इंदौर शाखा: IAS और MPPSC फाउंडेशन बैच-शुरुआत क्रमशः 6 मई और 13 मई   अभी कॉल करें
ध्यान दें:

मेन्स प्रैक्टिस प्रश्न

  • प्रश्न :

    लाभ के पद से आप क्या समझते हैं? समय-समय पर विभिन्न राज्यों द्वारा इस पद पर संसदीय सचिवों की नियुक्ति विवाद का मुद्दा बनता रहा है। समालोचनात्मक परीक्षण करें।

    11 Mar, 2018 सामान्य अध्ययन पेपर 2 राजव्यवस्था

    उत्तर :

    उत्तर की रूपरेखा :
    • लाभ के पद के अर्थ को स्पष्ट करें।
    • संसदीय सचिव के बारे में संवैधानिक प्रावधान।
    • संसदीय सचिव पद के साथ जुड़े विवाद के प्रमुख कारण।
    • संसदीय सचिव पद के समर्थन में तर्क।

    'लाभ के पद' का मतलब उस पद से है जिस पर रहते हुए कोई व्यक्ति सरकार की ओर से किसी भी तरह की सुविधा लेने का अधिकारी हो। ‘लाभ का पद’ संविधान में परिभाषित नहीं है। लेकिन पिछले निर्णयों के आधार पर चुनाव आयोग ने लाभ के पद की व्याख्या निम्नलिखित 5 आधारों पर की हैः

    1. क्या सरकार द्वारा नियुक्ति की गई है?
    2. क्या सरकार के पास पद धारक को हटाने या पदच्युत करने का अधिकार है?
    3. क्या सरकार द्वारा पारिश्रमिक का भुगतान किया जाता है?
    4. पद धारक के कार्य क्या हैं?
    5. क्या सरकार इन कार्यों के निष्पादन पर किसी भी प्रकार का नियंत्रण रखती है?

    पद के हिसाब से संसदीय सचिव का कद किसी राज्य मंत्री के बराबर होता है और इसलिए उन्‍हें मंत्री जैसी सुविधाएं भी मिल सकती हैं, जबकि भारतीय संविधान का अनुच्छेद 102 (1) (अ) कहता है कि सांसद या विधायक किसी ऐसे अन्य पद पर नहीं हो सकते, जहां वेतन, भत्ते या अन्य दूसरी तरह के सरकारी फायदे मिलते हों। वहीं, संविधान के अनुछेद 191 (1)(ए) के अनुसार, अगर कोई विधायक किसी लाभ के पद पर पाया जाता है तो विधानसभा में उसकी सदस्यता अयोग्य ठहराई जा सकती है। जनप्रतिनिधित्व कानून की धारा 9 (अ) के तहत भी सांसदों और विधायकों को अन्य पद लेने से रोकने का प्रावधान है।

    वेस्ट्मिन्स्टर प्रणाली में संसदीय सचिव संसद का एक सदस्य होता है जो अपने कार्यों द्वारा अपने से वरिष्ठ मंत्रियों की सहायता करता है। मूल रूप से इस पद का उपयोग भावी मंत्रियों के प्रशिक्षण के लिये किया जाता था। इस पद का सृजन समय-समय पर अनेक राज्यों जैसे- पंजाब, हरियाणा, दिल्ली, राजस्थान आदि में किया गया है। हालाँकि उच्च न्यायालय में विभिन्न याचिकाओं द्वारा संसदीय सचिवों की नियुक्तियों को चुनौती दी गई है।

    संसदीय सचिव पद के साथ विवाद के प्रमुख कारण:

    • संसदीय सचिव, मूल रूप से कार्यपालिका और विधायिका के बीच शक्ति-पृथक्करण के सिद्धांत का उल्लंघन करता है।
    • सैद्धांतिक रूप से विधायिका सरकार को नियंत्रित करती है किंतु वास्तविकता में प्रायः यह देखा गया है कि सरकार जब तक सदन में बहुमत में होती है तब तक वह विधायिका को नियंत्रित करती है। विधायकों को खुश करने एवं लाभ पहुँचाने के लिये उन्हें निगमों के अध्यक्ष का पद, विभिन्न मंत्रलयों के संसदीय सचिवों का पद तथा लाभ के अन्य पद प्रदान कर दिये जाते हैं ताकि वे सरकार से सहयोगात्मक रूख बनाए रखें।
    • इसके पीछे मूलभूत विचार विधायकों के विधायी कार्यों और उन्हें मिले पद के कर्त्तव्यों के बीच हितों के टकराव को टालना था।

    संसदीय सचिव पद के समर्थन में तर्क

    • संविधान विधायिका के लाभ के किसी भी पद को धारण करने वाले को छूट प्रदान करने हेतु कानून पारित करने की अनुमति प्रदान करता है। पहले भी राज्यों और संसद द्वारा ऐसा किया जा चुका है। यू-सी- रमण मामले में सुप्रीम कोर्ट ने इसे बरकरार रखा है।
    • मंत्रियों की नियुक्ति राष्ट्रपति/राज्यपाल द्वारा की जाती है। वे उन्हें पद और गोपनीयता की शपथ दिलाते हैं। इन संवैधानिक आवश्यकताओं को पूरा किये बिना किसी व्यक्ति को मंत्री नहीं माना जा सकता। अनुच्छेद 239AA(4) के तहत संसदीय सचिव मंत्री नहीं माने जाते हैं, क्योंकि उन्हें राष्ट्रपति द्वारा नियुक्त नहीं किया जाता और उनके द्वारा उन्हें पद और गोपनीयता की शपथ भी नहीं दिलाई जाती।

    To get PDF version, Please click on "Print PDF" button.

    Print
close
एसएमएस अलर्ट
Share Page
images-2
images-2