ध्यान दें:



मेन्स प्रैक्टिस प्रश्न

  • प्रश्न :

    प्रश्न. नैतिक आघात (Moral Injury) की संकल्पना की समीक्षा कीजिये तथा विधि-प्रवर्तन एवं प्रशासनिक सेवाओं में कार्यरत पेशेवरों पर इसके प्रभावों की विवेचना कीजिये। (150 शब्द)

    14 Aug, 2025 सामान्य अध्ययन पेपर 4 सैद्धांतिक प्रश्न

    उत्तर :

    हल करने का दृष्टिकोण:

    • नैतिक आघात की अवधारणा का संक्षेप में परिचय दीजिये।
    • विधिक-प्रवर्तन और प्रशासनिक सेवाओं के पेशेवरों के लिये इसके निहितार्थों पर चर्चा कीजिये।
    • आगे की राह बताते हुए उचित निष्कर्ष दीजिये।

    परिचय:

    नैतिक आघात वह मानसिक, भावनात्मक या नैतिक आघात है जो तब अनुभव की जाती है जब व्यक्ति अपने गहरे नैतिक मूल्यों के विरुद्ध कार्य करता है या उनके उल्लंघन का गवाह बनता है। प्रारंभ में सैन्य संदर्भों में अध्ययन की गई, यह अवधारणा विधिक-प्रवर्तन और प्रशासनिक सेवाओं के लिये अत्यधिक प्रासंगिक है, जहाँ अधिकारियों को प्रायः व्यक्तिगत नैतिकता, संस्थागत निर्देशों एवं सार्वजनिक अपेक्षाओं के बीच दुविधाओं का सामना करना पड़ता है। 

    मुख्य भाग:

    नैतिक आघात की अवधारणा

    • नैतिक आघात नैतिक विश्वासों और व्यावसायिक कार्यों या बाधाओं के बीच विसंगति से उत्पन्न होती है।
      • उदाहरण के लिये, एक पुलिस अधिकारी जो निर्दोष नागरिकों के खिलाफ राजनीतिक रूप से प्रेरित प्राथमिकी दर्ज करने के लिये विवश होता है, या एक लोक सेवक जो सीमांत समुदायों पर प्रतिकूल प्रभाव के बावजूद एक विवादास्पद भूमि अधिग्रहण को लागू करता है, उसे अपराधबोध, लज्जा या मोहभंग का अनुभव हो सकता है।
    • व्यावसायिक तनाव के विपरीत, नैतिक आघात नैतिक पहचान को नष्ट करती है, जिसका प्रभाव व्यावसायिक और व्यक्तिगत दोनों प्रकार के कामकाज़ पर पड़ता है।

    विधिक-प्रवर्तन पर प्रभाव

    • मानसिक प्रभाव: नैतिकता से समझौता करने के लिये मजबूर होने पर अधिकारियों में अपराधबोध, शर्मिंदगी या PTSD जैसे लक्षण विकसित हो सकते हैं।
    • नैतिक क्षरण: बार-बार नैतिक समझौते भ्रष्टाचार या बलपूर्वक व्यवहार को सामान्य बना सकते हैं।
    • जनता के विश्वास में कमी: हतोत्साहित अधिकारी संदेहवादी दृष्टिकोण अपना सकते हैं, जिससे समुदाय का विश्वास कमज़ोर होता है।
    • उदाहरण: जो पुलिस अधिकारी सांप्रदायिक दंगों की अनुमति देते हैं, उनके गवाह बनते हैं या उन पर इसमें भाग लेने का दबाव होता है, वे प्रायः मानवाधिकारों के उल्लंघन के कारण दीर्घकालिक नैतिक और मानसिक संकट से पीड़ित होते हैं।

    प्रशासनिक सेवाओं पर प्रभाव

    • संवेदनात्मक द्वंद्व: अधिकारी राजनीतिक निर्देशों और संवैधानिक दायित्वों के बीच संघर्ष कर सकते हैं।
    • मनोबल और निष्ठा में कमी: नैतिक समझौते अधिकारियों को हतोत्साहित करते हैं और सेवा की गुणवत्ता को प्रभावित करते हैं।
    • शासन की कमी: निर्णय लेने में अक्षमता या अनैतिक अनुपालन जनता के विश्वास को कम कर सकता है।
    • उदाहरण: पारदर्शी नियमों के बावजूद विशिष्ट ठेकेदारों का पक्ष लेने के लिये मज़बूर एक ज़िला कलेक्टर नैतिक संकट का अनुभव कर सकता है, जिससे दीर्घकालिक शासन प्रभावशीलता प्रभावित होती है।

    आगे की राह

    • नैतिक प्रशिक्षण और संवेदनशीलता: नैतिक तर्क, सहानुभूति और मूल्य-आधारित निर्णय लेने की प्रक्रिया को शामिल किया जाना चाहिये।
    • सहायता प्रणालियाँ: परामर्श, सहकर्मी सहायता और मार्गदर्शन नैतिक दुविधाओं से निपटने में सहायता करते हैं।
    • मुखबिर संरक्षण और शिकायत निवारण: अनैतिक निर्देशों का विरोध करने के लिये सुरक्षित मार्ग प्रदान किया जाना चाहिये।
    • नेतृत्व और संस्थागत सुधार: नैतिक संस्कृति को बढ़ावा दिया जाना चाहिये, जवाबदेही सुनिश्चित की जानी चाहिये और अधिकारियों को अनुचित दबाव से बचाया जाना चाहिये।
    • उदाहरण: सरकारी विभागों में नैतिकता प्रकोष्ठ और आंतरिक शिकायत समितियाँ संरचित सहायता प्रदान करके नैतिक आघात को कम करने में सहायता करती हैं।

    निष्कर्ष:

    नैतिक आघात से निपटने के लिये अधिकारियों को कांटियन नैतिक कर्त्तव्य के अनुसार कार्य करने, सार्वभौमिक नैतिक सिद्धांतों तथा व्यक्तिगत विवेक एवं नागरिक विश्वास दोनों को बनाए रखने के लिये सत्यनिष्ठा, निष्पक्षता व जवाबदेही के लोक सेवा लोकाचार को अपनाने की आवश्यकता होती है।

    To get PDF version, Please click on "Print PDF" button.

    Print
close
Share Page
images-2
images-2