ध्यान दें:

मेन्स प्रैक्टिस प्रश्न

  • प्रश्न :

    प्रश्न. “क्या संरक्षणवाद और व्यापारिक राष्ट्रवाद का उदय वैश्वीकरण से पीछे हटना है या केवल उसके अतिरेकों को संतुलित करने का प्रयास?” समालोचनात्मक मूल्यांकन कीजिये। (250 शब्द)

    15 Sep, 2025 सामान्य अध्ययन पेपर 1 भारतीय समाज

    उत्तर :

    हल करने का दृष्टिकोण:

    • वैश्वीकरण को संक्षेप में परिभाषित कीजिये।
    • संरक्षणवाद और व्यापारिक राष्ट्रवाद की हाल की वृद्धि का उल्लेख कीजिये।
    • संरक्षणवाद और व्यापारिक राष्ट्रवाद का उदय वैश्वीकरण की अवनति है, इस संदर्भ में तर्क दीजिये।
    • संरक्षणवाद और व्यापारिक राष्ट्रवाद का उदय अतिरेक का सुधार है, इसके पक्ष में तर्क दीजिये।
    • आगे की राह बताते हुए उचित निष्कर्ष दीजिये।

    परिचय:

    वैश्वीकरण, जिसकी विशेषता वस्तुओं, सेवाओं, पूँजी और प्रौद्योगिकी के मुक्त प्रवाह से है, वैश्विक अर्थव्यवस्था की एक परिभाषित विशेषता रही है। हाल के रुझान संरक्षणवाद और व्यापारिक राष्ट्रवाद में वृद्धि की ओर संकेत करते हैं, जिससे यह प्रश्न उठता है कि क्या यह वैश्वीकरण की अवनति है अथवा इसके अतिरेक का सुधार।

    मुख्य भाग:

    वैश्वीकरण की अवनति के पक्ष में तर्क

    • अमेरिका-चीन व्यापार युद्ध: वर्ष 2018 में शुरू हुए इस व्यापार युद्ध के कारण टैरिफ लगाए गए और वैश्विक आपूर्ति शृंखलाएँ बाधित हुईं, जिससे संरक्षणवाद की ओर रूख करने का संकेत मिला।
    • टैरिफ अधिरोपण: अगस्त वर्ष 2025 में अमेरिका ने यह हवाला देते हुए कि भारत रूसी तेल की खरीद जारी रखे हुए है, भारतीय निर्यातों पर 50% शुल्क लगाया।
      • भारत ने इन उपायों की निंदा करते हुए इन्हें अनुचित और अव्यावहारिक बताया।
    • ब्रेक्ज़िट: वर्ष 2016 में यूनाइटेड किंगडम के यूरोपीय संघ छोड़ने के निर्णय ने क्षेत्रीय आर्थिक एकीकरण से बहुत बड़ी अवनति को चिह्नित किया।
    • कोविड-19 महामारी: इस महामारी ने वैश्विक आपूर्ति शृंखलाओं की कमज़ोरियों को उजागर किया, जिससे देशों को वैश्विक व्यापार पर अपनी निर्भरता पर पुनर्विचार करने के लिये प्रेरित किया।
    • रूस-यूक्रेन संघर्ष: चल रहे संघर्ष ने ऊर्जा की कमी तथा खाद्य सुरक्षा संबंधी चिंताओं को जन्म दिया है, जिससे राष्ट्रों को संरक्षणवादी नीतियों को अपनाने के लिये और अधिक प्रोत्साहित किया गया है।
    • निष्क्रिय विश्व व्यापार संगठन (WTO) विवाद निपटान प्रणाली: WTO का अपीलीय निकाय, जो व्यापार विवादों का समाधान करता है, दिसंबर वर्ष 2019 में निष्क्रिय हो गया, क्योंकि अमेरिका ने नये न्यायाधीशों की नियुक्ति अवरुद्ध कर दी थी।
      • इसके कारण निपटान प्रणाली अप्रभावी हो गई और अनेक मामले अनसुलझे रह गए।

    वैश्वीकरण के अतिरेक के सुधार के पक्ष में तर्क

    • अति-वैश्वीकरण: वैश्विक व्यापार के तीव्र विस्तार ने कुछ क्षेत्रों में नौकरियाँ समाप्त कर दीं और असमानता बढ़ा दी, जिससे एक अधिक संतुलित दृष्टिकोण की मांग उठी।
    • आपूर्ति शृंखला की कमज़ोरियाँ: अर्द्धचालकों और औषधियों जैसी महत्त्वपूर्ण वस्तुओं के लिये एकल स्रोतों पर अत्यधिक-निर्भरता ने विविधीकरण की आवश्यकता को उजागर किया।
    • रणनीतिक स्वायत्तता: देश बाह्य स्रोतों पर निर्भरता घटाने के लिये अपनी घरेलू क्षमताओं को बढ़ाने का प्रयास कर रहे हैं।
    • डिजिटल और हरित व्यापार: डिजिटल व्यापार और पर्यावरणीय चिंताओं के उदय से वैश्विक व्यापार की प्रकृति पुनर्गठित हो रही है, जिसमें संवहनीयता एवं तकनीकी प्रगति पर बल दिया जा रहा है।

    आगे की राह

    • बहुपक्षीय संस्थानों को सशक्त करना: WTO जैसे संगठनों को सशक्त करना नियम-आधारित व्यापारिक प्रणाली सुनिश्चित करने में सहायक (उदाहरण: भारत WTO अपीलीय निकाय को पुनर्जीवित करने की पहल कर रहा है, ताकि व्यापार विवादों का समाधान हो सके) हो सकता है।
    • समावेशी वैश्वीकरण को प्रोत्साहन: यह सुनिश्चित किया जाना चाहिये, ताकि वैश्वीकरण के लाभ समान रूप से वितरित हों, असमानता की चिंताओं का समाधान कर सकता है (उदाहरण विकासशील देशों के लिये वैश्विक न्यूनतम कॉर्पोरेट कर और ऋण राहत पर G20 की पहल)।
    • घरेलू क्षमताओं का संवर्द्धन: घरेलू उद्योगों और प्रौद्योगिकियों में निवेश से बाह्य स्रोतों {उदाहरण: इलेक्ट्रॉनिक्स, औषधियों और सौर पैनलों हेतु भारत की उत्पादन-आधारित प्रोत्साहन (PLI) योजना} पर निर्भरता घट सकती है।
    • क्षेत्रीय सहयोग को बढ़ावा: क्षेत्रीय व्यापार समझौतों को मज़बूत करने से वैश्विक व्यापार प्रणालियाँ {(जैसे: RCEP, व्यापार विविधीकरण और आपूर्ति शृंखला सुरक्षा के लिये इंडो-पैसिफिक इकोनॉमिक फ्रेमवर्क (IPEF)} स्थिर और समुत्थानशील हो सकती हैं।

    निष्कर्ष:

    संरक्षणवाद और व्यापारिक राष्ट्रवाद की वृद्धि, वैश्वीकरण के अतिरेक एवं कमज़ोरियों का समाधान करने हेतु एक पुनर्संतुलन को दर्शाता है। जैसा कि दानी रोड्रिक कहते हैं, “वैश्वीकरण कोई एकरूप सत्ता नहीं है बल्कि एक गतिशील प्रक्रिया है, जिसे घरेलू प्राथमिकताओं और वैश्विक चुनौतियों के अनुरूप होना चाहिये।” यह चरण एक संतुलित, समुत्थानशील एवं रणनीतिक वैश्वीकरण की ओर परिवर्तन का प्रतीक है, जो यह सुनिश्चित करता है कि भारत व अमेरिका जैसे देश विकास का अनुसरण करते हुए अपनी आर्थिक और रणनीतिक स्वायत्तता की रक्षा कर सकें।

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