस्याओं हेतु उचित समाधान प्रस्तुत करने के लक्ष्य के साथ राष्ट्रीय ई-कॉमर्स नीति एक रणनीति तैयार करती है।
  • COVID-19 महामारी के चलते इस नीति को जारी करने में देरी हो रही है।
    • राष्ट्रीय ई-कॉमर्स नीति का मसौदा वर्ष 2019 में जारी किया गया था।

Home-made

इस कदम की महत्ता:

  • इससे उपभोक्ताओं को स्थानीय स्तर पर निर्मित उत्पादों को खरीदने के विकल्प प्राप्त होने के अतिरिक्त हाल ही में भारत सरकार द्वारा प्रारंभ किये गए आत्मनिर्भर भारत मिशन को भी समर्थन मिलेगा।
  • यह क्लॉज़ देश की आत्मनिर्भरता के एजेंडे के साथ अच्छी तरह से सुमेलित होगा और लोगों को इस बात के लिये सचेत करेगा कि वे क्या खरीद रहे हैं।
  • ई-कॉमर्स मसौदा नीति, नियामकों को उन लोगों को दंडित करने की शक्ति देती है जो गलत सूचना फैलाते हैं।
    • नीति का उद्देश्य ई-कॉमर्स, नौकरियों, ग्रामीण उत्पादकता और निर्यात को बढ़ावा देना है।

स्रोत: इकोनोमिक्स टाइम्स


विविध

Rapid Fire (करेंट अफेयर्स): 19 जून, 2020

नेपाल के नए मानचित्र को राष्ट्रपति की मंज़ूरी 

भारत के विरोध के बावजूद नेपाल की राष्ट्रपति बिद्या देवी भंडारी (Bidhya Devi Bhandari) ने नेपाल के नए मानचित्र को अपनी स्वीकृति दे दी है, राष्ट्रपति की इस मंज़ूरी के साथ ही नेपाल का नया मानचित्र अब नेपाल के संविधान का हिस्सा बन गया है। इससे पूर्व नेपाल की संसद के उच्च सदन और निचले सदन ने नेपाल के विवादीय मानचित्र को अपनी मंज़ूरी दी थी। उल्लेखनीय है कि कुछ समय पूर्व नेपाल द्वारा आधिकारिक रूप से नेपाल का नवीन मानचित्र जारी किया गया था, जिसमें उत्तराखंड के कालापानी (Kalapani) लिंपियाधुरा (Limpiyadhura) और लिपुलेख (Lipulekh) को नेपाल का हिस्सा बताया गया था। नेपाल के अनुसार, सुगौली संधि (वर्ष 1816) के तहत काली नदी के पूर्व में अवस्थित सभी क्षेत्र, जिनमें लिम्पियाधुरा (Limpiyadhura), कालापानी (Kalapani) और लिपुलेख (Lipulekh) शामिल हैं, नेपाल का अभिन्न अंग हैं, भारत इस क्षेत्र को उत्तराखंड के पिथौरागढ़ ज़िले का हिस्सा मानता है। भारत ने नेपाल के नवीन मानचित्र को यह कहते हुए अस्वीकार कर दिया था कि नेपाल के नए मानचित्र में देश के क्षेत्र का अनुचित रूप से विस्तार किया गया है, जो कि ऐतिहासिक तथ्यों पर आधारित नहीं है। भारत के अनुसार, नेपाल का कृत पूर्णतः एकपक्षीय है और कूटनीतिक संवाद के माध्यम से शेष सीमा मुद्दों को हल करने के लिये द्विपक्षीय समझौते के विपरीत है।

93वें अकादमी पुरस्‍कार स्थगित

कोरोना वायरस (COVID-19) के मद्देनज़र वर्ष 2021 में आयोजित होने वाले 93वें अकादमी पुरस्कारों अथवा ऑस्कर (Oscars) को दो माह के लिये स्थगित कर दिया गया है। नई घोषणा के अनुसार, अकादमी पुरस्‍कारों को 25 अप्रैल, 2021 तक के लिये स्थगित कर दिया गया है, इससे पूर्व इन 93वें अकादमी पुरस्कार का आयोजन 28 फरवरी, 2021 को किया जाना था। उल्लेखनीय है कि यह चौथी बार है जब ऑस्कर स्थगित किया गया है। सर्वप्रथम वर्ष 1938 में लॉस एंजिल्स में आई बाढ़ के बाद अकादमी पुरस्कारों को स्थगित किया गया था, जिसके बाद एक बार पुनः वर्ष 1968 में मार्टिन लूथर किंग जूनियर की हत्या के बाद और वर्ष 1981 में 40वें अमेरिकी राष्ट्रपति रोनाल्ड रीगन (Ronald Reagan) की हत्या के प्रयास के बाद ऑस्कर को स्थगित किया गया था। अकादमी पुरस्‍कार अथवा ऑस्कर, कैलिफोर्निया (California) स्थित एकेडमी ऑफ मोशन पिक्चर आर्ट्स एंड साइंसेज़ (Academy of Motion Picture Arts and Sciences) द्वारा प्रतिवर्ष प्रदान किया जाता है। यह पुरस्कार फिल्म उद्योग में तमाम उपलब्धियों को सम्मानित करने के लिये प्रदान किया जाता है। अकादमी पुरस्कार पहली बार वर्ष 1929 में प्रदान किये गए थे और विजेताओं को सोने की एक प्रतिमा प्रदान की गई थी, जिसे आमतौर पर ऑस्कर कहा जाता है। 

कोयला ब्लॉकों की नीलामी प्रक्रिया की शुरुआत

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने नई दिल्ली से वीडियो कॉन्फ्रेंस के माध्यम से वाणिज्यिक खनन के लिये 41 कोयला ब्लॉकों की नीलामी प्रक्रिया का शुभारंभ किया है। यह पहल ‘आत्‍मनिर्भर भारत अभियान’ के तहत भारत सरकार द्वारा की गई अनेक घोषणाओं की श्रृंखला का एक हिस्सा है। यह नीलामी प्रक्रिया कोयला मंत्रालय (Ministry of Coal) द्वारा भारतीय वाणिज्य एवं उद्योग महासंघ (फिक्की) के सहयोग से की जा रहा है। कोयला खदानों के आवंटन के लिये दो चरणों वाली इलेक्ट्रॉनिक नीलामी प्रक्रिया अपनाई जा रही है। यह कदम कोयला खनन सेक्टर से संबंधित सुधारों और युवाओं के लिये लाखों रोज़गार अवसरों की शुरुआत को भी दर्शाता है। कोयला भंडार की उपलब्धता के मामले में विश्व में पाँचवे स्थान पर होने के बावजूद भी भारत को कोयले का आयात करना पड़ता है। वर्तमान में भारत में प्रतिवर्ष स्थानीय कोयला उत्पादन लगभग 700-800 मिलियन टन है, जबकि प्रतिवर्ष औसतन लगभग 150-200 मिलियन टन कोयले का आयात किया जाता है। वर्ष 1973 में भारत में कोयले के राष्ट्रीकरण के बाद वर्ष 1975 में कोल इंडिया लिमिटेड (Coal India Limited- CIL) की स्थापना की गई थी। वर्तमान में देश के कुल कोयला उत्पादन में CIL की भागीदारी लगभग 82 प्रतिशत है। 

प्रधानमंत्री स्ट्रीट वेंडर्स आत्मनिर्भर निधि

हाल ही में आवास एवं शहरी कार्य मंत्रालय (Ministry of Housing and Urban Affairs) और भारतीय लघु उद्योग विकास बैंक (Small Industries Development Bank of India-SIDBI) के बीच समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किये गए, जिसका उद्देश्य प्रधानमंत्री स्ट्रीट वेंडर्स आत्मनिर्भर निधि (पीएम स्वनिधि) के लिये सिडबी (SIDBI) को एक कार्यान्वयन एजेंसी के रूप में शामिल करना है। समझौते की शर्तों के अनुसार, सिडबी (SIDBI) पीएम स्वनिधि योजना को आवास एवं शहरी कार्य मंत्रालय के मार्गदर्शन में लागू करेगा। उल्लेखनीय है कि प्रधानमंत्री स्ट्रीट वेंडर्स आत्मनिर्भर निधि (पीएम स्वनिधि) की शुरुआत छोटे दुकानदारों और फेरीवालों (Street Venders) को आर्थिक रूप से सहयोग प्रदान करने हेतु की गई थी। इस योजना के तहत छोटे दुकानदार 10,000 रुपए तक के ऋण के लिये आवेदन कर सकते हैं। ऋण प्राप्त करने के लिये आवेदकों को किसी प्रकार की ज़मानत या कोलैट्रल (Collateral) की आवश्यकता नहीं होगी। इस योजना के तहत प्राप्त हुई पूंजी को चुकाने के लिये एक वर्ष का समय दिया जाएगा, विक्रेता इस अवधि के दौरान मासिक किश्तों के माध्यम से ऋण का भुगतान कर सकेंगे।


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