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निबंध
प्रश्न. 1. “हर अंतिम रेखा एक नई दौड़ की शुरुआत होती है।”
प्रश्न. 2. “शिक्षा के बिना ज्ञान नष्ट हो जाता है, ज्ञान के बिना विकास अवरुद्ध हो जाता है।”
06 Sep, 2025 निबंध लेखन निबंधउत्तर :
- “हर अंतिम रेखा एक नई दौड़ की शुरुआत होती है।
”परिचय:
वर्ष 1953 में जब सर एडमंड हिलेरी और तेनजिंग नॉर्गे ने प्रथम बार एवरेस्ट की चोटी पर विजय प्राप्त की, तो इसे मानवीय साहस और संकल्प की चरम सफलता माना गया। किंतु प्रारंभिक बिंदुहिलेरी ने स्वयं कहा था कि यह चढ़ाई अंत नहीं बल्कि आगे की खोज, भावी पीढ़ियों को प्रेरित करने और मानवीय भावनाओं की नयी परीक्षा का आरंभ है। एवरेस्ट की उनकी ‘अंतिम रेखा (फिनिश लाइन)’ वैश्विक पर्वतारोहण के लिये एक नया ‘प्रारंभिक बिंदु (स्टार्टिंग पॉइंट)’ बन गई।
मानव जीवन वस्तुतः लक्ष्यों, संघर्षों और उपलब्धियों की निरंतर शृंखला है। प्रत्येक उपलब्धि यात्रा का समापन न होकर नये स्वप्नों और आकांक्षाओं की दहलीज़ (प्रारंभिक बिंदु) होती है। यही मानव की व्यक्तिगत, सामाजिक और सभ्यतागत प्रगति का सार है।
मुख्य भाग:
दार्शनिक आयाम
- हेराक्लाइटस: “परिवर्तन ही शाश्वत है।” अर्थात् किसी अवस्था का अंत स्वतः नयी शुरुआत को जन्म देता है।
- नीत्शे: ‘अनंत आवृत्ति’ की धारणा — प्रत्येक अंत से नये प्रारंभ का उद्भव होता है।
- भारतीय दर्शन: जीवन, मृत्यु और पुनर्जन्म के संसार चक्रों की अवधारणा; जिसमें विकास सतत् प्रक्रिया है
मनोवैज्ञानिक एवं व्यक्तिगत आयाम
- व्यक्तिगत विकास: परीक्षा, खेल या कॅरियर में सफलता अंत नहीं होती; बल्कि प्रत्येक उपलब्धि उच्चतर मानक स्थापित करती है।
- खेल उदाहरण: ओलंपिक पदक विजेता का ‘फिनिश लाइन’ वास्तव में प्रयास का अंत नहीं, बल्कि अगले खेलों के लिये प्रशिक्षण की शुरुआत होती है।
- धैर्य एवं पुनर्निर्माण: असफलता भी नयी संभावनाओं का द्वार खोलती है, जैसे: छात्र पुनः प्रयास करते हैं या उद्यमी विफलता के बाद पुनः व्यवसाय खड़ा करते हैं।
सामाजिक एवं नैतिक आयाम
- सुधार: राजा राममोहन राय द्वारा सती प्रथा का उन्मूलन एक अंत था, किंतु महिला अधिकारों की व्यापक लड़ाई की शुरुआत भी।
- सिविल राइट्स मूवमेंट (अमेरिका): रंगभेद कानूनों को समाप्त करना नस्लीय समानता के लिये एक व्यापक दौड़ की शुरुआत मात्र थी।
- व्हिसलब्लोअर्स: भ्रष्टाचार का पर्दाफाश मौन का अंत है, परंतु जवाबदेही की नयी लड़ाई का आरंभ भी।
राजनीतिक आयाम
- स्वतंत्रता आंदोलन: भारत की आज़ादी उपनिवेशवाद का अंत थी, किंतु राष्ट्र-निर्माण, लोकतंत्र और सामाजिक न्याय की नयी यात्रा की शुरुआत सिद्ध हुई।
- भारतीय संविधान: संविधान-प्रारूपण एक बहुत बड़ी उपलब्धि थी, लेकिन डॉ. अंबेडकर के अनुसार यह केवल एक शुरुआत थी, क्योंकि असली परीक्षा तो इसके कार्यान्वयन में थी।
- लोकतंत्र: यदि प्रत्येक चुनाव एक अंत का प्रतीक होता है, तो साथ ही नई शासन चुनौतियों की शुरुआत भी।
वैज्ञानिक एवं तकनीकी आयाम
- अंतरिक्ष अन्वेषण: वर्ष 1969 का चंद्रमा पर पहुँचना एक उपलब्धि थी, किंतु इसने मंगल मिशनों और अंतर-ग्रहीय यात्राओं की दौड़ को जन्म दिया।
- चिकित्सा: पोलियो उन्मूलन एक संघर्ष का अंत था, परंतु नये रोगों (जैसे COVID-19) के खिलाफ लड़ाई का मार्ग प्रशस्त हुआ।
- कृत्रिम बुद्धिमत्ता: प्रत्येक उपलब्धि नये नैतिक, सामाजिक और नियामक चुनौतियाँ उत्पन्न करती है।
समकालीन वैश्विक आयाम
- सतत् विकास लक्ष्य (SDG): वर्ष 2015 में सतत् विकास लक्ष्यों (SDG) का अंगीकरण सहस्राब्दी विकास लक्ष्यों का अंत था, किंतु वर्ष 2030 तक सतत् विकास के लिये एक नई वैश्विक दौड़ की शुरुआत हुई।
- जलवायु परिवर्तन: पेरिस समझौता एक उपलब्धि थी, किंतु यह पृथ्वी को बचाने की एक नई कठिन दौड़ की शुरुआत मात्र है।
प्रतिवाद दृष्टिकोण
- कुछ विचारक मानते हैं कि निरंतर नयी दौड़ की खोज मानव को थकान और असंतोष की ओर ले जाती है।
- बौद्ध दर्शन में ‘संतोष’ के महत्त्व को रेखांकित किया गया है, अन्यथा यह यात्रा अनंत मानवीय इच्छाओं का चक्र बन जाती है।
- इसलिये संतुलन आवश्यक है, जिसमें उपलब्धियों का उत्सव भी हो और नयी चुनौतियों के लिये तैयारी भी।
आगे की राह
- व्यक्तियों को उपलब्धियों को अंतिम पड़ाव के रूप में देखना चाहिये, पूर्ण विराम के रूप में नहीं।
- समाजों को प्रतीकात्मक विजय से आगे निरंतरता सुनिश्चित करने के लिये सुधारों को संस्थागत रूप देना चाहिये।
- राष्ट्रों को वैश्विक उपलब्धियों (SDG, संधियों) को निरंतर दायित्वों के रूप में देखना चाहिये, न कि एक बार की सफलता के रूप में।
- शिक्षा में धैर्य और अनुकूलन क्षमता विकसित होनी चाहिये, जिससे नागरिक जीवन-पर्यंत संघर्षों के लिये तैयार रहें।
निष्कर्ष
प्रत्येक ‘अंतिम रेखा (फिनिश लाइन)’ अंत नहीं बल्कि नये द्वार की शुरुआत है। व्यक्तिगत संघर्षों से लेकर राष्ट्रीय उपलब्धियों तक, मानव प्रगति इसी निरंतरता पर आधारित है। जैसा कि रवींद्रनाथ टैगोर ने लिखा है — “केवल खड़े होकर पानी को ताकते रहने से आप नदी को पार नहीं कर सकते।” प्रत्येक पार-गमन नयी क्षितिज की ओर अग्रसर करता है।
2. “शिक्षा के बिना ज्ञान नष्ट हो जाता है, ज्ञान के बिना विकास अवरुद्ध हो जाता है।”
परिचय:
वर्ष 1848 में ज्योतिबा फुले एवं उनकी पत्नी सावित्रीबाई फुले ने पुणे में बालिकाओं के लिये प्रथम विद्यालय की स्थापना की। उस समय स्त्रियों एवं निम्न जातियों को शिक्षा से वंचित रखा गया था, अतः यह कदम क्रांतिकारी था। फुले का मानना था कि अशिक्षा ही सामाजिक दासता का मूल कारण है। उनका दृष्टिकोण स्पष्ट था — “शिक्षा के बिना ज्ञान संभव नहीं और ज्ञान के बिना व्यक्तियों अथवा राष्ट्रों का वास्तविक विकास असंभव है।”
शिक्षा केवल पढ़ने-लिखने की क्षमता नहीं, बल्कि समालोचनात्मक चिंतन, नैतिक विवेक और सामाजिक प्रगति की नींव है। इतिहास में प्रमाण हैं कि जो समाज शिक्षा की उपेक्षा करते हैं, वे अज्ञान और अविकास के चक्र में फँसे रह जाते हैं।
मुख्य भाग:
दार्शनिक आयाम
- सुकरात: “ज्ञान ही एकमात्र अच्छाई है, अज्ञान ही एकमात्र बुराई है।” शिक्षा ज्ञान का पोषण करती है और नैतिक जीवन जीने में सक्षम बनाती है।
- भारतीय दर्शन: उपनिषदों में, विद्या (ज्ञान) को मोक्ष (मुक्ति) का मार्ग माना गया है। अज्ञान बंधन है; ज्ञान मुक्ति (स्वतंत्रता) है।
- स्वामी विवेकानंद: शिक्षा को ‘मनुष्य में पहले से ही विद्यमान पूर्णता की अभिव्यक्ति’ के रूप में परिभाषित किया गया है। इसके बिना, उच्च ज्ञान का उदय नहीं हो सकता।
भारतीय स्वतंत्रता संग्राम एवं समाज सुधारक
- डॉ. भीमराव आंबेडकर: विपरीत परिस्थितियों में शिक्षा प्राप्त कर संविधान निर्माण के माध्यम से न्यायपूर्ण समाज की नींव रखी। दलितों से उनका आह्वान था — “शिक्षित बनो, संगठित हो, संघर्ष करो।”
- महात्मा गांधी: ‘नई तालीम’ की अनुशंसा की, के लिये समग्र शिक्षा के महत्त्व पर बल दिया।आत्मनिर्भरता और नैतिक विकास
- रवींद्रनाथ ठाकुर: विश्वभारती के माध्यम से, उन्होंने ऐसी शिक्षा को बढ़ावा दिया जिसमें पूर्व और पश्चिम के ज्ञान का मिश्रण था।
- जवाहरलाल नेहरू: बच्चों को देश का भविष्य कहा; राष्ट्रीय विकास के लिये IIT, AIIMS जैसी संस्थाओं और वैज्ञानिक शिक्षा में निवेश किया।
मनोवैज्ञानिक एवं व्यक्तिगत आयाम
- व्यक्तिगत विकास: शिक्षा तर्कशक्ति का विकास करती है; ज्ञान उसे नैतिक रूप से निर्देशित करता है।
- उदाहरण के लिये, ए.पी.जे. अब्दुल कलाम ने भारत के विकास के लिये अपनी वैज्ञानिक शिक्षा को अंतरिक्ष एवं रक्षा विकास में रूपांतरित किया।
- अज्ञानता और अंधविश्वास: शिक्षा का अभाव अंधविश्वास को जन्म देता है; ज्ञान भय को दूर करता है और तर्क-संगतता को बढ़ावा देता है।
सामाजिक एवं नैतिक आयाम
- सामाजिक न्याय: शिक्षा सीमांत समूहों को सशक्त बनाकर अन्याय के विरुद्ध संघर्ष (जैसे: महिला शिक्षा आंदोलन) का विवेक प्रदान करती है।
- नैतिक नागरिकता: केवल शिक्षित और बुद्धिमान नागरिक ही लोकतंत्र को कायम रख सकते हैं, विभाजनकारी प्रचार का विरोध कर सकते हैं तथा जनहित की दिशा में कार्य कर सकते हैं।
- उदाहरण: राजा राम मोहन राय की शिक्षा और विवेक ने सती प्रथा को समाप्त करने, समाज में सुधार लाने और भारत के आधुनिकीकरण में सहायता की।
राजनीतिक एवं विकासात्मक आयाम
- लोकतंत्र: शिक्षित मतदाताओं के बिना चुनावी विकल्पों में विवेकी निर्णय संभव नहीं हो पाता और विवेकहीन शासन से विकास बाधित होता है।
- भारत का सूचना का अधिकार अधिनियम: शिक्षा से साक्षर नागरिकों ने पारदर्शिता की माँग की; विवेकपूर्ण प्रयोग से उत्तरदायी शासन स्थापित हुआ।
- आर्थिक विकास: शिक्षा कौशल का निर्माण करती है, बुद्धिमत्ता/विवेक उन्हें समावेशी विकास की ओर ले जाती है। उदाहरण: हरित क्रांति– वैज्ञानिक शिक्षा से अन्न उत्पादन संभव हुआ, विवेकी नीतियों ने जिसे खाद्य सुरक्षा में रूपांतरित किया।
वैज्ञानिक एवं तकनीकी आयाम
- वैज्ञानिक दृष्टिकोण: शिक्षा प्रश्न पूछने और वैज्ञानिक दृष्टिकोण को विकसित करती है; विवेक इसका नैतिक उपयोग सुनिश्चित करता है।
- उदाहरण: होमी भाभा की भौतिकी का ज्ञान भारत की शांतिपूर्ण परमाणु नीति में प्रयुक्त हुआ।
- समकालीन चुनौती: कृत्रिम बुद्धिमत्ता अथवा जैव-प्रौद्योगिकी का विवेकहीन उपयोग मानवता के लिये संकट बन सकता है; विवेकपूर्ण प्रयोग से यह सतत् विकास का साधन बन सकता है।
वैश्विक एवं समकालीन आयाम
- UNESCO: शिक्षा को मानव अधिकार घोषित करता है; यह शांति और विकास का आधार है।
- सतत् विकास लक्ष्य (SDG 4 — सर्वोत्तम शिक्षा): गुणवत्तापूर्ण शिक्षा को अन्य सभी लक्ष्यों की आधारशिला माना गया है।
- जलवायु परिवर्तन: गुणवत्तापूर्ण शिक्षा अथवा वैज्ञानिक दृष्टिकोण संकट को उजागर करती है जबकि विवेक सतत् जीवनशैली और वैश्विक सहयोग की आवश्यकता को बताता है।
विपरीत दृष्टिकोण
- केवल शिक्षा से तकनीकी दक्षता तो आती है, परंतु विवेक के अभाव में व्यक्ति का नैतिक पतन (जैसे: शिक्षित लोगों में भ्रष्टाचार) संभव है।
- संरचित शिक्षा के बिना केवल पारंपरिक विवेक आधुनिक जटिलताओं से निपटने में विफल हो सकता है।
- इसलिये, शिक्षा और विवेक दोनों का परस्पर पूरक होना आवश्यक है।
निष्कर्ष:
डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन ने कहा था — “शिक्षा का अंतिम परिणाम एक स्वतंत्र, सृजनशील मनुष्य होना चाहिये जो ऐतिहासिक परिस्थितियों और प्रकृति की प्रतिकूलताओं का सामना कर सके।”
भारत का इतिहास दर्शाता है कि ज्योतिबा फुले के विद्यालयों से लेकर बी.आर. अंबेडकर द्वारा निर्मित भारतीय संविधान तक, भारत की यात्रा यह सिद्ध करती है कि शिक्षा ज्ञान का दीप जलाती है और ज्ञान/विवेक ही विकास का मार्ग प्रशस्त करता है।
वस्तविक प्रगति केवल साक्षरता में नहीं, बल्कि ऐसी शिक्षा में निहित है जो ऐसे बुद्धिमान, विवेकी, नैतिक नागरिकों का निर्माण करती है जो समावेशी एवं सतत् विकास का मार्ग प्रशस्त करे।
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