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जैव विविधता और पर्यावरण

प्लास्टिक अपशिष्ट न्यूनीकरण: नीति आयोग

  • 06 Jul 2022
  • 8 min read

प्रिलिम्स के लिये:

एकल उपयोग प्लास्टिक और इसके उपयोग, विस्तारित निर्माता उत्तरदायित्व (EPR)।

मेन्स के लिये:

एकल उपयोग प्लास्टिक के विकल्प की आवश्यकता, प्लास्टिक अपशिष्ट प्रबंधन (संशोधन) नियम, 2022।

चर्चा में क्यों?

हाल ही में नीति आयोग ने प्लास्टिक के विकल्पों के उपयोग को प्रोत्साहित करने के लिये 'प्लास्टिक और उनके अनुप्रयोगों के लिये वैकल्पिक उत्पाद एवं प्रौद्योगिकी' शीर्षक से एक रिपोर्ट जारी की है।

  • पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय ने एकल उपयोग प्लास्टिक (SUP) पर भी प्रतिबंध लगा दिया है, इस प्रतिबंध का उल्लंघन करने पर पर्यावरण संरक्षण अधिनियम (EPA) की धारा 15 के तहत दंडात्मक कार्रवाई की जाएगी।

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रिपोर्ट की मुख्य विशेषताएँ:

  • वैश्विक प्लास्टिक उत्पादन और निपटान: वर्ष 1950-2015 के बीच पॉलिमर, सिंथेटिक फाइबर और एडिटिव्स का संचयी उत्पादन 8,300 मिलियन टन था, जिसमें से 55% को सीधे लैंडफिल में डाल दिया गया या 8% को जला दिया गया और केवल 6% प्लास्टिक का पुनर्नवीनीकरण हो पाया है।
    • यदि वर्ष 2050 तक इसी दर से उत्पादन जारी रखा जाता है, तो यह 12,000 मीट्रिक टन प्लास्टिक का उत्पादन करेगा।
  • भारत का मामला: भारत ने प्रतिवर्ष47 मिलियन टन प्लास्टिक कचरे का उत्पादन किया, जिसमें प्रति व्यक्ति कचरा पिछले पाँच वर्षों में 700 ग्राम से बढ़कर 2,500 ग्राम हो गया।
    • गोवा, दिल्ली और केरल में सबसे ज़्यादा प्रति व्यक्ति प्लास्टिक कचरा उत्पन्न हुआ, जबकि नगालैंड, सिक्किम और त्रिपुरा में सबसे कम प्रति व्यक्ति प्लास्टिक कचरा उत्पन्न हुआ।
  • चुनौती: विश्व स्तर पर इनमें से 97-99% प्लास्टिक जीवाश्म ईंधन फीडस्टॉक से प्राप्त होता है, जबकि शेष 1-3% जैव (संयंत्र) आधारित प्लास्टिक है।
    • इस प्लास्टिक कचरे के केवल छोटे से हिस्से का ही पुनर्नवीनीकरण किया जाता है, क्योंकि यह माना जाता है कि इस कचरे का अधिकांश हिस्सा विभिन्न प्रदूषणकारी मार्गों के माध्यम से पर्यावरण में निष्कासित हो जाता है।
    • भारत अपने प्लास्टिक कचरे का केवल 60% एकत्र करता है और शेष 40% बिना एकत्र किये रह जाता है जो कचरे के रूप में सीधे पर्यावरण में प्रवेश करता है।
    • प्लास्टिक का लगभग हर टुकड़ा जीवाश्म ईंधन के रूप में शुरू होता है, और ग्रीनहाउस गैसें (GHG) प्लास्टिक जीवनचक्र के प्रत्येक चरण में उत्सर्जित होती हैं:
      • जीवाश्म ईंधन निष्कर्षण और परिवहन
      • प्लास्टिक शोधन और निर्माण
      • प्लास्टिक कचरे का प्रबंधन
      • महासागरों, जलमार्गों और विभिन्न पारिस्थितिक तंत्र परिदृश्यों पर प्रभाव

Plastice-waste-management

पहल:

  • कचरे के प्रबंधन के लिये सबसे पसंदीदा विकल्प अपशिष्ट न्यूनीकरण है। बायोडिग्रेडेबल प्लास्टिक को अपनाने की समय-सीमा में छूट देते हुए विस्तारित उत्पादक उत्तरदायित्व (Extended Producer Responsibility-EPR), उचित लेबलिंग और खाद एवं बायोडिग्रेडेबल प्लास्टिक के संग्रह के माध्यम से अपशिष्ट न्यूनीकरण अभियान को मज़बूत करें।
  • उभरती प्रौद्योगिकियों का विकास करना, उदाहरण के लिये एडिटिव्स प्लास्टिक को जैव- निम्नीकरणीय पॉलीओलेफिन में बदल सकते हैं, जैसे- पॉलीप्रोपाइलीन और पॉलीइथाइलीन।
  • बायो-प्लास्टिक का उपयोग: प्लास्टिक के किफायती विकल्प के रूप में।
  • अनुसंधान एवं विकास तथा विनिर्माण क्षेत्र को प्रोत्साहित करना।
  • जवाबदेही तय करने और ग्रीनवाशिंग से बचने के लिये अपशिष्ट उत्पादन, संग्रह, पुनर्चक्रण या वैज्ञानिक निपटान का खुलासा करने में पारदर्शिता बढ़ाना।
    • ग्रीनवाशिंग भ्रामक जानकारी देने की एक प्रक्रिया है कि कैसे कंपनी के उत्पाद पर्यावरण की दृष्टि से बेहतर हैं।

प्लास्टिक का विकल्प:

  • काँच:
    • खाद्य और तरल पदार्थों की पैकेजिंग एवं उपयोग के लिये काँच हमेशा सबसे सुरक्षित व सबसे व्यवहार्य विकल्प रहा है।
    • काँच को कई बार पुनर्नवीनीकरण किया जा सकता है, इसलिये इसे लैंडफिल में समाप्त नहीं किया जाता है। इसके स्थायित्व और पुनर्चक्रण क्षमता को देखते हुए यह लागत प्रभावी है।
  • खोई:
    • कम्पोस्टेबल इको-फ्रेंडली खोई प्लास्टिक की आवश्यकता को डिस्पोबल प्लेट कप या बॉक्स के रूप में समाप्त कर सकती है।
    • गन्ने या चुकंदर से रस निकालने के बाद बचे हुए गूदे से खोई बनाई जाती है। इसका उपयोग जैव ईंधन जैसे अन्य उद्देश्यों के लिये भी किया जा सकता है।
  • बायोप्लास्टिक्स:
    • प्लांट-आधारित प्लास्टिक, जिसे बायोप्लास्टिक्स के रूप में जाना जाता है, को जीवाश्म ईंधन-आधारित प्लास्टिक के हरे विकल्प के रूप में जाना जाता है, विशेष रूप से जब खाद्य पैकेजिंग की बात आती है।
    • लेकिन बायोप्लास्टिक का अपना पर्यावरण पदचिह्न होता है, जिसके लिये फसल उगाने की आवश्यकता होती है तथा भूमि और पानी का उपयोग होता है।
    • बायोप्लास्टिक को पारंपरिक प्लास्टिक की तुलना में उतना ही हानिकारक और कुछ मामलों में अधिक हानिकारक माना जाता है।
  • प्राकृतिक वस्त्र:
    • हर बार धोने के साथ लाखों छोटे प्लास्टिक फाइबर बह जाते हैं जिससे पॉलिएस्टर और नायलॉन कपड़ों को बदलने की बात आती है, तो कपास, ऊन, लिनन और सन (Hemp) पारंपरिक विकल्प के रूप में हैं।
      • कपास का उत्पादन पर्यावरण के लिये गंभीर खतरा पैदा कर रहा है।
  • रिफिल, पुन: उपयोग और अनपैक्ड खरीद:
    • कम-से-कम हानिकारक पैकेजिंग वह है जिसे बार-बार इस्तेमाल किया जा सकता है या फिर बिल्कुल भी नहीं।
      • फल और सब्जी आदि के लिये पुन: उपयोग किये जाने वाले कपड़े के बैग।
      • मांस, मछली, पनीर आदि के लिये पुन: उपयोग किये जाने वाले कंटेनर और बक्से।
      • तेल और सिरका, सफाई हेतु तरल पदार्थ आदि के लिये फिर से भरने योग्य बोतलें और जार।
      • फॉइल (Foil) और क्लिंगफिल्म के बजाय मोम (Beeswax) लपेटना।

संबंधित पहल:

स्रोत: इकोनॉमिक टाइम्स

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