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डेली न्यूज़

  • 08 Sep, 2020
  • 39 min read
शासन व्यवस्था

नीति आयोग का 'बहुआयामी गरीबी सूचकांक'

प्रिलिम्स के लिये:

बहुआयामी गरीबी सूचकांक, SDG-1

मेन्स के लिये:

नीति आयोग का 'बहुआयामी गरीबी सूचकांक' 

चर्चा में क्यों?

'वैश्विक बहुआयामी गरीबी सूचकांक' (Global Multidimensional Poverty Index- MPI) की निगरानी करने के लिये ‘नीति आयोग’ (NITI Aayog) द्वारा राष्ट्रीय फ्रेमवर्क का निर्माण किया जा रहा है । नीति आयोग, भारत में MPI की निगरानी के लिये नोडल एजेंसी है।

प्रमुख बिंदु:

  • वैश्विक MPI, भारत सरकार द्वारा पहचाने गए उन 29 चुनिंदा वैश्विक सूचकांकों में से एक है, जिन्हें ‘सुधार और विकास के लिये वैश्विक संकेतक' (Global Indices to Drive Reforms and Growth- GIRG) के रूप में जाना जाता है। 
  • GIRG में शामिल सूचकांक, महत्त्वपूर्ण सामाजिक और आर्थिक संकेतकों के आधार पर भारत के प्रदर्शन का मापन और निगरानी करने में मदद करते हैं  

वैश्विक बहुआयामी गरीबी सूचकांक (MPI):

  • वैश्विक ‘बहुआयामी गरीबी सूचकांक’ 107 विकासशील देशों की बहुआयामी गरीबी मापने की अंतर्राष्ट्रीय प्रणाली है
  • इसे ‘ऑक्सफोर्ड गरीबी और मानव विकास पहल’ (OPHI) और ‘संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम’ (UNDP) द्वारा वर्ष 2010 में विकसित किया गया था।
  • इसे प्रतिवर्ष जुलाई माह में संयुक्त राष्ट्र के सतत् विकास पर 'उच्च-स्तरीय राजनीतिक फोरम' (HLPF) में जारी किया जाता है।

MPI

नीति आयोग द्वारा MPI निगरानी फ्रेमवर्क की दिशा में कदम:

MPI-Framework

'बहुआयामी गरीबी सूचकांक समन्वय समिति:

  • नीति आयोग द्वारा MPI की निगरानी के लिये एक 'बहुआयामी गरीबी सूचकांक समन्वय समिति' (Multidimensional Poverty Index Coordination Committee- MPICC) का गठन किया गया है।
  • इस समिति में विद्युत, दूरसंचार, खाद्य और सार्वजनिक वितरण, पेयजल और स्वच्छता, शिक्षा, आवास और शहरी मामले, स्वास्थ्य और परिवार कल्याण जैसे मंत्रालयों और विभागों के सदस्य शामिल हैं। इन मंत्रालयों/विभागों का चयन MPI सूचकांक में शामिल दस संकेतकों के आधार पर किया गया है। 
  • मंत्रालयों/विभागों के सदस्यों के अलावा OPHI और UNDP के विशेषज्ञ भी समिति को अपनी तकनीकी सहायता उपलब्ध कराएंगे।

राष्ट्रीय MPI तथा पैरामीटर डैशबोर्ड:

  • राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों की रैंक तैयार करने के लिये नीति आयोग द्वारा एक राष्ट्रीय 'बहुआयामी गरीबी सूचकांक' तैयार किया जा रहा है। 
  • MPI में प्रदर्शन की निगरानी के लिये MPI पैरामीटर डैशबोर्ड तैयार किया जा रहा है। 
  • यह डैशबोर्ड पाँच बेंचमार्को के आधार पर राज्यों की प्रगति का आकलन  करेगा। 
    • MPI के आयाम (शिक्षा, स्वास्थ्य, जीवन स्तर);
    • MPI के संकेतकों (10 संकेतकों); 
    • उप-संकेतकों (प्रत्येक संकेतक में 13 उप-संकेतक), 
    • आधार रेखा ['राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण (NFHS)- 4 के आधार पर निर्धारित]
    • राज्यों की वर्तमान स्थिति (संकेतकों के नवीनतम आउटकम सर्वे पर आधारित)

MPI-Dashboard

राज्य सुधार कार्य योजना (SRAP):

  • MPI के अनुसार, राज्यों में आवश्यक सुधारों को लागू करने के लिये एक 'राज्य सुधार कार्य योजना' (State Reform Action Plan- SRAP) को क्रियान्वित किया जाएगा।
  • SRAP को क्रियान्वित करने के लिये निम्नलिखित चरणबद्ध कदम उठाए जाएंगे:
    1. MPI संकेतकों को उप-संकेतकों में विभाजित अर्थात संकेतकों का विसमूहन किया जाएगा। 
    2. संकेतकों से संबंधित योजनाओं के प्रदर्शन का मापन करना। 
    3. संबंधित योजना को क्रियान्वित करने वाले मंत्रालय/विभाग की पहचान करना। 
    4. विभिन्न मंत्रालयों, राज्यों तथा अन्य हितधारकों से परामर्श करना। 
    5.  लक्ष्य तथा समय-सीमा तय करना। 
    6. उच्च, माध्यम तथा निम्न वरीयताओं का निर्धारण करना। 

MPI-performance

राष्ट्रीय MPI निगरानी फ्रेमवर्क का महत्त्व:

  • नीति आयोग का राष्ट्रीय MPI निगरानी फ्रेमवर्क 'सतत् विकास लक्ष्य'- 1, जो गरीबी को उसके सभी रूपों में हर जगह से खत्म करने पर बल देता है, के अनुरूप है।
  • विश्व बैंक की गरीबी रेखा की अवधारणा की तुलना मे MPI, अधिक व्यापक दृष्टिकोण है, जो ‘सामाजिक अवसंरचना’ पर व्यय बढ़ाने की भारत की आवश्यकता के अनुकूल है। MPI का राष्ट्रीय मापन प्रतिस्पर्द्धी संघवाद को बढ़ावा देगा।

निष्कर्ष:

  • ‘बहुआयामी गरीबी’ के निर्धारण में आय ही एक मात्र संकेतक नहीं होता बल्कि अन्य सूचकों जैसे- खराब स्वास्थ्य, काम की खराब गुणवत्ता आदि पर भी ध्यान दिया जाता है। अत: MPI की बेहतर निगरानी से राष्ट्रीय विकसात्मक लक्ष्यों को प्राप्त करने में मदद मिलेगी।

स्रोत: पीआइबी


भारतीय अर्थव्यवस्था

वित्त आयोग द्वारा राजकोषीय घाटे का दायरा निर्धारण के लिये सिफारिश

प्रिलिम्स के लिये:

FRBM कानून, मौद्रिक नीति समिति 

मेन्स के लिये:

COVID-19 महामारी का अर्थव्यवस्था पर प्रभाव 

चर्चा में क्यों?

वित्त आयोग के सलाहकार पैनल के कई सदस्यों ने COVID-19 महामारी के कारण वैश्विक अनिश्चितताओं में वृद्धि को देखते हुए केंद्र और राज्यों के राजकोषीय घाटे का एक सीधा लक्ष्य रखने के बजाय एक सीमा (Range) निर्धारण पर विचार करने का सुझाव दिया है।

प्रमुख बिंदु:

  • यह सुझाव राजकोषीय घाटे और सकल घरेलू उत्पाद (GDP) की तुलना में ऋण के अनुपात के लक्ष्य का एक दायरा निर्धारित करने के लिये दिया गया है।
  • उदाहरण के लिये राजकोषीय घाटे का लक्ष्य 3 प्रतिशत न होकर 3.5 से 5 प्रतिशत के बीच हो सकता है। यह मौद्रिक नीति समिति द्वारा निर्धारित खुदरा मुद्रास्फीति (4%+-2) के समान होगा।
  • राजकोषीय घाटे को सीधे लक्ष्य की बजाय एक दायरे में रखने के लिये राजकोषीय जवाबदेही एवं बजट प्रबंधन (FRBM) कानून में संशोधन करना होगा।
  • वित्त वर्ष 2020-21 के बजट में सरकार द्वारा FRBM कानून में प्रदान की गई 0.5 प्रतिशत की छूट के लिये पिछले वर्ष और चालू वित्त वर्ष के लिये राहत का प्रावधान किया गया था। इससे राजकोषीय घाटे का लक्ष्य इन दो वर्षों में GDP का क्रमशः 3.8 प्रतिशत एवं 3.5 प्रतिशत रखा गया।
  • 15वाँ वित्त आयोग वर्ष 2021-22 से लेकर 2025-26 के लिये अपनी रिपोर्ट 30 अक्तूबर, 2020 तक सौपेंगा।   

क्या है FRBM कानून?

  • उल्लेखनीय है कि देश की राजकोषीय व्यवस्था में अनुशासन लाने के लिये तथा सरकारी खर्च तथा घाटे जैसे कारकों पर नज़र रखने के लिये राजकोषीय जवाबदेही एवं बजट प्रबंधन (FRBM)  कानून को वर्ष 2003 में तैयार किया गया था तथा जुलाई 2004 में इसे प्रभाव में लाया गया था।
  • यह सार्वजनिक कोषों तथा अन्य प्रमुख आर्थिक कारकों पर नज़र रखते हुए बजट प्रबंधन में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है। FRBM के माध्यम से देश के राजकोषीय घाटों को नियंत्रण में लाने की कोशिश की गई थी, जिसमें वर्ष 1997-98 के बाद भारी वृद्धि हुई थी।
  • केंद्र सरकार ने FRBM कानून की नए सिरे से समीक्षा करने और इसकी कार्यकुशलता का पता लगाने के लिये एन. के. सिंह के नेतृत्व में एक समिति का गठन किया था।

मौद्रिक नीति समिति 

  • मौद्रिक नीति समिति (MPC) का गठन ब्याज दर निर्धारण को अधिक उपयोगी एवं पारदर्शी बनाने के लिये 27 जून, 2016 को किया गया था। 
  • वित्त अधिनियम, 2016 द्वारा रिज़र्व बैंक ऑफ इंडिया अधिनियम, 1934 (RBI अधिनियम) में संशोधन किया गया, ताकि मौद्रिक नीति समिति को वैधानिक और संस्थागत रूप प्रदान किया जा सके।
  • भारतीय रिज़र्व बैंक अधिनियम के प्रावधानों के अनुसार, मौद्रिक नीति समिति के छह सदस्यों में से तीन सदस्य RBI से होते हैं और अन्य तीन सदस्यों की नियुक्ति केंद्रीय बैंक द्वारा की जाती है।
  • रिज़र्व बैंक का गवर्नर इस समिति का पदेन अध्यक्ष होता है, जबकि भारतीय रिज़र्व बैंक के डिप्टी गवर्नर मौद्रिक नीति समिति के प्रभारी के तौर पर काम करते हैं।

आगे की राह 

  • आधिकारिक आँकड़ों के अनुसार, वित्त वर्ष 2020-21 के पहले तीन महीनों (अप्रैल-जून) के लिये केंद्र का राजकोषीय घाटा 6.62 लाख करोड़ रुपए पहुँच गया, जो कि इस वर्ष के लिये बजटीय लक्ष्य रूपए 7.96 लाख करोड़ का 83% है।
  • COVID-19 जैसी महामारी में राजकोषीय अनिश्चितताओं का बढ़ना स्वाभाविक है। अतः राजकोषीय घाटे के लक्ष्य को एक दायरे में रखना केंद्र और राज्य सरकारों को राजकोषीय लक्ष्यों की प्राप्ति के क्रम में लचीलापन प्रदान करेगा। 

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


जैव विविधता और पर्यावरण

इंटरनेशनल डे ऑफ क्‍लीन एयर फॉर ब्‍लू स्‍काई

प्रिलिम्स के लिये

इंटरनेशनल डे ऑफ क्‍लीन एयर फॉर ब्‍लू स्‍काई, संयुक्त राष्ट्र महासभा, वायु गुणवत्ता सूचकांक, बीएस-VI मानक, वायु प्रदूषण

मेन्स के लिये

एक गंभीर समस्या के रूप में वायु प्रदूषण और इस संबंध में आवश्यक उपाय

चर्चा में क्यों?

07 सितंबर, 2020 को विश्व में पहली बार ‘इंटरनेशनल डे ऑफ क्‍लीन एयर फॉर ब्‍लू स्‍काई’ का आयोजन किया गया, इस अवसर पर आयोजित वेबिनर को संबोधित करते हुए केंद्रीय पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्री प्रकाश जावडेकर ने कहा कि सरकार देश के सबसे प्रदूषित 122 शहरों में वायु प्रदूषण के स्तर को कम करने के लिये प्रतिबद्ध है।

प्रमुख बिंदु

  • वायु प्रदूषण की समस्या को रेखांकित करते हुए पर्यावरण मंत्री ने कहा कि वर्ष 2014 में सरकार ने वायु गुणवत्ता सूचकांक (Air Quality Index-AQI) के माध्यम से निगरानी शुरू की थी और वर्तमान में आठ मानकों पर प्रदूषण के स्तर निगरानी की जा रही है। 
  • वर्तमान में देश में बीएस-VI (भारत स्टैंडर्ड-6) मानकों को अपनाया गया है और गुणवत्ता वाले पेट्रोल तथा डीज़ल उपलब्ध कराए गए हैं, जो प्रदूषण से लड़ने के लिये एक महत्त्वपूर्ण पहल है।
  • पर्यावरण मंत्री के अनुसार, बीते कुछ वर्षों में सरकार द्वारा सड़कों और राजमार्गों का निर्माण काफी तेज़ी हो रहा है और इसके कारण गत वर्ष की तुलना में प्रदूषण कम हो रहा है।

इंटरनेशनल डे ऑफ क्‍लीन एयर फॉर ब्‍लू स्‍काई

  • वर्ष 2020 में पहली बार विश्व स्तर पर ‘इंटरनेशनल डे ऑफ क्‍लीन एयर फॉर ब्‍लू स्‍काई’ (International Day of Clean Air for Blue Skies) का आयोजन किया गया।
  • इस दिवस का मुख्य उद्देश्य सभी स्तरों यथा- व्यक्ति, समुदाय, निगम और सरकार आदि पर इस संबंध में जन जागरूकता बढ़ाना है कि स्वच्छ हवा, स्वास्थ्य, उत्पादकता, अर्थव्यवस्था और पर्यावरण की दृष्टि से काफी महत्त्वपूर्ण है।
  • साथ ही इस दिवस का उद्देश्य वायु गुणवत्ता जैसे महत्त्वपूर्ण विषय पर कार्य करने वाले विविध अंतर्राष्ट्रीय हितधारकों को एक साथ लाने के लिये एक रणनीतिक गठबंधन तैयार करना भी है, ताकि प्रभावी वायु गुणवत्ता प्रबंधन के लिये राष्ट्रीय, क्षेत्रीय और अंतर्राष्ट्रीय दृष्टिकोणों को गति मिल सके। 
  • संयुक्त राष्ट्र महासभा ने अपने 74वें सत्र के दौरान 19 दिसंबर, 2019 को ‘इंटरनेशनल डे ऑफ क्‍लीन एयर फॉर ब्‍लू स्‍काई’ आयोजित करने का संकल्प अपनाया था।
  • वर्ष 2020 के दिवस की थीम ‘क्लीन एयर फॉर ऑल’ (Clean Air for All) रखी गई है।

वायु प्रदूषण क्या है?

  • वायु प्रदूषण का अभिप्राय विभिन्न प्रकार की मानवीय गतिविधियों जैसे- ईंधन, कृषि और खेती के अक्षम दहन के कारण वातावरण में उत्सर्जित गैसों और कणों से उत्पन्न स्थिति से है।
  • वायु प्रदूषण के कुछ प्राकृतिक स्रोत भी होते हैं, जिनमें ज्वालामुखी क्रिया, वनाग्नि, कोहरा और परागकण आदि शामिल हैं, किंतु प्राकृतिक स्रोतों से उत्पन्न वायु प्रदूषण कम खतरनाक होता है क्योंकि प्रकृति में स्व-नियंत्रण की क्षमता होती है।

गंभीर समस्या के रूप में- वायु प्रदूषण

  • एक अनुमान के अनुसार, संपूर्ण विश्व का लगभग 92 प्रतिशत हिस्सा वायु प्रदूषण के खतरे का सामना कर रहा है, जिससे प्रत्येक वर्ष अनुमानतः 7 मिलियन लोगों की मृत्यु समय से पहले हो जाती है। 
  • हवा में अवांछित गैसों की उपस्थिति से मनुष्य, पशुओं तथा पक्षियों को गंभीर स्वास्थ्य समस्याओं का सामना करना पड़ता है। इससे अस्थमा, सर्दी, आँखों में जलन, श्रवण शक्ति कमज़ोर होना, त्वचा रोग आदि बीमारियाँ पैदा होती हैं।
  • वायु प्रदूषण के कारण अम्लीय वर्षा का खतरा बढ़ा है, जिससे पेड़-पौधे, भवनों व ऐतिहासिक इमारतों को नुकसान पहुँचा है।

वायु प्रदूषण और सतत् विकास 

  • विशेषज्ञ मानते हैं कि लगातार बढ़ रहा वायु प्रदूषण सतत् विकास के लिये एक गंभीर खतरा है, क्योंकि यह मानव विकास से संबंधित विभिन्न सामाजिक, पर्यावरण और आर्थिक मानदंडों जैसे- अच्छा स्वास्थ्य, खाद्य सुरक्षा, लैंगिक समानता, जलवायु स्थिरता और गरीबी में कमी आदि को प्रभावित करता है।
  • अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर निर्धारित कई सतत् विकास लक्ष्यों (SDGs) की प्रगति प्रत्यक्ष अथवा परोक्ष रूप से वायु गुणवत्ता की स्थिति पर निर्भर है। 

प्रयास- राष्ट्रीय स्वच्छ वायु कार्यक्रम

  • बीते वर्ष जनवरी माह में पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय ने राष्ट्रीय स्वच्छ वायु कार्यक्रम (National Clean Air Programme-NCAP) की शुरुआत की थी, जिसमें वायु प्रदूषण की समस्या से निपटने के लिये वर्ष 2017 को आधार वर्ष मानते हुए प्रदूषणकारी कणों PM 10 और PM 2.5 के अनुपात को वर्ष 2024 तक 20 से 30 प्रतिशत तक घटाने का लक्ष्य रखा गया है।
  • इस योजना में 23 राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों में 102 शहरों की पहचान हुई थी। वायु गुणवत्ता पर नवीनतम डेटा ट्रेंड के आधार पर 20 और शहरों को NCAP के तहत शामिल किया गया है।

उपाय

  • चूँकि प्रत्येक शहर में प्रदूषण के अलग-अलग स्रोत हैं, इसलिये राज्यों को प्रदूषण के स्तर में कमी लाने के लिये शहर केंद्रित योजनाओं के साथ कार्य करना चाहिये, इस कार्य के लिये इलेक्ट्रिक वाहनों के उपयोग को प्रोत्साहित किया जा सकता है।
  • हवा को स्वच्छ करने के लिये लोगों की भागीदारी आवश्यक है। कार-पूलिंग और सार्वजनिक परिवहन के उपयोग को बढ़ावा दिया जाना चाहिये।
  • वायु प्रदूषण को रोका जाना संभव है, किंतु इसके लिये सभी हितधारकों, जिनमें आम नागरिकों से लेकर निजी कंपनियाँ और सरकारें शामिल हैं, को एक साथ एक मंच पर आना होगा।

स्रोत: पी.आई.बी


भारतीय अर्थव्यवस्था

विदेशी मुद्रा भंडार का उच्चतम स्तर: कारण और महत्त्व

प्रिलिम्स के लिये:

विदेशी मुद्रा भंडार 

मेन्स के लिये:

विदेशी मुद्रा भंडार वृद्धि के कारण, महत्त्व 

चर्चा में क्यों?

भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) द्वारा 4 सितंबर को जारी आँकड़ों के अनुसार, सप्ताह के अंत में भारत का विदेशी मुद्रा (फॉरेक्स) का भंडार $ 3.883 बिलियन बढ़ कर $ 541.431 बिलियन के उच्चतम स्तर पर पहुँच गया। 5 जून, 2020 को समाप्त सप्ताह में पहली बार भारत का विदेशी मुद्रा भंडार $ 500 बिलियन को पार कर गया।

प्रमुख बिंदु:

विदेशी मुद्रा (फोरेक्स) भंडार 

  • किसी देश/अर्थव्यवस्था के पास उपलब्ध कुल विदेशी मुद्रा उसकी विदेशी मुद्रा संपत्ति/भंडार कहलाती है। 
  • अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष के अनुसार, आधिकारिक विदेशी मुद्रा भंडार मौद्रिक और विनिमय दर प्रबंधन के लिये निर्मित नीतियों में समर्थन और विश्वास बनाए रखने जैसे उद्देश्यों के लिये रखे जाते हैं। संकट के समय जब उधार लेने तक पहुँच कम हो जाती है, तो विदेशी मुद्रा तरलता बनाए रखते हुए इस संकट को अवशोषित करने में मदद करती है।
  • किसी भी देश के विदेशी मुद्रा भंडार में निम्नलिखित 4 तत्त्व शामिल होते हैं-
    • विदेशी परिसंपत्तियाँ (विदेशी कंपनियों के शेयर, डिबेंचर, बाॅण्ड इत्यादि विदेशी मुद्रा में)
    • स्वर्ण भंडार
    • IMF के पास रिज़र्व कोष (Reserve Trench)
    • विशेष आहरण अधिकार (Special Drawing Rights-SDR)

अर्थव्यवस्था में स्लोडाउन के बावजूद विदेशी मुद्रा भंडार में वृद्धि के कारण 

  • विदेशी मुद्रा भंडार में वृद्धि का प्रमुख कारण भारतीय स्टॉक बाज़ार में विदेशी पोर्टफोलियो निवेश और प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI) में वृद्धि है। विदेशी निवेशकों ने पिछले कई महीनों में कई भारतीय कंपनियों में हिस्सेदारी हासिल की है।
  • मार्च महीने में ऋण और इक्विटी के प्रत्येक खण्डों में से 60000 करोड़ रूपए निकालने के पश्चात्  इस वित्त वर्ष में अर्थव्यवस्था में कायापलट की उम्मीद से विदेशी पोर्टफोलियो निवेशकों ने  भारतीय बाज़ारों में वापसी की है।
  • कच्चे तेल की कीमतों में गिरावट आने के कारण तेल के आयात बिल में कमी आने से विदेशी मुद्रा की बचत हुई है। इसी तरह विदेशी प्रेषण और विदेश यात्राएँ बहुत कम हो गई हैं।
  • वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण द्वारा 20 सितंबर, 2019 को कॉर्पोरेट कर की दरों में कटौती की घोषणा के साथ ही फोरेक्स रिज़र्व में वृद्धि होना शुरू हो गया था।
  • सोने की बढ़ती कीमतों ने केंद्रीय बैंक को समग्र विदेशी मुद्रा भंडार बढ़ाने में मदद की है।

महत्त्व

  • विदेशी मुद्रा भंडार में वृद्धि से सरकार और भारतीय रिज़र्व बैंक को देश के बाह्य और आंतरिक वित्तीय मुद्दों के प्रबंधन में बहुत आसानी होती है। 
  • यह आर्थिक मोर्चे पर किसी भी संकट की स्थिति में एक वर्ष के लिये देश के आयात बिल को कवर करने के लिये पर्याप्त है। 
  • बढ़ते विदेशी मुद्रा भंडार ने डॉलर के मुकाबले रूपए को मज़बूत करने में मदद की है। सकल घरेलू उत्पाद (GDP) के अनुपात में विदेशी मुद्रा भंडार लगभग 15  प्रतिशत है। 
  • यह सरकार को अपनी विदेशी मुद्रा आवश्यकताओं और बाहरी ऋण दायित्त्वों को पूरा करने में मदद कर सकने के साथ ही राष्ट्रीय आपदाओं या आपात स्थितियों के लिये एक रिज़र्व बनाए रखने के लिये महत्त्वपूर्ण है। 

आगे की राह

  • निवेश प्रतिबंधों को कम करके FDI को और अधिक उदार बनाया जाना चाहिये। चालू खाते में और अधिक उदारीकरण किया जा सकता है। 
  • बुनियादी ढाँचे की परियोजनाओं के वित्तपोषण के लिए धन का उपयोग किया जा सकता है, जिससे अधिक रिटर्न प्राप्त किया जा सके। 
  • सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों के पुनर्पूंजीकरण, विदेशी वित्तीय बाज़ारों में निवेश या महंगे बाह्य ऋण के पुनर्भुगतान के लिये भी इसका उपयोग किया जा सकता है

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी

हाइपरसोनिक टेक्नोलॉजी डिमॉन्स्ट्रेटर व्हीकल

प्रिलिम्स के लिये:

एयर-ब्रीदिंग इंजन, मैक संख्या 

मेन्स के लिये:

रक्षा एवं अंतरिक्ष क्षेत्र में तकनीकी विकास

चर्चा में क्यों?

हाल ही में रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (Defence Research and Development Organisation- DRDO) ने ‘हाइपरसोनिक टेक्नोलॉजी डिमॉन्स्ट्रेटर व्हीकल’ (Hypersonic Technology Demonstrator Vehicle- HSTDV) का सफलतापूर्वक परीक्षण किया। 

प्रमुख बिंदु:

  • HSTDV एक मानव रहित स्क्रैमजेट प्रमाणित विमान है जो हाइपरसोनिक गति से यात्रा कर सकता है।
  • इसमें ‘हाइपरसोनिक एयर-ब्रीदिंग स्क्रैमजेट’ (Hypersonic Air-breathing Scramjet) तकनीक का उपयोग किया गया है।
  • यह विमान ध्वनि की गति से 6 गुना अर्थात् मैक-6 के वेग से अपने इच्छित उड़ान पथ पर यात्रा कर सकता है।

मैक संख्या (Mach Number): 

  • यह हवा में ध्वनि की गति की तुलना में एक विमान की गति का वर्णन करता है, जिसमें मैक-1 ध्वनि की गति के बराबर होता है यानि प्रति सेकंड 343 मीटर।

 एयर-ब्रीदिंग इंजन (Air-breathing Engines):

  • एयर-ब्रीदिंग इंजन ईंधन के दहन के लिये वायुमंडलीय ऑक्सीजन का उपयोग करता है। इनमें टर्बोजेट (Turbojet), टर्बोप्रॉप (Turboprop), रैमजेट (Ramjet) और पल्स-जेट (Pulse-jet) शामिल हैं।
  • यह प्रणाली उपयोग की दृष्टि से अन्य प्रणालियों की तुलना में हल्की, कुशल एवं लागत प्रभावी है।
  • गौरतलब है कि उपग्रह प्रक्षेपण वाहनों के लिये एयर-ब्रीदिंग इंजन हेतु प्रौद्योगिकी विकसित करने के लिये विश्वव्यापी प्रयास जारी है।
  • वर्तमान में उपग्रहों को मल्टी-स्टेज उपग्रह प्रक्षेपण वाहनों द्वारा कक्षा में प्रक्षेपित किया जाता है जिनका उपयोग केवल एक बार किया जा सकता है।
    • ये प्रक्षेपण यान दहन के लिये ईंधन के साथ ऑक्सीडाइज़र भी ले जाते हैं ताकि उसे प्रेरित किया जा सके।
  • एक प्रणोदन प्रणाली जो अपनी उड़ान के दौरान वायुमंडलीय ऑक्सीजन का उपयोग कर सकती है, एक उपग्रह को कक्षा में स्थापित करने के लिये आवश्यक कुल प्रणोदक को कम कर देगी।
  • यदि उन वाहनों को पुन: प्रयोज्य बनाया जाता है तो उपग्रहों को लॉन्च करने की लागत में काफी कमी आएगी।

एयर-ब्रीदिंग इंजन के प्रकार:

1. रैमजेट (Ramjet): एक रैमजेट एयर-ब्रीदिंग जेट इंजन का एक रूप है जो घूर्णन कंप्रेसर के बिना आने वाली वायु को संपीडित करने के लिये वाहन की अग्रिम गति का उपयोग करता है।

  • रैमजेट सुपरसोनिक गति पर सबसे कुशलता से कार्य करते हैं किंतु वे हाइपरसोनिक गति में कुशल नहीं हैं। 

2. स्क्रैमजेट (Scramjet): स्क्रैमजेट इंजन रैमजेट इंजन का ही एक अपडेटेड रूप है क्योंकि यह हाइपरसोनिक गति में कुशलता से संचालित होता है और सुपरसोनिक दहन की अनुमति देता है।

3. डुअल-मोड रैमजेट (Dual Mode Ramjet- DMRJ): एक डुअल-मोड रैमजेट एक प्रकार का जेट इंजन है जहाँ एक रैमजेट मैक 4-8 रेंज में एक स्क्रैमजेट में बदल जाता है जिसका अर्थ है कि यह सबसोनिक एवं सुपरसोनिक दहन मोड दोनों में कुशलता से कार्य कर सकता है।

Index

  • यह परीक्षण ओडिशा के तट पर स्थित एपीजे अब्दुल कलाम द्वीप (APJ Abdul Kalam Island) के डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम लॉन्च कॉम्प्लेक्स (Dr APJ Abdul Kalam Launch Complex) से किया गया था।
  • संयुक्त राज्य अमेरिका, रूस और चीन के बाद भारत इस तकनीक को विकसित करने वाला दुनिया का चौथा देश बन गया है।
    • चीन ने वर्ष 2018 में अपने पहले ‘वेवराइडर हाइपरसोनिक फ्लाइट व्हीकल’ (Waverider Hypersonic Flight Vehicle) का सफल परीक्षण किया था।
  • उल्लेखनीय है कि DRDO ने वर्ष 2010 की शुरुआत में HSTDV इंजन के विकास पर कार्य करना शुरू कर दिया था। भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) ने भी इस प्रौद्योगिकी के विकास पर कार्य किया है और वर्ष 2016 में इससे संबंधित एक प्रणाली का सफलतापूर्वक परीक्षण किया था।
    • DRDO ने जून 2019 में भी इस प्रणाली का परीक्षण किया था।

लाभ:

  • स्वदेशी प्रौद्योगिकी के विकास से भविष्य में हाइपरसोनिक वाहनों के साथ निर्मित प्रणालियों के विकास को बढ़ावा मिलेगा।
  • इसे रक्षा क्षेत्र में लंबी दूरी की क्रूज़ मिसाइलों के लिये एक वाहक के रूप में विकसित किया जा सकता है। इसमें आक्रामक एवं रक्षात्मक दोनों हाइपरसोनिक क्रूज़ मिसाइल प्रणाली शामिल हैं।
    • इसकी उच्च गति के कारण अधिकांश रडार (RADAR) इसका पता लगाने में असमर्थ होंगे। 
    • यह अधिकांश मिसाइल रक्षा प्रणालियों को भेदने में भी सक्षम होगी।
  • यह तकनीक अंतरिक्ष क्षेत्र में कम लागत, उच्च दक्षता वाले पुन: प्रयोज्य उपग्रहों के विकास में सहायक होगी। 

स्रोत: द हिंदू


भारतीय अर्थव्यवस्था

अवसंरचना वित्तपोषण के लिये विकास वित्तीय संस्थान

प्रिलिम्स के लिये

विकास वित्तीय संस्थान

मेन्स के लिये

अवसंरचना वित्तपोषण की आवश्यकता और विकास वित्तीय संस्थान का महत्त्व

चर्चा में क्यों?

केंद्र सरकार देश के अवसंरचना क्षेत्रों की दीर्घकालिक वित्तपोषण संबंधी ज़रूरतों को पूरा करने हेतु विकास वित्तीय संस्थान (Development Financial Institute-DFI) शुरू करने की योजना बना रही है।

प्रमुख बिंदु

  • गौरतलब है कि इस प्रस्तावित विकास वित्तीय संस्थान (DFI) द्वारा 'राष्ट्रीय अवसंरचना पाइपलाइन' (National Infrastructure Pipeline- NIP) के तहत पहचानी गई सामाजिक और आर्थिक दोनों क्षेत्रों की बुनियादी ढाँचा परियोजनाओं का वित्तपोषण किया जाएगा।
    • बीते दिनों आर्थिक मामलों के तत्कालीन सचिव अतनु चक्रवर्ती की अध्यक्षता में गठित उच्च स्तरीय कार्य दल ने वित्त वर्ष 2019-25 के लिये NIP पर अपनी अंतिम रिपोर्ट पेश की थी।  
    • इस उच्च स्तरीय कार्यदल ने अपनी रिपोर्ट में आगामी पाँच वित्तीय वर्षों अर्थात वर्ष 2020 से वर्ष 2025 की अवधि के दौरान सड़कों, रेलवे, ऊर्जा और शहरी क्षेत्रों की ‘अवसंरचना’ (Infrastructure) पर 111 लाख करोड़ रुपए के निवेश का अनुमान लगाया था। 

विकास वित्तीय संस्थान (DFI) का स्वरूप

  • वित्त मंत्रालय द्वारा अभी तक इस नए विकास वित्तीय संस्थान (DFI) का स्वरूप तय नहीं किया गया है, इस संबंध में दो प्रकार के विकास वित्तीय संस्थान (DFI) गठित किये जा सकते हैं:
    • या तो यह पूर्णतः सरकार के स्वामित्त्व में होगा,
    • या फिर इसे निजी क्षेत्र का स्वरूप दिया जाएगा, जिसमें सरकार की हिस्सेदारी 49 प्रतिशत तक सीमित होगी। 

सरकार का पूर्ण स्वामित्त्व

  • यदि विकास वित्तीय संस्थान (DFI) पूरी तरह से सरकार द्वारा वित्तपोषित किया जाता है, तो इससे फंड जुटाना काफी आसान हो जाएगा।
  • सरकार द्वारा विकास वित्तीय संस्थान (DFI) की प्रतिभूतियों को वैधानिक तरलता अनुपात (SLR) के पात्र बनाया जा सकता है। जिससे बैंकों को विकास वित्तीय संस्थान (DFI) द्वारा जारी प्रतिभूतियाँ खरीदने तथा अपने SLR दायित्त्वों को पूरा करने के लिये प्रोत्साहन मिलेगा।
  • उल्लेखनीय है कि भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) के नियमों के अनुसार, प्रत्येक बैंक को अपनी शुद्ध माँग और समय देयताओं (Net Demand and Time Liabilities-NDTL) का 18 प्रतिशत हिस्सा सुरक्षित और तरल संपत्ति जैसे कि सरकारी प्रतिभूतियाँ, नकदी और सोना आदि में बनाए रखने की आवश्यकता है।
  • हालाँकि यहाँ समस्या यह है कि विकास वित्तीय संस्थान (DFI) का वरिष्ठ प्रबंधन सदैव नियंत्रक और महालेखा परीक्षक (Comptroller & Auditor General of India-CAG) और केंद्रीय सतर्कता आयोग (Central Vigilance Commission-CVC) की जाँच के अधीन रहेगा, जिससे उसके लिये स्वतंत्र रूप से कार्य करना काफी मुश्किल होगा।

निजी क्षेत्र का स्वरूप

  • नए विकास वित्तीय संस्थान (DFI) के गठन के लिये आवश्यक होगा कि सरकार उसके नियंत्रण और संचालन से आवश्यक दूरी बनाए रखे और उसे नागरिकों के जीवन की गुणवत्ता में सुधार लाने के उद्देश्य से परियोजनाओं को लागू करने और उन्हें निष्पादित करने की छूट देनी होगी।
  • इस स्वरूप में विकास वित्तीय संस्थान CAG और CVC जैसी संस्थानों के भय के बिना कार्य कर सकेगा, हालाँकि यहाँ समस्या यह है कि इस संस्थान को आवश्यक फंड जुटाने में समस्या का सामना करना पड़ सकता है। 

नए विकास वित्तीय संस्थान की आवश्यकता

  • विशेषज्ञों के अनुसार, भारत के अवसंरचना क्षेत्र में वित्तपोषण की भारी कमी मौजूद है। वहीं बैंक भी इस प्रकार की परियोजनाओं को दीर्घकालिक वित्त प्रदान करने में असमर्थ हैं।
    • ध्यातव्य है कि भारतीय बैंक पहले से ही गैर-निष्पादित परिसंपत्ति (NPA) की समस्या का सामान कर रहे हैं।
    • बीते दिनों भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) के गवर्नर शक्तिकांत दास ने कहा था कि अब भारतीय उद्योगों को अपनी अवसंरचना संबंधी परियोजनाओं के वित्तपोषण के लिये नए तरीके खोजने होंगे, क्योंकि बैड लोन से जूझ रहे बैंक उन्हें आवश्यक वित्त प्रदान करने में असमर्थ हैं। 
  • यदि भारत को 8-10 प्रतिशत की दर से वृद्धि करनी है तो विभिन्न परियोजनाओं के लिये जाने वाले ऋण में 12-14 प्रतिशत वृद्धि होनी आवश्यक है।
  • चूँकि अवसंरचना परियोजनाओं को लंबी अवधि के लिये वित्तपोषण की आवश्यकता होती है और निवेश की मात्रा भी काफी अधिक मात्रा में होती है इसलिये नए विकास वित्तीय संस्थान (DFI) का गठन एक महत्त्वपूर्ण विचार हो सकता है।

विकास वित्तीय संस्थान (DFI)

  • विकास वित्तीय संस्थान (DFI) मुख्य रूप से विकास और अवसंरचना संबंधी परियोजनाओं को वित्त प्रदान करने हेतु स्थापित एक विशिष्ट संस्थान होती है, जिसका गठन सामान्यतः विकासशील देशों में दीर्घकालिक ऋण प्रदान करने हेतु किया जाता है।
  • विकास वित्तीय संस्थान (DFI) प्रायः सामाजिक लाभ के साथ लंबी अवधि के निवेश को बढ़ावा देने के लिये ब्याज की कम और स्थिर दरों पर ऋण प्रदान करते हैं।
  • यह वाणिज्यिक परिचालन मानदंडों के बीच एक संतुलन बनाता है, जिसमें एक ओर वाणिज्यिक बैंक की गतिविधियाँ और दूसरी ओर विकास संबंधी ज़िम्मेदारियाँ होती हैं।
  • यह वाणिज्यिक बैंकों की तरह केवल ऋण ही नहीं देता, बल्कि यह अर्थव्यवस्था के महत्त्वपूर्ण क्षेत्रों के विकास में सहायक के रूप में भी कार्य करते हैं।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


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