-
प्रश्न :
प्रश्न. निजता के अधिकार पर सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय ने भारत में मूल अधिकारों की व्याख्या और कार्यान्वयन को किस प्रकार नया रूप दिया है? (150 शब्द)
29 Apr, 2025 सामान्य अध्ययन पेपर 2 राजव्यवस्थाउत्तर :
हल करने का दृष्टिकोण:
- वर्ष 2017 में निजता के अधिकार संबंधी निर्णय और उसकी व्यापक व्याख्या प्रस्तुत कीजिये।
- मूल अधिकारों के विस्तार और व्यक्तिगत स्वायत्तता पर इसके प्रभाव पर चर्चा कीजिये।
- उचित निष्कर्ष दीजिये।
परिचय:
न्यायमूर्ति के.एस. पुत्तास्वामी (सेवानिवृत्त) बनाम भारत संघ (वर्ष 2017) मामले में सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय ने अनुच्छेद 21 के तहत निजता के अधिकार को मूल अधिकार के रूप में मान्यता देकर भारत के संवैधानिक संरचना को नया रूप दिया। निजता को जीवन के मूल में समाहित करके, इस निर्णय ने मूल अधिकारों की व्याख्या और कार्यान्वयन में महत्त्वपूर्ण रूप से बदलाव किया है।
मुख्य भाग:
निजता का अधिकार और मूल अधिकारों की पुनर्व्याख्या:
- मूल अधिकारों का सुदृढ़ीकरण: निजता का अधिकार अनुच्छेद 21 के अंतर्गत जीवन एवं व्यक्तिगत स्वतंत्रता के अधिकार के आंतरिक भाग के रूप में और संविधान के भाग III द्वारा गारंटीकृत स्वतंत्रता के एक भाग के रूप में संरक्षित है। यह व्यक्ति के शरीर, मन और विचारों की अखंडता की रक्षा करके अन्य मूल अधिकारों को सुदृढ़ करता है तथा सुनिश्चित करता है कि व्यक्ति अनुचित हस्तक्षेप या नियंत्रण से मुक्त होकर सम्मान के साथ जीवनयापन कर सके।
- यह व्यक्तियों को अनुचित निगरानी से बचाकर अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता (अनुच्छेद 19) की रक्षा करता है तथा भेदभावपूर्ण राज्य हस्तक्षेप को रोककर समानता (अनुच्छेद 14) को कायम रखता है।
- वैध राज्य कार्रवाई को अनिवार्य बनाकर मनमानी तलाशी एवं ज़ब्ती (अनुच्छेद 20) से सुरक्षा सुनिश्चित करता है।
- यह व्यक्तियों को अनुचित निगरानी से बचाकर अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता (अनुच्छेद 19) की रक्षा करता है तथा भेदभावपूर्ण राज्य हस्तक्षेप को रोककर समानता (अनुच्छेद 14) को कायम रखता है।
- व्यक्तिगत स्वायत्तता का संरक्षण: निर्णय में इस बात पर ज़ोर दिया गया है कि व्यक्तियों को राज्य के हस्तक्षेप से मुक्त होकर, यौन अभिविन्यास, प्रजनन संबंधी विकल्प और लैंगिक अधिकारों जैसे अंतरंग व्यक्तिगत निर्णय लेने की स्वायत्तता होनी चाहिये।
- उदाहरण के लिये, नवतेज सिंह जौहर बनाम भारत संघ (वर्ष 2018) के निर्णय में, जिसमें यह पुष्टि करते हुए कि निजता व्यक्तिगत स्वतंत्रता और गरिमा के लिये आवश्यक है, सहमति से समलैंगिक संबंधों को अपराध से मुक्त कर दिया गया।
- राज्य की शक्ति पर संवैधानिक सीमाएँ: निजता के अधिकार संबंधी निर्णय ने यह स्थापित किया कि राज्य के किसी भी हस्तक्षेप को वैधता, आवश्यकता और आनुपातिकता के सिद्धांतों को पूरा करना होगा, जिससे राज्य की शक्ति पर संवैधानिक सीमाएँ लागू हो जाएँगी।
- उदाहरण के लिये, आधार मामले (वर्ष 2018) में, जहाँ सर्वोच्च न्यायालय ने कल्याणकारी वितरण के लिये इसके उपयोग को बरकरार रखा, लेकिन लोक हित और व्यक्तिगत निजता के बीच संतुलन बनाते हुए निजी सेवाओं में इसके आवेदन को प्रतिबंधित कर दिया।
- नीति सुधार पर प्रभाव: निजता के अधिकार संबंधी निर्णय ने व्यक्तिगत डेटा संरक्षण विधेयक (वर्ष 2019) के निर्माण को प्रेरित किया, जिसका उद्देश्य राज्य और निजी दोनों संस्थाओं द्वारा व्यक्तिगत डेटा के उपयोग को विनियमित करना है।
- इसने डिजिटल गोपनीयता पर अधिक ध्यान देने तथा RTI अधिनियम, 2004 और साइबर सुरक्षा कार्यढाँचे जैसे कानूनों के पुनर्मूल्यांकन के साथ व्यापक नीति सुधारों का भी विस्तार किया।
निष्कर्ष:
निजता के अधिकार पर निर्णय ने भारत में मूल अधिकारों के दायरे को बढ़ाया है, खासकर डिजिटल युग में। इसकी भावना को बनाए रखने के लिये, भारत को व्यक्तिगत स्वतंत्रता और राष्ट्रीय हित के बीच उचित संतुलन बनाए रखना चाहिये।
To get PDF version, Please click on "Print PDF" button.
Print