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मेन्स प्रैक्टिस प्रश्न

  • प्रश्न :

    हाल के दिनों में कुछ भारतीय नदियों को जीवित इकाई का दर्ज़ा प्रदान किया गया है ऐसा करने का क्या निहितार्थ है? यह नदियों के प्रदूषण की रोकथाम एवं उनके पारिस्थितिकी संरक्षण में किस सीमा तक सहायक सिद्ध होगी?

    29 Mar, 2018 सामान्य अध्ययन पेपर 3 पर्यावरण

    उत्तर :

    उत्तर की रूपरेखा:

    • कुछ भारतीय नदियों को जीवित इकाई का दर्जाप्रदान किये जाने के उद्देश्य।

    • यह पहल नदियों के प्रदूषण की रोकथाम तथा पारिस्थितिकी संरक्षण में किस प्रकार सहायता करेगी। 

    • नदियों के प्रदूषण की रोकथाम में प्रमुख चुनौतियाँ।

    उत्तराखंड उच्च न्यायालय ने गंगा एवं यमुना तथा इनकी सहायक नदियों को और मध्य प्रदेश सरकार द्वारा नर्मदा नदी को जीवित इकाई की मान्यता प्रदान की गई है  जो कि उन्हें अनुच्छेद 48-A तथा अनुच्छेद 51 A (g) के तहत एक व्यक्ति के समान वैधानिक अधिकार प्रदान करेगा। इससे पहले न्यूजीलैंड की वांगनुई नदी को इसी प्रकार का दर्जा प्रदान किया गया था। इस निर्णय का मुख्य उद्देश्य इन नदियों की स्वच्छता तथा पारिस्थितिक संरक्षण सुनिश्चित करना है। इन नदियों को वैधानिक रूप से संरक्षित किये जाने तथा किसी तरह का नुकसान न पहुँचाए जाने का अधिकार होगा।

    उच्च न्यायालय ने गंगा नदी के रख-रखाव तथा सफाई के लिये केंद्र सरकार से ‘गंगा प्रबंधन बोर्ड’ का गठन करने को कहा है। न्यायालय के आदेशानुसार ‘नमामि गंगे’ कार्यक्रम के निदेशक, उत्तराखंड सरकार के मुख्य सचिव तथा उत्तराखंड के महाधिवक्ता इन नदियों के संरक्षक तथा इनके मानव चेहरे के रूप में जाने जाएंगे।

    यह निर्णय उत्तराखंड उच्च न्यायालय के समक्ष लंबित दो मामलों के संदर्भ में दिया गया है, पहला है देहरादून में नहर किनारे अवैध निर्माण तथा दूसरा, उत्तराखंड एवं उत्तर प्रदेश के मध्य जल का बँटवारा। यह निर्णय नदी के प्राकृतिक बहाव को सुनिश्चित करने तथा नदी के आस-पास अवैध निर्माण के रोकथाम की दिशा में एक कारगर कदम है। नदी के ऊपर किसी प्रकार का निर्माण जैसे बांध या बालू खनन इत्यादि को भी नियंत्रित किया जा सकेगा। यह ‘नमामि गंगे’ कार्यक्रम को भी बल प्रदान करेगा।

    हाल ही में इन अधिकारों को सहायक नदियों तथा हिमनदों के लिये भी विस्तारित कर दिया गया है, जिसके कारण इसमें जलवायु परिवर्तन की चुनौतियाँ भी शामिल हो गई हैं और साथ ही इसकी व्यापकता में वृद्धि हुई है। इन अधिकारों के मिलने से जन सामान्य तथा सिविल सोसाइटी में जागरूकता आएगी और नदियों का संरक्षण बेहतर तरीके से हो सकेगा।

    दरअसल, गंगा और यमुना महज नदियाँ नहीं हैं। ये देश की संस्कृति की प्रतीक एवं पर्याय हैं। एक विशाल आबादी के लिये ये जीवनदायिनी भी हैं और आस्था का केंद्र भी। आवश्यक केवल यह नहीं है कि नदियों के अविरल प्रवाह की चिंता की जाए, बल्कि आवश्यक यह भी है कि उनके पारिस्थितिकी तंत्र को सहेजने की कोशिश की जाए। बिना ऐसा किये नदियों के धार्मिक, सांस्कृतिक एवं प्राकृतिक महत्त्व को बचाए रखना मुश्किल होगा।

    गंगा और यमुना के जल का दोहन कुछ इस प्रकार से करने की ज़रूरत है कि उनके पारिस्थितिकी तंत्र को कोई नुकसान न पहुँचे। उत्तराखंड में नदियों पर बांध बनाने से पहले राज्य में बांधों की आवश्यकता का ठोस आकलन होना चाहिये। सरकारों को आर्थिक लाभ की चिंता वहीं तक करनी चाहिये जहाँ तक कि नदियों की जीवनदायी क्षमता पर विपरीत असर न पड़े। गंगा और यमुना को प्रदूषण के साथ-साथ अतिक्रमण से बचाने की पहल इस रूप में होनी चाहिये कि उनका प्रवाह बाधित न होने पाए।

    चुनौतियाँ:

    इसमें कोई दो राय नहीं है कि इस फैसले से इन नदियों को पुनर्जीवित करने का मौका मिला है, लेकिन इसके प्रभावी कार्यान्वयन के लिये केंद्र और राज्य दोनों सरकारों को मिलकर जन-सहयोग से नदियों का सरंक्षण करना होगा।

    अदालत ने भले ही कानूनी तौर पर अब नदियों को जीवित इकाई माना हो लेकिन, हमारी संस्कृति में तो हम पहले ही इन्हें इससे ऊँचा दर्जा दे चुके हैं, फिर भी हालात क्या हैं, हम सब जानते हैं। दरअसल, जलवायु परिवर्तन के प्रभाव, बढ़ता प्रदूषण और खतरे में पड़ते प्राकृतिक संसाधन एक ही बात की ओर इशारा कर रहे हैं कि हमें अपनी संपूर्ण जीवन-शैली को बदलने की ज़रूरत है।

    जागरूकता के अभाव और स्वार्थपूर्ण हितों के कारण हम लोग ही जल स्रोतों को सबसे ज़्यादा प्रदूषित करते हैं। इतने बड़े पैमाने पर यदि प्रदूषण हो रहा हो तो कोई एजेंसी इसे रोक नहीं सकती। इसलिये जनता को ही सबसे पहले आगे आना होगा। इसमें स्थानीय लोगों के साथ तीर्थयात्रियों के रूप में अन्य स्थानों से आने वाले श्रद्धालुओं और पर्यटकों को भी महत्त्वपूर्ण भूमिका निभानी होगी।

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