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डेली न्यूज़

  • 16 Feb, 2021
  • 38 min read
सामाजिक न्याय

IITs में SC और ST छात्रों की संख्या में कमी

चर्चा में क्यों?

हाल ही में सूचना के अधिकार (Right to Information- RTI) के माध्यम से एकत्रित देश  के पाँच पुराने भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थानों  (IITs) से संबंधित आँकड़ों से यह संकेत मिलता है कि इन संस्थानों में अनुसूचित जाति (Scheduled Caste- SC), अनुसूचित जनजाति (Scheduled Tribe- ST) और अन्य पिछड़ा वर्ग (Other Backward Classes- OBC) समुदाय के छात्रों की अनुमोदन दर (Acceptance Rate) काफी कम है।

  • IITs में पीएचडी प्रोग्राम हेतु अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के आवेदकों के चयन होने की संभावना सामान्य श्रेणी (General Category-SC) के उम्मीदवारों से आधी है।

प्रमुख बिंदु:

RTI आवेदनों से प्राप्त डेटा :

  •  अनुमोदन दर:
    •  अनुमोदन दर आवेदन करने वाले प्रत्येक 100 छात्रों में से चयनित छात्रों की संख्या को संदर्भित करता है।
      • सामान्य श्रेणी के छात्रों हेतु यह दर 4% थी।
      • वही OBC छात्रों हेतु 2.7%,  SC के लिये 2.16% और  ST हेतु  यह दर केवल 2.2% है।
    • RTI के माध्यम से प्राप्त यह डेटा ऐसे समय में आया है, जब संसद में  शिक्षा मंत्रालय द्वारा वर्ष 2020 में प्रस्तुत आँकड़े पीएचडी की सीटें भरने में IITs की विफलता को दर्शाते हैं।
      • सरकार की आरक्षण नीति के तहत SC श्रेणी से छात्रों हेतु 15% सीटें, ST श्रेणी के छात्रों के लिये 7.5% और अन्य पिछड़ा वर्ग हेतु  27% सीटों का आवंटन अनिवार्य है।

महत्त्व:

  • IITs द्वारा अक्सर समाज के वंचित वर्ग और समुदायों के आवेदकों की कमी का हवाला दिया जाता रहा है। हालांँकि RTI से प्राप्त आँकड़े इसके काफी विपरीत हैं।
  •  प्रवेश लेने वाले सामान्य श्रेणी के छात्रों का प्रतिशत आवेदन करने वाले छात्रों से हमेशा अधिक रहा है। हालाँकि SC, ST और  OBC वर्ग के छात्रों की स्थिति इसके विपरीत देखी गई है। 

शिक्षा मंत्रालय से प्राप्त डेटा:

  • वर्ष 2015 से 2019 तक सभी IITs द्वारा दिये गए कुल प्रवेश में  अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति वर्ग का प्रतिशत क्रमशः 9.1% तथा 2.1% था।
  • केवल 23.2% सीटें OBC के आवेदकों हेतु तथा शेष 65.6% या सभी सीटों का लगभग दो-तिहाई हिस्सा जनरल श्रेणी के आवेदकों के लिये आरक्षित था।

Matter-of-inclusion

 स्वीकृति दर में कमी का कारण: 

  • IITs के अनुसार:
    • पात्रता से संबंधित मुद्दे:
      • कुछ संस्थान सामान्य श्रेणी की भी सभी सीटें नहीं भर पाते हैं, क्योंकि उन्हें पर्याप्त योग्य उम्मीदवार नहीं मिल पाते हैं।
    • आर्थिक कारण:
      • योग्य छात्र पीएचडी में शामिल होने के बजाय अच्छी नौकरियों में चले जाते हैं, क्योंकि पीएचडी और पोस्ट पीएचडी में अनिश्चितताओं के साथ आय का निम्न स्तर बना रहता है।
      • यह संभव है कि पारिवारिक पृष्ठभूमि और आर्थिक स्तर का पीएचडी हेतु आवेदन करने वाले उम्मीदवारों पर प्रभाव पड़ सकता है।

'मेरिट' का तर्क

  • आरक्षण को लेकर आईआईटी प्रशासकों ( IIT Administrators) और संकायों (Faculty) के मध्य लंबे समय से विरोध देखा जा रहा है, जिसे वे संस्थानों में अन्यायपूर्ण सरकारी हस्तक्षेप के रूप में देखते हैं।
  • शिक्षा मंत्रालय द्वारा गठित समिति की हालिया रिपोर्ट में संकाय की भर्ती में आरक्षण को समाप्त करने की सिफारिश की गई है।
    • समिति ने अपनी सिफारिशों में मुख्य रूप से उन तर्कों को शामिल किया जो शैक्षणिक उत्कृष्टता को बनाए रखने हेतु IITs की आवश्यकता के साथ-साथ आरक्षित श्रेणियों के योग्य उम्मीदवारों की कमी को पूरा करने हेतु मानदंडों पर बल देते हैं।

प्रणालीगत समस्या: 

  • समस्या का कारण अभ्यास और गुणवत्तापूर्ण स्कूली शिक्षा तक पहुंँच भी है, जो गरीबों के लिये एक आधार निर्मित करने हेतु आवश्यक है।

आरक्षण नीति का पालन करने के लाभ:

  • अन्य संस्थानों हेतु एक उदाहरण: 
    • IIT को राष्ट्रीय महत्त्व का संस्थान बने रहने देना चाहिये हालांँकि उनके कुछ सामाजिक उतरदायित्व भी हैं।
    • इन्हें अनुसंधान और नवाचार में उत्कृष्टता का स्तर प्राप्त करने हेतु अल्प विकसित समुदायों को अवसर प्रदान कर अन्य संस्थानों के समक्ष एक उदाहरण स्थापित करना चाहिये।
  • विषमताओं को कम करना:
    • सकारात्मक कार्रवाई और जाति-आधारित आरक्षण समाज में असमानता को घटाने में मदद कर सकता है, वंचित वर्ग को गुणवत्तापूर्ण शिक्षा तक पहुँच प्रदान कर सकता है, विविधता को बढ़ावा दे सकता है और इससे भी महत्त्वपूर्ण बात यह है कि समानता को बढ़ावा देने के लिये बाधाओं को दूर कर पिछली गलतियों में सुधार करने की आवश्यकता है।

आगे की राह: 

  • शिक्षा के अवसरों में बराबरी का स्तर कायम करने के उद्देश्य से स्कूली शिक्षा के शुरुआती वर्षों में ही नीतिगत हस्तक्षेप करने की आवश्यकता है।
  • इसके अलावा SC/ST समूहों से संबंधित छात्रों की क्षमता के बारे में नकारात्मक दृष्टिकोण, धारणा और रूढ़ियाँ आदि बड़ी बाधाओं के रूप में हैं। नीतियों के निर्माण में इस बात की पहचान करना ज़रूरी होगा कि इस प्रकार की धारणाएंँ व्यक्तियों और समूहों को किस प्रकार से जकड़ लेती हैं  ताकि इनको बदलने के तरीकों के बारे में गंभीरता से विचार किया जा सके।
  • जागरुक अभियानों के माध्यम से विविध मुद्दों को संबोधित किया जा सकता है।

स्रोत: द हिंदू  


भारतीय अर्थव्यवस्था

प्रमुख बंदरगाह प्राधिकरण विधेयक, 2020

चर्चा में क्यों?

हाल ही में संसद ने प्रमुख बंदरगाह प्राधिकरण विधेयक (Major Port Authorities Bill), 2020 पारित किया है। इस बिल में देश के 12 प्रमुख बंदरगाहों को निर्णय लेने में अधिक स्वायत्तता प्रदान करने और बोर्ड स्थापित कर उनके शासन का व्यवसायीकरण करने का प्रयास किया गया है।

  • यह विधेयक प्रमुख पोर्ट ट्रस्ट अधिनियम (Major Port Trusts Act), 1963 की जगह लेगा।
  • भारत के 12 प्रमुख बंदरगाह दीनदयाल (तत्कालीन कांडला), मुंबई, जेएनपीटी, मर्मुगाओ, न्यू मंगलौर, कोचीन, चेन्नई, कामराजार (पहले एन्नोर), वी. ओ. चिदंबरनार, विशाखापट्टनम, पारादीप और कोलकाता (हल्दिया सहित) हैं।

प्रमुख बिंदु

मुख्य विशेषताएँ:

  • प्रमुख पोर्ट प्राधिकरण बोर्ड:
    • प्राधिकरण के विषय में: इस विधेयक में प्रत्येक प्रमुख बंदरगाह के लिये एक प्रमुख बंदरगाह प्राधिकरण बोर्ड (Board of Major Port Authority) के निर्माण का प्रावधान है। ये बोर्ड मौजूदा पोर्ट ट्रस्ट की जगह लेंगे।
      • सभी प्रमुख बंदरगाहों का प्रबंधन वर्ष 1963 के अधिनियम के अंतर्गत संबंधित पोर्ट ट्रस्ट द्वारा किया जाता है, जिसमें केंद्र सरकार द्वारा नियुक्त सदस्य शामिल होते हैं।
    • रचना:
      • विधेयक के अंतर्गत रेल मंत्रालय, रक्षा और सीमा शुल्क मंत्रालय, राजस्व विभाग के साथ-साथ जिन राज्यों में प्रमुख बंदरगाह हैं, उन राज्यों के प्रतिनिधियों को भी इस बोर्ड में शामिल करने का प्रावधान किया गया है।
      • इसमें एक सरकारी नामांकित सदस्य और प्रमुख पोर्ट प्राधिकरण के कर्मचारियों का प्रतिनिधित्व करने वाला एक सदस्य शामिल होगा।
    • शक्तियाँ:
      • यह विधेयक बोर्ड को प्रमुख बंदरगाहों के विकास के लिये अपनी संपत्ति और धन का उपयोग करने की अनुमति देता है।
      • बंदरगाह प्राधिकरण बोर्ड को भूमि सहित बंदरगाह से जुड़ी अन्य सेवाओं और परिसंपत्तियों के लिये शुल्क तय करने का अधिकार होगा।
        • बाज़ार की परिस्थितियों के आधार पर सार्वजनिक–निजी साझेदार (Public Private Partner) तटकर तय करने के लिये स्वतंत्र होंगे।
      • पोर्ट प्राधिकरण द्वारा कॉरपोरेट सोशल रिस्पॉन्सिबिलिटी (CSR) और बुनियादी ढाँचे के विकास के प्रावधान किये गए हैं।

  • न्यायिक बोर्ड:
    • एक न्यायिक बोर्ड का गठन किया जाएगा जो तत्कालीन प्रमुख बंदरगाहों हेतु टैरिफ प्राधिकरण (Tariff Authority for Major Port) के शेष कार्यों, बंदरगाहों और पीपीपी के बीच उत्पन्न विवादों आदि को देखेगा।
      • TAMP, केंद्र और निजी टर्मिनलों के नियंत्रण वाले प्रमुख बंदरगाह ट्रस्टों द्वारा लगाए गए टैरिफ को ठीक करने का एक बहु-सदस्यीय वैधानिक निकाय रहा है।
  • जुर्माना:
    • कोई भी व्यक्ति जो विधेयक के किसी प्रावधान या नियमों का उल्लंघन करता है, उसे एक लाख रुपए तक के जुर्माने से दंडित किया जाएगा।

लक्ष्य:

  • विकेंद्रीकरण: निर्णय लेने की प्रक्रिया को विकेंद्रीकृत करना और प्रमुख बंदरगाहों के प्रशासन में व्यावसायिकता को बढ़ावा देना।
  • व्यापार और वाणिज्य: बंदरगाह के बुनियादी ढाँचे के विस्तार को बढ़ावा देना और व्यापार तथा वाणिज्य को सुविधाजनक बनाना।
  • निर्णय लेना: यह सभी हितधारकों को लाभान्वित करने के उद्देश्य से परियोजना निष्पादन क्षमता को बेहतर करते हुए तेज़ तथा पारदर्शी निर्णय प्रदान करता है।
  • रीओरिएंटिंग मॉडल: वैश्विक अभ्यास के अनुरूप केंद्रीय बंदरगाहों में शासन मॉडल को भू-स्वामी बंदरगाह मॉडल हेतु पुन: पेश करना।

महत्त्व:

  • लेवल-प्लेयिंग फील्ड:
    • यह विधेयक न केवल प्रमुख और निजी बंदरगाहों के बीच बल्कि प्रमुख बंदरगाह टर्मिनलों और पीपीपी टर्मिनलों के बीच एक लेवल-प्लेयिंग फील्ड (Level-Playing Field) बनाने जा रहा है।
    • प्रमुख बंदरगाहों के अंदर पीपीपी टर्मिनल प्लेयरों को भी TAMP से टैरिफ अनुमोदन लेना पड़ा है। यह विधेयक इस निकाय से अनुमोदन लेना समाप्त कर देता है।
    • इसके कारण आने वाले वर्षों में पीपीपी के अंतर्गत बड़े बंदरगाहों में निवेश किये जाने की उम्मीद है।
  • आत्मनिर्भर भारत अभियान के अनुरूप:
    • यह कदम निश्चित रूप से देश के आत्मनिर्भर भारत (Aatmanirbhar Bharat) के दृष्टिकोण के अनुरूप है और यह भारत को वैश्विक विनिर्माण केंद्र बनाने का मार्ग प्रशस्त करेगा।
    • कुल कार्गो आवाजाही का 70% और मूल्य का 90% बंदरगाहों के माध्यम से होता है।

आलोचना:

  • इस विधेयक की आलोचना की जा रही है कि इसका उद्देश्य बंदरगाहों का निजीकरण और भूमि उपयोग पर राज्यों की शक्तियों को कम करना है।

आगे की राह

  • इस विधेयक को काफी बाधाओं का सामना करना पड़ रहा है, लेकिन निजी बंदरगाहों की तुलना में सार्वजनिक बंदरगाहों पर गुणवत्तापूर्ण सेवा और विपणन की कमी है।
  • तंत्र का निर्माण कर लेना ही पर्याप्त नहीं है। प्रस्तावित भू-स्वामी बंदरगाह मॉडल के तहत जो बोर्ड बनाया गया है, उसे दी गई स्वायत्तता का उपयोग किया जाना चाहिये। बोर्ड को स्वतंत्रता के साथ काम कर गुणवत्तापूर्ण सेवा, दक्षता, भूमि उपयोग, परिसंपत्ति-मुद्रीकरण, विवाद समाधान आदि में सुधार करने के लिये निर्णय लेना होगा।

स्रोत: पी.आई.बी.


शासन व्यवस्था

मध्यस्थता और सुलह (संशोधन) विधेयक, 2021

चर्चा में क्यों?

हाल ही में लोकसभा ने "फ्लाई-बाय-नाइट ऑपरेटर" (fly-By-Night Operator) द्वारा धोखाधड़ी से कानून का दुरुपयोग किये जाने की जाँच के लिये मध्यस्थता और सुलह (संशोधन) विधेयक [Arbitration and Conciliation (Amendment) Bill], 2021 पारित किया है।

  • यह विधेयक नवंबर 2020 में जारी मध्यस्थता और सुलह (संशोधन) अध्यादेश [Arbitration and Conciliation (Amendment) ordinance] की जगह लेगा।

प्रमुख बिंदु

विधेयक की विशेषताएँ:

  •  मध्यस्थों की योग्यता:
  • इस विधेयक में मध्यस्थों की योग्यता को मध्यस्थता और सुलह अधिनियम, 1996 की 8वीं अनुसूची से परे रखा गया है। इस अधिनियम में एक मध्यस्थ का प्रावधान है: 
    • उसे अधिवक्ता अधिनियम, 1961 के अंतर्गत एक वकील होना चाहिये, जिसके पास 10 साल का अनुभव हो, या
    • भारतीय विधिक सेवा का एक अधिकारी होना चाहिये।
  • इस विधेयक के अनुसार, मध्यस्थों की योग्यता का निर्धारण एक मध्यस्थता परिषद द्वारा निर्धारित नियमों द्वारा किया जाएगा।
  • पुरस्कार पर बिना शर्त रोक:
    • यदि पुरस्कार भ्रष्टाचार के आधार पर दिया जा रहा है तो अदालत मध्यस्थता कानून की धारा 34 के तहत की गई अपील पर अंतिम फैसला आने तक इस पुरस्कार पर बिना शर्त रोक लगा सकती है।

लाभ:

  • यह विधेयक मध्यस्थता प्रक्रिया में सभी हितधारकों के बीच समानता लाएगा।
    • इससे सभी हितधारकों को धोखाधड़ी या भ्रष्टाचार से प्रेरित मध्यस्थता पुरस्कारों के प्रवर्तन को बिना शर्त रोकने का अवसर मिलता है।
  • मध्यस्थता और सुलह अधिनियम, 1996 के प्रावधानों का दुरुपयोग करदाताओं से पैसे वसूलने के लिये किया जा रहा था जिसे इस विधेयक द्वारा रोका जाएगा।

कमियाँ:

  • भारत पहले से ही अंतर्राष्ट्रीय अनुबंधों और समझौतों के प्रवर्तन के मामले में पीछे है। यह विधेयक मेक इन इंडिया (Make in India) अभियान की भावना को बाधित और इज़ ऑफ डूइंग बिज़नेस इंडेक्स (Ease of Doing Business Index) की रैंकिंग में गिरावट कर सकता है।
  • भारत का उद्देश्य घरेलू और अंतर्राष्ट्रीय मध्यस्थता का केंद्र बनना है। इन विधायी परिवर्तनों के कार्यान्वयन के माध्यम से वाणिज्यिक विवादों के समाधान में अब अधिक समय लग सकता है।

भारतीय मध्यस्थता परिषद

  • संवैधानिक पृष्ठभूमि: अनुच्छेद 51 के अनुसार, भारत निम्नलिखित संवैधानिक आदर्शों को पालन करने के लिये प्रतिबद्ध है:
    • संगठित लोगों के एक-दूसरे के प्रति व्यवहार में अंतर्राष्ट्रीय विधि और संधि-बाध्यताओं के प्रति आदर बढ़ाना। 
    • अंतर्राष्ट्रीय विवादों के निपटारे के लिये मध्यस्थता को प्रोत्साहित करना। ए.सी.आई. इस संवैधानिक दायित्व की प्राप्ति हेतु एक कदम है।
  • उद्देश्य: मध्यस्थता और सुलह (संशोधन) अधिनियम, 2019 के तहत मध्यस्थता, सुलह तथा अन्य विवादों के निवारण के लिये एक निवारण तंत्र के रूप में भारतीय मध्यस्थता परिषद (Arbitration Council of India) का प्रावधान करना।
    • मध्यस्थता: यह एक ऐसी प्रक्रिया है, जिसमें विवाद को एक स्वतंत्र तीसरे पक्ष को नियुक्त कर सुलझाया जाता है जिसे मध्यस्थ (Arbitrator) कहा जाता है। मध्यस्थ समाधान पर पहुँचने से पहले दोनों पक्षों को सुनता है।
    • सुलह: यह एक ऐसी प्रक्रिया है जिसमें विवादों के सुलह के लिये एक समझौताकार (Conciliator) को नियुक्त किया जाता है। यह विवादित पक्षों को समझौते पर पहुँचने में मदद करता है। बिना मुकदमे के विवाद का निपटारा करना एक अनौपचारिक प्रक्रिया है। इस प्रकार से तनाव को कम कर, मुद्दों की व्याख्या कर, तकनीकी सहायता आदि द्वारा सुलह कराया जाता है।
  • ACI की संरचना:
    • ACI में एक अध्यक्ष होगा, जिसे:
      • सुप्रीम कोर्ट का न्यायाधीश; या
      • उच्च न्यायालय का न्यायाधीश; या
      • उच्च न्यायालय का मुख्य न्यायाधीश; या
      • मध्यस्थता के क्षेत्र में विशेषज्ञता रखने वाला एक प्रतिष्ठित व्यक्ति होना चाहिये।
    • अन्‍य सदस्‍यों में सरकार द्वारा नामित लोगों के अतिरिक्‍त जाने-माने शिक्षाविद्, व्यवसायी आदि शामिल किये जाएंगे।
  • मध्यस्थों की नियुक्ति: इस अधिनियम के अंतर्गत उच्चतम न्यायालय और उच्च न्यायालय मध्यस्थ संस्थाओं को नामित कर सकते हैं।
    • सर्वोच्च न्यायालय द्वारा नामित संस्था की नियुक्ति अंतर्राष्ट्रीय वाणिज्यिक मध्यस्थता के लिये की जाएगी।
    •  उच्च न्यायालय द्वारा नामित संस्था की नियुक्ति घरेलू मध्यस्थता के लिये की जाएगी।
    • यदि कोई मध्यस्थ संस्था उपलब्ध नहीं हैं तो मध्यस्थ संस्थाओं के कार्यों को करने के लिये संबंधित उच्च न्यायालय का मुख्य न्यायाधीश मध्यस्थों का एक पैनल बना सकता है।
    • मध्यस्थ की नियुक्ति के लिये किये गए आवेदन को 30 दिनों के भीतर निपटाया जाना आवश्यक है।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


भारतीय अर्थव्यवस्था

कृषि आय को दोगुना करने का लक्ष्य

चर्चा में क्यों?

हाल ही में केंद्र सरकार ने स्वीकार किया कि वर्ष 2013 से देश में कृषि आय का वास्तविक मूल्यांकन नहीं किया गया है।

  • भारत सरकार ने वित्तीय वर्ष 2016-17 के केंद्रीय बजट में वर्ष 2022 तक किसानों की आय को दोगुना करने का नीतिगत लक्ष्य निर्धारित किया था।

प्रमुख बिंदु:

परिचय:

  • कृषि, भारत की आधी से अधिक आबादी के लिये आजीविका का मुख्य साधन है। रोज़गार, आय और राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा में इसकी महत्त्वपूर्ण भूमिका होने के कारण इतनी कम अवधि में किसानों की आय दोगुनी करना प्रशासनिक अधिकारियों, वैज्ञानिकों और नीति निर्माताओं के लिये एक मुश्किल काम है। 
  • कुल उत्पादन में वृद्धि, बाज़ार में बेहतर कीमत वसूली, उत्पादन लागत में कमी, उपज विविधीकरण, कुशल पोस्ट-हार्वेस्ट प्रबंधन, मूल्य संवर्द्धन आदि के माध्यम से किसानों की आय दोगुनी करना संभव है। 

भारतीय किसानों से संबंधित डेटा:

Indian-Farmer

सरकार द्वारा उठाए गए कदम:

  • संस्थागत सुधार:
  • तकनीकी सुधार: 
    • ई-नाम (E-NAM) की शुरुआत:  राष्ट्रीय कृषि बाज़ार (eNAM) एक अखिल भारतीय इलेक्ट्रॉनिक ट्रेडिंग पोर्टल है, जो कृषि उत्पादों के लिये एकीकृत राष्ट्रीय बाज़ार बनाने हेतु मौजूदा कृषि उपज विपणन समिति (APMC)  मंडियों  को एक नेटवर्क से जोड़ता है।
    • कपास प्रौद्योगिकी मिशन: इसका उद्देश्य कपास उत्पादकों को प्रौद्योगिकी का व्यवस्थित हस्तांतरण सुनिश्चित कर कृषि लागत में कमी और प्रति हेक्टेयर उपज बढ़ाते हुए उत्पादकों की आय में वृद्धि करना है।
    • तिलहन, दलहन और मक्के पर प्रौद्योगिकी मिशन (TMOPM): TMOPM के तहत लागू कुछ योजनाएँ- तिलहन उत्पादन कार्यक्रम (ओपीपी), राष्ट्रीय दलहन विकास परियोजना (एनपीडीपी) आदि हैं।
    • एकीकृत बागवानी विकास मिशन (MIDH): यह फलों, सब्जियों,  कंद-मूल फसलों, मशरूम, मसाले, फूल, सुगंधित पौधों, नारियल, काजू, कोको और बाँस को शामिल करने वाले बागवानी क्षेत्र के समग्र विकास की एक योजना है।
    • चीनी प्रौद्योगिकी मिशन (Sugar Technology Mission): इसका उद्देश्य  उत्पादकता में वृद्धि, ऊर्जा संरक्षण और पूंजी उत्पादन अनुपात में सुधार जैसे कदमों के माध्यम से चीनी की उत्पादन लागत को कम करना और चीनी की गुणवत्ता में सुधार करना है।
    • राष्ट्रीय सतत् कृषि मिशन: इसका उद्देश्य भारतीय कृषि के दस प्रमुख आयामों पर ध्यान केंद्रित करते हुए अनुकूलन उपायों की एक श्रृंखला के माध्यम से स्थायी कृषि को बढ़ावा देना है, इसमें शामिल प्रमुख आयामों में से कुछ निम्नलिखित हैं:  'संवर्द्धित बीज, पशुधन और मछली पालन ', 'जल उपयोग दक्षता', 'कीट प्रबंधन', 'बेहतर कृषि पद्धति', 'पोषक प्रबंधन', 'कृषि बीमा', 'ऋण सहायता', 'बाज़ार', 'सूचना तक पहुँच' और आजीविका विविधीकरण।
    • इसके अतिरिक्त वृक्षारोपण (हर मेड़ पर पेड़), मधुमक्खी पालन, डेयरी और मत्स्य पालन से संबंधित योजनाएँ भी लागू की जाती हैं।

आवश्यकता और चुनौतियाँ: वर्ष 2022 तक किसानों की आय दोगुनी करने के लक्ष्य की प्राप्ति के लिये आर्थिक सर्वेक्षण 2021 में कुछ बुनियादी चुनौतियों को रेखांकित किया गया है, जिन पर ध्यान देने की आवश्यकता है:

  • सिंचाई सुविधाओं का विस्तार:
    • एक प्रभावी जल संरक्षण तंत्र सुनिश्चित करते हुए सिंचाई सुविधाओं के विस्तार की आवश्यकता है।
  • कृषि ऋण में सुधार: 
    • कृषि ऋण के क्षेत्र में व्याप्त क्षेत्रीय वितरण की विषमता के मुद्दे को संबोधित करने के लिये कृषि ऋण के एक समावेशी दृष्टिकोण को अपनाया जाना आवश्यक है।
  • भूमि सुधार:
    • चूँकि भारत में छोटी और सीमांत जोतों का अनुपात काफी बड़ा है, ऐसे में भूमि बाज़ार के उदारीकरण जैसे भूमि सुधार उपायों से किसानों को अपनी आय में सुधार करने में सहायता मिल सकती है।
  • संबद्ध क्षेत्रों को बढ़ावा:
    • कृषि से जुड़े लोगों (विशेषकर छोटे और सीमांत किसानों) के लिये रोज़गार और आय का एक सुनिश्चित द्वितीयक स्रोत प्रदान करने हेतु संबद्ध क्षेत्रों जैसे- पशुपालन, डेयरी और मत्स्य पालन को  बढ़ावा देने की आवश्यकता है।
  • फार्म मशीनीकरण:
    • भारत में अल्प कृषि मशीनीकरण (मात्र 40%) के मुद्दे को भी संबोधित करने की आवश्यकता है जो चीन (लगभग 60%) और ब्राज़ील (लगभग 75%) की तुलना में काफी कम है।
  • खाद्य प्रसंस्करण क्षेत्र में सुधार:
    • पोस्ट हार्वेस्ट क्षति और कृषि उत्पाद  के लिये अतिरिक्त बाज़ार के निर्माण में खाद्य प्रसंस्करण की महत्त्वपूर्ण भूमिका को देखते हुए इस क्षेत्र पर अधिक ध्यान देने की आवश्यकता है।
      • पिछले छह वर्षों (वित्तीय वर्ष 2017-18 के बाद) में खाद्य प्रसंस्करण क्षेत्र 5% से अधिक की औसत वार्षिक वृद्धि दर से बढ़ रहा है।
  • वैश्विक बाज़ार में संभावनाओं की तलाश: 
    • वर्तमान में भारत में अधिशेष कृषि उपज के लिये बाज़ार का एक अतिरिक्त स्रोत उपलब्ध कराने हेतु  वैश्विक बाज़ारों की खोज पर अधिक ध्यान देने की आवश्यकता है।
  • श्रमिकों का पुन: आवंटन: 
    • वर्तमान में कृषि क्षेत्र से जुड़े श्रम संसाधनों को अन्य क्षेत्रों में भी पुनः आवंटित करने की आवश्यकता है।
    • यद्यपि संरचनात्मक परिवर्तनों के तहत कृषि क्षेत्र में श्रमिकों की संख्या को कम करना और सेवा क्षेत्र के रोज़गार की हिस्सेदारी में वृद्धि करना शामिल था, परंतु बड़ी संख्या में उपलब्ध श्रमिकों को उपयुक्त रोज़गार उपलब्ध कराने के लिये विनिर्माण क्षेत्र में रोज़गार अवसरों के विकास हेतु और अधिक कार्य करने की आवश्यकता है।
  • अन्य मुद्दे:  
    • कृषि में निवेश, बीमा कवरेज, जल संरक्षण, बेहतर कृषि पद्धतियों के माध्यम से उन्नत पैदावार, बाज़ार तक पहुँच, संस्थागत ऋण की उपलब्धता, कृषि और गैर-कृषि क्षेत्रों के बीच संबंधों को बढ़ाने जैसे मुद्दों पर तत्काल ध्यान देने की आवश्यकता है।

आगे की राह:  

  • किसानों की आय का निम्न स्तर और इसमें प्रतिवर्ष होने वाला उतार-चढ़ाव कृषि क्षेत्र की चिंताओं का एक प्रमुख कारण है।
  • कृषि के भविष्य को सुरक्षित करने और भारत की आधी आबादी की आजीविका में सुधार करने के लिये किसानों की स्थिति में सुधार तथा कृषि आय बढ़ाने पर पर्याप्त ध्यान देने की आवश्यकता है।
  • किसानों की क्षमता  (प्रौद्योगिकी अपनाने और जागरूकता) को बढ़ाने पर सक्रिय ध्यान देने के साथ ही किसानों की आय दोगुनी करने के लक्ष्य को प्राप्त करने हेतु राज्यों तथा केंद्रशासित प्रदेशों को संगठित करना आवश्यक है। 
  • कृषि परिवारों पर  राष्ट्रीय प्रतिदर्श सर्वेक्षण कार्यालय का आखिरी सर्वेक्षण वर्ष 2013 में आयोजित किया गया था। इसके बाद से किसानों की आय का कोई अन्य आकलन नहीं किया गया है। इसलिये किसानों की प्रगति का सटीक आँकड़ा प्राप्त करने हेतु तत्काल उचित कार्यक्रमों के संचालन की आवश्यकता है।

स्रोत: द हिंदू


विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी

डिकिनसोनिया: प्राचीनतम ज्ञात प्राणी

चर्चा में क्यों?

हाल ही में शोधकर्त्ताओं ने भीमबेटका में तकरीबन 550 मिलियन-वर्ष पुराने प्रारंभिक ज्ञात जानवर ‘डिकिनसोनिया’ के तीन जीवाश्मों की खोज की है।

  • ये जीवाश्म ‘भीमबेटका शैलाश्रय में ‘ऑडीटोरियम केव’ नामक स्थान के ऊपरी हिस्से में पाए गए हैं।

नोट

  • अब तक यह माना जाता था कि स्पंज सबसे पुराना जीवित जीव था, किंतु वर्तमान में ऐसा कोई सबूत मौजूद नहीं है कि 540 मिलियन वर्ष पूर्व स्पंज जैसे जानवर मौजूद थे।
  • पृथ्वी पर जानवरों के सबसे प्रारंभिक साक्ष्य अब 558 मिलियन साल पुराना ‘डिकिनसोनिया’ अथवा अन्य एडिएकरन जानवर के हैं।

प्रमुख बिंदु 

‘डिकिनसोनिया’ के बारे में

Dickinsonia

  • खोज
    • सितंबर 2018 में शोधकर्त्ताओं की एक अंतर्राष्ट्रीय टीम ने विश्व के सबसे पुराने जीवाश्म ‘डिकिनसोनिया’ की खोज करने का दावा किया था, जो कि पहली बार 571 मिलियन से 541 मिलियन वर्ष पूर्व दिखाई दिया था।
  • अवधि और क्षेत्र
    • यह बेसल जानवर की एक विलुप्त प्रजाति है, जो एडिएकरन काल के दौरान वर्तमान ऑस्ट्रेलिया, रूस और यूक्रेन में रहती थी।
      • बेसल जानवर ऐसे जानवर होते हैं, जिनके शरीर की संरचना में रेडियल समरूपता होती है। इनकी शारीरिक संरचना काफी सरल होती है और ये प्रायः डिप्लोब्लासटिक (केवल दो भ्रूण कोशिका परतों से व्युत्पन्न) होते हैं।
  • संरचना
    • पृथ्वी पर जटिल बहुकोशिकीय जीवन के शुरुआती दौर में प्रायः सभी जीवों को शिकारी रहित वातावरण के कारण सख्त सुरक्षात्मक आवरण की आवश्यकता नहीं थी।
      • उनकी सरल और स्क्विशी संरचना, नली तथा क्विलटीड पिलोज़ (Quilted Pillows) के आकार की होती थी तथा वे वर्तमान समय के जानवरों की शारीरिक संरचना से समानता रखते थे।
  • वर्गीकरण
    • इसकी विशेषताओं के बारे में वर्तमान में कोई जानकारी उपलब्ध नहीं है, इसकी वृद्धि का तरीका एक स्टेम-ग्रुप बिलेटेरियन के समान है, हालाँकि कुछ शोधकर्त्ताओं का सुझाव है कि यह कवक या यहाँ तक कि एक ‘विलुप्त प्राणीजगत’ से संबंधित है।
    • ‘डिकिनसोनिया’ के जीवाश्मों में कोलेस्ट्रॉल के अणुओं की खोज इस विचार का समर्थन करती है कि ‘डिकिनसोनिया’ एक जानवर था।

महत्त्व

  • यह अतीत के वातावरण यानि पेलियोएनवायरनमेंट (Paleoenvironments) का एक साक्ष्य है और तकरीबन 550 मेगा वर्ष पूर्व गोंडवाना लैंड (Gondwanaland) की उपस्थिति की पुष्टि करता है।
    • पेलियोएनवायरनमेंट का आशय प्रायः एक ऐसे परिवेश से है, जिसे चट्टानों के माध्यम से संरक्षित रखा गया है।
    • मेगा वर्ष एक मिलियन वर्ष के बराबर समय की एक इकाई है।
      • इस इकाई को अतीत में आमतौर पर वैज्ञानिक विषयों जैसे- भू-विज्ञान, जीवाश्म विज्ञान और आकाशीय यांत्रिकी में बहुत लंबे समय को संदर्भित करने हेतु प्रयोग किया जाता है।
    • यह खोज वैज्ञानिकों को भू-विज्ञान और जीव विज्ञान के मध्य पारस्परिक संबंध को बेहतर ढंग से समझने में मदद कर सकती है, जिसके कारण पृथ्वी पर जटिल जीवन के विकास की शुरुआत हुई।

भीमबेटका गुफाएँ

  • इतिहास और काल अवधि
    • भीमबेटका गुफाएँ मध्य भारत का एक पुरातात्त्विक स्थल है, जिसकी काल अवधि प्रागैतिहासिक पाषाण काल और मध्य पाषाण काल से लेकर ऐतिहासिक काल तक है।
    • यह भारत में मानव जीवन के शुरुआती सकेतकों और पाषाण युग के साक्ष्य को प्रदर्शित करता है।
    • तकरीबन 10 किलोमीटर क्षेत्र में फैले यूनेस्को के इस विश्व धरोहर स्थल में कुल सात पहाड़ियाँ और 750 से अधिक गुफाएँ शामिल हैं।
  • खोज
    • इसकी खोज 1957-58 में डॉ. विष्णु श्रीधर वाकणकर द्वारा की गई थी।
  • अवस्थिति
    • यह मध्य प्रदेश में होशंगाबाद और भोपाल के बीच रायसेन ज़िले में स्थित है। 
      • यह विंध्य पर्वत की तलहटी में भोपाल से लगभग 40 किलोमीटर दक्षिण-पूर्व में है।
  • चित्र
    • भीमबेटका की कुछ गुफाओं में प्रागैतिहासिक काल की विशेषताओं वाले गुफा चित्र मौजूद हैं जो कि लगभग 10,000 वर्ष पुराने हैं।
    • अधिकांश चित्रों को गुफा की दीवारों पर लाल और सफेद रंग से बनाया गया है।
    • यहाँ मौजूद चित्रों में कई तरह के विषयों को कवर किया गया था, जिसमें गायन, नृत्य, शिकार और वहाँ रहने वाले लोगों की अन्य सामान्य गतिविधियाँ आदि शामिल हैं। 
      • भीमबेटका में सबसे प्राचीन गुफा चित्र लगभग 12,000 वर्ष पूर्व का माना जाता है।

स्रोत: द हिंदू


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