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डेली न्यूज़

  • 05 Dec, 2022
  • 36 min read
इन्फोग्राफिक्स

वासेनार अरेंजमेंट

Wassenaar-Arrangement


सामाजिक न्याय

UNDP: पलायन रिपोर्ट

प्रिलिम्स के लिये:

UNDP, आंतरिक प्रवास, जलवायु परिवर्तन।     

मेन्स के लिये:

UNDP: पलायन रिपोर्ट।

चर्चा में क्यों?

संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम (UNDP) की रिपोर्ट "टर्निंग टाइड ऑन इंटरनल डिस्प्लेसमेंट: डेवलपमेंट एप्रोच टू साल्युसंस" के अनुसार, पहली बार, वर्ष 2022 में 100 मिलियन से अधिक लोगों को अस्वाभाविक प्रवास देखा गया जिसमे में अधिकांश  देशों के भीतर आंतरिक प्रवास था।

रिपोर्ट के निष्कर्ष:

  • आँकड़ें:
    • वर्ष 2021 के अंत में, संघर्ष, हिंसा, आपदाओं और जलवायु परिवर्तन के कारण अपने देशों के भीतर 59 मिलियन से अधिक लोगों में विस्थापन देखा गया था।
    • यूक्रेन में युद्ध से पहले, 6.5 मिलियन लोगों को आंतरिक रूप से विस्थापित होने का अनुमान है।
    • वर्ष 2050 तक, जलवायु परिवर्तन अनुमानित 216 मिलियन से अधिक लोगों को अपने देशों में आंतरिक पलायन के लिये मज़बूर कर सकता है।
    • आपदा से संबंधित आंतरिक विस्थापन और भी व्यापक है, जिसमे वर्ष 2021 में 130 से अधिक देशों और क्षेत्रों में नए विस्थापन दर्ज किये गए हैं।
    • लगभग 30% पेशेवर जीवनभर के लिये बेरोज़गार हो गए और 24% पहले की तरह धनार्जन में सक्षम नहीं थे। आंतरिक रूप से विस्थापित परिवारों में से 48% ने विस्थापन से पहले की तुलना में धनार्जित किया।
  • प्रभाव:
    • आंतरिक रूप से विस्थापित व्यक्तियों को अपनी बुनियादी ज़रूरतों को पूरा करने, अच्छा काम पाने या आय का एक स्थिर स्रोत पाने में समस्या होती है।
      • इसमें महिला और युवा प्रधान परिवार विशेष रूप से प्रभावित होते हैं।
    • उप-सहारा अफ्रीका, मध्य पूर्व और उत्तरी अफ्रीका तथा अमेरिका के कुछ हिस्से अस्वाभाविक विस्थापन की वजह से सबसे अधिक प्रभावित क्षेत्र हैं।
    • ऐसा अनुमान है कि वर्ष 2021 में प्रत्येक आंतरिक रूप से विस्थापित व्यक्ति को वित्त, आवास, शिक्षा, स्वास्थ्य देखभाल और सुरक्षा देने से जुड़ी प्रत्यक्ष लागत विश्व भर में कुल5 बिलियन अमेरिकी डॉलर से अधिक होगी।
    • विस्थापित व्यक्तियों हेतु पर्याप्त नीतियों के अभाव का कारण विस्थापन से संबंधित पर्याप्त सटीक और व्यापक रूप से स्वीकृत आँकड़ों की कमी है।
  • सुझाव:
    • आने वाले समय में जलवायु परिवर्तन के वजह से होने वाले आंतरिक विस्थापन के रिकॉर्ड स्तरों पर काबू पाने के लिये दीर्घकालिक विकास उपायों की आवश्यकता है।
    • मानवीय सहायता अकेले वैश्विक स्तर पर आंतरिक विस्थापन के रिकॉर्ड स्तर को नियंत्रित नहीं कर सकती है। विकास दृष्टिकोण के माध्यम से आंतरिक विस्थापन के परिणामों को दूर करने हेतु नए तरीके तलाशने करने की आवश्यकता है।
    • विकास संबंधी समाधानों के लिये पाँच प्रमुख मार्ग अपनाए जा सकते हैं, जो इस प्रकार हैं,
      • शासन संस्थाओं को सुदृढ़ करना
      • नौकरियों और सेवाओं तक पहुँच के माध्यम से सामाजिक-आर्थिक एकीकरण को बढ़ावा देना
      • सुरक्षा बहाल करना
      • सह-भागीदारी बढ़ाना
      • सामाजिक एकता का निर्माण करना

संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम (UNDP)

  • संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम (United Nations Development Programme- UNDP) संयुक्त राष्ट्र का वैश्विक विकास नेटवर्क है।
  • UNDP तकनीकी सहायता के संयुक्त राष्ट्र विस्तारित कार्यक्रम (United Nations Expanded Programme of Technical Assistance) और संयुक्त राष्ट्र विशेष कोष (United Nations Special Fund) के विलय पर आधारित है।
  • UNDP की स्थापना वर्ष 1965 में संयुक्त राष्ट्र महासभा द्वारा की गई थी और जनवरी 1966 में इसने सक्रिय रूप से कार्य करना शुरू किया।
  • यह अल्प-विकसित देशों को सहायता पर ज़ोर देने के साथ विकासशील देशों को विशेषज्ञ सलाह, प्रशिक्षण एवं अनुदान सहायता प्रदान करता है।
  • UNDP कार्यकारी बोर्ड विश्व भर के 36 देशों के प्रतिनिधियों से मिलकर बना है जो बारी-बारी से सेवा प्रदान करते हैं।
  • यह पूरी तरह से सदस्य देशों के स्वैच्छिक योगदान द्वारा वित्तपोषित है।
  • UNDP संयुक्त राष्ट्र सतत् विकास समूह (UNSDG) का मुख्य केंद्र है, यह एक ऐसा नेटवर्क है जो 165 देशों तक फैला हुआ है तथा सतत् विकास के लिये वर्ष 2030 एजेंडा को आगे बढ़ाने हेतु कार्य कर रहे संयुक्त राष्ट्र के 40 कोषों, कार्यक्रमों, विशेष एजेंसियों एवं अन्य निकायों को एकजुट करता है।
  • UNDP द्वारा जारी सूचकांक: मानव विकास सूचकांक (HDI)

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न:  

प्रश्न: लगातार उच्च विकास के बावजूद भारत अभी भी मानव विकास के निम्नतम संकेतकों पर है। उन मुद्दों की जाँच करें जो संतुलित और समावेशी विकास को दुशप्राप्य बनाते हैं। (मुख्य परीक्षा, 2016)

स्रोत: डाउन टू अर्थ


सामाजिक न्याय

द फ्यूचर ऑफ फूड एंड एग्रीकल्चर: FAO

प्रिलिम्स के लिये:

FAO, खाद्य सुरक्षा, SDG, द फ्यूचर ऑफ फूड एंड एग्रीकल्चर।

मेन्स के लिये:

द फ्यूचर ऑफ फूड एंड एग्रीकल्चर: FAO।

चर्चा में क्यों?

खाद्य एवं कृषि संगठन (Food and Agriculture Organization- FAO) की नई रिपोर्ट, द फ्यूचर ऑफ फूड एंड एग्रीकल्चर - ड्राइवर्स और ट्रिगर्स फॉर ट्रांसफॉर्मेशन के अनुसार, अगर कृषि और खाद्य प्रणाली भविष्य में भी वर्तमान जैसी ही रही तो आने वाले समय में विश्व को निरंतर ही खाद्य असुरक्षा  की समस्या का सामना करना पड़ेगा।

  • इस रिपोर्ट का उद्देश्य कृषि और खाद्य प्रणालियों के स्थायी, लचीले और समावेशी भविष्य के लिये रणनीतिक सोच तथा कार्यों को प्रेरित करना है।

रिपोर्ट के निष्कर्ष:

  • कृषि एवं खाद्य प्रणाली के वाहक:
    • सामाजिक-आर्थिक और पर्यावरण से जुड़े ऐसे 18 कारक हैं, जोाखाद्य प्रसंस्करण और खाद्य खपत सहित कृषि खाद्य प्रणालियों के भीतर होने वाली विभिन्न गतिविधियों से अंतर्संबंधित होने के साथ उन्हें आकार देने का काम करते हैं।
    • गरीबी और असमानताएंँ, भू-राजनीतिक अस्थिरता, संसाधनों की कमी एवं क्षरण और जलवायु परिवर्तन कुछ प्रमुख चालक हैं जिसका प्रबंधन खाद्य एवं कृषि का भविष्य तय करेगा।
  • खाद्य असुरक्षा पर चिंता:
    • यदि कृषि खाद्य प्रणाली समान बनी रहती है तो भविष्य में विश्व लगातार खाद्य असुरक्षा, घटते संसाधनों और अस्थिर आर्थिक विकास का सामना करेगा।
    • कृषि खाद्य लक्ष्यों सहित सतत् विकास लक्ष्यों (SDGs) को पूरा करने के लिये विश्व "ऑफ ट्रैक" है।
      • कई SDGs सही ट्रैक पर नहीं हैं और इसे तभी हासिल किया जा सकता है, जब कृषि खाद्य प्रणाली को उन वैश्विक प्रतिकूलताओं का सामना करने के लिये सही तरीके से रूपांतरित किया जाए जो बढ़ती संरचनात्मक असमानताओं और क्षेत्रीय असमानताओं के कारण खाद्य सुरक्षा और पोषण को कमज़ोोर करती हैं।
    • वर्ष 2050 तक विश्व में 10 बिलियन लोगों के लिये भोजन की आवश्यकता होगी तथा यह एक अभूतपूर्व चुनौती होगी, यदि वर्तमान रुझानों को बदलने के लिये महत्त्वपूर्ण प्रयास नहीं किये गए।
  • भविष्य के परिदृश्य:
    • कृषि खाद्य प्रणालियों के लिये भविष्य के चार परिदृश्य होंगे जो खाद्य सुरक्षा, पोषण और समग्र स्थिरता के मामले में विविध परिणाम देते हैं।
      • इसके अलावा, यह घटनाओं और संकटों पर प्रतिक्रिया करके निरंतर हस्तक्षेप की परिकल्पना करता है।
      • समायोजित भविष्य, जहाँ कुछ कदम टिकाऊ कृषि खाद्य प्रणालियों की ओर धीमी, अनिश्चित गति से प्रभावित  होते हैं।
      • रेस टू द बाॅटम, जो विश्व को उसके सबसे खराब और अव्यवस्थित रूप में चित्रित करता है।
      • स्थिरता के लिये ट्रेड ऑफ करना, जहाँ अल्पकालिक सकल घरेलू उत्पाद (GDP) के विकास हेतु कृषि-खाद्य सामाजिक आर्थिक और पर्यावरण प्रणालियों की समग्रता, लचीलापन और स्थिरता के लिये व्यापार किया जाता है।।

सुझाव:

  • निर्णय निर्माताओं को अल्पकालिक ज़रूरतों से परे सोचने की ज़रूरत है। दृष्टि की कमी, टुकड़ों में दृष्टिकोण और त्वरित सुधार हर किसी के लिये उच्च लागत पर आएंगे
  • वर्तमान स्वरुप को बदलने की तत्काल आवश्यकता है ताकि कृषि खाद्य प्रणालियों के लिये एक अधिक टिकाऊ और लचीला भविष्य बनाया जा सके।
  • ‘ट्रिगर्स ऑफ ट्रांसफॉर्मेशन' पर काम करने की आवश्यकता है:
    • बेहतर शासन।
    • आलोचनात्मक और सूचित उपभोक्ता।
    • बेहतर आय और धन वितरण।
    • अभिनव प्रौद्योगिकियांँ और दृष्टिकोण।
  • हालाँकि एक व्यापक परिवर्तन एक कीमत पर आएगा और इसके लिये विपरीत उद्देश्यों के व्यापार-बंद की आवश्यकता होगी, जिन्हें सरकारों, नीति निर्माताओं और उपभोक्ताओं को प्रतिमान बदलाव के प्रतिरोध से निपटने के दौरान संबोधित और संतुलित करना होगा।

खाद्य और कृषि संगठन:

  • परिचय:
    • खाद्य और कृषि संगठन की स्थापना वर्ष 1945 में संयुक्त राष्ट्र संघ के तहत की गई थी, यह संयुक्त राष्ट्र की एक विशेष एजेंसी है।
    • प्रत्येक वर्ष विश्व में 16 अक्तूबर को विश्व खाद्य दिवस मनाया जाता है। यह दिवस FAO की स्थापना की वर्षगाँठ की याद में मनाया जाता है।
    • यह संयुक्त राष्ट्र के खाद्य सहायता संगठनों में से एक है जो रोम (इटली) में स्थित है। इसके अलावा विश्व खाद्य कार्यक्रम और कृषि विकास के लिये अंतर्राष्ट्रीय कोष (IFAD) भी इसमें शामिल हैं।
  • FAO की पहलें:
  • फ्लैगशिप पब्लिकेशन (Flagship Publications):

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा विगत वर्ष के प्रश्न  

FAO पारम्परिक कृषि प्रणालियों को 'सार्वभौमिक रूप से महपूर्ण कृषि विरासत प्रणाली (Globally Important System 'GIAHS)' की हैसियत प्रदान करता है। इस पहल का संपूर्ण लक्ष्य क्या है?

  • अभिनिर्धारित GIAHS के स्थानीय समुदायों को आधुनिक प्रौद्योगिकी, आधुनिक कृषि प्रणाली का प्रशिक्षण एवं वित्तीय सहायता प्रदान करना जिससे उनकी कृषि उत्पादकता अत्यधिक बढ़ जाए।
  • पारितंत्र-अनुकूली परंपरागत कृषि पद्धतियां और उनसे संबंधित परिदृश्य (लैंडस्केप), कृषि जैव विविधता और स्थानीय समुदायों के ज्ञानतंत्र का अभिनिर्धारण एवं संरक्षण करना।
  • इस प्रकार चिह्नित अभिनिर्धारित GIAHS के सभी भिन्न-भिन्न कृषि उत्पादों को भौगोलिक सूचक (जिओग्राफिकल इंडिकेशन) की हैसियत प्रदान करना।

नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये:

(a) केवल 1 और 3
(b) केवल 2
(c) केवल 2 और 3
(d) 1, 2 और 3

उत्तर: (b)

 स्रोत: डाउन टू अर्थ


सामाजिक न्याय

IMR, MMR और कुपोषण से निपटने में भारत की प्रगति

प्रिलिम्स के लिये:

शिशु मृत्यु दर, मातृ मृत्यु दर, कुपोषण, अल्पपोषण, NFHS-5, भारत के महापंजीयक, पोषण अभियान, राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन, ICDS योजना, एनीमिया, प्रच्छन भूख, कुपोषण से निपटने की पहल

मेन्स के लिये:

कुपोषण, IMR और MMR से निपटने में चुनौतियाँ और भारत की संबंधित पहल

चर्चा में क्यों?

भारत के महापंजीयक (RGI) द्वारा प्रस्तुत आँकड़े वर्ष 2005 के बाद भारत की मातृ और शिशु मृत्यु दर (MMR और IMR) में गिरावट की गति में वृद्धि दर्शाते हैं।

  • दुर्भाग्य से, पोषण एक प्रमुख क्षेत्र है जो किसी भी बड़ी प्रगति से दूर है।

भारत का महापंजीयक (Registrar General of India):

  • वर्ष 1961 में भारत का महापंजीयक की स्थापना गृह मंत्रालय के तहत भारत सरकार द्वारा की गई थी। यह भारत की जनगणना और भारतीय भाषा सर्वेक्षण सहित भारत के जनसांख्यिकीय सर्वेक्षणों के परिणामों की व्यवस्था, संचालन तथा विश्लेषण करता है।
  • प्रायः एक सिविल सेवक को ही रजिस्ट्रार के पद पर नियुक्त किया जाता है जिसकी रैंक संयुक्त सचिव पद के समान होती है।
  • RGI का कार्यालय मुख्य रूप से निम्नलिखित के संचालन हेतु ज़िम्मेदार है:

MMR और IMR को कम करने में प्रगति:

  • गिरावट के रुझान:
    • RGI के कार्यालय द्वारा जारी एक विशेष बुलेटिन के अनुसार, भारत का MMR वर्ष 2001-03 के दौरान 301 की तुलना में वर्ष 2018-2020 में 97 था।
    • IMR भी वर्ष 2005 में 58 की तुलना में घटकर 27 (वर्ष 2021 तक) हो गया है।
      • इस संदर्भ में ग्रामीण-शहरी अंतराल भी कम हो गया है।
  • NHM और NRHM की भूमिका: पिछले कुछ वर्षों से राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन (NRHM) और राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन (NHM) शिशु और मातृ मृत्यु दर में कमी के मामले में देश के लिये गेम चेंजर रहे हैं।
    • प्राथमिक स्वास्थ्य देखभाल की एक सार्वजनिक प्रणाली के माध्यम से सुलभ और सस्ती स्वास्थ्य सेवा प्रदान करने के लिये वर्ष 2005 में NRHM शुरू किया गया था।
    • NHM को भारत सरकार द्वारा वर्ष 2013 में राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन (2005 में लॉन्च) और राष्ट्रीय शहरी स्वास्थ्य मिशन (2013 में लॉन्च) को एकीकृत करते हुए लॉन्च किया गया था।

NHM

कुपोषण से निपटने का परिदृश्य:

  • परिचय:
    • कुपोषण वह स्थिति है जो तब विकसित होती है जब शरीर विटामिन, खनिज और अन्य पोषक तत्त्वों से वंचित हो जाता है, जिससे उसे स्वस्थ ऊतक तथा अंग के कार्य को बनाए रखने की आवश्यकता होती है।
    • कुपोषण उन लोगों में होता है जो या तो अल्पपोषित होते हैं या अधिक पोषित होते हैं।
  • NFHS 5 के निष्कर्ष:
    • राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण-5, 2019-21 की रिपोर्ट के अनुसार- 5 वर्ष से कम उम्र के 35.5 प्रतिशत बच्चे अविकसित हैं, 19.3 प्रतिशत कमज़ोर हैं और 32.1 प्रतिशत कम वजन वाले हैं।
      • मेघालय में अविकसित बच्चों की संख्या सबसे अधिक (46.5%) है, इसके बाद बिहार (42.9%) का स्थान है।
      • महाराष्ट्र में 25.6% चाइल्ड वेस्टिंग/बच्चों में निर्बलता सबसे अधिक हैं, इसके बाद गुजरात (25.1%) का स्थान है।
    • NFHS-4 की तुलना में, NFHS -5 में अधिकांश राज्यों/संघ राज्य क्षेत्रों में अधिक वजन या मोटापे की व्यापकता में वृद्धि हुई है।
      • राष्ट्रीय स्तर पर, यह महिलाओं के बीच 21% से बढ़कर 24% और पुरुषों के बीच 19% से 23% हो गया।
    • भारत के सभी राज्यों में 5 वर्ष से कम उम्र के बच्चों (58.6 से 67%), महिलाओं (53.1 से 57%) में एनीमिया की स्थिति बिगड़ गई है।
  • सरकार की पहलों की अक्षमता:
    • पोषण अभियान, हालांँकि अभिनव है, अभी भी संस्थागत विकेंद्रीकृत सार्वजनिक कार्रवाई चुनौती को संबोधित नहीं कर पा रहा है।
    • पोषण के लिये की गई पहल विखंडित बनी हुई है; स्थानीय पंचायतों और असंबद्ध वित्तीय संसाधनों वाले समुदायों की संस्थागत भूमिका अभी भी पिछड़ रही है।
  • अन्य मुद्दे:
    • गरीबी, अल्पपोषण, कम कार्य क्षमता, कम कमाई और गरीबी का दुष्चक्र।
    • मलेरिया और खसरा जैसे संक्रमण तीव्र कुपोषण को जन्म देते हैं और मौजूदा पोषण संबंधी कमी को बढ़ाते हैं।
    • किसी परिवार की BPL स्थिति निर्धारित करने में अवैज्ञानिकता और अंतर-राज्य-भिन्नता के परिणामस्वरूप भूख की अवैज्ञानिकता पहचान होती है।
    • सूक्ष्म पोषक तत्वों की कमी (प्रच्छन भूख) के प्रति लापरवाही और पोषण तथा स्तनपान के बारे में माताओं के बीच अपर्याप्त ज्ञान।

कुपोषण से निपटने के लिये पहल:  

  • पोषण अभियान: भारत सरकार ने 2022 तक "कुपोषण मुक्त भारत" सुनिश्चित करने के लिये राष्ट्रीय पोषण मिशन (NNM) या पोषण अभियान शुरू किया है।
  • एनीमिया मुक्त भारत अभियान: 2018 में शुरू किये गए, मिशन का उद्देश्य एनीमिया की गिरावट की वार्षिक दर को एक से तीन प्रतिशत तेज़ करना है।
  • राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम (NFSA), 2013: इसका उद्देश्य अपनी संबद्ध योजनाओं और कार्यक्रमों के माध्यम से सबसे कमज़ोर वर्गों के लिये खाद्य और पोषण सुरक्षा सुनिश्चित करना है।
  • प्रधानमंत्री मातृ वंदना योजना (PMMVY): गर्भवती महिलाओं के प्रसव के लिये बेहतर सुविधाओं का लाभ उठाने के लिये उनके बैंक खातों में सीधे 6,000 रुपए हस्तांतरित किये जाते हैं।
  • एकीकृत बाल विकास सेवा (ICDS) योजना: यह 1975 में शुरू की गई थी और इस योजना का उद्देश्य 6 वर्ष से कम उम्र के बच्चों और उनकी माताओं को भोजन, पूर्वस्कूली शिक्षा, प्राथमिक स्वास्थ्य देखभाल, टीकाकरण, स्वास्थ्य जांच और रेफरल सेवाएँ प्रदान करना है।
  • ईट राइट इंडिया और फिट इंडिया मूवमेंट स्वस्थ भोजन और स्वस्थ जीवन शैली को बढ़ावा देने के लिये कुछ अन्य पहल हैं।

पोषण की सफलता के लिये पुनर्गठन सिद्धांत:

  • ज़मीनी स्तर के प्रशासन (ग्राम पंचायत, ग्राम सभा और अन्य सामुदायिक संगठनों) को शिक्षा, स्वास्थ्य, पोषण, कौशल और विविध आजीविका की ज़िम्मेदारी सौंपी गई है।
  • विकेंद्रीकृत वित्तीय संसाधनों के साथ ग्राम-विशिष्ट योजना प्रक्रिया का संचालन करना।
  • मूल्यांकन (और तदनुसार वृद्धि) (A) घरेलू दौरे सुनिश्चित करने के लिये क्षमता विकास के साथ अतिरिक्त देखभाल करने वालों की आवश्यकता और (B) पोषण में परिणामों के लिये आवश्यक निगरानी की तीव्रता
  • कदन्न सहित स्थानीय भोजन की विविधता को प्रोत्साहित करना।
  • तीव्र व्यवहार संचार।
  • सामुदायिक संबंध और माता-पिता की भागीदारी के साथ प्रत्येक आंँगनवाड़ी केंद्र में मासिक स्वास्थ्य दिवसों को संस्थागत बनाना।
  • सशक्तीकरण के लिये और कौशल के माध्यम से विविध आजीविका के लिये हर गांँव में किशोर लड़कियों के लिये एक मंच बनाना।

निष्कर्ष:

  • एक विषय के रूप में पोषण के लिये संपूर्ण सरकार और पूरे समाज के दृष्टिकोण की आवश्यकता होती है। प्रौद्योगिकी सबसे अच्छा एक साधन हो सकती है और निगरानी भी स्थानीय हो सकती है। पंचायत और सामुदायिक संगठन आगे बढ़ने का सबसे अच्छा तरीका हैं।

UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQs) 

प्रिलिम्स:

प्रश्न: निम्नलिखित में से कौन-से 'राष्ट्रीय पोषण मिशन' के उद्देश्य हैं? (2017)

  1. गर्भवती महिलाओं और स्तनपान कराने वाली माताओं में कुपोषण के बारे में ज़ागरूकता पैदा करना।
  2. छोटे बच्चों, किशोरियों और महिलाओं में एनीमिया के मामलों को कम करना।
  3. बाजरा, मोटे अनाज और बिना पॉलिश किये चावल की खपत को बढ़ावा देना।
  4. पोल्ट्री अंडे की खपत को बढ़ावा देना।

नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये:

(a)  केवल 1 और 2
(b) केवल 1, 2 और 3
(c) केवल 1, 2 और 4
(d) केवल 3 और 4

उत्तर: A

व्याख्या:

  • राष्ट्रीय पोषण मिशन (पोषण अभियान) महिला और बाल विकास मंत्रालय, भारत सरकार का एक प्रमुख कार्यक्रम है, जो आंँगनवाड़ी सेवाओं, राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन, प्रधानमंत्री मातृ वंदना योजना, स्वच्छ-भारत मिशन आदि जैसे विभिन्न कार्यक्रमों के साथ अभिसरण सुनिश्चित करता है।
  • राष्ट्रीय पोषण मिशन (एनएनएम) का लक्ष्य 2017-18 से शुरू होकर अगले तीन वर्षों के दौरान 0-6 वर्ष के बच्चों, किशोरियों, गर्भवती महिलाओं और स्तनपान कराने वाली माताओं की पोषण स्थिति में समयबद्ध तरीके से सुधार करना है। अतः कथन 1 सही है।
  • एनएनएम का लक्ष्य स्टंटिंग, अल्पपोषण, एनीमिया (छोटे बच्चों, महिलाओं और किशोर लड़कियों के बीच) को कम करना तथा बच्चों के जन्म के समय कम वज़न की समस्या को दूर करना है। अत: कथन 2 सही है।
  • एनएनएम के तहत बाजरा, बिना पॉलिश किये चावल, मोटे अनाज और अंडों की खपत से संबंधित ऐसा कोई प्रावधान नहीं है। अत: कथन 3 और 4 सही नहीं हैं। Which of the following are the objectives of ‘National Nutrition Mission’? (2017)

मेन्स:

क्या महिला स्वयं सहायता समूहों के माइक्रोफाइनेंसिंग माध्यम से लैंगिक असमानता, गरीबी और कुपोषण के दुष्चक्र को तोड़ा जा सकता है? उदाहरणों सहित समझाइए। (2021)

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


सामाजिक न्याय

दिव्यांगजनों के लिये स्वास्थ्य समानता पर WHO की वैश्विक रिपोर्ट

प्रिलिम्स के लिये: WHO, दिव्यांग व्यक्ति, दीर्घकालिक बीमारियाँ।

मेन्स के लिये: भारत में दिव्यांग व्यक्तियों से संबंधित मुद्दे, दिव्यांगों के सशक्तीकरण की पहल।

 चर्चा में क्यों?

अंतर्राष्ट्रीय दिव्यांगजन दिवस (3 दिसंबर) से पहले, विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) ने दिव्यांगजनों के लिये स्वास्थ्य समानता पर वैश्विक रिपोर्ट नामक एक रिपोर्ट जारी की है।

रिपोर्ट के प्रमुख निष्कर्ष क्या हैं?

  • दिव्यांगता से संबंधित आँकड़े:
    • वर्तमान में, दुनिया भर में लगभग 1.3 बिलियन लोग या छह में से एक व्यक्ति दिव्यांगता से पीड़ित हैं।
    • प्रणालीगत और लगातार स्वास्थ्य असमानताओं के कारण, कई दिव्यांग व्यक्तियों को सामान्य व्यक्तियों की तुलना में बहुत पहले मरने का खतरा होता है - यहाँ  तक कि यह अवधि 20 वर्ष पहले तक भी हो सकती है।
    • अनुमानित 80% दिव्यांग लोग सीमित संसाधनों के साथ कम और मध्यम आय वाले देशों में रहते हैं, जिससे इन असमानताओं को संबोधित करना मुश्किल हो जाता है।
  • दिव्यांगता का खतरा:
    • उन्हें अस्थमा, अवसाद, मधुमेह, मोटापा, दंत विकार और स्ट्रोक जैसी दीर्घकालिक बीमारियों के अनुबंध का दो गुना खतरा होता है।
    • स्वास्थ्य परिणामों में कई विसंगतियों हेतु अंतर्निहित स्वास्थ्य स्थितियों को जिम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता है, बल्कि रोकथाम योग्य, अनुचित और अन्यायपूर्ण परिस्थितियों को इसके लिये जिम्मेदार ठहराया जा सकता है।
  • स्वास्थ्य देखभाल में असमानता संबंधी कुछ कारक:
    • स्वास्थ्य सेवा प्रदाताओं का प्रतिकूल दृष्टिकोण
    • गैर-बोधगम्य स्वास्थ्य जानकारी प्रारूप
    • शारीरिक बाधाएँ, परिवहन की कमी या वित्तीय बाधाएँ जो स्वास्थ्य केंद्र तक पहुँच को बाधित करती हैं।

प्रमुख सिफारिशें:

  • यह सुनिश्चित करना महत्त्वपूर्ण है कि दिव्यांग व्यक्ति समाज के सभी पहलुओं में पूरी तरह से और प्रभावी ढंग से भाग लें तथा चिकित्सा क्षेत्र में समावेश, पहुँच और गैर-भेदभाव सुनिश्चित किया जाए।
  • स्वास्थ्य प्रणालियों को उन चुनौतियों को कम करना चाहिये जो दिव्यांग व्यक्तियों द्वारा  सामना की जाती हैं।
    • सार्वभौमिक स्वास्थ्य कवरेज प्राप्त करने की दिशा में सभी के लिये स्वास्थ्य संबंधी समानता महत्त्वपूर्ण है;
      • समावेशी सार्वजनिक स्वास्थ्य हस्तक्षेप जो विभिन्न क्षेत्रों में समान रूप से प्रशासित किये जाते हैं, स्वस्थ आबादी में योगदान कर सकते हैं; तथा
      • दिव्यांग व्यक्तियों के लिये स्वास्थ्य संबंधी समानता को आगे बढ़ाना स्वास्थ्य आपात स्थितियों में सभी की सुरक्षा के सभी प्रयासों का एक केंद्रीय घटक है।
    • सरकारों, स्वास्थ्य सह-भागीदारों और नागरिक समाज को यह सुनिश्चित करना चाहिये कि स्वास्थ्य क्षेत्र के सभी कार्यों में दिव्यांगजनों को प्रतिभागी बनाया किया जाए ताकि वे स्वास्थ्य के उच्चतम मानक के अपने अधिकार का लाभ उठा सकें।

दिव्यांगजनों के सशक्तीकरण के लिये हाल की कुछ प्रमुख पहलें

UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQs)    

प्रश्न.  भारत लाखों दिव्यांग व्यक्तियों का घर है। कानून के अंतर्गत उन्हें क्या लाभ उपलब्ध हैं? (2011)

  1. सरकारी स्कूलों में 18 साल की उम्र तक मुफ्त स्कूली शिक्षा।
  2. व्यवसाय स्थापित करने के लिये भूमि का अधिमान्य आवंटन।
  3. सार्वजनिक भवनों में रैंप।

उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?

(a) केवल 1                 
(b) केवल 2 और 3
(c) केवल 1 और 3        
(d) 1, 2 और 3

उत्तर: d

  • जैसा कि वर्ष 2011 में सवाल पूछा गया था, तब दिव्यांग व्यक्तियों के अधिकार अधिनियम, 2016 अस्तित्व में नहीं था। दिव्यांग व्यक्ति (समान अवसर, अधिकारों का संरक्षण और पूर्ण भागीदारी) अधिनियम, 1995 दिव्यांग लोगों के लिये समान अवसर व राष्ट्र निर्माण में उनकी पूर्ण भागीदारी सुनिश्चित करता है।
  • अधिनियम दिव्यांग व्यक्तियों के लिये शिक्षा, रोज़गार और व्यावसायिक प्रशिक्षण, आरक्षण, पुनर्वास तथा सामाजिक सुरक्षा प्रदान करता है।
  • अधिनियम सरकारों और स्थानीय अधिकारियों को यह सुनिश्चित करने का निर्देश देता है कि प्रत्येक दिव्यांग बच्चे को 18 वर्ष की आयु तक एक उपयुक्त वातावरण में मुफ्त शिक्षा मिले तथा सामान्य स्कूलों में दिव्यांग छात्रों के समाकलन को बढ़ावा देने का प्रयास किया जाए, अतः कथन 1 सही है।
  • इसके अलावा अधिनियम सरकारों और स्थानीय प्राधिकरणों को दिव्यांग व्यक्तियों के पक्ष में घर के लिये भूमि के अधिमान्य आवंटन (रियायती दरों पर), व्यवसाय स्थापित करने, विशेष स्कूलों की स्थापना, दिव्यांग उद्यमियों द्वारा कारखानों की स्थापना के लिये योजनाएंँ बनाने का निर्देश देता है। अतः कथन 2 सही है।
  • अधिनियम में अस्पतालों, रेलवे स्टेशनों, हवाई अड्डों आदि सहित सार्वजनिक भवनों में रैंप का प्रावधान है। अतः कथन 3 सही है।

 

स्रोत: डाउन टू अर्थ


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