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डेली न्यूज़

  • 13 Jan, 2021
  • 32 min read
अंतर्राष्ट्रीय संबंध

UNSC में भारत : विगत योगदान तथा वर्तमान चुनौतियाँ

चर्चा में क्यों?

हाल ही में भारत ने आठवीं बार संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (United Nations Security Council- UNSC) में अस्थायी सदस्य के रूप में प्रवेश किया है। परिषद में इसकी सदस्यता की अवधि दो वर्षों अर्थात् वर्ष 2021 तथा 2022 तक होगी। 

प्रमुख बिंदु:

  • UNSC में भारत का योगदान: इससे पहले भारत ने सात बार इस परिषद को अपनी सेवाएँ दी हैं।
    • 1950-51: UNSC के अध्यक्ष के रूप में भारत ने कोरियाई युद्ध के दौरान युद्ध विराम और कोरिया गणराज्य की सहायता के लिये आमंत्रित प्रस्तावों को अपनाने हेतु इनका संचालन किया।
    • 1967-68: भारत ने साइप्रस में संयुक्त राष्ट्र मिशन के जनादेश का विस्तार करने वाले प्रस्ताव 238 को सह-प्रायोजित किया।
    • 1972-73: भारत ने संयुक्त राष्ट्र में बांग्लादेश के प्रवेश हेतु ज़ोरदार समर्थन दिया।
    • 1977-78: भारत ने UNSC में अफ्रीका का प्रबल समर्थन किया और भारत ने रंगभेद के खिलाफ तथा वर्ष 1978 में नामीबिया की स्वतंत्रता के लिये आवाज़ उठाई।
    • 1984-85: मध्य-पूर्व, विशेष रूप से फिलिस्तीन और लेबनान में संघर्षों के समाधान हेतु भारत ने UNSC में आवाज़ उठाई थी।
    • 1991-92: भारत ने UNSC की पहली शिखर बैठक में भाग लिया और शांति एवं सुरक्षा बनाए रखने में UNSC की भूमिका के महत्त्व को रेखांकित किया।
    • 2011-2012: वर्ष 2011-12 के कार्यकाल के दौरान भारत ने विकासशील देशों के मुद्दों के साथ-साथ शांति व्यवस्था, आतंकवाद पर नियंत्रण और अफ्रीका आदि से संबंधित मुद्दों पर आवाज़ उठाई। भारत की अध्यक्षता के दौरान ही UNSC द्वारा सीरिया पर पहली बार बयान जारी किया गया था।
      • वर्ष 2011-12 में अपने कार्यकाल के दौरान भारत ने आतंकवाद पर नियंत्रण से संबंधित यूएनएससी 1373 समिति, आतंकवादी गतिविधियों के कारण अंतर्राष्ट्रीय शांति और सुरक्षा के लिये खतरे से संबंधित 1566 वर्किंग ग्रुप, सोमालिया और इरिट्रिया से संबंधित सुरक्षा परिषद 751/1907 समिति की अध्यक्षता की थी। 
      • वर्ष 1996 में भारत ने आतंकवाद का मुकाबला करने के लिये एक व्यापक कानूनी ढाँचा प्रदान करने के उद्देश्य से ‘अंतर्राष्ट्रीय आतंकवाद पर व्यापक अभिसमय’ (Comprehensive Convention on International Terrorism- CCIT) का मसौदा तैयार करने की पहल की। 
      • भारत ने पाकिस्तानी आतंकवादी मसूद अजहर को  अल-कायदा, ISIS और संबंधित व्यक्तियों तथा संस्थाओं से संबंधित UNSC की 1267 प्रतिबंध समिति (मई 2019) के तहत सूचीबद्ध करने के लिये UNSC में अपने सहयोगियों के साथ मिलकर काम किया, गौरतलब है कि यह मामला वर्ष 2009 से लंबित था।

UNSC में भारत की चुनौतियाँ:

  • चीन की चुनौती:
    • भारत ऐसे समय में UNSC में प्रवेश कर रहा है जब चीन वैश्विक स्तर पर स्वयं को पहले से कहीं ज़्यादा आक्रामक रूप में प्रस्तुत कर रहा है। वर्तमान में चीन संयुक्त राष्ट्र के कम-से-कम छह संगठनों का नेतृत्त्व करता है और इसने कई मौकों पर वैश्विक नियमों को चुनौती दी है।
    • वर्ष 2020 में हिंद-प्रशांत क्षेत्र के साथ-साथ भारत-चीन सीमा पर वर्ष भर चीन का आक्रामक व्यवहार देखने को मिला है।
    • चीन ने UNSC में कश्मीर के मुद्दे को उठाने की कोशिश की है।
  • COVID-19 के बाद की वैश्विक व्यवस्था:
    • वर्तमान में जब वैश्विक अर्थव्यवस्था भारी अस्थिरता की स्थिति से गुज़र रही है और कई देश स्वास्थ्य आपातकाल का सामना कर रहे हैं। इन सभी स्थितियों को संभालने और विश्व को इस चुनौती से बाहर निकालने के लिये एक सुविचारित रणनीति की आवश्यकता है।
  • अमेरिका, रूस और अस्थिर पश्चिम एशिया के बीच संतुलन:
    • अमेरिका और रूस के बिगड़ते संबंधों तथा अमेरिका एवं ईरान के बढ़ने तनाव के बीच भारत के लिये स्थितियों को संभालना कठिन होगा।
    • ऐसे में भारत द्वारा मानव अधिकारों का सम्मान और राष्ट्रीय हितों को सुनिश्चित करते हुए एक नियम आधारित वैश्विक व्यवस्था को बढ़ावा दिये जाने की आवश्यकता है।

संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद

  • संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (Nations Security Council) सहित संयुक्त राष्ट्र के अन्य छह मुख्य अंगों की स्थापना संयुक्त राष्ट्र चार्टर द्वारा की गई। UNSC की संरचना की व्यवस्था संयुक्त राष्ट्र चार्टर के अनुच्छेद 23 में है।
  • सुरक्षा परिषद, संयुक्त राष्ट्र का सबसे शक्तिशाली निकाय है जिसकी प्राथमिक ज़िम्मेदारी अंतर्राष्ट्रीय शांति और सुरक्षा कायम करना है। 
  • संयुक्त राष्ट्र के अन्य अंग सदस्य राज्यों के लिये सिफारिशें करते हैं, किंतु सुरक्षा परिषद के पास सदस्य देशों के लिये निर्णय लेने और बाध्यकारी प्रस्ताव जारी करने की शक्ति होती है।
  • स्थायी और अस्थायी सदस्य: UNSC का गठन 15 सदस्यों (5 स्थायी और 10 गैर-स्थायी) द्वारा किया गया है।
    • सुरक्षा परिषद के पाँच स्थायी सदस्य अमेरिका, ब्रिटेन, फ्राँस, रूस और चीन हैं। गौरतलब है कि इन स्थायी सदस्य देशों के अलावा 10 अन्य देशों को दो साल के लिये अस्थायी सदस्य के रूप में सुरक्षा परिषद में शामिल किया जाता है।
    • दस गैर-स्थायी सीटों का वितरण क्षेत्रीय आधार पर किया जाता है:
    • इसमें पाँच सदस्य एशियाई या अफ्रीकी देशों से, दो दक्षिण अमेरिकी देशों से, एक पूर्वी यूरोप से और दो पश्चिमी यूरोप या अन्य क्षेत्रों से चुने जाते हैं।
  • भारत UNSC में एक स्थायी सीट की वकालत करता रहा है।
  • भारत जनसंख्या, क्षेत्रीय आकार, जीडीपी, आर्थिक क्षमता, संपन्न विरासत और सांस्कृतिक विविधता तथा संयुक्त राष्ट्र की गतिविधियों में विशेष रूप से संयुक्त राष्ट्र के शांति अभियानों में योगदान आदि सभी पैमानों पर खरा उतरता है।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


जैव विविधता और पर्यावरण

जुकू घाटी

चर्चा में क्यों ?

नगालैंड-मणिपुर सीमा पर स्थित जुकू घाटी (Dzukou Valley) की वनाग्नि पर काबू पा लिया गया है।

  • 90 वर्ग किमी. में फैली यह हरी-भरी घाटी पहले भी (वर्ष 2006, 2010, 2012 और 2015) वनाग्नि की चपेट में आई है।

Dzukou-Valley

प्रमुख बिंदु:

  • अवस्थिति: जुकू घाटी जिसे 'फूलों की घाटी' के रूप में जाना जाता है, नगालैंड और मणिपुर की सीमा पर स्थित है।
  • विशेषताएँ:
    • यह  2,438 मीटर की ऊंँचाई पर जापफू पर्वत शृंखला (Japfu Mountain Range) के पीछे स्थित है, यह उत्तर-पूर्व के सबसे लोकप्रिय ट्रेकिंग स्पॉट (Trekking Spots)  में से एक है।
      • जुकू घाटी और जापफू पर्वत पुलीबडज़े वन्यजीव अभयारण्य (नगालैंड) के समीप स्थित हैं।  
    • इन जंगलों के भीतर मानवीय आवास नहीं हैं, परंतु यह दुर्लभ और 'सुभेद्य ' (IUCN की रेड लिस्ट के अनुसार) पक्षी जिनमें बेलीथ ट्रगोपैन (नगालैंड का राज्य पक्षी), रूफस-नेक्ड हार्नबिल और डार्क-रुम्प्ड स्विफ्ट तथा कई अन्य पक्षी शामिल हैं, का आवास स्थल है। इसके अलावा जंगल में लुप्तप्राय वेस्टर्न हूलोक गिबन भी पाए जाते  हैं।
    • यह घाटी बाँस और घास की अन्य  प्रजातियों से आच्छादित है। घाटी में  जुकू लिली (लिलियम चित्रांगदा) सहित फूलों की कई स्थानिक प्रजातियाँ पाई जाती हैं।
    • इस घाटी को लेकर स्थानीय जनजातियों और मणिपुर/नगालैंड की राज्य सरकारों के बीच संघर्ष की स्थिति रहती है।
    • यहाँ अंगामी जनजाति के लोगों का निवास है।

वनाग्नि: 

  • विवरण:
    • वनाग्नि को बुश फायर (Bush Fire) भी कहा जाता है, इसे किसी भी प्राकृतिक व्यवस्था जैसे- जंगल, घास के मैदान, टुंड्रा आदि में पौधों के जलने (अनियंत्रित और गैर-निर्धारित दहन द्वारा) के रूप में वर्णित किया जा सकता है, यह प्राकृतिक ईंधन का उपयोग करते हुए पर्यावरणीय स्थितियों (हवा, स्थलाकृति) के आधार पर फैलती है।
  • कारण:
    • वनाग्नि की अधिकांश घटनाएँ मानव निर्मित होती हैं। मानव निर्मित कारकों में कृषि हेतु नए खेत तैयार करने के लिये वन क्षेत्र की सफाई, वन क्षेत्र के निकट जलती हुई सिगरेट या कोई अन्य ज्वलनशील वस्तु छोड़ देना आदि शामिल हैं।
    • उत्तर-पूर्व में वनाग्नि के प्रमुख कारणों में से एक स्लैश-एंड-बर्न (Slash-and-Burn) खेती विधि शामिल है, जिसे आमतौर पर झूम खेती कहा जाता है।
      • वनाग्नि की घटना प्रायः जनवरी और मार्च महीनों के मध्य देखी जाती है। उत्तर-पूर्व में उष्णकटिबंधीय सदाबहार वन पाए जाते हैं जो मध्य भारत में स्थित शुष्क पर्णपाती वनों के विपरीत आसानी से आग नहीं पकड़ते हैं।
  • प्रभाव:
    • वनाग्नि के कारण वैश्विक स्तर पर अरबों टन CO2 वायुमंडल में उत्सर्जित होती है, जबकि वनाग्नि और अन्य भूखंडों की आग के धुएँ के संपर्क में आने से बीमारियों के कारण सैकड़ों-हज़ारों लोगों की मौत हो जाती है।
  • भारतीय वन सर्वेक्षण (FSI) द्वारा जारी भारत वन स्थिति रिपोर्ट -2019 के अनुसार:
    • भारत में लगभग 21.40% वन आवरण आग की चपेट में हैं, उत्तर-पूर्वी क्षेत्र और मध्य भारत के जंगल सबसे अधिक असुरक्षित हैं।
    • जबकि देश में समग्र हरित आवरण में वृद्धि गई है, उत्तर-पूर्व विशेष रूप से मिज़ोरम, अरुणाचल प्रदेश और नगालैंड में वन आवरण घटा है। वनाग्नि इसका एक कारण हो सकती है।
  • सुरक्षात्मक उपाय: 
    • वनाग्नि पर राष्ट्रीय कार्य योजना (National Action Plan on Forest Fire), 2018
    • वनाग्नि निवारण और प्रबंधन योजना

स्रोत: द हिंदू


शासन व्यवस्था

कायाकल्प पुरस्कार

चर्चा में क्यों?

हाल ही में स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय (Ministry of Health and Family Welfare) ने स्वच्छता और स्वच्छता के उच्च मानकों के लिये सार्वजनिक तथा निजी स्वास्थ्य सुविधाओं को 5वें राष्ट्रीय कायाकल्प पुरस्कार (Kayakalp Awards) से सम्मानित किया है।

प्रमुख बिंदु

  • पृष्ठभूमि:
    • मंत्रालय ने भारत में सार्वजनिक स्वास्थ्य सुविधाओं में स्वच्छता और साफ-सफाई सुनिश्चित करने के लिये 15 मई, 2015 को एक राष्ट्रीय पहल  'कायाकल्प’ की शुरुआत की।
  • कायाकल्प पुरस्कार के संबंध में :
    • ऐसे ज़िला अस्पताल, उप-विभागीय अस्पताल, सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र, प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र और सार्वजनिक स्वास्थ्य प्रणाली के तहत स्वास्थ्य तथा कल्याण केंद्र जिन्होंने उच्च स्तर की स्वच्छता, साफ-सफाई एवं संक्रमण पर नियंत्रण पाया है, उन्हें इन पुरस्कारों से सम्मानित किया गया है।
  • उद्देश्य:
    • इसका उद्देश्य ऐसी सार्वजनिक स्वास्थ्य सुविधाओं को प्रोत्साहित कर उनकी पहचान करना जो कि स्वच्छता और संक्रमण पर नियंत्रण के लिये मानक प्रोटोकॉल का पालन कर  अनुकरणीय कार्य करते हैं, साथ ही सार्वजनिक स्वास्थ्य सुविधाओं में स्वच्छता, साफ-सफाई और संक्रमण नियंत्रण प्रथाओं को बढ़ावा देना है।
    • स्वच्छता और साफ-सफाई से संबंधित प्रदर्शन के सतत् मूल्यांकन और सहकर्मी समीक्षा की संस्कृति विकसित करना।
    • सकारात्मक स्वास्थ्य परिणामों से जुड़ी सार्वजनिक स्वास्थ्य सुविधाओं में सुधार से संबंधित स्थायी प्रथाओं के निर्माण और उन्हें साझा करना।

कायाकल्प के तहत अन्य पहल:

  • मेरा अस्पताल (Mera Aspataal):
    • मेरा अस्पताल पहल की शुरुआत अस्पताल में दी जाने वाली सेवाओं के बारे में मरीज़ों की  प्रतिक्रियाओं को जानने और उसके अनुरूप सुधारात्मक उपाय कर सेवाओं को बेहतर बनाने के लिये की गई थी।
  • स्वच्छ स्वस्थ सर्वत्र (Swachh SwasthSarvatra-SSS) :
    • केंद्रीय स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय ने केंद्रीय पेयजल और स्वच्छता मंत्रालय के सहयोग से स्वच्छ स्वस्थ सर्वत्र कार्यक्रम की शुरुआत की है। इसके अंतर्गत खुले में शौच मुक्त ब्लॉक में स्थित सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र (CHC) को राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन के तहत सुधार गतिविधियों के लिये एकमुश्त 10 लाख रुपए दिये जाते हैं।   

स्रोत: PIB


शासन व्यवस्था

प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना के पाँच वर्ष

चर्चा में क्यों 

हाल ही में भारत सरकार की फ्लैगशिप फसल बीमा योजना- 'प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना' (PMFBY) ने अपने पाँच वर्ष पूरे कर लिये हैं।

  • ‘प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना' (PMFBY) को 13 जनवरी, 2016 को लॉन्च किया गया था। 
  • इस योजना की शुरुआत देश में किसानों को न्यूनतम और समान बीमा-किस्त पर एक व्यापक जोखिम समाधान प्रदान करने के लिये की गई थी।

मुख्य बिंदु:  

प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना  (PMFBY):

  • यह योजना किसानों को फसल की विफलता (खराब होने) की स्थिति में एक व्यापक बीमा कवर प्रदान करती है, जिससे किसानों की आय को स्थिर करने में मदद मिलती है।
  • दायरा (Scope): वे सभी खाद्य और तिलहनी फसलें तथा वार्षिक वाणिज्यिक/बागवानी फसलें, जिनके लिये पिछली उपज के आँकड़े उपलब्ध हैं।
  • बीमा किस्त: इस योजना के तहत किसानों द्वारा दी जाने वाली निर्धारित बीमा किस्त/प्रीमियम-खरीफ की सभी फसलों के लिये 2% और सभी रबी फसलों के लिये 1.5% है। वार्षिक वाणिज्यिक तथा बागवानी फसलों के मामले में बीमा किस्त 5% है। 
    • किसानों की देयता के बाद बची बीमा किस्त की लागत का वहन राज्यों और केंद्र सरकार द्वारा सब्सिडी के रूप बराबर साझा किया जाता है।
    • हालाँकि, पूर्वोत्तर भारत के राज्यों में केंद्र सरकार द्वारा इस योजना के तहत बीमा किस्त सब्सिडी का 90% हिस्सा वहन किया जाता है।
  • अधिसूचित फसलों हेतु फसल ऋण/किसान क्रेडिट कार्ड (KCC) खाते में ऋण लेने वाले किसानों के लिये इस योजना को अनिवार्य बनाया गया है, जबकि अन्य किसान स्वेच्छा से इस योजना से जुड़ सकते हैं।

प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना 2.0:

  • योजना के अधिक कुशल और प्रभावी कार्यान्वयन को सुनिश्चित करने के लिये केंद्र सरकार द्वारा वर्ष 2020 के खरीफ सीज़न में PMFBY में आवश्यक सुधार किया गया था।
  • इस संशोधित PMFBY को प्रायः PMFBY 2.0 भी कहा जाता है, इसकी कुछ विशेषताएँ निम्नलिखित हैं:
    • पूर्णतयः स्वैच्छिक:  इसके तहत वर्ष 2020 की खरीफ फसल से सभी किसानों के लिये नामांकन 100% स्वैच्छिक है।
    • सीमित केंद्रीय सब्सिडी: केंद्रीय मंत्रिमंडल ने इस योजना के तहत गैर-सिंचित क्षेत्रों/फसलों के लिये बीमा किस्त की दरों पर केंद्र सरकार की हिस्सेदारी को 30% और सिंचित क्षेत्रों/फसलों के लिये 25% तक सीमित करने का निर्णय लिया है।
    • राज्यों के लिये अधिक स्वायत्तता: केंद्र सरकार ने राज्यों/केंद्रशासित प्रदेशों को PMFBY को लागू करने के लिये व्यापक छूट प्रदान की है और साथ ही उन्हें इसमें किसी भी अतिरिक्त जोखिम कवर/ सुविधाओं का चयन करने का विकल्प भी दिया है।
    • आईसीई गतिविधियों में निवेश: अब इस योजना के तहत बीमा कंपनियों द्वारा एकत्र किये गए कुल प्रीमियम का 0.5% सूचना, शिक्षा और संचार (IEC) गतिविधियों पर खर्च करना होगा।

PMFBY के तहत तकनीकी का प्रयोग:

  • फसल बीमा एप: 
    • किसानों को आसान नामांकन की सुविधा प्रदान करता है।
    • किसी भी घटना के होने के 72 घंटों के भीतर फसल के नुकसान की आसान रिपोर्टिंग की सुविधा।
  • नवीनतम तकनीकी उपकरण: फसल के नुकसान का आकलन करने के लिये सैटेलाइट इमेजरी, रिमोट-सेंसिंग तकनीक, ड्रोन, कृत्रिम बुद्धिमत्ता और मशीन लर्निंग का उपयोग किया जाता है।
  • पीएमएफबीवाई पोर्टल: भूमि रिकॉर्ड के एकीकरण के लिये पीएमएफबीवाई पोर्टल की शुरुआत की गई है।

योजना का प्रदर्शन:

  • इस योजना में प्रतिवर्ष औसतन 5.5 करोड़ आवेदन प्राप्त होते हैं।
  • आधार सीडिंग (इंटरनेट बैंकिंग पोर्टल के माध्यम से आधार को लिंक करना) ने दावों के निपटान को सीधे किसान के खातों में भेजने में तेज़ी लाने में मदद की है।
  •  वर्ष 2019-20 में रबी फसल के दौरान राजस्थान में टिड्डी हमले का मामला, इस योजना के तहत मध्य-सत्र में फसलों की क्षति पर बीमा लाभ (लगभग 30 करोड़ रुपए) का एक उल्लेखनीय उदाहरण है।

आगे की राह: 

  • तर्कसंगत छूट और सेवा वितरण: राज्य सरकारों द्वारा अनिवार्य आधार लिंकेज के साथ घोषित ऋण माफी योजनाओं को अधिक से अधिक कवरेज हेतु प्रधानमंत्री बीमा योजना को युक्तिसंगत बनाया जाना चाहिये ।
  • समय पर मुआवजा: कुछ राज्यों द्वारा देरी से मुआवज़े देने की रिपोर्ट दी गई है, अतः समय पर भुगतान किया जाना आवश्यक है।
  • व्यवहार परिवर्तन लाना: इसके अलावा,  किसानों के बीच बीमा लागत के बारे में एक व्यवहारगत परिवर्तन लाने हेतु बहुत कुछ किये  जाने की ज़रूरत है, ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि किसान बीमा लागत को एक आवश्यक इनपुट के रूप में देखें न कि एक निवेश के रूप में।
  • समान योजनाओं का युक्तिकरण: PMFBY को राज्य फसल बीमा योजनाओं और पुनर्निवेशित मौसम आधारित फसल बीमा योजना जैसी योजनाओं के साथ सुव्यवस्थित किया जाना चाहिये, ताकि अधिक जोखिम वाले क्षेत्रों को भी योजना के तहत शामिल किया जा सके।
  • उचित कार्यान्वयन: PMFBY का सफल कार्यान्वयन किसानों को संकट के समय में आत्मनिर्भर बनाने और एक आत्मनिर्भर किसान के निर्माण के लक्ष्य का समर्थन करने हेतु भारत में कृषि सुधार की दिशा में एक आवश्यक मानदंड है।

स्रोत: PIB


भारतीय राजनीति

अवमानना का आधार

चर्चा में क्यों?

कर्नाटक उच्च न्यायालय ने एक जनहित याचिका (PIL) पर केंद्र सरकार को नोटिस जारी किया है, जो कि न्यायालय की अवमानना अधिनियम (Contempt of Courts Act), 1971 के प्रावधान की संवैधानिक वैधता को चुनौती देती है, जिसके अंतर्गत न्यायलय की ‘निंदा अथवा निंदा के प्रयास’ को न्यायालय की अवमानना माना गया है।

  • लोक जनहित याचिका (PIL) सार्वजनिक हित की रक्षा के लिये (जनता के लाभ के लिये कोई भी कार्य) किसी व्यक्ति द्वारा की गई कानूनी कार्रवाई से संबंधित है।

प्रमुख बिंदु:

अवमानना का आधार:

  • न्यायिक अवमानना अधिनियम, 1971 (Contempt of Court Act, 1971) के अनुसार, न्यायालय की अवमानना का अर्थ किसी न्यायालय की गरिमा तथा उसके अधिकारों के प्रति अनादर प्रदर्शित करना है।
    • 'न्यायालय की अवमानना' शब्द को संविधान द्वारा परिभाषित नहीं किया गया है।
    • हालाँकि भारतीय संविधान के अनुच्छेद 129 ने सर्वोच्च न्यायालय को स्वयं की अवमानना की स्थिति में दंड देने की शक्ति प्रदान की है। अनुच्छेद 215 ने उच्च न्यायालयों को समान शक्ति प्रदान की है।
  • न्यायालय की अवमानना अधिनियम, 1971 में नागरिक और आपराधिक दोनों प्रकार की अवमानना को परिभाषित किया गया है।
    • नागरिक अवमानना: न्यायालय के किसी भी निर्णय, डिक्री, निर्देश, आदेश, रिट अथवा अन्य किसी प्रक्रिया या किसी न्यायालय को दिये गए उपकरण के उल्लंघन के प्रति अवज्ञा को नागरिक अवमानना कहते हैं।
    • आपराधिक अवमानना: न्यायिक अवमानना अधिनियम, 1971 की धारा 2 ( C) के अंतर्गत न्यायालय की आपराधिक अवमानना का अर्थ न्यायालय से जुड़ी किसी ऐसी बात के प्रकाशन से है, जो लिखित, मौखिक, चिह्नित , चित्रित या किसी अन्य तरीके से न्यायालय की अवमानना करती हो।
  • अधिनियम की धारा 5 में कहा गया है कि किसी मामले के अंतिम निर्णय की योग्यता पर "निष्पक्ष आलोचना" या "निष्पक्ष टिप्पणी" अवमानना नहीं होगी। परंतु "निष्पक्ष" क्या है, इसका निर्धारण न्यायाधीशों की व्याख्या पर निर्भर है।

याचिकाकर्त्ताओं के तर्क:

  • अधिनियम की धारा 2(c)(i), अनुच्छेद 19(1)(a) के तहत मुक्त भाषण और अभिव्यक्ति की गारंटी के अधिकार का उल्लंघन करती है जिस पर अनुच्छेद 19(2) के द्वारा युक्ति-युक्त निर्बंधन नहीं लगाया गया है।
  • याचिकाकर्त्ताओं द्वारा अधिनियम की धारा 2(c)(ii) और धारा 2(c)(iii) की संवैधानिक वैधता को चुनौती नहीं दी गयी है, उनके द्वारा तर्क दिया कि न्यायालयों को प्राकृतिक न्याय तथा निष्पक्षता के सिद्धांतों को ध्यान में रखते हुए आपराधिक अवमानना की कार्रवाई हेतु नियम और दिशा-निर्देशों तैयार करने चाहिये।
  • याचिकाकर्त्ताओं का कहना है कि प्रायः न्यायाधीशों के स्वयं के मामलों में अवमानना देखी जा सकती है, जिससे प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों का उल्लंघन होता है और सार्वजनिक विश्वास प्रतिकूल रूप से प्रभावित होता है।

प्रमुख मुद्दे:

व्यक्तिपरकता:

  • 'निंदा' (Scandalising) शब्द व्यक्ति-निष्ठ है और संबंधित व्यक्ति की धारणा पर निर्भर करता है। जब तक न्यायालय की निंदा करने वाले ’शब्द' (कानून की किताब में) मौजूद हैं, तब तक सत्ता की कार्यवाही एकतरफा होगी।
  • न्यायाधीशों की यह आदत हो गयी है कि वह अपने चरित्र पर व्यक्तिगत हमलों को न्यायालय की अवमानना मानते हैं।
    • प्रायः न्यायाधीश यह भूल जाते हैं कि अवमानना का कानून न्यायाधीशों की रक्षा के लिये नहीं बल्कि न्यायपालिका की रक्षा हेतु है।

अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का उल्लंघन:

  • एक लोकतांत्रिक गणराज्य में एक मज़बूत न्यायपालिका उस देश की जनता की शक्ति है। इसे संविधान में निर्धारित लक्ष्यों जैसे- जनता के लिये सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक न्याय को सुनिश्चित करने तथा उनके मौलिक अधिकारों को बनाए रखने के लिये काम करना चाहिये।
  • इन उद्देश्यों को ध्यान में रखते हुए अगर न्यायपालिका काम नहीं कर रही है तो एक व्यक्ति को इसे इंगित करने की स्वतंत्रता होनी चाहिये और इसे आपराधिक अवमानना नहीं कहा जा सकता है क्योंकि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता एक मौलिक अधिकार है।

‘न्यायपालिका की निंदा’ को न्यायालय की अवमानना के रूप में न मानने का यूनाइटेड किंगडम का निर्णय:

  • भारत में न्यायालय की अवमानना से संबंधित कानून ब्रिटिश कानूनों से लिये गए हैं, किंतु यूनाइटेड किंगडम ने स्वयं वर्ष 2013 में यह कहते हुए ‘न्यायपालिका की निंदा’ को न्यायालय की अवमानना के रूप में न मानने का निर्णय किया था कि यह अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के विरुद्ध है, जबकि ‘न्यायालय की अवमानना’ के अन्य रूपों जैसे न्यायालय की कार्यवाही में व्यवधान अथवा हस्तक्षेप आदि को बरकरार रखा था।
  • ब्रिटेन द्वारा न्यायपालिका की निंदा को ‘न्यायालय की अवमानना’ के एक आधार के रूप में समाप्त करने का एक प्राथमिक कारण ‘रचनात्मक आलोचना’ को बढ़ावा देना है।
  • यह प्राकृतिक न्याय के मूल सिद्धांतों में से एक- ‘कोई भी व्यक्ति अपने स्वयं के मामले में न्यायाधीश नहीं हो सकता’, की अवहेलना करता है।
  • इस प्रकार न्यायालय स्वयं को अवमानना कार्यवाही के माध्यम से एक न्यायाधीश, न्याय पीठ और वधिक तीनों की शक्तियाँ प्रदान करता है, जिससे प्रायः विकृत परिणामों को बढ़ावा मिलता है।

आगे की राह: 

  • अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता सभी मौलिक अधिकारों में सबसे अधिक मौलिक है जिस पर  कम-से-कम प्रतिबंध आरोपित होने चाहिये। न्यायालय की अवमानना का कानून केवल ऐसे प्रतिबंध आरोपित कर सकता है जो न्यायिक संस्थाओं की वैधता को बनाए रखने हेतु आवश्यक हैं। कानून को न्यायाधीशों को संरक्षण देने के बजाए न्यायपालिका की रक्षा करने की आवश्यकता है।
  • उचित जाँच के बिना जारी किया गया अवमानना नोटिस उन लोगों के लिये कठिनाई उत्पन्न कर सकता है जो सार्वजनिक जीवन जुड़े हुए  हैं। स्वतंत्रता का नियम होना चाहिये जिस पर  प्रतिबंध को एक अपवाद के रूप में शामिल किया जाना चाहिये।
  • वर्तमान में यह अधिक महत्त्वपूर्ण है कि न्यायालय स्वयं पर लगाए गए आरोपों पर चिंता व्यक्त करते हुए उन्हें गंभीरता से ले बजाए इसके कि आरोप लगाने वाले व्यक्ति को अवमानना की कार्रवाई के खतरे से डराया जाए, साथ ही अवमानना की कार्रवाई को और अधिक पारदर्शी बनाए जाने की अभी आवश्यकता है।

स्रोत: द हिंदू


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