इन्फोग्राफिक्स


मानचित्र
पूर्वी चीन सागर
प्रमुख बिंदु:
- भौतिक अवस्थिति:
- यह प्रशांत महासागर का एक हिस्सा और चीन के पूर्व में एक सीमांत समुद्र है।
- सीमावर्ती देश: दक्षिण कोरिया, जापान, चीन गणराज्य (ताइवान) और पीपुल्स रिपब्लिक ऑफ चाइना।
- इसके दक्षिण में दक्षिणी चीन सागर और पश्चिम में एशियाई महाद्वीप है।
- यह कोरियाई जलडमरूमध्य के माध्यम से जापान के सागर से जुड़ता है और उत्तर में पीले सागर में खुलता है।
- हाल की संबंधित घटना:
- चीन और जापान के बीच विवादित सेनकाकू/दियाओयू द्वीप समूह को लेकर तनाव बढ़ गया है जो इस समुद्र में स्थित है।
भूगोल
भारत में कोयला खदानों का कम उपयोग: GEM रिपोर्ट
प्रिलिम्स के लिये:कोयला खदान, कोयला संकट, कोयले के प्रकार, शुद्ध शून्य उत्सर्जन, स्वच्छ ऊर्जा। मेन्स के लिये:कोयला उपयोग और उसके प्रभाव पर GEM रिपोर्ट के निष्कर्ष। |
चर्चा में क्यों?
ग्लोबल एनर्जी मॉनिटर (GEM) की रिपोर्ट के अनुसार, नई खदानों को बढ़ावा देने के बीच भारत की कोयला खदानों का काफी कम उपयोग किया जा रहा है।
- GEM एक ऐसी फर्म है जो विश्व स्तर पर ईंधन-स्रोत के उपयोग को ट्रैक करती है। यह विकसित हो रहे अंतर्राष्ट्रीय ऊर्जा परिदृश्य का अध्ययन करती है, डेटाबेस, रिपोर्ट और इंटरैक्टिव टूल बनाती है ताकि बेहतर समझ विकसित हो सके।
पृष्ठभूमि:
- वर्ष 2021 में भारत ने गंभीर कोयला संकट का सामना किया, जिसमें 285 थर्मल पावर प्लांट में से 100 से अधिक का कोयले का स्टॉक 25% के आवश्यक निर्धारित स्तर से नीचे गिर गया था, जिससे आंध्र प्रदेश, झारखंड, उत्तराखंड और मध्य प्रदेश सहित कई राज्यों में बिजली की कमी हो गई।
- हाल ही में जारी ग्लोबल एनर्जी मॉनिटर (GEM) रिपोर्ट में दुनिया के सबसे बड़े कोयला उत्पादक कोल इंडिया और उसकी सहायक कंपनियों की वार्षिक रिपोर्ट का विश्लेषण किया गया है।
प्रमुख बिंदु:
- नई कोयला खदानों से विस्थापन का खतरा:
- कोयले की कमी ने सरकार को नई कोयला परियोजनाओं का विकास कार्य शुरू करने के लिये प्रेरित किया, जहाँ 99 नई कोयला खदान परियोजनाएँ निर्माणाधीन हैं। इन परियोजनाओं में सालाना 427 मिलियन टन (MTPA) कोयले का उत्पादन करने की क्षमता है।
- यह वर्ष 2070 तक शुद्ध शून्य उत्सर्जन हासिल करने के भारत के लक्ष्य के बावजूद है।
- इन परियोजनाओं से 165 गाँवों और 87,630 परिवारों को विस्थापन का खतरा होगा। इनमें से 41,508 परिवार अनुसूचित जनजाति के हैं।
- कोयले की कमी ने सरकार को नई कोयला परियोजनाओं का विकास कार्य शुरू करने के लिये प्रेरित किया, जहाँ 99 नई कोयला खदान परियोजनाएँ निर्माणाधीन हैं। इन परियोजनाओं में सालाना 427 मिलियन टन (MTPA) कोयले का उत्पादन करने की क्षमता है।
- कोयला खदानों का कम उपयोग:
- चूँकि भारत की कोयला खदानों के उपयोग में गंभीर रूप से कमी देखी गई है, इसलिये केवल अस्थायी कोयले की कमी को पूरा करने के लिये नई परियोजनाओं का विकास करना अनावश्यक है।
- भारत की कोयला खदानें औसतन अपनी क्षमता का केवल दो-तिहाई ही उपयोग करती हैं, कुछ बड़ी खदानें केवल 1% का उपयोग करती हैं।
- स्वच्छ ऊर्जा भविष्य में देरी:
- इन नई खदानों से भारत में फँसे हुई परिसंपत्तियों की संभावना बढ़ जाएगी, स्वच्छ ऊर्जा भविष्य में देरी होगी और इस प्रक्रिया में आर्थिक रूप से अनिश्चित खनन उद्यमों के कारण भारत के ग्रामीण समुदायों एवं पर्यावरण पर नकारात्मक प्रभाव पड़ेगा।
- जल संकट:
- नई कोयला परियोजनाओं से जल की कमी और बढ़ जाएगी, जिससे मांग में प्रतिदिन 1,68,041 किलोलीटर की वृद्धि होगी।
- नई क्षमता में 427 MTPA में से 159 MTPA उच्च जोखिम वाले जल क्षेत्रों में स्थित होगा, जबकि 230 MTPA अत्यधिक जल जोखिम वाले क्षेत्रों के लिये नियोजित है।
कोयले का उपयोग कम करने की आवश्यकता:
- ग्लोबल वार्मिंग का खतरा अभूतपूर्व प्राकृतिक आपदाएँ ला सकता है।
- खतरे को दूर रखने का प्रभावी तरीका जीवाश्म ईंधन- कोयला, प्राकृतिक गैस और तेल के उपयोग में कटौती करना है।
- ये तीन ईंधन दुनिया की लगभग 80% ऊर्जा आवश्यकताओं को पूरा करते हैं।
- उन सभी में सबसे अधिक नुकसानदेह कोयला है, जो प्राकृतिक गैस से लगभग दोगुना और तेल से लगभग 60% अधिक कार्बन डाइऑक्साइड उत्सर्जित करता है।
- इन रासायनिक अभिक्रियाओं का परिणाम बहुत महत्त्व रखता है क्योंकि भारत के बिजली क्षेत्र का कुल कार्बन डाइऑक्साइड उत्सर्जन में हिस्सा 49% है, जबकि इसका वैश्विक औसत 41% है।
कोयला:
- परिचय:
- यह एक प्रकार का जीवाश्म ईंधन है जो तलछटी चट्टानों के रूप में पाया जाता है और इसे अक्सर 'ब्लैक गोल्ड' के रूप में जाना जाता है।
- यह सबसे अधिक मात्रा में पाया जाने वाला जीवाश्म ईंधन है। इसका उपयोग घरेलू ईंधन के रूप में, लोहा, इस्पात, भाप इंजन जैसे उद्योगों में और बिजली पैदा करने के लिये किया जाता है। कोयले से उत्पन्न बिजली को ‘थर्मल पावर’ कहते हैं।
- दुनिया के प्रमुख कोयला उत्पादकों में चीन, अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया, इंडोनेशिया और भारत शामिल हैं।
- भारत में कोयले का वितरण:
- गोंडवाना कोयला क्षेत्र (250 मिलियन वर्ष पुराना):
- भारत के लगभग 98% कोयला भंडार और कुल कोयला उत्पादन का 99% गोंडवाना क्षेत्रों से प्राप्त होता है।
- भारत के धातुकर्म ग्रेड के साथ-साथ बेहतर गुणवत्ता वाला कोयला गोंडवाना क्षेत्र से प्राप्त होता है।
- यह दामोदर (झारखंड-पश्चिम बंगाल), महानदी (छत्तीसगढ़-ओडिशा), गोदावरी (महाराष्ट्र) और नर्मदा घाटियों में पाया जाता है।
- तृतीयक कोयला क्षेत्र (15-60 मिलियन वर्ष पुराना):
- इसमें कार्बन की मात्रा बहुत कम लेकिन नमी और सल्फर से भरपूर होता है।
- तृतीयक कोयला क्षेत्र मुख्य रूप से अतिरिक्त प्रायद्वीपीय क्षेत्रों तक ही सीमित हैं।
- महत्त्वपूर्ण क्षेत्रों में असम, मेघालय, नगालैंड, अरुणाचल प्रदेश, जम्मू-कश्मीर, पश्चिम बंगाल में दार्जिलिंग हिमालय की तलहटी, राजस्थान, उत्तर प्रदेश और केरल शामिल हैं।
- गोंडवाना कोयला क्षेत्र (250 मिलियन वर्ष पुराना):
- वर्गीकरण:
- एन्थ्रेसाइट (80-95% कार्बन सामग्री, जम्मू-कश्मीर में कम मात्रा में पाई जाती है)।
- बिटुमिनस (60-80% कार्बन सामग्री एवं झारखंड, पश्चिम बंगाल, ओडिशा, छत्तीसगढ़ एवं मध्य प्रदेश में पाया जाता है)।
- लिग्नाइट (40-55% कार्बन सामग्री, उच्च नमी सामग्री और राजस्थान, लखीमपुर (असम) एवं तमिलनाडु में पाया जाता है।
- पीट (इसमें 40% से कम कार्बन सामग्री और कार्बनिक पदार्थ (लकड़ी) से कोयले में परिवर्तन के पहले चरण में होता है)।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा विगत वर्ष के प्रश्नप्रिलिम्स:प्रश्न. निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2019)
उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं? (a) केवल 1 उत्तर: (a) व्याख्या:
अतः विकल्प a सही उत्तर है । प्रश्न. निम्नलिखित में से कौन-सा/से भारतीय कोयले का/के अभिलक्षण है/हैं? (2013)
नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये: (a) केवल 1 और 2 उत्तर: (a) प्रश्न. भारत गोंडवानालैंड के देशों में से एक होने के बावजूद इसका खनन उद्योग प्रतिशत में अपने सकल घरेलू उत्पाद (GDP) में बहुत कम योगदान देता है। चर्चा कीजिये। (मुख्य परीक्षा, 2021) प्रश्न. "प्रतिकूल पर्यावरणीय प्रभाव के बावजूद विकास के लिये कोयला खनन अभी भी अपरिहार्य है"। चर्चा कीजिये। (मुख्य परीक्षा, 2017) |
स्रोत: द हिंदू


जैव विविधता और पर्यावरण
ई-अपशिष्ट दिवस
प्रिलिम्स के लिये:बेसल कन्वेंशन, नैरोबी घोषणा, ई-अपशिष्ट प्रबंधन नियम, ई-अपशिष्ट क्लिनिक मेन्स के लिये:भारत में ई-अपशिष्ट के प्रबंधन से संबंधित चुनौतियाँ |
चर्चा में क्यों?
ई-अपशिष्ट के प्रभावों को प्रतिबिंबित करने के अवसर के रूप में वर्ष 2018 से प्रतिवर्ष 14 अक्तूबर को अंतर्राष्ट्रीय ई-अपशिष्ट दिवस मनाया जाता है।
- इस वर्ष की थीम है- 'रीसाइकल इट ऑल, नो मैटर हाउ स्मॉल (‘Recycle it all, no matter how small)'।
- वर्ष 2018 में (14 अक्तूबर) शुरू हुए गैर-लाभकारी अपशिष्ट विद्युत और इलेक्ट्रॉनिक उपकरण (WEEE) फोरम के अनुसार, वर्ष 2022 में लगभग 5.3 बिलियन मोबाइल/स्मार्टफोन उपयोग से बाहर हो जाएंगे।
अपशिष्ट विद्युत और इलेक्ट्रॉनिक उपकरण (WEEE):
- अपशिष्ट विद्युत और इलेक्ट्रॉनिक उपकरण (Waste Electrical and Electronic Equipment-WEEE) के प्रबंधन से संबंधित परिचालन की जानकारी के संबंध में यह दुनिया का सबसे बड़ा बहुराष्ट्रीय क्षमता केंद्र है।
- यह दुनिया भर में 46 WEEE उत्पादक उत्तरदायित्व संगठन (PRO) है, जो एक गैर-लाभकारी संघ है, जिसकी स्थापना अप्रैल 2002 में हुई थी।
- सर्वोत्तम अभ्यास के आदान-प्रदान और अपने प्रतिष्ठित ज्ञान आधार टूलबॉक्स तक पहुँच के माध्यम से WEEE फोरम, सदस्यों को अपने संचालन में सुधार करने में सक्षम बनाता है तथा चक्रीय अर्थव्यवस्था के प्रमोटर के रूप में जाना जाता है।
ई-अपशिष्ट:
- ई-अपशिष्ट इलेक्ट्रॉनिक-अपशिष्ट का संक्षिप्त रूप है और यह पुराने, अप्रचलित, या अनुपयोगी इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों को संदर्भित करता है। इसमें उनके हिस्से, उपभोग्य वस्तुएंँ और पुर्जे शामिल हैं।
- भारत में ई-अपशिष्ट के प्रबंधन के लिये वर्ष 2011 से कानून लागू हैं, जिसमें यह अनिवार्य है कि केवल अधिकृत विघटनकर्त्ता और पुनर्चक्रणकर्त्ता ही ई-अपशिष्ट एकत्र करेंगे। ई-अपशिष्ट (प्रबंधन) नियम, 2016 को वर्ष 2017 में अधिनियमित किया गया था।
- घरेलू और वाणिज्यिक इकाइयों से अपशिष्ट को अलग करने, प्रसंस्करण तथा निपटान के लिये भारत का पहला ई-अपशिष्ट क्लिनिक भोपाल, मध्य प्रदेश में स्थापित किया गया है।
- मूल रूप से बेसल अभिसमय (1992) में ई-अपशिष्ट का उल्लेख नहीं किया गया था लेकिन बाद में इसमें वर्ष 2006 (COP8) में ई-कचरे के मुद्दों को शामिल किया गया।
- नैरोबी घोषणा को खतरनाक कचरे के ट्रांसबाउंडरी मूवमेंट के नियंत्रण पर बेसल कन्वेंशन के COP9 में अपनाया गया था। इसका उद्देश्य ई-अपशिष्ट के पर्यावरण के अनुकूल प्रबंधन के लिये अभिनव समाधान तैयार करना है।
भारत में ई-अपशिष्ट के प्रबंधन से संबंधित चुनौतियाँ:
- लोगों की कम भागीदारी: इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों के अपशिष्ट का पुनर्चक्रण नहीं होने का एक प्रमुख कारण यह था कि उपभोक्ताओं ने उन्हें पुनर्चक्रित नहीं किया। हालांँकि हाल के वर्षों में विश्व भर के देश प्रभावी 'मरम्मत के अधिकार’ कानूनों को पारित करने का प्रयास कर रहे हैं।
- बाल श्रमिकों की संलग्नता: भारत में 10-14 आयु वर्ग के लगभग 4.5 लाख बाल श्रमिक विभिन्न ई-अपशिष्ट गतिविधियों में लगे हुए हैं और वह बगैर पर्याप्त सुरक्षा और सुरक्षा उपायों के विभिन्न यार्डों एवं पुनर्चक्रण कार्यशालाओं में कार्य कर रहे हैं।
- अप्रभावी कानून: अधिकांश राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (SPCB)/PCC वेबसाइटों} पर किसी भी सार्वजनिक सूचना का अभाव है।
- स्वास्थ्य के लिये खतरनाक: ई-अपशिष्ट में 1,000 से अधिक विषाक्त पदार्थ होते हैं, जो मिट्टी और भूजल को दूषित करते हैं।
- प्रोत्साहन योजनाओं का अभाव: असंगठित क्षेत्र के लिये ई-अपशिष्ट के प्रबंधन हेतु कोई स्पष्ट दिशा-निर्देश नहीं हैं। साथ ही, ई-अपशिष्ट के प्रबंधन के लिये औपचारिक मार्ग अपनाने में लगे लोगों को आकर्षक तरीके से इस दिशा में उन्मुख करने के लिये किसी प्रोत्साहन का उल्लेख नहीं किया गया है।
- ई-अपशिष्ट का आयात: विकसित देशों द्वारा 80% ई-अपशिष्ट रीसाइक्लिंग के लिये भारत, चीन, घाना और नाइजीरिया जैसे विकासशील देशों को भेजा जाता है।
- संबंधित अधिकारियों की उदासीनता: नगरपालिकाओं की गैर-भागीदारी सहित ई-अपशिष्ट प्रबंधन और निपटान के लिये ज़िम्मेदार विभिन्न प्राधिकरणों के बीच समन्वय का अभाव।
- सुरक्षा के निहितार्थ: कंप्यूटरों में अक्सर संवेदनशील व्यक्तिगत जानकारी और बैंक खाते के विवरण आदि होते हैं, इस प्रकार की जानकरियों को रिमूव न किये जाने की स्थिति में धोखाधड़ी की संभावना रहती है।
भारत में ई-अपशिष्ट के संबंध में प्रावधान:
- भारत में इलेक्ट्रॉनिक कचरा प्रबंधन के लिये नियमों का एक औपचारिक सेट है, पहली बार वर्ष 2016 में इन नियमों की घोषणा की गई और वर्ष 2018 में इसमें संशोधन हुए।
- हाल ही में पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय ने इलेक्ट्रॉनिक अपशिष्ट प्रबंधन के लिये मसौदा अधिसूचना जारी की है।
- पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय ने ई-अपशिष्ट (प्रबंधन और हैंडलिंग) नियम, 2011 के अधिक्रमण में ई-अपशिष्ट प्रबंधन नियम, 2016 को अधिसूचित किया।
- 21 से अधिक उत्पादों (अनुसूची- I) को नियम के दायरे में शामिल किया गया था। इसमें कॉम्पैक्ट फ्लोरोसेंट लैंप (CFL) और अन्य पारा युक्त लैंप, साथ ही ऐसे अन्य उपकरण शामिल हैं।
- पहली बार उत्पादकों के लक्ष्य और विस्तारित निर्माता उत्तरदायित्व (EPR) को इस नियम के अंतर्गत लाया गया। उत्पादकों को ई-अपशिष्ट के संग्रह और उसके विनिमय के लिये ज़िम्मेदार बनाया गया है।
- विभिन्न उत्पादकों के पास एक अलग उत्पादक उत्तरदायित्व संगठन (PRO) हो सकता है और वह ई-कचरे का संग्रह सुनिश्चित कर सकता है। साथ ही,पर्यावरण की दृष्टि से इसका निपटान भी कर सकता है।
- जमा वापसी योजना (Deposit Refund Scheme) को एक अतिरिक्त आर्थिक साधन के रूप में पेश किया गया है जिसमें निर्माता बिजली और इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों की बिक्री के समय जमा के रूप में एक अतिरिक्त राशि लेता है और इसे उपभोक्ता को ब्याज के साथ तब वापस करता है जब अंत में बिजली और इलेक्ट्रॉनिक उपकरण वापस कर दिये जाते हैं।
- विघटन और पुनर्चक्रण कार्यों में शामिल श्रमिकों की सुरक्षा, स्वास्थ्य और कौशल विकास सुनिश्चित करने के लिये राज्य सरकारों की भूमिका भी पेश की गई है।
- नियमों का उल्लंघन करने पर जुर्माने का भी प्रावधान किया गया है।
- शहरी स्थानीय निकायों (नगर समिति/परिषद/निगम) को सड़कों या कूड़ेदानों में बेकार पड़े उत्पादों को एकत्र करने और अधिकृत विघटनकर्ताओं या पुनर्चक्रण करने वालों को चैनलाइज़ करने का कार्य सौंपा गया है।
- ई-कचरे के निराकरण और पुनर्चक्रण के लिये मौजूदा एवं आगामी औद्योगिक इकाइयों को उचित स्थान का आवंटन।
आगे की राह
- नीतियाँ और बेहतर कार्यान्वयन:
- भारत में कई स्टार्टअप और कंपनियाँ हैं जिन्होंने अब इलेक्ट्रॉनिक कचरे को इकट्ठा करना और रीसाइकल करना शुरू कर दिया है। हमें बेहतर कार्यान्वयन पद्धतियों एवं समावेशन नीतियों की आवश्यकता है जो अनौपचारिक क्षेत्र को आगे बढ़ने के लिये आवास तथा मान्यता प्रदान करें और पर्यावरण की दृष्टि से हमारे रीसाइक्लिंग लक्ष्यों को पूरा करने में हमारी सहायता करें।
- समावेशन की आवश्यकता: साथ ही संग्रह दरों को सफलतापूर्वक बढ़ाने के लिये उपभोक्ताओं सहित प्रत्येक हितधारक को शामिल करना आवश्यक है।
- अनौपचारिक क्षेत्र को प्रोत्साहित करना: अनौपचारिक क्षेत्र के श्रमिकों के साथ जुड़ने की रणनीति के साथ आगे आने की आवश्यकता है क्योंकि ऐसा करने से न केवल बेहतर ई-कचरा प्रबंधन होगा बल्कि पर्यावरण संरक्षण में भी सहायता मिलेगी, साथ ही स्वास्थ्य और कार्य करने की स्थिति में सुधार होगा। इससे मज़दूर के साथ-साथ एक लाख से अधिक लोगों को बेहतर काम के अवसर प्राप्त होंगे।
- यह प्रबंधन को पर्यावरण की दृष्टि से टिकाऊ और निगरानी के कार्य को आसान बना देगा।
- रोज़गार में वृद्धि: समय की मांग है कि ऐसा रोज़गार सृजित किया जाए जो सहकारी समितियों की पहचान कर उन्हें बढ़ावा दे और ऐसा इन सहकारी समितियों या अनौपचारिक क्षेत्र के श्रमिकों के लिये ई-अपशिष्ट (प्रबंधन) नियम, 2016 के दायरे का विस्तार करके किया जा सकता है।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा विगत वर्ष के प्रश्नप्रश्न. निरंतर उत्पन्न किये जा रहे और फेंके गए ठोस कचरे की विशाल मात्रा का निस्तारण करने में क्या-क्या बाधाएँ हैं? हम अपने रहने योग्य परिवेश में जमा होते जा रहे ज़हरीले अपशिष्टों को सुरक्षित रूप से किस प्रकार हटा सकते हैं? (मुख्य परीक्षा, 2018) |
स्रोत: डाउन टू अर्थ


भारतीय राजव्यवस्था
कानून प्रणाली में क्षेत्रीय भाषा का प्रयोग
प्रिलिम्स के लिये:अनुच्छेद 343, राष्ट्रपति, अनुच्छेद 348 मेन्स के लिये:कानूनी प्रणाली में क्षेत्रीय भाषा का प्रयोग |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में प्रधानमंत्री ने वीडियो कॉन्फ्रेंस के माध्यम से कानून मंत्रियों और कानून सचिवों के अखिल भारतीय सम्मेलन का उद्घाटन किया।
- सम्मेलन का उद्घाटन करते हुए प्रधानमंत्री ने न्याय प्रदान करने में आसानी के लिये कानूनी प्रणाली में क्षेत्रीय भाषाओं के उपयोग की वकालत की।
- उन्होंने ज़ोर देकर कहा कि "न्याय में आसानी" के लिये नए कानूनों को स्पष्ट तरीके से और क्षेत्रीय भाषाओं में लिखा जाना चाहिये ताकि गरीब भी उन्हें आसानी से समझ सकें एवं कानूनी भाषा नागरिकों के लिये बाधा न बने।
कानूनी प्रणाली में भाषाओं की पृष्ठभूमि:
- पृष्ठभूमि:
- भारत में न्यायालयों में इस्तेमाल की जाने वाली भाषा ने मुगल काल के दौरान उर्दू से फारसी और फारसी लिपियों में बदलाव के साथ सदियों से एक संक्रमण देखा है जो ब्रिटिश शासन के दौरान भी अधीनस्थ न्यायालयों में जारी रहा।
- अंग्रेज़ों ने भारत में राजभाषा के रूप में अंग्रेज़ी के साथ कानून की एक संहिताबद्ध प्रणाली की शुरुआत की।
- स्वतंत्रता के बाद भारत के संविधान के अनुच्छेद 343 में प्रावधान किया गया है कि संघ की आधिकारिक भाषा देवनागरी लिपि में हिंदी होगी।
- हालाँकि यह अनिवार्य किया गया है कि भारत के संविधान के प्रारंभ होने के बाद 15 वर्षों तक संघ के सभी आधिकारिक उद्देश्यों हेतु अंग्रेज़ी भाषा का उपयोग जारी रहेगा।
- यह आगे प्रावधान करता है कि राष्ट्रपति उक्त अवधि के दौरान अंग्रेज़ी भाषा के अलावा संघ के किसी भी आधिकारिक उद्देश्य के लिये हिंदी भाषा के उपयोग को अधिकृत कर सकता है।
- संवैधानिक प्रावधान:
- अनुच्छेद 348 (1) (A), इस भाग के पूर्वगामी उपबंधों में किसी बात के होते हुए भी, जब तक संसद् विधि द्वारा अन्यथा उपबंध न करे तब तक सर्वोच्च न्यायालय और प्रत्येक उच्च न्यायालय के समक्ष सभी कार्यवाही अंग्रेज़ी में की जाएगी।
- अनुच्छेद 348 (2) यह भी प्रावधान करता है कि अनुच्छेद 348 (1) के प्रावधानों के बावजूद किसी राज्य का राज्यपाल, राष्ट्रपति की पूर्व सहमति से उच्च न्यायालय की कार्यवाही में हिंदी या किसी भी आधिकारिक उद्देश्य के लिये इस्तेमाल की जाने वाली किसी अन्य भाषा के उपयोग को अधिकृत कर सकता है।
- उत्तर प्रदेश, बिहार, राजस्थान तथा मध्य प्रदेश राज्यों ने पहले ही अपने-अपने उच्च न्यायालयों के समक्ष कार्यवाही में हिंदी के उपयोग को अधिकृत कर दिया है और तमिलनाडु भी अपने उच्च न्यायालय के समक्ष तमिल भाषा के उपयोग को अधिकृत करने के लिये उसी दिशा में काम कर रहा है
- एक अन्य प्रावधान में यह कहा गया है कि इस खंड का कोई भी भाग उच्च न्यायालय द्वारा किये गए किसी भी निर्णय, डिक्री या आदेश पर लागू नहीं होगा।
- इसलिये संविधान इस चेतावनी के साथ अंग्रेज़ी को सर्वोच्च न्यायालय और उच्च न्यायालयों की प्राथमिक भाषा के रूप में मान्यता देता है कि भले ही उच्च न्यायालयों की कार्यवाही में किसी अन्य भाषा का उपयोग किया जाए लेकिन उच्च न्यायालयों के निर्णय अंग्रेज़ी में दिये जाने चाहये।
- राजभाषा अधिनियम 1963:
- राजभाषा अधिनियम- 1963 राज्यपाल को यह अधिकार देता है कि वह राष्ट्रपति की पूर्वानुमति से उच्च न्यायलय द्वारा दिये गए निर्णयों, पारित आदेशों में हिंदी अथवा राज्य की किसी अन्य भाषा के प्रयोग की अनुमति दे सकता है, परंतु इसके साथ ही इसका अंग्रेज़ी अनुवाद भी संलग्न करना होगा।
- यह प्रावधान करता है कि जहाँ कोई निर्णय/आदेश ऐसी किसी भी भाषा में पारित किया जाता है, तो उसके साथ उसका अंग्रेज़ी में अनुवाद होना चाहिये।
- यदि इसे संवैधानिक प्रावधानों के साथ पढ़ें तो यह स्पष्ट है कि इस अधिनियम द्वारा भी अंग्रेज़ी को प्रधानता दी गई है।
- राजभाषा अधिनियम में सर्वोच्च न्यायालय का कोई उल्लेख नहीं है,जहाँ अंग्रेज़ी ही एकमात्र ऐसी भाषा है जिसमें कार्यवाही की जाती है।
- अधीनस्थ न्यायालयों की भाषा:
- उच्च न्यायालयों के अधीनस्थ सभी न्यायालयों की भाषा आमतौर पर वही रहती है जो राज्य सरकार द्वारा निर्धारित किये जाने तक सिविल प्रक्रिया संहिता 1908 के प्रारंभ पर भाषा के रूप में होती है।
- अधीनस्थ न्यायालयों में भाषा के प्रयोग के संबंध में प्रावधान में यह शामिल है कि नागरिक प्रक्रिया संहिता की धारा 137 के तहत ज़िला न्यायालयों की भाषा अधिनियम की भाषा के समान होगी।
- राज्य सरकार के पास न्यायालय की कार्यवाही के विकल्प के रूप में किसी भी क्षेत्रीय भाषा को घोषित करने की शक्ति है।
- हालाँकि मजिस्ट्रेट द्वारा अंग्रेज़ी में निर्णय, आदेश और डिक्री पारित की जा सकती है।
- साक्ष्यों को दर्ज करने का कार्य राज्य की प्रचलित भाषा में किया जाएगा।
- अभिवक्ता के अंग्रेज़ी से अनभिज्ञ होने की स्थिति में उसके अनुरोध पर अदालत की भाषा में अनुवाद उपलब्ध कराया जाएगा और इस तरह की लागत अदालत द्वारा वहन की जाएगी।
- दंड प्रक्रिया संहिता 1973 की धारा 272 में कहा गया है कि राज्य सरकार उच्च न्यायालयों के अलावा अन्य सभी न्यायालयों की भाषा का निर्धारण करेगी। मोटे तौर पर इसका तात्पर्य यह है कि ज़िला अदालतों में इस्तेमाल की जाने वाली भाषा राज्य सरकार के निर्देशानुसार क्षेत्रीय भाषा होगी।
कानूनी प्रणाली में अंग्रेज़ी भाषा का उपयोग करने के कारण:
- परिचय:
- जिस तरह पूरे देश से मामले सर्वोच्च न्यायालय में आते हैं, उसी तरह सर्वोच्च न्यायालय के जज और वकील भी भारत के सभी हिस्सों से आते हैं।
- न्यायाधीशों से शायद ही उन भाषाओं में दस्तावेज़ पढ़ने और तर्क सुनने की उम्मीद की जा सकती है जिनसे वे परिचित नहीं हैं।
- अंग्रेज़ी के प्रयोग के बिना अपने कर्तव्य का निर्वहन करना असंभव होगा। सर्वोच्च न्यायालय के सभी निर्णय भी अंग्रेज़ी में दिये जाते हैं।
- हालाँकि वर्ष 2019 में न्यायालय ने अपने निर्णयों को क्षेत्रीय भाषाओं में अनुवाद करने के लिये एक पहल की शुरुआत की, बल्कि यह एक लंबा आदेश है, जो न्यायालय द्वारा दिये गए निर्णयों की भारी मात्रा को देखते हुए दिया गया है।
- अंग्रेज़ी का उपयोग करने का महत्त्व:
- एकरूपता: वर्तमान में भारत में न्यायिक प्रणाली पूरे देश में अच्छी तरह से विकसित, एकीकृत और एक समान है।
- आसान पहुँच: वकीलों के साथ-साथ न्यायाधीशों को समान कानूनों और कानून व संविधान के अन्य मामलों पर अन्य उच्च न्यायालयों के विचारों तक आसान पहुँच का लाभ मिलता है।
- निर्बाध स्थानांतरण: वर्तमान में एक उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों को अन्य उच्च न्यायालयों में निर्बाध रूप से स्थानांतरित किया जाता है।
- एकीकृत संरचना: इसने भारतीय न्यायिक प्रणाली को एक एकीकृत संरचना प्रदान की है। किसी भी मज़बूत कानूनी प्रणाली की पहचान यह है कि कानून निश्चित, सटीक और अनुमानित होना चाहिये तथा हमने भारत में इसे लगभग हासिल कर लिया है।
- संपर्क भाषा: बहुत हद तक हम अंग्रेज़ी भाषा के लिये ऋणी हैं, जिसने भारत के लिये एक संपर्क भाषा के रूप में कार्य किया है जहाँ हमारे पास लगभग दो दर्जन आधिकारिक राज्य भाषाएँ हैं।
आगे की राह:
- अब आवश्यकता है कि न्यायालयों में स्थानीय भाषा के प्रयोग को प्रोत्साहित किया जाए, इससे न केवल आम नागरिकों का न्याय व्यवस्था में विश्वास बढ़ेगा, बल्कि वे अधिक जुड़ाव महसूस करेंगे।
- भारत स्वतंत्रता की 75वीं वर्षगाँठ मना रहा है, एक ऐसी न्यायिक प्रणाली के निर्माण पर ध्यान केंद्रित किया जाना चाहिये जहाँ न्याय सरलता से सभी को त्वरित और समान रूप से उपलब्ध हो।
- न्यायपालिका और विधायिका का समन्वय देश में प्रभावी और समयबद्ध न्यायिक व्यवस्था का खाका तैयार करेगा।
स्रोत: द हिंदू


भारतीय अर्थव्यवस्था
बैंकों को आरटीआई से छूट
प्रिलिम्स के लिये:RTI अधिनियम 2005, NPA, निजता का अधिकार. मेन्स के लिये:बैंकों द्वारा आरटीआई से छूट मांगने की वजह |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में सर्वोच्च न्यायालय ने विभिन्न बैंकों द्वारा आरटीआई (सूचना का अधिकार) से छूट से संबंधित एक याचिका की जाँच करने पर सहमति व्यक्त की है।
- सार्वजनिक और निजी क्षेत्रों के कई बैंक गैर-निष्पादित आस्तियों (NPA), व्यापारिक हानियों, कारण बताओ नोटिस और जुर्माने के संबंध में विभिन्न प्रकार के वित्तीय डेटा का खुलासा करने के मामले में छूट प्राप्त करना चाहते हैं।
मुद्दा क्या है?
- निरीक्षण रिपोर्ट और डिफॉल्टरों की सूची के खुलासे के लिये कानूनी लड़ाई तब शुरू हुई जब आरटीआई कार्यकर्त्ता जयंतीलाल मिस्त्री ने आरटीआई अधिनियम, 2005 के तहत आरबीआई से गुजरात स्थित सहकारी बैंक के बारे में वर्ष 2010 में जानकारी मांगी। मामला सर्वोच्च न्यायलय तक गया क्योंकि मिस्त्री की अपील पर आरटीआई प्रक्रिया के विभिन्न चरणों में ख़ास ध्यान नहीं दिया गया था।
- वर्ष 2015 में सर्वोच्च न्यायालय ने निरीक्षण रिपोर्ट और डिफॉल्टरों की सूची को गोपनीय रखने की कोशिश करने के लिये आरबीआई को फटकार लगाई थी, जिससे आरबीआई की ऐसी रिपोर्टों के सार्वजनिक प्रकटीकरण का मार्ग प्रशस्त हुआ था, जो बैंकिंग क्षेत्र की इच्छा के खिलाफ था।
- सर्वोच्च न्यायालय ने कहा था कि आरबीआई का किसी भी सार्वजनिक क्षेत्र या निजी क्षेत्र के बैंक के लाभ को अधिकतम करने का कोई कानूनी कर्तव्य नहीं है और इस प्रकार उनके बीच 'विश्वास' का कोई संबंध नहीं है। इसमें कहा गया है कि आरटीआई के तहत इन विवरणों का खुलासा करके जनहित को बनाए रखना आरबीआई का कर्तव्य है।
- आरबीआई ने सर्वोच्च न्यायालय के आदेश के बाद इस तरह की रिपोर्ट को सार्वजनिक करने की अनुमति दी।
- अब सर्वोच्च न्यायालय का कहना है कि वर्ष 2015 के फैसले में सूचना के अधिकार और निजता के अधिकार को संतुलित करने के पहलू को ध्यान में नहीं रखा गया था एवं इस प्रकार न्यायालय बैंकों को योग्यता के आधार पर अपने मामले पर बहस करने का अवसर देने के लिये बाध्य है।
बैंकों का तर्क:
- चूँकि बैंक पैसे के लेन-देन में शामिल हैं, इसलिये उन्हें डर है कि विशेष रूप से नियामक RBI की ओर से कोई प्रतिकूल टिप्पणी उनके प्रदर्शन को प्रभावित करेगी और ग्राहकों को दूर रखेगी।
- बैंक अपने ग्राहकों के "विश्वास और आस्था" से प्रेरित होते हैं जिन्हें सार्वजनिक नहीं किया जाना चाहिये।
- बैंकों ने यह भी तर्क दिया कि गोपनीयता मौलिक अधिकार है और इसलिये ग्राहकों की जानकारी को सार्वजनिक करके इसका उल्लंघन नहीं किया जाना चाहिये।
RTI अधिनियम, 2005:
- परिचय:
- सूचना का अधिकार अधिनियम या RTI केंद्रीय कानून है, जो नागरिकों को सार्वजनिक प्राधिकरण से जानकारी प्राप्त करने में सक्षम बनाता है।
- यह सार्वजनिक प्राधिकरण के नियंत्रण में सूचना प्राप्त करने के लिये तंत्र प्रदान करता है ताकि पारदर्शिता और जवाबदेही बढ़ाई जा सके।
- RTI अधिनियम की धारा 8: धारा 8 सूचना के प्रकटीकरण से छूट से संबंधित है। जैसे:
- सूचना जो भारत की संप्रभुता और अखंडता पर प्रतिकूल प्रभाव डालेगी।
- सूचना जिसे किसी भी न्यायालय द्वारा प्रकाशित करने के लिये स्पष्ट रूप से मना किया गया है।
- सूचना, जिसके प्रकटन से संसद या राज्य विधानमंडल के विशेषाधिकार का हनन होगा।
- वाणिज्यिक विश्वास, व्यापार रहस्य या बौद्धिक संपदा सहित जानकारी, जिसका प्रकटीकरण तीसरे पक्ष की प्रतिस्पर्द्धी स्थिति को नुकसान पहुँचाएगा, जब तक कि सक्षम प्राधिकारी संतुष्ट न हो कि बड़े सार्वजनिक हित में ऐसी जानकारी के प्रकटीकरण की आवश्यकता है।
- किसी व्यक्ति को उसके प्रत्ययी संबंध में उपलब्ध जानकारी, जब तक कि सक्षम प्राधिकारी संतुष्ट न हो कि व्यापक जनहित में ऐसी जानकारी का प्रकटीकरण आवश्यक है।
यूपीएससी सिविल सेवा परीक्षा विगत वर्ष के प्रश्नप्रश्न: सूचना का अधिकार अधिनियम केवल नागरिकों के सशक्तीकरण के बारे में नहीं है, यह अनिवार्य रूप से जवाबदेही की अवधारणा को फिर से परिभाषित करता है। चर्चा कीजिये। (मेन्स-2018) |
स्रोत: हिंदुस्तान टाइम्स


सामाजिक न्याय
वैश्विक बहुआयामी गरीबी सूचकांक (MPI) 2022
प्रिलिम्स के लिये:वैश्विक बहुआयामी गरीबी सूचकांक (MPI) 2022, संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम, मेन्स के लिये:भारत में गरीबी की स्थिति और इस संबंध में उठाए गए कदम |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम (UNDP) और ‘ऑक्सफोर्ड पॉवर्टी एंड ह्यूमन डेवलपमेंट इनीशिएटिव’ (OPHI) द्वारा वैश्विक बहुआयामी गरीबी सूचकांक (एमपीआई) 2022 जारी किया गया।
सूचकांक की मुख्य विशेषताएँ:
- वैश्विक आँकड़ा:
- 2 बिलियन लोग बहुआयामी गरीबी के दायरे में आते हैं।
- उनमें से लगभग आधे लोग गंभीर गरीबी की स्थिति में रहते हैं।
- आधे गरीब लोग (593 मिलियन) 18 वर्ष से कम आयु के हैं।
- गरीब लोगों की संख्या उप सहारा अफ्रीका (579 मिलियन) में सबसे अधिक है, इसके बाद दक्षिण एशिया (385 मिलियन) का स्थान है। दोनों क्षेत्रों में कुल मिलाकर 83% गरीब लोग रहते हैं।
- 2 बिलियन लोग बहुआयामी गरीबी के दायरे में आते हैं।
- महामारी का प्रभाव:
- हालाँकि आँकड़ा महामारी के बाद के बदलावों को प्रतिबिंबित नहीं करता है।
- रिपोर्ट के अनुसार, कोविड-19 महामारी वैश्विक स्तर पर गरीबी उन्मूलन में हुई प्रगति को 3-10 वर्ष पीछे धकेल सकती है।
- विश्व खाद्य कार्यक्रम के खाद्य सुरक्षा पर नवीनतम आंकड़ों से पता चलता है कि वर्ष 2021 में खाद्य संकट या इससे भी बदतर स्थिति में रहने वाले लोगों की संख्या बढ़कर 193 मिलियन हो गई।
भारत के बारे में प्रमुख निष्कर्ष:
- आँकड़ा:
- दुनिया में सबसे ज़्यादा 22.8 करोड़ गरीब भारत में हैं, इसके बाद नाइजीरिया में 9.6 करोड़ लोग गरीब हैं।
- इनमें से दो-तिहाई लोग ऐसे घरों में रहते हैं जिसमें कम-से-कम एक व्यक्ति पोषण से वंचित है।
- गरीबी में कमी:
- देश में गरीबी वर्ष 2005-06 के 55.1% से घटकर वर्ष 2019-21 में 16.4% हो गई।
- सभी 10 MPI संकेतकों में उल्लेखनीय कमी देखी गई जिसके परिणामस्वरूप MPI मूल्य और गरीबी की घटनाएँ आधी से अधिक कम हो गईं।
- वर्ष 2005-06 से लेकर 2019-21 के दौरान भारत में 41.5 करोड़ लोग गरीबी से बाहर निकलने में सफल रहे।
- भारत के लिये बहुआयामी गरीबी सूचकांक में सुधार ने दक्षिण एशिया में गरीबी में गिरावट में महत्त्वपूर्ण योगदान दिया है।
- देश में गरीबी वर्ष 2005-06 के 55.1% से घटकर वर्ष 2019-21 में 16.4% हो गई।
- गरीबी में सापेक्ष कमी:
- राष्ट्रीय स्तर पर 2015-2016 से 2019-21 की सापेक्ष कमी 2005-2006 से 2015-2016 तक 8.1% की तुलना में प्रतिवर्ष 11.9% तेज़ थी।
- राज्यों का प्रदर्शन:
- वर्ष 2015-16 में सबसे गरीब राज्य बिहार में MPI मूल्य में निरपेक्ष रूप से सबसे तेज़ कमी देखी गई।
- बिहार में गरीबी का प्रतिशत वर्ष 2005-06 के 77.4% से गिरकर 2015-16 में 52.4% और 2019-21 में 34.7% हो गया।
- हालाँकि सापेक्ष रूप से सबसे गरीब राज्यों ने काफी प्रगति नहीं की है।
- वर्ष 2015-2016 में 10 सबसे गरीब राज्यों में से केवल एक (पश्चिम बंगाल) वर्ष 2019-21 में सूची में नहीं था।
- अन्य सबसे गरीब राज्य- बिहार, झारखंड, मेघालय, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश, असम, ओडिशा, छत्तीसगढ़ और राजस्थान हैं।
- भारत में राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों में सापेक्ष रूप से सबसे तेज़ कमी गोवा में हुई, इसके बाद जम्मू-कश्मीर, आंध्र प्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान का स्थान रहा।
- वर्ष 2015-16 में सबसे गरीब राज्य बिहार में MPI मूल्य में निरपेक्ष रूप से सबसे तेज़ कमी देखी गई।
- बच्चों में गरीबी:
- बच्चों के मामले में गरीबी में निरपेक्ष रूप से तेज़ी से गिरावट आई, हालाँकि भारत में अभी भी दुनिया में सबसे अधिक गरीब बच्चे हैं।
- भारत में हर पाँच में एक से अधिक बच्चे गरीब हैं, जबकि सात में से एक वयस्क गरीब है।
- क्षेत्रवार गरीबी में कमी:
- रिपोर्ट में कहा गया है कि 2015-2016 में गरीबी का आँकड़ा6% था जो 2019-2021 में ग्रामीण क्षेत्रों में 21.2% और शहरी क्षेत्रों में 9.0% से 5.5% हो गया।
वैश्विक बहुआयामी गरीबी सूचकांक:
- परिचय:
- सूचकांक एक प्रमुख अंतर्राष्ट्रीय संसाधन है जो 100 से अधिक विकासशील देशों में तीव्र बहुआयामी गरीबी को मापता है।
- इसे पहली बार वर्ष 2010 में OPHI और UNDP के मानव विकास रिपोर्ट कार्यालय द्वारा जारी किया गया था।
- MPI स्वास्थ्य, शिक्षा और जीवन स्तर में व्याप्त 10 संकेतकों में अभाव की निगरानी करता है तथा इसमें गरीबी की घटना एवं तीव्रता दोनों शामिल हैं।
- MPI संकेतक और आयाम:
- एक व्यक्ति बहुआयामी रूप से गरीब है यदि वह भारित संकेतकों (दस संकेतकों में से) के एक-तिहाई या अधिक (अर्थात् 33% या अधिक) से वंचित है। जो लोग आधे या अधिक भारित संकेतकों से वंचित हैं, उन्हें अत्यधिक बहुआयामी गरीबी में रहने वाला माना जाता है।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा विगत वर्ष के प्रश्न (PYQ)प्रश्न. ऑक्सफोर्ड पॉवर्टी एंड ह्यूमन डेवलपमेंट इनिशिएटिव द्वारा UNDP के सहयोग से विकसित बहुआयामी गरीबी सूचकांक निम्नलिखित में से किसे शामिल करता है? (2012)
नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये: (a) केवल 1 उत्तर: (a) व्याख्या:
प्रश्न: उच्च विकास के लगातार अनुभव के बावजूद भारत अभी भी मानव विकास के निम्नतम संकेतकों के साथ है। उन मुद्दों की जाँच कीजिये जो संतुलित और समावेशी विकास के परिहार का कारण बनते हैं। (मुख्य परीक्षा, 2016) |
स्रोत: द हिंदू


कृषि
जैविक उर्वरक
प्रिलिम्स के लिये:जैविक खाद, मवेशी खाद, जैव उर्वरक, ठोस अपशिष्ट, बायोगैस। मेन्स के लिये:भारत में जैविक उर्वरकों की क्षमता। |
चर्चा में क्यों?
आर्थिक सुधारों के पथ पर भारत की विकास गाथा ने देश को दुनिया की सबसे तेज़ी से बढ़ती अर्थव्यवस्थाओं में से एक बना दिया है। सही नीतिगत हस्तक्षेप से भारत ‘जैविक उर्वरक’ उत्पादन का केंद्र बन सकता है।
जैविक उर्वरक:
- परिचय:
- जैविक उर्वरक एक ऐसा उर्वरक है जो जैविक स्रोतों से प्राप्त होता है, जिसमें जैविक खाद, पशु खाद, मुर्गी पालन और घरेलू सीवेज शामिल हैं।
- सरकारी नियमों के अनुसार, जैविक खाद को दो वर्गों में वर्गीकृत किया जा सकता है: जैव उर्वरक और जैविक खाद।
- जैव उर्वरक:
- यह ठोस या तरल वाहकों से जुड़े जीवित सूक्ष्मजीवों से निर्मित हैं और कृषि योग्य भूमि के लिये उपयोगी होते हैं। ये सूक्ष्मजीव मृदा और/या फसलों की उत्पादकता बढ़ाने में मदद करते हैं।
- उदाहरण: राइजोबियम, एजोस्पिरिलियम, एजोटोबैक्टर, फॉस्फोबैक्टीरिया, नील हरित शैवाल (BGA), माइकोराइजा, एजोला।
- यह ठोस या तरल वाहकों से जुड़े जीवित सूक्ष्मजीवों से निर्मित हैं और कृषि योग्य भूमि के लिये उपयोगी होते हैं। ये सूक्ष्मजीव मृदा और/या फसलों की उत्पादकता बढ़ाने में मदद करते हैं।
- जैविक खाद:
- ‘जैविक खाद’ का तात्पर्य आंशिक रूप से विघटित कार्बनिक पदार्थ जैसे बायोगैस संयंत्र, खाद और वर्मीकम्पोस्ट से है। ये मृदा / फसलों को पोषक तत्त्व प्रदान करते हैं तथा उपज में सुधार करते हैं।
भारत में जैविक उर्वरकों की क्षमता:
- नगरपालिका ठोस अपशिष्ट का उपयोग:
- भारत 150,000 टन से अधिक नगरपालिका ठोस अपशिष्ट (MSW) का उत्पादन करता है।
- 80% की संग्रह क्षमता और MSW के जैविक भाग को 50% शामिल करते हुए भारत में उत्पन्न होने वाला कुल जैविक कचरा लगभग 65,000 टन प्रतिदिन है।
- यहाँ तक कि इसका आधा हिस्सा बायोगैस उद्योग में लगा दिया जाए, सरकार जीवाश्मों और उर्वरकों के आयात में कमी करके इसका लाभ उठा सकती है।
- बायोगैस अपशिष्टों का उपयोग करना:
- जैविक उर्वरक का महत्त्वपूर्ण है जिसे डाइजेस्टेट भी कहा जाता है, जो कि बायोगैस संयंत्र का अपशिष्ट है।
- बायोगैस का उपयोग हीटिंग, बिजली और यहाँ तक कि वाहनों (उन्नयन के बाद) में किया जा सकता है, जबकि डाइजेस्ट दूसरी हरित क्रांति के दृष्टिकोण को साकार करने में मदद कर सकता है।
- मृदा की उर्वरता बढ़ाना:
- डाइजेस्ट अपने मानक पोषण मूल्य के अलावा लगातार घटती मृदा को कार्बनिक के लिये कार्बन प्रदान कर सकता है।
- भारत में वर्तमान में जैव-उर्वरक का उत्पादन सिर्फ 110,000 टन (वाहक आधारित 79,000 टन और तरल-आधारित 30,000 टन) तथा 34 मिलियन टन जैविक खाद है, जो कि शहरीय अपशिष्ट और वर्मीकम्पोस्ट से बना है।
- जैविक खेती की लोकप्रियता:
- हाल के वर्षों में घरेलू बाज़ार में जैविक खेती की लोकप्रियता बढ़ी है।
- भारतीय जैविक पैकेज्ड फूड का बाज़ार आकार 17% की दर से बढ़ने और वर्ष 2021 तक 871 मिलियन रुपए के आँकड़े को पार करने की उम्मीद है।
- इस क्षेत्र की उल्लेखनीय वृद्धि मृदा पर सिंथेटिक उर्वरक के हानिकारक प्रभावों के बारे में बढ़ती जागरूकता, बढ़ती स्वास्थ्य चिंताओं, शहरी जनसंख्या आधार का विस्तार और खाद्य वस्तुओं पर उपभोक्ता व्यय में वृद्धि से जुड़ी है।
- हाल के वर्षों में घरेलू बाज़ार में जैविक खेती की लोकप्रियता बढ़ी है।
संबंधित पहल:
यूपीएससी सिविल सेवा परीक्षा विगत वर्ष के प्रश्नप्रश्न. नीले-हरित शैवाल की कुछ प्रजातियों की कौन सी विशेषता उन्हें जैव-उर्वरकों के रूप में बढ़ावा देने में मदद करती है? (2010) (a) वे वायुमंडलीय मीथेन को अमोनिया में परिवर्तित करते हैं जिसे पौधे आसानी से अवशोषित कर सकते हैं। उत्तर: (c)
अतः विकल्प (c) सही उत्तर है। |
स्रोत: डाउन टू अर्थ

