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प्रश्न :
प्रश्न: "भारत को कृषि उपज को खेतों से उपभोक्ताओं तक पहुँचाने में असमर्थताओं के कारण महत्त्वपूर्ण खाद्य अपव्यय का सामना करना पड़ता है। भारत में खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करने और फसल कटाई के बाद के नुकसान को कम करने में 'फार्म-टू-फोर्क' आपूर्ति शृंखला की भूमिका की समीक्षा कीजिये।" (150 शब्द)
24 Sep, 2025 सामान्य अध्ययन पेपर 3 अर्थव्यवस्थाउत्तर :
हल करने का दृष्टिकोण :
- भारत में खाद्य अपव्यय के मुद्दों का संक्षेप में परिचय दीजिये।
- भारत में खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करने और फसल कटाई के बाद होने वाले अपव्यय को कम करने में खेत से भोजन तक आपूर्ति शृंखला की भूमिका का परीक्षण कीजिये।
- आगे की राह बताते हुए उपयुक्त निष्कर्ष लिखिये।
परिचय:
भारत विरोधाभासी रूप से खाद्य अधिशेष और खाद्य असुरक्षा से ग्रस्त है। खाद्य प्रसंस्करण उद्योग मंत्रालय का अनुमान है कि वार्षिक उपज के बाद के नुकसान ₹92,000 करोड़ हैं, जिसमें लगभग 40% फल और सब्ज़ियाँ आपूर्ति शृंखला की अक्षमताओं के कारण नष्ट हो जाती हैं। इस संदर्भ में फार्म-टू-फोर्क आपूर्ति शृंखला, जो उत्पादन से उपभोग तक निर्बाध कनेक्टिविटी सुनिश्चित करती है, खाद्य अपव्यय को संबोधित करने और खाद्य सुरक्षा को प्रबल करने हेतु महत्त्वपूर्ण हो जाती है।
मुख्य भाग:
भारत में खाद्य अपव्यय के कारण
- कोल्ड चेन की कमी:
- भारत में 10% से भी कम नाशवान उपज को तापमान-नियंत्रित भंडारण या परिवहन से लाभ मिलता है, यह एक महत्त्वपूर्ण अंतर है, जिसके कारण उपज काफी मात्रा में नष्ट हो जाती है।
- विशेषकर फल, सब्ज़ियाँ, डेयरी और मछली को प्रभावित करने वाला कमज़ोर कोल्ड चेन उत्पादन से बाज़ार तक तेज़ी से खराब होने का कारण बनता है।
- परिवहन में बाधाएँ:
- FAO और NABCONS के अध्ययन के अनुसार प्रमुख फसलों में फसल कटाई के बाद वार्षिक नुकसान:
- फल: 15% तक (अमरूद सबसे अधिक प्रभावित), सामान्य सीमा 6–15%
- दालें: 6.74% तक
- अनाज: 5.92% तक
- अपर्याप्त रेफ्रिजरेटेड परिवहन और लंबी दूरी की देरी से अत्यधिक नाशवान वस्तुएँ परिवहन के दौरान खराब हो जाती हैं।
- FAO और NABCONS के अध्ययन के अनुसार प्रमुख फसलों में फसल कटाई के बाद वार्षिक नुकसान:
- खंडित आपूर्ति शृंखलाएँ:
- कई मध्यस्थों और आपूर्ति शृंखला के कमज़ोर एकीकरण के कारण मूल्य वृद्धि, अक्षमता और अपव्यय होता है, भारत में घरेलू और खुदरा स्तर पर खाद्य अपव्यय का अनुमान लगभग 7.8 करोड़ टन प्रति वर्ष है।
- नाशवान वस्तुएँ आपूर्ति और वितरण की बिखरी हुई एवं विलंबित प्रक्रियाओं में गुणवत्ता और मूल्य दोनों खो देती हैं।
- कीमतों में अस्थिरता और संकटकालीन बिक्री:
- नाशवान वस्तुएँ, विशेष रूप से टमाटर और प्याज, मौसमी मूल्य उतार-चढ़ाव और आपूर्ति अधिकता से प्रभावित होती हैं।
- कोल्ड स्टोरेज या किफायती भंडारण सुविधाओं के अभाव में किसानों को अक्सर विवशता में अपनी उपज कम कीमत पर बेचनी पड़ती है।
- बाज़ार की अस्थिरता के कारण किसान खुदरा बाज़ार मूल्य से कहीं कम कमाई कर पाते हैं, जिससे बेहतर फसल-उपरांत प्रबंधन में निवेश करने की उनकी रुचि घट जाती है तथा नुकसान और बढ़ जाता है।
अपव्यय को कम करने में फार्म-टू-फोर्क आपूर्ति शृंखला की भूमिका
- कुशल लॉजिस्टिक्स/रसद और कोल्ड चेन – रेफ्रिजरेटेड वैन, वेयरहाउस और कोल्ड स्टोरेज में निवेश से अपव्यय कम होता है। उदाहरण: अमूल का डेयरी कोऑपरेटिव नेटवर्क।
- प्रत्यक्ष किसान–उपभोक्ता संपर्क – किसान उत्पादक संगठन (FPO) और ई-नाम (e-NAM) बेहतर कीमत सुनिश्चित करते हैं और मध्यस्थों की भूमिका को कम करते हैं।
- डिजिटल प्लेटफॉर्म – निंजाकार्ट जैसे एग्री-टेक स्टार्टअप किसान और खुदरा विक्रेताओं को AI-आधारित लॉजिस्टिक्स से जोड़ते हैं, जिससे परिवहन के दौरान होने वाला अपव्यय घटता है।
- खाद्य प्रसंस्करण और मूल्य संवर्द्धन– प्रधानमंत्री किसान SAMPADA योजना और मेगा फूड पार्क कृषि-प्रसंस्करण को बढ़ावा देते हैं, जिससे शेल्फ लाइफ बढ़ती है।
- नीतिगत पहलें – APMC अधिनियमों में सुधार, ऑपरेशन ग्रीन्स ("TOP to Total") जैसी योजनाएँ नाशवान फसलों की कीमत स्थिर करती हैं।
- खाद्य सुरक्षा में योगदान :
- उत्पादन बढ़ाए बिना अपव्यय कम करके खाद्य उपलब्धता में वृद्धि।
- नाशवान खाद्य पदार्थों की बेहतर गुणवत्ता से पोषण सुरक्षा।
- प्रत्यक्ष बाज़ार पहुँच से किसानों की आय में वृद्धि, गरीबी-जनित खाद्य असुरक्षा में कमी।
- SDG 2 (शून्य भूख/ज़ीरो हंगर) और SDG 12 (उत्तरदायी खपत) के साथ सामंजस्य।
आगे की चुनौतियाँ
- कोल्ड चेन अवसंरचना की ऊँची पूंजी लागत।
- छोटे जोत वाले खेत, जो किसानों की मोलभाव की क्षमता को सीमित करते हैं।
- APMC विनियमों और प्रत्यक्ष विपणन मॉडलों के बीच नीतिगत विरोधाभास।
- डिजिटल डिवाइड, जो किसानों की ई-प्लेटफार्म तक पहुँच को सीमित करती है।
निष्कर्ष :
एक प्रबल फार्म-टू-फोर्क आपूर्ति शृंखला भारत के प्रचुरता के बीच भूख के विरोधाभास को पाटने हेतु अनिवार्य है। किसान उत्पादक संगठन (FPO) को सशक्त करना, कृषि अवसंरचना निधि/एग्री इंफ्रा फंड (₹1 लाख करोड़) के तहत कोल्ड चेन अवसंरचना का विस्तार करना और जापान के जस्ट-इन-टाइम डिलीवरी मॉडल या इज़रायल की कृषि-लॉजिस्टिक्स नवाचारों जैसे वैश्विक सर्वोत्तम प्रथाओं को अपनाना महत्त्वपूर्ण है। जैसा कि नॉर्मन बोरलॉग ने सही कहा, "You can’t build a peaceful world on empty stomachs अर्थात् खाली पेट दुनिया नहीं जीती जाती।" अतः भारत को आपूर्ति शृंखला सुधारों का लाभ प्राप्त कर किसानों की आजीविका और नागरिकों के पोषण दोनों को सुरक्षित करना होगा
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