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जैव विविधता और पर्यावरण

जुकू घाटी

  • 13 Jan 2021
  • 5 min read

चर्चा में क्यों ?

नगालैंड-मणिपुर सीमा पर स्थित जुकू घाटी (Dzukou Valley) की वनाग्नि पर काबू पा लिया गया है।

  • 90 वर्ग किमी. में फैली यह हरी-भरी घाटी पहले भी (वर्ष 2006, 2010, 2012 और 2015) वनाग्नि की चपेट में आई है।

Dzukou-Valley

प्रमुख बिंदु:

  • अवस्थिति: जुकू घाटी जिसे 'फूलों की घाटी' के रूप में जाना जाता है, नगालैंड और मणिपुर की सीमा पर स्थित है।
  • विशेषताएँ:
    • यह  2,438 मीटर की ऊंँचाई पर जापफू पर्वत शृंखला (Japfu Mountain Range) के पीछे स्थित है, यह उत्तर-पूर्व के सबसे लोकप्रिय ट्रेकिंग स्पॉट (Trekking Spots)  में से एक है।
      • जुकू घाटी और जापफू पर्वत पुलीबडज़े वन्यजीव अभयारण्य (नगालैंड) के समीप स्थित हैं।  
    • इन जंगलों के भीतर मानवीय आवास नहीं हैं, परंतु यह दुर्लभ और 'सुभेद्य ' (IUCN की रेड लिस्ट के अनुसार) पक्षी जिनमें बेलीथ ट्रगोपैन (नगालैंड का राज्य पक्षी), रूफस-नेक्ड हार्नबिल और डार्क-रुम्प्ड स्विफ्ट तथा कई अन्य पक्षी शामिल हैं, का आवास स्थल है। इसके अलावा जंगल में लुप्तप्राय वेस्टर्न हूलोक गिबन भी पाए जाते  हैं।
    • यह घाटी बाँस और घास की अन्य  प्रजातियों से आच्छादित है। घाटी में  जुकू लिली (लिलियम चित्रांगदा) सहित फूलों की कई स्थानिक प्रजातियाँ पाई जाती हैं।
    • इस घाटी को लेकर स्थानीय जनजातियों और मणिपुर/नगालैंड की राज्य सरकारों के बीच संघर्ष की स्थिति रहती है।
    • यहाँ अंगामी जनजाति के लोगों का निवास है।

वनाग्नि: 

  • विवरण:
    • वनाग्नि को बुश फायर (Bush Fire) भी कहा जाता है, इसे किसी भी प्राकृतिक व्यवस्था जैसे- जंगल, घास के मैदान, टुंड्रा आदि में पौधों के जलने (अनियंत्रित और गैर-निर्धारित दहन द्वारा) के रूप में वर्णित किया जा सकता है, यह प्राकृतिक ईंधन का उपयोग करते हुए पर्यावरणीय स्थितियों (हवा, स्थलाकृति) के आधार पर फैलती है।
  • कारण:
    • वनाग्नि की अधिकांश घटनाएँ मानव निर्मित होती हैं। मानव निर्मित कारकों में कृषि हेतु नए खेत तैयार करने के लिये वन क्षेत्र की सफाई, वन क्षेत्र के निकट जलती हुई सिगरेट या कोई अन्य ज्वलनशील वस्तु छोड़ देना आदि शामिल हैं।
    • उत्तर-पूर्व में वनाग्नि के प्रमुख कारणों में से एक स्लैश-एंड-बर्न (Slash-and-Burn) खेती विधि शामिल है, जिसे आमतौर पर झूम खेती कहा जाता है।
      • वनाग्नि की घटना प्रायः जनवरी और मार्च महीनों के मध्य देखी जाती है। उत्तर-पूर्व में उष्णकटिबंधीय सदाबहार वन पाए जाते हैं जो मध्य भारत में स्थित शुष्क पर्णपाती वनों के विपरीत आसानी से आग नहीं पकड़ते हैं।
  • प्रभाव:
    • वनाग्नि के कारण वैश्विक स्तर पर अरबों टन CO2 वायुमंडल में उत्सर्जित होती है, जबकि वनाग्नि और अन्य भूखंडों की आग के धुएँ के संपर्क में आने से बीमारियों के कारण सैकड़ों-हज़ारों लोगों की मौत हो जाती है।
  • भारतीय वन सर्वेक्षण (FSI) द्वारा जारी भारत वन स्थिति रिपोर्ट -2019 के अनुसार:
    • भारत में लगभग 21.40% वन आवरण आग की चपेट में हैं, उत्तर-पूर्वी क्षेत्र और मध्य भारत के जंगल सबसे अधिक असुरक्षित हैं।
    • जबकि देश में समग्र हरित आवरण में वृद्धि गई है, उत्तर-पूर्व विशेष रूप से मिज़ोरम, अरुणाचल प्रदेश और नगालैंड में वन आवरण घटा है। वनाग्नि इसका एक कारण हो सकती है।
  • सुरक्षात्मक उपाय: 
    • वनाग्नि पर राष्ट्रीय कार्य योजना (National Action Plan on Forest Fire), 2018
    • वनाग्नि निवारण और प्रबंधन योजना

स्रोत: द हिंदू

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