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मेन्स प्रैक्टिस प्रश्न

  • प्रश्न :

    प्रश्न: आतंकवाद से निपटने में भारतीय खुफिया एजेंसियों की भूमिका की आलोचनात्मक समीक्षा कीजिये। वर्तमान चुनौतियों के परिप्रेक्ष्य में, क्या समन्वय को बढ़ाने के लिये संरचनात्मक सुधारों की आवश्यकता है? (250 शब्द)

    14 May, 2025 सामान्य अध्ययन पेपर 3 आंतरिक सुरक्षा

    उत्तर :

    हल करने का दृष्टिकोण:

    • आतंकवाद से निपटने में खुफिया एजेंसियों की भूमिका का संक्षेप में परिचय दीजिये।
    • मौजूदा खुफिया एजेंसियों पर चर्चा कीजिये, आतंकवाद का मुकाबला करने में इन एजेंसियों के समक्ष आने वाली प्रमुख चुनौतियों की पहचान कीजिये तथा बेहतर समन्वय के लिये सुधार संबंधी सुझाव भी दीजिये।
    • उपर्युक्त निष्कर्ष दीजिये।

    परिचय:

    भारत की खुफिया एजेंसियाँ राष्ट्रीय सुरक्षा सुनिश्चित करने, विशेष रूप से आतंकवाद का मुकाबला करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं। रॉ (RAW), इंटेलिजेंस ब्यूरो (IB) और राष्ट्रीय जाँच एजेंसी (NIA) जैसी संस्थाएँ आसूचना एकत्रण और आतंकवाद-विरोधी अभियानों में अग्रणी हैं। हालाँकि इन्हें कई सफलताएँ मिली हैं, लेकिन खराब समन्वय जैसी चुनौतियाँ इनकी कार्यक्षमता में बाधक बनी हुई हैं।

    आतंकवाद से निपटने में भारतीय खुफिया एजेंसियों की भूमिका:

    • खुफिया जानकारी एकत्र करना और विश्लेषण: RAW बाहरी आसूचना एकत्र करने के लिये उत्तरदायी है, जिसका मुख्य फोकस पाकिस्तान और चीन जैसे पड़ोसी देशों से उत्पन्न खतरों, तथा लश्कर-ए-तैयबा (LeT) और जैश-ए-मोहम्मद (JeM) जैसे आतंकी संगठनों पर रहता है। ये वही समूह हैं जिन्होंने वर्ष 2001 संसद हमले और 26/11 मुंबई आतंकी हमलों जैसी घटनाओं को अंजाम दिया था।
      • IB घरेलू आतंकी नेटवर्क्स पर नजर रखती है, जिसमें इंडियन मुज़ाहिदीन और स्टूडेंट्स इस्लामिक मूवमेंट ऑफ इंडिया (SIMI) जैसे संगठन शामिल हैं।
      • वर्ष 2009 में स्थापित, NIA का कार्य आतंकवाद-संबंधी अपराधों (जैसे बम विस्फोट और बम धमकियों) की जाँच करना और दोषियों को सजा दिलाना है।
    • निवारक उपाय: खुफिया एजेंसियाँ संचार को रोकने (कॉल इंटरसेप्शन) और सामरिक बलों की तैनाती सहित निवारक कार्यवाहियाँ करने के लिये आसूचना सूचनाओं का उपयोग करती हैं, ताकि हमले होने से पहले ही उन्हें विफल किया जा सके।
      • राष्ट्रीय सुरक्षा गार्ड (NSG) जैसी एजेंसियाँ, खुफिया जानकारी के आधार पर, वर्ष 2008 के मुंबई हमलों जैसी बड़ी आतंकवादी घटनाओं पर प्रतिक्रिया देती हैं, ताकि तत्काल खतरों को बेअसर किया जा सके।
    • अंतर्राष्ट्रीय सहयोग: भारतीय खुफिया एजेंसियाँ CIA (अमेरिका) और मोसाद (इज़रायल) जैसी वैश्विक समकक्षों के साथ मिलकर अंतर्राष्ट्रीय आतंकवादी नेटवर्क पर नज़र रखने, खुफिया जानकारी साझा करने और विशेष रूप से सीमा पार आतंकवाद के संबंध में संयुक्त अभियान चलाने के लिये कार्य करती हैं।

    भारतीय खुफिया एजेंसियों के समक्ष चुनौतियाँ:

    • समन्वय की कमी: समन्वय बढ़ाने के लिये मल्टी-एजेंसी सेंटर (MAC) की स्थापना के बावजूद, केंद्रीय और राज्य खुफिया एजेंसियों के बीच अंतराल बना हुआ है, जिसके परिणामस्वरूप भूमिकाओं में दोहराव और महत्त्वपूर्ण अवसरों की हानि होती है।
      • एजेंसियां ​​प्रायः अलग-अलग कार्य करती हैं, जिससे समग्र खुफिया प्रणाली कमज़ोर हो जाती है।
    • अपर्याप्त तकनीकी क्षमताएँ: भारत की खुफिया एजेंसियों को साइबर आतंकवाद और ऑनलाइन अक्षमता से निपटने में चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है।
      • NTRO और DIA जैसी एजेंसियाँ ​​अभी भी बड़े डेटा निगरानी की जटिलताओं के अनुकूल होने में लगी हुई हैं, तथा वास्तविक समय की खुफिया जानकारी प्राप्त करने का कार्य अभी भी प्रगति पर है।
      • इसके अलावा, डेटा विश्लेषकों, साइबर विशेषज्ञों और भाषा विशेषज्ञों जैसे विशेषज्ञ तकनीकी जनशक्ति की कमी भी चुनौती को बढ़ा देती है।
    • नौकरशाही संबंधी बाधाएँ: नौकरशाही संबंधी लालफीताशाही के कारण निर्णय लेने में काफी देरी होती है तथा खुफिया सूचनाओं के त्वरित प्रसार एवं कार्रवाई में बाधा उत्पन्न होती है, विशेषकर उच्च-स्तरीय आतंकविरोधी अभियानों के दौरान।
    • जनशक्ति की कमी: भर्ती संबंधी समस्याएँ और कैडर प्रबंधन की खामियाँ इन अंतरालों को और बढ़ा देती हैं।
      • अधिकांश एजेंसियाँ ​​पुलिस और सेना के प्रतिनिधिमंडलों पर निर्भर रहती हैं, जिसके कारण आधुनिक खुफिया कार्यों, जैसे साइबर सुरक्षा और आतंकवाद-रोधी अभियानों के लिये आवश्यक विशेष प्रशिक्षण वाले समर्पित खुफिया अधिकारियों का आभाव है।

    संरचनात्मक सुधार और बेहतर समन्वय की आवश्यकता:

    • संस्थागत सुधार: सभी खुफिया और कानून प्रवर्तन एजेंसियों के बीच निर्बाध और त्वरित डेटा साझाकरण की सुविधा के लिये राष्ट्रीय स्तर के राष्ट्रीय खुफिया ग्रिड (NATGRID) को उन्नत किया जाना चाहिये।
    • इससे विभिन्न खुफिया एजेंसियों के कार्यों को केंद्रीकृत किया जा सकेगा, जिससे वास्तविक समय में सूचना साझा करने में सुधार होगा।
      • कारगिल समीक्षा समिति (1999) ने सीमा पार आतंकवाद का मुकाबला करने के लिये बेहतर खुफिया जानकारी साझा करने और एजेंसियों के बीच बेहतर समन्वय की सिफारिश की थी।
    • साइबर इंटेलिजेंस: इंटेलिजेंस इंफ्रास्ट्रक्चर का आधुनिकीकरण बहुत ज़रूरी है, खास तौर पर साइबर सुरक्षा और बड़े डेटा एनालिटिक्स में। इसे सार्वजनिक-निजी भागीदारी के तहत हासिल किया जा सकता है।
      • भारत साइबर-आतंकवादी खतरों का पता लगाने के लिये चेहरे की पहचान और पूर्वानुमानात्मक विश्लेषण जैसी AI-संचालित निगरानी प्रणालियों को एकीकृत करके लाभान्वित हो सकता है।
    • मानव संसाधन अनुकूलन: साइबर सुरक्षा, तकनीकी विश्लेषण और भाषा विशेषज्ञता जैसे विशिष्ट कौशल वाले कर्मियों की भर्ती के लिये एक समर्पित खुफिया कैडर की स्थापना करना।
    • शैक्षिक संस्थानों और विशेष प्रशिक्षण कार्यक्रमों के साथ साझेदारी से उभरते खतरों से निपटने में सक्षम कुशल कार्यबल तैयार करने में मदद मिलेगी।
    • निरीक्षण तंत्र: एक संरचित खुफिया निरीक्षण को जवाबदेही के लिये वरिष्ठ राजनीतिक नेताओं और सुरक्षा विशेषज्ञों की एक राष्ट्रीय खुफिया निरीक्षण समिति (NIOC) की स्थापना करनी चाहिये, जबकि राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार बोर्ड (NSAB) रणनीतिक तथा आंतरिक सुरक्षा पर अपनी सलाहकार भूमिका जारी रखेगा।

    निष्कर्ष:

    खुफिया कार्य के लिये अधिक एकीकृत दृष्टिकोण, साथ ही एजेंसियों के बीच बेहतर समन्वय, भारत को आतंकवाद की उभरती प्रकृति से बेहतर तरीके से निपटने में सक्षम बनाएगा। दीर्घकालिक सुधारों के लिये प्रतिबद्ध राजनीतिक नेतृत्व इन परिवर्तनों को आगे बढ़ाने और यह सुनिश्चित करने के लिये आवश्यक है कि भारत की खुफिया एजेंसियाँ​ ​भविष्य में आतंकवाद का प्रभावी ढंग से मुकाबला कर सकें।

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