दृष्टि के NCERT कोर्स के साथ करें UPSC की तैयारी और जानें
ध्यान दें:

मेन्स प्रैक्टिस प्रश्न

  • प्रश्न :

    प्रश्न: उत्पीड़ितों की चुप्पी तोड़ते हुए, ज्योतिबा फुले ने गरिमा और मुक्ति को आवाज़ दी। चर्चा कीजिये कि कैसे उनके विचारों ने 19वीं सदी के भारत में समानता और न्याय पर विमर्श को नया रूप दिया। (150 शब्द)

    29 Sep, 2025 सामान्य अध्ययन पेपर 1 इतिहास

    उत्तर :

    हल करने का दृष्टिकोण:

    • औपनिवेशिक भारत में एक प्रमुख समाज सुधारक के रूप में ज्योतिबा फुले का संक्षिप्त परिचय दीजिये।
    • चर्चा कीजिये कि कैसे उनके विचारों ने 19वीं सदी के भारत में समानता और न्याय पर विमर्श को नया रूप दिया।
    • फुले के विचारों की समकालीन प्रासंगिकता के साथ निष्कर्ष लिखिये।

    परिचय:

    19वीं सदी के भारत में, जाति की कठोर व्यवस्था और पितृसत्तात्मक मानदंडों ने समाज के बड़े वर्गों को हाशिये पर धकेल दिया था, जिससे उन्हें गरिमा, शिक्षा और न्याय से वंचित रहना पड़ा। ऐसे में ज्योतिबा फुले एक अग्रणी सामाजिक सुधारक के रूप में उभरे, जिन्होंने स्थापित सामाजिक व्यवस्था को चुनौती दी और शिक्षा, तार्किक सोच और सामाजिक सुधारों के माध्यम से शोषितों को सशक्त बनाने का प्रयास किया। गरिमा और मुक्ति का समर्थन करके, फुले ने औपनिवेशिक भारत में सामाजिक न्याय की चर्चा को नया आकार दिया।

    मुख्य भाग:

    ज्योतिबा फुले के विचारों के प्रमुख योगदान:

    • सामाजिक सुधार और जाति-विरोधी आंदोलन:
      • ब्राह्मणवादी परंपराओं और जाति आधारित भेदभाव की आलोचना की।
      • समानता को बढ़ावा देने के लिये 1873 में सत्यशोधक समाज (सत्य की खोज करने वाला समाज) की स्थापना की।
      • अस्पृश्यता का विरोध किया, विधवा पुनर्विवाह का समर्थन किया और बाल विवाह जैसी प्रथाओं को चुनौती दी।
      • शूद्रों और दलितों जैसी वंचित समुदायों को सशक्त बनाया, जिससे आधुनिक जाति-विरोधी आंदोलनों की नींव स्थापित हुई।
    • मुक्ति के साधन के रूप में शिक्षा:
      • सार्वभौमिक शिक्षा का समर्थन किया, विशेष रूप से बालिकाओं और निम्न जातियों के बच्चों के लिये।
        • ज्योतिराव फुले ने अपनी पत्नी सावित्रीबाई फुले के साथ मिलकर 1848 में पुणे में भारत का पहला कन्या विद्यालय स्थापित किया, जिसने स्त्री शिक्षा की नींव स्थापित की और प्रचलित सामाजिक मान्यताओं को चुनौती दी।
      • सावित्रीबाई फुले के साथ कई विद्यालय स्थापित किये, जिससे सामाजिक रूढ़ियों को तोड़ा गया।
      • उनका विश्वास था कि ज्ञान ही उत्पीड़ितों को सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक अधिकार प्राप्त करने की शक्ति प्रदान करता है।
    • महिला सशक्तीकरण और लैंगिक न्याय:
      • महिलाओं की शिक्षा को प्रोत्साहित किया और सती प्रथा तथा बाल विवाह जैसी दमनकारी सामाजिक कुरीतियों के विरुद्ध संघर्ष किया।
      • लैंगिक समानता को सामाजिक न्याय के व्यापक संघर्ष का अभिन्न हिस्सा बनाया।
    • दार्शनिक और वैचारिक योगदान:
      • तर्कवाद, मानवतावाद और पंथनिरपेक्षता का समर्थन किया।
      • उस धर्म की आलोचना की जिसे शोषण के औज़ार के रूप में प्रयोग किया जाता था।
      • गुलामगिरी जैसी कृतियों की रचना की, जिसमें जाति-आधारित शोषण को उजागर किया गया।
      • उनके विचारों ने आगे चलकर डॉ. भीमराव आंबेडकर जैसे सुधारकों को प्रेरित किया और दलित मुक्ति आंदोलनों पर गहन प्रभाव डाला।

    निष्कर्ष:

    ज्योतिबा फुले के प्रयासों ने वंचितों को आवाज़ दी और उत्पीड़ितों की चुप्पी को तोड़ा। शिक्षा, सामाजिक सुधार और महिला सशक्तीकरण पर उनके बल ने भारत में सामाजिक न्याय की अवधारणा को नया स्वरूप दिया। उनकी विरासत समानतावाद, मानव गरिमा और मानवाधिकारों पर आधारित है, जो आज भी समानता और समावेशन के समकालीन आंदोलनों को प्रेरित करती है।

    To get PDF version, Please click on "Print PDF" button.

    Print
close
Share Page
images-2
images-2