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डेली न्यूज़

  • 18 Feb, 2023
  • 43 min read
भारतीय अर्थव्यवस्था

जनसांख्यिकीय संक्रमण और भारत के लिये अवसर

प्रिलिम्स के लिये:

आर्थिक सर्वेक्षण, आवधिक श्रम बल सर्वेक्षण, राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण, कुपोषण, मैसिव ओपन ऑनलाइन कोर्स (MOOCS)।

मेन्स के लिये:

भारत के जनसांख्यिकीय लाभांश का महत्त्व, भारत के जनसांख्यिकीय लाभांश से जुड़ी चुनौतियाँ।

चर्चा में क्यों?

विश्व, वृद्धजन जनसंख्या के रूप में जनसांख्यिकीय संक्रमण (Demographic Transition) के दौर से गुज़र रहा है। अतः सरकारों, व्यवसायों और आम नागरिकों को महत्त्वपूर्ण परिवर्तनों समायोजन हेतु अनुकूलन रणनीतियों की आवश्यकता होगी।

  • यह भारत के लिये एक बड़ा अवसर हो सकता है, जो जनसांख्यिकीय लाभांश का अनुभव कर रहा है। 

जनसांख्यिकीय संक्रमण और जनसांख्यिकीय लाभांश:

  • जनसांख्यिकीय संक्रमण समय के साथ जनसंख्या की संरचना में बदलाव को संदर्भित करता है।
    • यह परिवर्तन विभिन्न कारकों जैसे जन्म और मृत्यु-दर में परिवर्तन, प्रवास के प्रतिरूप एवं सामाजिक तथा आर्थिक स्थितियों में परिवर्तन के कारण हो सकता है।
  • जनसांख्यिकीय लाभांश एक ऐसी घटना है जो तब होती है जब किसी देश की जनसंख्या संरचना आश्रितों (बच्चों और बुजुर्गों) के उच्च अनुपात से काम करने वाले वयस्कों के उच्च अनुपात के रूप में स्थानांतरित हो जाती है। 
    • यदि देश मानव पूंजी में निवेश और उत्पादक रोज़गार हेतु स्थितियों का निर्माण  करता है, तो जनसंख्या संरचना में इस बदलाव का परिणाम आर्थिक वृद्धि और विकास का कारक हो सकता है।

भारत के जनसांख्यिकीय लाभांश का महत्त्व:

  • परिचय:  
    • भारत ने वर्ष 2005-06 में जनसांख्यिकीय लाभांश की स्थिति में प्रवेश किया, जो वर्ष 2055-56 तक बना रह सकता है। 
    • भारत में औसत आयु अमेरिका या चीन की तुलना में काफी कम है। 
      • वर्ष 2050 तक भारतीय जनसंख्या की औसत आयु 38 तक होने की उम्मीद नहीं है, जबकि अमेरिका और चीन की औसत आयु वर्तमान में क्रमशः 38 और 39 है।
  • भारत के जनसांख्यिकीय लाभांश से जुड़ी चुनौतियाँ: 
    • निम्न महिला श्रम बल भागीदारी: भारत में महिला श्रमिकों की कमी देश की श्रम शक्ति को सीमित करती है।
      • आवधिक श्रम बल सर्वेक्षण 2020- 2021 के अनुसार, महिला श्रम कार्यबल की भागीदारी 25.1% है।
    • पर्यावरणीय क्षरण: भारत के तेज़ी से शहरीकरण और आर्थिक विकास के परिणामस्वरूप वनोन्मूलन, जल प्रदूषण और वायु प्रदूषण सहित अन्य पर्यावरणीय क्षति हुई है
      • सतत् आर्थिक विकास के लिये इन समस्याओं का समाधान किया जाना आवश्यक है।
    • उच्च ड्रॉपआउट दर: भारत के 95% से अधिक बच्चे प्राथमिक विद्यालयों में नामांकित होते हैं, राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण इस बात की पुष्टि करता है कि सरकारी विद्यालयों के निम्न स्तरीय बुनियादी ढाँचे, कुपोषण और प्रशिक्षित शिक्षकों की कमी के कारण बच्चों में शिक्षा के संबंध में कितना विकास हुआ इसके बारे में स्पष्ट तौर पर कुछ कहा नहीं जा सकता इसके साथ ही उच्च ड्रॉपआउट दर भी देखने को मिलती है।
    • रोज़गार के अवसरों की कमी: एक बड़ी और बढ़ती कामकाज़ी आयु की जनसंख्या के साथ, भारतीय रोज़गार बाज़ार इस विस्तारित कार्यबल की मांगों को पूरा करने के लिये पर्याप्त रोज़गार सृजन करने में सक्षम नहीं है।
      • इसके परिणामस्वरूप बेरोज़गारी की उच्च दर देखी जा रही है।
    • पर्याप्त बुनियादी ढाँचे का अभाव: अपर्याप्त बुनियादी ढाँचा, विशेष रूप से ग्रामीण क्षेत्रों में, अपर्याप्त विद्युत् सुविधा, परिवहन और संचार नेटवर्क सहित आवश्यक सेवाओं तथा रोज़गार के अवसरों तक पहुँच प्राप्त करना लोगों के लिये चुनौतीपूर्ण बना देता है।
    • ब्रेन ड्रेन: भारत में अत्यधिक कुशल और प्रतिभाशाली पेशेवरों का एक बड़ा समूह है, लेकिन उनमें से कई बेहतर रोज़गार के अवसरों और विदेशों में रहने की स्थिति की तलाश में देश छोड़ने का विकल्प चुनते हैं।  
      • यह प्रतिभा पलायन भारत के लिये एक महत्त्वपूर्ण क्षति है, क्योंकि इसके परिणामस्वरूप कुशल श्रमिकों की कमी होती है तथा देश की अपने जनसांख्यिकीय लाभांश का पूरी तरह से लाभ उठाने की क्षमता सीमित हो जाती है

भारत अपने जनसांख्यिकीय लाभांश का उपयोग कैसे कर सकता है? 

  • लैंगिक समानता: भारत को शिक्षा एवं रोज़गार में लैंगिक असमानता को दूर करने की ज़रूरत है, जिसमें महिलाओं के लिये शिक्षा एवं रोज़गार के अवसरों तक पहुँच में सुधार करना शामिल है।
    • कार्यबल में महिलाओं की भागीदारी आर्थिक विकास को बढ़ा सकती है तथा अधिक समावेशी समाज की ओर ले जा सकती है।
  • शिक्षा के स्तर को ऊपर उठाना: ग्रामीण और शहरी दोनों परिवेशों में, सार्वजनिक स्कूल प्रणाली को यह सुनिश्चित करना चाहिये कि प्रत्येक बच्चा हाई स्कूल तक की शिक्षा पूरी करे और कौशल, प्रशिक्षण एवं व्यावसायिक शिक्षा की ओर आगे बढ़े।
    • मैसिव ओपन ऑनलाइन कोर्स (MOOCS) के कार्यान्वयन के साथ-साथ स्कूल पाठ्यक्रम का आधुनिकीकरण और ओपन डिजिटल विश्वविद्यालयों की स्थापना भारत में योग्य कार्यबल के सृजन में अधिक योगदान कर सकेगी।
  • उद्यमिता को प्रोत्साहन: भारत को रोज़गार के अवसर सृजित करने तथा आर्थिक विकास में योगदान देने के लिये विशेष रूप से युवाओं के बीच उद्यमशीलता और नवाचार को प्रोत्साहित करने की आवश्यकता है।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रश्न.1 किसी भी देश के संदर्भ में निम्नलिखित में से किसे उसकी सामाजिक पूंजी का हिस्सा माना जाएगा? (2019)

(a) जनसंख्या में साक्षरों का अनुपात
(b) इसकी इमारतों, अन्य बुनियादी ढांँचों और मशीनों का स्टॉक
(c) कामकाजी आयु-वर्ग में जनसंख्या का आकार
(d) समाज में आपसी विश्वास और सद्भाव का स्तर

उत्तर: (d)


प्रश्न. 2 भारत को "जनसांख्यिकीय लाभांश" वाला देश माना जाता है। यह किस कारण है? (2011)

(a) 15 वर्ष से कम आयु वर्ग में इसकी उच्च जनसंख्या
(b) 15-64 वर्ष के आयु वर्ग में इसकी उच्च जनसंख्या
(c) 65 वर्ष से अधिक आयु वर्ग में इसकी उच्च जनसंख्या
(d) इसकी उच्च कुल जनसंख्या

उत्तर: (b)


मेन्स: 

प्रश्न. 1 जनसंख्या शिक्षा के प्रमुख उद्देश्यों की विवेचना कीजिये तथा भारत में उन्हें प्राप्त करने के उपायों का विस्तार से उल्लेख कीजिये। (2021)

प्रश्न. 2 ''महिलाओं को सशक्त बनाना जनसंख्या वृद्धि को नियंत्रित करने की कुंजी है।'' चर्चा कीजिये। (2019)

प्रश्न. 3 समालोचनात्मक परीक्षण कीजिये कि क्या बढ़ती जनसंख्या गरीबी का कारण है या गरीबी भारत में जनसंख्या वृद्धि का मुख्य कारण है। (2015)

स्रोत: हिंदुस्तान टाइम्स 


भारतीय अर्थव्यवस्था

भुगतान एग्रीगेटर्स

प्रिलिम्स के लिये:

भारतीय रिज़र्व बैंक, भुगतान एवं निपटान प्रणाली अधिनियम, 2007, पेमेंट गेटवे।

मेन्स के लिये:

भुगतान एग्रीगेटर्स।

चर्चा में क्यों? 

हाल ही में भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) ने भुगतान और निपटान प्रणाली अधिनियम, 2007 (PSS अधिनियम) के तहत 32 फर्मों को ऑनलाइन भुगतान एग्रीगेटर्स के रूप में काम करने के लिये सैद्धांतिक मंज़ूरी प्रदान की है।

  • PSS अधिनियम, 2007 भारत में भुगतान प्रणालियों के विनियमन और पर्यवेक्षण का प्रावधान करता है और RBI को उस उद्देश्य तथा सभी संबंधित मामलों के लिये प्राधिकरण के रूप में नामित करता है।

टिप्पणी:  

  • सैद्धांतिक रूप से अनुमोदन का अर्थ है कि कुछ शर्तों या मान्यताओं के आधार पर अनुमोदन प्रदान किया गया है, किंतु अंतिम अनुमोदन देने से पहले अतिरिक्त जानकारी या चरणों की आवश्यकता हो सकती है। 

भुगतान एग्रीगेटर्स: 

  • परिचय: 
  • कार्य:  
    • वे आम तौर पर ग्राहकों को क्रेडिट और डेबिट कार्ड, बैंक हस्तांतरण और ई-वॉलेट सहित कई प्रकार के भुगतान हेतु विकल्प प्रदान करते हैं।
    • यह सुनिश्चित करते हुए कि लेन-देन सुरक्षित और विश्वसनीय हैं, भुगतान एग्रीगेटर भुगतान हेतु जानकारी एकत्र और संसाधित करते हैं। 
    • भुगतान एग्रीगेटर का उपयोग कर व्यवसाय अपने स्वयं के भुगतान प्रसंस्करण सिस्टम को स्थापित करने और प्रबंधित करने की आवश्यकता से बच सकते हैं, जो की जटिल और महंगा हो सकता है।
      • भुगतान एग्रीगेटर्स के कुछ उदाहरणों में PayPal, स्ट्राइप, स्क्वायर और अमेज़न पे शामिल हैं। 
  • प्रमुख विशेषताएँ: 
    • बहु भुगतान विकल्प: भुगतान एग्रीगेटर ग्राहकों को कई प्रकार के भुगतान विकल्प प्रदान करते हैं, जिससे उनके लिये वस्तुओं और सेवाओं हेतु भुगतान करना आसान हो जाता है।
    • सुरक्षित भुगतान प्रसंस्करण: भुगतान एग्रीगेटर यह सुनिश्चित करने हेतु उन्नत सुरक्षा उपायों का उपयोग करते हैं कि लेनदेन सुरक्षित है।
    • धोखाधड़ी नियंत्रण और रोकथाम: भुगतान एग्रीगेटर धोखाधड़ी का पता लगाने और उसे रोकने हेतु एल्गोरिदम तथा मशीन लर्निंग का उपयोग करते हैं, साथ ही चार्जबैक एवं अन्य भुगतान विवादों के जोखिम को कम करते हैं।
    • भुगतान ट्रैकिंग और रिपोर्टिंग: भुगतान एग्रीगेटर भुगतान लेनदेन पर विस्तृत रिपोर्ट प्रदान करते हैं, जिससे व्यवसायों हेतु अपने वित्त का प्रबंधन करना और अपने खातों का मिलान करना आसान हो जाता है।
    • अन्य प्रणालियों के साथ एकीकरण: भुगतान एग्रीगेटर भुगतान प्रक्रिया को सुव्यवस्थित करने और व्यवसाय संचालन को आसान बनाने हेतु लेखांकन सॉफ्टवेयर तथा वस्तुसूची/इन्वेंट्री प्रबंधन प्रणालियों जैसी अन्य प्रणालियों की एक शृंखला के साथ एकीकृत कर सकते हैं।
  • प्रकार: 
    • बैंक भुगतान एग्रीगेटर: 
      • इसकी उच्च सेटअप लागत है साथ ही इनको एकीकृत करना मुश्किल होता है।
      • उनके पास विस्तृत रिपोर्टिंग सुविधाओं के साथ कई लोकप्रिय भुगतान विकल्पों का अभाव है। उच्च लागत के कारण बैंक भुगतान एग्रीगेटर छोटे व्यवसायों और स्टार्टअप्स हेतु उपयुक्त नहीं हैं।
      • उदाहरण; Razorpay और CCAvenue।
    • तृतीय-पक्ष भुगतान एग्रीगेटर: 
      • तृतीय-पक्ष भुगतान एग्रीगेटर व्यवसायों हेतु अभिनव भुगतान समाधान प्रदान करते हैं और इन दिनों अधिक लोकप्रिय हो गए हैं।
      • उनकी उपयोगकर्त्ता-अनुकूल सुविधाओं में एक विस्तृत डैशबोर्ड, आसान मर्चेंट ऑनबोर्डिंग और त्वरित ग्राहक सहायता शामिल हैं।
      • उदाहरण.; पे पल, स्ट्राइप और गूगल पे।
  • भुगतान एग्रीगेटर्स के रूप में एक इकाई को मंज़ूरी देने के लिये आरबीआई का मानदंड:
    • भुगतान एग्रीगेटर ढाँचे के तहत, केवल भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा अनुमोदित कंपनियाँ ही व्यापारियों को भुगतान सेवाओं का अधिग्रहण और पेशकश कर सकती हैं।
    • एग्रीगेटर प्राधिकरण के लिये आवेदन करने वाली कंपनी के पास आवेदन के पहले वर्ष में न्यूनतम नेटवर्थ 15 करोड़ रुपए और दूसरे वर्ष तक कम से कम 25 करोड़ रुपए होना चाहिये।
    • इसे वैश्विक भुगतान सुरक्षा मानकों के अनुरूप भी होना आवश्यक है।

भुगतान एग्रीगेटर और भुगतान गेटवे में अंतर: 

  • भुगतान गेटवे एक सॉफ्टवेयर एप्लीकेशन है जो एक ऑनलाइन स्टोर अथवा व्यापारियों को भुगतान प्रोसेसर से जोड़ता है, जिससे व्यापारी को ग्राहक से भुगतान स्वीकार करने की अनुमति प्राप्त होती है।
    • दूसरी ओर, भुगतान एग्रीगेटर, मध्यस्थ हैं जो कई व्यापारियों को अलग-अलग भुगतान प्रोसेसर से जोड़ने के लिये एक मंच प्रदान करते हैं।
  • भुगतान एग्रीगेटर और भुगतान गेटवे के बीच मुख्य अंतर यह है कि भुगतान एग्रीगेटर वित्त/निधि का प्रबंधन करता है जबकि भुगतान गेटवे प्रौद्योगिकी प्रदान करता है।
  • हालाँकि भुगतान एग्रीगेटर द्वारा भुगतान गेटवे प्रदान किया जा सकता है, लेकिन भुगतान गेटवे ऐसा नहीं कर सकते हैं।

फिनटेक फर्मों को विनियमित करने हेतु RBI की अन्य पहलें:

  • RBI का फिनटेक रेगुलेटरी सैंडबॉक्स:
    • फिनटेक उत्पादों के परीक्षण के लिये एक नियंत्रित नियामक वातावरण बनाने के प्राथमिक उद्देश्य के साथ वर्ष 2018 में स्थापित किया गया था। 
  • भुगतान प्रणाली ऑपरेटरों को लाइसेंस:
    • यह पहल भारत में लगातार बढ़ते भुगतान परिदृश्य की जाँच करने के लिये लाई गई थी।
  • डिजिटल ऋण मानदंड:
    • उधार सेवा प्रदाताओं (LSP) के पास-थ्रू के बिना सभी डिजिटल ऋणों को केवल विनियमित संस्थाओं के बैंक खातों के माध्यम से वितरित और चुकाया जाना चाहिये। 
  •  RBI's भुगतान विज़न 2025:
    • किसी भी समय और कहीं भी सुविधा के साथ सुलभ भुगतान विकल्पों के साथ उपयोगकर्त्ताओं  को सशक्त बनाने के क्षेत्र में भुगतान प्रणाली को उन्नत करने में सहायक। 
    • यह भुगतान विज़न 2019-21 की पहल पर आधारित है। 
  • RBI’s की आगामी श्वेत-सूची:
    • डिजिटल ऋण देने वाले पारिस्थितिकी तंत्र में बढ़ती गड़बड़ियों पर अंकुश लगाने के लिये  RBI ने डिजिटल ऋण देने वाले ऐप्स (स्वीकृत ऋणदाताओं की सूची) की एक "श्वेत-सूची" तैयार की है।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


भारतीय राजनीति

सीलबंद कवर न्यायशास्त्र

प्रिलिम्स के लिये:

सीलबंद कवर न्यायशास्त्र, सर्वोच्च न्यायालय, भारतीय साक्ष्य अधिनियम 1872, शॉर्ट सेलिंग

मेन्स के लिये:

सीलबंद कवर न्यायशास्त्र, संबंधित मुद्दे और आगे की राह

चर्चा में क्यों?

हाल ही में सर्वोच्च न्यायालय (Supreme Court- SC) ने अडानी-हिंडनबर्ग मामले से संबंधित सरकार के "सीलबंद कवर (Sealed Cover)" सुझाव को खारिज़ कर दिया है।

  • केंद्र सरकार ने पहले बाज़ार नियामक ढाँचे का आकलन करने और अडानी-हिंडनबर्ग मुद्दे से संबंधित उपायों की सिफारिश करने हेतु समिति के सदस्यों के नाम प्रस्तावित किये थे।
  • लेकिन सर्वोच्च न्यायालय ने पारदर्शिता बनाए रखने हेतु सीलबंद कवर/लिफाफे में नामों पर किसी भी सुझाव को स्वीकार करने से इनकार कर दिया।

नोट:  

  • हिंडनबर्ग रिसर्च ने आरोप लगाया है कि अडानी समूह "स्टॉक हेरफेर और लेखा धोखाधड़ी में संलिप्त था"।
  • हिंडनबर्ग यूएस-आधारित निवेश अनुसंधान फर्म है जो एक्टिविस्ट शॉर्ट-सेलिंग में विशिष्टता रखता है।

सीलबंद कवर न्यायशास्त्र 

  • परिचय: 
    • यह सर्वोच्च न्यायालय और कभी-कभी निचली न्यायालयों द्वारा उपयोग की जाने वाली एक प्रथा है, जिसके तहत सरकारी एजेंसियों से ‘सीलबंद लिफाफों या कवर’ में जानकारी मांगी जाती है और यह स्वीकार किया जाता है कि केवल न्यायाधीश ही इस सूचना को प्राप्त कर सकते हैं।  
    • यद्यपि कोई विशिष्ट कानून ‘सीलबंद कवर’ के सिद्धांत को परिभाषित नहीं करता है, सर्वोच्च न्यायालय इसे सर्वोच्च न्यायालय के नियमों के आदेश XIII के नियम 7 और भारतीय साक्ष्य अधिनियम 1872 की धारा 123 से उपयोग करने की शक्ति प्राप्त करता है।
    • न्यायालय मुख्यतः दो परिस्थितियों में सीलबंद कवर में जानकारी मांग सकता है:
      • जब कोई जानकारी चल रही जाँच से जुड़ी होती है,
      • जब इसमें व्यक्तिगत अथवा गोपनीय जानकारी शामिल हो, जिसके प्रकटीकरण से किसी व्यक्ति की गोपनीयता या विश्वास का उल्लंघन हो सकता है।
  • सर्वोच्च न्यायालय नियमों के आदेश XIII का नियम सं. 7
    • यदि मुख्य न्यायाधीश अथवा न्यायालय कुछ सूचनाओं को सीलबंद कवर में रखने का निर्देश देते हैं या इसे गोपनीय प्रकृति का मानते हैं, तो किसी भी पक्ष को इस प्रकार की जानकारी की सामग्री तक पहुँच की अनुमति नहीं दी जाएगी, सिवाय इसके कि मुख्य न्यायाधीश स्वयं आदेश दें कि विरोधी पक्ष को इसकी अनुमति दी जाए।
    • यदि किसी सूचना का प्रकाशन जनता के हित में नहीं है तो उस सूचना को गोपनीय रखा जा सकता है।
  • भारतीय साक्ष्य अधिनियम, 1872 की धारा 123:
    • राज्य के मामलों से संबंधित आधिकारिक अप्रकाशित दस्तावेज़ संरक्षित होते हैं और एक सार्वजनिक अधिकारी को ऐसे दस्तावेज़ों का खुलासा करने के लिये बाध्य नहीं किया जा सकता है।
    • अतिरिक्त परिस्थितियाँ जिनमें गोपनीय या गुप्त रूप से जानकारी मांगी जा सकती है, उनमें ऐसी स्थितियाँ शामिल हैं जिनमें इसका प्रकटीकरण चल रही किसी जाँच को प्रभावित करने क्षमता रखता हो, उदाहरण के लिये, कोई ऐसी जानकारी जो पुलिस केस में शामिल जानकारी से संबंधित हो।

सीलबंद कवर न्यायशास्त्र से संबंधित मुद्दे: 

  • पारदर्शिता की कमी:  
    • सीलबंद कवर न्यायशास्त्र कानूनी प्रक्रिया में पारदर्शिता और उत्तरदायित्त्व को सीमित कर सकता है, क्योंकि सीलबंद कवर में प्रस्तुत साक्ष्य अथवा तर्क जनता या अन्य पार्टियों के लिये उपलब्ध नहीं होते हैं।
    • यह एक खुले न्यायालय की धारणा के विरुद्ध है, जिसमे आम जनता द्वारा निर्णय की समीक्षा की जा सकती है।
  • विविध पहुँच:  
    • सीलबंद कवर न्यायशास्त्र का उपयोग एक असमान स्थितियाँ उत्पन्न कर सकता है, क्योंकि जिन पक्षों के पास सीलबंद कवर में जानकारी तक पहुँच है, उन्हें उन लोगों पर लाभ हो सकता है जिनके पास नहीं है।
  • जवाब देने का सीमित अवसर:  
    • जिन पक्षों को सीलबंद लिफाफे में दी गई जानकारी की जानकारी नहीं है, उनके पास इसमें प्रस्तुत सबूतों या तर्कों का जवाब देने या चुनौती देने का अवसर नहीं उपलब्ध हो सकता है, जो उनके मामले को प्रभावी ढंग से प्रस्तुत करने की उनकी क्षमता को कमज़ोर कर सकता है। 
  • दुर्व्यवहार का जोखिम:
    • सीलबंद कवर न्यायशास्त्र का दुरुपयोग उन पक्षों द्वारा किया जा सकता है जो ऐसी जानकारी को छिपाना चाहते हैं जो वैध रूप से गोपनीय नहीं है, या जो कानूनी प्रक्रिया में अनुचित लाभ प्राप्त करने के लिये इसका उपयोग करते हैं। 
  • निष्पक्ष परीक्षण में हस्तक्षेप:
    • सीलबंद कवर न्यायशास्त्र का उपयोग निष्पक्ष ट्रायल (सुनवाई) के अधिकार में हस्तक्षेप कर सकता है, क्योंकि पार्टियों के पास निर्णय लेने की प्रक्रिया में विचार किये जाने वाले सभी प्रासंगिक सबूतों या तर्कों तक पहुँच नहीं हो सकती है। 
  • मनमानी प्रकृति:
    • सीलबंद कवर अलग-अलग न्यायाधीशों पर निर्भर होते हैं जो सामान्य अभ्यास के बजाय किसी विशेष मामले में एक बिंदु की पुष्टि करना चाहते हैं। यह अभ्यास को तदर्थ और मनमाना बनाता है।

सीलबंद न्यायशास्त्र पर SC की क्या टिप्पणियाँ:

  • पी. गोपालकृष्णन बनाम केरल राज्य वाद (2019):
    • सर्वोच्च न्यायालय ने कहा था कि आरोपी द्वारा दस्तावेज़ों का खुलासा करना संवैधानिक रूप से अनिवार्य है, भले ही जाँच जारी हो क्योंकि दस्तावेज़ों से मामले की जाँच में सफलता मिल सकती है।
  • INX मीडिया वाद (2019):
    • वर्ष 2019 में INX मीडिया मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने प्रवर्तन निदेशालय (ED) द्वारा सीलबंद लिफाफे में जमा किये गए दस्तावेज़ों के आधार पर पूर्व केंद्रीय मंत्री को जमानत देने से इनकार करने के अपने फैसले को आधार बनाने के लिये दिल्ली उच्च न्यायालय की आलोचना की थी।
    • इसने इस कार्रवाई को निष्पक्ष सुनवाई की अवधारणा के खिलाफ बताया। 
  • कमांडर अमित कुमार शर्मा बनाम भारत संघ वाद (2022):
    • सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि, 'प्रभावित पक्ष को संबंधित सामग्री का खुलासा नहीं करना और न्यायिक प्राधिकरण को सीलबंद लिफाफे में इसका खुलासा करना; एक खतरनाक मिसाल कायम करता है। न्यायिक प्राधिकारी को सीलबंद लिफाफे में संबंधित सामग्री का खुलासा करने से निर्णय की प्रक्रिया अस्पष्ट और अपारदर्शी हो जाती है। 

आगे की राह:

  • सीलबंद न्यायशास्त्र का उपयोग उचित प्रक्रिया, निष्पक्ष परीक्षण और खुले न्याय के सिद्धांतों के साथ सावधानीपूर्वक संतुलित किया जाना चाहिये, और मामले की विशिष्ट परिस्थितियों के लिये उचित और आनुपातिक होना चाहिए। 
  • न्यायालयों और न्यायाधिकरणों को यह भी सुनिश्चित करना चाहिये कि जिन पक्षों को सीलबंद लिफाफे की जानकारी नहीं है, उन्हें अपना पक्ष पेश करने और उसमें प्रस्तुत साक्ष्यों या तर्कों को चुनौती देने का उचित अवसर दिया जाए।

स्रोत: द हिंदू


शासन व्यवस्था

सेना में कृत्रिम बुद्धिमत्ता के उपयोग पर वैश्विक सम्मेलन

प्रिलिम्स के लिये:

REAIM 2023, कृत्रिम बुद्धिमत्ता, उत्तरदायी AI। 

मेन्स के लिये:

REAIM 2023, सेना में कृत्रिम बुद्धिमत्ता के उपयोग करने के पक्ष और विपक्ष में तर्क, AI के लिये नैतिक सिद्धांत।

चर्चा में क्यों? 

हाल ही में सेना में कृत्रिम बुद्धिमत्ता के उत्तरदायी उपयोग पर विश्व का पहला अंतर्राष्ट्रीय शिखर सम्मेलन (REAIM 2023) हेग, नीदरलैंड में आयोजित किया गया था।  

शिखर सम्मेलन के मुख्य बिंदु:

  • विषय वस्तु: 
    • मिथबस्टिंग AI: ब्रेकिंग डाउन द  एआई की विशेषताओं को तोड़ना
    • उत्तरदायी तैनाती और AI का उपयोग
    • शासन ढाँचा
  • उद्देश्य: 
    • 'सैन्य क्षेत्र में उत्तरदायी AI' के विषय को राजनीतिक एजेंडे में ऊपर रखना;
    • संबंधित अगले कदमों में योगदान करने के लिये हितधारकों के एक विस्तृत समूहों को एकीकृत और सक्रिय करना; 
    • अनुभवों, सर्वोत्तम प्रथाओं और समाधानों को साझा करके ज्ञान को बढ़ावा देना और तीव्र करना। 
  • प्रतिभागी:  
    • दक्षिण कोरिया द्वारा सह-आयोजित सम्मेलन में 80 सरकारी प्रतिनिधिमंडलों (अमेरिका और चीन सहित) और 100 से अधिक शोधकर्त्ताओं और रक्षा व्यवसायियों  मेज़बानी की गई। 
      • भारत शिखर सम्मेलन में भागीदार नहीं था।
    • REAIM 2023 जागरूकता बढ़ाने, मुद्दों पर चर्चा करने और सशस्त्र संघर्षों में कृत्रिम बुद्धिमत्ता (AI) की तैनाती और उपयोग में सामान्य सिद्धांतों पर सहमत होने के लिये सरकारों, निगमों, शिक्षाविदों, स्टार्टअप्स और नागरिक समाजों को एक साथ लाया है। 
  • कॉल ऑन एक्शन:
    • AI के उपयोग से उत्पन्न होने वाले जोखिमों को कम करने के लिये बहु-हितधारक समुदाय से सामान्य मानकों का निर्माण करने की अपील की गई है।
    • अमेरिका ने सैन्य क्षेत्र में कृत्रिम बुद्धिमत्ता (AI) के ज़िम्मेदार उपयोग का आह्वान किया है और एक घोषणा का प्रस्ताव दिया जिसमें 'मानव जवाबदेही' शामिल होगी। 
    • प्रस्ताव में कहा गया है कि AI-हथियार प्रणालियों में "मानव निर्णय के उचित स्तर" शामिल होने चाहिये।
      • अमेरिका और चीन ने 60 से अधिक देशों के साथ घोषणा पर हस्ताक्षर किये है। 
  • अवसर और चिंताएँ: 
    • कृत्रिम बुद्धिमत्ता हमारी दुनिया में मौलिक बदलाव ला रहा है, जिसमें सैन्य डोमेन भी शामिल है।  
    • जबकि AI प्रौद्योगिकियों का एकीकरण मानव क्षमताओं को बढ़ावा देने के लिये अभूतपूर्व अवसर पैदा करता है, विशेष रूप से निर्णय लेने के मामले में, यह पारदर्शिता, विश्वसनीयता, भविष्यवाणी, उत्तरदायित्त्व और पूर्वाग्रह जैसे क्षेत्रों में महत्त्वपूर्ण कानूनी, सुरक्षा संबंधी तथा नैतिक चिंताओं को भी उठाता है।
    • उच्च जोखिम वाले सैन्य संदर्भ में ये आशंकाएँ बढ़ गई हैं।
  • AI की समाधान के रूप में व्याख्या: 
    • कृत्रिम बुद्धिमत्ता प्रणाली से पूर्वाग्रह को दूर करने हेतु शोधकर्त्ताओं ने 'व्याख्यात्मकता (Explainability)' का सहारा लिया है।
    • व्याख्यात्मक कृत्रिम बुद्धिमत्ता के निर्णय लेने के तरीके के बारे में जानकारी की कमी को दूर कर सकता है।
    • यह बदले में पूर्वाग्रहों को दूर करने और एल्गोरिथम को निष्पक्ष बनाने में मदद करेगा। साथ ही अंतिम निर्णय लेने की ज़िम्मेदारी एक मानव के पास रहेगी।

नैतिक सिद्धांतों के आधार पर AI की ज़िम्मेदारी का निर्धारण:

  • AI विकास और परिनियोजन हेतु नैतिक दिशानिर्देश:  
    • यह सुनिश्चित करने में मदद कर सकता है कि डेवलपर्स तथा संगठन समान नैतिक मानकों पर काम कर रहे हैं और कृत्रिम बुद्धिमत्ता प्रणाली को नैतिकता को ध्यान में रखकर डिज़ाइन किया गया है।
  • जवाबदेही तंत्र:  
    • डेवलपर्स और संगठनों को उनके कृत्रिम बुद्धिमत्ता प्रणाली के प्रभाव हेतु जवाबदेह ठहराया जाना चाहिये।
    • इसमें ज़िम्मेदारी और उत्तरदायित्त्व की स्पष्ट निर्धारण करना, साथ ही उत्पन्न होने वाली किसी भी घटना या समस्या हेतु रिपोर्टिंग तंत्र बनाना शामिल हो सकता है।
  • पारदर्शिता को बढ़ावा दिया जाना:  
    • AI प्रणाली को पारदर्शी होना चाहिये, विशेषकर उनकी निर्णय प्रक्रिया और इस प्रक्रिया के लिये उनके द्वारा उपयोग किये जाने वाले डेटा के सदर्भ में।
    • इससे यह सुनिश्चित करने में मदद मिल सकती है कि AI प्रणाली निष्पक्ष हैं और कुछ विशेष समूहों अथवा व्यक्तियों के प्रति पक्षपाती नहीं हैं।
  • गोपनीयता की रक्षा:  
    • AI सिस्टम द्वारा उपयोग किये जाने व्यक्तियों की गोपनीयता की रक्षा के लिये संगठनों को आवश्यक कदम उठाने चाहिये।
      • इसमें अज्ञात डेटा का उपयोग करना, व्यक्तियों से सहमति प्राप्त करना और स्पष्ट डेटा सुरक्षा नीतियाँ स्थापित करना शामिल किया जा सकता है।
  • विविध हितधारकों को शामिल करना:
    • AI के विकास और परिनियोजन में विविध प्रकार के हितधारकों को शामिल करना महत्त्वपूर्ण है, जिसमें विभिन्न पृष्ठभूमि और दृष्टिकोण वाले व्यक्ति शामिल हों।
    • इससे यह सुनिश्चित करने में मदद मिलेगी कि AI प्रणाली को विभिन्न समूहों की जरूरतों और चिंताओं को ध्यान में रखते हुए डिज़ाइन किया जाए।
  • नियमित नैतिक लेखा-परीक्षण करना:
    • संगठनों को यह सुनिश्चित करने के लिये अपने AI प्रणाली का नियमित लेखा-परीक्षण करना चाहिये कि वे नैतिक सिद्धांतों और मूल्यों के अनुरूप हैं अथवा नहीं। यह अपेक्षित सुधार के लिये किसी भी मुद्दे अथवा क्षेत्रों की पहचान करने में मदद कर सकता है और यह सुनिश्चित कर सकता है कि AI प्रणाली नैतिक और ज़िम्मेदार तरीके से काम करना जारी रखे।

स्रोत: द हिंदू


सामाजिक न्याय

विशेष विवाह अधिनियम, 1954

प्रिलिम्स के लिये:

विशेष विवाह अधिनियम 1954, यूनाइटेड किंगडम का विवाह अधिनियम 1949, विरासत अधिकार, मुस्लिम विवाह अधिनियम, 1954, हिंदू विवाह अधिनियम 1955।

मेन्स के लिये:

विशेष विवाह अधिनियम के मूल प्रावधान, विशेष विवाह अधिनियम से संबंधित मुद्दे।

चर्चा में क्यों?  

भारत में, धर्मनिरपेक्ष पर्सनल लॉ जिसे विशेष विवाह अधिनियम (SMA) 1954 के रूप में जाना जाता है, अंतर्धार्मिक युगलों को विवाह के लिये धार्मिक कानूनों का एक वैकल्पिक मार्ग प्रदान करता है।

विशेष विवाह अधिनियम (SMA), 1954

  • परिचय:  
    • विशेष विवाह अधिनियम (SMA), 1954 एक भारतीय कानून है जो विभिन्न धर्मों अथवा जातियों के लोगों के विवाह के लिये एक कानूनी ढाँचा प्रदान करता है।
    • यह नागरिक विवाह को नियंत्रित करता है जिसमे राज्य धर्म के बजाय विवाह को मंज़ूरी एवं वरीयता प्रदान करता है।
    • भारतीय प्रणाली, जिसमे नागरिक और धार्मिक दोनों तरह के विवाहों को मान्यता दी जाती है, ब्रिटेन के 1949 के विवाह अधिनियम के कानूनों के समान है।
  • मूल प्रावधान:  
    • प्रयोज्यता:  
      • इस अधिनियम की प्रयोज्यता पूरे भारत में हिंदुओं, मुसलमानों, सिखों, ईसाइयों, सिखों, जैनियों और बौद्धों सहित सभी धर्मों के लोगों पर लागू है।
    • विवाह की मान्यता:  
      • यह अधिनियम विवाहों के पंजीकरण का प्रावधान करता है, जो विवाह को कानूनी मान्यता देता है और विवाहित जोड़े को कई कानूनी लाभ और सुरक्षा जैसे कि विरासत का अधिकार, उत्तराधिकार संबंधी अधिकार और सामाजिक सुरक्षा लाभ, प्रदान करता है।
      • यह बहुविवाह को प्रतिबंधित करता है, तथा विवाह को अमान्य घोषित करता है यदि विवाह के समय किसी भी पक्ष का पति या पत्नी जीवित था या यदि उनमें से कोई भी मानसिक विकार के कारण विवाह के लिये वैध सहमति देने में असमर्थ था। 
    • लिखित सूचना:
      • अधिनियम की धारा 5 निर्दिष्ट करती है कि पक्षों को ज़िले के विवाह अधिकारी को लिखित सूचना देनी चाहिये तथा इस तरह की अधिसूचना की तारीख से ठीक पूर्व कम से कम 30 दिनों से कम से कम एक पक्ष ज़िले में रह रहा हो।
      • अधिनियम की धारा 7 किसी भी व्यक्ति को सूचना के प्रकाशन की तारीख से 30 दिनों की समाप्ति से पूर्व विवाह पर आपत्ति जताने की अनुमति देती है। 
    • आयु सीमा:
      • SMA  के तहत विवाह करने की न्यूनतम आयु पुरुषों के लिये 21 वर्ष और महिलाओं के लिये 18 वर्ष है।
  • पर्सनल लॉ से भिन्नता:
    • मुस्लिम विवाह अधिनियम, 1954 और हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 जैसे पर्सनल लॉ में पति या पत्नी को विवाह से पूर्व दूसरे के धर्म में परिवर्तित होने की आवश्यकता होती है।
      • हालाँकि, SMA अपनी धार्मिक पहचान को छोड़े बिना या धर्म परिवर्तन का सहारा लिये बिना अंतर-धार्मिक या अंतर-जातीय जोड़ों के बीच विवाह को सक्षम बनाता है।
        • हालाँकि, SMA के अनुसार, एक बार विवाह करने के पश्चात, व्यक्ति को विरासत के अधिकार के संदर्भ में परिवार से अलग मान लिया जाता है।
  • SMA से संबंधित मुद्दे:  
    • विवाह पर आपत्तियाँ: विशेष विवाह अधिनियम के साथ मुख्य मुद्दों में से विवाह के खिलाफ उठाई जाने वाली आपत्तियों का प्रावधान है। 
      • इसका उपयोग अक्सर सहमति देने वाले युगलों को परेशान करने और उनके विवाह में देरी करने या विवाह होने से रोकने के लिये किया जा सकता है।
      • जनवरी 2021 में, इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने फैसला सुनाया कि जो युगल विशेष विवाह अधिनियम के तहत अपने विवाह को रद्द करना चाहते हैं, वे विवाह करने के अपने निर्णय के 30 दिनों के अनिवार्य नोटिस को प्रकाशित नहीं करने का विकल्प चुन सकते हैं।
    • गोपनीयता संबंधी चिंताएँ: नोटिस प्रकाशित करने की आवश्यकता को गोपनीयता के उल्लंघन के रूप में भी देखा जा सकता है, क्योंकि यह युगल की व्यक्तिगत जानकारी और विवाह करने की उनकी योजनाओं का खुलासा कर सकता है।
    • सामाजिक कलंक: अंतर-जाति या अंतर-धार्मिक विवाह अभी भी भारत के कई हिस्सों में व्यापक रूप से स्वीकार नहीं किये जाते हैं, और जो युगल विशेष विवाह अधिनियम के तहत विवाह करना चाहते हैं, उन्हें अपने परिवारों और समुदायों से सामाजिक कलंक और भेदभाव जैसी समस्याओं का सामना करना पड़ सकता है। 

आगे की राह

  • प्रक्रिया को सुव्यवस्थित करना: सरकार इस कानून के तहत शादी करना आसान बनाने हेतु प्रक्रिया को सरल और कारगर बनाने के लिये काम कर सकती है।
    • चूँकि 30-दिन की नोटिस अवधि की आवश्यकता एक विवादास्पद मुद्दा रहा है क्योंकि इससे तीसरे पक्ष का हस्तक्षेप या उत्पीड़न हो सकता है।
    • सरकार इस आवश्यकता को हटाने या कुछ मामलों में इसे वैकल्पिक बनाने पर विचार कर सकती है।
  • जागरूकता बढ़ाना: भारत में बहुत से लोग विशेष विवाह अधिनियम के प्रावधानों से अवगत नहीं हैं या यह नहीं जानते हैं कि उनके पास इस कानून के तहत किसी अलग धर्म या जाति से शादी करने का विकल्प है।
    • इस कानून और इसके लाभों के बारे में खासकर ग्रामीण इलाकों में जहाँ जागरूकता का भाव है सरकार जागरूकता बढ़ाने हेतु काम कर सकती है।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


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