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मेन्स प्रैक्टिस प्रश्न

  • प्रश्न :

    प्रश्न . संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में स्थायी सदस्यता प्राप्त करने के भारत के प्रयासों में आने वाली प्रमुख चुनौतियों और भू-राजनीतिक बाधाओं का विश्लेषण कीजिये। (250 शब्द)

    06 May, 2025 सामान्य अध्ययन पेपर 2 अंतर्राष्ट्रीय संबंध

    उत्तर :

    हल करने का दृष्टिकोण:

    • संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की भूमिका और स्थायी सदस्यता के लिये भारत के दावे का परिचय दीजिये।
    • स्थायी सदस्यता के लिये भारत की दावेदारी पर चर्चा कीजिये तथा भारत के समक्ष प्रमुख चुनौतियों पर भी प्रकाश डालिये।
    • सुधारों की आवश्यकता और वैश्विक शांति एवं शासन में भारत के संभावित योगदान के साथ निष्कर्ष लिखिये।

    परिचय:

    वर्ष 1946 में स्थापित संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद, आज भी द्वितीय विश्व युद्ध के बाद की शक्ति संरचना को स्थायी पाँच (P5) देशों के प्रभुत्व के माध्यम से दर्शाती है। हालाँकि वैश्विक परिदृश्य तेजी से बदल रहा है, भारत अपनी विशाल जनसंख्या, मज़बूत अर्थव्यवस्था, शांति स्थापना में सक्रिय योगदान और बहुपक्षीय प्रतिबद्धता के आधार पर स्थायी सदस्यता का एक मज़बूत दावेदार बनकर उभरा है, लेकिन उसे कुछ महत्त्वपूर्ण भू-राजनीतिक बाधाओं का सामना करना पड़ रहा है।

    मुख्य भाग:

    संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में स्थायी सदस्यता के लिये भारत की योग्यता:

    • संयुक्त राष्ट्र शांति अभियानों में प्रमुख योगदानकर्त्ता: भारत संयुक्त राष्ट्र शांति अभियानों में अपनी स्थापना के बाद से दूसरा सबसे बड़ा सैन्य योगदानकर्त्ता (49 मिशनों में 250,000 कार्मिक) है।
    • जनसांख्यिकीय और आर्थिक भार: भारत सबसे अधिक आबादी वाला देश है (संयुक्त राष्ट्र विश्व जनसंख्या संभावनाएँ), जिसकी जनसंख्या 1.4 बिलियन से अधिक है, जिससे लोकतांत्रिक वैश्विक व्यवस्था में इसका प्रतिनिधित्व महत्त्वपूर्ण हो जाता है।
      • यह नाममात्र सकल घरेलू उत्पाद के आधार पर विश्व की 5वीं सबसे बड़ी और PPP के आधार पर तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है, जो वैश्विक विकास एवं व्यापार में महत्त्वपूर्ण योगदान प्रदान करती है।
    • प्रमाणित परमाणु उत्तरदायित्व: परमाणु-सशस्त्र राज्य होने के बावजूद, भारत "पहले प्रयोग नहीं" की नीति पर कायम है तथा वर्ष 1998 से स्वेच्छा से परमाणु परीक्षण पर रोक लगाए हुए है।
      • भारत मिसाइल तकनीक नियंत्रण व्यवस्था (MTCR) और वासेनार समझौते जैसे प्रमुख निर्यात नियंत्रण समूहों का सदस्य है, जो परमाणु अप्रसार के प्रति उसकी प्रतिबद्धता को दर्शाता है।
    • अस्थायी सदस्य के रूप में सशक्त कार्यकाल: भारत अब तक UNSC में आठ बार अस्थायी सदस्य के रूप में कार्य कर चुका है। इस दौरान भारत ने आतंकवाद-रोधी समिति जैसी महत्त्वपूर्ण समितियों की अध्यक्षता की और अफगानिस्तान व समुद्री सुरक्षा जैसे मुद्दों पर सैद्धांतिक रुख अपनाया।
    • वैश्विक सुधार का समर्थक: भारत लगातार सुधारवादी बहुपक्षवाद का समर्थन करता रहा है तथा अधिक समावेशी एवं प्रतिनिधित्वकारी वैश्विक शासन प्रणाली के लिये प्रयासरत रहा है।
      • G-77, ब्रिक्स और भारत-अफ्रीका मंच शिखर सम्मेलन के माध्यम से भारत वैश्विक दक्षिण की आवाज को मज़बूत कर रहा है।
      • G20 की अध्यक्षता (2023) और "वॉयस ऑफ ग्लोबल साउथ समिट" (2023) के दौरान भारत की कूटनीतिक सक्रियता ने उसकी वैश्विक विश्वसनीयता को और बढ़ाया है।

    UNSC में भारत द्वारा स्थायी सदस्यता प्राप्त करने के समक्ष प्रमुख चुनौतियाँ और भू-राजनीतिक बाधाएँ:

    • P5 देशों का प्रतिरोध: चीन सबसे प्रत्यक्ष विरोध प्रस्तुत करता है, जो रणनीतिक प्रतिद्वंद्विता, सीमा तनाव और पाकिस्तान के प्रति उसके समर्थन से प्रेरित है।
      • अन्य P5 देश भी अपनी विशिष्ट स्थिति (विशेषकर वीटो अधिकार) को कमज़ोर नहीं करना चाहते।
    • वीटो शक्ति पर गतिरोध: संयुक्त राष्ट्र में सुधारों में वीटो शक्ति सबसे विवादास्पद मुद्दा है।
      • भारत समान अधिकारों के साथ नई स्थायी सदस्यता का समर्थन करता है, जबकि अफ्रीकी संघ का "एजुलविनी सहमती" जैसे मॉडल या तो वीटो हटाने या समानता की मांग करते हैं, जिससे वार्ता और जटिल हो जाती है।
    • क्षेत्रीय विरोध: पाकिस्तान, इटली, दक्षिण कोरिया और अर्जेंटीना सहित यूनाइटिंग फॉर कन्सेंसस (UFC) समूह G-4 की कोशिश का विरोध कर रहा है तथा यह तर्क दिया जा रहा है कि इससे शक्ति असंतुलन बढ़ेगा।
      • पाकिस्तान विशेष रूप से ऐतिहासिक तनाव और राजनीतिक प्रतिद्वंद्विता के कारण भारत की दावेदारी का विरोध करता है।
    • कुछ प्रमुख संधियों पर हस्ताक्षर न होना: भारत ने NPT (परमाणु अप्रसार संधि) और CTBT (संपूर्ण परमाणु परीक्षण प्रतिबंध संधि) पर हस्ताक्षर नहीं किये हैं, जिसे कुछ पश्चिमी देश उसकी दावेदारी की कमज़ोरी मानते हैं, हालाँकि भारत का परमाणु अप्रसार रेकॉर्ड मज़बूत रहा है और वह निष्क्रियता रहित, गैर-भेदभावपूर्ण निरस्त्रीकरण का समर्थक है।
    • IGN प्रक्रिया में गतिरोध: वर्ष 2009 में इसके शुभारंभ के बाद से, IGN (अंतर-सरकारी वार्ता) प्रक्रिया में कोई औपचारिक समझौता नहीं हुआ है, प्रक्रियागत बाधाओं और सदस्य राज्यों के बीच आम सहमति की कमी के कारण इसमें बाधा उत्पन्न हुई है।

    UNSC में स्थायी सदस्यता हेतु भारत द्वारा उठाए जाने वाले कदम:

    • G4 (भारत, जापान, जर्मनी, ब्राज़ील) और L.69 समूह के साथ व्यापक कूटनीतिक सहमति बनाना, ताकि समावेशी सुधार एजेंडा को आगे बढ़ाया जा सके।
    • G20 और ग्लोबल साउथ में हालिया सक्रिय भागीदारी से बनी कूटनीतिक गति का लाभ उठाना।
    • फ्राँस, रूस और ब्रिटेन जैसे समर्थक P5 देशों के समर्थन को मज़बूत करना, और चीन के विरोध को राजनयिक रूप से संतुलित करना।
    • भारत की परमाणु ज़िम्मेदारी और निरस्त्रीकरण के प्रति प्रतिबद्धता को दोहराना, ताकि NPT/CTBT से जुड़ी आलोचनाओं को संतुलित किया जा सके।

    निष्कर्ष:

    संशोधित और प्रतिनिधि संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के लिये भारत का प्रयास 21वीं सदी की बहुध्रुवीय वास्तविकताओं को दर्शाता है। संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की विश्वसनीयता बनाए रखने के लिये, भारत को शामिल करने सहित सार्थक सुधार अब वैकल्पिक नहीं हैं, बल्कि समतापूर्ण वैश्विक शासन के लिये अनिवार्य हैं।

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