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झारखंड स्टेट पी.सी.एस.

  • 01 Jul 2025
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हुल दिवस 2025

चर्चा में क्यों?

हुल दिवस (30 जून, 2025) पर प्रधानमंत्री ने भारत के आदिवासी समुदायों के साहस को श्रद्धांजलि अर्पित की तथा औपनिवेशिक शासन के विरुद्ध संघर्ष करने वाले संथाल हुल आदिवासी शहीदों की विरासत को सम्मानित किया।

मुख्य बिंदु

  • 1855 के संथाल हुल के बारे में:
    • ऐतिहासिक पृष्ठभूमि: 1855 का संथाल हुल भारत में ब्रिटिश औपनिवेशिक शासन के खिलाफ सबसे शुरुआती किसान विद्रोहों में से एक था। चार भाइयों- सिद्धो, कान्हो, चाँद और भैरव मुर्मू तथा बहनों फूलो और झानो के नेतृत्व में, विद्रोह 30 जून 1855 को शुरू हुआ।
      • विद्रोह का लक्ष्य न केवल अंग्रेज़ थे, बल्कि उच्च जातियाँ, ज़मींदार, दरोगा और साहूकार भी थे, जिन्हें सामूहिक रूप से 'दिकू' कहा जाता था।
      • इसका उद्देश्य संथाल समुदाय के आर्थिक, सांस्कृतिक और धार्मिक अधिकारों की रक्षा करना था।
  • विद्रोह की उत्पत्ति:
    • वर्ष 1832 में कुछ क्षेत्रों को ‘संथाल परगना’ या ‘दामिन-ए-कोह’ नाम दिया गया, जिसमें वर्तमान झारखंड में साहिबगंज, गोड्डा, दुमका, देवघर, पाकुड़ और जामताड़ा के कुछ हिस्से शामिल हैं।
      • यह क्षेत्र संथालों को दिया गया था, जो बंगाल प्रेसीडेंसी के अंतर्गत विभिन्न क्षेत्रों से विस्थापित हुए थे।
    • संथाल क्षेत्र में बँधुआ मज़दूरी की दो प्रणालियाँ उभरीं, जिन्हें कामियोती और हरवाही के नाम से जाना जाता है।
    • संथालों को दामिन-ए-कोह में बसने और कृषि करने का वादा किया गया था, लेकिन इसके बदले उन्हें दमनकारी भूमि हड़पने तथा बेगारी (बँधुआ मज़दूरी) का सामना करना पड़ा।
      • कामियोती के तहत, ऋण चुकाए जाने तक ऋणदाता के लिये काम करना पड़ता था, जबकि हरवाही के तहत, ऋणदाता को व्यक्तिगत सेवाएँ प्रदान करनी पड़ती थीं और आवश्यकतानुसार ऋणदाता के खेत की जुताई करनी पड़ती थी। बॉन्ड की शर्तें इतनी सख्त थीं कि संथाल के लिये अपने जीवनकाल में ऋण चुकाना लगभग असंभव था।
  • गुरिल्ला युद्ध एवं दमन:
  • मुर्मू बँधुओं ने ईस्ट इंडिया कंपनी के खिलाफ गुरिल्ला युद्ध में लगभग 60,000 संथालों का नेतृत्व किया। छह महीने तक चले भयंकर प्रतिरोध के बावजूद, जनवरी 1856 में भारी जनहानि और तबाही के साथ विद्रोह का दमन दिया गया।
    • 15,000 से ज़्यादा संथालों ने अपनी जान गँवाई और 10,000 से अधिक गाँवों का विनाश हुआ।
    • हुल ने ब्रिटिश औपनिवेशिक शासन के खिलाफ़ शुरुआती प्रतिरोध को उजागर किया और यह आदिवासी लचीलेपन का प्रतीक बना हुआ है।
  • प्रभाव: इस विद्रोह के परिणामस्वरूप ही संथाल परगना काश्तकारी (Santhal Pargana Tenancy- SPT) अधिनियम, 1876 पारित किया गया जो आदिवासी भूमि को गैर-आदिवासियों को हस्तांतरित करने को प्रतिबंधित करता है, केवल समुदाय के भीतर ही भूमि उत्तराधिकार की स्वीकृति देता है तथा संथालों को अपनी भूमि पर स्वयं शासन करने का अधिकार सुरक्षित रखता है।

संथाल जनजाति

  • जनसांख्यिकीय वितरण:
    • संथाल भारत के सबसे बड़े जनजातीय समुदायों में से एक हैं, जो मुख्यतः झारखंड, बिहार, पश्चिम बंगाल तथा ओडिशा में केंद्रित हैं।
  • भाषा:
  • व्यवसाय और आजीविका:
    • कई संथाल लोग आसनसोल (पश्चिम बंगाल) के पास कोयला खदानों तथा जमशेदपुर (झारखंड) के इस्पात कारखानों में कार्यरत हैं।
    • इसके अतिरिक्त, कुछ लोग मौसमी कृषि मजदूर के रूप में भी काम करते हैं।
    • ग्रामीण क्षेत्रों में चावल की खेती उनकी आर्थिक गतिविधि का मुख्य आधार है।
  • ग्राम प्रशासन:
    • प्रत्येक संथाल गाँव का नेतृत्व एक वंशानुगत मुखिया करता है, जिसे बुजुर्गों की परिषद का सहयोग प्राप्त होता है। यह मुखिया न केवल प्रशासनिक बल्कि धार्मिक और औपचारिक कर्त्तव्यों का भी निर्वहन करता है।
    • गाँवों का एक समूह मिलकर एक परगना बनाता है, जिसका नेतृत्व एक अन्य वंशानुगत मुखिया करता है।
  • गोत्र और सामाजिक संरचना:
    • संथाल समुदाय में 12 वंश (गोत्र) होते हैं, जो आगे पितृवंशीय उपविभागों में विभाजित हैं।
    • गोत्रीय बहिर्विवाह प्रथा का सख्ती से पालन किया जाता है अर्थात् एक ही गोत्र के व्यक्ति आपस में विवाह नहीं कर सकते
    • प्रत्येक कबीले और उप-कबीले की सदस्यता के साथ पहनावे, भोजन, आवास तथा अनुष्ठानों के विशिष्ट नियम जुड़े होते हैं।
    • संथालों में एकल विवाह प्रथा सामान्य है; यद्यपि बहुविवाह की अनुमति है, लेकिन यह दुर्लभ है।
  • धर्म और विश्वास:
    • संथाल पारंपरिक रूप से आत्माओं की पूजा करते हैं और अपने पैतृक पंथों, विशेष रूप से कबीले के मुखियाओं से संबंधित पंथों को विशेष महत्त्व देते हैं।
    • उनकी आध्यात्मिक प्रथाएँ और धार्मिक अनुष्ठान, उनकी सांस्कृतिक पहचान का केंद्रीय हिस्सा हैं।


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