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उत्तर प्रदेश स्टेट पी.सी.एस.

  • 15 Oct 2025
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उत्तर प्रदेश में काऊ टूरिज़्म को प्रोत्साहन

चर्चा में क्यों?

उत्तर प्रदेश सरकार ने राज्य में “काऊ टूरिज़्म’’ (गौ-पर्यटन) को विकसित करने की योजना की घोषणा की है। इसका उद्देश्य गौशालाओं को आत्मनिर्भर बनाना और उन्हें पर्यटक आकर्षण के रूप में बदलना है।

मुख्य बिंदु

  • उद्देश्य:
    • हर ज़िले में एक आदर्श गौशाला स्थापित करना: इसे पर्यटन का मॉडल केंद्र और स्थानीय आय का स्रोत बनाया जाए।
    • गौशालाओं की वित्तीय स्थिरता सुनिश्चित करना: गोबर, मूत्र, दूध और घी जैसे गौ-आधारित उत्पादों के वाणिज्यिक उपयोग को बढ़ावा देना। अधिकारियों को इन संसाधनों के प्रभावी उपयोग के लिये ज़िला-स्तरीय योजना तैयार करने के निर्देश दिये गए हैं।
    • महिला स्वयं-सहायता समूहों (SHG) को शामिल करना: स्थानीय स्तर पर गोबर आधारित और पर्यावरण-अनुकूल उत्पादों के निर्माण और विपणन में महिलाओं की भागीदारी बढ़ाना।
  • पहल:
    • सरकार दीवाली अभियान शुरू करेगी, जिसमें गोबर से बने दीपक और सजावटी वस्तुओं को बढ़ावा दिया जाएगा, ताकि पर्यावरण-अनुकूल उत्सव मनाए जा सकें।
    • ये उत्पाद वोकल फॉर लोकल’ (Vocal for Local) पहल के तहत प्रचारित किये जाएंगे, जिससे नागरिकों को सतत् और देशी उत्पाद अपनाने के लिये प्रोत्साहित किया जा सके।
  • प्रभाव:
    • गौशालाओं की आर्थिक क्षमता बढ़ाकर भटकते हुए पशुओं के प्रबंधन की चुनौती को हल करना।
    • गौ-आधारित उद्योगों के माध्यम से रोज़गार और उद्यमिता के अवसर सृजित करना।
    • गौ-रक्षा प्रयासों को सुदृढ़ करना और साथ ही पर्यावरण-सचेत पर्यटन और ग्रामीण विकास को प्रोत्साहन प्रदान करना।

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उत्तर प्रदेश में फाइलेरिया संक्रमण की दर में गिरावट हुई

चर्चा में क्यों?

उत्तर प्रदेश के 51 ज़िलों के 782 प्रभावित ब्लॉकों में से 544 (लगभग 70%) ब्लॉकों में फाइलेरिया संक्रमण की दर 1% से नीचे आ गई है। यह राज्य के फाइलेरिया उन्मूलन अभियान में एक बड़ी उपलब्धि है।

  • शेष 238 ब्लॉकों में प्रयास जारी हैं। राज्य का लक्ष्य वर्ष 2027 तक फाइलेरिया का पूर्ण उन्मूलन करना है। इस दिशा में निगरानी को सुदृढ़ करने, अंतर-विभागीय समन्वय बढ़ाने तथा ज़िलों के बीच फील्ड स्तर की सर्वोत्तम प्रथाओं को साझा करने पर विशेष ज़ोर दिया जा रहा है।

फाइलेरियासिस से संबंधित प्रमुख तथ्य

  • परिचय: फाइलेरियासिस एक परजीवी संक्रमण है जो सूक्ष्म, धागे जैसे कृमियों/कीड़ों (फाइलेरिया) द्वारा होता है जिन्हें फाइलेरिया कहा जाता है। यह संक्रमित मच्छरों के काटने से फैलता है और विश्व भर के उष्णकटिबंधीय और उपोष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में लाखों लोगों को प्रभावित करता है।
  • कारण एवं संक्रमण:
    • लिंफैटिक फाइलेरियासिस एक परजीवी रोग है जो फिलेरियोडिडिया परिवार के नेमाटोड्स (Roundworms) से होता है।
    • इस रोग के लिये ज़िम्मेदार तीन मुख्य फाइलेरियल कृमि हैं:
    • वुचेरेरिया बैनक्रॉफ्टी: यह 90% मामलों के लिये ज़िम्मेदार है,
    • ब्रुगिया मैलेई: यह शेष अधिकांश मामलों का कारण बनता है,
    • ब्रुगिया टिमोरी: यह भी इस रोग का कारण बनता है।
  • लक्षण: लिंफैटिक फाइलेरियासिस संक्रमण में लक्षणहीन, तीव्र और दीर्घकालिक अवस्थाएँ शामिल होती हैं।
    • दीर्घकालिक अवस्था में, यह लसिका सूजन (lymphoedema) या हाथ-पाँव की सूजन/त्वचा एवं फीलपाँव या हाथीपाँव (Elephantiasis) और हाइड्रोसील (स्क्रोटल स्वेलिंग) का कारण बनता है।
  • उपचार: विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) लिंफैटिक फाइलेरियासिस के वैश्विक उन्मूलन को तीव्र करने हेतु तीन दवा वाले उपचार की अनुशंसा करता है। इसे ट्रिपल ड्रग थेरैपी (IDA) कहा जाता है, जिसमें आइवरमेक्टिन (Ivermectin), डाइएथिलकार्बामाज़ीन साइट्रेट (Diethylcarbamazine citrate) और अल्बेंडाज़ोल (Albendazole) का संयोजन शामिल होता है।

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