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दिव्या देशमुख महिला विश्व कप चैंपियन बनीं
चर्चा में क्यों?
19 वर्षीय दिव्या देशमुख ने FIDE महिला विश्व कप जीतकर इतिहास रच दिया, उन्होंने अनुभवी कोनेरू हंपी को टाईब्रेकर में हराया तथा बिना किसी मानदंड के टूर्नामेंट शुरू करने के बावजूद ग्रैंडमास्टर का खिताब हासिल किया।
प्रमुख बिंदु
- ग्रैंडमास्टर:
- दिव्या अब भारत की 88वीं ग्रैंडमास्टर बन गई हैं और यह खिताब हासिल करने वाली चौथी महिला हैं। उनसे पहले हरिका द्रोणावल्ली, वैशाली रमेशबाबू तथा हंपी कोनेरू यह खिताब हासिल कर चुकी हैं।
- उन्होंने फाइनल में हंपी का सामना करने से पहले चीन की विश्व नंबर 6 खिलाड़ी झू जिनर, भारतीय अनुभवी हरिका द्रोणावल्ली और पूर्व महिला विश्व चैंपियन तान झोंगयी जैसी शीर्ष खिलाड़ियों को हराया।
- एक अंतर्राष्ट्रीय मास्टर के रूप में शुरुआत करते हुए, उनकी जीत ने उन्हें एक विशेष FIDE विनियमन के तहत पारंपरिक मानदंडों को दरकिनार करते हुए भारत की चौथी महिला ग्रैंडमास्टर बनने के लिये योग्य बना दिया है।
- पूर्व उपलब्धियाँ:
- पिछले वर्ष, उन्हें लड़कियों की श्रेणी में विश्व जूनियर चैंपियन का खिताब मिला।
- इसके अतिरिक्त, उन्होंने बुडापेस्ट में आयोजित शतरंज ओलंपियाड में भारत को स्वर्ण पदक दिलाने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई, जहाँ उन्होंने व्यक्तिगत स्वर्ण भी अर्जित किया।
- भविष्य की संभावनाएँ
- वे आगामी प्रतियोगिताओं में एक प्रभावशाली खिलाड़ी होंगी, जिनमें कैंडिडेट्स टूर्नामेंट शामिल है, जहाँ शीर्ष आठ खिलाड़ी विश्व चैम्पियन को चुनौती देने का अवसर प्राप्त करते हैं।
- ऐतिहासिक समापन
- भारत की दोनों फाइनलिस्टों की उपस्थिति महिला शतरंज में देश के बढ़ते प्रभाव को दर्शाती है, जो ओपन वर्ग में गुकेश और प्रज्ञानंदा की सफलता के समानान्तर है तथा चीनी तथा रूसी खिलाड़ियों के दीर्घकालिक प्रभुत्व के साथ-साथ भारत की बढ़ती उपस्थिति को भी दर्शाती है।


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मुख्यमंत्री के रूप में योगी आदित्यनाथ का सबसे लंबा कार्यकाल
चर्चा में क्यों?
उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने सबसे लंबे समय तक लगातार पद पर बने रहने का नया रिकॉर्ड बनाया है।
प्रमुख बिंदु
- योगी आदित्यनाथ का कार्यकाल:
- उन्होंने 8 वर्ष, 4 माह और 10 दिन का कार्यकाल पूर्ण कर लिया है, जिससे उन्होंने उत्तर प्रदेश के प्रथम मुख्यमंत्री गोविंद बल्लभ पंत द्वारा बनाए गए 8 वर्ष और 127 दिन के पूर्व रिकॉर्ड को पीछे छोड़ दिया है।
- गोविंद बल्लभ पंत, जिन्होंने वर्ष 1947 से 1954 तक मुख्यमंत्री के रूप में कार्य किया, राज्य के प्रथम मुख्यमंत्री थे और उन्होंने उत्तर प्रदेश की प्रारंभिक राजनीतिक संरचना में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई थी।
- योगी आदित्यनाथ का राजनीतिक यात्रा:
- योगी आदित्यनाथ ने वर्ष 2017 में पहली बार मुख्यमंत्री पद की शपथ ली थी, जब उन्होंने विधानसभा चुनावों में प्रचंड बहुमत से जीत प्राप्त की।
- इसके पश्चात वे वर्ष 2022 में पुनः सत्ता में लौटे, जिससे वे पिछले 37 वर्षों में पहले ऐसे व्यक्ति बने जिन्होंने उत्तर प्रदेश में लगातार दो बार मुख्यमंत्री पद प्राप्त किया और उनका कार्यकाल बिना किसी व्यवधान के जारी रहा।
- उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्रियों का कार्यकाल
- योगी आदित्यनाथ: 8 वर्ष, 4 महीने और 10 दिन (वर्तमान)
- गोविंद बल्लभ पंत: 8 वर्ष, 127 दिन (संयुक्त प्रांत के प्रधानमंत्री (1946-1950) और उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री (1950-1954)
- मायावती: 7 वर्ष, 16 दिन
- मुलायम सिंह यादव: 6 वर्ष, 274 दिन (3 बार मुख्यमंत्री रहे)
- संपूर्णानंद: 5 साल 345 दिन
- अखिलेश यादव: 5 साल, 4 दिन
- नारायण दत्त तिवारी: 3 वर्ष, 314 दिन (3 बार मुख्यमंत्री रहे)
योगी आदित्यनाथ के बारे में
- जन्म एवं प्रारंभिक जीवन:
- योगी आदित्यनाथ का जन्म 5 जून 1972 को उत्तराखंड में हुआ।
- उन्होंने अपनी प्रारंभिक शिक्षा विज्ञान विषय में ली, परंतु सामाजिक समस्याओं से उत्पन्न असंतोष के कारण मात्र 22 वर्ष की आयु में सांसारिक जीवन का त्याग कर संन्यास ग्रहण किया।
- आध्यात्मिक यात्रा:
- महंत अवैद्यनाथ जी महाराज के मार्गदर्शन में योगी आदित्यनाथ ने वर्ष 1994 में मात्र 22 वर्ष की आयु में गोरक्षनाथ पीठ के उत्तराधिकारी व पीठाधीश्वर का पद ग्रहण किया।
- नाथ पंथ परंपरा में निहित उनका आध्यात्मिक मार्ग सामाजिक सुधारों, हिंदू पुनर्जागरण और आध्यात्मिक विकास पर केंद्रित था।
- राजनीतिक जीवन:
- वर्ष 1998 में 26 वर्ष की आयु में योगी आदित्यनाथ सबसे कम उम्र के सांसद के रूप में गोरखपुर से लोकसभा के लिये निर्वाचित हुए।
- इसके पश्चात उन्होंने वर्ष 1999, 2004, 2009 और 2014 में लगातार गोरखपुर से चुनाव जीतकर अपनी राजनीतिक स्थिति को मज़बूत किया।


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उत्तर प्रदेश में हरित हाइड्रोजन उत्पादन केंद्र की स्थापना
चर्चा में क्यों?
उत्तर प्रदेश की नवीकरणीय ऊर्जा पहलों को आगे बढ़ाने की दिशा में एक महत्त्वपूर्ण कदम के रूप में राज्य सरकार के एक प्रतिनिधिमंडल ने हाल ही में हरित हाइड्रोजन उत्पादन और ऊर्जा नवाचार को बढ़ावा देने के उद्देश्य से जापान का दौरा किया।
प्रमुख बिंदु
- ग्रीन हाइड्रोजन उत्कृष्टता केंद्र
- जापानी उद्यमियों ने उत्तर प्रदेश में ग्रीन हाइड्रोजन के लिये उत्कृष्टता केंद्र स्थापित करने पर सहमति व्यक्त की है, जो राज्य के नवीकरणीय ऊर्जा परिदृश्य में एक महत्त्वपूर्ण विकास को चिह्नित करता है।
- यह सहयोग अत्याधुनिक अनुसंधान, नवाचार और सतत् ऊर्जा समाधानों को अपनाने के लिये उत्प्रेरक का काम करेगा।
- शून्य-उत्सर्जन परिवहन पर ध्यान केंद्रित
- इस यात्रा के दौरान उत्तर प्रदेश प्रतिनिधिमंडल ने अगली पीढ़ी की तकनीकों का अवलोकन किया, जिसमें हाइड्रोजन ईंधन सेल पर आधारित टोयोटा मिराई वाहन प्रमुख रहा।
- यह वाहन हाइड्रोजन और ऑक्सीजन के संयोजन से चलता है तथा उप-उत्पाद के रूप में केवल जल का उत्सर्जन करता है, जो राज्य की शून्य-उत्सर्जन परिवहन नीति के अनुरूप है।
- जापान की विशेषज्ञता से सीखना
- उत्तर प्रदेश प्रतिनिधिमंडल ने जापान के यामानाशी प्रांत में कई उन्नत सुविधाओं का दौरा किया, जैसे कि NESRAD ग्रीन हाइड्रोजन संयंत्र और संटोरी हाकुशू डिस्टिलरी, जहाँ पावर-टू-गैस तकनीक संयंत्र तथा हाइड्रोजन अनुसंधान केंद्र स्थित हैं।
- इन दौरों ने हाइड्रोजन उत्पादन और स्वच्छ ऊर्जा प्रौद्योगिकियों में वैश्विक श्रेष्ठ मानकों की महत्त्वपूर्ण जानकारी प्रदान की।
- उत्तर प्रदेश के लिये निहितार्थ
-
नवीकरणीय ऊर्जा विस्तार: ग्रीन हाइड्रोजन क्षेत्र में वैश्विक नेतृत्वकर्ताओं के साथ यह साझेदारी राज्य में सौर, जलविद्युत और बायोमास सहित नवीकरणीय ऊर्जा क्षमता को बढ़ाएगी।
-
प्रौद्योगिकीय उन्नति: जापानी हाइड्रोजन फ्यूल सेल तकनीक को अपनाने से स्वच्छ और सतत् परिवहन को बढ़ावा मिलेगा, ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन में कमी आएगी और वैकल्पिक ऊर्जा स्रोतों के माध्यम से राज्य के स्वच्छ ऊर्जा लक्ष्यों की पूर्ति में सहायता मिलेगी।
-
आर्थिक वृद्धि एवं नवाचार: सेंटर ऑफ एक्सीलेंस उत्तर प्रदेश को नवीकरणीय ऊर्जा का केंद्र बनाएगा, जिससे निवेश आकर्षित होंगे, नवाचार को बढ़ावा मिलेगा और नये व्यवसायों एवं रोज़गार के अवसरों का सृजन होगा।
- उत्तर प्रदेश की नवीकरणीय ऊर्जा की स्थापित क्षमता
-
प्रकार |
मेगावाट (30-06-2025 तक) |
हाइड्रो (बड़ी + लघु) |
551 |
सौर |
3427 |
हाइड्रोजन
- हाइड्रोजन ब्रह्मांड का सबसे अधिक प्रचुर मात्रा में पाया जाने वाला तत्त्व है, लेकिन पृथ्वी पर, द्रव्यमान के आधार पर यह पृथ्वी की भू-पर्पटी का केवल 0.14% है, जो 10वें सबसे प्रचुर तत्त्व के रूप में स्थान रखता है।
- हाइड्रोजन का प्रकार उसके निर्माण की प्रक्रिया पर निर्भर करता है:
- ग्रीन हाइड्रोजन का उत्पादन नवीकरणीय ऊर्जा (जैसे सौर, पवन) का उपयोग करके पानी के इलेक्ट्रोलिसिस द्वारा किया जाता है। इसका कार्बन फुटप्रिंट कम होता है।
- इस प्रक्रिया में विद्युत धारा जल को हाइड्रोजन और ऑक्सीजन में विभाजित करती है।
- उप-उत्पाद: जल, जलवाष्प।
- ब्राउन हाइड्रोजन: इसका उत्पादन कोयले का उपयोग करके किया जाता है, जहाँ उत्सर्जन हवा में छोड़ दिया जाता है।
- ग्रे हाइड्रोजन: इसे प्राकृतिक गैस से तैयार किया जाता है और इसमें भी संबंधित उत्सर्जन वायुमंडल में छोड़े जाते हैं।
- ब्लू हाइड्रोजन: इसका उत्पादन भी प्राकृतिक गैस से होता है, किंतु इसमें उत्पन्न उत्सर्जन को कार्बन कैप्चर एंड स्टोरेज (CCS) तकनीक द्वारा संगृहीत किया जाता है, जिससे वातावरण में उत्सर्जन नहीं होता।


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UPSIFS में पुलिसिंग कौशल बढ़ाने हेतु पाठ्यक्रम
चर्चा में क्यों?
पुलिस महानिदेशक (DGP) राजीव कृष्ण ने उत्तर प्रदेश राज्य फोरेंसिक विज्ञान संस्थान (UPSIFS) में 'वर्टिकल इंटरेक्शन कोर्स' का उद्घाटन किया, जो पुलिस प्रणाली में कानूनी, तकनीकी और फोरेंसिक विशेषज्ञता को एकीकृत करने की दिशा में एक महत्त्वपूर्ण कदम है।
प्रमुख बिंदु
- उद्देश्य:
- पुलिस अनुसंधान एवं विकास ब्यूरो (BPRD) द्वारा समर्थित इस पाठ्यक्रम का उद्देश्य पुलिस अधिकारियों को अंतरविषयक कौशल प्रदान करना है ताकि वे नवाचारी अपराधों, विशेष रूप से साइबर अपराध का प्रभावी ढंग से सामना कर सकें।
- DGP ने आधुनिक अपराधों से निपटने में कानून, तकनीक और फोरेंसिक विज्ञान के महत्त्व पर ज़ोर देते हुए कहा कि यह पाठ्यक्रम इन तीनों को एकीकृत रूप में प्रस्तुत करता है।
- उन्नत डिजिटल डायग्नोस्टिक लैब का उद्घाटन:
- DGP ने UPSIFS में नवविकसित 'उन्नत डिजिटल डायग्नोस्टिक लैब' का भी उद्घाटन किया, जिसका उद्देश्य प्रायोगिक न्यायालयिक प्रशिक्षण प्रदान करना है।
- उन्होंने कहा कि अपराध का स्वरूप अब डिजिटल हो गया है और साइबर अपराधियों के तेज़ी से बदलते तरीकों का सामना करने हेतु पुलिस को हर स्तर पर तकनीकी प्रशिक्षण अनिवार्य रूप से प्राप्त करना होगा।
- BPRD के साथ सहयोग:
- संस्थान के संस्थापक निदेशक जी.के. गोस्वामी ने बताया कि BPRD के सहयोग से दो विशेष पाठ्यक्रम प्रारंभ किये गए हैं। पहले बैच में IPS अधिकारियों का प्रशिक्षण उसी दिन प्रारंभ हुआ।
- उन्होंने कहा कि अपराधों की समग्र जाँच के लिये कानूनी एवं वैज्ञानिक ज्ञान का एकीकरण आवश्यक है। उन्होंने संस्थान की सोच को "Law with Lab" के रूप में परिभाषित किया।
- महत्त्व:
- यह पहल आधुनिक पुलिस व्यवस्था में कानून, प्रौद्योगिकी और फोरेंसिक के एकीकरण में एक महत्त्वपूर्ण प्रगति को दर्शाती है, जिसमें डिजिटल युग में जटिल अपराधों से निपटने के लिये कानून प्रवर्तन एजेंसियों को बेहतर ढंग से सुसज्जित करने की क्षमता है।
पुलिस अनुसंधान एवं विकास ब्यूरो (BPR&D)
- स्थापना एवं उद्देश्य:
- इसकी स्थापना आधिकारिक तौर पर भारत सरकार द्वारा 28 अगस्त 1970 को गृह मंत्रालय के अधीन की गई थी।
- ब्यूरो का प्राथमिक उद्देश्य भारत में पुलिस बल का आधुनिकीकरण करना था। BPR&D के प्रमुख उद्देश्यों में शामिल हैं:
- पुलिस से संबंधित मुद्दों में प्रत्यक्ष और सक्रिय रुचि लेना
- पुलिस समस्याओं पर तीव्र और व्यवस्थित अनुसंधान को बढ़ावा देना
- पुलिस के तरीकों और तकनीकों में सुधार के लिये विज्ञान तथा प्रौद्योगिकी का प्रयोग
- कार्यक्षेत्र का विस्तार:
- समय के साथ BPR&D के कार्यक्षेत्र में उल्लेखनीय वृद्धि हुई। जैसे:
- वर्ष 1983: BPR&D के अधीन न्यायालयिक विज्ञान निदेशालय (Directorate of Forensic Sciences) की स्थापना की गई, जिससे पुलिस जाँच में फोरेंसिक विज्ञान के बढ़ते महत्त्व को दर्शाया गया।
- वर्ष 1995: भारत सरकार ने BPR&D को कारावास प्रशासन, विशेषकर जेल सुधारों से संबद्ध कार्य सौंपे ताकि बदलते समय में जेल प्रबंधन की चुनौतियों से प्रभावी ढंग से निपटा जा सके।
- वर्ष 2008 में, BPR&D की देखरेख में राष्ट्रीय पुलिस मिशन का निर्माण किया गया, जिसका उद्देश्य पुलिस बलों का और अधिक आधुनिकीकरण करना तथा आंतरिक सुरक्षा बनाए रखने की उनकी क्षमता को बढ़ाना था।
- वर्ष 2021 में BPR&D की ज़िम्मेदारियों में एक बार फिर विस्तार हुआ, जिसके अंतर्गत निम्नलिखित कार्य शामिल हुए:
- थल और समुद्री सीमा प्रबंधन
- केंद्रीय सशस्त्र पुलिस बलों (CAPFs) के लिये क्षमता निर्मा
- नवाचारपूर्ण आपराधिक विधियों और विकसित होती सुरक्षा चुनौतियों का समाधान


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बुंदेलखंड का कालिंजर दुर्ग
चर्चा में क्यों?
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मन की बात के 124वें संस्करण में बुंदेलखंड स्थित कालिंजर किले के ऐतिहासिक महत्त्व को रेखांकित करते हुए इसे भारत की सांस्कृतिक गरिमा और स्थायित्व का प्रतीक बताया।
- प्रधानमंत्री ने नागरिकों से भारत के समृद्ध अतीत से जुड़ने और बुंदेलखंड क्षेत्र में पर्यटन को बढ़ावा देने के लिये इन किलों को देखने का आग्रह किया।
प्रमुख बिंदु
- कालिंजर किला के बारे में:
- बुंदेलखंड का कालिंजर किला, उत्तर प्रदेश के बांदा ज़िले की ताराहाटी तहसील में स्थित एक प्रमुख ऐतिहासिक दुर्ग है।
- यह किला विंध्य शृंखला की पहाड़ी पर स्थित एक प्राचीन स्मारक है, जो अपने सांस्कृतिक और ऐतिहासिक महत्त्व के लिये प्रसिद्ध है।
- इसमें गिरि दुर्गा (पहाड़ी किला) तथा वन दुर्गा (जंगल किला) दोनों की विशेषताएँ सम्मिलित हैं।
- वास्तुकला
- किले में सात प्रवेशद्वार हैं, जिनमें प्रमुख हैं- आलमगिरी गेट तथा गणेश गेट।
- इसमें नीलकंठ मंदिर और कनाती मस्जिद जैसी ऐतिहासिक संरचनाएँ स्थित हैं।
- किले में महल, मंदिर तथा पानी की टंकियों सहित बुंदेला वास्तुकला के उत्कृष्ट उदाहरण देखे जा सकते हैं।
- प्रसिद्ध संरचनाओं में शामिल हैं—
- नीलकंठ मंदिर, जिसमें विशाल काल भैरव मूर्ति स्थित है।
- रानी महल और वेंकट बिहारी महल।
- शेरशाह का मकबरा, हालाँकि उनके पार्थिव अवशेष बाद में सासाराम (बिहार) ले जाए गए थे।
- रक्षात्मक क्षमता
- किले की 45 मीटर ऊँची प्राचीर इसे लगभग अभेद्य बनाती थी।
- इसकी दीवारें तोपखाने के गोलों तक के आघात को सहने में सक्षम थीं, जिससे यह किला सैन्य दृष्टि से अत्यंत सशक्त माना जाता था।
- ऐतिहासिक विरासत
- यह किला गुप्त, गुर्जर-प्रतिहार, चंदेल और मुगल जैसे विभिन्न राजवंशों से जुड़ा रहा है।
- महमूद गज़नवी (1023 ई.): महमूद गज़नवी ने कालिंजर दुर्ग पर चढ़ाई की, किंतु उसकी सेनाएँ दुर्ग की सुरक्षा को भेद नहीं सकीं। असफल घेराबंदी के बाद चंदेल राजा गंडदेव ने प्रशंसात्मक कविताएँ प्रस्तुत करके शांति का प्रस्ताव रखा और अंततः किले पर पूर्ण विजय प्राप्त किये बिना ही उसने आत्मसमर्पण कर दिया गया।
- कुतुबुद्दीन ऐबक (13वीं शताब्दी के प्रारंभ में): दिल्ली सल्तनत की स्थापना के बाद, मुहम्मद गौरी के सेनापति कुतुबुद्दीन ऐबक ने कालिंजर पर अधिकार कर लिया, जिससे यह दुर्ग मुस्लिम शासन में आ गया
- शेरशाह सूरी (1545 ई.): 13 मई, 1545 को कालिंजर दुर्ग की घेराबंदी के दौरान बारूद विस्फोट में शेरशाह सूरी की मृत्यु हो गई
- मुगल (1569 ई.): शेरशाह की मृत्यु के पश्चात्, अकबर के शासनकाल में 1569 ई० में मुगलों ने कालिंजर पर अधिकार किया। अकबर के नवरत्नों में से एक राजा बीरबल को यह दुर्ग जागीर स्वरूप प्रदान किया गया।
- अंग्रेज़ (1812–1817 ई.): 1812 ई० में अंग्रेज़ अधिकारी कर्नल मार्टिंडेल की घेराबंदी के बाद स्थानीय शासक दरियाव सिंह ने दुर्ग समर्पित कर दिया। इसके पश्चात् कालिंजर ब्रिटिश नियंत्रण में आ गया।
- 1857 का विद्रोह: इस विद्रोह के दौरान दुर्ग की मज़बूत प्राचीरों ने महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई, परंतु 1866 ई० में इसे ध्वस्त कर दिया गया।


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विद्युत सखी कार्यक्रम
चर्चा में क्यों?
उत्तर प्रदेश सरकार के 'विद्युत सखी' कार्यक्रम ने राजस्व संग्रहण एवं ग्रामीण महिलाओं के सशक्तीकरण में उल्लेखनीय सफलता प्राप्त की है। राजस्व वसूली में 11 गुना वृद्धि इस कार्यक्रम की विस्तारशीलता, दक्षता और समुदाय में विद्युत सखियों की पहुँच व विश्वास को दर्शाती है।
प्रमुख बिंदु
- कार्यक्रम के बारे में:
- यह कार्यक्रम उत्तर प्रदेश सरकार के ग्रामीण विकास विभाग द्वारा उत्तर प्रदेश राज्य ग्रामीण आजीविका मिशन (UPSRLM) के अंतर्गत प्रारंभ किया गया था। जिसका दोहरा उद्देश्य ग्रामीण महिलाओं के लिये रोज़गार के अवसर सृजित करना और बिजली बिल संग्रहण की चुनौती को हल करना था।
- यह ग्रामीण महिलाओं (मुख्य रूप से स्वयं सहायता समूहों से) को बिजली बिल संग्रह के कार्य में में नियोजित कर रोज़गार के अवसर प्रदान करता है।
- यह पहल ऐसे समय में विशेष रूप से महत्त्वपूर्ण थी जब ग्रामीण क्षेत्रों से लोगों का पलायन और रोज़गार क्षति के कारण ग्रामीण अर्थव्यवस्था पर दबाव था।।
- प्रभाव क्षेत्र:
- अब तक लगभग 15,000 विद्युत सखियाँ राजस्व संग्रहण में सक्रिय रूप से संलग्न हैं, जिन्होंने सरकार के लिये कुल 2,000 करोड़ रुपए एकत्र किये हैं।
- इस कार्यक्रम में 30,000 महिलाएँ UPSRLM के साथ पंजीकृत हैं।
- वर्ष 2024 में 14,000 महिलाओं को प्रशिक्षित कर नए बैच के रूप में विद्युत सखियों के रूप में तैनात किया गया।
- लाभ:
- वित्त वर्ष 2024-25 में विद्युत सखियों ने लगभग 13.4 करोड़ रुपए बतौर कमीशन अर्जित किये।
- उन्होंने वन टाइम सेटलमेंट (OTS) योजना के तहत 303 करोड़ रुपए संगृहीत किये, जिससे 3.5 करोड़ रुपए कमीशन मिला।
- कुल 438 विद्युत सखियाँ 'लखपति दीदी' बन चुकी हैं, जिन्होंने SHG से जुड़ी महिलाओं को वर्षिक 1,00,000 रुपए या अधिक की आय दिलाने में भूमिका निभाई।
- राजस्व वृद्धि:
- वर्ष 2021-22 में विद्युत सखियों ने 87 करोड़ रुपए का राजस्व एकत्र किया था, जो 2024-25 में बढ़कर 1,045 करोड़ रुपए हो गया अर्थात् 11 गुना से अधिक वृद्धि।
- वर्ष 2025-26 की पहली तिमाही में ही 256 करोड़ रुपए की वसूली हुई है और उम्मीद है कि यह पिछले वर्ष के आँकड़ों को पार कर जाएगा।
लखपति दीदी पहल
- परिचय
- लखपति दीदी स्वयं सहायता समूह (SHG) की वह सदस्य होती है, जिसने सफलतापूर्वक एक लाख रुपए या उससे अधिक की वार्षिक घरेलू आय प्राप्त कर ली हो।
- यह आय कम-से-कम चार कृषि मौसमों या व्यावसायिक चक्रों तक बनी रहती है, जिससे यह सुनिश्चित होता है कि औसत मासिक आय 10 हज़ार रुपए से अधिक है।
- इसकी शुरुआत दीनदयाल अंत्योदय योजना–राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन (DAY-NRLM) द्वारा की गई थी, जिसमें प्रत्येक SHG परिवार को मूल्य शृंखला हस्तक्षेपों के साथ-साथ कई आजीविका गतिविधियों को अपनाने के लिये प्रोत्साहित किया जाता है, जिसके परिणामस्वरूप प्रति वर्ष 1,00,000 रुपए या उससे अधिक की स्थायी आय प्राप्त होती है।
- उद्देश्य:
- इस पहल का उद्देश्य न केवल महिलाओं की आय में सुधार करके उन्हें सशक्त बनना है, बल्कि स्थायी आजीविका के माध्यम से उनके जीवन में बदलाव लाना भी है।
- ये महिलाएँ अपने समुदायों में प्रेरणास्रोत के रूप में कार्य करती हैं और संसाधनों के प्रभावी प्रबंधन व उद्यमशीलता की शक्ति को प्रदर्शित करती हैं।


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अंतर्राष्ट्रीय बाघ दिवस और उत्तर प्रदेश में बाघों की संख्या में वृद्धि
चर्चा में क्यों?
प्रत्येक वर्ष 29 जुलाई को अंतर्राष्ट्रीय बाघ दिवस (ITD) के रूप में मनाया जाता है, जिसका उद्देश्य बाघों के संरक्षण और सुरक्षा के प्रति सजगता तथा प्रतिबद्धता को पुनः स्मरण कराना है।
मुख्य बिंदु
- अंतर्राष्ट्रीय बाघ दिवस बारे में:
- इसकी स्थापना वर्ष 2010 में रूस में सेंट पीटर्सबर्ग टाइगर शिखर सम्मेलन के दौरान की गई थी।
- यह शिखर सम्मेलन बाघों की संख्या में चिंताजनक गिरावट के बाद आयोजित किया गया था, उस समय वनों में लगभग 3,000 बाघ ही बचे थे।
- इस शिखर सम्मेलन में बांग्लादेश, नेपाल, भारत और रूस सहित 13 बाघ-क्षेत्रीय राष्ट्र एक साथ आए, जिसका उद्देश्य बाघों की घटती संख्या की समस्या का समाधान करना था।
- इस सम्मेलन में Tx2 लक्ष्य निर्धारित किया गया, जिसका उद्देश्य 2022 तक बाघों की संख्या को दोगुना करना था। यद्यपि इस लक्ष्य की प्राप्ति में चुनौतियाँ बनी रहीं, लेकिन इससे अंतर्राष्ट्रीय प्रयासों की नींव रखी गई।
- इसकी स्थापना वर्ष 2010 में रूस में सेंट पीटर्सबर्ग टाइगर शिखर सम्मेलन के दौरान की गई थी।
- अंतर्राष्ट्रीय बाघ दिवस 2025 का विषय:
- स्थानीय समुदायों और आदिवासी जनों के सहयोग से बाघों का भविष्य सुरक्षित करना"
- पारिस्थितिकी तंत्र में बाघों की भूमिका:
- बाघ एक की-स्टोन प्रजाति (keystone species) हैं, जो शिकार प्रजातियों की जनसंख्या नियंत्रण में भूमिका निभाते हैं।
- बाघ-आधारित वन जल सुरक्षा सुनिश्चित करते हैं और कार्बन सिंक के रूप में कार्य करते हैं, जिससे जलवायु परिवर्तन से निपटने में सहायता मिलती है।
उत्तर प्रदेश में बाघों की संख्या
- बाघों की संख्या में वृद्धि:
- उत्तर प्रदेश में बाघों की संख्या में लगातार वृद्धि देखी गई है (वर्ष 2018 में 173 से बढ़कर 2022 में 222 बाघ हो गए हैं।), जिसमें दुधवा टाइगर रिज़र्व जैसे प्रमुख अभ्यारण्य अग्रणी भूमिका निभा रहे हैं। इस अभ्यारण्य में अब 135 बाघ हैं, जो वर्ष 2014 में 68 और वर्ष 2018 में 82 थे।
- अन्य महत्त्वपूर्ण क्षेत्रों में पीलीभीत (63 बाघ), अमानगढ़ (20 बाघ) और रानीपुर (4 बाघ) शामिल हैं।
- राज्य में बाघ संरक्षण की सफलता का श्रेय कई कारकों को दिया जाता है, जिनमें बेहतर आवास प्रबंधन, आधुनिक गश्त प्रणाली और बाघ मित्र जैसी पहल के माध्यम से अधिक सामुदायिक भागीदारी शामिल है।
- बाघ मित्र पहल:
- वर्ष 2019 में शुरू की गई बाघ मित्र पहल ने मानव-वन्यजीव संघर्ष को कम करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है।
- वर्ष 2023 में, एक मोबाइल ऐप के साथ इस कार्यक्रम का विस्तार किया गया, जिससे वन कर्मियों और स्थानीय समुदायों के बीच त्वरित संचार संभव हो सका।
- इस पहल के तहत पीलीभीत में 120 से अधिक ग्रामीणों को बाघ मित्र के रूप में प्रशिक्षित किया गया है, जो व्हाट्सएप और आधिकारिक ऐप के माध्यम से जानवरों के देखे जाने की सूचना देने के लिये ज़िम्मेदार हैं।
- M-Stripes प्रणाली और गश्ती प्रबंधन:
- M-Stripes प्रणाली के अंतर्गत वन कर्मचारी दुधवा क्षेत्र में प्रतिमाह 1.5 लाख किमी से अधिक की गश्ती करते हैं।
- इस प्रणाली में वाहनों, नौकाओं, हाथियों, साइकिलों और पैदल गश्ती जैसे विभिन्न साधनों का उपयोग किया जाता है।

