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प्रश्न :
प्रश्न. वैश्वीकरण ने भारतीय समाज के सांस्कृतिक संरचना को किस प्रकार प्रभावित किया है। क्या यह पारंपरिक मूल्यों के लिये खतरा है या या बहुवाद को प्रोत्साहित करता है? परीक्षण कीजिये। (250 शब्द)
28 Jul, 2025 सामान्य अध्ययन पेपर 1 भारतीय समाजउत्तर :
हल करने का दृष्टिकोण:
- संक्षेप में वैश्वीकरण की अवधारणा का परिचय दीजिये।
- भारत में सांस्कृतिक बहुलवाद के उत्प्रेरक के रूप में वैश्वीकरण की चर्चा कीजिये।
- बहुलवाद को बढ़ावा देने में एक खतरे के रूप में वैश्वीकरण की चर्चा कीजिये।
- आगे की राह बताते हुए उचित निष्कर्ष दीजिये।
परिचय:
वस्तुओं, विचारों, सूचनाओं और लोगों के आवागमन के माध्यम से विश्व के बढ़ते अंतर्संबंध के रूप में परिभाषित वैश्वीकरण का भारतीय समाज के सांस्कृतिक संरचना पर गहरा प्रभाव पड़ा है। एक ओर इसने सांस्कृतिक आदान-प्रदान और बहुलवाद के लिये नये अवसर प्रदान किये हैं, वहीं दूसरी ओर यह स्वदेशी परंपराओं, भाषाओं एवं मूल्य-व्यवस्थाओं के क्षरण को लेकर चिंता का विषय भी बना है।
मुख्य भाग:
भारत में सांस्कृतिक बहुलवाद के उत्प्रेरक के रूप में वैश्वीकरण:
- भारतीय परंपराओं की वैश्विक मान्यता: योग, आयुर्वेद और भारतीय व्यंजनों जैसी प्रथाओं को वैश्विक मान्यता मिली है। संयुक्त राष्ट्र द्वारा 21 जून को 'अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस' घोषित किया जाना इस बात का संकेत है कि अब सांस्कृतिक प्रभाव का प्रवाह केवल पश्चिम से पूर्व की ओर नहीं, बल्कि भारत से वैश्विक स्तर की ओर भी हो रहा है।
- सांस्कृतिक संकरण: भारतीय समाज ने अपनी स्वदेशी पहचान को बनाए रखते हुए वैश्विक प्रभावों को आत्मसात करके उल्लेखनीय अनुकूलनशीलता का प्रदर्शन किया है।
- लगान और RRR जैसी फिल्मों की अंतर्राष्ट्रीय सफलता वैश्विक अपील के साथ सांस्कृतिक सम्मिश्रण को दर्शाती है।
- सशक्तीकरण और सामाजिक परिवर्तन: वैश्विक प्रसार ने लैंगिक समानता, LGBTQ+ अधिकारों और पर्यावरणीय संधारणीयता से जुड़े विमर्श को बढ़ावा दिया है, जिससे विशेष रूप से शहरी युवाओं के बीच सामाजिक दृष्टिकोण में बदलाव को प्रोत्साहन मिला है।
- वर्ष 2018 में समलैंगिकता (धारा 377) को अपराधमुक्त करने का निर्णय आंशिक रूप से वैश्विक मानवाधिकार आंदोलनों से प्रभावित था।
पारंपरिक मूल्यों और प्रथाओं के लिये एक खतरे के रूप में वैश्वीकरण:
- सांस्कृतिक समरूपीकरण और पश्चिमीकरण: इस बात को लेकर चिंता बढ़ रही है कि पश्चिमी आदर्श, उपभोक्तावाद और मीडिया पारंपरिक भारतीय प्रथाओं का स्थान ले रहे हैं।
- त्योहारों का तेज़ी से व्यवसायीकरण हो रहा है और पारंपरिक परिधानों की जगह प्रायः पश्चिमी परिधान ले लेते हैं।
- वैलेंटाइन डे, जो एक विदेशी अवधारणा है, अब व्यापक रूप से मनाया जाता है और प्रायः इसे बसंत पंचमी जैसे स्वदेशी त्योहारों पर हावी होते देखा जाता है।
- भाषा विस्थापन: शिक्षा और रोज़गार में अंग्रेज़ी तेज़ी से प्रमुख माध्यम बनती जा रही है, जिससे क्षेत्रीय भाषाएँ एवं साहित्य हाशिये पर जा रहे हैं।
- भारतीय जन भाषा सर्वेक्षण- 2013 के अनुसार, पिछले 50 वर्षों में लगभग 220 भाषाएँ लुप्त हो चुकी हैं और 197 को संकटग्रस्त श्रेणी में रखा गया है।
- पारिवारिक और सामाजिक संरचनाएँ: पारंपरिक संयुक्त परिवार व्यवस्था (विशेष रूप से शहरी क्षेत्रों में) एकल परिवारों को राह दे रही है, जिससे पीढ़ियों के बीच संबंध एवं मूल्य अंतरण कमज़ोर हो रहे हैं।
- NSSO सर्वेक्षण (2011-12) ने 1990 के दशक के आर्थिक उदारीकरण के बाद पूरे भारत में एकल परिवारों में उल्लेखनीय वृद्धि दिखाई।
निष्कर्ष:
जैसा कि समाजशास्त्री एंथनी गिडेंस कहते हैं, "वैश्वीकरण एक द्वंदात्मक प्रक्रिया है, यह हमें सशक्त भी बनाता है और सीमित भी करता है।"
भारत की सांस्कृतिक यात्रा इस दोहरे प्रभाव को दर्शाती है, एक ओर यह विविधता को समृद्ध करती है, तो दूसरी ओर पारंपरिक मूल्यों को चुनौती भी देती है। आगे की राह इस संतुलन में निहित है कि हम अपनी विरासत को बनाए रखते हुए वैश्विक आधुनिकता को भी अपनाएँ और यह केवल एक सजग सांस्कृतिक संवाद और समझ के माध्यम से ही संभव है।
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