छत्तीसगढ़ Switch to English
भोरमदेव वन्यजीव अभयारण्य
चर्चा में क्यों?
भोरमदेव वन्यजीव अभयारण्य के कवर्धा रेंज में तेंदू पत्ता एकत्र करते समय भालू ने पीड़ितों पर हमला कर दिया।
मुख्य बिंदु
- भोरमदेव वन्यजीव अभयारण्य के बारे में:
- भोरमदेव वन्यजीव अभयारण्य छत्तीसगढ़ के कबीरधाम ज़िले में स्थित है।
- यह सतपुड़ा पहाड़ियों की मैकाल श्रेणी में स्थित है, जो अपनी समृद्ध जैवविविधता और अप्रभावित पारिस्थितिकी तंत्र के लिये जाना जाता है।
- यह अभयारण्य लगभग 352 वर्ग किमी. क्षेत्र में फैला हुआ है।
- सांस्कृतिक महत्त्व:
- इसका नाम पास में स्थित 1,000 वर्ष से अधिक पुराने प्राचीन भोरमदेव मंदिर के नाम पर रखा गया है।
- यह मंदिर भगवान शिव को समर्पित है और इसकी विशेष मूर्तियों के कारण इसे "छत्तीसगढ़ का खजुराहो" कहा जाता है।
- पारिस्थितिक महत्त्व:
- भोरमदेव कान्हा-अचानकमार वन्यजीव गलियारे का हिस्सा है, जो कान्हा राष्ट्रीय उद्यान (मध्य प्रदेश) को अचानकमार वन्यजीव अभयारण्य (छत्तीसगढ़) से जोड़ता है।
- इस भूभाग में लहरदार पहाड़ियाँ, घने जंगल और मौसमी नदियाँ शामिल हैं।
- जल निकाय:
- यह अभयारण्य फेन और संकरी नदियों का उद्गम स्थल है, जो इसके वन पारिस्थितिकी तंत्र को बनाए रखती हैं।
- वनस्पति:
- यहाँ उष्णकटिबंधीय नम और शुष्क पर्णपाती वनों का मिश्रण है।
- आम पेड़ों में साज (टर्मिनलिया टोमेंटोसा), साल (शोरिया रोबस्टा), तेंदू (डायोस्पायरोस मेलानॉक्सिलीन) और नीलगिरी (युकलिप्टस) शामिल हैं।
- वन्य जीवन:
कान्हा राष्ट्रीय उद्यान
- अवस्थिति: यह मध्य प्रदेश के दो ज़िलों- मंडला (Mandla) और बालाघाट (Balaghat) में 940 वर्ग किमी. के क्षेत्र में फैला हुआ है।
- इतिहास: वर्तमान कान्हा क्षेत्र दो अभयारण्यों- हॉलन (Hallon) और बंजार (Banjar) में विभाजित था। वर्ष 1955 में इसे कान्हा नेशनल पार्क का दर्जा दिया गया तथा वर्ष 1973 में कान्हा टाइगर रिज़र्व घोषित किया गया।
- कान्हा राष्ट्रीय उद्यान मध्य भारत का सबसे बड़ा राष्ट्रीय उद्यान है।
विशेषताएँ:
- जीव-जंतु:
- पेड़-पौधे:
- यह अपने सदाबहार साल के जंगलों (शोरिया रोबस्टा) के लिये जाना जाता है।
- यह भारत में आधिकारिक शुभंकर, "भूरसिंह द बारहसिंगा" (Bhoorsingh the Barasingha) का पहला टाइगर रिज़र्व है।
अचानकमार टाइगर रिज़र्व
- यह छत्तीसगढ़ के बिलासपुर ज़िले में स्थित है। इसकी स्थापना वर्ष 1975 में की गई और वर्ष 2009 में इसे बाघ अभयारण्य घोषित किया गया।
- यह बृहद अचानकमार-अमरकंटक बायोस्फीयर रिज़र्व का हिस्सा है।
- इसमें कान्हा और बांधवगढ़ टाइगर रिज़र्व को जोड़ने वाला एक गलियारा मौजूद है और यह इन रिज़र्वों के बीच बाघों के आवागमन में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
- नदी:
- इस रिज़र्व के ठीक बीच से मनियारी नदी बहती है, जो इस वन की जीवन रेखा है।
- जनजाति:
- यहाँ बैगा जनजाति की बहुलता है, जो वन में वास करने वाला जनजाति समुदाय है जिसे "विशेष रूप से कमज़ोर जनजातीय समूह (PVTG)" के रूप में वर्गीकृत किया गया है।
- रिज़र्व के प्रमुख क्षेत्र के 626 हेक्टेयर में 25 गाँव हैं, जिनमें से लगभग 75% जनसंख्या बैगा जनजाति की है।
- वृक्ष:
- इसके अधिकांश क्षेत्र में उष्णकटिबंधीय आद्र पर्णपाती वृक्ष विस्तृत हैं।
- वनस्पतिजात:
- साल, बीजा, साजा, हल्दू, सागौन, तिनसा, धावरा, लेंडिया, खमर, बाँस सहित औषधीय पौधों की 600 से अधिक प्रजातियाँ पाई जाती हैं।
- प्राणिजात:
- इसमें बाघ, तेंदुआ, बाइसन, उड़न गिलहरी, इंडियन जायंट स्क्विरेल, चिंकारा, वन्य कुत्ता, लकड़बग्घा, सांभर, चीतल और पक्षियों की 150 से अधिक प्रजातियाँ शामिल हैं।

