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मेन्स प्रैक्टिस प्रश्न

  • प्रश्न :

    प्रश्न. “वैश्वीकरण वस्तुओं का निर्यात करता है और मूल्यों का आयात करता है।” भारत में पारिवारिक व्यवस्था और परंपरागत मूल्य संरचनाओं पर वैश्विक सांस्कृतिक प्रवाहों के प्रभाव का समालोचनात्मक मूल्यांकन कीजिये। (250 शब्द)

    11 Aug, 2025 सामान्य अध्ययन पेपर 1 भारतीय समाज

    उत्तर :

    हल करने का दृष्टिकोण:

    • वैश्वीकरण के संदर्भ में संक्षेप में बताते हुए उत्तर प्रस्तुत कीजिये कि यह किस प्रकार वस्तुओं का निर्यात और मूल्यों का आयात करता है।
    • पारिवारिक प्रणालियों और परंपरागत मूल्य संरचनाओं पर वैश्वीकरण के प्रभाव का गहन अध्ययन प्रस्तुत कीजिये।
    • वैश्वीकरण ने परंपरागत भारतीय मूल्यों को पूरी तरह से समाप्त नहीं किया है, इस संदर्भ में तर्क दीजिये।
    • उचित निष्कर्ष दीजिये।

    परिचय:

    वैश्वीकरण केवल वस्तुओं का आवागमन नहीं है, बल्कि यह विचारों, मानदंडों और संस्कृतियों का सीमाओं के पार प्रवाह है। भारत में इस प्रक्रिया ने पारिवारिक संरचनाओं, परंपरागत सामाजिक पदानुक्रम तथा अंतर-पीढ़ीगत संबंधों में परिवर्तन को उत्प्रेरित किया है।

    मुख्य भाग:

    पारिवारिक प्रणालियों पर वैश्वीकरण का प्रभाव:

    • संयुक्त से एकल परिवारों की ओर बदलाव: आर्थिक अवसरों, विशेष रूप से IT और सेवा क्षेत्रों में, ने ग्रामीण-से-शहरी प्रवास तथा अंतर्राष्ट्रीय प्रवास को बढ़ावा दिया है।
      • निजता और स्वायत्तता की व्यक्तिगत आकांक्षाओं में वृद्धि ने परिवार के वरिष्ठ जनों के परंपरागत अधिकार और नियंत्रण को कमज़ोर कर दिया है।
    • प्राधिकरण के बदलते स्वरूप: परंपरागत पितृसत्तात्मक संरचना, जहाँ सबसे वरिष्ठ पुरुष सदस्य के पास पूर्ण अधिकार होता था, क्षीण हो रही है।
      • महिलाओं सहित युवा पीढ़ी की आर्थिक स्वतंत्रता ने एक अधिक समतावादी और लोकतांत्रिक पारिवारिक व्यवस्था को जन्म दिया है।
      • बच्चों की शिक्षा, कॅरियर विकल्पों और विवाह संबंधी निर्णय अब प्रायः सामूहिक रूप से लिये जाते हैं।
    • महिलाओं की बदलती स्थिति: वैश्वीकरण ने महिलाओं को शिक्षा और रोज़गार तक बेहतर अभिगम्यता प्रदान की है, जिससे उनकी आर्थिक स्वतंत्रता बढ़ी है।
      • इसने उन्हें परंपरागत लैंगिक भूमिकाओं को चुनौती देने और निर्णय लेने में समान भागीदार के रूप में भाग लेने का अधिकार दिया है।
      • ‘दोहरे कॅरियर वाले परिवार’ की अवधारणा अब आम हो गई है, जिससे घर में श्रम विभाजन और शक्ति की गतिशीलता बदल रही है।

    परंपरागत मूल्य संरचनाओं पर प्रभाव

    • व्यक्तिवाद बनाम सामूहिकता: वैश्विक संस्कृति का एक मुख्य सिद्धांत व्यक्तिवाद है, जो व्यक्तिगत स्वतंत्रता, पसंद (चयन) और आत्म-अभिव्यक्ति पर ज़ोर देता है।
      • यह सामूहिकता के परंपरागत भारतीय लोकाचार से बिल्कुल अलग है, जहाँ परिवार या समुदाय के हितों को प्रायः प्राथमिकता दी जाती है।
    • विवाह और रिश्ते/संबंध: विवाह एवं संबंधों के क्षेत्र में भी बदलाव दिखते हैं। परंपरागत रूप से विवाह की 'अरेंज्ड मैरिज' की संस्था अब पुनर्परिभाषित हो रही है।
      • हालाँकि परिवार की सहमति अभी भी महत्त्वपूर्ण है, लेकिन युवाओं को अपने जीवनसाथी चुनने की स्वतंत्रता पहले से अधिक है।
      • इसके अलावा, लिव-इन रिलेशनशिप जैसी वैश्विक अवधारणाएँ और तलाकसिंगल पेरेंट (एकल-अभिभावक) जैसी अवधारणाओं की सामाजिक स्वीकृति बढ़ने से विवाह की पारंपरिक ‘आजीवन, अविच्छेद्य बंधन’ की धारणा को चुनौती मिली है।

    यद्यपि वैश्विक सांस्कृतिक प्रवाह ने निस्संदेह भारतीय समाज को प्रभावित किया है, तथापि इसने परंपरागत भारतीय मूल्यों को पूरी तरह से प्रतिस्थापित नहीं किया है, जैसा कि निम्नलिखित से स्पष्ट है:

    • सांस्कृतिक संलयन: व्यापक प्रतिस्थापन के बजाय प्रायः वैश्वीकरण की प्रक्रिया में जो घटित होता है, वह है वैश्विक विचारों का स्थानीय संदर्भों के अनुरूप अनुकूलन।
      • उदाहरण के लिये, मैकडॉनल्ड्स जैसी फास्ट-फूड चेन्स ने भारतीय बाज़ार में प्रवेश किया है, लेकिन उन्होंने अपने मेन्यू में शाकाहारी विकल्प एवं स्थानीय मसाले (मैकडॉनल्डाइज़ेशन) शामिल किये हैं।
      • इसी तरह, कई युवा भारतीय पश्चिमी फैशन और संगीत को अपना सकते हैं, लेकिन परंपरागत त्योहारों एवं अनुष्ठानों में भाग लेना जारी रखते हैं।
    • स्वदेशी प्रथाओं का पुनरुत्थान: हाल के वर्षों में, न केवल भारत में, बल्कि विश्व स्तर पर भी, योग, आयुर्वेद और परंपरागत भारतीय व्यंजनों जैसी भारतीय सांस्कृतिक प्रथाओं को बढ़ावा देने में पुनरुत्थान हुआ है।
    • यह दर्शाता है कि वैश्वीकरण हमेशा एकपक्षीय प्रक्रिया नहीं होती, बल्कि पश्चिमी प्रभुत्व के सामने स्थानीय सांस्कृतिक प्रथाओं के पुनरुद्धार का भी मार्ग प्रशस्त कर सकती है।
    • ‘वैश्विक भारतीय’ पहचान: सांस्कृतिक प्रवाह ने एक नई, वैश्विक भारतीय पहचान के उद्भव को जन्म दिया है जो स्थानीय और वैश्विक का एक समन्वय है।
      • ऐसा व्यक्तित्व अंग्रेज़ी में धाराप्रवाह, प्रौद्योगिकी में दक्ष, किंतु अपनी सांस्कृतिक जड़ों से भी गहराई से जुड़े रहते हुए अनेक सांस्कृतिक परिवेशों में सहजता से स्वयं को ढाल लेता है। यह स्थिति भारतीय मूल्यों के लोप का नहीं, बल्कि उनके सतत् विकास और रूपांतरण का प्रतीक है।

    निष्कर्ष:

    भारत की सांस्कृतिक संरचना क्षीण नहीं हो रही है, बल्कि वह परंपरा और आधुनिकता के बीच रचनात्मक संलयन से गुज़र रही है। वैश्वीकरण भारतीय समाज को नये विचार और जीवनशैली प्रदान करता है, परंतु यह अवसर भी देता है कि हम प्रगतिशील मूल्यों को आत्मसात करें, साथ ही अपने मूल सांस्कृतिक आधार को सुरक्षित रखें।

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