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डेली न्यूज़

  • 17 Nov, 2020
  • 37 min read
भारतीय राजनीति

भारतीय संविधान का अनुच्छेद 32

प्रिलिम्स के लिये

भारतीय संविधान का अनुच्छेद 32 और अनुच्छेद 226 

मेन्स के लिये

सर्वोच्च न्यायालय और उच्च न्यायालय के क्षेत्राधिकार, रिट जारी करने का अधिकार क्षेत्र 

चर्चा में क्यों?

हाल ही में केरल के एक पत्रकार से संबंधित मामले की सुनवाई करते हुए मुख्य न्यायाधीश एस.ए. बोबडे ने कहा कि हम अनुच्छेद 32 के तहत दायर याचिकाओं को हतोत्साहित करने का प्रयास कर रहे हैं।

प्रमुख बिंदु

  • मुख्य न्यायाधीश एस.ए. बोबडे ने कहा कि सर्वोच्च न्यायालय में अनुच्छेद 32 के तहत दायर याचिकाओं की भरमार है और लोग अपने मौलिक अधिकारों के हनन की स्थिति में संबंधित उच्च न्यायालय के पास जाने की बजाय सीधे सर्वोच्च न्यायालय के समक्ष याचिका दायर कर रहे है, जबकि संविधान के अनुच्छेद 226 के तहत उच्च न्यायालयों को भी ऐसे मामलों में रिट जारी करने का अधिकार प्रदान किया गया है।
  • अनुच्छेद 32 (संवैधानिक उपचारों का अधिकार): यह एक मौलिक अधिकार है, जो भारत के प्रत्येक नागरिक को संविधान द्वारा मान्यता प्राप्त अन्य मौलिक अधिकारों को लागू कराने के लिये सर्वोच्च न्यायालय के समक्ष याचिका दायर करने का अधिकार देता है।
    • हम कह सकते हैं कि संवैधानिक उपचारों का अधिकार स्वयं में कोई अधिकार न होकर अन्य मौलिक अधिकारों का रक्षोपाय है। इसके अंतर्गत कोई भी व्यक्ति मौलिक अधिकारों के हनन की स्थिति में न्यायालय की शरण ले सकता है। इसलिये डॉ. अंबेडकर ने अनुच्छेद 32 को संविधान का सबसे महत्त्वपूर्ण अनुच्छेद बताते हुए कहा था कि इसके बिना संविधान अर्थहीन है, यह संविधान की आत्मा और हृदय है।
    • सर्वोच्च न्यायालय के पास किसी भी मौलिक अधिकार के प्रवर्तन के लिये निदेश, आदेश या रिट जारी करने का अधिकार है। सर्वोच्च न्यायालय द्वारा बंदी प्रत्यक्षीकरण (Habeas Corpus) रिट, परमादेश (Mandamus) रिट, प्रतिषेध (Prohibition) रिट, उत्प्रेषण (Certiorari) रिट और अधिकार पृच्छा (Qua Warranto) रिट जारी की जा सकती है।
    • संवैधानिक प्रावधानों के मुताबिक, राष्ट्रपति राष्ट्रीय आपातकाल के दौरान मौलिक अधिकारों के प्रवर्तन के लिये किसी भी न्यायालय के समक्ष याचिका दायर करने के अधिकार को निलंबित कर सकता है। इसके अलावा अन्य किसी भी स्थिति में इस अधिकार को निलंबित नहीं किया जा सकता है।
    • मौलिक अधिकारों के प्रवर्तन के मामले में सर्वोच्च न्यायालय का मूल क्षेत्राधिकार तो है किंतु यह न्यायालय का विशेषाधिकार नहीं है। 
    • यह सर्वोच्च न्यायालय का मूल क्षेत्राधिकार इस अर्थ में है कि इसके तहत एक पीड़ित नागरिक सीधे सर्वोच्च न्यायालय में जा सकता है। हालाँकि यह सर्वोच्च न्यायालय का विशेषाधिकार नहीं है, क्योंकि संविधान के अनुच्छेद 226 के तहत उच्च न्यायालयों को भी मौलिक अधिकारों के प्रवर्तन के लिये रिट जारी करने का अधिकार दिया गया है।
    • सर्वोच्च न्यायालय ने अपने कई निर्णयों में कहा है कि जहाँ अनुच्छेद 226 के तहत उच्च न्यायालय के माध्यम से राहत प्रदान की जा सकती है, वहाँ पीड़ित पक्ष को सर्वप्रथम उच्च न्यायालय के समक्ष ही जाना चाहिये।
    • वर्ष 1997 में चंद्र कुमार बनाम भारत संघ वाद में सर्वोच्च न्यायालय ने अपने निर्णय में कहा था कि रिट जारी करने को लेकर उच्च न्यायालय और सर्वोच्च न्यायालय दोनों के अधिकार क्षेत्र संविधान के मूल ढाँचे का एक हिस्सा हैं।
  • इस व्यवस्था के विरुद्ध तर्क
    • अतीत में ऐसा कई बार देखा गया है जब सर्वोच्च न्यायालय ने उच्च न्यायालय के मामलों को अपने पास स्थानांतरित कर दिया था।
    • इसका सबसे ताज़ा उदाहरण हाल ही में तब देखने को मिला जब सर्वोच्च न्यायालय ने राष्ट्रीय राजधानी के सेंट्रल विस्टा प्रोजेक्ट हेतु भूमि उपयोग से जुड़े एक मामले को दिल्ली उच्च न्यायालय से स्वयं को स्थानांतरित कर दिया, जबकि याचिकाकर्ताओं ने इस तरह के हस्तांतरण की मांग नहीं की थी।
    • जब मामलों का इस तरह स्थानांतरण किया जाता है तो याचिकाकर्त्ता अपील का अपना एक माध्यम खो देते हैं जो मामले को स्थानांतरण न किये जाने की स्थिति में उपलब्ध होता।

संविधान का अनुच्छेद 226

  • अनुच्छेद 226 उच्च न्यायालयों को नागरिकों के मौलिक अधिकारों के प्रवर्तन अथवा ‘किसी अन्य उद्देश्य’ के लिये सभी प्रकार की रिट जारी करने का अधिकार प्रदान करता है।
    • यहाँ ‘किसी अन्य उद्देश्य’ का अर्थ किसी सामान्य कानूनी अधिकार के प्रवर्तन से है। इस प्रकार रिट को लेकर उच्च न्यायालय का अधिकार क्षेत्र सर्वोच्च न्यायालय की तुलना में काफी व्यापक है।
    • जहाँ एक ओर सर्वोच्च न्यायालय केवल मौलिक अधिकारों के हनन की स्थिति में ही रिट जारी कर सकता है, वहीं उच्च न्यायालय को किसी अन्य उद्देश्य के लिये भी रिट जारी करने का अधिकार है।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


जैव विविधता और पर्यावरण

गिद्ध कार्य योजना 2020-25

प्रिलिम्स के लिये:

डिक्लोफिनेक, गिद्ध कार्य योजना 2020-25

मेन्स के लिये:

गिद्ध संरक्षण हेतु सरकारी प्रयास 

चर्चा में क्यों? 

16 नवंबर, 2020 को केंद्रीय पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्री ने देश में गिद्धों के संरक्षण के लिये एक ‘गिद्ध कार्य योजना 2020-25’ (Vulture Action Plan 2020-25) शुरू की।

प्रमुख बिंदु:

  • पिछले कुछ वर्षों में गिद्धों की संख्या में भारी गिरावट देखी गई है, कुछ प्रजातियों में यह गिरावट 90% तक है। 
  • भारत, 1990 के दशक के बाद से दुनिया में पक्षियों की आबादी में सबसे अधिक गिरावट वाले देशों में से एक है। 
  • हालाँकि केंद्रीय पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय वर्ष 2006 से गिद्धों के लिये एक संरक्षण परियोजना चला रहा है, किंतु अब इस परियोजना को वर्ष 2025 तक बढ़ाकर न केवल उनकी संख्या में गिरावट को रोकना है बल्कि भारत में गिद्धों की संख्या को सक्रिय रूप से बढ़ाना है।
  • भारत में गिद्धों की नौ अभिलिखित प्रजातियाँ हैं- 

ओरिएंटल व्हाइट-बैक्ड 

(Oriental White-Backed)

हिमालयन (Himalayan)

बियर्डड (Bearded)

लॉन्ग-बिल्ड (Long-Billed)

रेड-हेडेड (Red-Headed)

सिनेरियस (Cinereous)

स्लेंडर-बिल्ड (Slender-Billed)

इजिप्टियन (Egyptian)

यूरेशियन ग्रिफन 

(Eurasian Griffon)

Vulture

  • वर्ष 1990 से वर्ष 2007 के बीच गंभीर रूप से संकटग्रस्त (Critically-Endangered) तीन प्रजातियों (ओरिएंटल व्हाइट-बैक, लॉन्ग-बिल्ड, स्लेंडर-बिल्ड) की संख्या में 99% तक गिरावट देखी गई है।   
  • रेड-हेडेड गिद्ध भी गंभीर रूप से संकटग्रस्त (Critically-Endangered) श्रेणी के अंतर्गत आ गए हैं, इनकी संख्या में 91% की गिरावट आई है, जबकि इजिप्टियन गिद्धों की संख्या में 80% तक गिरावट आई है।
  • इजिप्टियन गिद्ध को 'संकटग्रस्त' (Endangered) श्रेणी में सूचीबद्ध किया गया है, जबकि हिमालयन, बियर्ड और सिनेरियस गिद्धों को ‘निकट संकटग्रस्त’ (Near Threatened) श्रेणी में रखा गया है।

भारत में गिद्धों की आबादी में कमी का कारण: 

  • गिद्धों की आबादी में कमी के बारे में जानकारी 90 के दशक के मध्य में सुर्खियों में आई और वर्ष 2004 में इस गिरावट का कारण डिक्लोफिनेक (Diclofenac) को बताया गया जो पशुओं के शवों को खाते समय गिद्धों के शरीर में पहुँच जाती है।
  • पशुचिकित्सा में प्रयोग की जाने वाली दवा डिक्लोफिनेक को वर्ष 2006 में प्रतिबंधित कर दिया गया। इसका प्रयोग मुख्यत: पशुओं में बुखार/सूजन/उत्तेजन की समस्या से निपटने में किया जाता था।
  • डिक्लोफिनेक दवा के जैव संचयन (शरीर में कीटनाशकों, रसायनों तथा हानिकारक पदार्थों का क्रमिक संचयन) से गिद्धों के गुर्दे (Kidney) काम करना बंद कर देते हैं जिससे उनकी मौत हो जाती है।
  • डिक्लोफिनेक दवा गिद्धों के लिये प्राणघातक साबित हुई। गौरतलब है कि डिक्लोफिनेक से प्रभावित जानवरों के शवों का सिर्फ 0.4-0.7% हिस्सा ही गिद्धों की आबादी के 99% को नष्ट करने के लिये पर्याप्त है।

गिद्ध संरक्षण प्रजनन कार्यक्रम

(Vulture Conservation Breeding Programme):

  • गिद्ध संरक्षण एवं प्रजनन केंद्र हरियाणा वन विभाग तथा बॉम्बे नेचुरल हिस्ट्री सोसायटी का एक संयुक्त कार्यक्रम है।
  • गिद्ध संरक्षण एवं प्रजनन केंद्र को वर्ष 2001 में स्थापित गिद्ध देखभाल केंद्र के नाम से जाना जाता था।
  • यह कार्यक्रम सफल रहा है और गंभीर रूप से संकटग्रस्त तीन प्रजातियों को पहली बार संरक्षण हेतु यहाँ रखा गया था।
  • इसके तहत आठ केंद्र स्थापित किये गए हैं और अब तक तीन प्रजातियों के 396 गिद्धों को इसमें शामिल किया जा चुका है।

रेड-हेडेड एवं इजिप्टियन गिद्धों के लिये संरक्षण कार्यक्रम: 

  • MoEFCC ने अब दोनों (रेड-हेडेड एवं इजिप्टियन गिद्धों) के लिये प्रजनन कार्यक्रमों के साथ-साथ संरक्षण योजनाएँ भी शुरू की हैं।

गिद्ध सुरक्षित क्षेत्र कार्यक्रम

(Vulture Safe Zone Programme):

  • ‘गिद्ध सुरक्षित क्षेत्र कार्यक्रम’ को देश के उन आठ अलग-अलग स्थानों पर लागू किया जा रहा है जहाँ गिद्धों की आबादी विद्यमान है। इनमें से दो स्थान उत्तर प्रदेश में हैं।
  • ‘गिद्ध सुरक्षित क्षेत्र’ में डिक्लोफिनेक का न्यूनतम उपयोग सुनिश्चित करके गिद्धों की आबादी को सुरक्षित करने का प्रयास किया जाता है।किसी क्षेत्र को गिद्ध सुरक्षित क्षेत्र तब घोषित किया जाता है जब लगातार दो वर्षों तक ‘अंडरकवर फार्मेसी एवं मवेशी शव सर्वेक्षण’ (Undercover Pharmacy and Cattle Carcass Surveys) में कोई ज़हरीली दवा नहीं मिलती है और गिद्धों की आबादी स्थिर हो तथा घट नहीं रही हो।

‘गिद्ध कार्य योजना 2020-25’ का उद्देश्य: 

  • इसका उद्देश्य पशु चिकित्सा संबंधी NSAIDs (Nonsteroidal Anti-inflammatory Drug) की बिक्री का विनियमन करना है, साथ ही यह सुनिश्चित करना है कि पशुधन का इलाज केवल योग्य पशु चिकित्सकों द्वारा किया जाए।

प्रयास: 

  • MoEFCC ने गिद्धों में मौजूद NSAIDs का परीक्षण करने और नए NSAIDs को विकसित करने की योजना बनाई है ताकि इसका प्रभाव गिद्धों पर न पड़े।
  • उत्तर प्रदेश, त्रिपुरा, महाराष्ट्र, कर्नाटक और तमिलनाडु से प्राप्त नमूनों एवं सूचनाओं के आधार पर मौजूद गिद्ध संरक्षण केंद्रों के साथ-साथ देश भर में अतिरिक्त संरक्षण प्रजनन केंद्रों की स्थापना की भी योजना बनाई जा रही है।
  • उत्तर भारत में पिंजौर (हरियाणा), मध्य भारत में भोपाल, पूर्वोत्तर में गुवाहाटी और दक्षिण भारत में हैदराबाद जैसे विभिन्न भौगोलिक क्षेत्रों के लिये चार बचाव केंद्र प्रस्तावित हैं।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


भारतीय अर्थव्यवस्था

WPI विगत 8 माह में उच्चतम स्तर पर

प्रिलिम्स के लिये:

 थोक मूल्य सूचकांक,  मूल्य निर्धारण शक्ति

मेन्स के लिये:

थोक मूल्य सूचकांक

चर्चा में क्यों?

भारत में ‘थोक मूल्य सूचकांक’ (Wholesale Price Index-WPI) आधारित मुद्रास्फीति विगत आठ महीनों में उच्चतम स्तर पर पहुँच गई है।

प्रमुख बिंदु:

  • थोक मूल्य मुद्रास्फीति अक्तूबर 2020 में 1.48% तक पहुँच गई थी, जबकि अक्तूबर 2019 में यह 0%  और सितंबर 2020 में 1.32% थी।
  • WPI खाद्य सूचकांक मुद्रास्फीति (WPI Food Index inflation) सितंबर 2020 के 6.92% से घटकर अक्तूबर 2020 में 5.78% हो गई है। 
  • इसके अलावा सब्जियों की मुद्रास्फीति सितंबर के  36.2% से कम होकर 25.23% रह गई है, जबकि आलू (107.7%) और प्याज की कीमतों में वृद्धि दर्ज की गई है।
  • WPI विनिर्माण मुद्रास्फीति 19 महीने के उच्च स्तर 2.1% तक पहुँच गई है और ‘कोर मुद्रास्फीति’ 18 महीनों में उच्चतम स्तर 1.7% पर है।
    • कोर मुद्रास्फीति में खाद्य एवं ईंधन की कीमतों में उतार-चढ़ाव को शामिल नहीं किया जाता है।

मुद्रास्फीति ट्रेंड का महत्त्व:

  • मार्च के बाद से अगस्त माह में पहली बार WPI में सकारात्मक वृद्धि दर्ज की गई है। इसे उत्पादकों की ‘मूल्य निर्धारण शक्ति’ (Pricing Power) के आधार पर औद्योगिक रिकवरी का संकेत माना जा सकता है।
    • मूल्य निर्धारण शक्ति (Pricing power) किसी उत्पाद की मांग की मात्रा के आधार एक उत्पाद की कीमत में होने वाले परिवर्तन को दर्शाती है।
  • कोर मुद्रास्फीति में वृद्धि COVID-19 महामारी के तहत लगाए लॉकडाउन के बाद मांग की स्थिति में सुधार को बताती है।

चुनौतियाँ:

  • वर्तमान WPI मुद्रास्फीति सामान्य रिकवरी को नहीं प्रदर्शित करती है, क्योंकि हाल ही में देखी गई मुद्रास्फीति का बड़ा कारण त्योहार से संबंधित मांग है।
  • आम जनता थोक मूल्य पर उत्पाद नहीं खरीदती है। 'खुदरा खाद्य मुद्रास्फीति' में वृद्धि और 'थोक खाद्य मुद्रास्फीति' में गिरावट को नियंत्रित  करना निर्माताओं के लिये चुनौतीपूर्ण होगा।

मुद्रास्फीति (Inflation):  

  • मुद्रास्फीति कीमतों के सामान्य स्तर में सतत् वृद्धि है।  
  • मुद्रास्फीति दर को मूल्य सूचकांक के आधार पर मापा जाता है, जो दो प्रकार के होते हैं-
    • थोक मूल्य सूचकांक (Wholesale Price Index-WPI)  
    • उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (Consumer Price Index-CPI)   

मुद्रास्फीति का कारण:  

  • मांग जनित कारण 
  • लागत जनित कारण

थोक मूल्य सूचकांक (Wholesale Price Index-WPI):

  • यह भारत में सबसे अधिक इस्तेमाल किया जाने वाला मुद्रास्फीति संकेतक (Inflation Indicator) है। 
  • इसे वाणिज्य और उद्योग मंत्रालय (Ministry of Commerce and Industry) के आर्थिक सलाहकार (Office of Economic Adviser) के कार्यालय द्वारा प्रकाशित किया जाता है। 
  • इसमें घरेलू बाज़ार में थोक बिक्री के लिये प्रथम बिंदु पर किये जाने-वाले (First point of bulk sale) सभी लेन-देन शामिल होते हैं। 
  • वर्ष 2017 में अखिल भारतीय WPI के लिये आधार वर्ष को 2004-05 से संशोधित कर 2011-12 कर दिया गया है।

स्रोत: द हिंदू


आंतरिक सुरक्षा

माओवाद से निपटने के लिये पाँच सूत्री योजना

प्रिलिम्स के लिये:

माओवाद से निपटने के लिये पाँच सूत्री योजना, बोधघाट सिंचाई परियोजना 

मेन्स के लिये:

माओवाद से निपटने के लिये पाँच सूत्री योजना

चर्चा में क्यों?

हाल ही में छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री द्वारा केंद्रीय गृह मंत्री को पत्र लिखकर बस्तर क्षेत्र में वामपंथी उग्रवाद प्रभावित ज़िलों में नक्सलवाद के प्रभाव को समाप्त करने के लिये एक ‘पाँच सूत्री योजना‘ के क्रियान्वयन में सहयोग की मांग की गई।

प्रमुख बिंदु:

  • राज्य द्वारा योजना को क्रियान्वित करने में केंद्र सरकार से विशेष अनुदान की मांग की गई है। 
  • इससे पहले भी छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री द्वारा सितंबर में गृहमंत्री को पत्र लिखकर क्षेत्र में अतिरिक्त सीआरपीएफ बटालियन तैनात करने का अनुरोध किया गया था।

पाँच सूत्री योजना:

रोज़गार सृजन: 

  • बस्तर क्षेत्र के दूरस्थ वन क्षेत्र में रोज़गार सृजन के लिये क्षेत्र के सभी सात आकांक्षी ज़िलों के ज़िला कलेक्टर के नियंत्रण में 50 करोड़ रुपए का अनुदान दिया जाए।

कनेक्टिविटी: 

  • दुर्गम क्षेत्रों में मौजूद सड़क तथा रेल पटरियों को अपग्रेड किया जाए और दूरदराज़ तथा आंतरिक क्षेत्रों में रणनीतिक स्थानों पर सुरक्षित बेस और हेलीपैड की सुविधा प्रदान की जाए।

 स्टील प्लांट की स्थापना:

  • यदि बस्तर के लौह अयस्क से समृद्ध क्षेत्र में स्टील प्लांट स्थापित किया जाता है तो उन्हें 30% छूट के साथ लौह अयस्क उपलब्ध कराया जाए।

कोल्ड चेन अवसंरचना:

  • क्षेत्र में वन उत्पादों के संग्रहण तथा भंडारण के लिये केंद्र के अनुदान से कोल्ड चेन और अन्य सुविधाएँ स्थापित की जाएँ तथा जिन क्षेत्रों में विद्युत ग्रिड की पहुँच नहीं है उन क्षेत्रों के लिये सौर ऊर्जा जनरेटर स्थापित करने में मदद की जाए।

सिंचाई परियोजना: 

  • बस्तर क्षेत्र में भविष्य की सिंचाई परियोजनाओं यथा- ‘बोधघाट सिंचाई परियोजना’ (Bodhghat Irrigation Project) आदि पर शीघ्र कार्य शुरू किया जाए।
    • यह बस्तर क्षेत्र के लिये 22,653 करोड़ रुपए की लागत वाली एक बहुउद्देश्यीय सिंचाई परियोजना है।

छत्तीसगढ़ में नक्सलवाद (Naxalism in Chhattisgarh):

  • छत्तीसगढ़ को भारत में नक्सलवाद का गढ़ माना जाता है। माओवादी आंदोलन की  शुरुआत में राज्य के कुल 27 में से 18 ज़िलों में नक्सलवाद का प्रभाव था। 1980 के दशक की शुरुआत में 40,000 वर्ग किलोमीटर का बस्तर क्षेत्र (जिसमें दंतेवाड़ा, बीजापुर, नारायणपुर, बस्तर और कांकेर जिले शामिल थे) भारत में माओवादी आंदोलन का गढ़ बन गया।
  • इसी क्षेत्र में वर्ष 2010 में नक्सलियों के हमले में सीआरपीएफ के 76 जवान शहीद हुए थे और भारतीय राष्ट्रीय काॅॅन्ग्रेस के शीर्ष नेताओं की हत्या की गई थी।

राज्य सरकार की रणनीति:

Naxalism-in-Chhattisgarh

  • राज्य सरकार ने पूर्व के नक्सलवादियों और स्थानीय युवाओं को शामिल करते हुए ‘विशेष पुलिस अधिकारी’ ( Special Police Officers- SPOs) नामक एक स्थानीय मिलिशिया/नागरिक सेना बनाकर 'सलवा जुडूम' (Salwa Judum) नामक आंदोलन का समर्थन किया।
  • व्यापक स्तर पर आदिवासियों की हत्या और विस्थापन के बाद वर्ष 2011 में सर्वोच्च न्यायालय द्वारा इस पहल को गैर-कानूनी करार दिया गया तथा राज्य सरकार को इसे भंग करने का आदेश दिया गया।
  • इसके बाद राज्य द्वारा अपने पुलिस बल के आधुनिकीकरण पर विशेष बल देते हुए  एक नई बटालियन (जिसे आंध्र प्रदेश के ग्रेहाउंड्स (Greyhounds) की तर्ज पर बनाया गया था) 'कोबरा' (CoBRA) का गठन किया गया।
  • वर्तमान समय में माओवादियों को राज्य के दक्षिणी ज़िलों तक सीमित रखने में महत्त्वपूर्ण प्रगति हुई है।

आलोचना:

  • विपक्षी दलों के अनुसार, राज्य सरकार योजना बनाने तथा उस पर काम करने के बजाय केंद्र से केवल मौद्रिक मदद चाहती है।
  • राज्य द्वारा पेश योजना में स्पष्टता का अभाव है। योजना माओवाद के प्रसार को रोकने में किस प्रकार मदद करेगी, इसमें यह उल्लिखित नहीं है।

निष्कर्ष:

  • केंद्र तथा राज्य सरकारों के बीच नक्सलवाद के मुद्दे पर सहकारी संघवाद (संस्थागत समन्वय और संयुक्त तंत्र के कार्यान्वयन में स्पष्टता का अभाव) का अभाव देखा गया है। अत: नक्सलवाद के खिलाफ रणनीति में केंद्र-राज्य सहयोग प्रथम आवश्यकता है।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


अंतर्राष्ट्रीय संबंध

इथियोपिया का नृजातीय संकट

प्रिलिम्स के लिये

इथियोपिया और एरीट्रिया की अवस्थिति, टाइग्रे क्षेत्र, हॉर्न ऑफ अफ्रीका

मेन्स के लिये

इथियोपिया का नृजातीय संकट और हॉर्न ऑफ अफ्रीका पर इसका प्रभाव

चर्चा में क्यों?

इथियोपिया की सरकार ने बीते दिनों अपने ही देश के उत्तरी टाइग्रे क्षेत्र (Tigray region) के विरुद्ध सशस्त्र संघर्ष की घोषणा की थी, जिसके कारण अब तक सैकड़ों लोगों की मृत्यु हो चुकी है और यह क्षेत्र अभी भी हिंसा की आग में जल रहा है।

प्रमुख बिंदु

  • इथियोपिया के उत्तरी टाइग्रे क्षेत्र में शुरू हुए विद्रोह को समाप्त करने के लिये की जा रही कार्यवाही के चलते अब तक हज़ारों लोगों को इस क्षेत्र से विस्थापित किया जा चुका है।
  • इथियोपिया के प्रधानमंत्री और नोबेल शांति पुरस्कार विजेता अबी अहमद के मुताबिक, यह सैन्य अभियान मुख्य तौर पर इस क्षेत्र में शासन करने वाले संगठन टाइग्रेन पीपुल्स लिबरेशन फ्रंट (TPLF) पर केंद्रित है।
  • यदि इथियोपिया में चल रहे इस संघर्ष को जल्द-से-जल्द समाप्त नहीं किया जाता है तो यह गृह युद्ध का रूप ले सकता है, जिससे इथियोपिया और इसके आस-पास के क्षेत्रों को अस्थिरता और सैन्य संघर्ष की स्थिति का सामना करना पड़ सकता है।

टाइग्रेन पीपुल्स लिबरेशन फ्रंट के बारे में

Eritrea

  • टाइग्रेन पीपुल्स लिबरेशन फ्रंट (TPLF) की स्थापना वर्ष 1975 में इथियोपिया की सैन्य तानाशाही सरकार के विरुद्ध टाइग्रे क्षेत्र में रहने वाले लोगों के हितों की रक्षा करने के लिये एक सैन्य संगठन के रूप में की गई थी।
  • इस संगठन ने इथियोपिया की तत्कालीन सैन्य सरकार के विरुद्ध सशस्त्र संघर्ष किया और अंततः वर्ष 1991 में यह सैन्य तानाशाही सरकार को सत्ता से हटाने में कामयाब हो गया, जिसके बाद से इस संगठन को इथियोपिया में एक नायक के रूप में देखा जाने लगा।
  • वर्ष 1991 में ही TPLF के नेता मेल्स ज़ेनावी (Meles Zenawi) ने अंतरिम राष्ट्रपति के रूप में पदभार संभाला और वर्ष 1995 में वे पहली बार प्रधानमंत्री चुने गए।
  • मेल्स ज़ेनावी वर्ष 2012 तक सत्ता में रहे और उन्हें इथियोपिया की नृजातीय-संघीय व्यवस्था (Ethno-Federal System) के वास्तुकार के रूप में जाना जाता है।

पृष्ठभूमि

  • सैन्य तानाशाही समाप्त होने के बाद इथियोपिया में सरकार चलाने के लिये मेल्स ज़ेनावी द्वारा इथियोपिया पीपुल्स रिवोल्यूशनरी डेमोक्रेटिक फ्रंट (EPRDF) नाम से एक गठबंधन बनाया गया था, हालाँकि समय के साथ मेल्स ज़ेनावी और उनकी सरकार पर सत्तावादी होने के आरोप भी लगे और कई क्षेत्रों में सरकार विरोधी प्रदर्शन भी हुए। मेल्स ज़ेनावी के बाद भी ये प्रदर्शन जारी रहे।
    • यद्यपि इथियोपिया पीपुल्स रिवोल्यूशनरी डेमोक्रेटिक फ्रंट (EPRDF) के गठबंधन में कई सारे नृजातीय समूह शामिल थे, किंतु इसके बावजूद टाइग्रेन पीपुल्स लिबरेशन फ्रंट (TPLF) इस गठबंधन में एक बड़ा राजनीतिक समूह बना हुआ था।
  • वर्ष 2018 में बढ़ते विरोध और राजनीतिक गतिरोध के बीच इथियोपिया पीपुल्स रिवोल्यूशनरी डेमोक्रेटिक फ्रंट (EPRDF) ने सरकार का नेतृत्त्व करने के लिये पूर्व सैन्य खुफिया अधिकारी अबी अहमद का चयन किया।
  • वैसे तो इथियोपिया पीपुल्स रिवोल्यूशनरी डेमोक्रेटिक फ्रंट (EPRDF) ने कई वर्षों तक स्थायी सरकार प्रदान की और इथियोपिया के आर्थिक विकास में भी काफी वृद्धि हुई, किंतु इस दौरान इथियोपिया की नृजातीय-संघीय व्यवस्था की आलोचना काफी तेज़ हो गई।

इथियोपिया की नृजातीय-संघीय व्यवस्था

  • आँकड़ों की मानें तो टाइग्रे लोग इथियोपिया की कुल आबादी का 6 प्रतिशत हैं, जबकि ओरोमो और अम्हार नृजातीय लोगों की संख्या कुल आबादी की क्रमशः 34 प्रतिशत और 27 प्रतिशत है। इस तरह इथियोपिया में ओरोमो और अम्हार नृजातीय (Ethnicity) लोगों की संख्या सबसे अधिक है।
  • हालाँकि वर्ष 2018 से पूर्व इथियोपिया की शीर्ष सत्ता की बात करें तो टाइग्रेन पीपुल्स लिबरेशन फ्रंट (TPLF) के कारण उसमें टाइग्रे लोगों की संख्या सबसे अधिक थी। यही कारण है कि प्रायः ओरोमो लोगों द्वारा सरकार पर उन्हें हाशिये पर धकेलने का आरोप लगाया जाता था और बेहतर प्रतिनिधित्त्व की मांग की जाती थी।

संघर्ष की शुरुआत

  • वर्ष 2018 में जब अबी अहमद को इथियोपिया का प्रधानमंत्री बनाया गया तो उन्होंने इथियोपिया के शीर्ष प्रशासन से टाइग्रेन पीपुल्स लिबरेशन फ्रंट (TPLF) के प्रभाव को समाप्त करने के लिये कई महत्त्वपूर्ण कदम उठाए।
  • अबी अहमद जो कि इथियोपिया के पहले ओरोमो नेता हैं, ने टाइग्रेन पीपुल्स लिबरेशन फ्रंट (TPLF) के सदस्यों को प्रमुख सरकारी पदों से हटा दिया और ऐसे सभी राजनीतिक कैदियों को रिहा कर दिया उन्हें टाइग्रेन पीपुल्स लिबरेशन फ्रंट (TPLF) द्वारा कैद किया गया था।
    • साथ ही उन्होंने मीडिया को स्वतंत्रता प्रदान करने का भी वादा किया।
  • इसके अलावा उन्होंने एरीट्रिया के साथ भी शांति स्थापित की, जिसके संबंध टाइग्रेन पीपुल्स लिबरेशन फ्रंट (TPLF) के साथ कुछ अच्छे नहीं थे। ज्ञात हो कि एरीट्रिया, इथियोपिया के टाइग्रे क्षेत्र के साथ एक लंबी सीमा साझा करता है।
  • अबी अहमद के मुताबिक, उनके द्वारा उठाए गए कदमों का उद्देश्य किसी एक समूह को नुकसान पहुँचाना नहीं है, बल्कि उनका उद्देश्य इथियोपिया में शक्ति संतुलन स्थापित करना है और पड़ोसी देशों के साथ अच्छे संबंध स्थापित करना है।
    • हालाँकि कई टाइग्रे लोग और स्वयं टाइग्रेन पीपुल्स लिबरेशन फ्रंट (TPLF) अबी अहमद के इन कदमों को शत्रुतापूर्ण दृष्टि से देखते हैं और इसी कारण नृजातीय संघर्ष देखने को मिल रहा है, जिसके कारण यह क्षेत्र काफी अशांत हो गया है।

इस संघर्ष का प्रभाव

  • यदि इथियोपिया की सरकार और टाइग्रेन पीपुल्स लिबरेशन फ्रंट (TPLF) के बीच चल रहा सैन्य संघर्ष लंबे समय तक जारी रहता है तो इससे हॉर्न ऑफ अफ्रीका में इथियोपिया के पड़ोसी देशों पर भी काफी प्रभाव देखने को मिल सकता है।
  • टाइग्रे क्षेत्र से अपनी निकटता के कारण इस संघर्ष का सबसे अधिक प्रभाव इथियोपिया के पड़ोसी देश पर हो सकता है।
  • टाइग्रेन पीपुल्स लिबरेशन फ्रंट के कई वरिष्ठ अधिकारी, जिन्होंने वर्ष 1998 और वर्ष 2000 के बीच एरीट्रियाई-इथियोपियाई युद्ध में भाग लिया था, अब एरीट्रिया के साथ समझौते से खुश नहीं हैं।
  • चूँकि इथियोपिया का मिस्र और सूडान जैसे कई देशों के साथ तनाव चल रहा है, इसलिये यदि यह संघर्ष आगे बढ़ता है और इन देशों द्वारा टाइग्रेन पीपुल्स लिबरेशन फ्रंट (TPLF) के विद्रोहियों को पनाह दी जाती है तो इसके कारण इस क्षेत्र में खासतौर पर हॉर्न ऑफ अफ्रीका में अस्थिरता आ सकती है।

इथियोपिया के बारे में 

  • अफ्रीका महाद्वीप के उत्तर में स्थित इथियोपिया हॉर्न ऑफ अफ्रीका का एक देश है, जो कि चारों ओर से भू-सीमा से घिरा हुआ है।
  • इथियोपिया हॉर्न ऑफ अफ्रीका के सभी देशों जैसे- एरीट्रिया, जिबूती और सोमालिया तथा केन्या और सूडान के साथ अपनी सीमा साझा करता है।
    • पूर्वोत्तर अफ्रीका के प्रायद्वीप को हॉर्न ऑफ अफ्रीका कहा जाता है या कभी-कभी सोमालिया प्रायद्वीप कहा जाता है। यह दक्षिणी अरब प्रायद्वीप के सामने स्थित है।
    • इसमें मुख्य रूप से एरीट्रिया, जिबूती, इथियोपिया और सोमालिया शामिल हैं तथा कभी-कभी सूडान और केन्या के कुछ हिस्से भी शामिल किये जाते हैं।
  • इथियोपिया, अफ्रीका का सबसे पुराना स्वतंत्र देश है और जनसंख्या के मामले में यह अफ्रीका का दूसरा सबसे बड़ा देश है।

Ethiopia

आगे की राह

  • संभव है कि इथियोपिया के प्रधानमंत्री अबी अहमद इस सैन्य कार्यवाही के माध्यम से टाइग्रे क्षेत्र के विद्रोही नेताओं को एक कड़ा संदेश देने की कोशिश कर रहे है, लेकिन अधिकांश विश्लेषक मानते हैं कि सैन्य अभियान के माध्यम से नृजातीय और क्षेत्रीय संघर्ष को दबाया ज़रूर जा सकता है, किंतु उसे समाप्त नहीं किया जा सकता है।
  • अपने ही देश के लोगों के विरुद्ध सैन्य कार्यवाही के बजाय इथियोपिया की सरकार को वहाँ के क्षेत्रीय प्रतिनिधियों खासतौर पर टाइग्रेन पीपुल्स लिबरेशन फ्रंट (TPLF) के साथ बातचीत का रास्ता अपनाना चाहिये और देश में शक्ति संतुलन स्थापित करते हुए शांति बहाल करने का प्रयास करना चाहिये। 

स्रोत: द हिंदू


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