दृष्टि आईएएस अब इंदौर में भी! अधिक जानकारी के लिये संपर्क करें |   अभी कॉल करें
ध्यान दें:

मेन्स प्रैक्टिस प्रश्न

  • प्रश्न :

    “पिछले दो-ढाई दशकों में गरीबी कुछ कम ज़रूर हुई है, लेकिन आर्थिक असमानता की खाई और चौड़ी हुई है जो पर्यावरण पर भारी पड़ रही है।” व्याख्या कीजिये।

    07 Aug, 2018 सामान्य अध्ययन पेपर 3 पर्यावरण

    उत्तर :

    उत्तर की रूपरेखा

    • प्रभावी भूमिका में प्रश्नगत कथन को स्पष्ट करें।
    • तार्किक तथा संतुलित विषय-वस्तु में पर्यावरणीय अवक्रमण और गरीबी के सह-संबंध को व्याख्यायित करें।
    • प्रश्नानुसार संक्षिप्त एवं सारगर्भित निष्कर्ष लिखें।

    पिछले दो-ढाई दशक में जिस रफ्तार से भारत में विकास हुआ है, उसकी तुलना में गरीबी और असमानता उस रफ्तार से कम नहीं हुई है। आर्थिक असमानता केवल भारत में ही देखने को नहीं मिलती, बल्कि यह एक विश्वव्यापी समस्या है। इसे स्पष्ट करने के लिये यह एक तथ्य पर्याप्त है कि विश्व के कुल धन का आधे से अधिक भाग केवल 42 लोगों के हाथों में सिमटा हुआ है।

    आज भी देश में 30 करोड़ लोग गरीबी रेखा से नीचे जीवन निर्वाह करने को विवश हैं तथा उनके लिये प्रथम वरीयता रोटी, कपड़ा और मकान है। वे पर्यावरण के बारे में ज़्यादा कुछ नहीं जानते; और जितना जानते भी हैं, उसके तहत यह मुद्दा उनकी वरीयता में सबसे नीचे है। पर्यावरण पर यह आर्थिक असमानता भारी पड़ रही है और इसके कई प्रकार के दुष्परिणाम सामने आ रहे हैं।

    गरीबी और पर्यावरण प्रदूषण सीधे-सीधे आपस में जुड़े हुए हैं, विशेषकर वहाँ, जहाँ लोग रोज़ी-रोटी के लिये अपने निकट के प्राकृतिक संसाधनों पर निर्भर रहते हैं। इसके साथ ही, जैव विविधता पर लगातार बढ़ता दबाव मानव की बढ़ती जनसंख्या को भी परिलक्षित करता है। जब तक जनसंख्या स्थिर नहीं हो जाती, तब तक यह दबाव कम नहीं होने वाला; यह भी सत्य है कि गरीब परिवारों में सदस्यों की संख्या अधिक होती है। गरीबी पर्यावरण की कुछ ऐसी समस्याओं को जन्म देती है, जिनसे यह और बढ़ती है। उदाहरणार्थ, गरीब किसानों द्वारा कमज़ोर ज़मीन पर खेती करने से उसका क्षरण और बढ़ जाता है और अंततः इससे किसान की ही निर्धनता बढ़ती है। गरीबों के द्वारा वनों से लकड़ी काटकर बेचना जिससे वन तो नष्ट हो ही रहे हैं, लकड़ी की भी कमी हो रही है। इसका अंतिम परिणाम भी गरीबों की गरीबी और बढ़ने के रूप में सामने आ रहा है।

    पर्यावरणीय अवक्रमण से बढ़ती है गरीबी 

    • देश के समक्ष जो प्रमुख पर्यावरणीय चुनौतियाँ हैं, वे पर्यावरणीय अवक्रमण तथा विभिन्न आयामों में मौजूद गरीबी एवं आर्थिक असमानता और प्रगति के गठजोड़ से संबंधित हैं। 
    • ये चुनौतियाँ आंतरिक तौर पर भूमि, जल, वायु जैसे पर्यावरणीय तत्त्वों से जुड़ी हुई हैं। पर्यावरण अवक्रमण के आसन्न कारकों में जनसंख्या वृद्धि, अनुपयुक्त प्रौद्योगिकी एवं उपभोग संबंधी विकल्प का चयन तथा गरीबी के साथ-साथ विकास गतिविधियों जैसे गहन-कृषि, प्रदूषक उद्योग तथा अनियोजित शहरीकरण आदि शामिल हैं। 
    • ये कारक केवल गंभीर कार्य-कारण संबंधों के माध्यम से पर्यावरणीय अवक्रमण, विशेषकर संस्थागत विफलताओं को जन्म देते हैं, जिसके परिणामस्वरूप पर्यावरणीय स्रोतों की प्राप्ति और उनके प्रयोग संबंधी अधिकारों के प्रवर्तन संबंधी पारदर्शिता में कमी आने के साथ-साथ पर्यावरणीय संरक्षण को हतोत्साहित करने वाली नीतियाँ, बाज़ार असफलता तथा संचालन संबंधी बाधाएँ उत्पन्न हो सकती हैं।
    • पर्यावरणीय अवक्रमण विशेषकर निर्धन ग्रामीणों में गरीबी को बढ़ावा देने वाला एक प्रमुख कारक है। इस प्रकार का अवक्रमण मृदा की उपजाऊ शक्ति, स्वच्छ जल की मात्रा और गुणवत्ता, वायु गुणवत्ता, वनों, वन्य-जीवन तथा मत्स्य-पालन को प्रभावित करता है। 
    • प्राकृतिक संसाधनों, विशेषकर जैव विविधता पर ग्रामीण निर्धनों, मुख्यतया आदिवासी समाज की निर्भरता स्वतः सिद्ध है। 
    • विशेषकर महिलाओं पर प्राकृतिक संसाधनों के अवक्रमण का बहुत बुरा प्रभाव पड़ता है, क्योंकि वे इन संसाधनों को एकत्र करने और इनके उपयोग के लिये सीधे तौर पर उत्तरदायी हैं, लेकिन इनके प्रबंधन में उनका उत्तरदायित्व नगण्य है।

    समाधान के उपाय

    • पर्यावरण संरक्षण के लिये गरीबी कम होना पहली और अनिवार्य शर्त है। 
    • जलवायु अनुकूल तकनीक इसके लिये आवश्यक मानी जाती है क्योंकि इससे समाज के कमज़ोर वर्गों की सहायता करने में आसानी रहती है।
    • प्राकृतिक संसाधनों का संरक्षण इसके सतत् उपयोग पर आधारित होना चाहिये। 
    • मनुष्य और पर्यावरण के बीच सहजीवन का संबंध है तथा यह देशवासियों के धार्मिक एवं सामाजिक-सांस्कृतिक मानसिकता के साथ भी जुड़ा हुआ है। 
    • हालिया समय में प्राकृतिक संसाधनों की बढ़ती मांग तथा प्रकृति के बारे में समझ की कमी के चलते यह संबंध प्रभावित हुआ है। 
    • इस स्थिति से बचने के लिये जनजातियों तथा स्थानीय समुदायों को पर्यावरण संरक्षण के तरीकों के बारे में जानकारी दी जानी चाहिये।
    • सरकार को भी इनके कल्याण पर ध्यान देना चाहिये क्योंकि ये अपनी आजीविका के लिये पर्यावरण पर निर्भर होते हैं।

    पर्यावरण संवर्द्धन के बिना संतुलित आर्थिक विकास नहीं हो सकता। पर्यावरण का अर्थ केवल ज़मीन, हवा या पानी मात्र नहीं हैं, बल्कि पर्यावरण में वे समस्त प्राकृतिक संसाधन शामिल हैं, जिन पर मानव जीवन का अस्तित्व निर्भर करता है। पर्यावरण पर पड़ने वाला किसी भी प्रकार का दुष्प्रभाव आर्थिक असमानता की खाई को और चौड़ा बना देता है और इसकी सीधी चोट सबसे ज़्यादा गरीबों पर पड़ती है। कह सकते हैं कि बिगड़ता पर्यावरण और सामाजिक अन्याय एक ही सिक्के के दो पहलू हैं।

    To get PDF version, Please click on "Print PDF" button.

    Print
close
एसएमएस अलर्ट
Share Page
images-2
images-2
× Snow