दृष्टि आईएएस अब इंदौर में भी! अधिक जानकारी के लिये संपर्क करें |   अभी कॉल करें
ध्यान दें:

डेली अपडेट्स


भारतीय राजनीति

सीलबंद कवर न्यायशास्त्र

  • 18 Feb 2023
  • 10 min read

प्रिलिम्स के लिये:

सीलबंद कवर न्यायशास्त्र, सर्वोच्च न्यायालय, भारतीय साक्ष्य अधिनियम 1872, शॉर्ट सेलिंग

मेन्स के लिये:

सीलबंद कवर न्यायशास्त्र, संबंधित मुद्दे और आगे की राह

चर्चा में क्यों?

हाल ही में सर्वोच्च न्यायालय (Supreme Court- SC) ने अडानी-हिंडनबर्ग मामले से संबंधित सरकार के "सीलबंद कवर (Sealed Cover)" सुझाव को खारिज़ कर दिया है।

  • केंद्र सरकार ने पहले बाज़ार नियामक ढाँचे का आकलन करने और अडानी-हिंडनबर्ग मुद्दे से संबंधित उपायों की सिफारिश करने हेतु समिति के सदस्यों के नाम प्रस्तावित किये थे।
  • लेकिन सर्वोच्च न्यायालय ने पारदर्शिता बनाए रखने हेतु सीलबंद कवर/लिफाफे में नामों पर किसी भी सुझाव को स्वीकार करने से इनकार कर दिया।

नोट:  

  • हिंडनबर्ग रिसर्च ने आरोप लगाया है कि अडानी समूह "स्टॉक हेरफेर और लेखा धोखाधड़ी में संलिप्त था"।
  • हिंडनबर्ग यूएस-आधारित निवेश अनुसंधान फर्म है जो एक्टिविस्ट शॉर्ट-सेलिंग में विशिष्टता रखता है।

सीलबंद कवर न्यायशास्त्र 

  • परिचय: 
    • यह सर्वोच्च न्यायालय और कभी-कभी निचली न्यायालयों द्वारा उपयोग की जाने वाली एक प्रथा है, जिसके तहत सरकारी एजेंसियों से ‘सीलबंद लिफाफों या कवर’ में जानकारी मांगी जाती है और यह स्वीकार किया जाता है कि केवल न्यायाधीश ही इस सूचना को प्राप्त कर सकते हैं।  
    • यद्यपि कोई विशिष्ट कानून ‘सीलबंद कवर’ के सिद्धांत को परिभाषित नहीं करता है, सर्वोच्च न्यायालय इसे सर्वोच्च न्यायालय के नियमों के आदेश XIII के नियम 7 और भारतीय साक्ष्य अधिनियम 1872 की धारा 123 से उपयोग करने की शक्ति प्राप्त करता है।
    • न्यायालय मुख्यतः दो परिस्थितियों में सीलबंद कवर में जानकारी मांग सकता है:
      • जब कोई जानकारी चल रही जाँच से जुड़ी होती है,
      • जब इसमें व्यक्तिगत अथवा गोपनीय जानकारी शामिल हो, जिसके प्रकटीकरण से किसी व्यक्ति की गोपनीयता या विश्वास का उल्लंघन हो सकता है।
  • सर्वोच्च न्यायालय नियमों के आदेश XIII का नियम सं. 7
    • यदि मुख्य न्यायाधीश अथवा न्यायालय कुछ सूचनाओं को सीलबंद कवर में रखने का निर्देश देते हैं या इसे गोपनीय प्रकृति का मानते हैं, तो किसी भी पक्ष को इस प्रकार की जानकारी की सामग्री तक पहुँच की अनुमति नहीं दी जाएगी, सिवाय इसके कि मुख्य न्यायाधीश स्वयं आदेश दें कि विरोधी पक्ष को इसकी अनुमति दी जाए।
    • यदि किसी सूचना का प्रकाशन जनता के हित में नहीं है तो उस सूचना को गोपनीय रखा जा सकता है।
  • भारतीय साक्ष्य अधिनियम, 1872 की धारा 123:
    • राज्य के मामलों से संबंधित आधिकारिक अप्रकाशित दस्तावेज़ संरक्षित होते हैं और एक सार्वजनिक अधिकारी को ऐसे दस्तावेज़ों का खुलासा करने के लिये बाध्य नहीं किया जा सकता है।
    • अतिरिक्त परिस्थितियाँ जिनमें गोपनीय या गुप्त रूप से जानकारी मांगी जा सकती है, उनमें ऐसी स्थितियाँ शामिल हैं जिनमें इसका प्रकटीकरण चल रही किसी जाँच को प्रभावित करने क्षमता रखता हो, उदाहरण के लिये, कोई ऐसी जानकारी जो पुलिस केस में शामिल जानकारी से संबंधित हो।

सीलबंद कवर न्यायशास्त्र से संबंधित मुद्दे: 

  • पारदर्शिता की कमी:  
    • सीलबंद कवर न्यायशास्त्र कानूनी प्रक्रिया में पारदर्शिता और उत्तरदायित्त्व को सीमित कर सकता है, क्योंकि सीलबंद कवर में प्रस्तुत साक्ष्य अथवा तर्क जनता या अन्य पार्टियों के लिये उपलब्ध नहीं होते हैं।
    • यह एक खुले न्यायालय की धारणा के विरुद्ध है, जिसमे आम जनता द्वारा निर्णय की समीक्षा की जा सकती है।
  • विविध पहुँच:  
    • सीलबंद कवर न्यायशास्त्र का उपयोग एक असमान स्थितियाँ उत्पन्न कर सकता है, क्योंकि जिन पक्षों के पास सीलबंद कवर में जानकारी तक पहुँच है, उन्हें उन लोगों पर लाभ हो सकता है जिनके पास नहीं है।
  • जवाब देने का सीमित अवसर:  
    • जिन पक्षों को सीलबंद लिफाफे में दी गई जानकारी की जानकारी नहीं है, उनके पास इसमें प्रस्तुत सबूतों या तर्कों का जवाब देने या चुनौती देने का अवसर नहीं उपलब्ध हो सकता है, जो उनके मामले को प्रभावी ढंग से प्रस्तुत करने की उनकी क्षमता को कमज़ोर कर सकता है। 
  • दुर्व्यवहार का जोखिम:
    • सीलबंद कवर न्यायशास्त्र का दुरुपयोग उन पक्षों द्वारा किया जा सकता है जो ऐसी जानकारी को छिपाना चाहते हैं जो वैध रूप से गोपनीय नहीं है, या जो कानूनी प्रक्रिया में अनुचित लाभ प्राप्त करने के लिये इसका उपयोग करते हैं। 
  • निष्पक्ष परीक्षण में हस्तक्षेप:
    • सीलबंद कवर न्यायशास्त्र का उपयोग निष्पक्ष ट्रायल (सुनवाई) के अधिकार में हस्तक्षेप कर सकता है, क्योंकि पार्टियों के पास निर्णय लेने की प्रक्रिया में विचार किये जाने वाले सभी प्रासंगिक सबूतों या तर्कों तक पहुँच नहीं हो सकती है। 
  • मनमानी प्रकृति:
    • सीलबंद कवर अलग-अलग न्यायाधीशों पर निर्भर होते हैं जो सामान्य अभ्यास के बजाय किसी विशेष मामले में एक बिंदु की पुष्टि करना चाहते हैं। यह अभ्यास को तदर्थ और मनमाना बनाता है।

सीलबंद न्यायशास्त्र पर SC की क्या टिप्पणियाँ:

  • पी. गोपालकृष्णन बनाम केरल राज्य वाद (2019):
    • सर्वोच्च न्यायालय ने कहा था कि आरोपी द्वारा दस्तावेज़ों का खुलासा करना संवैधानिक रूप से अनिवार्य है, भले ही जाँच जारी हो क्योंकि दस्तावेज़ों से मामले की जाँच में सफलता मिल सकती है।
  • INX मीडिया वाद (2019):
    • वर्ष 2019 में INX मीडिया मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने प्रवर्तन निदेशालय (ED) द्वारा सीलबंद लिफाफे में जमा किये गए दस्तावेज़ों के आधार पर पूर्व केंद्रीय मंत्री को जमानत देने से इनकार करने के अपने फैसले को आधार बनाने के लिये दिल्ली उच्च न्यायालय की आलोचना की थी।
    • इसने इस कार्रवाई को निष्पक्ष सुनवाई की अवधारणा के खिलाफ बताया। 
  • कमांडर अमित कुमार शर्मा बनाम भारत संघ वाद (2022):
    • सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि, 'प्रभावित पक्ष को संबंधित सामग्री का खुलासा नहीं करना और न्यायिक प्राधिकरण को सीलबंद लिफाफे में इसका खुलासा करना; एक खतरनाक मिसाल कायम करता है। न्यायिक प्राधिकारी को सीलबंद लिफाफे में संबंधित सामग्री का खुलासा करने से निर्णय की प्रक्रिया अस्पष्ट और अपारदर्शी हो जाती है। 

आगे की राह:

  • सीलबंद न्यायशास्त्र का उपयोग उचित प्रक्रिया, निष्पक्ष परीक्षण और खुले न्याय के सिद्धांतों के साथ सावधानीपूर्वक संतुलित किया जाना चाहिये, और मामले की विशिष्ट परिस्थितियों के लिये उचित और आनुपातिक होना चाहिए। 
  • न्यायालयों और न्यायाधिकरणों को यह भी सुनिश्चित करना चाहिये कि जिन पक्षों को सीलबंद लिफाफे की जानकारी नहीं है, उन्हें अपना पक्ष पेश करने और उसमें प्रस्तुत साक्ष्यों या तर्कों को चुनौती देने का उचित अवसर दिया जाए।

स्रोत: द हिंदू

close
एसएमएस अलर्ट
Share Page
images-2
images-2
× Snow