छत्तीसगढ़
भोरमदेव वन्यजीव अभयारण्य
- 14 May 2025
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चर्चा में क्यों?
भोरमदेव वन्यजीव अभयारण्य के कवर्धा रेंज में तेंदू पत्ता एकत्र करते समय भालू ने पीड़ितों पर हमला कर दिया।
मुख्य बिंदु
- भोरमदेव वन्यजीव अभयारण्य के बारे में:
- भोरमदेव वन्यजीव अभयारण्य छत्तीसगढ़ के कबीरधाम ज़िले में स्थित है।
- यह सतपुड़ा पहाड़ियों की मैकाल श्रेणी में स्थित है, जो अपनी समृद्ध जैवविविधता और अप्रभावित पारिस्थितिकी तंत्र के लिये जाना जाता है।
- यह अभयारण्य लगभग 352 वर्ग किमी. क्षेत्र में फैला हुआ है।
- सांस्कृतिक महत्त्व:
- इसका नाम पास में स्थित 1,000 वर्ष से अधिक पुराने प्राचीन भोरमदेव मंदिर के नाम पर रखा गया है।
- यह मंदिर भगवान शिव को समर्पित है और इसकी विशेष मूर्तियों के कारण इसे "छत्तीसगढ़ का खजुराहो" कहा जाता है।
- पारिस्थितिक महत्त्व:
- भोरमदेव कान्हा-अचानकमार वन्यजीव गलियारे का हिस्सा है, जो कान्हा राष्ट्रीय उद्यान (मध्य प्रदेश) को अचानकमार वन्यजीव अभयारण्य (छत्तीसगढ़) से जोड़ता है।
- इस भूभाग में लहरदार पहाड़ियाँ, घने जंगल और मौसमी नदियाँ शामिल हैं।
- जल निकाय:
- यह अभयारण्य फेन और संकरी नदियों का उद्गम स्थल है, जो इसके वन पारिस्थितिकी तंत्र को बनाए रखती हैं।
- वनस्पति:
- यहाँ उष्णकटिबंधीय नम और शुष्क पर्णपाती वनों का मिश्रण है।
- आम पेड़ों में साज (टर्मिनलिया टोमेंटोसा), साल (शोरिया रोबस्टा), तेंदू (डायोस्पायरोस मेलानॉक्सिलीन) और नीलगिरी (युकलिप्टस) शामिल हैं।
- वन्य जीवन:
कान्हा राष्ट्रीय उद्यान
- अवस्थिति: यह मध्य प्रदेश के दो ज़िलों- मंडला (Mandla) और बालाघाट (Balaghat) में 940 वर्ग किमी. के क्षेत्र में फैला हुआ है।
- इतिहास: वर्तमान कान्हा क्षेत्र दो अभयारण्यों- हॉलन (Hallon) और बंजार (Banjar) में विभाजित था। वर्ष 1955 में इसे कान्हा नेशनल पार्क का दर्जा दिया गया तथा वर्ष 1973 में कान्हा टाइगर रिज़र्व घोषित किया गया।
- कान्हा राष्ट्रीय उद्यान मध्य भारत का सबसे बड़ा राष्ट्रीय उद्यान है।
विशेषताएँ:
- जीव-जंतु:
- पेड़-पौधे:
- यह अपने सदाबहार साल के जंगलों (शोरिया रोबस्टा) के लिये जाना जाता है।
- यह भारत में आधिकारिक शुभंकर, "भूरसिंह द बारहसिंगा" (Bhoorsingh the Barasingha) का पहला टाइगर रिज़र्व है।
अचानकमार टाइगर रिज़र्व
- यह छत्तीसगढ़ के बिलासपुर ज़िले में स्थित है। इसकी स्थापना वर्ष 1975 में की गई और वर्ष 2009 में इसे बाघ अभयारण्य घोषित किया गया।
- यह बृहद अचानकमार-अमरकंटक बायोस्फीयर रिज़र्व का हिस्सा है।
- इसमें कान्हा और बांधवगढ़ टाइगर रिज़र्व को जोड़ने वाला एक गलियारा मौजूद है और यह इन रिज़र्वों के बीच बाघों के आवागमन में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
- नदी:
- इस रिज़र्व के ठीक बीच से मनियारी नदी बहती है, जो इस वन की जीवन रेखा है।
- जनजाति:
- यहाँ बैगा जनजाति की बहुलता है, जो वन में वास करने वाला जनजाति समुदाय है जिसे "विशेष रूप से कमज़ोर जनजातीय समूह (PVTG)" के रूप में वर्गीकृत किया गया है।
- रिज़र्व के प्रमुख क्षेत्र के 626 हेक्टेयर में 25 गाँव हैं, जिनमें से लगभग 75% जनसंख्या बैगा जनजाति की है।
- वृक्ष:
- इसके अधिकांश क्षेत्र में उष्णकटिबंधीय आद्र पर्णपाती वृक्ष विस्तृत हैं।
- वनस्पतिजात:
- साल, बीजा, साजा, हल्दू, सागौन, तिनसा, धावरा, लेंडिया, खमर, बाँस सहित औषधीय पौधों की 600 से अधिक प्रजातियाँ पाई जाती हैं।
- प्राणिजात:
- इसमें बाघ, तेंदुआ, बाइसन, उड़न गिलहरी, इंडियन जायंट स्क्विरेल, चिंकारा, वन्य कुत्ता, लकड़बग्घा, सांभर, चीतल और पक्षियों की 150 से अधिक प्रजातियाँ शामिल हैं।