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मेन्स प्रैक्टिस प्रश्न

  • प्रश्न :

    प्रश्न. “यद्यपि लोक सेवकों के लिये एक दृढ़ नैतिक दिशानिर्देश आवश्यक है, तथापि कठोर नैतिक निरपेक्षता कभी-कभी शासन की व्यावहारिक माँगों के साथ असंगत भी हो सकती है।” जटिल प्रशासनिक परिस्थितियों में आदर्शवाद और प्रभावी निर्णय लेने के बीच संतुलन बनाने में लोक सेवकों की सहायता करने में नैतिक व्यावहारिकता की भूमिका पर चर्चा कीजिये। (150 शब्द)

    24 Jul, 2025 सामान्य अध्ययन पेपर 4 सैद्धांतिक प्रश्न

    उत्तर :

    हल करने का दृष्टिकोण:

    • प्रश्न के उद्धरण की पुष्टि के लिये एक संदर्भ देकर उत्तर का परिचय दीजिये और नैतिक व्यावहारिकता के बारे में संक्षेप में बताइये।
    • शासन में एक मज़बूत नैतिक मार्गदर्शन के महत्त्व और नैतिक निरपेक्षता की सीमाओं पर गहन विचार प्रस्तुत कीजिये।
    • प्रशासनिक निर्णय लेने में नैतिक व्यावहारिकता की भूमिका पर प्रकाश डालिये।
    • एक उद्धरण के साथ निष्कर्ष दीजिये।

    परिचय

    महाभारत में युधिष्ठिर, यद्यपि सत्य के प्रति अत्यंत प्रतिबद्ध थे, फिर भी द्रोणाचार्य को परास्त करने के लिये “अश्वत्थामा मारा गया” ऐसा कथन जानबूझकर अस्पष्ट रूप में कहते हैं, जहाँ वे कठोर नैतिक निरपेक्षता के स्थान पर व्यापक हित को प्राथमिकता देते हैं।

    • यह प्रसंग नैतिक व्यावहारिकता के सार को दर्शाता है, जहाँ लोक सेवकों को भी जटिल प्रशासनिक परिस्थितियों में आदर्शवाद और व्यावहारिक निर्णय के बीच संतुलन बनाना चाहिये।

    मुख्य भाग:

    एक मज़बूत नैतिक मार्गदर्शन का महत्त्व 

    • नैतिक मार्गदर्शन उन आंतरिक मार्गदर्शक सिद्धांतों को संदर्भित करता है जो लोक सेवकों को सही और गलत में अंतर करने में सहायता करते हैं। यह सुनिश्चित करता है:
      • निर्णय लेने में सत्यनिष्ठा और ईमानदारी
      • जवाबदेही और जनता का विश्वास
      • भ्रष्टाचार और अनैतिक प्रभावों का प्रतिरोध
      • न्याय, समानता और सहानुभूति जैसे संवैधानिक मूल्यों के साथ संरेखण
    • उदाहरण: एक नैतिक रूप से दृढ़ अधिकारी दबाव या प्रलोभन में भी रिश्वत लेने से अस्वीकार कर देगा और सार्वजनिक जीवन में ईमानदारी बनाए रखेगा।

    शासन में नैतिक निरपेक्षता की सीमाएँ

    • नैतिक निरपेक्षता, संदर्भ या परिणामों की परवाह किये बिना नैतिक सिद्धांतों का अटूट अनुप्रयोग है। हालाँकि यह नेक-उद्देश्य से किया गया है, लेकिन यह वास्तविक दुनिया की जटिलताओं से असंगत हो सकता है, जैसे:
      • परस्पर विरोधी मूल्य: कानून बनाम करुणा, पारदर्शिता बनाम राष्ट्रीय सुरक्षा
      • प्रशासनिक बाधाएँ: सीमित संसाधन, राजनीतिक वास्तविकताएँ या जन भावनाएँ
      • विविध सामाजिक-सांस्कृतिक संदर्भ: एक परिस्थिति में जो नैतिक है, वह दूसरी परिस्थिति में हानिकारक हो सकता है।
    • उदाहरण: मानवीय संकट (जैसे: बाढ़) के दौरान बेदखली कानूनों का सख्ती से पालन, कमज़ोर लोगों को विकल्प दिये बिना विस्थापित कर सकता है, कानून द्वारा नैतिक रूप से 'सही' लेकिन नैतिक रूप से संदिग्ध।

    इस प्रकार, नियम-आधारित सत्यनिष्ठा और संदर्भ-संवेदनशील करुणा के बीच संतुलन बनाने के लिये नैतिक व्यावहारिकता आवश्यक हो जाती है, जिससे ऐसे निर्णय लिये जा सकें जो नैतिक रूप से आधारित एवं व्यावहारिक रूप से व्यवहार्य हों।

    प्रशासनिक निर्णय लेने में नैतिक व्यावहारिकता की भूमिका: 

    • संदर्भ-आधारित लचीलापन: अधिकारियों को नियमों का कठोरता से पालन करने के बजाय विशिष्ट परिस्थितियों के आधार पर प्रक्रियाओं को समायोजित करने में सक्षम बनाता है।
      • उदाहरण: उज्जैन नगर निगम के आयुक्त के रूप में कार्यरत अंशुल गुप्ता ने स्वयंसेवकों की सहायता से प्राचीन यम तलैया तालाब का जीर्णोद्धार किया।
    • समय पर और प्रभावी निर्णय लेना: नुकसान को रोकने के लिये लालफीताशाही को दरकिनार करते हुए, आपात स्थितियों या तत्काल आवश्यकताओं पर त्वरित प्रतिक्रिया का समर्थन करता है।
      • उदाहरण: भीलवाड़ा के SDM के रूप में अतहर आमिर खान ने बच्चों के अधिकारों की रक्षा के लिये औपचारिक शिकायतों पर ज़ोर देने के बजाय, समुदाय के निर्देशों पर कार्रवाई करके और तत्काल उपाय अपनाकर बाल विवाह में सक्रिय रूप से हस्तक्षेप किया।
    • नवोन्मेषी समाधानों को बढ़ावा देना: लोक सेवकों को ऐसे नए कार्यक्रम या तरीके तैयार करने के लिये प्रेरित करता है जो मौजूदा नियमों से परे वास्तविक आवश्यकताओं को पूरा करते हैं।
      • उदाहरण: सिक्किम के IAS अधिकारी राज यादव ने परिवर्तनकारी परियोजना “आपनो गाँव, आप बनाओ” (“अपना गाँव स्वयं बनाएँ”) की शुरूआत की, जिसके तहत उन्होंने 5 गाँवों को गोद लिया और सामुदायिक भागीदारी के माध्यम से उनका विकास किया, जिससे 7,500 से अधिक लोगों के जीवन पर असर पड़ा।
    • प्रतिस्पर्द्धी मूल्यों में संतुलन: प्रशासकों को परस्पर विरोधी हितों, जैसे: न्याय बनाम दक्षता या कानून बनाम करुणा, का आकलन करने का अवसर मिलता है ताकि वे एक निष्पक्ष एवं व्यावहारिक समाधान तक पहुँच सकें।
      • उदाहरण: विनोद राय (भारत के पूर्व नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक) को सरकारी व्यय का अंकेक्षण करते समय भारी राजनीतिक दबाव का सामना करना पड़ा, लेकिन उन्होंने पारदर्शिता (न्याय) और संस्थागत ज़िम्मेदारी (दक्षता) के बीच सावधानीपूर्वक संतुलन बनाए रखा।
    • समावेशिता और सामाजिक न्याय: हाशिये पर पड़े लोगों के लिये तदर्थ समाधानों के निर्माण को प्रोत्साहित करता है, जिन्हें प्रायः तकनीकी कारणों से बाहर रखा जाता है।
      • उदाहरण: रेमा राजेश्वरी (IPS, तेलंगाना) ने व्हाट्सएप अफवाहों के कारण होने वाली मॉब लिंचिंग को रोकने के लिये ग्रामीण इलाकों में एक मिथक-भंजन अभियान शुरू किया।

    निष्कर्ष:

    जहाँ एक सुदृढ़ नैतिक दिशा-निर्देश लोक सेवकों को सत्यनिष्ठा से जोड़े रखता है, वहीं शासन वास्तविक दुनिया की जटिलताओं के अनुसार मूल्यों को अनुकूलित करने की विवेकपूर्ण निर्णय की मांग करता है। नैतिक व्यावहारिकता यह सुनिश्चित करती है कि निर्णय आदर्शवाद और प्रभावशीलता के बीच सही संतुलन बनाते हुए मानवीय, वैध और संदर्भ-संवेदनशील रहें। 

    जैसा कि नेल्सन मंडेला ने कहा था, “एक अच्छा मस्तिष्क और एक अच्छा हृदय, जब साथ हों, तो एक अजेय संगम बन जाते हैं।”

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