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उत्तराखंड

मंगसीर बग्वाल

  • 24 Nov 2025
  • 14 min read

चर्चा में क्यों?

उत्तराखंड के गढ़वाल क्षेत्र के पर्वतीय गाँव दीवाली के बाद मनाए जाने वाले लोक उत्सव बग्वाल का उत्सवपूर्वक आयोजन कर रहे हैं, जो कृषि-चक्र और स्थानीय इतिहास पर आधारित है।

मुख्य बिंदु

  • बग्वाल कार्तिक दिवाली के लगभग एक महीने बाद (मार्गशीर्ष) मास में मनाया जाता है, जो पर्वतीय क्षेत्रों में प्रकाश-उत्सव के विलंबित आयोजन का द्योतक है।
  • यह पर्व गढ़वाली सेनापति माधो सिंह भंडारी की तिब्बती सेना पर विजय के उपरांत उनके घर-वापसी के ऐतिहासिक प्रसंग का स्मरण करता है, जिसके फलस्वरूप समुदाय ने दीपोत्सव को एक माह पश्चात मनाने की परंपरा शुरू की।
  • यह समय शीत ऋतु की फसल-कटाई पूर्ण होने का होता है, जब कृषि कार्य न्यूनतम हो जाता है तथा समुदाय सामूहिक भोज, संगीत और नृत्य हेतु एकत्र होता है।
  • अनुष्ठानों में रासो, तांदी जैसे लोकनृत्य, ढोल-दमाऊँ पर प्रदर्शन तथा चौथे दिन (‘भांड’) स्थानीय घास की मोटी रस्सी बनाकर गाँव के चौक में लपेटने की विशिष्ट रस्म सम्मिलित है।
  • यह त्योहार कृषि-पशुपालन जीवन-शैली, सामाजिक एकजुटता, अनुष्ठानिक शुद्धि और कठोर सर्दियों की तैयारी का द्योतक है।
  • यह पर्व लोक-कला, स्थानीय बोली, परंपरागत रीति-रिवाजों तथा अमूर्त सांस्कृतिक विरासत के संरक्षण में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है, विशेषकर उन क्षेत्रों में जहाँ शहरी प्रवास के कारण सांस्कृतिक अवनयन की चुनौती बढ़ रही है।

माधो सिंह भंडारी

  • माधो सिंह भंडारी (17वीं शताब्दी) गढ़वाल साम्राज्य के एक प्रसिद्ध सेनापति थे, जो अपनी रणनीतिक क्षमता और साहस के लिये विख्यात थे।
  • इन्हें ऐतिहासिक भंडारी खाल नहर के निर्माण हेतु विशेष रूप से याद किया जाता है, जो पर्वतीय भूभाग में एक महत्त्वपूर्ण सिंचाई नवाचार था, जिसने सिंचाई और ग्रामीण कृषि को बढ़ावा दिया।
  • लोक कथाओं में उन्हें गढ़वाल की सीमाओं की आक्रमणकारी ताकतों से रक्षा करने का श्रेय दिया जाता है, जिससे वे उत्तराखंड में साहस, बलिदान और सैन्य कौशल के प्रतीक बन गए ।
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