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मेन्स प्रैक्टिस प्रश्न

  • प्रश्न :

    निबंध: 

    प्रश्न. 1. जब मनुष्य प्रकृति पर नियंत्रण कर लेता है, तो सभ्यता आगे बढ़ती है, परंतु वह तब अवनति की ओर जाती है जब मनुष्य अपनी ही प्रकृति को भूल जाता है।

    प्रश्न. 2. आज शक्ति हथियारों में नहीं, बल्कि आख्यानों में निहित है।

    13 Sep, 2025 निबंध लेखन निबंध

    उत्तर :

    1. जब मनुष्य प्रकृति पर नियंत्रण कर लेता है तो सभ्यता आगे बढ़ती है, परंतु वह तब अवनति की ओर जाती है जब मनुष्य अपनी ही प्रकृति को भूल जाता है।

    निबंध को समृद्ध बनाने के लिये उद्धरण:

    • अल्बर्ट आइंस्टाइन: “प्रकृति को गहराई से देखो और तब तुम सब कुछ बेहतर समझ पाओगे।”
    • महात्मा गाँधी: “दुनिया में सबकी ज़रूरतों के लिये पर्याप्त है, लेकिन सबके लालच के लिए पर्याप्त नहीं है।”
    • रेचल कार्सन: “जो लोग पृथ्वी की सुंदरता का मनन करते हैं, वे आजीवन शक्ति का भंडार पा लेते हैं।”

    सैद्धांतिक और दार्शनिक आयाम:

    • मस्लो की आवश्यकताओं का पदानुक्रम: सभ्यता की प्रकृति पर अधिकार की क्षमता मनुष्य की मूलभूत आवश्यकताओं (जैसे: शारीरिक और सुरक्षा संबंधी) को पूरा करने का माध्यम है।
      • हालाँकि, प्रतिगमन तब होता है जब यह प्रयास उच्चतर मानवीय आवश्यकताओं जैसे कि संबद्धता, सामुदायिकता, आत्मीयता और आत्मसाक्षात्कार, जो ‘स्वयं की प्रकृति’ का मूल है, को कमज़ोर कर देता है।
    • पर्यावरणीय नैतिकता: प्रकृति पर प्रभुत्व नैतिक उत्तरदायित्व द्वारा निर्देशित होना चाहिये; प्रकृति की सीमाओं को समझे बिना उसका दोहन प्रतिगमन की ओर ले जाता है।
    • मानव स्वभाव और अस्तित्ववाद: जब मनुष्य अपनी ही प्रकृति — संवेदनशीलता, संयम और आत्मचेतना को भूल जाता है, तब तकनीकी प्रगति के बावजूद सामाजिक और नैतिक अवनति होती है।

    नीति और ऐतिहासिक उदाहरण:

    • प्रकृति पर अधिकार: सिंधु घाटी सभ्यता ने नदियों की प्रणाली को कृषि और शहरी नियोजन का साधन बनाया, जिससे समाजिक प्रगति संभव हुई।
    • मानव-प्रकृति का विस्मरण: संसाधनों के अति-दोहन के परिणामस्वरूप ईस्टर द्वीप की सभ्यता का पतन हुआ, जो यह दर्शाता है कि जब मानव-लोभ प्राकृतिक सीमाओं को लांघता है, तो विनाश निश्चित है।
      • औद्योगिक प्रदूषण से उत्पन्न जन-स्वास्थ्य संकट यह दिखाता है कि जब मानव अपने उत्तरदायित्व की उपेक्षा करता है, तो उसकी प्रगति ही उसके लिये खतरा बन जाती है।
    • भारत में हरित क्रांति: हरित क्रांति खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिये प्रकृति पर मानव द्वारा अधिकार पाने की एक महत्त्वपूर्ण उपलब्धि थी।
      • किंतु इससे जो प्रतिगमन हुआ, उसमें भूजल स्तर में कमी, रसायनों के अत्यधिक उपयोग से मृदा की उर्वरता का क्षरण और जैवविविधता का ह्रास सम्मिलित था, जिससे दीर्घकालिक पारिस्थितिक असुरक्षा उत्पन्न हुईं।

    नैतिक और रणनीतिक निहितार्थ:

    • प्राकृतिक संसाधनों का उत्तरदायी प्रबंधन प्रगति और नैतिकता के बीच संतुलन स्थापित करता है।
    • सहानुभूति और सामाजिक उत्तरदायित्व की तरह, मानव स्वभाव की उपेक्षा, भौतिक प्रभुत्व के बावजूद सभ्यता को कमज़ोर करती है।

    समकालीन उदाहरण:

    • शहरी नियोजन: भारत के 'स्मार्ट सिटी' प्रकल्प यह दर्शाते हैं कि तकनीकी नवाचार को मानव-केंद्रित दृष्टिकोण के साथ जोड़कर प्रकृति पर नियंत्रण और जीवन-गुणवत्ता दोनों को संतुलित किया जा सकता है।
    • कॉरपोरेट स्थिरता: इन्फोसिस और टाटा समूह जैसी कंपनियाँ यह सिद्ध करती हैं कि तकनीकी उत्कृष्टता तभी सार्थक है जब वह सामाजिक एवं पर्यावरणीय विवेक से जुड़ी हो।
    • कृत्रिम बुद्धिमत्ता और स्वचालन: आज मनुष्य 'बुद्धि की प्रकृति' पर अधिकार प्राप्त कर रहा है।
      • संभावित प्रतिगमन बड़े पैमाने पर नौकरियों के विस्थापन, एल्गोरिथम संबंधी पूर्वाग्रह और मानवीय जुड़ाव व समालोचनात्मक सोच के क्षरण में निहित है, जिससे यह बहस छिड़ गई है कि हमें अपनी प्रकृति के किन पहलुओं को संरक्षित रखना चाहिये।

    2. आज शक्ति हथियारों में नहीं, बल्कि आख्यानों में निहित है।

    निबंध को समृद्ध करने हेतु उद्धरण:

    • युवल नोआ हरारी: “आप किसी बंदर को यह विश्वास नहीं दिला सकते कि उसे अनंत केले मिलेंगे अगर वह मरणोपरांत बंदर स्वर्ग में जाए। केवल ‘सैपियन्स (बुद्धिमान)’ ही ऐसी कहानियों पर विश्वास कर सकते हैं।”
    • जोसेफ गोएबल्स: “एक बार बोला गया झूठ झूठ ही रहता है, लेकिन हज़ार बार बोला गया झूठ सच हो जाता है।”
    • चिमामांडा न्गोज़ी अदिची: “रूढ़िवादिता की समस्या यह नहीं है कि वे असत्य हैं, बल्कि यह है कि वे अधूरी हैं। वे एक कहानी को एकमात्र कहानी बना देती हैं।”
    • नोम चोम्स्की: “लोकतंत्र के लिये प्रचार वही है जो एक अधिनायकवादी राज्य के लिये लाठियाँ।”

    सैद्धांतिक और दार्शनिक आयाम:

    • निर्माणवाद (अंतर्राष्ट्रीय संबंध): आधुनिक विश्व में शक्ति सामाजिक रूप से निर्मित है, कथाएँ धारणाओं को आकार देती हैं और वैश्विक व्यवस्था को प्रभावित करती हैं।
    • मीडिया और संचार सिद्धांत: सूचना और कथानक पर नियंत्रण जनमत को सैन्य बल की तुलना में अधिक प्रभावी ढंग से बदल सकता है (जैसे: वर्ष 2016 में अमेरिका के राज्य चुनावों में रूस का हस्तक्षेप)।
    • प्रभाव का मनोविज्ञान: कथाएँ पहचान, वैधता और विश्वास उत्पन्न करती हैं; भावनात्मक जुड़ाव प्रायः बल-प्रयोग से अधिक प्रभावशाली होता है।

    नीति और ऐतिहासिक उदाहरण:

    • राष्ट्र निर्माण में आख्यान:
      • महात्मा गांधी की अहिंसात्मक प्रतिरोध आंदोलन ने भारत के स्वतंत्रता संग्राम को नैतिक दृष्टि से न्यायसंगत रूप में प्रस्तुत किया, जिससे वैश्विक समर्थन प्राप्त हुआ।
      • शीत युद्ध के दौरान संयुक्त राज्य अमेरिका द्वारा ‘अमेरिकन ड्रीम’ आख्यानों के प्रयोग ने राष्ट्रीय एकता और अंतर्राष्ट्रीय प्रभाव को बढ़ावा दिया।
    • हथियार बनाम कथ्यक्रम:
      • साइबर वॉर और प्रचार अभियान यह दर्शाते हैं कि सूचना एवं धारणाओं पर नियंत्रण वास्तविक युद्ध/संघर्ष से कहीं अधिक प्रभावी हो सकता है।

    नैतिक और रणनीतिक परिणाम:

    • नैतिक कथानक सामाजिक परिवर्तन का मार्गदर्शन कर सकता है, जबकि भ्रामक कथानक समाज को अस्थिर कर सकते हैं।
    • राष्ट्रों और नेताओं को वैधता बनाए रखने के लिये आख्यान के प्रभाव को वास्तविकता एवं पारदर्शिता के साथ संतुलित करना चाहिये।

    समकालीन उदाहरण:

    • सोशल मीडिया मूवमेंट्स: #MeToo और #ClimateStrike जैसे हैशटैग यह दर्शाते हैं कि वैश्विक स्तर पर कथाएँ जनविचार एवं नीतियों को आकार दे सकती हैं।
    • कॉर्पोरेट ब्रांडिंग और ‘वोक कैपिटलिज़्म/जागृत पूंजीवाद): Nike और Apple जैसी कंपनियाँ केवल अपने उत्पादों के माध्यम से ही नहीं, बल्कि पहचान, विद्रोह एवं रचनात्मकता के आख्यान प्रस्तुत करके भी व्यापक प्रभाव डालते हैं।
      • सामाजिक आंदोलनों के साथ जुड़कर ये आख्यान संस्कृति एवं जनविचार को आकार देते हैं, जो कभी केवल राज्यों तक सीमित थे।
    • भूराजनीति: भारत का ‘वसुधैव कुटुंबकम्’ कथानक अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर सॉफ्ट पावर को सुदृढ़ करता है, बिना बल प्रयोग के गठबंधन और सहयोग को आकार देता है।

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