झारखंड Switch to English
उच्च न्यायालय ने पॉलिसी विवरण के बिना तीसरे पक्ष के दावों की अनुमति दी
चर्चा में क्यों?
रिलायंस जनरल इंश्योरेंस कंपनी लिमिटेड बनाम हेमलता सिन्हा मामले (2025) में, झारखंड उच्च न्यायालय ने इस बात पर प्रकाश डाला कि परिवार के कमाने वाले सदस्य की मृत्यु के बाद, आश्रितों को अक्सर पॉलिसी विवरणों का अभाव होता है, लेकिन केवल यही तीसरे पक्ष के बीमा दावे को अस्वीकार करने का आधार नहीं हो सकता।
- यह निर्णय भारतीय बीमा विनियामक और विकास प्राधिकरण (IRDAI) के उपभोक्ता संरक्षण ढाँचे और 2047 तक 'सभी के लिये बीमा' प्राप्त करने के उसके लक्ष्य के अनुरूप है।
मुख्य बिंदु
- IRDAI के बारे में:
- इसकी स्थापना वर्ष 1999 में IRDAI अधिनियम, 1999 के तहत की गई थी।
- यह एक नियामक संस्था है और इसका गठन बीमा ग्राहकों के हितों की रक्षा के उद्देश्य से किया गया है।
- यह वित्त मंत्रालय के अधिकार क्षेत्र में आता है।
- यह बीमा से संबंधित गतिविधियों की निगरानी करते हुए बीमा उद्योग के विकास को नियंत्रित और देखता है।
- प्राधिकरण की शक्तियाँ और कार्य IRDAI अधिनियम, 1999 और बीमा अधिनियम, 1938 में निर्धारित हैं।
- वर्ष 2047 तक सभी के लिये बीमा
- IRDAI का लक्ष्य वर्ष 2047 तक 'सभी के लिये बीमा' प्राप्त करना है।
- 3 स्तंभ: बीमा ग्राहक (पॉलिसीधारक), बीमा प्रदाता (बीमाकर्त्ता) और बीमा वितरक (मध्यस्थ)
- तृतीय-पक्ष बीमा
- तृतीय-पक्ष बीमा एक प्रकार का देयता कवरेज है, जिसमें बीमाधारक (प्रथम पक्ष) किसी अन्य व्यक्ति (तृतीय पक्ष) द्वारा किये गए दावों के विरुद्ध बीमाकर्त्ता (द्वितीय पक्ष) से सुरक्षा खरीदता है।
- यह तीसरे पक्ष को हुई क्षति या हानि के लिये प्रथम पक्ष के कानूनी दायित्व को कवर करता है, भले ही प्रथम पक्ष की गलती हो।
- इसमें दुर्घटना पीड़ितों या उनके परिवारों को मुआवज़ा देने का प्रावधान है।
- मोटर वाहन अधिनियम, 2019 के तहत भारत में सभी मोटर वाहनों के लिये यह अनिवार्य है।