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मेन्स प्रैक्टिस प्रश्न

  • प्रश्न :

    निबंध विषय:

    प्रश्न 1. संधारणीयता (Sustainability) केवल हानि को न्यूनतम करने तक सीमित नहीं रही, बल्कि अब यह अधिक लाभ सुनिश्चित करने का विषय बन गई है। (1200 शब्द

    प्रश्न 2. आपसी सुनिश्चित विनाश स्वयं में एक विरोधाभास है, क्योंकि यह विनाश की संभावना सुनिश्चित करके ही शांति की रक्षा करता है। (1200 शब्द)

    25 Oct, 2025 निबंध लेखन निबंध

    उत्तर :

    1. संधारणीयता (Sustainability) केवल हानि को न्यूनतम करने तक सीमित नहीं रही, बल्कि अब यह अधिक लाभ सुनिश्चित करने का विषय बन गई है। (1200 शब्द)

    परिचय: 

    जब वांगारी माथाई ने 1970 के दशक में केन्या में पेड़ लगाने की शुरुआत की, तब लोगों ने उनके प्रयासों का उपहास उड़ाया, तो उन्हें लगा कि यह वनों की अंधाधुंध कटाई के तेज़ी से बढ़ते संकट के समक्ष एक तुच्छ और महत्त्वहीन कार्य है। किंतु दशकों बाद, उनके ‘ग्रीन बेल्ट मूवमेंट’ ने न केवल लाखों पेड़ों को पुनर्स्थापित किया, बल्कि स्थानीय पारितंत्रों को पुनर्जीवित किया और ग्रामीण महिलाओं को सशक्त बनाया। माथाई का कार्य एक गहरी सच्चाई का प्रतीक था— “संधारणीयता का तात्पर्य केवल हानि को रोकने की प्रक्रिया नहीं है, बल्कि पहले से हुई क्षति की पूर्ति करने और पुनर्जीवित करने की दृष्टि है।” यह उस विचार का प्रतिनिधित्व करता है कि हमें केवल बुराई को कम नहीं करना है, बल्कि उससे कहीं अधिक भलाई करनी है।

    मुख्य भाग:

    दृष्टिकोण में परिवर्तन की समझ

    • पारंपरिक दृष्टिकोण: प्रदूषण कम करने, अपशिष्ट को न्यून करने या ऊर्जा संरक्षण पर केंद्रित अर्थात प्रतिक्रियात्मक एवं रक्षात्मक दृष्टि।
    • आधुनिक दृष्टिकोण: पुनर्योजी (Regenerative) प्रथाओं, चक्रीय अर्थव्यवस्था (Circular economy), हरित नवाचार और सामाजिक सशक्तीकरण पर आधारित अर्थात सक्रिय एवं रूपांतरकारी दृष्टि।
    • यह दृष्टिकोण वैश्विक लक्ष्यों जैसे: संयुक्त राष्ट्र के सतत् विकास लक्ष्य (UN SDGs), पेरिस समझौता और एजेंडा 2030 से गहराई से जुड़ा है।

    “अधिक भलाई करने” के आयाम

    • पर्यावरणीय आयाम:
      • कार्बन उत्सर्जन घटाने से आगे बढ़कर ‘कार्बन अवशोषण’ (Carbon sequestration) की दिशा में प्रयास, जैसे: वनीकरण, बायोचार आदि।
      • अपशिष्ट को न्यून करने से आगे बढ़कर चक्रीय अर्थव्यवस्था का निर्माण अर्थात् पुनः प्रयोग, पुनर्चक्रण एवं पुनर्जनन।
      • भारत का मिशन LiFE, स्वच्छ भारत मिशन और नवीकरणीय ऊर्जा का विस्तार।
    • आर्थिक आयाम:
      • हरित उद्यमिता, संवहनीय वित्त और समावेशी विकास को प्रोत्साहित करना।
      • उदाहरण: ग्रीन हाइड्रोजन, विद्युत वाहन (EV) पारितंत्र, सौर ऊर्जा पार्क तथा कॉर्पोरेट सामाजिक उत्तरदायित्व (CSR) के माध्यम से संधारणीयता को बढ़ावा देना।
    • सामाजिक आयाम:
      • स्थानीय समुदायों का सशक्तीकरण, शिक्षा, स्वास्थ्य और समानता को प्रोत्साहन देना।
      • उदाहरण: स्वयं सहायता समूह, महिलाओं द्वारा संचालित नवीकरणीय ऊर्जा पहल और ग्रामीण आजीविका कार्यक्रम।
      • मानव विकास को संवहनीयता के साथ एकीकृत करना।

    नैतिक एवं दार्शनिक दृष्टिकोण:

    • संवहनीयता को भावी पीढ़ियों के प्रति नैतिक दायित्व के रूप में देखना (अंतर-पीढ़ीगत समानता)।
    • ‘मानव-केंद्रित’ (Anthropocentric) दृष्टिकोण से आगे बढ़कर ‘प्रकृति-केंद्रित’ (Ecocentric) दृष्टि अपनाना अर्थात् प्रकृति के साथ सह-अस्तित्व।
    • गांधीवादी विचार का प्रतिबिंब: “पृथ्वी हर व्यक्ति की आवश्यकता पूरी करने में सक्षम है, पर हर व्यक्ति के लालच को नहीं।”

    ‘सकारात्मक सततता’ के व्यवहारिक चुनौतियाँ:

    • अल्पकालिक आर्थिक हितों और दीर्घकालिक पारिस्थितिक लाभों के बीच टकराव।
    • नीति असंगति, जागरूकता की कमी और प्रवर्तन की अकुशलता।
    • व्यवहार परिवर्तन और नवोन्मेषी शासन मॉडल की आवश्यकता।

    आगे की राह:

    • पुनर्योजी कृषि, ‘नेट-पॉज़िटिव’ स्थापत्य कला, हरित रोज़गार और प्रकृति-आधारित समाधान को बढ़ावा देना।
    • सतत् नवाचार के लिये सार्वजनिक-निजी साझेदारी को प्रोत्साहित करना।
    • संधारणीयता-केंद्रित मानसिकता के लिये शिक्षा और नैतिक चेतना को सशक्त करना।

    निष्कर्ष:

    अतः, वास्तविक संधारणीयता केवल क्षति की पूर्ति या नियंत्रण करने की अवधारणा नहीं है, बल्कि यह एक रूपांतरणकारी दृष्टि है जिसके माध्य्म्म से मानव प्रगति और पृथ्वी के कल्याण के बीच संतुलन स्थापित करने का प्रयास किया जाता है। यह शोषण से पुनर्जनन की ओर, उपभोग से संरक्षण की ओर और अल्पकालिक लाभ से अंतर-पीढ़ीगत समानता की ओर एक नैतिक परिवर्तन की माँग करती है। वांगारी माथाई की विरासत हमें यह स्मरण कराती है कि “सतत् भविष्य का निर्माण पारितंत्रों का पोषण कर, समुदायों को सशक्त बना कर और विकास को विनाश नहीं, बल्कि नवीकरण एवं सामंजस्य की शक्ति बना कर अधिक भलाई करने से ही संभव है।


    2. पारस्परिक सुनिश्चित विनाश (म्यूचुअल अश्योर्ड डेस्ट्रक्शन) स्वयं में एक विरोधाभास है, क्योंकि यह विनाश की संभावना सुनिश्चित करके ही शांति की रक्षा करता है। (1200 शब्द)

    परिचय:

    पारस्परिक सुनिश्चित विनाश (Mutual Assured Destruction: MAD) शीत युद्ध के दौरान एक ऐसी सामरिक अवधारणा के रूप में उभरा जिसने यह प्रतिपादित किया कि यदि दो शत्रु राष्ट्र ऐसे परमाणु अस्त्र रखते हों जो एक-दूसरे का पूर्ण विनाश कर सकते हों, तो उनमें से कोई भी युद्ध प्रारंभ नहीं करेगा। यह सिद्धांत निवारक सिद्धांत (न्यूक्लियर डेटरेंस) की उस तर्कसंगति पर आधारित है जहाँ शांति नैतिक संयम या अंतर्राष्ट्रीय विधि से नहीं बल्कि विनाशकारी प्रतिशोध की निश्चितता से बनी रहती है।

    भय के माध्यम से शांति का यह विरोधाभास आधुनिक युद्ध की नैतिक, राजनीतिक और दार्शनिक दुविधा को परिभाषित करता है कि क्या संपूर्ण विनाश के खतरे से स्थायी शांति की स्थापना संभव है?

    मुख्य भाग

    ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य

    • इस विचार की उत्पत्ति हिरोशिमा और नागासाकी (वर्ष 1945) के बाद हुई तथा इसे अमेरिका-सोवियत शीत युद्ध के दौरान औपचारिक रूप दिया गया।
    • जॉन वॉन न्यूमैन और थॉमस शेलिंग जैसे विद्वानों ने गेम थ्योरी का प्रयोग निरोध के विश्लेषण में किया।
    • क्यूबा मिसाइल संकट (1962): परमाणु वृद्धि के भय से संरक्षित शांति– पारस्परिक सुनिश्चित विनाश (MAD) की प्रभावशीलता का प्रतीक।

    नैतिक आयाम

    • कांट की नैतिकता: विनाश की धमकी मानव गरिमा का उल्लंघन करती है; क्योंकि किसी लक्ष्य (साध्य) को प्राप्त करने के लिये यदि हम ऐसे उपाय अपनाते हैं जो नैतिक रूप से गलत हों, तो वह लक्ष्य भी नैतिक नहीं माना जा सकता।
    • न्यायपूर्ण युद्ध सिद्धांत: आनुपातिकता और भेदभाव का उल्लंघन; अंधाधुंध विनाश।
    • उपयोगितावाद: निवारण युद्ध को टालता है लेकिन स्थायी भय और आर्थिक का कारण बनता है।
    • गांधीवादी नैतिकता: सच्ची शांति अहिंसा और नैतिक निरस्त्रीकरण पर आधारित है, न कि जबरदस्ती पर।

    सैद्धांतिक परिप्रेक्ष्य

    • यथार्थवाद (Realism – मॉर्गेन्थाउ, वॉल्ट्ज़): राज्य अपने अस्तित्व के लिये कार्य करते हैं; परमाणु निरोध स्थिरता सुनिश्चित करता है।
    • उदारवाद (Liberalism – रॉल्स, विल्सन): शांति सहयोग और न्याय से सुनिश्चित होती है; पारस्परिक सुनिश्चित विनाश (MAD) नैतिकता को गणना में बदल देता है।
    • संरचनावाद (Constructivism – वेन्ड्ट): निरोध सामाजिक रूप से निर्मित अवधारणा है; मान्यताएँ और मूल्य शांति की परिभाषा को बदल सकते हैं।
    • नारीवादी नैतिकता (Cohn, Enloe): पारस्परिक सुनिश्चित विनाश (MAD) पितृसत्तात्मक तर्क का प्रतीक है जो ‘देखभाल’ और ‘सहानुभूति’ के बजाय शक्ति का महिमामंडन करता है।

    व्यावहारिक उदाहरण

    • अमेरिका-सोवियत संघ: प्रत्यक्ष युद्ध टला, परंतु हथियारों की दौड़ और प्रॉक्सी संघर्ष बढ़े।
    • भारत-पाकिस्तान: वर्ष 1998 की परमाणुकरण के बाद प्रत्यक्ष युद्ध टले, पर सीमित संघर्ष (कारगिल 1999, बालाकोट 2019) हुए।
    • अमेरिका-उत्तर कोरिया (2017-18): परमाणु विनाश के भय ने कूटनीति की जगह ले ली, जो संवाद के माध्यम से शांति का प्रदर्शन करती है। 
    • रूस-यूक्रेन (2022 से जारी): परमाणु निवारण नाटो के हस्तक्षेप को रोकता है, लेकिन आक्रामकता को बढ़ावा देता है, यह नैतिक जोखिम है।

    मानवीय एवं पर्यावरणीय नैतिकता

    • पारस्परिक सुनिश्चित विनाश (MAD) युद्ध की पीढ़ी-दर-पीढ़ी और पारिस्थितिक नैतिकता की उपेक्षा करता है।
    • पूर्ण पैमाने पर परमाणु विध्वंस के परिणामस्वरूप निम्नलिखित परिणाम होंगे:
      • परमाणु शीतकाल, कृषि और पारिस्थितिक तंत्रों का विनाश।
      • अंतर्राष्ट्रीय मानवीय कानून (IHL) का उल्लंघन करते हुए बड़े पैमाने पर नागरिक हताहत।
      • भविष्य की पीढ़ियों पर रेडियोधर्मी विनाश का बोझ।
      • दार्शनिक हांस जोनास ने अपनी पुस्तक “द इम्पेरेटिव ऑफ रिस्पॉन्सिबिलिटी” (1979) में तर्क दिया है कि आधुनिक नैतिकता को मानवीय कार्यों के दीर्घकालिक परिणामों पर विचार करना चाहिये। पारस्परिक सुनिश्चित विनाश (MAD) पृथ्वी को अपरिवर्तनीय क्षति पहुँचाने की संभावना के साथ उस नैतिक उत्तरदायित्व में असफल सिद्ध होता है जो मानवता के प्रति दीर्घकालिक संरक्षण की माँग करता है।
    • वैश्विक संधियाँ और विकल्प
      • NPT (1968): परमाणु प्रसार को रोकता है लेकिन परमाणु राष्ट्रों के बीच नैतिक असमानता उत्पन्न करता है।
      • CTBT (1996) और TPNW (2017, ICAN नोबेल 2017): निवारण से निरस्त्रीकरण की ओर नैतिक कदम।
      • संयुक्त राष्ट्र चार्टर (1945): नैतिक विकल्प के रूप में सामूहिक सुरक्षा।
      • मानव सुरक्षा (UNDP 1994): सैन्य निवारण से परे शांति को पुनर्परिभाषित करता है।
    • विचारक और नैतिक आवाज़ें
      • आइंस्टीन: उन्होंने चेतावनी दी, “हमारी सोच परमाणु युग के साथ नहीं बदली है।” उन्होंने अतिराष्ट्रीय शासन की अनुशंसा की।
      • बर्ट्रेंड रसेल: परमाणु निरोध को “सामूहिक पागलपन” कहा।
      • पोप फ्रांसिस (2021): उन्होंने परमाणु अस्त्र के स्वामित्व को भी अनैतिक घोषित किया।
      • अमर्त्य सेन: सच्ची शांति ‘न्याय की उपस्थिति’ के बराबर है, युद्ध की अनुपस्थिति के तुल्य नहीं।
      • नेल्सन मंडेला: “साहस भय की अनुपस्थिति नहीं, बल्कि उस पर विजय है।”
    • आगे के नैतिक मार्ग 
      • भय-आधारित सुरक्षा के स्थान पर  गांधीवादी अहिंसा और नैतिक कूटनीति को अपनाना।
      • विश्वास-निर्माण उपाय (CBM): न्यू स्टार्ट (अमेरिका-रूस), भारत-चीन सीमा प्रोटोकॉल।
      • सहानुभूति, न्याय और मानव गरिमा पर आधारित वैश्विक नैतिक नेतृत्व का विकास।

    निष्कर्ष:

    पारस्परिक सुनिश्चित विनाश (MAD) आधुनिक काल का परम नैतिक विरोधाभास है। यह एक ऐसी शांति है जो मृत्यु के भय पर आधारित है। इससे बड़े युद्धों को टालने में सहायता की है, पर नैतिकता और वैश्विक विश्वास की कीमत पर।

    सच्ची शांति भय से नहीं, बल्कि नैतिक कल्पना, सहानुभूति और न्याय से आती है, जो हथियारों के साथ-साथ मन को भी निरस्त्र करने का एक साहस है।

    जैसा कि अल्बर्ट श्वाइत्ज़र ने कहा था, “नैतिकता जीवन के प्रति श्रद्धा है।”

    निरोध के स्थान पर विवेक और प्रभुत्व के स्थान पर सहयोग को अपनाना ही मानवता का एकमात्र मार्ग है जिससे एक न्यायपूर्ण एवं स्थायी विश्व-व्यवस्था की स्थापना हो सकती है।

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