भारतीय इतिहास
मुस्लिम लीग और भारत में सांप्रदायिक राजनीति का उदय
प्रिलिम्स के लिये:अखिल भारतीय मुस्लिम लीग, अलीगढ़ आंदोलन, नेहरू रिपोर्ट, उत्तर-पश्चिम प्रांत, सांप्रदायिक पुरस्कार, विनायक दामोदर सावरकर, खिलाफत आंदोलन, प्रस्तावना मेन्स के लिये:भारत के विभाजन में अखिल मुस्लिम भारतीय लीग, भारत में सांप्रदायिक राजनीति का विकास, सांप्रदायिकता से संबंधित चुनौतियाँ |
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
चर्चा में क्यों?
30 दिसंबर, 1906 को ढाका में अखिल भारतीय मुस्लिम लीग की स्थापना की गई, जिसने एक ऐसे राजनीतिक संगठन की शुरुआत की, जिसने भारत के विभाजन में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई थी।
- समय के साथ लीग कुलीन मुस्लिम व्यक्तियों के एक समूह से विकसित होकर मुहम्मद अली जिन्ना के नेतृत्व में एक व्यापक राजनीतिक पार्टी के रूप में विकसित हो गई, जो पाकिस्तान के विभाजन का समर्थन करने लगी।
अखिल भारतीय मुस्लिम लीग का इतिहास और प्रभाव क्या था?
- संस्थापक: संभ्रांत मुस्लिम नेता, जिसमें ढेका के नवाब सैयदा, नवाब विकार-उल-मुल्क, नवाब मोहसिन उल-मुल्क और आगा खान शामिल हैं।
- अलीगढ़ आंदोलन, जिसने मुस्लिम राजनीतिक चेतना और शिक्षा को बढ़ावा दिया तथा शिमला प्रतिनिधिमंडल (1906), जिसमें मुस्लिम नेताओं ने विशेष प्रतिनिधित्व की मांग के लिये लॉर्ड मिंटो द्वितीय (1905-1910) से मुलाकात की, ये सभी अखिल भारतीय मुस्लिम लीग की स्थापना से पहले हुए थे।
- प्रारंभिक उद्देश्य: विधायी निकायों में मुसलमानों का विशेष प्रतिनिधित्व सुनिश्चित करना तथा उनके धार्मिक और राजनीतिक अधिकारों की रक्षा करना।
- जिन्ना के नेतृत्व का उदय: मुहम्मद अली जिन्ना ने लीग को एक व्यापक राजनीतिक शक्ति में बदल दिया, विशेष रूप से चौदह सूत्री समझौते (1929) के बाद, जिसमें संघवाद, अल्पसंख्यक सुरक्षा और स्वायत्तता जैसी मुस्लिम राजनीतिक मांगों को रेखांकित किया गया था।
- प्रमुख अधिनियम और संकल्प:
- लखनऊ समझौता (1916): कॉन्ग्रेस-मुस्लिम लीग सहयोग का एक अनूठा उदाहरण लखनऊ समझौता (1916) था। इस समझौते पर मुहम्मद अली जिन्ना और बाल गंगाधर तिलक सहित कई नेताओं ने हस्ताक्षर किये थे, जिन्होंने भारत की स्वतंत्रता के लिये सहयोग करने की प्रतिबद्धता जताई थी।
- कॉन्ग्रेस ने मुसलमानों के लिये अलग निर्वाचन क्षेत्र को स्वीकार कर लिया, जो लीग की एक महत्त्वपूर्ण मांग थी। हालाँकि इससे भारत में सांप्रदायिक राजनीति का उदय भी हुआ।
- इस अधिनियम में विधानमंडल और कार्यकारी परिषदों में भारतीय प्रतिनिधित्व को बढ़ाने की बात कही गई थी। यह स्वतंत्रता संग्राम में हिंदू-मुस्लिम एकता का एक महत्त्वपूर्ण बिंदु था।
- लाहौर प्रस्ताव (1940): वर्ष 1940 तक, जिन्ना के नेतृत्व में लीग ने विभाजन के पक्ष में रुख अपना लिया।
- लाहौर (1940) में अपने अधिवेशन में लीग ने उत्तर-पश्चिमी और पूर्वी क्षेत्रों में मुसलमानों के लिये "स्वतंत्र राज्यों" का समर्थन करते हुए एक प्रस्ताव पारित किया, जहाँ वे बहुसंख्यक थे।
- यह प्रस्ताव, जिसे बाद में पाकिस्तान प्रस्ताव कहा गया, वर्ष 1947 में पाकिस्तान के निर्माण के लिये वैचारिक आधार बन गया।
- प्रत्यक्ष कार्रवाई दिवस: 16 अगस्त, 1946 को मनाया जाने वाला प्रत्यक्ष कार्रवाई दिवस, पाकिस्तान के निर्माण के लिये दबाव बनाने हेतु मुहम्मद अली जिन्ना के नेतृत्व में अखिल भारतीय मुस्लिम लीग द्वारा आहूत एक सांप्रदायिक आंदोलन है।
- इसके कारण बड़े पैमाने पर सांप्रदायिक दंगे हुए, खासतौर पर कोलकाता में, जिसके परिणामस्वरूप हज़ारों लोग मारे गए और संपत्ति नष्ट हो गई। हिंसा ने हिंदू-मुस्लिम विभाजन को आक्रामक तथा विभाजन की मांग को और तेज़ कर दिया।
- विभाजन में भूमिका: जिन्ना के नेतृत्व में मुस्लिम लीग ने पाकिस्तान की मांग का नेतृत्व किया, उनका तर्क था कि हिंदू बहुल भारत में मुसलमानों के साथ उचित व्यवहार नहीं किया जाएगा। इस प्रयास का परिणाम वर्ष 1947 में विभाजन के रूप में सामने आया, जिससे भारत और पाकिस्तान का विभाजन हुआ।
- विभाजन के बाद: लीग पाकिस्तान की प्रमुख पार्टी बन गई, लेकिन समय के साथ इसका कई गुटों में विभाजन हो गया। भारत में इसकी भूमिका कम हो गई और कुछ पिछड़े लोगों ने क्षेत्रीय राजनीतिक समूह का निर्माण किया।
जिन्ना का चौदह सूत्रीय फार्मूला, 1929
पृष्ठभूमि:
- नेहरू रिपोर्ट: वर्ष 1928 में साइमन कमीशन आयोग द्वारा प्रस्तावित संसदीय सुधारों के लिये सर्वदलीय सम्मेलन बुलाया गया था।
- मोतीलाल नेहरू द्वारा प्रस्तुत नेहरू रिपोर्ट ने भारत के लिये डोमिनियन स्टेटस की वकालत की, जबकि बंगाल एवं पंजाब में पृथक निर्वाचिका और मुस्लिम सीट आरक्षण को अस्वीकार कर दिया।
- मुस्लिम प्रतिक्रिया: मुस्लिम नेताओं ने नेहरू रिपोर्ट की आलोचना करते हुए कहा कि यह मुस्लिम हितों के विरुद्ध है। मार्च 1929 में मुहम्मद अली जिन्ना ने दिल्ली में मुस्लिम लीग के एक सत्र की अध्यक्षता की, जहाँ उन्होंने अपने चौदह सूत्र प्रस्तुत किये, जो लीग का घोषणा-पत्र और उसकी राजनीतिक रणनीति का आधार बन गए।
जिन्ना के चौदह सूत्र:
- संघीय संविधान: एक संघीय प्रणाली जिसमें शेष शक्तियाँ प्रांतों को आवंटित होती हैं।
- प्रांतीय स्वायत्तता: प्रांतों के लिये पूर्ण स्वायत्तता।
- संवैधानिक संशोधन: राज्यों की सहमति की आवश्यकता वाले केंद्रीय संशोधन।
- विधानमंडलों में मुस्लिम प्रतिनिधित्व: बहुमत को कम किये बगैर पर्याप्त मुस्लिम प्रतिनिधित्व।
- सेवाओं में प्रतिनिधित्व: सरकारी सेवाओं और स्वशासी निकायों में उचित प्रतिनिधित्व।
- केंद्रीय विधानमंडल: केंद्रीय विधानमंडल में एक तिहाई मुस्लिम प्रतिनिधित्व।
- कैबिनेट प्रतिनिधित्व: केंद्रीय और प्रांतीय मंत्रिमंडलों में एक तिहाई मुस्लिम प्रतिनिधित्व।
- पृथक निर्वाचन क्षेत्र: पृथक निर्वाचन क्षेत्रों का जारी रहना।
- अल्पसंख्यक सुरक्षा: अल्पसंख्यक समूह के तीन-चौथाई भाग द्वारा विरोध किये गए विधेयक पारित नहीं हो सकते।
- प्रादेशिक पुनर्वितरण: प्रादेशिक परिवर्तन से पंजाब, बंगाल और उत्तर-पश्चिमी सीमांत प्रांत जैसे मुस्लिम बहुल क्षेत्रों को कोई नुकसान नहीं होगा।
- सिंध पृथक्करण: सिंध का बंबई से पृथक्करण।
- संवैधानिक सुधार: उत्तर-पश्चिमी सीमांत प्रांत (NWFP) और बलूचिस्तान में सुधार, ताकि इन क्षेत्रों में मुसलमानों को अधिक राजनीतिक स्वायत्तता प्रदान की जा सके।
- धार्मिक स्वतंत्रता: सभी समुदायों के लिये धार्मिक स्वतंत्रता की गारंटी।
- मुस्लिम अधिकारों का संरक्षण: धर्म, संस्कृति, शिक्षा और भाषा के लिये सुरक्षा।
सांप्रदायिक राजनीति क्या है?
- सांप्रदायिकता: इसका तात्पर्य अपने समुदाय, प्रायः धार्मिक, के प्रति प्रबल लगाव से है, जिसमें समूह के भीतर एकता पर ध्यान केंद्रित किया जाता है।
- सांप्रदायिकता के सकारात्मक पहलुओं में यह शामिल है कि यह समुदाय के भीतर सामाजिक और आर्थिक उत्थान को बढ़ावा दे सकती है।
- सांप्रदायिकता के नकारात्मक पहलू समूह की श्रेष्ठता पर ज़ोर देते हैं, जिससे अन्य समुदायों के साथ असहिष्णुता, विभाजन और संघर्ष को बढ़ावा मिलता है।
- यह आंतरिक विविधता का शोषण करता है, अपने हितों को प्राथमिकता देता है, जिससे सामाजिक विभाजन को बढ़ावा मिलता है।
- सांप्रदायिक राजनीति: इसका तात्पर्य राजनीतिक सत्ता के लिये धार्मिक समुदाय को संगठित करना है, जो प्रायः इस विश्वास पर आधारित होता है कि धार्मिक पहचान साझा आर्थिक, राजनीतिक और सामाजिक हितों के समान होती है।
- स्वतंत्रता पूर्व काल:
- ब्रिटिश प्रभाव: सांप्रदायिक राजनीति ब्रिटिश औपनिवेशिक शासन के अंतर्गत नौकरियों, शिक्षा और राजनीतिक पदों जैसे विशेषाधिकारों के लिये सौदेबाज़ी के एक उपकरण के रूप में उभरी है।
- अंग्रेज़ों ने राष्ट्रीय एकता को कमज़ोर करने के लिये हिंदुओं तथा मुसलमानों के बीच विभाजन को बढ़ावा देते हुए “फूट डालो और राज करो” की नीति अपनाई।
- अंग्रेज़ों ने वर्ष 1932 के सांप्रदायिक पंचाट के माध्यम से सांप्रदायिक शक्तियों को समर्थन दिया, जिससे मुस्लिम लीग मज़बूत हुई तथा कॉन्ग्रेस के साथ उसके मतभेद और गहरे हो गए।
- प्रारंभिक लक्ष्य: सैयद अहमद खान जैसे नेताओं द्वारा समर्थित प्रारंभिक सांप्रदायिक राजनीति ने मुस्लिम समुदायों के लिये उच्च पदों की मांग की।
- धार्मिक लामबंदी: अकाली आंदोलन (वर्ष 1919-1926), खिलाफत आंदोलन (वर्ष 1920-21) जैसे उपनिवेशवाद विरोधी आंदोलनों ने सांप्रदायिक विभाजन को गहरा करने में योगदान दिया।
- कॉन्ग्रेस और सांप्रदायिकता: हिंदू-मुस्लिम एकता के लिये प्रतिबद्ध होने के बावजूद, भारतीय राष्ट्रीय कॉन्ग्रेस (कॉन्ग्रेस) के प्रभुत्व और हिंदू सांस्कृतिक प्रतीकों के प्रयोग ने मुसलमानों को अलग-थलग कर दिया।
- बंगाल विभाजन (वर्ष 1905) और पृथक निर्वाचिका मंडलों की स्थापना (वर्ष 1909) के साथ सांप्रदायिक तनाव बढ़ गया।
- मुस्लिम लीग और सांप्रदायिकता: लीग ने कॉन्ग्रेस को एक हिंदू-प्रभुत्व वाली इकाई के रूप में चित्रित किया, जिससे एकीकृत भारत में मुसलमानों के हाशिये पर चले जाने का भय बढ़ गया।
- द्वि-राष्ट्र सिद्धांत का उदय: हिंदुत्व (विनायक दामोदर सावरकर) जैसी सांप्रदायिक विचारधाराएँ और मुस्लिम लीग की पाकिस्तान की मांग भारत के विभाजन के रूप में सामने आई।
- ब्रिटिश प्रभाव: सांप्रदायिक राजनीति ब्रिटिश औपनिवेशिक शासन के अंतर्गत नौकरियों, शिक्षा और राजनीतिक पदों जैसे विशेषाधिकारों के लिये सौदेबाज़ी के एक उपकरण के रूप में उभरी है।
- स्वतंत्रता के बाद की अवधि:
- वैधता और खुलापन: सांप्रदायिक राजनीति को मुख्यधारा में स्वीकृति मिली, विशेष रूप से वर्ष 1980 के दशक में धार्मिक पहचान आधारित विचारधाराओं के उदय के साथ।
- इसने धर्मनिरपेक्षता और बहुलवाद को चुनौती देना आरंभ कर दिया तथा बहुसंख्यक धार्मिक पहचान पर केंद्रित राष्ट्र की वकालत की।
- हिंसा का प्रयोग: चुनावी और आर्थिक उद्देश्यों को प्राप्त करने के लिये प्रायः दंगों एवं नरसंहारों की योजना बनाई जाती है।
- सोशल मीडिया: सोशल प्लेटफॉर्म पर अभद्र भाषा और फर्जी खबरों का प्रसार, सांप्रदायिक तनाव को बढ़ाता है।
- जाति और सांप्रदायिक राजनीति: जाति और धार्मिक पहचान की राजनीति का अंतर्संबंध, जिससे और अधिक विभाजन उत्पन्न होता है।
- न्यायपालिका की भूमिका: सांप्रदायिक हिंसा के मामलों में न्यायिक हस्तक्षेप का धीमा होना, जिसमें न्याय चयनात्मक है।
- वैधता और खुलापन: सांप्रदायिक राजनीति को मुख्यधारा में स्वीकृति मिली, विशेष रूप से वर्ष 1980 के दशक में धार्मिक पहचान आधारित विचारधाराओं के उदय के साथ।
नोट: भारत में धार्मिकता सदैव आध्यात्मिकता और व्यक्तिगत सद्भाव में निहित रही है, जो सामाजिक जीवन का मार्गदर्शन करती है, जबकि सांप्रदायिकता बड़े पैमाने पर ब्रिटिश औपनिवेशिक नीतियों के कारण उभरी।
- धार्मिकता आंतरिक शांति और सामाजिक सद्भाव को बढ़ावा देती है, सांप्रदायिकता प्रायः राजनीति तथा समुदायों के बीच शिकायतों से प्रेरित होती है।
सांप्रदायिक राजनीति को लोकप्रियता क्यों मिलती है?
- आर्थिक पिछड़ापन: गरीबी, बेरोज़गारी और बुनियादी ढाँचे की कमी से समुदाय सांप्रदायिक मुद्दों के प्रति संवेदनशील बनते हैं।
- राजनीतिक अवसरवाद: सांप्रदायिक मुद्दे सत्ता हासिल करने में सहायक होने के साथ शासन की विफलताओं एवं आर्थिक मुद्दों से ध्यान भटकाने में भूमिका निभाते हैं।
- राजनीतिक दल (विशेषकर सांप्रदायिक विचारधारा वाले दल) अक्सर विभाजनकारी रणनीति से वोट बैंक का लाभ उठाते हैं।
- संसाधनों पर नियंत्रण: सांप्रदायिक हिंसा का प्रयोग अक्सर प्रतिस्पर्द्धा को खत्म करने या संपत्तियों को ज़ब्त करने (विशेष रूप से आर्थिक रूप से प्रतिस्पर्द्धी क्षेत्रों में) के लिये किया जाता है।
- ध्रुवीकरण पर बल: आर्थिक मुद्दों के लिये किसी समुदाय को दोषी ठहराने से, विशेष रूप से हाशिये पर स्थित समूहों के बीच विभाजन को बढ़ावा मिलता है।
- इससे खराब प्रशासन से परे अंतर-सामुदायिक प्रतिद्वंद्विता को महत्त्व मिलता है, जिससे विभाजन और गहरा हो जाता है।
- कमज़ोर कानूनी प्रवर्तन: सांप्रदायिक हिंसा के खिलाफ अपर्याप्त कानून से लोग राजनीतिक लाभ के लिये सांप्रदायिक हिंसा का उपयोग करने हेतु प्रोत्साहित होते हैं।
आगे की राह
- धर्मनिरपेक्षता: भारतीय संविधान की प्रस्तावना में निहित धर्मनिरपेक्षता के प्रति संवैधानिक प्रतिबद्धता को सुदृढ़ करना चाहिये।
- सांप्रदायिक और लक्षित हिंसा रोकथाम विधेयक, 2011 को लागू किया जाए ताकि हिंसा एवं धार्मिक वोट बैंक की राजनीति पर अंकुश लगाया जा सके।
- बंधुत्व: भारत की विविधता के साथ संविधान में उल्लिखित बंधुत्व और समानता के मूल्यों के अनुरूप प्रगति, न्याय एवं सभी समुदायों के लिये सम्मान के साझा दृष्टिकोण को बढ़ावा देना चाहिये।
- आर्थिक समानता: असमानताओं को दूर करने एवं सांप्रदायिक तनाव को कम करने के लिये समावेशी आर्थिक विकास पर ध्यान केंद्रित करना चाहिये।
- चुनावी सुधार: हेट स्पीच के माध्यम से सांप्रदायिक प्रचार में शामिल लोगों पर लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 के तहत कठोर दंड लगाया जाना चाहिये।
- भारत निर्वाचन आयोग (ECI) को सांप्रदायिक प्रचार की प्रभावशाली निगरानी रखने एवं उसके खिलाफ कार्रवाई करने हेतु सशक्त बनाया जाना चाहिये।
- नागरिक समाज एवं मीडिया को मज़बूत बनाना: धार्मिक विचारधारा को प्रबंधित करने के क्रम में नागरिक समाज एवं मीडिया को मज़बूत बनाना चाहिये।
- सांप्रदायिक राजनीति के सिद्धांतों के बारे में जनता को शिक्षित करने के साथ सह-अस्तित्व को बढ़ावा देने के लिये मीडिया को तथ्य-आधारित दृष्टिकोण अपनाना चाहिये।
- सांप्रदायिक राजनीति के सिद्धांतों के बारे में जनता को शिक्षित करने के साथ सह-अस्तित्व को बढ़ावा देने के लिये मीडिया को तथ्य-आधारित दृष्टिकोण अपनाना चाहिये।
दृष्टि मुख्य परीक्षा प्रश्न: प्रश्न: भारत के विभाजन में अखिल भारतीय मुस्लिम लीग की भूमिका एवं भारत की सांप्रदायिक राजनीति पर इसके प्रभाव का परीक्षण कीजिये। |
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्षों के प्रश्न (PYQs)मेन्सQ. भारतीय समाज की विविधता और बहुलवाद पर वैश्वीकरण के प्रभावों की चर्चा कीजिये। अपने उत्तर के समर्थन में उपयुक्त उदाहरण दीजिये। (2020) |
भारतीय अर्थव्यवस्था
भारत की बुनियादी ढाँचे के विकास की यात्रा
प्रिलिम्स के लिये:बुनियादी ढाँचा, GPS, गैलेथिया खाड़ी, भारत-मध्य पूर्व-यूरोप आर्थिक गलियारा, सागरमाला, नमो भारत ट्रेन, RRTS कॉरिडोर, पर्वतमाला कार्यक्रम, यूक्रेन, गाज़ा, दिल्ली-मुंबई एक्सप्रेसवे, PM गतिशक्ति राष्ट्रीय मास्टर प्लान, डेडिकेटेड फ्रेट कॉरिडोर, कवच, वैकल्पिक ईंधन, ग्रीन बिल्डिंग, PLI। मेन्स के लिये:भारत के बुनियादी ढाँचे के विकास के लिये उपलब्धियाँ, चुनौतियाँ और आगे की राह। |
स्रोत: बिज़नेस स्टैंडर्ड
चर्चा में क्यों?
पिछले 25 वर्षों में बढ़ती प्रगति और निजी भागीदारी के साथ भारत का बुनियादी ढाँचा बदल गया है। हालाँकि चुनौतियाँ बनी हुई हैं क्योंकि वर्ष 2047 तक 30 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर की अर्थव्यवस्था के लक्ष्य तक पहुँचने के लिये आवश्यक बुनियादी ढाँचे का 90% निर्माण अभी भी किया जाना है।
वर्ष 2024 तक बुनियादी ढाँचा क्षेत्र में भारत की उपलब्धियाँ क्या हैं?
- सड़कें और राजमार्ग: वर्ष 2000 के बाद से सड़क नेटवर्क लगभग तीन गुना बढ़कर 146,000 किमी. हो गया है, जिसमें आधुनिक प्रवेश-नियंत्रित एक्सप्रेसवे और GPS-आधारित टोल प्रणाली शामिल हैं।
- वर्ष 2014 के बाद से, सरकार ने 3.74 लाख किमी. ग्रामीण सड़कें बनाई हैं, जिससे 99% से अधिक ग्रामीण बस्तियों को जोड़ा गया है और पहुँच में सुधार हुआ है।
- 25 वर्षों में टोल संग्रह 2.1 ट्रिलियन रुपए तक पहुँच गया, जो निजी क्षेत्र की मज़बूत भागीदारी को दर्शाता है।
- रेलवे: भारत की पहली बुलेट ट्रेन परियोजना, जिसमें 280 किमी./घंटा की गति से चलने की क्षमता होगी, वर्ष 2026 तक पूरी हो जाएगी।
- दिसंबर 2023 तक, 93.83% ब्रॉड -गेज ट्रैक (जिसे बड़ी लाइन कहा जाता है और दो पटरियों के बीच की दूरी 5 फीट 6 इंच है) का विद्युतीकरण हो चुका है, जो वर्ष 2014 में 21,801 किमी. से अधिक था।
- कंचनजंगा एक्सप्रेस दुर्घटना जैसी कई हाई-प्रोफाइल घटनाओं के बावजूद पिछले दशक में दुर्घटनाओं में कमी आई है।
- समुद्री क्षेत्र: भारत वर्ष 2047 तक शीर्ष पाँच जहाज़ निर्माण राष्ट्र बनने के लिये 54 ट्रिलियन रुपए का निवेश करने की योजना बना रहा है।
- व्यापारिक संपर्क को बढ़ावा देने के लिये गैलेथिया खाड़ी और भारत-मध्य पूर्व-यूरोप आर्थिक गलियारे जैसे बड़े बंदरगाहों का विकास किया जा रहा है।
- सरकार ने 5.8 लाख करोड़ रुपए के निवेश से बंदरगाह आधुनिकीकरण और तटीय संपर्क सहित 839 सागरमाला परियोजनाएँ शुरू की हैं।
- विमानन: साप्ताहिक घरेलू उड़ानें वर्ष 2000 में 3,568 से बढ़कर वर्ष 2024 में 22,484 हो गई।
- इंडिगो जैसी कम लागत वाली विमान सेवा कंपनियाँ बाज़ार पर हावी हैं, जिससे लाखों लोगों के लिये हवाई यात्रा सुलभ हो गई है।
- एयर इंडिया और इंडिगो से 1,000 से अधिक विमानों के ऑर्डर दीर्घकालिक वृद्धि का संकेत देते हैं।
- वर्ष 2014 और वर्ष 2024 के बीच 84 हवाई अड्डों के निर्माण के साथ परिचालन हवाई अड्डों की कुल संख्या 158 है।
- शहरी मेट्रो: मेट्रो नेटवर्क वर्ष 2014 में 248 किमी. से बढ़कर वर्ष 2024 तक 945 किमी. हो गया है, जो 21 शहरों और 1 करोड़ दैनिक यात्रियों को सेवा प्रदान करता है।
- दिल्ली-मेरठ RRTS कॉरिडोर पर नमो भारत ट्रेन क्षेत्रीय संपर्क और शहरी परिवहन को बढ़ाती है।
- रोपवे विकास: पर्वतमाला कार्यक्रम के तहत 32 रोपवे परियोजनाएँ शुरू की गई हैं, जिससे दुर्गम इलाकों में कनेक्टिविटी बढ़ी है और शहरी भीड़भाड़ कम हुई है।
नोट: विश्व बैंक के लॉजिस्टिक्स प्रदर्शन सूचकांक (LPI) 2023 में भारत 38 वें स्थान पर है
भारत के बुनियादी ढाँचा क्षेत्र के समक्ष चुनौतियाँ क्या हैं?
- रुकी हुई और विलंबित परियोजनाएँ: 10 ट्रिलियन रुपए की भारतमाला परियोजना को लालफीताशाही के कारण स्थगित कर दिया गया, जबकि 20 ट्रिलियन रुपए की विज़न 2047 योजना को नीतिगत बदलाव के बाद स्थगित कर दिया गया है।
- वित्तीय बाधाएँ और संसाधनों का कम उपयोग दिल्ली-मुंबई एक्सप्रेसवे तथा भारत-मध्य पूर्व-यूरोप आर्थिक गलियारे जैसी बड़े पैमाने की परियोजनाओं में बाधा उत्पन्न कर रहे हैं।
- भारत को वर्ष 2047 तक 30 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर की अर्थव्यवस्था बनने के लिये महत्त्वपूर्ण निवेश की आवश्यकता है, जबकि 90% बुनियादी ढाँचे का निर्माण अभी भी किया जाना है।
- धीमी प्रगति: रेलवे मार्ग का विस्तार धीमा रहा है, वर्ष 2000 से अब तक औसतन प्रतिवर्ष केवल 231 किमी. नई पटरियाँ जोड़ी गई हैं, जो प्रतिदिन एक किलोमीटर से भी कम है।
- राजमार्ग परियोजना अनुबंधों में तीव्र गिरावट आई है, जो अगस्त 2024 तक 1,152 किमी. के ऐतिहासिक निम्नतम स्तर पर पहुँच गई है।
- निजी क्षेत्र पर निर्भरता: यद्यपि निजी क्षेत्र की भागीदारी में वृद्धि हुई है, फिर भी परियोजनाओं के लिये पूंजी का पुनर्चक्रण एक चुनौती बनी हुई है।
- टोल संग्रह ने समानता संबंधी चिंताएँ उत्पन्न कर दी हैं, क्योंकि वर्ष 2000 से अब तक एकत्रित 2.1 ट्रिलियन रुपए में से निजी निगमों को 1.4 ट्रिलियन रुपए ही प्राप्त हुआ हैं।
- पूंजी का पुनर्चक्रण गैर-प्रमुख या कम प्रदर्शन करने वाली परिसंपत्तियों को बेचने और अधिक लाभदायक अवसरों में पुनर्निवेश करने की रणनीति है।
- समुद्री व्यवधान: समुद्री क्षेत्र वर्ष 2047 तक शीर्ष 5 जहाज़ निर्माण राष्ट्र बनने के अपने लक्ष्य को पूरा करने के लिये संघर्ष कर रहा है, यूक्रेन और गाज़ा युद्धों तथा वैश्विक आपूर्ति शृंखला के पतन से इसमें बाधा आ रही है।
- विमानन क्षेत्र से संबंधित बाधाएँ: तीव्र प्रतिस्पर्द्धा के कारण जेट एयरवेज, किंगफिशर एयरलाइंस और गो फर्स्ट सहित कई एयरलाइनें दिवालिया हो गई हैं।
- इंडिगो और निजीकृत एयर इंडिया के बीच बाज़ार एकीकरण से प्रतिस्पर्द्धा सीमित हो जाती है और एकाधिकारवादी प्रवृत्तियों का खतरा उत्पन्न हो जाता है।
बुनियादी ढाँचे के विकास के लिये सरकार की पहल क्या हैं?
- पीएम गति शक्ति योजना
- भारतमाला योजना
- राष्ट्रीय अवसंरचना पाइपलाइन (NIP)
- सागरमाला परियोजना
- उड़े देश का आम नागरिक (उड़ान)
आगे की राह:
- एकीकृत अवसंरचना: यह सुनिश्चित करके कि अवसंरचना विकास एक-दूसरे के पूरक हैं, पीएम गतिशक्ति राष्ट्रीय मास्टर प्लान देरी और दोहराव को कम करता है, जबकि उच्च गति संचार को बढ़ाता है।
- एक्सप्रेसवे, हाई-स्पीड रेल कॉरिडोर, समर्पित वस्तु ढुलाई कॉरिडोर, उन्नत हवाई अड्डे और मल्टी-मॉडल लॉजिस्टिक्स पार्क जैसे उच्च गति परिवहन नेटवर्क व्यापार एवं आपूर्ति शृंखला के प्रदर्शन को बढ़ावा देते हैं।
- सुरक्षित एवं लचीला बुनियादी ढाँचा: रेलवे के लिये कवच और उन्नत यातायात प्रबंधन प्रणाली जैसी सरकार की पहलों का उद्देश्य दुर्घटनाओं को कम करना एवं सुरक्षा में सुधार करना है।
- वाहनों में उन्नत चालक सहायता प्रणाली (ADAS) जैसी प्रौद्योगिकियों को अपनाने तथा सुरक्षित बुनियादी ढाँचे के निर्माण से नागरिकों की सुरक्षा बढ़ेगी एवं मृत्यु दर में कमी आएगी।
- हरित प्रौद्योगिकियों को शामिल करना: सार्वजनिक परिवहन में इलेक्ट्रिक वाहनों और वैकल्पिक ईंधनों की ओर बदलाव से परिवहन क्षेत्र के कार्बन उत्सर्जन में कमी आएगी तथा FAME-II एवं PLI जैसी योजनाएँ इस बदलाव को गति देंगी।
- हरित भवन, जल संरक्षण, अपशिष्ट प्रबंधन और नवीकरणीय ऊर्जा पर ध्यान केंद्रित करने से भविष्य की बुनियादी संरचना सतत् एवं जलवायु-अनुकूल बनेगी।
- तकनीकी एकीकरण: सुगम टोल भुगतान के लिये फास्टैग और हवाईअड्डे पर आसान चेक-इन के लिये डिजीयात्रा ऐप जैसी प्रौद्योगिकी का उपयोग सुविधा में वृद्धि कर यात्रा का समय बचाता है।
- नीति और विनियामक सुधार: भारत को बुनियादी ढाँचे के लक्ष्यों को पूरा करने के लिये विशेष रूप से बंदरगाहों, रेलवे और विमानन में निजी क्षेत्र के निवेश को बढ़ावा देने के लिये विनियामक सुधार एवं एक स्पष्ट नीति ढाँचे को आगे बढ़ाना चाहिये।
- सरकार, निजी क्षेत्र और स्थानीय समुदायों को आवश्यक नीतियों तथा निवेशों सहित बहु-वर्षीय राष्ट्रीय परिवहन रणनीति विकसित करने के लिये सहयोग करना चाहिये।
दृष्टि मुख्य परीक्षा प्रश्न: प्रश्न: भारत के बुनियादी ढाँचा क्षेत्र की उपलब्धियों और चुनौतियों का विश्लेषण कीजिये तथा इसके भविष्य के विकास के लिये उपाय सुझाइये। |
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रश्न. भारत में ‘पब्लिक की इंफ्रास्ट्रक्चर’ पदबंध किसके प्रसंग में प्रयुक्त किया जाता है? (2020) (a) डिजिटल सुरक्षा अवसंरचना व्याख्या: (a) प्रश्न: 'राष्ट्रीय निवेश और बुनियादी ढाँचा कोष' के संदर्भ में निम्नलिखित कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं? (2017)
नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये: (a) केवल 1 उत्तर: (d) मेन्स:प्रश्न1. “अधिक तीव्र और समावेशी आर्थिक विकास के लिये बुनियादी ढाँचे में निवेश आवश्यक है।” भारत के अनुभव के आलोक में चर्चा कीजिये। (2021) |
भारतीय अर्थव्यवस्था
भारत में नवीकरणीय ऊर्जा क्षमता का दोहन
स्रोत: एलएम
प्रिलिम्स के लिये:नवीकरणीय ऊर्जा, पवन ऊर्जा, 500-गीगावाट गैर-जीवाश्म, सौर ऊर्जा, ग्रिड कनेक्टेड रूफटॉपसौर, लघु जल विद्युत, बायोमास ऊर्जा, अपशिष्ट से ऊर्जा, खंडित भूमि स्वामित्व, ग्रिड इंफ्रास्ट्रक्चर, ग्रीन हाइड्रोजन, डिजिटाइज्ड भूमि रिकॉर्ड, ट्रांसमिशन लाइनें मेन्स के लिये:नवीकरणीय ऊर्जा लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिये नवीकरणीय ऊर्जा क्षमता को बढ़ाने का महत्त्व। |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में नवीन एवं नवीकरणीय ऊर्जा मंत्रालय ने राज्यों से पवन ऊर्जा पर ध्यान केंद्रित करते हुए नवीकरणीय ऊर्जा परियोजनाओं के लिये भूमि उपलब्धता को सुगम बनाने पर ज़ोर दिया है।
वर्तमान पवन ऊर्जा क्षमता 47.95 गीगावाट है, सरकार का लक्ष्य इसे दोगुना करके 100 गीगावाट करना तथा भूमि तक पहुँच बढ़ाकर वर्ष 2030 तक 500 गीगावाट गैर-जीवाश्म ऊर्जा लक्ष्य तक पहुँचने के लिये हमारे देश की अटूट प्रतिबद्धता को दर्शाता है।
नवीकरणीय ऊर्जा क्या है?
- नवीकरणीय ऊर्जा: नवीकरणीय ऊर्जा प्राकृतिक, पुनःपूर्ति योग्य स्रोतों जैसे सौर, पवन, जल विद्युत, बायोमास, भू-तापीय और ज्वार से प्राप्त ऊर्जा है।
- ये स्रोत सतत् और पर्यावरण के अनुकूल हैं, जिससे जीवाश्म ईंधन पर निर्भरता कम होती है।
- प्रकार:
- सौर ऊर्जा: सौर पैनलों या सौर तापीय प्रणालियों का उपयोग करके सूर्य के विकिरण से प्राप्त की जाती है।
- पवन ऊर्जा: पवन टर्बाइनों द्वारा पवन की गतिज ऊर्जा को विद्युत् में परिवर्तित करके उत्पन्न की जाती है ।
- जलविद्युत: प्रवाहित जल (नदियों, बाँधों, झरनों) की ऊर्जा का उपयोग करके उत्पादित।
- बायोमास ऊर्जा: हीटिंग, विद्युत् और जैव ईंधन के लिये पौधों के अवशेषों और पशु अपशिष्ट जैसे कार्बनिक पदार्थों से निर्मित।
- भू-तापीय ऊर्जा: विद्युत उत्पादन और प्रत्यक्ष तापन के लिये पृथ्वी की आंतरिक ऊष्मा (गर्म पानी, भाप) से प्राप्त।
- ज्वारीय एवं तरंग ऊर्जा: विद्युत उत्पन्न करने के लिये समुद्री जल की गति (गुरुत्वाकर्षण खिंचाव या सतही तरंगें) का उपयोग करती है।
नवीकरणीय ऊर्जा में भारत की क्षमता क्या है?
- सौर ऊर्जा: राष्ट्रीय सौर ऊर्जा संस्थान (NISE) के अनुसार, वर्ष में 300 से अधिक ग्रीष्म ऋतू में ऊर्जा की क्षमता 748 गीगावाट है तथा सौर पीवी मॉड्यूल बंजर भूमि के 3% हिस्से को कवर करते हैं।
- राजस्थान, गुजरात और तमिलनाडु जैसे राज्य सौर ऊर्जा विकास में अग्रणी हैं, जहाँ विशाल सौर पार्क राष्ट्रीय ग्रिड में योगदान दे रहे हैं।
- पवन ऊर्जा: भारत की पवन ऊर्जा क्षमता 300 गीगावाट से अधिक है, जो मुख्य रूप से तमिलनाडु, गुजरात, महाराष्ट्र, आंध्र प्रदेश और कर्नाटक में केंद्रित है।
- गुजरात और तमिलनाडु जैसे राज्य तटीय क्षेत्रों में अपतटीय पवन ऊर्जा परियोजनाएँ क्षमता में महत्त्वपूर्ण रूप से वृद्धि कर सकती हैं।
- जल विद्युत: भारत में अनुमानतः 148 गीगावाट से अधिक जल विद्युत क्षमता है, जिसमें से 46 गीगावाट का अभी तक दोहन नहीं हुआ है।
- लघु जलविद्युत संयंत्र, विशेष रूप से हिमालयी और पूर्वोत्तर क्षेत्रों में (<25 मेगावाट) 20 गीगावाट की क्षमता प्रदान करते हैं।
- भू-तापीय ऊर्जा: लद्दाख, हिमाचल प्रदेश और झारखंड भारत के उल्लेखनीय राज्य हैं जहाँ 10 गीगावाट भू-तापीय ऊर्जा उत्पादन की क्षमता है।
- पुगा घाटी (लद्दाख) में परियोजनाएँ भूतापीय ऊर्जा की अप्रयुक्त क्षमता को उजागर करती हैं।
- महासागरीय ऊर्जा: समुद्री जल में ज्वार, लहर और महासागरीय तापीय ऊर्जा संग्रहित होती है। इनमें से, भारत में 40GW तरंग ऊर्जा का दोहन संभव है।
- कच्छ की खाड़ी और सुंदरवन जैसे तटीय क्षेत्र ज्वारीय ऊर्जा की संभावनाएँ प्रदान करते हैं।
भारत में पवन ऊर्जा सहित नवीकरणीय ऊर्जा के विस्तार में क्या चुनौतियाँ हैं?
- भूमि की कमी और उपयोग संबंधी संघर्ष: नवीकरणीय ऊर्जा क्षेत्र, विशेष रूप से पवन ऊर्जा क्षेत्र को मुख्यतः सघन आबादी वाले या पारिस्थितिक रूप से संवेदनशील क्षेत्रों में भूमि और आदर्श पवन ऊर्जा स्थलों तक पहुँचने में चुनौतियों का सामना करना पड़ता है।
- किसान और स्थानीय समुदाय पवन ऊर्जा परियोजनाओं के लिये भूमि पुनः आबंटित करने के प्रति प्रतिरोधी हैं।
- गुजरात, महाराष्ट्र और तमिलनाडु जैसे राज्यों में उपयुक्त भूमियों का समेकन करना विशेष रूप से चुनौतीपूर्ण है, जहाँ भूमि प्रायः विभिन्न मालिकों के बीच विभाजित होती है।
- वित्तपोषण और निवेश संबंधी मुद्दे: पवन ऊर्जा परियोजनाओं के लिये पर्याप्त अग्रिम पूंजी की आवश्यकता होती है। लाभ में अनिश्चितता और लंबी पुनर्भुगतान अवधि निजी निवेशकों को हतोत्साहित करती है।
- ग्रिड एकीकरण और कटौती: पवन ऊर्जा की अस्थायी प्रकृति और मौसमी पवन प्रतिरूप आपूर्ति अस्थिरता का कारण बनते हैं, तथा पीक सीजन के दौरान ग्रिड कटौती से लाभप्रदता कम हो जाती है।
- उच्च गुणवत्ता वाली साइटों की कमी: पवन ऊर्जा के दृष्टिकोण से अनुकूलतम स्थान पहले से ही अधिग्रहीत हैं, जिसके कारण नई परियोजनाओं को कम व्यवहार्य क्षेत्रों में स्थापित करने के लिये बाध्य होना पड़ रहा है।
- अनुमोदन में विलंब और नीतिगत अंतराल: पवन ऊर्जा परियोजनाओं को पर्यावरण, वन्यजीव और वन संबंधी मंजूरी प्राप्त करने में लंबे समय तक विलंब का सामना करना पड़ता है।
- लगातार वित्तीय प्रोत्साहन या दीर्घकालिक नीतियों का अभाव निवेशकों का विश्वास कम करता है।
- अपतटीय पवन ऊर्जा की चुनौतियाँ: उच्च स्थापना लागत, उन्नत प्रौद्योगिकी आवश्यकताओं और सीमित सरकारी समर्थन के कारण अपतटीय पवन ऊर्जा की क्षमता का अभी तक दोहन नहीं हो पाया है।
नवीकरणीय ऊर्जा को बढ़ावा देने के लिये भारत की पहल क्या है?
- प्रधानमंत्री किसान ऊर्जा सुरक्षा एवं उत्थान महाभियान (पीएम-कुसुम)
- सौर PV मॉड्यूल के लिये PLI योजना
- प्रधानमंत्री सूर्योदय योजना
- सौर पार्क और अल्ट्रा मेगा सौर ऊर्जा
- हरित ऊर्जा गलियारा योजना
- राष्ट्रीय हरित हाइड्रोजन मिशन
- राष्ट्रीय जैव ऊर्जा कार्यक्रम
- नवीकरणीय ऊर्जा में FDI
आगे की राह
- भूमि तक पहुँच में सुधार: अप्रयुक्त सरकारी भूमि के अधिग्रहण के लिये पारदर्शी नीतियाँ स्थापित करना तथा डिजिटल भूमि अभिलेखों और नामित नवीकरणीय क्षेत्रों के माध्यम से प्रक्रियाओं को सुव्यवस्थित करना।
- दोहरे उपयोग वाली परियोजनाओं को बढ़ावा देना, जहाँ भूमि उपयोग को अनुकूलतम बनाने के लिये सौर फार्म कृषि या चरागाह के साथ-साथ मौजूद हों।
- ट्रांसमिशन अवसंरचना को मज़बूत करना: नवीकरणीय परियोजनाओं को मांग केंद्रों से जोड़ने के लिये हरित ऊर्जा गलियारों के विकास में तेज़ी लाना।
- विद्युत उत्पादन को स्थिर करने और परिवर्तनशीलता को कम करने के लिये ट्रांसमिशन लाइनों की स्थापना में तेज़ी लाना और हाइब्रिड प्रणालियों (सौर+पवन+भंडारण) में निवेश करना।
- नीतियों में सामंजस्य स्थापित करना: राज्य-स्तरीय असंगतियों को दूर करने के लिये एक एकीकृत राष्ट्रीय नवीकरणीय ऊर्जा नीति तैयार करना।
- निवेश आकर्षित करने के लिये कर छूट, ब्याज सब्सिडी और प्रदर्शन-आधारित पुरस्कार जैसे दीर्घकालिक प्रोत्साहन प्रदान करना।
- सब्सिडी देकर और आयात पर निर्भरता कम करके "मेक इन इंडिया" के तहत सौर पैनलों और पवन टर्बाइनों के स्थानीय उत्पादन को प्रोत्साहित करना।
- अपतटीय पवन ऊर्जा पर ध्यान केंद्रित करना: अपतटीय पवन ऊर्जा परियोजनाओं का संचालन करना तथा विकास को बढ़ावा देने के लिये विशेष उपकरणों पर आयात शुल्क कम करते हुए वित्तीय प्रोत्साहन प्रदान करना।
- वित्तपोषण और अनुसंधान एवं विकास: किफायती वित्तपोषण उपलब्ध कराने के लिये हरित बैंकों की स्थापना करना तथा कार्यकुशलता में सुधार और लागत कम करने के लिये उन्नत प्रौद्योगिकियों के अनुसंधान में निवेश करना।
- पर्यावरणीय स्थिरता और कौशल विकास: संपूर्ण पर्यावरणीय आकलन सुनिश्चित करना, ऊर्जा घटकों के पुनर्चक्रण को बढ़ावा देना और सामुदायिक सहभागिता कार्यक्रम आयोजित करना।
दृष्टि मेन्स प्रश्न प्रश्न: भारत में नवीकरणीय ऊर्जा क्षमता के विस्तार में प्रमुख चुनौतियाँ क्या हैं, तथा वर्ष 2030 तक 500 गीगावाट गैर-जीवाश्म ईंधन लक्ष्य को पूरा करने के लिये इनका समाधान कैसे किया जा सकता है? |
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रिलिम्स:प्रश्न. निम्नलिखित में से कौन-सा सरकार की एक योजना 'उदय'(UDAY) का उद्देश्य है? (2016) उत्तर: (d) मेन्स:प्रश्न. परंपरागत ऊर्जा की कठिनाइयों को कम करने के लिये भारत की ‘हरित ऊर्जा पट्टी’ पर लेख लिखिये।(2013) |
अंतर्राष्ट्रीय संबंध
क्वाड सहयोग के 20 वर्ष पूरे
प्रिलिम्स के लिये:क्वाड, इंडो-पैसिफिक, मालाबार अभ्यास, सूचना संलयन केंद्र, कैंसर मूनशॉट, आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस, स्ट्रिंग ऑफ पर्ल्स, ब्लू डॉट नेटवर्क, इंडो-पैसिफिक इकोनॉमिक फ्रेमवर्क मेन्स के लिये:भारत की विदेश नीति में क्वाड का महत्त्व, हिंद-प्रशांत क्षेत्र में क्वाड का महत्व, भारत और उसके द्विपक्षीय संबंध |
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
चर्चा में क्यों?
क्वाड विदेश मंत्रियों ने क्वाड (Quad) सहयोग की 20वीं वर्षगाँठ मनाई और चीन की बढ़ती आक्रामकता के बीच स्वतंत्र, खुले और शांतिपूर्ण हिंद-प्रशांत के प्रति अपनी प्रतिबद्धता की पुष्टि की।
क्वाड के बारे में मुख्य बिंदु क्या हैं?
- क्वाड या चतुर्भुज सुरक्षा वार्ता अमेरिका, जापान, भारत और ऑस्ट्रेलिया का एक रणनीतिक मंच है जिसका उद्देश्य हिंद-प्रशांत क्षेत्र में क्षेत्रीय सुरक्षा और आर्थिक सहयोग को बढ़ाना है।
- उद्देश्य: इसका लक्ष्य चीन के बढ़ते प्रभाव को चुनौती देना, लोकतंत्र, मानवाधिकार और विधि के शासन का समर्थन करना तथा खुले और स्वतंत्र हिंद-प्रशांत क्षेत्र को आगे बढ़ाना है।
- क्वाड का गठन:
- वर्ष 2004 की सुनामी: इस समूह की उत्पत्ति वर्ष 2004 की सुनामी के बाद किये गए राहत प्रयासों से जुड़ी हुई है, जिसमें संयुक्त राज्य अमेरिका, जापान, ऑस्ट्रेलिया और भारत ने मिलकर बचाव अभियान चलाया था।
- 2007 गठन: जापानी प्रधानमंत्री शिंजो आबे के सुझाव पर वर्ष 2007 में क्वाड की औपचारिक स्थापना की गई।
- चीनी दबाव और क्षेत्रीय तनाव के कारण वर्ष 2008 में ऑस्ट्रेलिया इस समझौते से बाहर निकल गया।
- वर्ष 2017 में पुनरुद्धार: अमेरिका-ऑस्ट्रेलिया के बीच सैन्य संबंधों में वृद्धि के कारण ऑस्ट्रेलिया की वापसी हुई। पहली आधिकारिक क्वाड वार्ता 2017 में फिलीपींस में आयोजित की गई थी।
- वर्ष 2017 में पुनरुद्धार: अमेरिका और ऑस्ट्रेलिया के बीच बेहतर सैन्य संबंधों के परिणामस्वरूप ऑस्ट्रेलिया समझौते से बाहर निकल गया। फिलीपींस ने वर्ष 2017 में पहली औपचारिक क्वाड चर्चा की मेज़बानी की।
- मालाबार अभ्यास: मालाबार अभ्यास वर्ष 1992 में भारत और अमेरिका के बीच द्विपक्षीय नौसैनिक अभ्यास के रूप में शुरू किया गया था। जापान वर्ष 2015 में इसमें शामिल हुआ और ऑस्ट्रेलिया वर्ष 2020 में शामिल हुआ।
- क्वाड की प्रकृति: क्वाड किसी औपचारिक गठबंधन संरचना, सचिवालय या निर्णय लेने वाली संस्था के बिना कार्य करता है।
- यह मंच नियमित बैठकों के माध्यम से अस्तित्त्व में रहता है, जिसमें मंत्रिस्तरीय और नेता स्तरीय शिखर सम्मेलन, साथ ही सूचना का आदान-प्रदान एवं सैन्य अभ्यास शामिल हैं।
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क्वाड की प्रमुख पहल:
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समुद्री क्षेत्र जागरूकता के लिये हिंद भारत-प्रशांत साझेदारी (IPMDA): अवैध मत्स्य संग्रहण और समुद्री गतिविधियों की वास्तविक समय निगरानी को बढ़ाता है।
- IPMD प्रशांत द्वीप समूह फोरम मत्स्य एजेंसी और भारत के सूचना संलयन केंद्र-हिंद महासागर क्षेत्र जैसे क्षेत्रीय निकायों के साथ सहयोग करता है।
- हिंद-प्रशांत क्षेत्र में प्रशिक्षण के लिये समुद्री पहल (मैत्री): समुद्री सुरक्षा और कानून प्रवर्तन प्रशिक्षण के लिये क्षमता निर्माण का समर्थन करता है।
- इंडो-पैसिफिक लॉजिस्टिक्स नेटवर्क: इसका उद्देश्य क्षेत्र में त्वरित आपदा प्रतिक्रिया के लिये साझा एयरलिफ्ट और लॉजिस्टिक्स क्षमताओं का लाभ उठाना है।
- क्वाड कैंसर मूनशॉट: इसका लक्ष्य गर्भाशय-ग्रीवा कैंसर की रोकथाम और उपचार है, तथा आने वाले दशकों में लाखों लोगों के जीवन को बचाने की योजना है।
- भविष्य की साझेदारी के क्वाड बंदरगाह: भारत-प्रशांत क्षेत्र में सतत् और लचीले बंदरगाह बुनियादी ढाँचे का विकास करेगा, जिसमें भारत वर्ष 2025 में क्षेत्रीय बंदरगाह और परिवहन सम्मेलन की मेज़बानी करेगा।
- ओपन रेडियो एक्सेस नेटवर्क (ओपन RAN): ओपन RAN के साथ क्वाड सुरक्षित और लचीले 5G पारिस्थितिकी तंत्र की सुविधा प्रदान करता है।
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- अगली पीढ़ी के कृषि को सशक्त बनाने के लिये नवाचारों को बढ़ावा देना (AI-ENGAGE): यह भारत-प्रशांत क्षेत्र में कृषि पद्धतियों को बेहतर बनाने और किसानों को सशक्त बनाने के लिये कृत्रिम बुद्धिमत्ता (AI), रोबोटिक्स और सेंसिंग का उपयोग करता है।
- बायोएक्सप्लोर पहल: जैविक अनुसंधान के लिये AI का लाभ उठाने हेतु 2 मिलियन अमेरिकी डॉलर की परियोजना, जिसमें स्वास्थ्य सेवा, स्वच्छ ऊर्जा और धारणीय कृषि में अनुप्रयोग शामिल हैं।
- सेमीकंडक्टर आपूर्ति शृंखला आकस्मिकता नेटवर्क: सेमीकंडक्टर आपूर्ति शृंखलाओं में जोखिम को कम करने के लिये सहयोग को बढ़ाता है।
- क्वाड फेलोशिप: सदस्य देशों में स्नातक STEM (विज्ञान, प्रौद्योगिकी, इंजीनियरिंग, गणित) शिक्षा को वित्तपोषित करता है और हाल ही में आसियान छात्रों को शामिल करने के लिये इसका विस्तार किया गया है।
- भारत का क्वाड छात्रवृत्ति कार्यक्रम प्रतिवर्ष हिंद-प्रशांत क्षेत्र के 50 इंजीनियरिंग छात्रों को सहायता प्रदान करता है।
- आतंकवाद निरोधी कार्य समूह (CTWG) : यह समूह आतंकवादी उद्देश्यों के लिये मानव रहित हवाई प्रणालियों, रासायनिक, जैविक, रेडियोलॉजिकल और परमाणु खतरों (CBRN) और इंटरनेट के दुरुपयोग का मुकाबला करने पर ध्यान केंद्रित करता है।
भारत के लिये क्वाड का क्या महत्त्व है?
- समुद्री सुरक्षा: नौवहन की स्वतंत्रता को बढ़ावा देने तथा समुद्री डकैती और अवैध मत्स्यन का मुकाबला करके भारत के समुद्री हितों की सुरक्षा सुनिश्चित की जाती है।
- संयुक्त नौसैनिक अभ्यास अंतर-संचालन और समुद्री क्षेत्र जागरूकता को बढ़ाते हैं।
- सामरिक महत्त्व: क्वाड विशेष रूप से "स्ट्रिंग ऑफ पर्ल्स" जैसी चीन की आक्रामक नीतियों का मुकाबला करने के लिये हिंद-प्रशांत क्षेत्र में चुनौतियों का समाधान करने के लिये एक मंच प्रदान करता है।
- क्वाड पूर्व और दक्षिण पूर्व एशिया के साथ संबंधों को मज़बूत करने के लिये भारत की एक्ट ईस्ट पॉलिसी के अनुरूप है।
- आर्थिक अवसर: ब्लू डॉट नेटवर्क और आपूर्ति शृंखला लचीलापन पहल जैसी पहलों के माध्यम से आर्थिक सहयोग को प्रोत्साहित करता है ।
- कोविड के बाद, भारत के पास चीन से स्थानांतरित होने वाली विनिर्माण इकाइयों को आकर्षित करने और वैश्विक अर्थव्यवस्था में आपूर्ति शृंखला लचीलापन बढ़ाने का अवसर है।
- वैज्ञानिक सहयोग: क्वाड फेलोशिप STEM क्षेत्रों में शैक्षणिक और वैज्ञानिक अनुसंधान को प्रोत्साहित करती है।
- लोगों के बीच संबंध: सांस्कृतिक और अकादमिक आदान-प्रदान को बढ़ाता है, भारत की सॉफ्ट पॉवर कूटनीति को बढ़ावा देता है।
समकालीन वैश्विक संदर्भ में क्वाड की प्रासंगिकता क्या है?
- क्वाड की निरंतर प्रासंगिकता
- सामरिक महत्त्व: क्वाड हिंद-प्रशांत क्षेत्र में, विशेष रूप से दक्षिण चीन सागर जैसे विवादित क्षेत्रों में चीन के बढ़ते प्रभाव को संतुलित करने के लिये एक महत्त्वपूर्ण मंच बना हुआ है।
- क्वाड ने इंडो-पैसिफिक पर आसियान आउटलुक, प्रशांत द्वीप समूह फोरम और हिंद महासागर रिम एसोसिएशन के लिये समर्थन का वचन दिया, तथा मौजूदा क्षेत्रीय ढाँचे के साथ सहयोग करने में अपनी भूमिका पर प्रकाश डाला।
- समुद्री सुरक्षा: IMPDA जैसी पहल सदस्य देशों की अवैध गतिविधियों पर नजर रखने और उनके विशेष आर्थिक क्षेत्रों (EEZ) की सुरक्षा करने की क्षमता को बढ़ाती है।
- सामरिक महत्त्व: क्वाड हिंद-प्रशांत क्षेत्र में, विशेष रूप से दक्षिण चीन सागर जैसे विवादित क्षेत्रों में चीन के बढ़ते प्रभाव को संतुलित करने के लिये एक महत्त्वपूर्ण मंच बना हुआ है।
- विविध एजेंडा: यह क्वाड सुरक्षा से परे स्वास्थ्य, प्रौद्योगिकी, बुनियादी ढाँचे और जलवायु परिवर्तन जैसे विभिन्न मुद्दों पर ध्यान देता है, जो इसकी अनुकूलनशीलता और बहुआयामी दृष्टिकोण को दर्शाता है।
- क्वाड कैंसर मूनशॉट, महामारी संबंधी तैयारी पहल और जलवायु अनुकूलन उपाय जैसे कार्यक्रम क्षेत्रीय स्थिरता में इसके व्यावहारिक योगदान को प्रदर्शित करते हैं।
- संस्थागत सुदृढ़ीकरण: नियमित शिखर सम्मेलनों, मंत्रिस्तरीय संवादों ने क्वाड को संस्थागत रूप दिया है, जिससे इसकी स्थिरता और विकास की क्षमता सुनिश्चित हुई है।
- जन-केंद्रित पहल: फैलोशिप, छात्रवृत्ति और लोगों के बीच संबंध क्वाड की सॉफ्ट पॉवर को सुदृढ़ करते हैं और क्षेत्र में विश्वास का निर्माण करते हैं।
- क्वाड की प्रासंगिकता के लिये चुनौतियाँ:
- औपचारिक संरचना का अभाव: क्वाड में सचिवालय या स्थायी निर्णय लेने वाली संस्था का अभाव है, जिससे महत्त्वपूर्ण मुद्दों पर समन्वित कार्रवाई और आम सहमति सीमित हो जाती है, जिससे वैश्विक चुनौतियों का प्रभावी ढंग से समाधान करने की इसकी क्षमता बाधित होती है।
- अलग-अलग प्राथमिकताएँ: क्वाड के सदस्यों के राष्ट्रीय हित भिन्न हैं। उदाहरण के लिये भारत की गुटनिरपेक्ष नीति और औपचारिक सैन्य गठबंधनों में शामिल होने की अनिच्छा समूह की रणनीतिक एकजुटता को सीमित कर सकती है।
- सुरक्षा बनाम विकास: अमेरिका और जापान चीन का मुकाबला करने पर अधिक ध्यान केंद्रित कर रहे हैं।
- भारत और ऑस्ट्रेलिया मुख्य रूप से विकासोन्मुख लक्ष्यों पर ज़ोर देते हैं, जिसके कारण उनके दृष्टिकोण भिन्न-भिन्न हैं।
- चीन का बढ़ता प्रभाव: क्वाड प्रयासों के बावज़ूद हिंद-प्रशांत क्षेत्र में चीन का प्रभाव बढ़ता जा रहा है, विशेष रूप से बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (BRI) और प्रशांत द्वीप देशों में निवेश के माध्यम से।
- संसाधन संबंधी बाधाएँ: विभिन्न क्वाड पहलों के लिये पर्याप्त वित्तपोषण और संस्थागत समर्थन की आवश्यकता होती है।
-
विलंब या अपर्याप्त संसाधन आवंटन इनके कार्यान्वयन और प्रभाव में बाधा उत्पन्न कर सकता है।
-
अन्य समूहों के साथ समावेश: क्वाड के उद्देश्य प्रायः अन्य बहुपक्षीय मंचों जैसे आसियान, ऑस्ट्रेलिया, यूके और यूएस (AUKUS), और इंडो-पैसिफिक इकोनॉमिक फ्रेमवर्क (IPEF) के साथ ओवरलैप होते हैं, जिससे इनके दृष्टिकोण में कमी और कमज़ोरियाँ देखने को मिलती हैं।
आगे की राह
- संस्थागतकरण: कार्यकुशलता और जवाबदेही में सुधार हेतु निर्णय लेने तथा कार्यान्वयन के लिये तंत्र को औपचारिक बनाना।
- आसियान जैसे क्षेत्रीय संगठनों के साथ संबंधों को मज़बूत करना अर्थात् प्रतिस्पर्द्धात्मक तो नहीं लेकिन पूरक प्रयास सुनिश्चित करना।
- क्वाड प्लस: दक्षिण कोरिया, न्यूज़ीलैंड, वियतनाम, आसियान और अन्य क्षेत्रों को शामिल करने के लिये क्वाड का विस्तार करने से समावेशिता बढ़ेगी।
- जलवायु परिवर्तन, स्वास्थ्य सेवा और आपदा लचीलेपन पर ध्यान केंद्रित करने के साथ-साथ संस्थागत तंत्र को मज़बूत करने से क्षेत्रीय समर्थन और प्रभावशीलता को बढ़ावा मिलेगा।
- उन्नत संसाधन प्रतिबद्धता: दीर्घकालिक प्रभाव सुनिश्चित करने के लिये बुनियादी ढाँचे, डिजिटल कनेक्टिविटी और नवीकरणीय ऊर्जा परियोजनाओं जैसी पहलों के लिये मज़बूत वित्तपोषण सुनिश्चित करना।
दृष्टि मुख्य परीक्षा प्रश्न: प्रश्न: भारत के लिये क्वाड के रणनीतिक महत्त्व पर चर्चा कीजिये। यह हिंद-प्रशांत क्षेत्र में चीन के बढ़ते प्रभाव से निपटने में किस प्रकार सहायक है? |
UPSC सिविल सेवा परीक्षा विगत वर्ष के प्रश्नमेन्सप्रश्न. भारत-प्रशांत महासागर क्षेत्र में चीन की महत्त्वाकांक्षाओं का मुकाबला करना नई त्रि-राष्ट्र साझेदारी AUKUS का उद्देश्य है। क्या यह इस क्षेत्र में मौज़ूदा साझेदारी का स्थान लेने जा रहा है? वर्तमान परिदृश्य में AUKUS की शक्ति और प्रभाव की विवेचना कीजिये। (वर्ष 2021) प्रश्न. ‘चतुर्भुजीय सुरक्षा संवाद (क्वाड)’ वर्तमान समय में स्वयं को सैन्य गठबंधन से एक व्यापारिक गुट में रूपांतरित कर रहा है - विवेचना कीजिये। (वर्ष 2020) |
जैव विविधता और पर्यावरण
भूजल प्रदूषण पर CGWB की रिपोर्ट
प्रिलिम्स के लिये:केंद्रीय भूजल बोर्ड, फ्लोराइड, यूरेनियम, केंद्रीय भूजल प्राधिकरण, जल जनित रोग, ब्लू बेबी सिंड्रोम, जल शक्ति अभियान (JSA), राष्ट्रीय जलभृत मानचित्रण और प्रबंधन कार्यक्रम (NAQUIM), अटल भूजल योजना (ABHY)। मेन्स के लिये:पर्यावरण प्रदूषण और प्रबंधन, जल संसाधन प्रबंधन, जल गुणवत्ता |
स्रोत: द हिंदू
चर्चा में क्यों?
केंद्रीय भूजल बोर्ड (CGWB) के शोध के अनुसार, पूरे भारत में भूजल प्रदूषण चिंताजनक रूप से बढ़ गया है, जहाँ अधिकतर क्षेत्रों में नाइट्रेट का स्तर बहुत अधिक है।
- यह रासायनिक प्रदूषक पर्यावरणीय समस्याएँ उत्पन्न करता है तथा विशेष रूप से छोटे बच्चों के लिये गंभीर स्वास्थ्य खतरा उत्पन्न करता है।
CGWB रिपोर्ट के मुख्य निष्कर्ष क्या हैं?
- नाइट्रेट संदूषण में वृद्धि: वर्ष 2017 में 359 ज़िलों से बढ़कर वर्ष 2023 तक 440 ज़िलों में भूजल में अत्यधिक नाइट्रेट का स्तर दर्ज किया गया।
- भारत के 56% ज़िलों में नाइट्रेट की सांद्रता 45 मिलीग्राम प्रति लीटर की सुरक्षित सीमा से अधिक है।
- क्षेत्रीय हॉटस्पॉट: राजस्थान (49%), कर्नाटक (48%), और तमिलनाडु (37%) में नाइट्रेट संदूषण का उच्चतम स्तर दर्ज किया गया।
- महाराष्ट्र , तेलंगाना , आंध्र प्रदेश और मध्य प्रदेश में नाइट्रेट संदूषण का स्तर उल्लेखनीय रूप से बढ़ रहा है, जिसके साथ मध्य एवं दक्षिणी भारत में चिंताएँ बढ़ रही हैं।
- मानसून का प्रभाव: मानसून के बाद नाइट्रेट प्रदूषण में वृद्धि हो जाती है, मानसून के मौसम में 32.66% नमूने सुरक्षित स्तर को पार कर गए, जबकि मानसून से पहले यह स्तर 30.77% था।
- अन्य भूजल प्रदूषक: फ्लोराइड संदूषण राजस्थान, हरियाणा, कर्नाटक, आंध्र प्रदेश और तेलंगाना में एक प्रमुख मुद्दा बना हुआ है।
- राजस्थान, पंजाब, हरियाणा, गुजरात, तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश और कर्नाटक में यूरेनियम संदूषण सुरक्षित स्तर से अधिक है , विशेष रूप से अति-शोषित भूजल क्षेत्रों में।
- भूजल निष्कर्षण: वर्ष 2009 से भारत में भूजल निष्कर्षण की दर 60.4% पर स्थिर रही है।
- हालाँकि, भूजल की उपलब्धता में सुधार हुआ है, 73% ब्लॉकों को 'सुरक्षित' क्षेत्र के रूप में वर्गीकृत किया गया है, जो वर्ष 2022 में 67.4% से उल्लेखनीय वृद्धि है।
केंद्रीय भूजल बोर्ड (CGWB)
- जल संसाधन मंत्रालय, भारत सरकार के तहत CGWB भारत में भूजल संसाधनों के प्रबंधन, अन्वेषण, निगरानी, मूल्याँकन और विनियमन के लिये सर्वोच्च निकाय है।
- वर्ष 1970 में स्थापित, CGWB का गठन आरंभ में अन्वेषणात्मक नलकूप संगठन का नाम बदलकर किया गया था और बाद में वर्ष 1972 में इसे भारतीय भूवैज्ञानिक सर्वेक्षण के भूजल विंग के साथ विलय कर दिया गया।
- पर्यावरण संरक्षण अधिनियम, 1986 के तहत गठित केंद्रीय भूजल प्राधिकरण (CGWA) भूजल विकास को विनियमित करता है ताकि इसकी स्थिरता सुनिश्चित की जा सके।
- प्रमुख कार्य और ज़िम्मेदारियाँ: CGWB भूजल प्रबंधन के लिये वैज्ञानिक विशेषज्ञता प्रदान करता है, जिसमें अन्वेषण, निगरानी और जल गुणवत्ता आकलन शामिल हैं।
- यह भूजल स्तर को बढ़ाने के लिये कृत्रिम पुनर्भरण और वर्षा जल संचयन की योजनाओं को भी क्रियान्वित करता है।
- वैज्ञानिक रिपोर्ट: CGWB राज्य और ज़िला जल-भूवैज्ञानिक रिपोर्ट, भूजल वर्ष पुस्तकें और एटलस जारी करता है।
भूजल प्रदूषण के स्रोत क्या हैं?
- कृषि पद्धतियाँ: कृषि में उर्वरकों और कीटनाशकों के अत्यधिक उपयोग से नाइट्रेट और फॉस्फेट मृदा में रिस जाते हैं, जिससे भूजल दूषित हो जाता है।
- अनुचित सिंचाई और जल का अत्यधिक दोहन इस समस्या को और भी गंभीर बना देता है।
- भंडारण टैंक: संक्षारक टैंकों से भूजल में गैसोलीन, तेल या रसायन का रिसाव हो सकता है।
- खतरनाक अपशिष्ट स्थल: रिसाव वाले परित्यक्त स्थल भूजल के लिये खतरा उत्पन्न करते हैं।
- लैंडफिल: यदि सुरक्षात्मक परतें क्षतिग्रस्त हो जाती हैं तो लैंडफिल से प्रदूषक भूजल में रिस सकते हैं।
- सेप्टिक सिस्टम: खराब रखरखाव वाली प्रणालियों से अपशिष्ट और रसायनों का रिसाव हो सकता है, जिससे भूजल प्रदूषित हो सकता है।
- वायुमंडलीय प्रदूषक: वायुमंडल या सतही जल से प्रदूषक अंततः भूजल तक पहुँच सकते हैं।
- वनोन्मूलन: मृदा में प्राकृतिक निस्पंदन की प्रक्रिया बाधित होती है, जिससे अपवाह बढ़ जाता है और प्रदूषक भूजल प्रणालियों में प्रवेश कर जाते है।
भूजल प्रदूषण के निहितार्थ क्या हैं?
- स्वास्थ्य जोखिम: फ्लोराइड, नाइट्रेट और भारी धातु जैसे प्रदूषक गंभीर स्वास्थ्य जोखिम पैदा करते हैं और जलजनित रोगों का कारण बनते हैं।
- अत्यधिक नाइट्रेट संदूषण, विशेष रूप से शिशुओं और छोटे बच्चों के लिये, मेथेमोग्लोबिनेमिया का कारण बन सकता है, जिसे "ब्लू बेबी सिंड्रोम" भी कहा जाता है।
- खाद्य उत्पादन: सिंचाई के लिये प्रयुक्त भारी धातुओं और प्रदूषकों से भूजल संदूषित होने से फसलों में विषाक्त पदार्थ जमा हो सकते हैं, जिससे खाद्य सुरक्षा और मानव स्वास्थ्य को खतरा हो सकता है।
- पर्यावरणीय प्रभाव: नाइट्रेट प्रदूषण स्थानीय पारिस्थितिकी तंत्र को बाधित कर सकता है, तथा पौधों और जलीय जीवन पर प्रभाव डाल सकता है।
- भूजल में प्रदूषक मृदा संदूषण और लवणीकरण का कारण बन सकते हैं।
- लागत में वृद्धि: दूषित भूजल को उपभोग हेतु सुरक्षित बनाने के लिये महंगी उपचार प्रक्रियाओं की आवश्यकता होती है।
- भूजल संदूषण सतही जल तक फैल सकता है, जिससे जल की गुणवत्ता खराब हो सकती है। लगातार संदूषण से स्वच्छ जल की उपलब्धता कम हो जाती है, जिससे जल की कमी और संभावित सामाजिक आर्थिक संकट उत्पन्न हो सकता है।
भूजल प्रदूषण को रोकने के लिये क्या उपाय किए गए हैं?
- जल शक्ति अभियान (JSA)
- राष्ट्रीय जलभृत मानचित्रण एवं प्रबंधन कार्यक्रम (NAQUIM)
- अटल भूजल योजना (ABHY)
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प्रदूषण नियंत्रण कार्यक्रम: केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (CPCB) और राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड द्वारा जल (रोकथाम एवं नियंत्रण) अधिनियम, 1974 के तहत प्रदूषण नियंत्रण उपायों को लागू किया जाता है।
- परिवेश में छोड़े जाने से पहले जल को उपचारित करने के लिये सीवेज उपचार संयंत्र (STP) और अपशिष्ट उपचार संयंत्र (ETP) का निर्माण किया गया है।
- जन जागरूकता अभियान: राजीव गांधी राष्ट्रीय भूजल प्रशिक्षण एवं अनुसंधान संस्थान (RGNGT&RI) जैसे संस्थानों के माध्यम से हितधारकों को प्रशिक्षण देना।
- “कैच द रेन” और स्वच्छ भारत मिशन जैसे प्रयास समुदायों को भूजल संरक्षण के बारे में शिक्षित करते हैं।
आगे की राह
- उर्वरक उपयोग को विनियमित करना: कृषि में नाइट्रोजन उर्वरकों के अत्यधिक उपयोग पर अधिक ध्यान दिया जाना चाहिये। धारणीय कृषि के तरीकों को लागू करने से इस समस्या को कम करने में मदद मिल सकती है।
- वर्षा जल संचयन: वर्षा जल संचयन को प्रोत्साहित करने एवं प्राकृतिक प्रक्रियाओं के माध्यम से भूजल की पुनःपूर्ति से अतिशोषित जलभृतों पर निर्भरता को कम करने में मदद मिल सकती है।
- बेहतर अपशिष्ट प्रबंधन: शहरी क्षेत्रों में कुशल अपशिष्ट प्रबंधन प्रणालियों को अपनाने से भूजल प्रदूषण को कम किया जा सकता है।
- बेहतर निगरानी और नीतियाँ: भूजल की गुणवत्ता की निगरानी बढ़ाने एवं रासायनिक प्रदूषकों के संबंध में सख्त नियम बनाने से प्रदूषण को रोकने में मदद मिल सकती है।
दृष्टि मुख्य परीक्षा प्रश्न: प्रश्न: भारत में भूजल प्रदूषण के क्या प्रभाव हैं? भूजल का बेहतर प्रबंधन किस प्रकार किया जा सकता है? |
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रिलिम्स:प्रश्न. निम्नलिखित में से कौन-सा प्राचीन नगर अपने उन्नत जल संचयन और प्रबंधन प्रणाली के लिये सुप्रसिद्ध है, जहाँ बाँधों की शृंखला का निर्माण किया गया था और संबद्ध जलाशयों में नहर के माध्यम से जल को प्रवाहित किया जाता था? (2021) (a) धौलावीरा उत्तर: (a) प्रश्न. 'वॉटर क्रेडिट' के संदर्भ में, निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2021)
उपर्युक्त कथनों में से कौन-से सही हैं? (a) केवल 1 और 2 उत्तर: (c) मेन्स:प्रश्न. रिक्तीकरण परिदृश्य में विवेकी जल उपयोग के लिये जल भंडारण और सिंचाई प्रणाली में सुधार के उपायों को सुझाइए। (2020) |