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डेली न्यूज़

  • 18 Nov, 2020
  • 28 min read
अंतर्राष्ट्रीय संबंध

12वाँ ब्रिक्स शिखर सम्मेलन

प्रिलिम्स के लिये:

12वाँ ब्रिक्स शिखर सम्मेलन, ब्रिक्स आतंकवाद-रोधी रणनीति

मेन्स के लिये:

ब्रिक्स आतंकवाद-रोधी रणनीति,  ब्रिक्स का महत्त्व

चर्चा में क्यों?

12वाँ ब्रिक्स शिखर सम्मेलन (12th BRICS Summit) आभासी रूप से 17 नवंबर, 2020 को  रूस की मेज़बानी में आयोजित किया गया, जिसमें भारतीय प्रधानमंत्री ने भी भागीदारी की।

प्रमुख बिंदु?

  • इस वर्ष ब्रिक्स सम्मेलन का विषय था- “वैश्विक स्थिरता, साझा सुरक्षा और नवाचारी वृद्धि” (Global Stability, Shared Security and Innovative Growth)।
  • यह शिखर सम्मेलन संयुक्त राष्ट्र की 75वीं वर्षगाँठ की पृष्ठभूमि में और COVID-19 महामारी के बीच आयोजित किया गया।

12वाँ ब्रिक्स सम्मेलन और भारत:

  • सम्मेलन के दौरान भारतीय प्रधानमंत्री द्वारा निम्नलिखित प्रमुख मुद्दों पर चर्चा की गई।

आतंकवाद: 

  • आतंकवाद दुनिया के सामने सबसे बड़ी समस्या है। राज्य-प्रायोजित आतंकवाद (State-sponsored Terrorism) तथा आतंकवाद का समर्थन करने वाले देशों का मिलकर सामना करने की आवश्यकता है। आतंकवादियों के साथ-साथ उन देशों को भी दोषी ठहराया जाए जो आतंकवादियों को सहायता प्रदान करते हैं। 
    • यहाँ ध्यान देने योग्य तथ्य यह है कि शिखर सम्मेलन के दौरान 'ब्रिक्स आतंकवाद-रोधी रणनीति' (BRICS Counter-terrorism Strategy) को भी हस्ताक्षर के लिये रखा गया है।

 अंतर्राष्ट्रीय संस्थाओं में सुधार:

  • भारत संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद सहित विश्व व्यापार संगठन (WTO), विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) आदि में तत्काल सुधारों का समर्थन करता है। भारत इसमें ब्रिक्स सहयोगियों से  समर्थन की उम्मीद करता है । ये अंतर्राष्ट्रीय संस्थान तथा संगठन समकालीन वास्तविकता के अनुसार काम नहीं कर रहे हैं। 

पोस्ट COVID-19 अर्थव्यवस्था:

  • पोस्ट COVID-19 परिदृश्य में ब्रिक्स देश महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं। दुनिया की 42 फीसदी आबादी ब्रिक्स देशों में रहती है, अत: यह संगठन वैश्विक अर्थव्यवस्था का प्रमुख इंजन हैं। ब्रिक्स देशों के बीच व्यापार बढ़ाने की बहुत गुंजाइश है, जो देशों को वैश्विक स्लोडाउन से उबरने में मदद कर सकता है। 

आत्मनिर्भर भारत:

  • भारत द्वारा प्रस्तावित 'आत्मनिर्भर अभियान' की संकल्पना को ब्रिक्स देशों के साथ साझा किया गया। 
  • यह अभियान अर्थव्यवस्था में एक 'सुधार प्रक्रिया' के रूप में अपनाया गया जिसका उद्देश्य पोस्ट COVID-19 विश्व व्यवस्था में आत्मनिर्भर और लोचपूर्ण (Self-reliant and Resilient) भारत का निर्माण करना है ताकि वह 'वैश्विक मूल्य शृंखला' में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा सके।

COVID-19 वैक्सीन:

  • प्रधानमंत्री द्वारा COVID-19 के लिये वैक्सीन के उत्पादन में ब्रिक्स देशों के बीच सहयोग की आवश्यकता पर बल दिया गया।  भारत स्पुतनिक वी (Sputnik V) वैक्सीन के परीक्षण के लिये रूस के साथ बातचीत कर रहा है और इसके जल्द ही उत्तर प्रदेश में शुरू होने की उम्मीद है। भारत ने दक्षिण एशियाई देशों में टीके की पहुँच सुनिश्चित करने हेतु  नेतृत्त्व करने का आश्वासन दिया गया।

ब्रिक्स आतंकवाद-रोधी रणनीति

(BRICS Counter-terrorism Strategy):

  • शिखर सम्मेलन के दौरान 'ब्रिक्स आतंकवाद-रोधी रणनीति' हस्ताक्षर के लिये रखी गई।
  • ब्रिक्स समूह के उच्च स्तरीय प्रतिनिधियों द्वारा इस रणनीति के कार्यान्वयन की समीक्षा की जाएगी, जबकि इसके कार्यान्वयन का दायित्व ब्रिक्स 'आतंकवाद-निरोधी कार्य समूह' (Counter-terrorism Working Group- CTWG) को सौंपा जाएगा।

दृष्टिकोण: 

  • आतंकवाद-रोधी रणनीति का यह मसौदा ब्रिक्स देशों के बुनियादी पहलुओं जैसे- आंतरिक मामलों में संप्रभुता और गैर-हस्तक्षेप का सम्मान, अंतर्राष्ट्रीय कानूनों का अनुपालन तथा सुरक्षा मामलों में संयुक्त राष्ट्र की केंद्रीय भूमिका की मान्यता आदि को प्रतिबिंबित करता है।

उद्देश्य: 

  • सभी देशों द्वारा आतंकवादी ठिकानों या आतंकी गतिविधियों के प्रसार में अपने क्षेत्रों के उपयोग को रोकने के लिये उचित कदम उठाया जाए।
  • सदस्य देशों की  सुरक्षा और कानून-प्रवर्तन अधिकारियों के बीच व्यावहारिक सहयोग (विशेषकर सूचनाओं के साझाकरण पर) को बेहतर बनाना ताकि आतंकवाद को रोकने और मुकाबला करने में मदद मिल सके।
  • आतंकवाद को रोकने के लिये इससे संबंधित समूहों, संस्थाओं और संबद्ध व्यक्तियों को  प्रोत्साहन देने वाले वित्तीय और भौतिक संसाधनों की उपलब्धता को रोका जाए।
  • 'आतंकवाद के भौगोलिक विस्तार' को रोकने के लिये प्रयास शुरू किये जाएंगे तथा दो देशों के बीच संघर्षरत क्षेत्रों से आतंकवादियों द्वारा किसी तीसरे देश में की जाने वाली यात्रा से उत्पन्न खतरों को भी संबोधित किया जाएगा।
  • सदस्य देशों के घरेलू कानूनों और नियमों के अनुरूप आपसी कानूनी सहायता और प्रत्यर्पण के क्षेत्र में सहयोग बढ़ाया जाएगा।
  • आतंकवाद को बढ़ावा देने वाली 'चरमपंथी सूचनाओं' (Extremist Narratives) की उपलब्धता को संबोधित किया जाएगा ताकि इंटरनेट और सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म का उपयोग आतंकी समूहों द्वारा भर्ती और कट्टरपंथ के प्रचार के लिये नहीं किया जा सके।

निष्कर्ष: 

यद्यपि सम्मेलन में भारत-चीन सीमा गतिरोध पर कोई चर्चा नहीं की गई, किंतु ब्रिक्स दोनों देशों के लिये कूटनीतिक दृष्टिकोण से एक महत्त्वपूर्ण मंच हो सकता है। आतंकवाद भारत के लिये एक बड़ा खतरा है और सम्मेलन के दौरान अपनाई जाने वाली ‘ब्रिक्स आतंकवाद-विरोधी रणनीति’ आतंकवाद से मुकाबला करने में काफी मददगार साबित हो सकती है।  

स्रोत: द हिंदू


भारतीय विरासत और संस्कृति

यूनेस्को ग्लोबल जियो पार्क

प्रिलिम्स के लिये:

यूनेस्को ग्लोबल जियो पार्क, एर्रा मट्टी डिब्बालू, थोटलाकोंडा की अवस्थिति  

मेन्स के लिये:

यूनेस्को ग्लोबल जियो पार्क

चर्चा में क्यों?

भारतीय राष्ट्रीय कला एवं सांस्कृतिक धरोहर न्यास’ (Indian National Trust For Art And Cultural Heritage- INTACH), विशाखापत्तनम (आंध्र प्रदेश) के ‘एर्रा मट्टी डिब्बालू’ (Erra Matti Dibbalu) (लाल रेत के टीले), प्राकृतिक चट्टानीय संरचनाओं, बोर्रा गुफाओं (Borra Caves) और ज्वालामुखीय ऐश निक्षेपण आदि भू-वैज्ञानिक स्थलों के लिये ‘यूनेस्को ग्लोबल जियो पार्क’ (UNESCO Global Geopark) के रूप में मान्यता प्राप्त करने का प्रयास कर रहा है।

प्रमुख बिंदु: 

  • हालाँकि 44 देशों में 161 'यूनेस्को ग्लोबल जियो पार्क’ हैं, लेकिन अभी तक भारत का एक भी    भू-वैज्ञानिक स्थल इस नेटवर्क के तहत शामिल नहीं किया गया है।
  • प्राकृतिक संसाधनों के संरक्षण की दिशा में यूनेस्को की 'ग्लोबल जियो पार्क' पहल के अलावा दो अन्य प्रमुख पहल ‘बायोस्फीयर रिज़र्व’ और ‘विश्व विरासत स्थल‘ हैं।

ग्लोबल जियो पार्क:

  • ग्लोबल जियो पार्क एकीकृत भू-वैज्ञानिक क्षेत्र होते हैं जहाँ अंतर्राष्ट्रीय भू-गर्भीय महत्त्व के स्थलों व परिदृश्यों का सुरक्षा, शिक्षा और टिकाऊ विकास की समग्र अवधारणा के साथ प्रबंधन किया जाता है।
  • ‘यूनेस्को ग्लोबल जियो पार्क’ की स्थापना की प्रक्रिया निचले स्तर से शुरू की जाती है जिसमें सभी प्रासंगिक स्थानीय दावेदारों जैसे कि भू-मालिकों, सामुदायिक समूहों, पर्यटन सेवा प्रदाताओं आदि को शामिल किया जाता है।
  •  यह पहल स्थानीय समुदायों के साथ सक्रिय रूप से जुड़कर पृथ्वी की भू-विविधता की सुरक्षा को बढ़ावा देती है।

विशाखापत्तनम के जियो स्थल:

‘एर्रा मट्टी डिब्बालू’ (Erra Matti Dibbalu): 

  • यह तटीय लाल तलछट के टीले हैं जो विशाखापत्तनम और भीमुनिपत्तनम (Bheemunipatnam) के बीच स्थित हैं।
  • इन टीलों की चौड़ाई 200 मीटर से 2 किलोमीटर तक है, जो तट के किनारे पाँच किलोमीटर तक विस्तृत हैं।
    • इस क्षेत्र के अलावा इस प्रकार के टीलों का जमाव दक्षिण एशिया में केवल दो अन्य स्थलों- तमिलनाडु की ‘तेरी सैंड्स’ (Teri Sands) और श्रीलंका के ‘रेड कोस्टल सैंड्स’ (Red Coastal Sands) में है।
  • यह 'भारतीय भू-वैज्ञानिक सर्वेक्षण' (GSI) द्वारा अधिसूचित 34 'राष्ट्रीय भू-वैज्ञानिक विरासत स्मारक स्थलों' (National Geological Heritage Monument Sites) में से एक है।
    • भू-वैज्ञानिक विरासत शब्द का उपयोग भू-आकृति विज्ञान की उन विशेषताओं या संरचनाओं के लिये किया जाता है जिनका सौंदर्यात्मक, वैज्ञानिक और शैक्षिक दृष्टिकोण से महत्त्व होता है तथा जो पृथ्वी की उत्पत्ति संबंधी भू-वैज्ञानिक प्रक्रियाओं को समझने में अद्वितीय अंतर्दृष्टि प्रदान करती हैं।

Erra-Matti-Dibbalu

मंगामरिपेटा में प्राकृतिक चट्टानीय संरचनाएँ (Natural Rock Formations of Mangamaripeta):

  • यह पूर्वी घाट में थोटलाकोंडा (Thotlakonda) बौद्ध स्थल के सामने मंगामरिपेटा तट पर स्थित एक प्राकृतिक चट्टानीय मेहराब/रॉक आर्क है।
  • यह अंतिम हिमयुग के बाद की अवधि (लगभग 10,000 वर्ष पूर्व) की संरचना हो सकती है, जो तिरुमाला पहाड़ियों में स्थित सिलथोरनम (Silathoranam) के प्राकृतिक रॉक आर्क के समान है।

Mangamaripeta

बोर्रा गुफाएँ (Borra Caves): 

  • इसे ‘भारतीय भूवैज्ञानिक सर्वेक्षण’ संस्थान के भू-वैज्ञानिक विलियम किंग जॉर्ज द्वारा खोजा गया था। ये लगभग 1 मिलियन वर्ष  पुरानी गुफाएँ हैं जो समुद्र तल से 1400 मीटर की ऊँचाई पर स्थित हैं
  • इन गुफाओं में स्टैलेक्टाइट और स्टैलेग्माइट संरचनाएँ पाई जाती है।

Borra-Caves

ज्वालामुखी ऐश/राख निक्षेपण: 

निष्कर्ष: 

  • निर्माण गतिविधि, खुदाई, अपशिष्ट निपटान तथा मानव हस्तक्षेप के कारण इन भू-स्थलों की स्थिरता प्रभावित हो रही है। यद्यपि INTACH वर्तमान में इस क्षेत्र के महत्त्वपूर्ण भू-वैज्ञानिक और सांस्कृतिक स्थलों की सुरक्षा के प्रति सार्वजनिक जागरूकता अभियान चला रहा है।

 स्रोत: द हिंदू


शासन व्यवस्था

ओपन एकरेज लाइसेंसिंग पॉलिसी

प्रिलिम्स के लिये

ओपन एकरेज लाइसेंसिंग पॉलिसी, हाइड्रोकार्बन एक्सप्लोरेशन एंड लाइसेंसिंग पॉलिसी

मेन्स के लिये

सरकार द्वारा अन्वेषण एवं लाइसेंसिंग नीति में किये गए सुधार

चर्चा में क्यों?

हाल ही में ओपन एकरेज लाइसेंसिंग पॉलिसी (OALP) की पाँचवें राउंड की बोली के तहत पेश किये गए 11 तेल और गैस ब्लॉकों के लिये अनुबंध पर हस्ताक्षर किये गए।

प्रमुख बिंदु

  • ओपन एकरेज लाइसेंसिंग पॉलिसी (OALP) के पाँचवें राउंड की बोली के तहत 465 करोड़ रुपए में कुल 11 ब्लॉकों में 19,789.04 वर्ग किमी. क्षेत्र का आवंटन किया गया। 
  • इस आवंटन के तहत 7 ब्लॉक ओएनजीसी लिमिटेड (ONGC Limited) को दिये गए हैं, जबकि 4 ब्लॉक ऑयल इंडिया लिमिटेड (OIL) को दिये गए हैं।

ओपन एकरेज लाइसेंसिंग पॉलिसी (OALP)

  • भारत सरकार द्वारा ओपन एकरेज लाइसेंसिंग पॉलिसी (OALP) की शुरुआत जून 2017 में हाइड्रोकार्बन एक्सप्लोरेशन एंड लाइसेंसिंग पॉलिसी (HELP) के एक हिस्से के रूप में भारत में अन्वेषण और उत्पादन (E&P) संबंधी गतिविधियों में तेज़ी लाने के उद्देश्य से की गई थी।
  • एकरेज लाइसेंसिंग पॉलिसी (OALP) के तहत कंपनियों और निवेशकों को बोली लगाने के लिये अपनी पसंद के मुताबिक तेल और गैस के अन्वेषण के लिये किसी भी ब्लॉक का चयन करने की अनुमति दी जाती है। 
  • इसके तहत निवेशकों को अपनी इच्छा के अनुसार, सरकार को रुचि-प्रकटन (Expression of Interest-EoI) देना होता है, जो कि एक वर्ष में कभी भी दी जा सकती है। इसके बाद सरकार द्वारा उस ब्लॉक को बोली (Bidding) में शामिल कर लिया जाता है।
  • महत्त्व
    • एकरेज लाइसेंसिंग पॉलिसी (OALP) के सफल कार्यान्वयन के बाद भारत के अन्वेषण क्षेत्र में काफी वृद्धि हुई है और वर्तमान में यह करीब 2,37,000 वर्ग किलोमीटर तक पहुँच गया है।
    • एकरेज लाइसेंसिंग पॉलिसी (OALP) के कारण लालफीताशाही की समाप्ति हुई है और खोज व उत्पादन के क्षेत्र में भारत की स्थिति काफी मज़बूत हुई है।
  • चिंताएँ
    • अब तक के अनुभव से यह ज्ञात हुआ है कि अक्सर राज्य के स्वामित्त्व वाली कंपनियों को इस प्रक्रिया में अधिक वरीयता दी जा रही है, जिसके कारण इस क्षेत्र में निजी कंपनियों की पर्याप्त भूमिका नज़र नहीं आ रही है। 
      • पाँचवें राउंड में भी सभी ब्लॉक राज्य की स्वामित्व वाली ओएनजीसी लिमिटेड (ONGC Limited) और ऑयल इंडिया लिमिटेड (OIL) को दिये गए हैं।
      • हालिया राउंड में निजी निवेशकों की रुचि की कमी का सबसे मुख्य कारण सरकार की ओर से नीतिगत अस्पष्टता और कराधान तथा नियामक परिस्थिति की अनुपयुक्तता को माना जा रहा है।
    • हाइड्रोकार्बन अन्वेषण और उत्पादन के क्षेत्र में विदेशी निवेशकों को आकर्षित करने के भारत के प्रयास सफल होते नहीं दिखाई दे रहे हैं।

हाइड्रोकार्बन एक्सप्लोरेशन एंड लाइसेंसिंग पॉलिसी (HELP)

  • नई अन्वेषण लाइसेंसिंग नीति (NELP) के स्थान पर हाइड्रोकार्बन एक्सप्लोरेशन एंड लाइसेंसिंग पॉलिसी (HELP) को मार्च 2016 में मंज़ूरी दी गई थी।
  • इस नई व्यवस्था की मुख्य विशेषताओं में राजस्व साझा करने का समझौता, अन्वेषण के लिये एकल लाइसेंस, परंपरागत और गैर-परंपरागत हाइड्रोकार्बन संसाधनों का उत्पादन, मार्केटिंग एवं मूल्‍य निर्धारित करने की आज़ादी शामिल है।
  • इस नीति का उद्देश्य पारदर्शिता बढ़ाना और प्रशासकीय विवेकाधिकार में कमी लाना है।

स्रोत: पी.आई.बी


शासन व्यवस्था

फेक न्यूज़ की गंभीर समस्या

प्रिलिम्स के लिये

सोशल मीडिया, फेक न्यूज़

मेन्स के लिये

फेक न्यूज़ का अर्थ और उससे संबधित विभिन्न महत्त्वपूर्ण पहलू, फेक न्यूज़ के प्रसार में सोशल मीडिया की भूमिका  

चर्चा में क्यों?

हाल ही में एक मामले की सुनवाई करते हुए सर्वोच्च न्यायालय ने टेलीविज़न न्यूज़ चैनलों पर दिखाए जा रहे कंटेंट के विरुद्ध आ रही शिकायतों और फेक न्यूज़ की गंभीर समस्या से निपटने के लिये तंत्र के बारे में केंद्र सरकार से सूचना मांगी है और साथ ही यह निर्देश भी दिया कि यदि ऐसा कोई तंत्र नहीं है तो जल्द-से-जल्द इसे विकसित किया जाए।

प्रमुख बिंदु

  • सर्वोच्च न्यायालय ने सरकार को चेताया कि यदि वह इस प्रकार के किसी भी तंत्र को विकसित करने में विफल रहती है तो न्यायालय को मजबूरन यह कार्य किसी बाहरी संस्था को देना होगा।

क्या है ‘फेक न्यूज़’?

  • सरल शब्दों में हम कह सकते हैं कि ‘फेक न्यूज़’ का अभिप्राय ऐसी खबरों और कहानियों अथवा तथ्यों से है, जिनका उपयोग जान-बूझकर पाठकों को गलत सूचना देने अथवा धोखा देने के लिये किया जाता है।
  • ‘फेक न्यूज़’ एक विशाल वट वृक्ष के सामान है, जिसकी कई शाखाएँ और उपशाखाएँ होती हैं। इसके तहत किसी के पक्ष में प्रचार करना व झूठी खबर फैलाने जैसे कृत्य तो आते ही हैं, साथ ही किसी व्यक्ति या संस्था की छवि को नुकसान पहुँचाना या लोगों को उसके विरुद्ध झूठी खबर के ज़रिये भड़काने की कोशिश करना भी शामिल है।
  • आमतौर पर ये खबरें लोगों के विचारों को प्रभावित करने और किसी एक विशिष्ट राजनीतिक एजेंडे को बढ़ावा देने के लिये प्रसारित की जाती हैं और प्रायः इस प्रकार की झूठी खबरों के कारण उन्हें प्रकाशित करने वाले लोगों को काफी फायदा होता है।
  • इतिहास
    • ‘फेक न्यूज़’ को आधुनिक युग की सोशल मीडिया से संबंधित कोई नई घटना नहीं माना जा सकता है, बल्कि प्राचीन यूनान में भी प्रभावशाली लोगों द्वारा अपने हित में जनमत जुटाने के लिये दुष्प्रचार और गलत सूचनाओं का उपयोग किया जाता था।

भारत में ‘फेक न्यूज़’

  • भारत में लगातार फैल रही झूठी खबरें और दुष्प्रचार देश के लिये एक गंभीर सामाजिक चुनौती बनती जा रही है। भारत जैसे देश में यह समस्या और भी गंभीर रूप धारण करती जा रही है तथा इसके कारण अक्सर सड़क पर दंगे और मॉब लिंचिंग की घटनाएँ देखने को मिलती हैं।
  • भारत जहाँ 75 करोड़ से भी अधिक इंटरनेट उपयोगकर्त्ता हैं, में सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म जैसे- फेसबुक और व्हाट्सएप आदि ‘फेक न्यूज़’ प्रसारण के प्रमुख स्रोत बन गए हैं।
  • भारत में ऐसे कई उदाहरण देखे जा सकते हैं, जहाँ ‘फेक न्यूज़’ या झूठी खबर के कारण किसी निर्दोष व्यक्ति की जान चली गई हो।
  • भारत में व्हाट्सएप को ‘फेक न्यूज़’ के लिये सबसे अधिक असुरक्षित माध्यम माना जाता है, क्योंकि इसका प्रयोग करने वाले लोग अक्सर खबर की सत्यता जाने बिना उसे कई लोगों को फॉरवर्ड कर देते हैं, जिसके कारण एक साथ कई सारे लोगों तक गलत सूचना पहुँच जाती है।

भारत में ‘फेक न्यूज़’ का कारण

  • पारंपरिक मीडिया की विश्वसनीयता में कमी: भारत समेत विश्व के तमाम देशों में अब पारंपरिक मीडिया और टेलीविज़न न्यूज़ चैनलों को ‘समाचार और समसामयिक’ के विश्वसनीय स्रोत के रूप में नहीं देखा जाता है, बल्कि मीडिया खासतौर पर टेलीविजन न्यूज़ चैनल राजनीतिक दलों के लिये एक मंच बनकर रह गए हैं।
    • इस प्रकार मीडिया ने अपनी विश्वसनीयता को पूर्णतः खो दिया है और वह ‘फेक न्यूज़’ का एक प्रमुख स्रोत बन गया है।
  • सोशल मीडिया का उदय: डिजिटल और सोशल मीडिया के बढ़ते प्रभाव के साथ दुनिया भर में फेक न्यूज़ एक बड़ी समस्या बन चुकी है। सोशल मीडिया के आगमन ने ‘फेक न्यूज़’ के प्रचार- प्रसार का विकेंद्रीकरण कर दिया है। 
    • इंटरनेट और सोशल मीडिया की विशालता के कारण यह जानना और भी चुनौतीपूर्ण हो गया है कि किसी खबर की सत्यता क्या है और इस खबर का उद्भव कहाँ से हुआ है।
  • समाज का ध्रुवीकरण: वैचारिक आधार पर समाज के ध्रुवीकरण ने ‘फेक न्यूज़’ के प्रसार को और भी आसान बना दिया है। बीते कुछ वर्षों में ऐसी झूठी खबरों, जो कि हमारे राजनीतिक अथवा वैचारिक प्रतिद्वंद्वियों का अपमान करने अथवा उन्हें बदनाम करने के उद्देश्य से प्रसारित की जाती हैं, के प्रति लोगों का आकर्षण काफी बढ़ा है।
  • उपयुक्त कानून का अभाव: ध्यातव्य है कि भारत में फर्ज़ी खबरों से निपटने के लिये कोई विशेष कानून नहीं है, जिसके कारण इसके प्रसार को बढ़ावा मिलता है। 
  • प्रायः लोग किसी भी खबर के पीछे की सच्चाई जानने का प्रयास नहीं करते हैं, बल्कि वे ऐसी खबरों का उपयोग अपने अनुचित एजेंडे को उचित बनाने के लिये करते हैं।

एक मज़बूत कानून की आवश्यकता

  • यद्यपि नफरत से भरा कंटेंट बनाने वाले और इसे साझा करने वाले लोगों को भारतीय दंड संहिता (IPC) की प्रासंगिक धाराओं के तहत सज़ा दी जा सकती है, किंतु इंटरनेट की विशालता के कारण ऐसे लोगों की पहचान करना काफी चुनौतीपूर्ण हो जाता है।
  • सरकारी विनियमन के तहत आने वाले पारंपरिक मीडिया के विपरीत ऑनलाइन प्लेटफॉर्म अथवा ऑनलाइन मीडिया के क्षेत्र में आवश्यक बाध्यकारी नियमों का अभाव है, जिसके कारण ‘फेक न्यूज़’ के प्रसार की संभावना काफी अधिक बढ़ जाती है।
  • बीते कुछ वर्षों में ‘फेक न्यूज़’ फैलाने वाले कई लोगों को गिरफ्तार किया गया है और कई सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म ने भी अपनी नीति में कुछ परिवर्तन किया है, किंतु इसके बावजूद एक सार्वभौमिक नीति अथवा नियम के अभाव के कारण ‘फेक न्यूज़’ की समस्या से अब तक पूर्णतः निपटा नहीं जा सका है।
  • इसलिये वर्तमान में इस समस्या से निपटने के लिये एक सार्वभौमिक नीति, विनियमन और दिशा-निर्देशों की कमी को तत्काल संबोधित किये जाने की आवश्यकता है।

आगे की राह

  • ‘फेक न्यूज़’ के प्रसार को रोकने के लिये कानून बनाते समय यह आवश्यक है कि एक व्यापक दृष्टिकोण अपनाते हुए केवल पारंपरिक मीडिया और टेलीविज़न न्यूज़ चैनलों को ही दोष न दिया जाए, क्योंकि सोशल मीडिया के दौर में कोई भी व्यक्ति गलत सूचनाओं का निर्माण कर सकता है और उन्हें लाखों लोगों तक पहुँचा सकता है।
  • कानून बनाने से ज़्यादा महत्त्वपूर्ण उस कानून को सही ढंग से लागू करना होता है, क्योंकि जब तक कोई कानून सही ढंग से लागू नहीं होगा तब तक उसका कोई महत्त्व नहीं होगा।
  • कानून का निर्माण करने के साथ-साथ लोगों को ‘फेक न्यूज़’ के बारे में जागरूक करना और उन्हें शिक्षित करना भी आवश्यक है।

स्रोत: द हिंदू


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