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उत्तराखंड में लैंडस्लाइड डैम
चर्चा में क्यों?
IIT रुड़की द्वारा हाल ही में किये गए एक अध्ययन में गढ़वाल क्षेत्र से होकर बहने वाली अलकनंदा नदी को भूस्खलन से प्रेरित प्राकृतिक बाँधों के लिये सबसे अधिक संवेदनशील बताया गया है। इस अध्ययन का शीर्षक है ‘भारत के उत्तराखंड में भूस्खलन बांध अध्ययन: अतीत, वर्तमान और भविष्य’ और इसे स्प्रिंगर द्वारा प्रकाशित किया गया है।
- इसमें रेखांकित किया गया है कि इस तरह के बाँधों के प्रति संवेदनशीलता के मामले में अलकनंदा के बाद मंदाकिनी, धौलीगंगा और भागीरथी नदियाँ हैं।
प्रमुख बिंदु
- अध्ययन के निष्कर्ष:
- उत्तराखंड का भूभाग:
- उत्तराखंड की संकरी घाटियाँ इसे भूस्खलन-प्रेरित प्राकृतिक बाँधों के प्रति अत्यधिक संवेदनशील बनाती हैं, जो नदियों को अवरुद्ध करते हैं और ऊपरी भाग झीलें बनाते हैं।
- इन अवरोधों के कारण भूस्खलन झील के फटने से बाढ़ (LLOF) का बड़ा खतरा उत्पन्न हो सकता है, जिसके परिणाम भयावह हो सकते हैं।
 
- सर्वाधिक प्रभावित क्षेत्र:
- भूस्खलन से सबसे अधिक प्रभावित बाँधों में चमोली, रुद्रप्रयाग और उत्तरकाशी शामिल हैं।
- चमोली में गोहना ताल का टूटना क्षेत्र की सबसे गंभीर लैंडस्लाइड डैम की घटना है, जिसका असर हरिद्वार तक के निचले इलाकों पर पड़ा था।
 
- लैंडस्लाइड डैम का ऐतिहासिक संदर्भ:
- उत्तराखंड में लैंडस्लाइड डैम का इतिहास 29,000 से 19,000 वर्ष पूर्व के लास्ट ग्लेशियल मैक्सिमम (LGM) काल से जुड़ा है।
- 19वीं शताब्दी में लैंडस्लाइड डैम महत्त्वपूर्ण घटनाएँ दर्ज की गई हैं, जिनमें सबसे उल्लेखनीय 1970 में गोहना झील का टूटना है, जिसके दीर्घकालिक प्रभाव हुए।
 
- वर्तमान प्रवृत्ति और चिंताएँ:
- अध्ययन से पता चलता है कि लैंडस्लाइड डैम की घटनाओं का चरम महीना अगस्त है, जो मानसून के साथ सुमेलित है।
- जलवायु परिवर्तन, वनों की कटाई, सड़क निर्माण और जल विद्युत परियोजनाओं ने हाल के दशकों में ऐसी घटनाओं की आवृत्ति को बढ़ा दिया है।
 
- जोखिम न्यूनीकरण और तैयारी:
- यद्यपि वर्ष 2018 के बाद से बड़ी घटनाएँ कम हुई हैं, फिर भी अध्ययन में भविष्य के जोखिमों को कम करने के लिये तैयारी की आवश्यकता पर बल दिया गया है।
- भूस्खलन बाँधों की अस्थिरता, विशेषकर संकीर्ण घाटियों में, आपदा प्रबंधन के लिये महत्त्वपूर्ण चुनौतियाँ उत्पन्न करती है।
 
- भूस्खलन के प्रमुख कारण:
- अत्यधिक वर्षा और बादल फटने को भूस्खलन के प्रमुख कारणों के रूप में पहचाना गया है।
- मलबे का प्रवाह भूस्खलन का सबसे आम प्रकार है, जो उत्तराखंड की पहाड़ियों में नदियों के प्रवाह को अवरुद्ध करने के लिये ज़िम्मेदार है।
 
 
- उत्तराखंड का भूभाग:
अलकनंदा नदी
- यह गंगा की मुख्य धाराओं में से एक है।
- यह उत्तराखंड में सतोपंथ और भागीरथ ग्लेशियरों के संगम और तलहटी से निकलती है।
- यह देवप्रयाग में भागीरथी नदी से मिलती है जिसके बाद इसे गंगा कहा जाता है।
- इसकी मुख्य सहायक नदियाँ मंदाकिनी, नंदाकिनी और पिंडर हैं।
- अलकनंदा प्रणाली चमोली, टिहरी और पौड़ी ज़िलों के कुछ हिस्सों को जल प्रदान करती है।
- हिन्दू तीर्थस्थल बद्रीनाथ और प्राकृतिक झरना तप्त कुंड अलकनंदा नदी के तट पर स्थित हैं।
भागीरथी नदी
- यह उत्तराखंड की एक अशांत हिमालयी नदी है, और गंगा की दो मुख्य धाराओं में से एक है।
- भागीरथी नदी 3892 मीटर की ऊँचाई पर, गौमुख में गंगोत्री ग्लेशियर के तल से निकलती है और 350 किलोमीटर चौड़े गंगा डेल्टा में विस्तृत होके अंततः बंगाल की खाड़ी में गिरती है।
- भागीरथी और अलकनंदा गढ़वाल में देवप्रयाग में मिलती हैं और उसके बाद गंगा के नाम से जानी जाती हैं।
धौलीगंगा
- इसका उद्गम वसुधारा ताल से होता है, जो संभवतः उत्तराखंड की सबसे बड़ी हिमनद झील है।
- धौलीगंगा अलकनंदा की महत्त्वपूर्ण सहायक नदियों में से एक है, दूसरी नंदाकिनी, पिंडर, मंदाकिनी और भागीरथी हैं।
- धौलीगंगा रैणी में ऋषिगंगा नदी से मिलती है।
 
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