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डेली न्यूज़

  • 07 Mar, 2020
  • 65 min read
भारतीय राजनीति

विशेष ग्राम सभा, महिला सभा का आयोजन

प्रीलिम्स के लिये:

महिला सभा, अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस

मेन्स के लिये:

स्थानीय स्वशासन में महिलाओं की भूमिका

चर्चा में क्यों?

केंद्र सरकार ने 8 मार्च, 2020 को अंतर्राष्‍ट्रीय महिला दिवस के अवसर पर सभी राज्‍यों और केंद्रशासित प्रदेशों को ग्राम पंचायतों में विशेष ग्राम सभा और महिला सभा का आयोजन करने का निर्देश दिया है।

मुख्य बिंदु:

  • पंचायती राज मंत्रालय के अनुसार, वर्ष 2020 के अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस का विषय ‘ पीढ़ी समानता: महिलाओं की अधिकार प्राप्ति’ (Generation Equality: Realizing Women’s Right) है।
  • इसके अतिरिक्त सभी ग्राम पंचायतों से 8- 22 मार्च, 2020 तक महिला और बाल विकास मंत्रालय के कार्यक्रम के अनुसार पोषण पखवाड़ा आयोजित करने को भी कहा गया है।

ग्राम सभाओं और महिला सभाओं के आयोजन से संबंधित विषय:

  • पंचायती राज मंत्रालय के अनुसार, इन विशेष ग्राम सभाओं और महिला सभाओं का आयोजन ‘कम्युनिटी रिसोर्स पर्सन’ (Community Resource Persons-CRPs) जैसे- आँगनवाड़ी, आशा, सखी तथा एएनएम (Auxiliary Nurse Midwife-ANM) के सहयोग से किया जाएगा।
  • ग्राम सभाओं में पोषण पंचायत, भूमि अधिकार, शिक्षा, सुरक्षा, प्रजनन संबंधी स्‍वास्‍थ्‍य तथा महिलाओं के लिये समान अवसर जैसे विषयों पर विचार-विमर्श किया जाएगा।
  • विशेष ग्राम सभाओं में लिंग निर्धारण जाँच पर पाबंदी, लड़की के जन्‍म को समारोह के रूप में मनाने तथा सभी महिलाओं के लिये प्रसवपूर्व देखभाल और नवजात देखभाल से संबंधित विषयों पर चर्चा की जाएगी।
  • इन विशेष ग्राम सभाओं में प्रत्‍येक लड़की के लिये उचित देखभाल, पौष्टिक आहार तथा टीकाकरण, लड़कियों को स्‍कूल जाने के लिये प्रोत्‍साहित करने और उनके लिये घर तथा स्‍कूल में सुरक्षित माहौल पर ध्‍यान देने के साथ ही उन्हें स्‍कूली शिक्षा पूरी करने हेतु प्रोत्साहित किया जाएगा।
  • बाल विवाह पर पाबंदी, महिलाओं तथा लड़कियों के साथ होने वाली हिंसा दुर्व्‍यवहार और अन्‍याय को रोकने, ग्राम पंचायतों में निर्वाचित महिला प्रतिनिधियों की सक्रिय भागीदारी और निर्णय लेने में उनके योगदान तथा ग्राम सभाओं में भागीदारी के लिये महिलाओं को प्रोत्‍साहित करने जैसे विषयों पर चर्चा की जाएगी।
  • इन सभाओं के आयोजन के दौरान नवजात शिशुओं के शारीरिक और मानसिक विकास के लिये जन्‍म के बाद पहले 1000 दिनों तक स्‍तनपान करने तथा चाइल्‍ड हेल्‍पलाइन 1098 की भूमिका जैसे विषयों को चर्चा में शामिल किया जाएगा।

पंचायती राज संस्थाओं में महिलाओं की भूमिका:

  • सामुदायिक सक्रियता को बढ़ाने और समुदाय के व्‍यवहार परिवर्तन के अग्रदूत के रूप में काम करने में पंचायती राज संस्थाओं की भूमिका बहुत महत्त्वपूर्ण है।
  • 73वें संविधान संशोधन ने ग्रामीण स्‍वशासन को स्‍वायत्तता प्रदान की और शासन संचालन को आम जनमानस के निकट ला दिया।
  • इस संशोधन से महिलाओं को पंचायतों में एक-तिहाई आरक्षण प्राप्‍त हुआ।
  • अब तक 20 राज्‍यों ने पंचायती राज संस्‍थानों में महिलाओं के आरक्षण को बढ़ाकर 50 प्रतिशत करने हेतु कानून पारित किया है।
  • इसके परिणामस्‍वरूप 30.41 लाख निर्वाचित प्रतिनिधियों में से 13.74 लाख (45.2 प्रतिशत) महिलाएँ हैं।
  • इनमें से कुछ सामाजिक रूप से पिछड़े समूहों से भी हैं जो अब नेतृत्त्व प्रदान करने की स्थिति में हैं।

अन्य नवाचार:

  • पंचायती राज मंत्रालय ने समुदाय की आवश्‍यकताओं और प्राथमिकताओं पर ध्यान केंद्रित करने के लिये ग्राम पंचायत स्‍तर पर एकीकृत विकास नियोजन के लिये ग्राम पंचायत विकास योजना (Gram Panchayat Development Plan- GPDP) का ढाँचा तैयार किया है।
  • GPDP संबंधी दिशा-निर्देशों को वर्ष 2018 में संशोधित किये जाने के बाद इन दिशा-निर्देशों के कुछ प्रमुख पहलू महिला सशक्तीकरण के लिये प्रासंगिक हो गए हैं।
  • इन संशोधनों में बजट बनाने, नियोजन, जीपीडीपी की निगरानी तथा क्रियान्‍वयन सामान्‍य ग्राम सभा से पहले महिला सभाओं का आयोजन कराना शामिल है।
  • ये सभी पहलू पंचायती राज मंत्रालय के विज़न दस्तावेज़ 2024 का हिस्‍सा हैं।

आगे की राह:

  • लैंगिक समानता का सिद्धांत भारतीय संविधान की प्रस्‍तावना, मौलिक अधिकारों, मौलिक कर्त्तव्‍यों और नीति निर्देशक सिद्धांतों में प्रतिपादित है।
  • संविधान महिलाओं को न केवल समानता का दर्जा प्रदान करता है अपितु राज्‍य को महिलाओं के पक्ष में सकारात्‍मक भेदभाव के उपाय करने की शक्‍ति भी प्रदान करता है।
  • प्रकृति द्वारा किसी भी प्रकार का लैंगिक विभेद नहीं किया जाता है। समाज में प्रचलित कुछ तथ्य जैसे- महिलाएँ पुरुषों की अपेक्षा जैविक रूप से कमज़ोर होती हैं इत्यादि केवल भ्रांतियाँ हैं।
  • दरअसल महिलाओं में विशिष्ट जैविक अंतर, विभेद नहीं बल्कि प्रकृति प्रदत्त विशिष्टताएँ हैं, जिनमें समाज का सद्भाव और सृजन निहित हैं।

स्रोत: पीआईबी


भारतीय राजनीति

उच्चतम न्यायालय का फैसला और चुनाव सुधार

प्रीलिम्स के लिये:

अनुच्छेद 129, अनुच्छेद 142, लिली थॉमस बनाम भारत संघ

मेन्स के लिये:

राजनीति में बढ़ता अपराधीकरण और चुनाव सुधार

चर्चा में क्यों?

उच्चतम न्यायालय ने 13 फरवरी, 2020 को भारतीय संविधान के अनुच्छेद 129 तथा अनुच्छेद 142 का उपयोग करते हुए सभी राजनीतिक दलों को अपने विधानसभा और लोकसभा उम्मीदवारों के संपूर्ण आपराधिक इतिहास को प्रकाशित करने का आदेश दिया है।

पृष्ठभूमि:

  • सर्वोच्च न्यायालय द्वारा यह निर्णय वर्ष 2018 के ‘पब्लिक इंटरेस्ट फाउंडेशन बनाम भारत संघ’ (Public Interest Foundation vs Union of India) मामले में गठित एक संवैधानिक पीठ के फैसले के आधार पर दिया गया है जो कि राजनीतिक दलों द्वारा अपनी वेबसाइट और इलेक्ट्रॉनिक प्रिंट मीडिया पर अपने उम्मीदवारों के आपराधिक विवरण प्रकाशित करने तथा सार्वजनिक जागरूकता फैलाने संबंधी एक अवमानना याचिका पर आधारित था।
  • इस फैसले (2018) में सर्वोच्च न्यायालय ने भारत में राजनीति के बढ़ते अपराधीकरण और नागरिकों के बीच इस तरह के अपराधीकरण के बारे में जानकारी की कमी बताई थी।

मुख्य बिंदु:

  • उच्चतम न्यायालय ने अपने फैसले में कहा है कि चुनाव से पहले उम्मीदवारों के चयन के कारणों में उम्मीदवार की योग्यता, उसकी उपलब्धियाँ होनी चाहिये न कि चुनाव में उसके जीतने की संभावना।
  • उम्मीदवार से संबंधित सूचना को एक स्थानीय भाषा के समाचार पत्र व एक राष्ट्रीय समाचार पत्र में प्रकाशित करना तथा फेसबुक एवं ट्विटर सहित राजनीतिक दलों की आधिकारिक सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर भी उपलब्ध कराया जाना चाहिये।
    • इन सूचनाओं को उम्मीदवार चयन के 48 घंटों के भीतर या नामांकन पत्र दाखिल करने की तिथि से कम-से-कम दो सप्ताह पहले, जो भी पहले हो, प्रकाशित करना होगा।
  • संबंधित राजनीतिक दल उम्मीदवार चुनने के 72 घंटों के भीतर निर्देशानुसार अनुपालन रिपोर्ट निर्वाचन आयोग को प्रस्तुत करेंगे।
  • यदि कोई राजनीतिक दल ऐसी अनुपालन रिपोर्ट प्रस्तुत करने में विफल रहता है तो निर्वाचन आयोग निर्देशों का अनुपालन नहीं किये जाने का संज्ञान आदेशों/निर्देशों की अवमानना के रूप में उच्चतम न्यायालय के समक्ष लाएगा।

अनुच्छेद 129:

  • उच्चतम न्यायालय का अभिलेख न्यायालय होना- उच्चतम न्यायालय अभिलेख न्यायालय होगा और उसको अवमानना के लिये दंड देने की शक्ति सहित ऐसे न्यायालय की सभी शक्तियाँ होंगी।

अनुच्छेद 142

  • उच्चतम न्यायालय के आदेशों तथा साथ ही अन्वेषण आदि से संबंधित आदेशों का प्रवर्तन कराना।

वर्ष 2002 एवं वर्ष 2003 में न्यायालय का आदेश:

  • वर्ष 2002 एवं वर्ष 2003 में न्यायालय ने आदेश दिया था कि चुनाव लड़ने वाले सभी उम्मीदवार अपने खिलाफ लंबित आपराधिक मामलों से संबंधित स्व-शपथ पत्र (Self-Sworn Affidavits) किसी भी न्यायालय में दे सकते हैं।
  • इस प्रकार उच्चतम न्यायालय का वर्तमान निर्णय न्यायालय द्वारा पहले दिये गए (वर्ष 2002 एवं वर्ष 2003 में) आदेशों से भिन्न है।
  • हालाँकि वर्ष 2002 और वर्ष 2003 में न्यायालय द्वारा दिये गए निर्णय महत्त्वपूर्ण थे और एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (Association for Democratic Reforms) द्वारा चुनावी सुधार हेतु किये गए प्रयासों के बावज़ूद राजनीतिक पार्टियों या मतदाता पर इसका वांछित प्रभाव नहीं पड़ा क्योंकि वर्तमान लोकसभा में 43% सदस्यों के खिलाफ एक या अधिक आपराधिक मामले दर्ज हैं।

Criminal-cases

  • जबकि वर्ष 2004 में संसद के 24% सदस्यों के खिलाफ आपराधिक मामले लंबित थे जो कि वर्ष 2009 में बढ़कर 30%, वर्ष 2014 में 34% हो गए थे। इसमें लगभग आधे मामले कथित जघन्य अपराधों जैसे- हत्या, हत्या का प्रयास, बलात्कार और अपहरण के थे। वहीं वर्ष 2019 में संसद के 88% सदस्य करोड़पति पाए गए।
    • उपरोक्त आँकड़ों के आधार पर कहा जा सकता है ‘बाहुबल’ और ‘धनबल’ हमारी राजनीतिक प्रणाली का हिस्सा बन गए हैं। वास्तव में ‘धनबल’ ने हमारी लोकतांत्रिक प्रणाली को ‘धनिकतंत्र’ की दिशा में आगे बढ़ाया है।
    • बेशक राजनीतिक उम्मीदवारों के खिलाफ दर्ज की गई FIR इरादतन आपराधिक नहीं होती है। नागरिक विरोध के परिणामस्वरूप दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 144 का उल्लंघन एक ऐसा ही उदाहरण है। मेधा पाटेकर या अन्य सामाजिक कार्यकर्त्ताओं के मामले को शायद ही आपराधिक माना जा सकता है।

मतदाताओं का व्यवहार:

  • मतदाता व्यवहार अक्सर अपनी तात्कालिक आवश्यकताओं के अनुसार होता है। उदाहरण के लिये मुफ्त की वस्तुओं का वितरण, पैसा एवं उपहार आदि। मतदाता व्यवहार अब बदलना शुरू हो गया है क्योंकि मतदाता अब अक्सर पैसे और मुफ्त की मांग करते हैं।

लिली थॉमस बनाम भारत संघ

(Lily Thomas vs Union of India)

  • अब तक जो भी महत्त्वपूर्ण चुनावी सुधार हुए हैं वे सर्वोच्च न्यायालय के फैसलों पर ही आधारित हैं। 10 जुलाई, 2013 को लिली थॉमस बनाम भारत संघ मामले में कहा गया था कि एक सांसद या विधायक जो अपराध के लिये दोषी पाया जाता है, उसे न्यूनतम दो वर्ष का कारावास दिया जाएगा और वह सदन की सदस्यता तत्काल प्रभाव से खो देगा तथा उसे जेल अवधि समाप्त होने के बाद छह वर्ष के लिये चुनाव लड़ने से वंचित किया जाएगा।

आगे की राह:

  • गौरतलब है कि राजनीतिक दल चुनाव जीतने वाले उम्मीदवार को ही टिकट देते हैं। इससे चुनावी प्रक्रिया में ‘धनबल’ और ‘बाहुबल’ को बढ़ावा मिलता है जिससे हमारी लोकतांत्रिक प्रणाली ‘धनिकतंत्र’ की दिशा में आगे बढ़ रही है। इन दोनों समस्याओं में तत्काल सुधार की ज़रूरत है और इसके लिये कार्यपालिका द्वारा ही प्रयास किया जाना चाहिये।

स्रोत: द हिंदू


सामाजिक न्याय

शिक्षा में लैंगिक असमानता

प्रीलिम्स के लिये:

लैंगिक समानता सूचकांक, समग्र शिक्षा अभियान

मेन्स के लिये:

स्कूली शिक्षा में लैंगिक समानता संबंधित मुद्दे

चर्चा में क्यों?

हाल ही में मानव संसाधन विकास मंत्रालय (Ministry of Human Resource Development) द्वारा राज्यसभा में जानकारी दी गई कि स्कूलों में सभी स्तरों पर लैंगिक असमानता को दूर करने हेतु विभिन्न कदम उठाए गए हैं।

प्रमुख बिंदु:

  • लैंगिक समानता सूचकांक (Gender Parity Index-GPI): GPI विभिन्न स्तरों पर स्कूल प्रणाली में लड़कियों की समान भागीदारी को दर्शाता है।
  • समग्र शिक्षा (Samagra Shiksha) अभियान जो कि स्कूली शिक्षा के लिये एक समेकित योजना है, (Integrated Scheme for School Education-ISSE) के तहत स्कूली शिक्षा में लैंगिक अंतर को समाप्त करने का प्रयास किया जाता है।
  • वर्ष 2018-19 में स्कूली शिक्षा के विभिन्न स्तरों पर GPI की स्थिति निम्नानुसार है:
Particular

Primary

Upper Primary Secondary Higher Secondary
Gender Parity Index

1.03

1.12 1.04 1.04

(Source: UDISE+ 2018-19 provisional)

  • GPI इंगित करता है कि स्कूली शिक्षा के विभिन्न स्तरों पर लड़कियों की संख्या लड़कों से अधिक है।

स्कूली शिक्षा में लैंगिक समानता लाने हेतु समग्र शिक्षा (SamagraShiksha) अभियान के प्रावधान:

  • बालिकाओं की सुविधा के लिये उनके निकट क्षेत्र में स्कूल खोलना।
  • आठवीं कक्षा तक की लड़कियों को मुफ्त में पाठ्य-पुस्तकें वितरित करने का प्रावधान।
  • सभी लड़कियों को यूनिफार्म प्रदान करना।
  • सभी स्कूलों में अलग-अलग शौचालयों का निर्माण।
  • लड़कियों की भागीदारी को बढ़ावा देने हेतु शिक्षक जागरूकता कार्यक्रम।
  • छठी से बारहवीं कक्षा तक की लड़कियों के लिये आत्मरक्षा प्रशिक्षण का प्रावधान।
  • विशेष आवश्यकता वाली कक्षा 1 से 12 वीं तक की लड़कियों को वज़ीफा देना।
  • दूरस्थ/पहाड़ी क्षेत्रों में शिक्षकों के लिये आवासीय भवनों का निर्माण करना।
  • स्कूली शिक्षा के सभी स्तरों पर लैंगिक अंतर को कम करने और शिक्षा से वंचित समूहों की लड़कियों को गुणवत्तापूर्ण शिक्षा प्रदान करने हेतु कस्तूरबा गांधी बालिका विद्यालय (Kasturba Gandhi BalikaVidyalayas-KGBV) खोले गए हैं।
  • अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति, ओबीसी, अल्पसंख्यक और गरीबी रेखा से नीचे (Below Poverty Line-BPL) जीवन-यापन करने वाले वंचित समूहों की लड़कियों को छठी से बारहवीं कक्षा तक की शिक्षा प्रदान करने के लिये खोले गए KGBV आवासीय सुविधाओं से युक्त हैं।
  • 30 सितंबर, 2019 तक कुल 5930 KGBV खोलने की स्वीकृति दी गई।
  • इनमें से 4881 KGBV का परिचालन हो रहा है जिसमें 6.18 लाख लड़कियों का नामांकन किया गया।

स्रोत: पीआईबी


भारतीय राजनीति

भूमि अधिग्रहण पर सर्वोच्च न्यायालय का आदेश

प्रीलिम्स के लिये:

भूमि अधिग्रहण अधिनियम-2013

मेन्स के लिये:

भूमि अधिग्रहण की प्रक्रिया और इसके मुआवज़े से संबंधित मुद्दे

चर्चा में क्यों?

हाल ही में सर्वोच्च न्यायालय ने भूमि अधिग्रहण की प्रक्रिया और इसके मुआवज़े के संदर्भ में वर्ष 2018 के अपने एक पूर्व निर्णय को पुनर्स्थापित करते हुए यह स्पष्ट किया कि भूमि अधिग्रहण प्रक्रिया के लिये दिये जाने वाले मुआवज़े के राजकोष (Treasury) में जमा होने के बाद भूमि अधिग्रहण को अवैध नहीं माना जाएगा।

मुख्य बिंदु:

  • 6 मार्च, 2020 के अपने फैसले के माध्यम से सर्वोच्च न्यायालय की पाँच सदस्यीय पीठ ने भूमि अधिग्रहण अधिनियम, 1894 के तहत भूमि अधिग्रहण की वैधता से संबंधित समयसीमा के संदर्भ में भूमि अधिग्रहण अधिनियम, 2013 की धारा 24(2) की व्याख्या को स्पष्ट किया है।
  • ध्यातव्य है कि 1 जनवरी, 2014 को लागू किया गया भूमि अधिग्रहण अधिनियम, 2013 ब्रिटिश काल के भूमि अधिग्रहण अधिनियम, 1894 को स्थानांतरित करता है।
  • भूमि अधिग्रहण अधिनियम, 2013 की धारा 24(2) के अनुसार, इस अधिनियम के लागू होने की तिथि से पाँच वर्ष या इससे पूर्व के भूमि अधिग्रहण मामलों में यदि भूमि अधिग्रहण (भूमि अधिग्रहण अधिनियम, 1894 के तहत) के पाँच वर्ष के अंदर भूमि का उपयोग नहीं किया गया हो या मुआवज़े की राशि भू-मालिक को न प्रदान की गई हो, तो उस स्थिति में भूमि अधिग्रहण को अवैध माना जाएगा।
  • गौरतलब है कि हाल के वर्षों में सर्वोच्च न्यायालय की अलग-अलग पीठों द्वारा भूमि-अधिग्रहण के कई मामलों में मुआवज़े के जारी होने और मुआवज़े की प्राप्ति के संदर्भ अधिनियम की धारा 24(2) की व्याख्या में मतभेद पाए गए थे।
  • हालिया मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने स्पष्ट किया है कि यदि भूमि अधिग्रहण अधिनियम 1894 से संबंधित मामलों में अधिग्रहण की तिथि से पाँच वर्षों के अंदर (सरकार या निजी संस्थान) द्वारा मुआवज़े की राशि को सरकारी राजकोष में जमा करा दिया गया हो तो ऐसी स्थिति में भूमि अधिग्रहण को अवैध नहीं माना जाएगा।

भूमि अधिग्रहण क्या है?

भूमि अधिग्रहण से आशय (भूमि खरीद की) उस प्रक्रिया से है, जिसके तहत केंद्र या राज्य सरकार सार्वजनिक हित से प्रेरित होकर क्षेत्र के बुनियादी विकास, औद्योगीकरण या अन्य गतिविधियों के लिये नियमानुसार नागरिकों की निजी संपत्ति का अधिग्रहण करती हैं। इसके साथ ही इस प्रक्रिया में प्रभावित लोगों को उनके भूमि के मूल्य के साथ ही उनके पुनर्वास के लिये मुआवज़ा प्रदान किया जाता है।

भूमि अधिग्रहण के कानूनी प्रावधान:

  • भारत में भूमि अधिग्रहण से संबंधित कानून की अवधारणा ब्रिटिश सरकार द्वारा प्रस्तुत की गई थी।
  • भूमि अधिग्रहण 1894 में प्रदत्त शक्तियों का प्रयोग कर ब्रिटिश सरकार आसानी से भू-मालिकों की ज़मीन बिना उनकी अनुमति के ले सकती थी।
  • भारत में स्वतंत्रता के बाद भी कई अन्य महत्त्वपूर्ण कानूनों की तरह ही लंबे समय तक (भूमि अधिग्रहण अधिनियम-2013 लागू होने से पहले तक) भूमि अधिग्रहण के लिये ब्रिटिश शासन के दौरान बने भूमि अधिग्रहण अधिनियम-1894 का अनुसरण किया गया।
  • भूमि अधिग्रहण अधिनियम, 1894 में व्याप्त विसंगतियों को दूर करने तथा भूमि अधिग्रहण की प्रक्रिया को अधिक पारदर्शी बनाने के लिये विभिन्न समितियों के सुझावों के आधार पर भूमि अधिग्रहण अधिनियम-2013 का मसौदा तैयार किया गया।

भूमि अधिग्रहण अधिनियम, 2013:

  • इस अधिनियम को “भूमि अधिग्रहण, पुनरुद्धार, पुनर्वासन में उचित प्रतिकार तथा पारदर्शिता का अधिकार अधिनियम, 2013” (Right to Fair Compensation and Transparency in Land Acquisition, Rehabilitation and Resettlement Act, 2013) नाम से भी जाना जाता है।

भूमि अधिग्रहण अधिनियम, 2013 के लाभ:

  • इस अधिनियम के अनुसार, भूमि अधिग्रहण के लिये निजी क्षेत्र की परियोजनाओं और सार्वजनिक-निजी भागीदारी (Public-Private Partnership- PPP) परियोजना हेतु क्रमशः कम-से-कम 80% और 70% भू-मालिकों की सहमति को अनिवार्य कर दिया गया, जबकि वर्ष 1984 के अधिनियम में ऐसा नहीं था।
  • भूमि अधिग्रहण अधिनियम-2013 में भूमि अधिग्रहण के लिये ‘सार्वजनिक उद्देश्य’ की स्पष्ट व्याख्या की गई है, ताकि भूमि अधिग्रहण की प्रक्रिया को और अधिक पारदर्शी बनाया जा सके।
  • इस अधिनियम में ग्रामीण क्षेत्रों में भूमि के अधिग्रहण के लिये बाज़ार मूल्य का चार गुना तथा शहरी क्षेत्र में बाज़ार मूल्य से दोगुनी कीमत अदा करने की व्यवस्था की गई।
  • अधिनियम के अनुसार, यदि 1 वर्ष के अंदर लाभार्थियों को मुआवज़े की राशि नहीं प्रदान की जाती है तो अधिग्रहण की प्रक्रिया रद्द हो जाएगी (धारा 25)।
  • इसके साथ ही इस अधिनियम में कृषि के महत्त्व को देखते हुए बहु-फसलीय (Multi-Crop) भूमि के अधिग्रहण को प्रोत्साहित नहीं किया गया है। अधिनियम की धारा-10 के अनुसार,बहु-फसलीय कृषि भूमि का अधिग्रहण केवल विशेष परिस्थितियों में और एक सीमा तक ही किया जा सकता है।

निष्कर्ष: भूमि अधिग्रहण अधिनियम-1894 में भूमि अधिग्रहण से लेकर मुआवज़े तक की प्रक्रिया में स्पष्टता के अभाव में यह अधिनियम वर्षों से भू-मालिकों और सरकार के बीच तनाव का एक कारण बना रहा। भूमि अधिग्रहण अधिनियम-2013 के माध्यम से जहाँ भूमि अधिग्रहण की प्रक्रिया में पारदर्शिता लाने में सफलता प्राप्त हुई थी, वहीं सर्वोच्च न्यायालय के हालिया फैसले के बाद अधिनियम की धारा 24(2) की व्याख्या के संदर्भ में व्याप्त मतभेद दूर करने में सहायता प्राप्त होगी, जिससे देश के विभिन्न न्यायालयों में लंबित मामलों का निस्तारण किया जा सकेगा।

स्रोत: द हिंदू


भारतीय अर्थव्यवस्था

प्रतिस्पर्द्धा कानून के अर्थशास्त्र पर राष्ट्रीय सम्मेलन

प्रीलिम्स ले लिये:

प्रतिस्पर्द्धा कानून के अर्थशास्त्र पर राष्ट्रीय सम्मेलन, प्रतिस्पर्द्धा कानून, भारतीय प्रतिस्पर्द्धा आयोग

मेन्स के लिये:

प्रतिस्पर्द्धा कानून और संबंधित मुद्दे

चर्चा में क्यों?

भारतीय प्रतिस्पर्द्धा आयोग (Competition Commission of India-CCI) ने 06 मार्च, 2020 को नई दिल्ली स्थित इंडिया हैबिटेट सेंटर में प्रतिस्पर्द्धा कानून के अर्थशास्त्र पर पाँचवें राष्ट्रीय सम्मेलन का आयोजन किया।

प्रमुख बिंदु

  • प्रधानमंत्री आर्थिक सलाहकार परिषद (PMEAC) के अध्यक्ष डॉ. बिबेक देबरॉय इस राष्ट्रीय सम्मेलन के प्रमुख वक्ता थे।
  • सम्मेलन के दौरान उद्घाटन सत्र के अलावा दो तकनीकी सत्र भी आयोजित किये गए जिनमें शोधकर्त्ताओं ने प्रतिस्पर्द्धात्मक प्रवर्तन और आर्थिक बाज़ारों में प्रतिस्पर्द्धा से संबंधित मुद्दों पर अपने अकादमिक पेपर प्रस्तुत किये।
  • सम्मेलन में अर्थशास्त्रियों, चिकित्सकों और नीति निर्माताओं सहित प्रतिस्पर्द्धा कानून और नीति संबंधी अर्थशास्त्र में गहरी रुचि रखने वाले लोगों को लक्षित किया गया था।

उद्देश्य

  • प्रतिस्पर्द्धा कानून के अर्थशास्त्र पर क्षेत्र में समकालीन मुद्दों पर अनुसंधान और वार्ता को बढ़ावा देना।
  • भारतीय संदर्भ में प्रासंगिक प्रतिस्पर्द्धा के मुद्दों की बेहतर समझ विकसित करना।
  • भारत में प्रतिस्पर्द्धा कानून के कार्यान्वयन हेतु ढाँचा विकसित करना।

प्रतिस्पर्द्धा कानून

  • बाज़ार में निष्पक्ष प्रतिस्पर्द्धा उपभोक्ताओं को प्रतिस्पर्द्धी कीमतों पर वस्तुओं एवं सेवाओं की विस्तृत श्रृंखला तक सुगम पहुँच प्रदान करती है। व्यावसायिक उद्यम अपने हितों की रक्षा के लिये विभिन्न प्रकार की रणनीतियों और युक्तियों को अपनाते हैं।
  • वे अधिक शक्ति और प्रभाव के लिये एक साथ मिल जाते हैं जो उपभोक्ताओं के हितों के लिये हानिकारक हो सकता है और कई बार उनके द्वारा गलत तरीके से मूल्य निर्धारण, कीमत बढ़ाने के लिये जानबूझकर उत्पाद आगत में कटौती, प्रवेश क बाधित करना, बाज़ारों का आवंटन, बिक्री में गठजोड़, अधिक मूल्य निर्धारण और भेदभावपूर्ण मूल्य निर्धारण जैसी पद्धतियाँ अपनाई जाती हैं जिसका विभिन्न समूहों के समाजिक और आर्थिक हित पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है।
  • इसलिये न केवल एकाधिकार अथवा व्यापारिक संयोजनों के गठन को रोकना आवश्यक है बल्कि एक निष्पक्ष और स्वस्थ प्रतिस्पर्द्धा को बढ़ावा देना भी आवश्यक है ताकि उपभोक्ताओं को अपनी खरीद का बेहतर मूल्य प्राप्त हो सके।
  • प्रतिस्पर्द्धा कानून का प्रमुख उद्देश्य उपभोक्ता की प्राथमिकता के अनुकूल बाज़ार के सृजन में प्रतिस्पर्द्धा को सहायक साधन के रुप में प्रयोग करते हुए आर्थिक दक्षता का संवर्द्धन करना है।

भारतीय प्रतिस्पर्द्धा आयोग

Competition Commission of India-CCI

  • किसी भी अर्थव्यवस्था में ‘बेहतर प्रतिस्पर्द्धा’ का अर्थ है- आम आदमी तक किसी भी गुणात्मक वस्तु या सेवा की बेहतर कीमत पर उपलब्धता सुनिश्चित करना।
  • ‘प्रतिस्पर्द्धा’ के इसी वृहद् अर्थ को आत्मसात करते हुए वर्ष 2002 में संसद द्वारा ‘प्रतिस्पर्द्धा अधिनियम, 2002’ (The Competition Act, 2002) पारित किया गया, जिसके बाद केंद्र सरकार द्वारा 14 अक्तूबर, 2003 को भारतीय प्रतिस्पर्द्धा आयोग का गठन किया गया।
  • प्रतिस्पर्द्धा अधिनियम के अनुसार, इस आयोग में एक अध्यक्ष एवं छः सदस्य होते हैं, सदस्यों की संख्या 2 से कम तथा 6 से अधिक नहीं हो सकती किंतु अप्रैल 2018 में केंद्रीय मंत्रिमंडल ने भारतीय प्रतिस्पर्द्धा आयोग का आकार एक अध्‍यक्ष और छह सदस्‍य (कुल सात) से घटाकर एक अध्‍यक्ष और तीन सदस्‍य (कुल चार) करने को मंज़ूरी दे दी। उल्लेखनीय है कि सभी सदस्यों को सरकार द्वारा ‘नियुक्त’ (Appoint) किया जाता है।
  • आयोग के कार्य
    • प्रतिस्पर्द्धा को दुष्प्रभावित करने वाले अभ्यासों (Practices) को समाप्त करना एवं टिकाऊ प्रतिस्पर्द्धा को प्रोत्साहित करना।
    • उपभोक्ताओं के हितों की सुरक्षा करना।
    • भारतीय बाज़ार में ‘व्यापार की स्वतंत्रता’ सुनिश्चित करना।
    • किसी प्राधिकरण द्वारा संदर्भित मुद्दों पर प्रतियोगिता से संबंधित राय प्रदान करना।
    • जन जागरूकता का प्रसार करना।
    • प्रतिस्पर्द्धा से संबंधित मामलों में प्रशिक्षण प्रदान करना।

स्रोत: पी.आई.बी.


भारतीय राजनीति

हिंद महासागर आयोग

प्रीलिम्स के लिये:

हिंद महासागर आयोग, हिंद महासागर में प्रमुख द्वीप और सैन्य बेस

मेन्स के लिये:

हिंद महासागर की भू-राजनीति

चर्चा में क्यों?

हाल ही में ‘हिंद महासागर आयोग ’ (Indian Ocean Commision) की सेशल्स में हुई मंत्रिपरिषदीय बैठक में भारत ‘पर्यवेक्षक’ के रूप में इस आयोग में शामिल हुआ।

हिंद महासागर आयोग :

  • हिंद महासागर आयोग एक अंतर-सरकारी संगठन है जो दक्षिण-पश्चिमी हिंद महासागर क्षेत्र में बेहतर सागरीय-अभिशासन (Maritime Governance) की दिशा में कार्य करता है तथा यह आयोग पश्चिमी हिंद महासागर के द्वीपीय राष्ट्रों को सामूहिक रूप से कार्य करने हेतु मंच प्रदान करता है।
  • वर्तमान में हिंद महासागर आयोग में कोमोरोस, मेडागास्कर, मॉरीशस, रियूनियन (फ्राँस के नियंत्रण में) और सेशल्स शामिल हैं।

Seychelles

  • वर्तमान में भारत के अलावा इस आयोग के चार पर्यवेक्षक- चीन, यूरोपीय यूनियन, माल्टा तथा इंटरनेशनल ऑर्गनाइज़ेशन ऑफ ला फ्रांसोफोनी (International Organisation of La Francophonie- OIF) हैं।

पश्चिमी हिंद महासागर:

  • पश्चिमी हिंद महासागर (The Western Indian Ocean- WIO) हिंद महासागर का एक रणनीतिक क्षेत्र है जो अफ्रीका के दक्षिण-पूर्वी तट को न केवल हिंद महासागर से अपितु अन्य महत्त्वपूर्ण महासागारों से भी जोड़ता है।
  • यह क्षेत्र हिंद महासागर के प्रमुख चोकपाॅईंट्स (Chokepoints) में से एक मोजाम्बिक चैनल के पास अवस्थित है, जहाँ कोमोरोस मोजाम्बिक चैनल के उत्तरी मुहाने पर तथा मेडागास्कर चैनल के पश्चिम सीमा पर अवस्थित है।
  • यद्यपि स्वेज नहर के निर्माण के बाद इस चैनल का महत्त्व कम हो गया था लेकिन होर्मुज़ जलसंधि जो बड़े व्यावसायिक जहाज़ों (विशेष रूप से तेल टैंकरों के लिये) का प्रमुख मार्ग है, ने इस चैनल के महत्त्व को पुनः बढ़ा दिया है।

चैनल (Channel):

  • यह जल के दो बड़े क्षेत्रों, विशेष रूप से दो सागरों को जोड़ता है, परंतु इसके जल क्षेत्र की चौड़ाई जलसंधि (Strait) की तुलना में अधिक तथा वेग कम होता है।

मोजाम्बिक चैनल:

  • मोजाम्बिक चैनल का विस्तार लगभग 12°N अक्षांश से मेडागास्कर के दक्षिणी सिरे पर 25°S अक्षांश तक है।
  • मोजाम्बिक चैनल पूरी तरह से पड़ोसी देशों (मोजाम्बिक, मेडागास्कर, कोमोरोस, तंजानिया और फ्राँस शासित द्वीप) के ‘अनन्य आर्थिक क्षेत्र’ (Exclusive Economic Zone- EEZ) में शामिल है।

भारत के लिये महत्त्व:

  • भारत ने इस संगठन में शामिल होने का निर्णय इसकी बहुआयामी महत्ता को ध्यान में रखकर किया है। इससे भारत की पश्चिमी हिंद महासागर के इस प्रमुख क्षेत्रीय आयोग में आधिकारिक पहुँच सुनिश्चित होगी।
  • यह आयोग पश्चिमी हिंद महासागर के द्वीपों के साथ भारत की कनेक्टिविटी को बढ़ावा देगा।
  • भारत वर्तमान में हिंद-प्रशांत क्षेत्र में अपनी स्थिति को मज़बूत कर रहा है, ऐसे में ये द्वीपीय राष्ट्र भारत-प्रशांत क्षेत्र में भारत की रणनीतिक पहुँच के लिये महत्त्वपूर्ण हैं।
  • यह कदम फ्राँस के साथ संबंधों में प्रगाढ़ता लाएगा क्योंकि फ्राँस की पश्चिमी हिंद महासागर में मज़बूत उपस्थिति है।
  • यह भारत की ‘सागर पहल’; क्षेत्र में सभी के लिये सुरक्षा और विकास ( SAGAR- Security And Growth for All in the Region) नीति को और मज़बूत करता है।
  • यह कदम पूर्वी अफ्रीका के साथ सुरक्षा सहयोग में भी महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाएगा।

भारत के लिये चुनौतियाँ:

  • चीन ने पूर्वी अफ्रीकी देश जिबूती में सैन्य केंद्र, ग्वादर (पाकिस्तान) और हम्बनटोटा (श्रीलंका) में बंदरगाह के निर्माण के साथ इस क्षेत्र में व्यापक उपस्थिति दर्ज कराई है, ऐसे में हिंद महासागर में चीन के दखल के बाद इस क्षेत्र की राजनीतिक व सामरिक तस्वीर पूरी तरह बदल गई है।
  • हिंद महासागर के चोक पॉइंट्स दुनिया में सामरिक दृष्टि से काफी महत्त्वपूर्ण माने जाते हैं, जिनमें होर्मुज़, मलक्का और बाब अल-मन्देब जलसंधि प्रमुख हैं। ऐसे में बाहरी शक्तियों की उपस्थिति भारत की ऊर्जा सुरक्षा को प्रभावित कर सकती है।
  • यह क्षेत्र सिर्फ व्यापार के लिये ही महत्त्वपूर्ण नहीं है, बल्कि वर्तमान में दुनिया के आधे से अधिक सशस्त्र संघर्ष इसी क्षेत्र में देखे जा रहे हैं। ऐसे में यह क्षेत्र न केवल भारत के लिये भू-राजनीतिक दृष्टि से बल्कि भू-सामरिक दृष्टि से भी महत्त्वपूर्ण हो जाता है।

हिंद महासागर में विभिन्न देशों की उपस्थिति:

Countries

हिंद-प्रशांत क्षेत्र में कई ऐसी चुनौतियाँ हैं जो प्रत्यक्ष रूप से भारत के हित को प्रभावित कर सकती हैं। ऐसे में सबसे पहले भारत को अपनी आर्थिक, सामरिक और भू-राजनीतिक शक्तियों का विस्तार करना चाहिये। इस क्षेत्र में चीन और अन्य सुरक्षा चिंताओं से निपटना किसी अकेले देश के लिये संभव नहीं है। अत: भारत को सार्क, बिम्सटेक और आसियान के साथ मिलकर क्षेत्रीय एकता का निर्माण करना चाहिये।

स्रोत: द हिंदू


शासन व्यवस्था

राजनीतिक संगठन और विदेशी धन

प्रीलिम्स ले लिये:

विदेशी योगदान (विनियमन) अधिनियम, (FCRA) 2010

मेन्स के लिये:

राजनीतिक घोषित कर संगठनों को प्रतिबंधित करने संबंधी मुद्दे

चर्चा में क्यों?

सर्वोच्च न्यायालय ने अपने एक आदेश में कहा है कि केंद्र सरकार किसी भी संगठन को ‘राजनीतिक’ घोषित कर उसे विदेशी धन प्राप्त करने से नहीं रोक सकती है।

पृष्ठभूमि

  • ध्यातव्य है कि बीते कुछ वर्षों में केंद्र सरकार ने विदेशी योगदान (विनियमन) अधिनियम, (FCRA) 2010 के प्रावधानों का उपयोग करते हुए कई गैर-सरकारी संगठनों (NGOs) को विदेशी धन प्राप्त करने से प्रतिबंधित कर दिया।
  • केंद्र सरकार के इस प्रतिबंध को लेकर इंडियन सोशल एक्शन फोरम (INSAF) नामक NGO ने एक याचिका दायर की जिसमें विदेशी योगदान (विनियमन) अधिनियम, (FCRA) 2010 और विदेशी योगदान (विनियमन) नियम, 2011 के कुछ प्रावधानों को चुनौती दी गई।

FCRA के प्रावधान जिन्हें चुनौती दी गई

  • FCRA की धारा 5(1)
    • यह प्रावधान केंद्र को यह तय करने की अनुमति देता है कि वास्तव में कोई गैर-राजनीतिक संगठन राजनीतिक प्रकृति का है या नहीं। INSAF का कहना है कि FCRA की धारा 5(1) काफी अधिक अस्पष्ट है, असंवैधानिक बनाता है।
  • FCRA की धारा 5(4)
    • INSAF का तर्क है कि अधिनियम की इस धारा में उस प्राधिकरण को लेकर कुछ स्पष्ट नहीं कहा गया है जिसके समक्ष एक संगठन सरकार द्वारा राजनीतिक घोषित होने पर इस निर्णय को चुनौती दे सके।

न्यायालय का निर्णय

  • जस्टिस एल. नागेश्वर राव और दीपक गुप्ता की खंडपीठ ने कहा है कि ‘कोई भी संगठन जो एक राजनीतिक लक्ष्य या उद्देश्य के बिना अपने अधिकारों के लिये संघर्षरत नागरिकों के समूह का समर्थन करता है, उसे राजनीतिक प्रकृति के संगठन के रूप में घोषित करके दंडित नहीं किया जा सकता है।’
  • हालाँकि न्यायालय ने स्पष्ट किया है कि यदि कोई संगठन अपने राजनीतिक लक्ष्यों की प्राप्ति के लिये संसाधनों का प्रयोग करता है तो उसकी विदेशी फंडिंग पर रोक लगाई जा सकती है।
  • न्यायालय ने अपने निर्णय में किसानों, श्रमिकों, छात्रों, युवाओं आदि के संगठनों या जाति, समुदाय, धर्म, भाषा आधारित संगठनों को समान वरीयता दी है।
  • न्यायालय के अनुसार, ‘यदि किसी संगठन के मेमोरंडम ऑफ एसोसिएशन (Memorandum of Association) में संगठन के राजनीतिक उद्देश्यों को स्वीकृत किया गया है, तो उस संगठन को विदेशी धन प्राप्त करने की अनुमति नहीं दी जा सकती।

विदेशी योगदान (विनियमन) अधिनियम

  • भारत सरकार ने विदेशी योगदान की स्वीकृति और विनियमन के उद्देश्य से वर्ष 1976 में विदेशी योगदान (विनियमन) अधिनियम (FCRA) लागू किया।
  • इसके तहत राजनीतिक प्रकृति का कोई भी संगठन, ऑडियो, ऑडियो विज़ुअल न्यूज़ या करेंट अफेयर्स कार्यक्रम के निर्माण और प्रसारण में लगे किसी भी संगठन को विदेशी योगदान स्वीकार करने के लिये प्रतिबंधित किया गया है।

निष्कर्ष

किसी भी संगठन को मात्र इस आधार पर दंडित करना कि वह अपने अधिकारों के लिये संघर्ष कर रहे लोगों के समूह का समर्थन करता है, किसी भी आधार पर सही नहीं ठहराया जा सकता है। आवश्यक है कि नीति निर्माता इस संदर्भ में अपने निर्णय पर पुनः विचार करें और न्यायालय द्वारा दिये गए निर्देशों का पालन किया जाए।

स्रोत: द हिंदू


भारतीय अर्थव्यवस्था

COVID-19 और करेंसी स्वैप

प्रीलिम्स के लिये:

COVID-19, मुद्रा विनिमय

मेन्स के लिये:

COVID-19 का आर्थिक प्रभाव

चर्चा में क्यों?

हाल ही में भारतीय रिज़र्व बैंक (Reserve Bank of India - RBI) के गवर्नर शक्तिकांत दास ने अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष ( International Monetary Fund- IMF) जैसी अंतर्राष्ट्रीय बहुपक्षीय एजेंसियों द्वारा COVID-19 के प्रसार से प्रभावित देशों के लिये करेंसी स्वैप व्यवस्था को लागू किया जाना आवश्यक बताया है।

मुख्य बिंदु:

  • कोरोना वायरस का प्रकोप चीन के वुहान शहर से शुरू होकर हुए दुनिया के करीब 80 देशों तक फैल चुका है। इस वायरस की चपेट में आकर दुनिया भर में 3,300 से अधिक लोगों की जान जा चुकी है।
  • RBI के अनुसार, भारत के पास कोरोना के प्रभावों से निपटने के लिये भारी मात्रा में विदेशी मुद्रा का पर्याप्त भंडार है।
  • RBI ने वैश्विक स्तर पर नकदी संकट के दबाव को कम करने के लिये अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष द्वारा मुद्रा विनिमय की आसान, निष्पक्ष और खुली प्रणाली शुरू करने की ज़रूरत बताई है।
  • कोरोना वायरस की वजह से वैश्विक आर्थिक वृद्धि दर के नरम पड़ने की आशंका है।
  • सभी केंद्रीय बैंक कोरोना वायरस की चुनौती से निपटने के लिये साथ मिलकर काम करने को संकल्पित हैं।
  • RBI ने घरेलू उद्योगों के बारे में कहा कि देश में कुछ ही ऐसे क्षेत्र हैं जो चीन पर निर्भर हैं और वे इस महामारी से प्रभावित हो सकते हैं। लेकिन इसके असर को कम करने के लिये कदम उठाए जा रहे हैं।
  • कोरोना वायरस का भारत पर सीमित प्रभाव पड़ेगा क्योंकि हमारी अर्थव्यवस्था वैश्विक आपूर्ति श्रंखला पर बहुत ज्यादा निर्भर नहीं है।

मुद्रा विनिमय समझौता

(Currency Swap Agreement):

  • मुद्रा विनिमय समझौता दो देशों के बीच एक ऐसा समझौता है जो संबंधित देशों को अपनी मुद्रा में व्यापार करने और आयात-निर्यात के लिये अमेरिकी डॉलर जैसी किसी तीसरी मुद्रा के प्रयोग के बिना पूर्व निर्धारित विनिमय दर पर भुगतान करने की अनुमति देता है।
  • भारत सरकार ने सार्क सदस्‍य देशों के साथ मुद्रा विनिमय समझौते को विदेशी मुद्रा की अल्‍पकालिक वित्‍तीय ज़रूरतों को पूरा करने और अन्य सार्क देशों को वित्‍तीय सहायता प्रदान करने तथा समस्या का समाधान होने तक भुगतान संतुलन के संकट को दूर करने के उद्देश्य से 15 नवंबर, 2012 को मंज़ूरी दी थी।

आगे की राह:

  • वायरस जनित यह संकट किसी अन्य वित्तीय संकट से बिलकुल अलग है। अन्य वित्तीय संकटों का समाधान समय-परीक्षणित उपायों (Time-tested Measures) जैसे- दर में कटौती, बेल-आउट पैकेज (विशेष वित्तीय प्रोत्साहन) आदि से किया जा सकता है, परंतु वायरस जनित संकट का समाधान इन वित्तीय उपायों द्वारा किया जाना संभव नहीं है।
  • भारत सरकार को लगातार विकास की गति का अवलोकन करने की आवश्यकता है, साथ ही चीन पर निर्भर भारतीय उद्योगों को आवश्यक समर्थन एवं सहायता प्रदान करनी चाहिये।
  • अंतर्राष्ट्रीय संस्थानों द्वारा कोरोना वायरस जैसी बीमारी की पहचान, प्रभाव, प्रसार एवं रोकथाम पर चर्चा की जानी चाहिये ताकि इस बीमारी पर नियंत्रण पाया जा सके।

स्रोत- इंडियन एक्सप्रेस


विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी

क्वांटम सिक्कों एवं कंप्यूटर के साथ नया परीक्षण

प्रीलिम्स के लिये:

क्यूबिट, क्वांटम कंप्यूटर

मेन्स के लिये:

एन्टैंगलमेंट सिद्धांत के अनुप्रयोग

चर्चा में क्यों?

हाल ही में विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग (Department of Science & Technology) के अधीन एक स्वायत्त संस्थान रमन रिसर्च इंस्टीट्यूट (Raman Research Institute-RRI) के शोधकर्त्ताओं द्वारा क्वांटम सिक्कों (Quantum Coins) या क्यूबिट (Qubit) की सटीकता की जाँच करने के लिये एक नई परीक्षण प्रणाली विकसित की गई है।

मुख्य बिंदु:

  • इस परीक्षण में क्वांटम सिक्के या क्यूबिट की सटीकता जानने के लिये एन्टैंगलमेंट सिद्धांत (Entanglement Theory) का प्रयोग किया गया है।
  • क्वांटम कंप्यूटर में क्यूबिट सूचना की बुनियादी इकाई होती है।
  • नए परीक्षण के बारे में भौतिक विज्ञान की एक पत्रिका ‘प्रमाण’ (Pramana) में जानकारी दी गई है तथा इससे संबंधित शोध पत्र को इंटरनेशनल जर्नल आफ क्‍वांटम इन्फाॅरमेशन (International Journal of Quantum Information) में प्रकाशित किया गया।

परीक्षण के बारे में:

  • इस परीक्षण में अनुसंधानकर्त्ताओं द्वारा आईबीएम क्‍वांटम कंप्यूटर (IBM quantum computer) से जुड़े सैद्धांतिक विचार पर कार्य किया गया।
  • अनुसंधानकर्त्ताओं द्वारा IBM कंप्यूटर के साथ कई प्रयोग किये जिसमें प्रयोग में आने वाले हार्डवेयर की कई कमियाँ भी उभरकर सामने आई।
  • अपने इस अन्वेषण में शोधकर्त्ताओं द्वारा आईबीएम क्वांटम कंप्यूटिंग सुविधा (IBM Quantum Computing Facility) पर विभिन्न प्रकार के उपकरणों यथा-विश्लेषणात्मक तकनीक, संख्यात्मक और कंप्यूटर सिमुलेशन का उपयोग किया गया।
  • क्वांटम की स्थिति जानने में एन्टैंगलमेंट की भूमिका को समझने के लिये इन सभी उपकरणों का एक साथ प्रयोग किया गया।

क्वांटम कंप्यूटर-

  • क्वांटम कंप्यूटर भौतिक विज्ञान के क्वांटम सिद्धांत पर कार्य करता है।
  • क्वांटम कंप्यूटर में सूचना ‘क्वांटम बिट’ या ‘क्यूबिट’ में संग्रहीत होती है।
  • क्वांटम कंप्यूटर दोनों बाइनरी इनपुट (0 और 1) को एक साथ ऑपरेट कर सकता है।

क्वांटम सूचना और क्वांटम कंप्यूटिंग प्रौद्योगिकी:

  • क्वांटम सूचना और क्वांटम कंप्यूटिंग प्रौद्योगिकी का एक उभरता हुआ क्षेत्र है जो अपेक्षित रूप से डेटा प्रोसेसिंग को प्रभावित करने की क्षमता रखती है, साथ ही सूचना प्रौद्योगिकी के इस युग में हमारे जीवन में एक केंद्रीय भूमिका भी निभाती है।
  • इसका प्रयोग बैंकिंग से जुड़े लेन-देन, ऑनलाइन शॉपिंग इत्यादि में काफी अधिक देखने को मिलता है। अत: क्‍वांटम की स्थिति की पहचान करने से जुड़ा यह परीक्षण वर्तमान समय में काफी महत्त्वपूर्ण साबित होगा।

क्यूबिट की संरचना:

Qubit

  • उपर्युक्त आकृति सैद्धांतिक विश्लेषण के आधार पर, क्यूबिट की ज्यामिती स्थिति को दर्शाती है।
  • दाईं ओर के अंडाकार सफेद दीर्घवृत्त के भीतर एक नीले रंग की सीमा के साथ काला दीर्घवृत्त दर्शाया गया है।
  • सफेद क्षेत्र क्वांटम से जुडी उस अनुकूल स्थिति का प्रतिनिधित्त्व करता है जो एक संसाधन के रूप में उपयोग करके प्राप्त की गई है।
  • सफेद क्षेत्र दरअसल क्‍वांटम से जुड़ी उस अनुकूल स्थिति को दर्शाता है जो एक संसाधन के रूप में एन्टैंगलमेंट सिद्धांत का उपयोग करने पर प्राप्‍त होती है।

स्रोत: पीआईबी


आपदा प्रबंधन

आपदा प्रबंधन के लिये फ्यूल सेल प्रौद्योगिकी

प्रीलिम्स ले लिये:

फ्यूल सेल प्रौद्योगिकी

मेन्स के लिये:

आपातकालीन संचालन केंद्र

चर्चा में क्यों?

हाल ही में ‘इंटरनेशनल एडवांस्ड रिसर्च फॉर पाउडर मेटलर्जी एंड न्यू मैटेरियल्स’ (International Advanced Research for Powder Metallurgy & New Materials- ARCI) विकास केंद्र, हैदराबाद के वैज्ञानिकों ने ‘पॉलिमर इलेक्ट्रोलाइट मेम्ब्रेन फ्यूल सेल’ (Polymer Electrolyte Membrane fuel cells- PEMFC) का विकास किया है।

मुख्य बिंदु:

  • ARCI विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग (Centre of Department of Science and Technology- DST) का एक स्वायत्त अनुसंधान एवं विकास केंद्र है।
  • ARCI के फ्यूल सेल प्रौद्योगिकी केंद्र, चेन्नई द्वारा 1-20 किलोवाट (kW) की पावर रेंज वाले इन-हाउस PEMFC सिस्टम को विकसित किया है।

पॉलिमर इलेक्ट्रोलाइट मेम्ब्रेन फ्यूल सेल (PEMFC):

  • PEMFC हाइड्रोजन ईधन में संग्रहीत रासायनिक ऊर्जा को सीधे तथा दक्ष तरीके से विद्युत ऊर्जा में बदलता है साथ ही इसमें पारंपरिक बैटरी; जो ऊर्जा बैकअप के लिये ग्रिड-ऊर्जा पर निर्भर रहती है, की भी आवश्यकता नहीं होती है।
  • PEMFC तकनीक पर आधारित फ्यूल सेल का विकेंद्रीकृत बिजली उत्पादन प्रणालियों में अनुप्रयोग किया जा सकता है साथ ही इसका परिचालन कम तापमान पर किया जा सकता है।
  • ये सेल उप-उत्पाद के रूप में केवल जल का निर्माण करते हैं।

तकनीक के लाभ:

  • ऊर्जा के उपभोग में कमी आएगी तथा स्थायी विद्युत आपूर्ति संभव होगी।
  • प्रदूषक उत्सर्जन और जीवाश्म ईंधन पर निर्भरता में कमी आएगी।
  • विकेंद्रीकृत बिजली उत्पादन प्रणालियों में अनुप्रयुक्त करना संभव होगा।

आपातकालीन संचालन केंद्र:

  • 10 kW क्षमता से युक्त ‘आपातकालीन संचालन केंद्र’ (Emergency Operation Centres- EOC) का निर्माण किया जाएगा। इन EOC में फ्यूल सेल स्टैक (ग्रिड पावर की आवश्यकता के बिना हाइड्रोजन गैस का उपयोग करके स्थायी बिजली प्रदान करना) स्थापित किये जाएंगे ताकि लगातार विद्युत की आपूर्ति संभव हो सके।
  • इन EOC को एयर मूविंग सब सिस्टम, पावर कंट्रोल डिवाइसेज़ तथा कंट्रोल एंड मॉनिटरिंग सिस्टम को प्राकृतिक आपदा प्रबंधन उपायों के अनुरूप बनाया गया है।

आपदा प्रबंधन में अनुप्रयोग:

  • आपदा प्रबंधन चक्र में हाल ही में मूलभूत परिवर्तन (Paradigm Shift ) आया है तथा वर्तमान समय में आपदा अनुक्रिया-केंद्रित (Response-Centric) चरण के स्थान पर आपदा प्रबंधन चक्र के प्रारंभिक तथा आपदा के दौरान चरण पर अधिक बल दिया जा रहा है, ताकि भविष्य की आपात-स्थितियों का सामना किया जा सके।
  • इस हेतु सभी देश आपदा नियंत्रण कक्षों (Control Rooms) को आपातकालीन संचालन केंद्रों (EOC) में बदल रहे हैं।
  • EOC अत्याधुनिक संचार प्रणालियों से युक्त होते हैं तथा आपातकालीन स्थिति के दौरान EOC तुरंत प्रतिक्रिया करके आपदा के ‘गोल्डन हाॅवर’ (दुर्घटना के तुरंत बाद के कुछ घंटो का समय) के दौरान तत्काल सहायता प्रदान करते हैं।

आपदा प्रबंधन के चरण:

  • आपदा पूर्व-तैयारी (Pre-Crisis Preparedness):
    • रोकथाम (Prevention)
    • शमन (Mitigation)
    • तैयारी (Preparedness)
  • आपदा के दौरान
    • आपातकालीन प्रत्युत्तर तथा तुरंत सहायता उपलब्ध करना।

आपदा के बाद का चरण:

  • बचाव (Rescue)
  • राहत (Relief)
  • पुनर्वास (Rehabilitation)
  • पुनर्निर्माण (Reconstruction)

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तमिलनाडु सरकार की पहल:

  • वैज्ञानिकों द्वारा विकसित PEMFC तकनीक तमिलनाडु तथा देश के अन्य राज्यों में ऐसे आपातकालीन संचालन केंद्रों को स्थापित करने में मदद करेगी। अकेला तमिलनाडु राज्य प्रतिवर्ष 5-6 चक्रवातों से प्रभावित होता है, जिनमें से 2-3 चक्रवात गंभीर प्रकृति के होते हैं।
  • इन चुनौतियों को देखते हुए तमिलनाडु सरकार ने 10 kW क्षमता वाले फ्यूल सेल स्टैक प्रणाली के साथ मौजूदा नियंत्रण कक्ष को EOC में परिवर्तित करने का फैसला किया।

बदलती जनसांख्यिकी एवं सामाजिक-आर्थिक परिस्थितियों ने भारत में आपदा जोखिमों के प्रति सुभेद्यता को बढ़ा दिया है ऐसे में EOC का निर्माण इन आपदाओं से निपटने में मदद करेगा।

स्रोत: PIB


विविध

Rapid Fire (करेंट अफेयर्स): 07 मार्च, 2020

राम वन गमन पथ

मध्य प्रदेश सरकार ने मुख्यमंत्री कमलनाथ की अध्यक्षता में ‘’राम वन गमन पथ’’ निर्माण के लिये ट्रस्ट गठित करने का निर्णय लिया है। मुख्यमंत्री कमलनाथ की अध्यक्षता में हुई मंत्रिमंडल की बैठक में प्रदेश में ‘राम वन गमन पथ’ निर्माण के लिये ट्रस्ट के गठन को मंज़ूरी मिल गई है। यह मार्ग चित्रकूट से अमरकंटक तक बनेगा जहाँ भगवान राम ने 14 वर्ष के वनवास काल में पत्नी सीता और छोटे भाई लक्ष्मण के साथ वन गमन किया था। आधिकारिक सूचना के अनुसार, ट्रस्ट के पदेन सचिव प्रदेश के मुख्य सचिव होंगे। ट्रस्ट में अन्य सदस्य भी शामिल किये जाएंगे किंतु अभी उनकी संख्या तय नहीं की गई है।

स्टूडेंट हेल्थ कार्ड

जम्मू-कश्मीर सरकार ने 5 मार्च को जम्मू में ‘स्टूडेंट हेल्थ कार्ड’ योजना की शुरुआत की है। इसका उद्घाटन उपराज्यपाल जी.सी. मुरमू ने एक कार्यक्रम में किया। इसका आयोजन शिक्षक दिवस पर जम्मू के राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन के सहयोग से स्कूल शिक्षा विभाग के मध्याह्न भोजन निदेशालय द्वारा किया गया था। इस योजना के तहत स्कूल जाने वाले बच्चों की नियमित जाँच सुनिश्चित की जाएगी। इस योजना का प्रमुख उद्देश्य नियमित जाँच के माध्यम से स्कूल के बच्चों और उनके माता-पिता के स्वास्थ्य में सुधार करना है। इससे पहले सरकार ने ज़रूरतमंद स्कूल जाने वाले बच्चों के लिये कुपोषण को रोकने के उद्देश्य से मिड-डे मील योजना लॉन्च की थी।

बिमल जुल्का

बिमल जुल्का को केंद्रीय सूचना आयोग का नया मुख्य सूचना आयुक्त नियुक्त किया गया है। विदित हो कि इससे पूर्व वे सूचना आयुक्त के तौर पर कार्य कर रहे थे। पिछले मुख्य सूचना आयुक्त सुधीर भार्गव 11 जनवरी को सेवानिवृत्त हुए। बिमल जुल्का 1979 बैच के मध्य प्रदेश कैडर के रिटायर्ड IAS अधिकारी हैं। सूचना अधिकार अधिनयम, 2005 के अंतर्गत केंद्रीय सूचना आयोग का गठन 12 अक्‍तूबर, 2005 को किया गया था। आयोग की अधिकारिता सभी केंद्रीय लोक प्राधिकारियों पर है। आयोग की शक्तियाँ और कार्य सूचना अधिकार अधिनियम की धारा- 18, 19, 20 और 25 में उल्लिखित हैं।

महाराजा रणजीत सिंह

BBC वर्ल्ड हिस्ट्री मैगज़ीन द्वारा कराए गए एक सर्वेक्षण में महाराजा रणजीत सिंह का चयन विश्व में सर्वकालिक 'सबसे महान नेता' के रूप में किया गया है। महाराजा रणजीत सिंह को एक सहिष्णु साम्राज्य बनाने के लिये 38 प्रतिशत से अधिक वोटों के साथ चुना गया। सर्वेक्षण में दूसरे स्थान पर रहे एमिलकर कैबरल को 25 प्रतिशत वोट मिले। कैबरल अफ्रीकी स्वतंत्रता सेनानी थे और उन्होंने अफ्रीकी स्वतंत्रता में प्रमुख भूमिका निभाई थी। महाराजा रणजीत सिंह 19वीं सदी के सिख साम्राज्य के भारतीय शासक थे। महाराजा रणजीत सिंह का जन्म 13 नवंबर, 1780 को गुजरांवाला, पाकिस्तान में हुआ था। उन्हें 'पंजाब का शेर' नाम से भी जाना जाता है और सबसे महान सिख नेताओं में गिना जाता है। रणजीत सिंह ने न केवल पंजाब को एकजुट रखा, बल्कि अंग्रेज़ों को अपने साम्राज्य पर कब्ज़ा करने की अनुमति नहीं दी।\

गौरा देवी

चिपको वूमन के नाम से मशहूर गौरा देवी को वर्ष 1974 में शुरु हुए विश्व प्रसिद्ध चिपको आंदोलन की जननी माना जाता है। गौरा देवी का जन्म वर्ष 1925 में चमोली ज़िले के लाता गांव में हुआ था। वर्ष 1962 में भारत-चीन युद्ध के पश्चात् भारत सरकार ने चमोली में सैनिकों के लिये सुगम मार्ग बनाने हेतु पेड़ों को काटना शुरू कर दिया। जिससे बाढ़ से प्रभावित लोगों में पहाड़ों के प्रति चेतना जागी। इसी चेतना के कारण प्रत्येक गांव में महिला मंगल दलों की स्थापना की गई, वर्ष 1962 में गौरा देवी को रैंणी गांव की महिला मंगल दल का अध्यक्ष चुना गया। गौरा देवी पेड़ों के कटने से रोकने के साथ ही वृक्षारोपण के कार्यों में भी संलग्न रहीं, उन्होंने ऐसे कई कार्यक्रमों का नेतृत्व किया। गौरा देवी को ग्राम स्वराज्य मंडल की 30 महिला मंगल दल की अध्यक्षाओं के साथ भारत सरकार ने वृक्षों की रक्षा के लिये वर्ष 1986 में प्रथम वृक्ष मित्र पुरस्कार भी प्रदान किया था। गौरा देवी का 4 जुलाई, 1991 को निधन हो गया।


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