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प्रश्न :
प्रश्न 1. दृढ़ विश्वास से इतिहास रचे जाते हैं और विवेक उसे बनाए रखता है।
26 Jul, 2025 निबंध लेखन निबंध
प्रश्न 2. यदि कर्म के बिना आदर्श केवल आभूषण हैं, तो आदर्शों के बिना कर्म दुर्घटनाएँ हैं।उत्तर :
1. दृढ़ विश्वास से इतिहास रचे जाते हैं और विवेक उसे बनाए रखता है।
निबंध को समृद्ध बनाने के लिये उद्धरण:
- महात्मा गांधी: "आपको मानवता में विश्वास नहीं खोना चाहिए। मानवता एक महासागर है; यदि महासागर की कुछ बूँदें गंदी हो भी जायें, तो उससे पूरा महासागर गंदा नहीं हो जाता।"
- मार्टिन लूथर किंग जूनियर: "विश्वास का अर्थ है पहला कदम उठाना, भले ही आपको पूरी सीढ़ी दिखाई न दे।"
- नेल्सन मंडेला: "मैंने स्वतंत्रता की उस लंबी राह पर चलना शुरू किया। मैंने प्रयास किया कि मैं डगमगाऊँ नहीं; इस यात्रा में मुझसे कई भूलें हुईं। लेकिन मैंने यह रहस्य जाना कि जब आप एक ऊँची पहाड़ी पर चढ़ जाते हैं, तब आपको पता चलता है कि चढ़ने के लिये अभी और भी कई पहाड़ियाँ शेष हैं।"
सैद्धांतिक और दार्शनिक आयाम:
- नैतिक दर्शन: दृढ़ नैतिक विश्वासों से ही 'आस्था' (convictions) उत्पन्न होती है, जबकि 'अंतरात्मा' (conscience) यह सुनिश्चित करती है कि ये विश्वास समय के साथ नैतिक उत्तरदायित्व के अनुरूप बने रहें।
- अस्तित्ववाद (कीर्केगार्ड, सार्त्र): मानव इतिहास का निर्माण उन व्यक्तियों द्वारा होता है जो दृढ़ आस्था से कार्य करते हैं; लेकिन उस प्रभाव को बनाये रखने के लिये सजग आत्मचिंतन आवश्यक होता है।
- नैतिकता का तंत्रिका विज्ञान: अनुसंधान से पता चलता है कि 'अंतरात्मा' सहानुभूति (Empathy) एवं सामाजिकता (Socialization) के साथ विकसित होती है और यही नैतिक विरासत को बनाए रखने की कुंजी है।
नीति और ऐतिहासिक उदाहरण:
- एक स्थायी शक्ति के रूप में विवेक: विवेक यह सुनिश्चित करता है कि विश्वासों का नैतिक रूप से प्रयोग किया जाए और उनका दुरुपयोग न हो।
- डॉ. बी.आर. अंबेडकर के विवेक ने भारतीय संविधान के निर्माण में मार्गदर्शन प्रदान किया, जिसमें सामाजिक न्याय और समानता (विशेष रूप से दलितों के लिये) पर ध्यान केंद्रित किया गया।
- लंबी कैद के बावजूद, नेल्सन मंडेला की क्षमा और एकता के प्रति प्रतिबद्धता ने रंगभेद के बाद दक्षिण अफ्रीका में लोकतंत्र की स्थापना के लिये उनके विश्वास को बनाए रखा।
- नैतिक नेतृत्व और दूरदर्शिता: नैतिक नेतृत्व यह सुनिश्चित करता है कि विश्वास नैतिक जिम्मेदारी की भावना से प्रेरित हों।
- स्वतंत्रता के बाद के भारत में जवाहरलाल नेहरू का नेतृत्व धर्मनिरपेक्षता, लोकतंत्र और सामाजिक न्याय की दृष्टि पर आधारित था, जिससे यह सुनिश्चित हुआ कि उनके कार्य नैतिक रूप से निर्देशित हों।
- द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान विंस्टन चर्चिल के दृढ़ विश्वास और उनके विवेक ने धुरी शक्तियों का सामना करने में नैतिक स्पष्टता के साथ, ब्रिटेन को उसके सबसे कठिन समय से गुजरने में मार्गदर्शन करने में सहायता की।
समकालीन उदाहरण:
- व्हिसलब्लोअर/ मुखबिर (जैसे: सत्येंद्र दुबे, शन्मुगन मंजूनाथ): उनके कार्य व्यक्तिगत दृढ़ विश्वास से उत्पन्न होते हैं; परंतु इनकी प्रासंगिकता को सार्वजनिक विवेक ही प्रश्नांकित करता है और उनकी प्रासंगिकता को बनाए रखता है।
- कॉर्पोरेट नैतिकता: जो ब्रांड अपने उद्देश्यों को लेकर प्रतिबद्ध होते हैं (जैसे: पटागोनिया), वे इस 'दृढ़ विश्वास-आधारित मिशन' के कारण आगे बढ़ते हैं, लेकिन दीर्घकालिक प्रासंगिकता केवल निरंतर नैतिक आचरण से ही सुनिश्चित होती है।
2. यदि कर्म के बिना आदर्श केवल आभूषण हैं, तो आदर्शों के बिना कर्म दुर्घटनाएँ हैं।
निबंध को समृद्ध बनाने के लिये उद्धरण:
- जॉन एफ. कैनेडी: "छत की मरम्मत का सही समय तब होता है जब धूप निकल रही हो।"
- राल्फ वाल्डो इमर्सन: "आप जो करते हैं उसकी गूँज इतनी प्रबल होती है कि शब्दों की ध्वनि भी उसमें दब जाती है।"
- महात्मा गांधी: "एक औंस (थोड़ा सा) अभ्यास, ढेर सारे उपदेशों से कहीं अधिक मूल्यवान होता है।"
सैद्धांतिक और दार्शनिक आयाम:
- व्यावहारिकता (जॉन डेवी, विलियम जेम्स): मूल्यवान होने के लिये विचारों को कार्य में परिणत होना चाहिये; मार्गदर्शक आदर्शों के बिना कार्य में उद्देश्य का अभाव होता है।
- महात्मा गांधी का कर्म दर्शन: निश्छल उद्देश्य से प्रेरित सही कर्म ही आदर्शों और वास्तविकता के बीच सेतु का कार्य करता है।
- नेतृत्व सिद्धांत: सार्थक परिवर्तन साकार करने के लिये दूरदर्शी नेतृत्व (आदर्शों) को क्रियान्वयन (कार्य) के साथ जोड़ा जाना चाहिये।
नीति और ऐतिहासिक उदाहरण:
- सोवियत संघ का पतन: साम्यवाद के आदर्श व्यापक रूप से प्रचलित थे, लेकिन संगठित एवं सुसंगत कार्यवाही के अभाव में उसका विघटन हो गया।
- स्वतंत्रता के बाद के भारत में भूमि सुधार समान भूमि वितरण के आदर्श पर आधारित थे, लेकिन उनके आंशिक और असंगत कार्यान्वयन के परिणामस्वरूप भिन्न परिणाम सामने आए, जिससे कुछ क्षेत्र दूसरों की तुलना में कम विकसित रहे।
- आदर्शों और कार्यों के बीच संबंध: आदर्श हमारी सर्वोच्च आकांक्षाएँ हैं, लेकिन बिना कार्रवाई के, वे अधूरी रह जाती हैं।
- स्वच्छ भारत अभियान एक स्वच्छ राष्ट्र का एक शक्तिशाली आदर्श था, लेकिन इसे शहरों और ग्रामीण क्षेत्रों में सामूहिक कार्रवाई के माध्यम से ही गति मिली।
- व्यावहारिक आदर्शवाद: सफल आदर्शवाद के लिये विश्वास और क्रियान्वयन दोनों की आवश्यकता होती है। भारत में हरित क्रांति, जिसका नेतृत्व एम.एस. स्वामीनाथन जैसे नेताओं ने किया, ने खाद्य सुरक्षा के आदर्श को मूर्त कृषि सुधारों में बदल दिया जिससे फसल उत्पादन में उल्लेखनीय वृद्धि हुई।
- नैतिक और रणनीतिक संरेखण: किसी भी कार्य को असंगत या निष्फल होने से बचाने के लिये यह आवश्यक है कि वह हमारे आदर्शों के अनुरूप हो।
- सूचना का अधिकार अधिनियम (RTI) पारदर्शिता का एक आदर्श था, जिसे कार्यान्वित किया गया, जिससे भारत सरकार में जवाबदेही बढ़ी।
समकालीन उदाहरण:
- निगमित सामाजिक उत्तरदायित्व (CSR): संवहनीयता के आदर्शों को बढ़ावा देने वाली कंपनियों को अपने दावों के समर्थन में कार्बन उत्सर्जन में कमी जैसे कदमों की आवश्यकता होती है।
- टाटा समूह की CSR पहल, जैसे कि शिक्षा और स्वास्थ्य सेवा के क्षेत्र में उनके कार्य, ने आदर्शों को कार्रवाई के साथ जोड़ा है, जिससे समुदायों पर सकारात्मक प्रभाव पड़ा है।
- तकनीकी नवाचार (AI, नवीकरणीय ऊर्जा): तकनीक में नैतिक आदर्शों के बिना क्रियान्वयन दुर्घटनाओं (जैसे: एल्गोरिदम में पूर्वाग्रह, गोपनीयता का भंग होना) का कारण बन सकती है।
- सोशल मीडिया मूवमेंट: हैशटैग (#पिंजरातोड़ अभियान) अभियान की शुरुआत एक नैतिक आदर्श (लैंगिक स्वतंत्रता और समानता) के रूप में हुई थी, लेकिन वास्तविक परिवर्तन तब आया जब इस विचार को विधिक सुधारों और ज़मीनी प्रदर्शनों के माध्यम से क्रियान्वित किया गया।
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