दृष्टि आईएएस अब इंदौर में भी! अधिक जानकारी के लिये संपर्क करें |   अभी कॉल करें
ध्यान दें:

मेन्स प्रैक्टिस प्रश्न

  • प्रश्न :

    स्थलरूप संरचना, प्रक्रम तथा अवस्था का प्रतिफल होता है। स्पष्ट कीजिये।

    31 Aug, 2018 सामान्य अध्ययन पेपर 1 भूगोल

    उत्तर :

    उत्तर की रूपरेखा

    • प्रभावी भूमिका में डेविस के भौगोलिक चक्र को संक्षेप में लिखें।
    • तार्किक एवं संतुलित विषय-वस्तु में स्थलरूप के विकास में संरचना, प्रक्रम और अवस्था के महत्त्व का वर्णन करें।
    • प्रश्नानुसार संक्षिप्त और सारगर्भित निष्कर्ष लिखें।

    भूदृश्य के विकास और रूपांतरण से संबंधित ‘अपरदन का भौगोलिक चक्र’ विलियम मोरिस डेविस की एक संकल्पना है जिसमें उसने किसी स्थान की भू-आकृतियों के विकास में तीन कारकों को महत्त्वपूर्ण माना है। ये कारक हैं : (i) संरचना   (ii) प्रक्रम   (iii) समय या अवस्था। इन कारकों को डेविस का त्रिकूट कहा जाता है और एक वाक्य में व्यक्त किया गया है कि “स्थलरूप संरचना, प्रक्रम और अवस्था का प्रतिफल होता है।

    संरचना 

    अपरदन द्वारा किसी स्थलरूप के विकास में संरचना का महत्त्वपूर्ण स्थान है। डेविस ने यहाँ संरचना शब्द का प्रयोग विस्तृत अर्थों में किया है। इसमें केवल प्रादेशिक भूगर्भिक संरचना जैसे- वलन, भ्रंशन आदि ही सम्मिलित नहीं किये जाते बल्कि शैलों की प्रकृति, उनके भौतिक व रासायनिक गुण, घुलनशीलता एवं भेद्यता, संधियों की प्रकृति, संस्तरण और विदलन आदि भी सम्मिलित किये जाते हैं, जैसे- ठोस क्वार्टजाईट की अपेक्षा कोमल शैल सुगमता से अपरदित होता है।

    प्रक्रम 

    प्रक्रम शब्द में आंतरिक और बाह्य बलों की क्रियाएँ सम्मिलित की जाती हैं। अंतर्जात बलों के कारण ज्वालामुखीयता और पटल विरूपणीय क्रियाएँ होती हैं जो पृथ्वी के धरातल पर पर्वतों, पठारों, पहाड़ियों और तरंगित स्थलरूपों के निर्माण से असमानताएँ उत्पन्न करती हैं। दूसरी ओर, बहिर्जात बल जैसे- बहता जल, भूमिगत जल, हिमनद, पवन और समुद्री लहरें आदि हैं जो पृथ्वी के धरातल को समतल करते हैं। ये बल उत्थित भूमि का अपरदन करते हैं, अपरदित पदार्थ का परिवहन करते हैं और उन्हें अन्यत्र जमा करते हैं। भू-स्वरूपों के विकास में प्रक्रम का महत्त्वपूर्ण स्थान है। 

    समय या अवस्था 

    स्थलरूपों के विकास में डेविस ने तीन अवस्थाओं की पहचान की है, जिन्हें समय श्रेणी के अंतर्गत शामिल किया जाता है। ये अवस्थाएं हैं : (i) युवास्था  (ii) प्रौढ़ावस्था  (iii) जीर्णावस्था। जिस प्रकार प्रत्येक प्रक्रम विशिष्ट भूदृश्य का निर्माण करता है, उसी प्रकार अपरदन की प्रत्येक अवस्था भी विशिष्ट भू-स्वरूप को प्रदर्शित करती है, जिसकी सहायता से भूदृश्य के विकास की अवस्था की पहचान करना संभव है। विकास की अवस्था एवं भू-आकृति की विशेषता के बीच प्रत्यक्ष संबंध होता है। गार्ज़, V आकार की घाटी, प्रपात, क्षिप्रिकाएँ और तीव्र ढाल युवावस्था की विशेषताएँ हैं, जबकि विसर्प, गोखुर झील, तटबंध, बाढ़ मैदान आदि प्रौढ़ावस्था के लक्षण हैं, वहीं मोनाडनॉक, मंद ढाल और आकृतिविहीन मैदान जीर्णावस्था के परिचायक हैं।

    डेविस के विचार से भू-आकृतियाँ जैव जीवन के विकास के समान विकसित होती हैं। अपरदन चक्र को उसके द्वारा भौगोलिक चक्र के रूप में परिभाषित किया गया है, जिसमें एक उत्थित भूखंड, भू-तक्षण (land sculpture) के प्रक्रमों द्वारा रूपांतरित होता है, जिसका समापन एक निम्न, आकृतिहीन मैदान या एक समप्राय मैदान के रूप में होता है। दूसरे शब्दों में, एक उच्च भूभाग पर उस समय तक अपरदन होता है जब तक कि वह समुद्र तल तक नीचे नहीं कर दिया जाता। यहाँ यह जोड़ा जाना आवश्यक है कि उच्चावच में भिन्नता, संरचना पटल विरूपणी (Diastrophic) इतिहास और जलवायु परिस्थितियों  के क्रमशः उल्लेखनीय परिणाम प्राप्त हो सकते हैं। अतः स्पष्ट है कि स्थलरूप संरचना, प्रक्रम और अवस्था का प्रतिफल होता है।

    To get PDF version, Please click on "Print PDF" button.

    Print
close
एसएमएस अलर्ट
Share Page
images-2
images-2
× Snow