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डेली न्यूज़

  • 09 Jun, 2020
  • 63 min read
अंतर्राष्ट्रीय संबंध

भारत-चीन मैराथन बैठक

प्रीलिम्स के लिये:

दोनों देशों के मध्य सम्पन्न बैठक के  मुख्य बिंदु तथा स्थान 

मेन्स के लिये:

वार्ता में शामिल मुख्य क्षेत्रों का सामरिक महत्त्व  

चर्चा में क्यों?

हाल ही में पूर्वी लद्दाख क्षेत्र में वास्तविक नियंत्रण रेखा ( Line of Actual Control-LAC) पर भारत-चीन के मध्य उत्पन्न हुए गतिरोध को समाप्त करने के लिये दोनों देशों के मध्य ‘चुशुल-मोलडो सीमा बिंदु’ (Chushul-Moldo Border Point) पर लेफ्टिनेंट जनरल स्तरीय बैठक संपन्न हुई।

प्रमुख बिंदु:

  • इस बैठक में भारत का प्रतिनिधित्व 14 वीं कोर के कमांडर लेफ्टिनेंट जनरल हरिंदर सिंह द्वारा किया गया तथा चीन का प्रतिनिधित्व दक्षिण शिनज़ियांग सैन्य ज़िले के कमांडर मेजर जनरल लिन लियू द्वारा किया गया

वार्ता में शामिल मुख्य मुद्दे:

  • इस वार्ता में शामिल मुख्य मुद्दों में पैंगोंग त्सो क्षेत्र (Pangong Tso Area) तथा गालवान क्षेत्र ( Galwan Region) रहे। 
  • पैंगोंग त्सो क्षेत्र पूर्वी लद्दाख में स्थित है । भारत द्वारा चीनी सेना के पूर्वी लद्दाख क्षेत्र में 8 किलोमीटर पश्चिम की ओर आगे बढ़कर टेंट स्थापित करने तथा सैन्य गतिविधियाँ संचालित करने को लेकर इस बैठक में आपत्ति दर्ज़ की गई ।
  • वहीं दूसरी तरफ बैठक में अक्साई चिन (पूर्वी लद्दाख क्षेत्र) में स्थित गालवान क्षेत्र में भारत द्वारा किये जा रहे निर्माण कार्य का विरोध  चीन द्वारा किया गया।
    • यहाँ विरोध का मुख्य कारण गलवान घाटी को दारबुक, शयोक, दौलत बेग ओल्डी से जोड़ने वाली 255 किलोमीटर लंबी सड़क का निर्माण कार्य है।
    • इस सड़क के बन जाने से लेह से दौलत बेग ओल्डी तक पहुँचने में कम समय लगेगा जिसके चलते यह सड़क भारत को सामरिक दृष्टि में मज़बूती प्रदान करेगी।

समाधान: 

  • दोनों देशों द्वारा मौज़ूदा स्थिति की समीक्षा की गई तथा इस बात पर ज़ोर दिया गया कि एक दूसरे के साथ शांतिपूर्ण, स्थिर और संतुलित संबंधों को कायम करने की आवश्यकता है। 
  • दोनों पक्षों द्वारा वर्ष2020 में दोनों देशों के बीच राजनयिक संबंधों की स्थापना की 70 वीं वर्षगांठ को चिह्नित किया गया। 
  • दोनों देश इस बात पर भी सहमत थे कि दोनों को एक-दूसरे की भावनाओं, चिंताओं और महत्त्वाकांक्षाओं का सम्मान करते हुए शांतिपूर्ण बातचीत के माध्यम से अपने मतभेदों को दूर करना होगा।
  • दोनों ही पक्षों द्वारा अपनी-अपनी समस्याएँ एक दूसरे के समक्ष प्रस्तुत की गई।
  • भारत द्वारा चीन से पूर्व स्थिति अर्थात चीनी सेना को  20 अप्रैल 2020 की स्थिति में लौटने को कहा गया है। बैठक की समाप्ति सौहार्दपूर्ण माहौल में हुई।

आगे की राह:

वर्तमान हालातों को ध्यान में रखते हुए ऐसे नहीं कहा जा सकता कि यह भारत और चीन के बीच यह अंतिम सीमा विवाद है। यह कदम चीन के एक कदम पीछे तथा दो कदम आगे चलने की उसकी व्यापक रणनीति का ही हिस्सा है। ऐसे में भारत को इसकी काट के लिये हमेशा तैयार रहना होगा। दोनों देशों के बीच इस तरह की वार्ताएं भारत-चीन सीमा क्षेत्रों में शांति द्विपक्षीय संबंधों के समग्र विकास के लिये आवश्यक है तथा इससे आगे भी बातचीत का रास्ता खुला हुआ रहेगा।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


भूगोल

असम गैस रिसाव की दुर्घटना

प्रीलिम्स के लिये:

असम के तेल उत्पादन क्षेत्र, पारंपरिक प्राकृतिक गैस, शेल गैस, कोल-बेड मिथेन, संबंधित प्राकृतिक गैस

मेन्स के लिये:

भारत में पेट्रोलियम भंडार 

चर्चा में क्यों?

हाल ही में असम के तिनसुकिया ज़िले में ‘ऑयल इंडिया लिमिटेड’ (Oil India Limited- OIL) के बागान (Baghjan) गैस कुएँ में तेल रिसाव के बाद गैस रिसाव को रोकने के लिये सिंगापुर की एक फर्म को बुलाया गया।

प्रमुख बिंदु:

  • दुर्घटना के बाद आसपास के गाँवों के लोगों की निकासी की गई परंतु अनेक प्रकार की मत्स्य प्रजातियों तथा लुप्तप्राय गंगा डॉल्फिन की मृत्यु हो गई है।
  • सामान्यत: इस कुएँ से प्रतिदिन 2,700 पाउंड प्रति वर्ग इंच (PSI) दाब के साथ 80,000 मानक घन मीटर प्रतिदिन (SCMD) गैस का उत्पादन किया जाता है। परंतु वर्तमान में गैस रिसाव दर 4,200 पाउंड प्रति वर्ग इंच (PSI) के दाब के साथ 90,000 मानक घन मीटर (SCMD) गैस प्रतिदिन  है। 

दुर्घटना का कारण:

  • कुएँ में गैस के दबाव को यदि समय रहते नियंत्रित नहीं किया गया तो कुएँ में अचानक आघात से विस्फोट हो सकता है।
  • दुर्घटना के पीछे कई संभावित कारण जैसे- निरीक्षण की कमी, खराब रखरखाव, तकनीकी कारण आदि हो सकते हैं।

गैस रिसाव के नियंत्रण में समस्या:

  • गैस रिसाव को नियंत्रण करना मुश्किल है क्योंकि गैस रिसाव का दबाव बहुत अधिक है। दूसरा गैस भंडार में नियंत्रण कार्य के दौरान किसी भी समय आग लगने की संभावना रहती है।
  • इस प्रकार के गैस रिसाव में स्वत: दबाव कम होने में कई महीनों का समय लगता है अत: गैस के कुओं में पानी को पंप करना एक कारगर तरीका हो सकता है ताकि गैस में आग न लगे।

गैस रिसाव का प्रभाव:

  • लगभग 2,500 से 3,000 लोगों की निकासी करके राहत शिविरों में भेजा गया है। गैस रिसाव से ‘नदी डॉल्फिन’ तथा अनेक प्रकार की मछलियों की मृत्यु हो गई। स्थानीय लोगों ने आँखों में जलन, सिरदर्द आदि जैसे लक्षणों की शिकायत की है।
  • यहाँ ध्यान देने योग्य तथ्य यह है कि पास में मगुरी-मोटापुंग वेटलैंड (Maguri-Motapung Wetland) है, जिसे एक महत्त्वपूर्ण पक्षी क्षेत्र के रूप में अधिसूचित किया (Important Bird Area- IBA) गया है। लगभग 900 मीटर की हवाई दूरी पर डिब्रू-सैखोवा राष्ट्रीय उद्यान है। राष्ट्रीय उद्यान में वनस्पतियों तथा वन्य जीवों की कुछ दुर्लभ प्रजातियाँ पाई जाती हैं।

प्राकृतिक गैस (Natural Gas):

  • प्राकृतिक गैस एक जीवाश्म ईंधन आधारित ऊर्जा स्रोत है। प्राकृतिक गैस में कई अलग-अलग यौगिक होते हैं। प्राकृतिक गैस का सबसे बड़ा घटक मीथेन है। मीथेन के अलावा प्राकृतिक गैस में कार्बन डाइऑक्साइड, जल वाष्प आदि भी पाए जाते हैं।
  • इसका उपयोग उर्वरक, प्लास्टिक तथा अन्य व्यावसायिक रूप से महत्त्वपूर्ण कार्बनिक रसायनों के निर्माण, ताप विद्युत गृहों में किया जाता है। 

परंपरागत  प्राकृतिक गैस

(Conventional Natural Gas- CNG):

  • जब प्राकृतिक गैस बड़े चट्टानीय रिक्त स्थान के बीच पाई जाती है तो इसे परंपरागत प्राकृतिक गैस कहा जाता है। 

शेल गैस (Shale Gas):

  • जब प्रकृतिक गैस लघु चट्टानीय भागों, शेल, बलुआ पत्थर तथा अन्य प्रकार की अवसादी चट्टान के बीच छोटे छिद्रों (स्थानों) में पाई जाती है तो इसे शेल गैस (Shale Gas) के रूप में जाना जाता है।

संबंधित प्राकृतिक गैस (Associated Natural Gas): 

  • कच्चे तेल के भंडारों के साथ पाई जाने वाली प्राकृतिक गैस को ‘संबंधित प्राकृतिक गैस’ कहा जाता है। 

कोल-बेड मिथेन (Coal-Bed Methane- CBM)

  • जबकि कोयले के भंडार के साथ पाई जाने वाली प्राकृतिक गैस को कोल-बेड मिथेन कहा जाता है।

Schematic-geology

असम के तेल उत्पादन क्षेत्र:

  • अपरिष्कृत पेट्रोलियम टर्शियरी युग की अवसादी शैलों में पाया जाता है। वर्ष 1956 तक असम में डिगबोई एकमात्र तेल उत्पादक क्षेत्र था। असम में डिगबोई, नहरकटिया तथा मोरान महत्त्वपूर्ण तेल उत्पादक क्षेत्र हैं। तमिलनाडु का पूर्वी तट, ओडिशा, आंध्र प्रदेश, त्रिपुरा, राजस्थान तथा गुजरात एवं महाराष्ट्र में अन्य महत्त्वपूर्ण पेट्रोलियम भंडार पाए जाते हैं।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


शासन व्यवस्था

COVID-19 के प्रसार को रोकने में ‘सोशल बबल्स’ की भूमिका

प्रीलिम्स के लिये 

सोशल बबल्स, COVID-19

मेन्स के लिये

स्वास्थ्य क्षेत्र पर COVID-19 का प्रभाव, COVID-19 के प्रसार को रोकने के प्रयास 

चर्चा में क्यों?

हाल ही में ‘नेचर ह्यूमन विहेवियर’ (Nature Human Behaviour) नामक पत्रिका में प्रकाशित एक अध्ययन के अनुसार, COVID-19 संक्रमण के वक्र (Curve) को सपाट रखने के लिये ‘सोशल बबल्स’ (Social Bubbles) का विकल्प एक बेहतर रणनीति हो सकती है।

प्रमुख बिंदु:

  • COVID-19 के प्रसार को रोकने हेतु विश्व के विभिन्न देशों में लागू लॉकडाउन के बीच अपने घरों तक सीमित लोगों के आर्थिक और मनोवैज्ञानिक बोझ को कम करने के लिये सरकारों पर प्रतिबंधों को कम करने का दबाव बढ़ा है।
  • विश्व के कई देशों में COVID-19 के मामलों में हो रही वृद्धि के बावजूद भी सरकारों ने प्रतिबंधों में कुछ छूट देनी शुरू कर दी है। 
  • ऐसे में प्रतिबंधों में छूट के दौरान COVID-19 संक्रमण की दूसरी लहर से बचने की अनेक रणनीतियों में से एक ‘सोशल बबल’ के विकल्प को प्रभावी बताया गया है 

क्या है ‘सोशल बबल’?   

  • यह विचार न्यूज़ीलैंड में अपनाए गए घरों के ‘बबल्स’ (Bubbles) अर्थात बुलबुलों के मॉडल पर आधारित है, जहाँ इन ‘बबल्स’ से आशय ऐसे विशेष सामाजिक समूहों से है जिन्हें इस महामारी के दौरान एक-दूसरे से मिलने की अनुमति दी गई है।  
  • मूल रूप से न्यूज़ीलैंड के मॉडल के तहत एक ‘बबल’ से आशय एक परिवार के लोगों से है जो एक साथ रहते हैं।  
  • इसके तहत अलर्ट के तीसरे चरण में लोगों को अपने ‘बबल’ के दायरे में थोड़ी वृद्धि करने की अनुमति है, जिसमें वे देखभाल करने वाले सहायकों या साझा देखभाल में रह रहे बच्चों को अपने समूह में शामिल कर सकते हैं।
  • साथ ही यह उन लोगों पर भी लागू होगा जो अकेले रहते हैं अथवा ऐसे लोग जो किसी एक या दो लोगों के संपर्क में रहना चाहते हैं।
    • ऐसे लोगों का एक ही घर में रहना अनिवार्य ही नहीं है परंतु उनका एक ही इलाके का होना अनिवार्य है।
    • इस मॉडल के तहत यदि किसी व्यक्ति में COVID-19 के लक्षण पाए जाते हैं तो उस स्थिति में संक्रमण के प्रसार को रोकने के लिये समूह के सभी लोगों को क्वारंटीन (Quarantine ) कर दिया जाएगा।   
  • इस छूट का उद्देश्य COVID-19 संक्रमण की श्रृंखला के खतरे को सीमित रखते हुए लोगों पर लॉकडाउन के दुष्प्रभावों को कम करना था। 
  • पिछले माह यूनाइटेड किंगडम (United Kingdom- UK) में लॉकडाउन को समाप्त करने की रणनीति के तहत लोगों को अपने अलावा एक और परिवार के लोगों को अपने समूह में जोड़ने की अनुमति दी गई।

प्रभाव:  

  • ‘लंदन स्कूल ऑफ इकॉनॉमिक्स एंड पॉलिटिकल साइंस’ (London School of Economics and Political Science) द्वारा प्रकाशित एक शोध के अनुसार, सोशल बबल्स की अवधारणा न्यूज़ीलैंड के मामले में प्रभावी साबित हुई, क्योंकि इसके माध्यम से अलग-थलग, कमज़ोर या किसी परेशानी में रह रहे लोगों को आवश्यक देखभाल और सहायता उपलब्ध कराई जा सकी।
  • इसके अतिरिक्त यह नीति विश्व के अन्य देशों में भी लोगों को सोशल डिस्टेंसिंग के नियमों का पालन करने के लिये प्रेरित करते हुए उन्हें आवश्यक देखभाल और सहायता उपलब्ध कराने में प्रभावी हो सकती है।

लाभ:

  • इस प्रक्रिया के माध्यम से COVID-19 या किसी अन्य संक्रामक बीमारी के प्रसार की संभावनाओं को सीमित करते हुए लॉकडाउन के कारण उत्पन्न हुई चुनौतियों को कम करने में सहायता प्राप्त हो सकती है।
  • साथ ही इसके माध्यम से प्रतिबंधों में अधिक सख्ती रखे बगैर संक्रमण के प्रसार को रोका जा सकता है।
  • ‘सोशल बबल’ को नियोक्ताओं द्वारा विभागों या कार्य इकाइयों में कर्मचारियों के समूह बनाकर लागू किया जा सकता है।
    • उदाहरण के लिये- अस्पतालों और अतिआवश्यक कर्मचारियों के मामलों में अलग-अलग पाली/सिफ्ट (Sift) में एक ही समूह के लोगों को तैनात कर संक्रमण के खतरे को कम किया जा सकता है।
  • इस अध्ययन के लेखकों के अनुसार, ऐसे छोटे समूहों में संक्रमण का खतरा बहुत ही कम होगा और यदि समूह का कोई व्यक्ति संक्रमित भी हो जाता है तो इसका प्रसार अन्य समूहों में नहीं होगा।

निष्कर्ष: वर्तमान में COVID-19 के किसी प्रमाणिक उपचार के अभाव में इस बीमारी के प्रसार को रोकना अति महत्त्वपूर्ण है। COVID-19 के प्रसार को रोकने के लिये विश्व के विभिन्न देशों में लागू लॉकडाउन के दौरान लोगों को विभिन्न प्रकार की आर्थिक और मनोवैज्ञानिक चुनौतियों का सामना करना पड़ा। ऐसी स्थिति में ‘सोशल बबल’ के माध्यम से इस बीमारी के प्रसार के खतरों को सीमित करते हुए लॉकडाउन से उत्पन्न चुनौतियों को कम करने में सहायता प्राप्त हो सकती है।   

स्रोत: द इंडियन एक्सप्रेस  


आंतरिक सुरक्षा

खालिस्तान आंदोलन और ऑपरेशन ब्लूस्टार

प्रीलिम्स के लिये

खालिस्तान आंदोलन, ऑपरेशन ब्लूस्टार

मेन्स के लिये

‘ऑपरेशन ब्लूस्टार’ के परिणाम और प्रभाव, खालिस्तान आंदोलन का मौजूदा स्वरूप

चर्चा में क्यों?

ऑपरेशन ब्लूस्टार की 36 वीं वर्षगाँठ पर अकाल तख्त के जत्थेदार ज्ञानी हरप्रीत सिंह ने कहा कि यदि सरकार खालिस्तान प्रदान करती है, सिख समुदाय इसे स्वीकार करेगा।

प्रमुख बिंदु

  • उल्लेखनीय है कि ऑपरेशन ब्लूस्टार की बरसी पर खालिस्तान समर्थित नारेबाज़ी करना अब एक वार्षिक कार्यक्रम बन गया है।
  • वहीं ऑपरेशन ब्लूस्टार के बाद यह पहली बार था जब सिख भक्तों को कार्यक्रम के दौरान स्वर्ण मंदिर परिसर में प्रवेश करने की अनुमति नहीं दी गई।

खालिस्तान आंदोलन 

  • खालिस्तान आंदोलन एक सिख अलगाववादी आंदोलन है, जो पंजाब क्षेत्र में ‘खालिस्तान’ ('खालसा की भूमि') नामक एक संप्रभु राज्य की स्थापना करके सिखों के लिये एक मातृभूमि बनाने की मांग कर रहा है।
  • कई विशेषज्ञ खालिस्तान आंदोलन की जड़ों को भारतीय स्वतंत्रता के इतिहास में खोजते हैं, उल्लेखनीय है कि वर्ष 1947 में प्राप्त हुई भारतीय स्वतंत्रता पंजाब के सभी सिखों के लिये एक समान नहीं थी, बँटवारे/विभाजन ने पाकिस्तान में अपने पुरखों की ज़मीन छोड़ कर आ रहे सिखों के मन में एक असंतोष पैदा कर दिया था।
  • वास्तव में पंजाबी भाषी लोगों के लिये एक अलग राज्य की मांग पंजाबी सूबा आंदोलन (Punjabi Suba Movement) से मानी जाती है। इतिहासकार मानते हैं कि यह पहला अवसर था जब पंजाब को भाषा के आधार पर अलग करने की मांग राष्ट्रीय राजनीति के पटल पर आई।
    • धीरे-धीरे इस आंदोलन के तहत पंजाब क्षेत्र को भाषीय आधार पर पंजाबी तथा गैर-पंजाबी क्षेत्रों में विभाजित करने की मांग ज़ोर पकड़ने लगी।
  • किंतु समय के साथ इस आंदोलन ने सांप्रदायिक रंग लेना शुरू कर दिया और पंजाब के सिखों ने पंजाबी को अपनी मातृभाषा और हिंदुओं ने हिंदी को अपनी मातृभाषा के रूप में घोषित कर दिया।
  • इसी बीच अकाली दल नाम से एक राजनीतिक समूह का गठन हुआ और इस समूह के नेतृत्त्व में पंजाब के सभी क्षेत्रों में एक अलग पंजाबी राज्य की मांग और भी तेज़ होने लगी।
  • वर्ष 1966 में इसी आंदोलन के परिणामस्वरूप भाषा के आधार पर पंजाब, हरियाणा और केंद्रशासित प्रदेश चंडीगढ़ की स्थापना हुई।
  • कुछ जानकार पूर्ण ‘खालिस्तान’ आंदोलन की नींव को वर्ष 1966 में पंजाब, हरियाणा और चंडीगढ़ के गठन के बाद हुए विवादों में भी खोजते हैं। 
  • ‘खालिस्तान’ के रूप में एक स्वायत्त राज्य की मांग 1980 के दशक में और भी ज़ोर पड़ने लगी और मांग तेज़ होने के साथ इसका नाम ‘खालिस्तान आंदोलन’ पड़ा।
    • पंजाब के विरुद्ध भारत सरकार के पक्षपात और रावी तथा ब्यास नदी के पानी के विभाजन को लेकर हुए विवाद को भी इस आंदोलन का एक कारण मानते हैं।
  • इसी बीच एक चरमपंथी सिख नेता के रूप में 'दमदमी टकसाल' के जरनैल सिंह भिंडरावाला की लोकप्रियता भी काफी बढ़ने लगी, माना जाता है कि जरनैल सिंह भिंडरावाले ने ही खालिस्तान को चरमपंथी आंदोलन का रूप दिया था।

ऑपरेशन ब्लूस्टार

  • ‘खालिस्तान’ आंदोलन के एक हिंसक रूप धारण करने के बाद पंजाब में आतंकी घटनाओं में काफी तेज़ी आने लगी। समय के साथ तेज़ होती इस प्रकार की घटनाएँ और जरनैल सिंह भिंडरावाले की बढ़ती लोकप्रियता तत्कालीन सरकार के लिये एक प्रमुख चुनौती बन गईं।
  • स्थिति के मद्देनज़र तत्कालीन सरकार ने ‘ऑपरेशन ब्लूस्टार’ के कार्यान्वयन का निर्णय लिया और 1-3 जून 1984 के बीच पंजाब में सड़क परिवहन और हवाई सेवाओं को पूरी तरह से रोक दिया गया। साथ ही  स्वर्ण मंदिर में पानी और बिजली की सप्लाई को भी रोक दिया गया।
  • 6 जून, 1984 को स्वर्ण मंदिर के भीतर भारतीय सेना द्वारा एक व्यापक अभियान चलाया गया और जरनैल सिंह भिंडरवाला तथा उसके समर्थकों की मृत्यु हो गई। 7 जून, 1984 को स्वर्ण मंदिर भारतीय सेना के नियंत्रण में था।
  • इस ऑपरेशन को लेकर भारत सरकार द्वारा जारी आधिकारिक आँकड़ों के अनुसार, ऑपरेशन ब्लूस्टार में भारतीय सेना के कुल 83 जवानों की मौत हुई और 249 जवान घायल हुए। वहीं इस बीच 493 से अधिक आतंकी और आम लोग की भी मौत हुई।

ऑपरेशन ब्लूस्टार का परिणाम 

  • ‘ऑपरेशन ब्लूस्टार’ में कई आम नागरिकों की भी मृत्यु हुई जिसके परिणामस्वरूप सिख समुदाय के बड़े हिस्से में भारत विरोधी भावनाएं काफी प्रबल होने लगीं।
  • इस ऑपरेशन के कारण उत्पन्न हुई भारत विरोधी भावनाओं का परिणाम था कि इस ऑपरेशन के मात्र 4 महीने बाद ही 31 अक्तूबर, 1984 को तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की उनके ही 2 सिख सुरक्षाकर्मियों द्वारा हत्या कर दी गई।
  • तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की हत्या के बाद पूरे भारत में सिखों के विरुद्ध व्यापक दंगे हुए, जिसके कारण भारत समेत विश्व भर में बसे हुए सिखों के मन में भारत विरोधी भावनाएँ और अधिक प्रबल होने लगीं।
  • 1980 के दशक से 1990 के दशक के प्रारंभ तक पंजाब व्यापक आतंकवाद के दौर से गुजरा। हालाँकि समय के साथ यह आंदोलन भी धीमा होता गया और पंजाब प्रशासन को पंजाब में हो रहीं आतंकी घटनाएँ रोकने में सफलता मिली।
  • हालाँकि ‘ऑपरेशन ब्लूस्टार’ की समाप्ति के बाद भी कई अवसरों पर हिंसक घटनाओं के रूप में खालिस्तान की विचारधारा की आवाज़ सुनाई दी है।

खालिस्तान आंदोलन का मौजूदा स्वरूप

  • वर्तमान में खालिस्तान आंदोलन भारत में एक निष्क्रिय आंदोलन है और पंजाब के शहरी तथा ग्रामीण आबादी में इसके प्रति कुछ खास आकर्षण दिखाई नहीं देता है।
  •  हालाँकि भारत के बाहर रहने वाले सिखों में इस आंदोलन का कुछ प्रभाव देखने को मिलता है, और समय-समय पर इस आंदोलन के समर्थन में नारे सुनाई देते हैं।
  • कुछ विदेशी शक्तियों द्वारा इस आंदोलन को पुनर्जीवित करने का भी प्रयास किया जा रहा है, ताकि भारत में अशांति और असंतोष फैलाया जा सके।

स्रोत: द हिंदू


जैव विविधता और पर्यावरण

जीभ की कैंसर कोशिकाएँ

प्रीलिम्स के लिये:

माइक्रोआरएनए के बारे में 

मेन्स के लिये:

‘miR-155’ का चिकित्सा विज्ञान में महत्त्व 

चर्चा में क्यों?

हाल ही में भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान-मद्रास (IIT Madras), कैंसर संस्थान- चेन्नई के श्री बालाजी डेंटल कॉलेज अस्पताल तथा भारतीय विज्ञान संस्थान, बंगलूरु (IISc) के शोधकर्त्ताओं की एक टीम ने एक विशेष माइक्रोआरएनए (microRNA- miRNAs) की पहचान की है जो जीभ का कैंसर होने पर अत्यधिक सक्रिय रूप से दिखाई देता है।

प्रमुख बिंदु: 

  • शोधकर्त्ताओं द्वारा इस माइक्रोआरएनए को ‘miR-155’ नाम दिया गया है। 
    • ये ऐसे नॉन कोडिंग RNA हैं जो कैंसर को पनपने में मदद करने के साथ ही विभिन्न जैविक और नैदानिक प्रक्रियाओं को नियंत्रित करने में भी शामिल होते हैं। ऐसे में जीभ के कैंसर के इलाज के लिये इन RNAs में बदलाव कर उपचार की नई तकनीक विकसित करने की संभावनाओं का पता लगाया जा सकता है।
  • इस शोध कार्य को मॉलिक्यूलर एंड सेल्युलर बायोलॉजी जर्नल (Molecular and Cellular Biology) में प्रकाशित किया गया है।
  • miRNA कुछ प्रोटीन के कार्यों को बाधित या सक्रिय कर कैंसर के प्रसार को प्रभावित करता है। उदाहरण के लिये प्रोग्राम्ड सेल डेथ 4 (Programmed Cell Death 4’-PDCD4) जो एक प्रकार का प्रोटीन है, कैंसर कोशिकाओं को बढ़ने और फैलने से रोकने में मदद करता है। इस प्रोटीन में किसी किस्म की रुकावट मुख फेफड़े, स्तन, यकृत, मस्तिष्क और पेट के कैंसर के फैलने का मुख्य कारण बनती है।
  • शोधकर्ताओं की टीम ने यह दर्शाने का प्रयास किया है कि किस तरह से miR-155 को निष्क्रिय करने या उसका दमन करने से कैंसर कोशिकाएँ मृत हो जाती हैं और कोशिकाओं के पनपने का चक्र समाप्त हो जाता है। उल्लेखनीय है कि लंबे समय से यह माना जा रहा है कि miR-155, PDCD4 को डाउनरेगुलेट करता है लेकिन अभी तक इसका कोई प्रमाण नहीं मिला है।

माइक्रोआरएनए (miRNAs):

  • MicroRNAs जीन अभिव्यक्ति के नियमन में शामिल 20 से 24 न्यूक्लियोटाइड युक्त छोटे, अत्यधिक संरक्षित नॉन-कोडेड RNAs होते हैं।
  • MiRNAs का मुख्य कार्य अन्य जीनों की अभिव्यक्ति को शांत करना होता है।
  • MicroRNAs को पहले से ही जीभ के कैंसर में एक ओंकोजीन (Oncogene) के रूप में पहचाना जाता है। 
    • कैंसर से जुड़े MicroRNAs को ओंकोमीर्स या ओंकोमीआर (Oncomirs) कहा जाता है।  
    • ये कैंसर फैलाने  वाली कोशिकाओं का दमन कर कैंसर को फैलने से रोकने में मदद करते हैं। 
    • कुछ ओंकोमीर्स कैंसर को पनपने से भी रोकते हैं।

खोज़ का महत्त्व: 

  • MiR-155  में आणविक स्तर पर बदलाव के माध्यम से PDCD4 को बहाल किये जाने से  कैंसर और विशेषकर जीभ के कैंसर के उपचार के लिये नई तकनीक विकसित की जा सकती है।
  • miRNA के मैनीपुलेशन (Manipulation) को पारंपरिक कैंसर उपचार विधियों जैसे- कीमोथेरेपी, रेडियोथेरेपी तथा इम्यूनोथेरेपी के साथ जोड़कर देखा जा सकता है।

स्रोत: द हिंदू


भारतीय अर्थव्यवस्था

कर सुधार

प्रीलिम्स के लिये

सरकार द्वारा किये गए प्रमुख कर सुधार 

मेन्स के लिये

सरकार द्वारा किये गए कर सुधारों के प्रभाव

चर्चा में क्यों?

वित्त मंत्रालय के अनुसार, वित्तीय वर्ष 2018-19 में हुए शुद्ध प्रत्यक्ष कर संग्रह की तुलना में वित्त वर्ष 2019-20 में शुद्ध प्रत्यक्ष कर संग्रह में कमी हुई है, किंतु प्रत्यक्ष करों के संग्रह में हुई यह गिरावट संभावनाओं के अनुरूप ही है।

प्रमुख बिंदु

  • वित्त मंत्रालय के अनुसार, सरकार द्वारा लागू किये गए ऐतिहासिक कर सुधारों के साथ-साथ वित्त वर्ष 2019-20 के दौरान काफी अधिक रिफंड जारी किये जाने के कारण यह गिरावट अस्थायी है।
  • उल्लेखनीय है कि वित्त वर्ष 2019-20 के दौरान कुल 1.84 लाख करोड़ रुपए का रिफंड जारी किया गया था, जो कि वित्त वर्ष 2018-19 में किये गए 1.61 लाख करोड़ रुपए के रिफंड की तुलना में काफी अधिक है।

प्रमुख कर सुधार

  • निगम कर की दर में कमी 
    • विकास और निवेश को बढ़ावा देने के लिये सरकार ने कराधान कानून (संशोधन) अध्यादेश, 2019 के माध्यम से एक ऐतिहासिक कर सुधार लागू किया है, जिसके तहत वित्त वर्ष 2019-20 से सभी मौजूदा घरेलू कंपनियों के लिये 22 प्रतिशत की रियायती कर व्यवस्था प्रदान की गई, बशर्ते कि वे किसी भी निर्दिष्ट छूट या प्रोत्साहन का लाभ न उठाएँ। 
    • इसके अलावा, इन कंपनियों को न्यूनतम वैकल्पिक कर (Minimum Alternate Tax-MAT) के भुगतान से भी छूट दे दी गई है। 
  • नई विनिर्माण घरेलू कंपनियों हेतु प्रोत्साहन
    • विनिर्माण क्षेत्र में निवेश आकर्षित करने के लिये कराधान कानून (संशोधन) अध्यादेश 2019 के माध्यम से नई विनिर्माण घरेलू कंपनी के लिये कर की दर को घटाकर 15 प्रतिशत कर दिया गया है, बशर्ते कि इस तरह की कंपनी किसी भी निर्दिष्ट छूट या प्रोत्साहन का लाभ न उठाए। इन कंपनियों को भी न्यूनतम वैकल्पिक कर (MAT) के भुगतान से छूट दी गई है।
  • न्यूनतम वैकल्पिक कर की दर में कटौती
    • सरकार ने कंपनियों को राहत प्रदान करने के लिये न्यूनतम वैकल्पिक कर (Minimum Alternate Tax-MAT) की दर भी 18.5 प्रतिशत से घटाकर 15 प्रतिशत कर दी गई है।
  • आयकर में छूट 
    • 5 लाख रुपये तक की कर योग्य आय वाले व्यक्तियों को आयकर के भुगतान से पूरी तरह राहत प्रदान करने के लिए वित्त अधिनियम, 2019 के माध्यम से 100 प्रतिशत कर छूट प्रदान की गई है। 
    • इसके अलावा, वेतनभोगी करदाताओं को राहत देने के लिये वित्त अधिनियम, 2019 के माध्यम से मानक कटौती (Standard Deduction) को 40,000 रुपए से बढ़ाकर 50,000 रुपए कर दिया गया है।

उपरोक्त सुधारों का राजस्व प्रभाव निगम कर के लिये 1.45 लाख करोड़ रुपए और व्यक्तिगत आयकर के 23,200 करोड़ रुपए आंका गया है।

  • लाभांश वितरण कर (Dividend Distribution Tax-DDT) की समाप्ति 
    • सरकार ने भारतीय इक्विटी बाज़ार का आकर्षण बढ़ाने और निवेशकों के एक बड़े वर्ग को राहत देने के लिये वित्त अधिनियम, 2020 के माध्यम से लाभांश वितरण कर (DDT) को समाप्त कर दिया है, जिसके तहत कंपनियों को 01.04.2020 से डीडीटी का भुगतान करने की आवश्यकता नहीं है।
  • विवाद से विश्वास
    • वर्तमान समय में बड़ी संख्‍या में प्रत्यक्ष करों से संबंधित विवाद अधिनिर्णय के विभिन्न स्तरों पर में लंबित हैं। इन कर विवादों में सरकार के साथ-साथ करदाताओं के संसाधनों का भी एक बड़ा हिस्सा लग जाता है और इसके साथ ही ये विवाद सरकार को समय पर राजस्व संग्रह से वंचित कर देते हैं। 
    • इन तथ्यों को ध्यान में रखते हुए लंबित कर विवादों के त्वरित समाधान की नितांत आवश्यकता महसूस की गई, जो न केवल समय पर राजस्व सृजित करके सरकार को लाभांवित करेगा, बल्कि करदाताओं को भी लाभांवित करेगा। ‘प्रत्यक्ष कर विवाद से विश्वास अधिनियम, 2020’ को 17 मार्च, 2020 को कानून का रूप दिया गया जिसके तहत फि‍लहाल विवादों को निपटाने के लिये घोषणाएँ दाखिल की जा रही हैं।
  • डिजिटल लेन-देन को बढ़ावा देना
    • अर्थव्यवस्था के डिजिटलीकरण को सुगम बनाने और बेहिसाब लेन-देन को कम करने के लिये विभिन्न उपाय किये गए हैं, जिनमें डिजिटल टर्नओवर पर अनुमानित लाभ की दर में कमी करना, लेन- देन के निर्दिष्‍ट तरीकों पर मर्चेंट डिस्काउंट रेट (Merchant Discount Rate-MDR) को हटाना, नकद लेन-देन के लिये प्रारंभिक सीमा को कम करना, कुछ विशेष नकदी लेन-देन पर रोक लगाना आदि शामिल हैं।
  • अपील दाखिल करने के लिए मौद्रिक सीमा बढ़ाना
    • करदाताओं की शिकायतों/मुकदमेबाजी में प्रभावकारी रूप से कमी लाने और मुख्यतः जटिल कानूनी मुद्दों एवं अधिक कर अदायगी वाले मुकदमों पर ही आयकर विभाग का ध्यान केंद्रित करने में मदद करने के लिये विभागीय अपील दाखिल करने हेतु आरंभिक मौद्रिक सीमा को आयकर अपील अधिकरण (Income Tax Appellate Tribunal) में अपील करने के लिये 20 लाख रुपए से बढ़ाकर 50 लाख रुपए, उच्च न्यायालय में अपील करने के लिये 50 लाख रुपए से बढ़ाकर 1 करोड़ रुपए और सर्वोच्च न्यायालय में अपील करने के लिए 1 करोड़ रुपए से बढ़ाकर 2 करोड़ रुपए कर दिया गया है।

स्रोत: पी.आई.बी.


जैव विविधता और पर्यावरण

एयरोसोल लक्षण तथा विकिरण प्रभाव

प्रीलिम्स के लिये:

एयरोसोल, ब्लैक कार्बन

मेन्स के लिये:

भारतीय मौसम प्रणाली को समझने में अध्ययन का महत्त्व  

चर्चा में क्यों?

हाल ही में भारत सरकार के ‘विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग’ (Department of Science and Technology- DST) के अधीन एक स्‍वायत्‍त अनुसंधान संस्‍थान ‘आर्यभट्ट रिसर्च इंस्टीट्यूट ऑफ ऑब्ज़र्वेशनल साइंसेज’ (Aryabhatta Research Institute of Observational Sciences- ARIES), नैनीताल के शोधकर्त्ताओं द्वारा देखा गया है कि ट्रांस हिमालय (Trans-Himalayas) पर स्वच्छ वातावरण होने के बावजूद वैश्विक औसत की तुलना में एयरोसोल विकिरण दबाव अधिक है जिसमें कुछ मात्रा में विकिरण का प्रभाव भी शामिल है।

Biomass-burning

प्रमुख बिंदु:

  • ‘साइंस ऑफ द टोटल एनवायरनमेंट’(Science of the Total Environment) पत्रिका में प्रकाशित शोध पत्र से पता चला है कि एयरोसोल के मासिक औसत वायुमंडलीय विकिरण के कारण प्रति दिन गर्मी की मात्रा 0.04-0.13 सेल्सियस की दर से बढ़ रही है।
  • इसके अलावा, लद्दाख क्षेत्र का तापमान पिछले 3 दशकों में प्रति दशक 0.3- 0.4 डिग्री सेल्सियस बढ़ रहा है।
  • वायुमंडलीय एयरोसोल पृथ्वी पर आने वाली सौर विकिरण की मात्रा तथा इसे अवशोषित करने के अलावा क्लाउड माइक्रोफिज़िक्‍स(Cloud Microphysics) को संशोधित करके क्षेत्रीय/वैश्विक जलवायु प्रणाली के निर्धारण में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
  • विकिरणकारी बल पर विभिन्न एरोसोल के प्रभाव को निर्धारित करने में उल्‍लेखनीय प्रगति होने के बावजूद एरोसोल अभी भी जलवायु परिवर्तन के आकलन की प्रमुख अनिश्चितताओं में से एक है।
  • इन अनिश्चितताओं को कम करने के लिये एयरोसोल गुणों के सटीक मापन की आवश्यकता होती है, विशेष रूप से समुद्रों और हिमालय में अत्‍यधिक ऊँचाई तथा दूरदराज़ वाले उन स्थानों पर जहाँ पर इनकी स्थिति दुर्लभ हैं।

अध्ययन का आधार:

  • वैज्ञानिकों द्वारा अपने अध्ययन में जनवरी, 2008 से दिसंबर, 2018 तक एयरोसोल के ऑप्टिकल, भौतिक और विकिरण संबंधी गुणों की परिवर्तनशीलता का विश्‍लेषण किया गया।
  • इसके अलावा एयरोसोल रेडिएटिव फोर्सिंग (Aerosol Radiative Forcing- ARF) में बारीक और मोटे कणों की भूमिका का भी आकलन किया।
  • इस अध्ययन में पता चलता है कि एयरोसोल ऑप्टिकल डेप्‍थ (Aerosol Optical Depth- AOD) द्वारा मई में एक उच्च (0.07) तथा सर्दियों के महीनों में निम्‍न (0.03) मान के साथ एक अलग प्रकार के मौसमी बदलाव का प्रदर्शन किया गया है। 
  • बसंत के मौसम में एंगस्‍ट्रम घातांक (Ångström Exponent- AE) का मान कम रहा, जो मोटे धूल कण (एयरोसोल) की उपस्थिति का सूचक है।
  • FMF  और SSA पर आधारित एयरोसोल के वर्गीकरण से विशेष रूप से बसंत के मौसम में (53 प्रतिशत) हानले (Hanle) और मर्क (Merak) (लेह से 200 किलोमीटर दूर स्थित) क्षेत्र में मध्यम आकार के मिश्रित एरोसोल के मौज़ूदगी का पता चला। शुद्ध और प्रदूषित धूल (Pure and Polluted Dust) में 16 प्रतिशत और 23 प्रतिशत के अंतर के साथ एयरोसोल को अवशोषित करने तथा 13 प्रतिशत से कम आवृत्ति के साथ ट्रांस-हिमालय में एंथ्रोपोजेनिक एयरोसोल (Anthropogenic Aerosols ) और ब्लैक कार्बन (Black Carbon) के क्षीण प्रभाव को प्रदर्शित किया गया है। 
  • इसके अलावा, हानले और मर्क क्षेत्र में वायुमंडल के शीर्ष पर एयरोसोल रेडियोएक्टिव फोर्सिंग का मान (-1.3 Wm-2) कम था।

ट्रांस हिमालय:

  • ट्रांस हिमालय के हिमालय के उत्तर में स्थित तीन पर्वत श्रेणियों को शामिल किया जाता है जिनमें शामिल हैं- काराकोरम पर्वत श्रेणी, लद्दाख पर्वत श्रेणी तथा जास्कर पर्वत श्रेणी।
  • ट्रांस हिमालय को पार हिमालय भी कहते हैं |
  • काराकोरम पर्वत श्रेणी ट्रांस हिमालय के सबसे उत्तर में स्थित है 

एयरोसोल रेडियोएक्टिव फोर्सिंग:

  • वायुमंडल के शीर्ष और सतह पर होने वाले विकिरण प्रवाह और वायुमंडल के भीतर विकिरण के अवशोषण पर पोजेनिक एयरोसोल का प्रभाव है।
  • इसके माध्यम से बादलों एवं वर्षा पर एरोसोल के द्वारा पड़ने वाले प्रभावों का अध्ययन किया जाता है। 

एंथ्रोपोज़ेनिक एरोसोल:

  • यह मानवजनित एयरोसोल के उदाहरण है। 
  • इनका निर्माण धुंध कण, प्रदूषक और धुएँ से होता है। 

अध्ययन का महत्त्व:

  • इस अध्ययन के द्वारा एयरोसोल ऑप्टिकल और माइक्रोफिज़िकल गुणों को बेहतर तरीके से समझने में मदद मिल सकती है। 
  • हिमालय के दूर-दराज़  के क्षेत्रों और इंडो-गैंगेटिक मैदानी इलाकों से प्रकाश द्वारा अवशोषित कार्बोनेसियस एयरोसोल (Carbonaceous Aerosols) तथा  धूल का परिवहन एक प्रमुख जलवायु समस्‍या है जो वायुमंडलीय गर्मी और हिमनद के प्रवाह पर गंभीर प्रभाव डालते हैं।
  • हिमालय पर यह गर्मी 'एलिवे‍टेड-हैट पंप' (Elevated-Hat Pump) की स्थिति बनाती है अर्थात ऐसी स्थिति जो भूमि तथा महासागर के बीच तापमान ढाल को मज़बूत देती है तथा वायुमंडलीय परिसंचरण और मानसूनी वर्षा में बदलाव के लिये भी ज़िम्मेदार है।
  • अतः इस अध्ययन के द्वारा एयरोसोल ऑप्टिकल और माइक्रोफिज़िकल गुणों की बेहतर समझ विकसित की जा सकती है जिसके द्वारा एयरोसोल जलवायु प्रभाव को ध्यान में रखते हुए वायुमंडलीय गर्मी और ट्रांस हिमालय क्षेत्र में हिम/ हिमनद की सफेदी में आये बदलाव के द्वारा एयरोसोल प्रभाव के मॉडलिंग में सुधार किया जा सकता है।

स्रोत: पीआईबी


विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी

एयरबोर्न रेस्क्यू पॉड फॉर आईसोलेटेड ट्रांसपोर्टेशन

प्रीलिम्स के लिये: 

एयरबोर्न रेस्क्यू पॉड फॉर आईसोलेटेड ट्रांसपोर्टेशन, पल्स-ऑक्सीमीटर 

मेन्स के लिये: 

दूरस्थ रोगी स्वास्थ्य निगरानी प्रणाली से संबंधित तथ्य 

चर्चा में क्यों? 

हाल ही में चंडीगढ़ स्थित भारतीय वायुसेना के ‘3 बेस रिपेयर डिपो’ (3 Base Repair Depot- BRD) ने ‘एयरबोर्न रेस्क्यू पॉड फॉर आईसोलेटेड ट्रांसपोर्टेशन’ (Airborne Rescue Pod for Isolated Transportation- ARPIT) तैयार किया है। 

प्रमुख बिंदु: 

  • गौरतलब है कि इस आईसोलेटेड ट्रांसपोर्टेशन पॉड का उपयोग ऊँचाई वाले क्षेत्रों, अलग-थलग स्थानों तथा दूरदराज़ के क्षेत्रों से COVID-19 या अन्य गंभीर ​संक्रामक ​रोगों से पीड़ित मरीज़ों को लाने के लिये किया जाएगा।  
  • दरअसल COVID-19 को महामारी घोषित ​किये जाने के बाद से हवाई यात्रा के दौरान ​COVID-19 रोगियों ​से संक्रमण फैलने के खतरे से निपटने के लिये एक अलग प्रकार की निकासी व्यवस्था की आवश्यकता महसूस की गई जिसके मद्देनज़र इस आईसोलेटेड ट्रांसपोर्टेशन पॉड का विकास किया गया है। 
  • स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय (Ministry of Health and Family Welfare), अस्पतालों और स्वास्थ्य सेवा प्रदाताओं के लिये राष्ट्रीय प्रत्यायन बोर्ड (National Accreditation Board for Hospitals & Healthcare Providers- NABH) और संयुक्त राज्य अमेरिका के रोग नियंत्रण केंद्र (Centre for Disease Control- CDC) द्वारा जारी किये गए दिशा-निर्देशों के आधार पर इसका डिज़ाइन  तैयार किया गया है।

CDC

विशेषताएँ:

  • ‘एयरबोर्न रेस्क्यू पॉड फॉर आईसोलेटेड ट्रांसपोर्टेशन’ को ​बनाने में केवल ​​स्वदेशी सामग्री का उपयोग किया गया है।
  • इसे विकसित करने में सिर्फ 60 हज़ार रुपए की लागत ​आई है, जबकि आयातित प्रणालियों का मूल्य 60 लाख रुपए है। अतः आयातित प्रणालियों की तुलना में यह बहुत सस्ता है।
  • ‘एयरबोर्न रेस्क्यू पॉड फॉर आईसोलेटेड ट्रांसपोर्टेशन’ के निर्माण में ​​​​​एविएशन प्रमाणित सामग्री ​​का उपयोग कर हलके वज़न के रूप में विकसित किया गया है।
  • इसमें रोगी को देखने के लिये एक पारदर्शी, टिकाऊ तथा उच्च गुणवत्ता वाली प्लास्टिक शीट लगाई गई है, जो मौजूदा मॉडलों की तुलना में ज्यादा बेहतर है।
  • यह प्रणाली चिकित्सा निगरानी उपकरणों के साथ रोगी को वेंटिलेशन की सुविधा प्रदान करती है।
  • वायु परिवहन में शामिल एयरक्रू, ग्राउंड क्रू और स्वास्थ्य देखभाल कर्मचारियों को संक्रमण के जोखिम से बचाने के लिये इस आइसोलेशन चैंबर में निरंतर उच्च नकारात्मक दबाव उत्पन्न करने की सुविधा उपलब्ध है।
  • जीवन रक्षक उपकरण (मल्टीपारा मॉनिटर, पल्स ऑक्सीमीटर, इन्फ्यूज़न पंप्स, इत्यादि) और स्वास्थ्य देखभाल करने वालो के लिये लंबे हाथ के दस्ताने भी उपलब्ध हैं।
  • ‘एयरबोर्न रेस्क्यू पॉड फॉर आईसोलेटेड ट्रांसपोर्टेशन’ में हाई एफिशिएंसी पार्टिकुलेट एयर (High Efficiency Particulate Air- HEPA) H-13 क्लास का फिल्टर उपयोग किया गया है।

पल्स-ऑक्सीमीटर (Pulse-Oximeter)

  • यह एक ऐसा यंत्र है जिसके माध्यम से मानव शरीर में ऑक्सीजन की मात्रा का पता लगाया जाता है। 
  • इसे उँगलियों, नाक, कान अथवा पैरों की उँगलियों में क्लिप की तरह लगाया जाता है। इसमें लगे सेंसर रक्त में ऑक्सीजन के प्रवाह तथा रक्त में ऑक्सीजन की मात्रा का पता लगाने में सक्षम होता है।

Pulse-Oximeter 

स्रोत: पीआईबी


भारतीय राजनीति

‘ऑनलाइन विवाद समाधान’ को बढ़ावा देना

प्रीलिम्स के लिये

ऑनलाइन विवाद समाधान

मेन्स के लिये:

ऑनलाइन विवाद समाधान से संबंधित तथ्य 

चर्चा में क्यों?

हाल ही में नीति आयोग (National Institution for Transforming India- NITI Aayog) ने ‘आगामी और ओमिदयार नेटवर्क इंडिया’ (Agami and Omidyar Network India) के साथ मिलकर ‘ऑनलाइन विवाद समाधान’ (Online Dispute Resolution- ODR) को आगे बढ़ाने हेतु वर्चुअल बैठक आयोजित की गई । 

प्रमुख बिंदु:

  • गौरतलब है कि वर्चुअल बैठक में सर्वोच्च न्यायालय के वरिष्ठ न्यायाधीश, प्रमुख सरकारी मंत्रालयों के सचिव, उद्योगजगत के अग्रणी लोग, कानून के विशेषज्ञ और प्रमुख  उद्यमियों ने भाग लिया।
  • इस बैठक का सामान्य विषय भारत में ‘ऑनलाइन विवाद समाधान’ को आगे बढ़ाने के प्रयास सुनिश्चित करने के लिये सहयोगपूर्ण रूप से कार्य करने की दिशा में बहु-हितधारक सह‍मति कायम करना था।
  • ‘ऑनलाइन विवाद समाधान’ (Online Dispute Resolution- ODR):
    • ऑनलाइन विवाद समाधान तंत्र से तात्पर्य वैकल्पिक विवाद समाधान (Alternate Dispute Resolution- ADR) की डिजिटल तकनीक का उपयोग कर विशेष रूप से छोटे और मध्‍यम किस्‍म के विवादों का बातचीत, बीच-बचाव और मध्यस्थता के माध्यम से समाधान करना है।
    • इस विधि में विवादों के समाधान की सुविधा के लिये सभी पक्षों द्वारा ऑनलाइन प्रौद्योगिकियों का उपयोग किया जाता है।
    • ऑनलाइन विवाद समाधान विवादों को कुशलतापूर्वक और किफायती तरीके से सुलझाने में मददगार साबित हो सकता है।
    • ‘ऑनलाइन विवाद समाधान’ सुविधाजनक, सटीक, समय की बचत करने वाला और किफायती है।

ऑनलाइन विवाद समाधान की आवश्यकता क्यों?

  • भारतीय न्यायपालिका देश में लंबित मामलों में हो रही वृद्धि की समस्या से जूझ रही है तथा जजों की कमी से नागरिकों को भी समय पर न्याय नहीं मिल पाता है।
  • इसके अतिरिक्त उच्चतम न्यायालय को भी सामान्य मामलों से मुक्ति की ज़रूरत है ताकि वह अपने संविधान के आदर्शों को बनाए रखने के कार्य पर अधिक ध्यान केंद्रित कर सके।
  • न्यायालय की प्रक्रिया आम आदमी हेतु आर्थिक दृष्टि से वहनीय नहीं होती तथा सुनवाई हेतु कई बार न्यायालय में उपस्थित होने से इनकी आजीविका भी प्रभावित होती है।

ऑनलाइन विवाद समाधान के लाभ:

  • न्यायालय के लंबित मामलों में कमी आएगी।
  • नागरिकों की न्याय तक सुलभ और सस्ती पहुँच सुनिश्चित होगी। 
  • ‘ऑनलाइन विवाद समाधान’ से मुकदमों को हल करने में तेज़ी आएगी तथा नागरिकों को त्वरित न्याय की प्राप्ति होगी। 
  • न्यायालयों की अवसंरचना संबंधी खर्च में कमी आएगी।
  • सुविधाजनक, सटीक, समय की बचत और लागत-बचत।

ऑनलाइन विवाद समाधान के चुनौतियाँ:

  • देश के सुदूरवर्ती क्षेत्रों में इंटरनेट कनेक्टिविटी की पहुँच एक बड़ी समस्या है, जिसका समाधान किये बिना ऑनलाइन विवाद समाधान तंत्र के विस्तार की कल्पना भी नहीं की जा सकती।
  • भारत में ऑनलाइन मध्यस्थता के कार्यान्वयन की राह में शिक्षा की कमी और प्रौद्योगिकी तक पहुँच न होना एक और बड़ी समस्या है।
  • तकनीक का असमान वितरण अर्थात् सभी तक तकनीक की एक जैसी पहुँच न होना भी ‘ऑनलाइन विवाद समाधान’ के राह की एक अन्य बड़ी बाधा है। 
  • विकासशील देशों में प्रौद्योगिकी, इंटरनेट और ई-कॉमर्स के अवसरों का असमान वितरण इस तंत्र की स्वीकृति और मान्यता को बाधित करता है। 

वर्तमान परिदृश्य में महत्त्व:

  • COVID-19 महामारी के पश्चात् नागिरिकों को न्याय तक कुशल और किफायती पहुँच उपलब्‍ध कराने हेतु ‘ऑनलाइन विवाद समाधान’ के तहत प्रौद्योगिकी का उपयोग किया जा सकता है।
  • COVID-19 महामारी के दौरान ODR के माध्यम से COVID-19-संबंधी विवादों (विशेष रूप से ऋण, ऋण, संपत्ति, वाणिज्य और खुदरा क्षेत्र में) का निपटारा करना जो आर्थिक पुनरुद्धार का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। 

आगे की राह:

  • भविष्य में न्यायपालिका के समक्ष आने वाली चुनौतियों का सामना करने के लिये उचित उपाय किये जाने चाहिये। यदि ऐसा नहीं किया गया तो भारत में ऑनलाइन विवाद समाधान केवल एक सिद्धांत बनकर रह जाएगा। 
  • नागरिकों को सूचना एवं तकनीक से जोड़ने हेतु उन्हें प्रशिक्षित करने के प्रयास किये जाने चाहिये।
  • भविष्य एक हाइब्रिड मॉडल होगा जो वास्तविक और आभासी दुनिया का सबसे अच्छा संयोजन होगा। हाइब्रिड सिस्टम के क्रियान्वयन हेतु न्याय वितरण की पूरी प्रक्रिया को नए सिरे से तैयार करना होगा। 

स्रोत: पीआईबी


विविध

Rapid Fire (करेंट अफेयर्स): 09 जून, 2020

मनरेगा के तहत एक लाख करोड़ रुपए से अधिक का प्रावधान

महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोज़गार गारंटी अधिनियम अर्थात् मनरेगा के तहत वर्तमान वित्त वर्ष के लिये एक लाख एक हज़ार 500 करोड़ रुपए का प्रावधान किया गया है। उल्लेखनीय है कि इस कार्यक्रम के तहत पहली बार इतनी बड़ी राशि का प्रावधान किया गया है। इसमें से 31 हज़ार 493 करोड़ रुपए की राशि पहले ही जारी की जा चुकी है, जो कि वर्तमान वित्त वर्ष के बजट में इस मद के लिये अनुमान के 50 प्रतिशत से अधिक है। आँकड़ों के अनुसार, मनरेगा के तहत अब तक कुल 60 करोड़ 80 लाख दिवस का रोज़गार सृजित किया गया है और 6 करोड़ 69 लाख कामगारों को कार्य दिया गया है। इस वर्ष मई में जिन लोगों को काम दिया गया था, उनकी औसत संख्या 2 करोड़ 51 लाख प्रतिदिन है। यह बीते वर्ष मई में दिये गए कार्य से 73 प्रतिशत अधिक है। योजना के तहत चालू वित्त वर्ष के दौरान अब तक कुल 10 लाख कार्य पूरे किये जा चुके हैं। जल संरक्षण तथा सिंचाई, वृक्षारोपण, बागवानी और आजीविका संवर्द्धन के लिये व्यक्तिगत लाभकारी कार्यों से संबंधित कार्यों को पूरा करने पर विशेष ध्यान दिया जा रहा है। महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोज़गार गारंटी अधिनियम अर्थात् मनरेगा को भारत सरकार द्वारा वर्ष 2005 में राष्ट्रीय ग्रामीण रोज़गार गारंटी अधिनियम, 2005 (NREGA-नरेगा) के रूप में प्रस्तुत किया गया था। वर्ष 2010 में नरेगा (NREGA) का नाम बदलकर मनरेगा (MGNREGA) कर दिया गया। मनरेगा कार्यक्रम के तहत प्रत्येक परिवार के अकुशल श्रम करने के इच्छुक वयस्क सदस्यों के लिये 100 दिन का गारंटीयुक्त रोज़गार, दैनिक बेरोज़गारी भत्ता और परिवहन भत्ता (5 किमी. से अधिक दूरी की दशा में) का प्रावधान किया गया है। मनरेगा एक राष्ट्रव्यापी कार्यक्रम है।

2022 महिला एशियाई कप

हाल ही में एशियाई फुटबॉल परिसंघ (Asian Football Confederation-AFC) ने पुष्टि की है कि भारत वर्ष 2022 में आयोजित होने वाले महिला एशियाई कप (Women’s Asian Cup) की मेजबानी करेगा। उल्लेखनीय है कि एशियाई फुटबॉल परिसंघ (AFC) द्वारा गठित महिला फुटबॉल समिति (Women’s Football Committee) ने इसी वर्ष फरवरी माह में इस संदर्भ में सिफारिश की थी, जिसकी पुष्टि एशियाई फुटबॉल परिसंघ (AFC) द्वारा की गई है। संभवतः इसका आयोजन वर्ष 2022 में फीफा विश्व कप से पूर्व किया जाएगा। भारतीय टीम ने वर्ष 1981 में महिला एशियाई कप में कांस्य पदक जीता था। एशियाई फुटबॉल महासंघ (Asian Football Confederation-AFC) एशिया की फुटबॉल गवर्निंग बॉडी है। इसकी स्थापना 8 मई, 1954 में की गई थी। इसका मुख्यालय मलेशिया के कुआलालंपुर में है। अखिल भारतीय फुटबॉल महासंघ (AIFF) एक राष्ट्रीय संघ है जिसकी स्थापना वर्ष 1937 में शिमला स्थित सेना मुख्यालय में हुई थी। एक महासंघ के रूप में यह देश भर में फुटबॉल प्रतियोगिताओं का आयोजन करता है। AIFF एशियाई फुटबॉल परिसंघ (AFC) के संस्थापक सदस्यों में से एक है, जो एशिया में फुटबॉल का प्रबंधन करता है।

GST मुआवज़ा

केंद्र सरकार ने तीन महीने के लिये राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों को GST मुआवज़े के रूप में 36,400 करोड़ रुपए जारी किये हैं। यह GST मुआवज़ा दिसंबर, 2019 से फरवरी, 2020 की अवधि के लिये जारी किया गया है। उल्लेखनीय है कि अप्रैल, 2019 से नवंबर, 2019 की अवधि के लिये केंद्र सरकार द्वारा पहले ही राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों को 1,15,096 करोड़ रुपए जारी किये जा चुके हैं। विदित हो कि केंद्र सरकार ने GST के लागू होने की तिथि से पाँच वर्ष की अवधि तक GST कार्यान्वयन के कारण कर राजस्व में आने वाली कमी के लिये राज्यों को क्षतिपूर्ति देने का वादा किया था। केंद्र सरकार के इस वादे के चलते बड़ी संख्या में अनिच्छुक राज्य नई अप्रत्यक्ष कर व्यवस्था पर हस्ताक्षर करने के लिये सहमत हो गए थे। हालाँकि बीते कुछ समय से केंद्र सरकार द्वारा मुआवज़े का भुगतान न करने पर राज्यों के समक्ष राजस्व को लेकर संकट की स्थिति उत्पन्न हो गई थी, वहीं COVID-19 महामारी ने इस चुनौती को और भी गंभीर कर दिया था, ऐसे में राज्य केंद्र सरकार पर आर्थिक रूप से काफी अधिक निर्भर हो गए थे, कई विशेषज्ञों ने ऐसी स्थिति को सहकारी संघवाद पर एक संकट माना था। केंद्र सरकार ने वित्त वर्ष 2018-19 में 69,275 करोड़ रुपए और वित्त वर्ष 2017-18 में 41,146 करोड़ रुपए का GST मुआवज़ा जारी किया था। सरकार द्वारा GST को 101वें संविधान संशोधन अधिनियम, 2016 के माध्यम से 1 जुलाई, 2017 को लागू किया गया था।

केंद्रीय प्रशासनिक न्यायाधिकरण

केंद्रशासित प्रदेश जम्मू-कश्मीर और लद्दाख के लिये केंद्रीय प्रशासनिक न्यायाधिकरण (Central Administrative Tribunal-CAT) की 18वीं खंडपीठ स्थापित की है। केंद्रीय प्रशासनिक न्यायाधिकरण (CAT) की खंडपीठ से न केवल सरकारी कर्मचारियों के सेवा संबंधित मामलों से निपटने में मदद मिलेगी बल्कि इससे विभिन्न न्यायालयों का बोझ भी कम होगा। साथ ही इस खंडपीठ से सरकारी कर्मचारियों को उनकी शिकायतों था सेवा मामलों के संबंध में त्वरित राहत भी मिलेगी। उल्लेखनीय है कि इस प्रकार के न्यायाधिकरण को प्रशासनिक या न्यायिक कार्यों के साथ अदालतों के पदानुक्रम के बाहर एक निकाय के रूप में परिभाषित किया गया है। प्रशासनिक न्यायाधिकरण राज्य के विभिन्न अंगों के मध्य विवाद का निराकरण करता है। प्रशासनिक न्‍यायाधिकरण का उद्गव संविधान के अनुच्‍छेद 323(A) से हुआ है,जिसके अंतर्गत केंद्र सरकार को, केंद्र तथा राज्‍यों के कार्य संचालन के संबंध में सार्वजनिक पदों पर नियुक्‍त व्‍यक्तियों की भर्ती और सेवा शर्तों के संबंध में विवादों और शिकायतों के निपटारे हेतु प्रशासनिक न्‍यायाधिकरण स्‍थापित करने की शक्ति प्राप्‍त है।


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