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मेन्स प्रैक्टिस प्रश्न

  • प्रश्न :

    प्रश्न . "छोटे गठबंधन, मूक लंगर की तरह, क्षेत्रीय बहुध्रुवीयता को स्थिर करते हैं।" एक बहुध्रुवीय होते विश्व में रणनीतिक संतुलन के दृष्टिकोण से भारत–यूरोपीय मुक्त व्यापार संघ (EFTA) संबंधों का परीक्षण कीजिये। (250 शब्द)

    05 Aug, 2025 सामान्य अध्ययन पेपर 2 अंतर्राष्ट्रीय संबंध

    उत्तर :

    हल करने का दृष्टिकोण:

    • भारत-EFTA (यूरोपीय मुक्त व्यापार संघ) समझौते का संक्षिप्त परिचय दीजिये।
    • इस समझौते के प्रमुख आर्थिक और रणनीतिक आयामों पर चर्चा कीजिये। 
    • भारत-EFTA संबंधों से जुड़ी प्रमुख चुनौतियों पर प्रकाश डालिये।
    • आगे की राह बताते हुए उचित निष्कर्ष दीजिये।

    परिचय:

    स्विट्ज़रलैंड, नॉर्वे, आइसलैंड और लिकटेंस्टीन से मिलकर बना यूरोपीय मुक्त व्यापार संघ (EFTA) एक छोटा लेकिन आर्थिक रूप से मज़बूत समूह है। भारत का रणनीतिक संतुलन किसी एक शक्ति केंद्र पर अत्यधिक निर्भरता से बचते हुए रणनीतिक स्वायत्तता को बनाए रखने के लिये विविध आर्थिक एवं राजनीतिक संबंधों को विकसित करने पर केंद्रित है। आकार में सीमित होने के बावजूद, EFTA की उच्च-तकनीकी अर्थव्यवस्थाएँ तेज़ी से बहुध्रुवीय होते विश्व में भारत की रणनीतिक और आर्थिक स्थिरता के लिये एक ‘मौन आधार’ के रूप में काम कर सकती हैं।

    मुख्य भाग: 

    इस समझौते के प्रमुख आर्थिक और रणनीतिक आयाम:

    • रणनीतिक निवेश प्रतिबद्धता: EFTA भारत में 15 वर्षों में 100 बिलियन अमेरिकी डॉलर (प्रारंभिक 10 वर्षों में 50 बिलियन अमेरिकी डॉलर और अगले 5 वर्षों में 50 बिलियन अमेरिकी डॉलर) का निवेश करेगा, जिससे 10 लाख रोज़गार सृजित होंगे।
    • बाज़ार अभिगम और टैरिफ रियायतें:
      • EFTA देशों ने भारत को 92.2% टैरिफ लाइनों (शुल्क दरों) पर रियायत दी है, जो भारत के 99.6% निर्यात (गैर-कृषि और प्रसंस्कृत कृषि उत्पाद) को कवर करती हैं।
      • भारत ने EFTA देशों को 82.7% टैरिफ लाइनों पर रियायत दी है, जो EFTA के 95.3% निर्यात को कवर करता है, इसमें सोना भी शामिल है, लेकिन सोने पर प्रभावी शुल्क दर में कोई बदलाव नहीं किया गया है।
      • भारतीय चावल (बासमती और गैर-बासमती दोनों) को इन देशों में बिना किसी पारस्परिक रियायत (Reciprocity) के शुल्क-मुक्त प्रवेश मिलेगा।
    • सुरक्षा उपाय और अपवर्जन:
      • डेयरी, सोया, कोयला और PLI-लिंक्ड क्षेत्रों जैसे संवेदनशील क्षेत्रों को बाहर रखा गया है।
      • सॉवरेन वेल्थ फंड्स को प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI) की बाध्यताओं से छूट दी गयी है।
    • सेवाएँ एवं गतिशीलता:
      • IT, शिक्षा, संस्कृति और खेल में भारतीय सेवाओं का समर्थन करता है।
      • नर्सिंग, लेखा और स्थापत्य में पारस्परिक मान्यता समझौतों (MRA) को सक्षम बनाता है।
    • विधिक कार्यढाँचा और बौद्धिक संपदा संरक्षण:
      • निवेश लक्ष्य पूरे न होने पर भारत टैरिफ रियायतें वापस ले सकता है।
      • जेनेरिक दवाओं के उत्पादन को संरक्षण प्राप्त है; पेटेंट की एवरग्रीनिंग (निरंतर विस्तार) की प्रक्रिया को रोका गया है।

    भारत-EFTA संबंधों से संबंधित प्रमुख चुनौतियाँ

    • निरंतर व्यापार घाटा: भारत को EFTA देशों के साथ भारी व्यापार घाटे का सामना करना पड़ता है, जिसका मुख्य कारण स्विट्ज़रलैंड से बड़े पैमाने पर सोने का आयात है।
    • डेटा विशिष्टता और जन स्वास्थ्य: EFTA द्वारा फार्मा में डेटा विशिष्टता की माँग भारत की सस्ती जेनेरिक दवाओं के उत्पादन में बाधा बन सकती है, जिससे सार्वजनिक स्वास्थ्य पर नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है।
    • TEPA के तहत बौद्धिक संपदा अधिकार संबंधी चिंताएँ: TEPA में IPR से जुड़े प्रावधान भारत की पेटेंट प्रणाली की सुरक्षा को कमज़ोर कर सकते हैं। इससे पूर्व-स्वीकृति आपत्ति (Pre-grant opposition) और घरेलू उत्पादन की शर्तों पर असर पड़ सकता है।

    आगे की राह

    • मूल्यवर्द्धित निर्यात और विविध व्यापार बास्केट के माध्यम से व्यापार घाटे को कम किया जाना चाहिये।
    • स्वच्छ तकनीक, संवहनीयता और हरित परिवर्तन के लिये कौशल में EFTA विशेषज्ञता का लाभ उठाया जाना चाहिये।
    • नवाचार और जन स्वास्थ्य की रक्षा के लिये संतुलित बौद्धिक संपदा अधिकार (IPR) बनाए रखना चाहिये।
    • नियामक संरेखण को बढ़ाने, गैर-टैरिफ बाधाओं (NTB) से निपटने और आपूर्ति शृंखला की समुत्थानशीलता को बढ़ावा देने के लिये भारत-यूरोपीय संघ मुक्त व्यापार समझौते (FTA) का लाभ उठाया जाना चाहिये।

    निष्कर्ष:

    राजनीतिक वैज्ञानिक जोसेफ नाई के अनुसार, “इक्कीसवीं सदी में शक्ति, नियंत्रण से कम और जुड़ाव से अधिक जुड़ी हुई है।” भारत और यूरोपीय स्वतंत्र व्यापार संघ (EFTA) की साझेदारी भले ही सीमित स्तर की हो, लेकिन यह बहुध्रुवीय विश्व व्यवस्था में एक मौन संतुलन बनाए रखने वाली ताकत के रूप में कार्य करती है। यह रणनीतिक संतुलन, आर्थिक विविधीकरण और तकनीकी सहयोग को बढ़ावा देती है, बशर्ते व्यापार असंतुलन, बौद्धिक संपदा अधिकारों से जुड़ी चिंताओं एवं सार्वजनिक स्वास्थ्य से संबंधित सुरक्षा उपायों का दूरदर्शिता के साथ समाधान किया जाये।

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