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प्रश्न. 1. हमारी महानतम कीर्ति कभी न गिरने में नहीं, अपितु हर बार गिरकर उठने में है। (1200 शब्द)
प्रश्न. 2. संतुष्टि प्राप्ति में नहीं, प्रयास में निहित है। पूर्ण प्रयास ही पूर्ण विजय है। (1200 शब्द)
30 Aug, 2025 निबंध लेखन निबंधउत्तर :
1. हमारी महानतम कीर्ति कभी न गिरने में नहीं, अपितु हर बार गिरकर उठने में है। (1200 शब्द)
परिचय:
वर्ष 1969 में, वर्षों के प्रयास के बाद, थुम्बा से ISRO का पहला प्रायोगिक रॉकेट प्रक्षेपण कुछ ही सेकंड में विफल हो गया। गरीबी से जूझ रहे नये स्वतंत्र राष्ट्र के लिये यह गहरी निराशा का क्षण था। फिर भी डॉ. विक्रम साराभाई और आगे चलकर डॉ. ए.पी.जे. अब्दुल कलाम जैसे दूरदर्शी नेतृत्व के मार्गदर्शन में ये असफलताएँ सफलता की सीढ़ियाँ बनीं और आज भारत वैश्विक अंतरिक्ष शक्ति के रूप में प्रतिष्ठित हुआ है।
यह यात्रा एक गहन सत्य को दर्शाती है: असफलताएँ जीवन का अंत नहीं हैं; वे दृढ़ता और अंततः गौरव की उत्प्रेरक हैं। जीवन और प्रगति का सार पूर्णता के भ्रम में नहीं, बल्कि प्रत्येक विफलता के बाद और अधिक दृढ़ होकर उठने के साहस में निहित है।
मुख्य भाग:
- दार्शनिक आयाम
- अरस्तू: अरस्तू ने सद्गुण को विपरीत परिस्थितियों में सही आचरण करने की क्षमता के रूप में परिभाषित किया, जिसके अनुसार महानता त्रुटिरहित जीवन से नहीं, बल्कि सतत् अभ्यास से अर्जित धैर्य से आती है।
- जॉन स्टुअर्ट मिल: जॉन स्टुअर्ट मिल का मत था कि स्वतंत्रता की रक्षा में गलत विचारों का सामना करना आवश्यक है, क्योंकि इससे सत्य और अधिक प्रबल होता है। इस प्रकार, असफलता व्यक्ति की नैतिकता और बौद्धिक विकास को और निखारती है।
- श्री अरविंद: मानव-जीवन के विकास को एक ऐसी यात्रा माना है जिसमें व्यक्ति कठिनाइयों और परीक्षाओं से गुज़रते हुए ऊँचाई की ओर बढ़ता है। इस प्रक्रिया में गिरना भी रुकावट नहीं बल्कि आगे की आध्यात्मिक प्रगति का ही हिस्सा है।
- मनोवैज्ञानिक एवं व्यक्तिगत आयाम
- अल्बर्ट बंडुरा का आत्म-प्रभावकारिता सिद्धांत: अल्बर्ट बांडूरा का स्व-प्रभावकारिता सिद्धांत यह बताता है कि आत्मविश्वास चुनौतियों को पार करने से बनता है, न कि उनसे बचने से।
- विक्टर फ्रैंकल (होलोकॉस्ट सर्वाइवर): विक्टर फ्रैंकल के अनुसार जीवन का अर्थ आराम में नहीं बल्कि दुःख को सहकर और उससे ऊपर उठने में निहित है।
- उदाहरण: प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी करने वाले अभ्यर्थियों को कई बार असफल होना पड़ता है; फिर भी उनकी दृढ़शक्ति असफलताओं से आगे बढ़ने की सीढ़ी में बदल देता है।
- सामाजिक एवं नैतिक आयाम
- ज्योतिबा फुले और सावित्रीबाई फुले: उन्होंने स्त्री-शिक्षा का समर्थन करते हुए अपमान सहा, लेकिन उनकी दृढ़ता ने सामाजिक न्याय की नींव रखी।
- मार्टिन लूथर किंग जूनियर: मार्टिन लूथर किंग जेल गये और आलोचना झेली, परंतु उनका संघर्ष अमेरिकी नागरिक अधिकार आंदोलन की शक्ति बना।
- समाज में नैतिक प्रगति तब आती है जब व्यक्ति या समूह अल्पकालिक पराजय सहते हुए और भी दृढ़ संकल्प से आगे बढ़ते हैं।
- राजनीतिक आयाम
- नेल्सन मंडेला: उन्होंने 27 वर्ष जेल में बिताये, फिर भी उनके उत्थान ने दक्षिण अफ्रीका को एकजुट कर रंगभेद समाप्त किया।
- भारतीय लोकतंत्र: आपातकाल (वर्ष 1975–77) जैसे ‘पतन’ का सामना किया, परंतु जनता के जनादेश से संवैधानिक स्वतंत्रता फिर स्थापित हुई।
- विभाजनोत्तर भारत: विभाजन के बाद भारत ने शरणार्थी संकट और आर्थिक कठिनाइयों का सामना किया, परंतु अंततः लोकतांत्रिक संस्थाएँ और स्थिर व्यवस्था स्थापित हुई।
- वैज्ञानिक एवं तकनीकी आयाम
- मैरी क्यूरी: मैरी क्यूरी ने बार-बार असफल प्रयोगों, लैंगिक भेदभाव और गरीबी का सामना किया, लेकिन अपने धैर्य से दो नोबेल पुरस्कार जीते।
- राइट ब्रदर्स: राइट ब्रदर्स ने अनेक असफलताओं के बाद हवाई जहाज़ का आविष्कार किया, जिसने परिवहन क्षेत्र में क्रांति ला दी।
- समकालीन एवं वैश्विक आयाम
- कोविड-19 महामारी: कोविड-19 महामारी में आरंभ में अनेक असफलताएँ हुईं, पर सहयोग और दृढ़ता से रिकॉर्ड समय में वैक्सीन विकसित हुई।
- जलवायु परिवर्तन: जलवायु परिवर्तन में मानवता प्रकृति के प्रति असफल रही, लेकिन नवीकरणीय तकनीक और अंतर्राष्ट्रीय समझौते इससे उबरने के प्रयासों का प्रतिनिधित्व करते हैं।
- विपरीत दृष्टिकोण
- महात्मा बुद्ध: महात्मा बुद्ध ने मध्यम मार्ग का उपदेश दिया, जिसके अनुसार अनावश्यक दुःख से बचना चाहिये; गौरव लापरवाही से गिरने में नहीं, बल्कि सजग दृढ़ता में निहित होता है।
- कुछ असफलताएँ (जैसे: परमाणु दुर्घटनाएँ, नरसंहार, आर्थिक संकट) अपूरणीय क्षति देती हैं, इसलिये विवेक और सावधानी आवश्यक है।
- अतः जहाँ गिरने के बाद उठ खड़ा होना एक नेक कार्य है, वहीं अनावश्यक पतन को कम करने के लिये उत्तरदायित्वपूर्ण कार्रवाई भी उतनी ही महत्त्वपूर्ण है।
निष्कर्ष
धैर्य और दृढ़ता महानता की पहचान हैं, चाहे वह किसी व्यक्ति का व्यक्तिगत संघर्ष हो, समाज का सुधार हो या किसी राष्ट्र का संकट से उबरना हो। गिरना मानवीय है, परंतु पुनः उठना परिवर्तनकारी है। भारत का इतिहास भी स्वयं इसे दर्शाता है: औपनिवेशिक पराधीनता से स्वतंत्रता तक, गरीबी से प्रगति तक, विज्ञान में असफलताओं से वैश्विक पहचान तक। जैसा कि ए.पी.जे. अब्दुल कलाम ने युवाओं को स्मरण कराया, “यदि आप असफल होते हैं, तो कभी हार न मानें क्योंकि असफलता का अर्थ है 'सीखने का पहला प्रयास'।”
इसलिये वास्तविक गौरव पराजय से बचने में नहीं, बल्कि हर पराजय/पतन को ऊँचाई में बदलने का साहस रखने में निहित होता है।
2. संतुष्टि प्राप्ति में नहीं, प्रयास में निहित है। पूर्ण प्रयास ही पूर्ण विजय है। (1200 शब्द)
परिचय:
वर्ष 1931 में लंदन में छात्रों को संबोधित करते हुए, महात्मा गांधी ने कहा था कि “संतुष्टि प्रयास में निहित होती है, प्राप्ति में नहीं। पूर्ण प्रयास ही पूर्ण विजय है।” गांधीजी के लिये सत्याग्रह की यात्रा तात्कालिक परिणामों से नहीं, बल्कि साधनों की निष्ठा और सत्य के लिये निरंतर किये गए प्रयासों से आँकी जाती थी। इतिहास ने भी यह सिद्ध किया कि भारत की स्वतंत्रता कोई एक अभियान से प्राप्त नहीं हुई, बल्कि यह दशकों तक चले अथक प्रयासों, बलिदानों और धैर्य का परिणाम थी। यह कथन इस बात पर प्रकाश डालता है कि वास्तविक सफलता केवल परिणामों पर निर्भर नहीं करती, क्योंकि वे प्रायः हमारे नियंत्रण में नहीं होते, बल्कि यह हमारे प्रयासों की निष्ठा, निरंतरता और संपूर्ण समर्पण पर आधारित होती है।
- दार्शनिक आयाम
- इमैनुएल कांट: नैतिक महत्त्व परिणामों में नहीं बल्कि कर्त्तव्य और नीयत में होता है, यह ‘प्रयास’ को ‘प्राप्ति’ से ऊपर रखता है।
- भगवद्गीता: “कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन” मनुष्य का अधिकार केवल कर्म पर है, फल पर नहीं।
- स्वामी विवेकानंद: उन्होंने परिणामों की परवाह किये बिना अथक प्रयास और सेवा को ही विजय के रूप में महत्त्व दिया।
- मनोवैज्ञानिक और व्यक्तिगत आयाम
- स्व-निर्धारण सिद्धांत (डेसी और रायन): असली प्रेरणा और संतोष ‘आंतरिक प्रयास’ से आता है, बाह्य पुरस्कारों से नहीं।
- मस्लो: आत्म-साक्षात्कार निरंतर विकास और मेहनतपूर्ण प्रयास से मिलती है, केवल उपलब्धियों से नहीं।
- उदाहरण: परीक्षा की तैयारी कर रहा एक छात्र प्रारंभ में असफल हो सकता है, लेकिन उसके अनुशासन और प्रयास से ही आत्मविश्वास एवं आंतरिक संतोष उत्पन्न होते हैं।
- सामाजिक और नैतिक आयाम
- ज्योतिबा फुले और सावित्रीबाई फुले: समाज के विरोध के बावजूद शिक्षा के लिये उनका सतत् प्रयास ही उनकी संतुष्टि था।
- मदर टेरेसा: उन्होंने गरीबी का उन्मूलन नहीं किया, लेकिन उनकी सेवा का निरंतर भाव ही उनकी सफलता थी।
- प्रयास की नैतिकता: समाज तभी आगे बढ़ता है जब लोग केवल तात्कालिक परिणाम के बजाय कर्त्तव्य-प्रेरित प्रयास पर ध्यान देते हैं।
- राजनीतिक आयाम
- महात्मा गांधी: उनके आंदोलनों में प्रायः असफलताएँ मिलीं (जैसे: असहयोग आंदोलन का स्थगन) फिर भी नैतिक विजय उनके प्रयास की निष्ठा में निहित में था।
- भारतीय लोकतंत्र: चुनावों में हार-जीत बदलती रहती है, लेकिन लोकतांत्रिक संस्थाओं को बचाने का सामूहिक प्रयास ही असली विजय है।
- वैज्ञानिक और तकनीकी आयाम
- मैरी क्यूरी: उनके कई प्रयोग विफल हुए, पर उनके प्रयासों ने विज्ञान को आगे बढ़ाया।
- शोध संस्कृतिः विज्ञान में तात्कालिक अन्वेषण से भी अधिक प्रयास और प्रयोग को अधिक महत्त्व दिया जाता है।
- समकालीन और वैश्विक आयाम
- जलवायु-परिवर्तन कार्रवाईः इसके तत्काल परिणाम धीमे होते हैं, लेकिन प्रत्येक प्रयास— वृक्षारोपण, नवीकरणीय ऊर्जा, वैश्विक वार्ता प्रगति के प्रमुख कारक हैं।
- सतत् विकास लक्ष्य (SDG): यद्यपि वर्ष 2030 तक सभी पूरे न भी हों, फिर भी यह प्रयास वैश्विक सहयोग को मज़बूत करता है।
- विपरीत दृष्टिकोण
- प्रति-परिप्रेक्ष्य परिणामों को नज़रअंदाज़ नहीं किया जा सकता: सैनिकों का प्रयास सराहनीय हो सकता है, लेकिन रणनीतिक परिणामों के बिना देश संकट में पड़ सकता है।
- शासन में संसाधनों का सदुपयोग परिणामों से आँका जाता है, केवल प्रयास पर्याप्त नहीं होते।
निष्कर्ष
वास्तविक संतोष क्षणिक उपलब्धियों से नहीं, बल्कि निष्ठा और संपूर्ण प्रयास से आता है। उपलब्धियाँ प्रायः परिस्थिति, समय और संयोग पर निर्भर करती हैं, लेकिन प्रयास हमारे हाथ में है और यही हमारे चरित्र व भाग्य को गढ़ता है। डॉ. ए.पी.जे. अब्दुल कलाम ने युवाओं को स्मरण कराया था— “स्वप्न विचारों में परिणत होते हैं और विचार कर्म में।” भले ही सभी सपने पूरे न हों, पर प्रयत्न स्वयं परिवर्तनकारी होता है। इस प्रकार, पूरा प्रयास ही वास्तविक विजय है, क्योंकि यह सफलता और असफलता दोनों को गरिमा प्रदान करता है तथा यात्रा को भी उतना ही महत्त्वपूर्ण बनाता है जितना गंतव्य को।
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