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मेन्स प्रैक्टिस प्रश्न

  • प्रश्न :

    प्रश्न. प्रायः बैंकिंग संकट मूल रूप से प्रणालीगत अक्षमताओं से संबंधित होता है। इस संदर्भ में भारतीय बैंकिंग क्षेत्र की संरचनात्मक चुनौतियों पर प्रकाश डालने के क्रम में गैर-निष्पादित परिसंपत्तियों (NPAs) के महत्त्व का विश्लेषण कीजिये। (150 शब्द)

    16 Apr, 2025 सामान्य अध्ययन पेपर 3 अर्थव्यवस्था

    उत्तर :

    हल करने का दृष्टिकोण: 

    • प्रणालीगत अकुशलताओं और NPA से उनके संबंध पर विस्तार से प्रकाश डालिये। 
    • विश्लेषण को प्रमाणित करने के लिये सांख्यिकीय साक्ष्य प्रदान करें। 
    • NPA से निपटने के लिये एकीकृत दृष्टिकोण पर ध्यान केंद्रित करते हुए सुधारों पर चर्चा करें।

    परिचय: 

    भारतीय बैंकिंग क्षेत्र में गैर-निष्पादित परिसंपत्तियाँ (NPA) एक महत्त्वपूर्ण चिंता का विषय बन गई हैं, जो गहन जड़ वाली प्रणालीगत अक्षमताओं को दर्शाती हैं। वर्ष 2025 (जनवरी) तक, कुल NPA भारत के सकल घरेलू उत्पाद का लगभग 2.6% है। NPA केवल अकुशल ऋण वसूली का परिणाम नहीं है, वे कमज़ोर शासन, सरकारी हस्तक्षेप पर अत्यधिक निर्भरता और बुनियादी अवसंरचना के विकास की कमी जैसी व्यापक संरचनात्मक खामियों को भी उजागर करते हैं।

    मुख्य भाग:

    प्रणालीगत अकुशलताओं को उजागर करने में NPA का महत्त्व:

    • अकुशल ऋण वसूली तंत्र: ऋण वसूली के लिये अपर्याप्त बुनियादी अवसंरचना और लंबी कानूनी प्रक्रियाएँ NPA समस्या को बढ़ाती हैं। 
      • दिवाला और शोधन अक्षमता संहिता (IBC), 2016 ने ऋण समाधान में सुधार किया है, लेकिन अभी भी सभी क्षेत्रों में पूरी तरह से अनुकूलित नहीं है। 
        • उदाहरण के लिये, रिकवरी दर वित्त वर्ष 2020 में 43% से घटकर वित्त वर्ष 2024 में 32.06% हो गई है।
    • कमज़ोर शासन और राजनीतिक हस्तक्षेप: बैंकों, विशेष रूप से सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों (PSB) को प्रायः ऐसी संस्थाओं को ऋण प्रदान करने के लिये राजनीतिक दबाव का सामना करना पड़ता है जो वित्तीय रूप से अव्यवहार्य होती हैं। 
      • उदाहरण के लिये, सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों में NPA का उच्च स्तर, जिसमें पंजाब नेशनल बैंक भी शामिल है, जिसने वर्ष 2018 में 14,000 करोड़ रुपए से अधिक की धोखाधड़ी की सूचना दी थी, ऋण देने की प्रथाओं पर राजनीतिक प्रभाव के प्रभाव को रेखांकित करता है।
    • सरकारी सहायता पर अत्यधिक निर्भरता: कई सार्वजनिक क्षेत्र के बैंक अपने NPA के प्रबंधन के लिये सरकारी सहायता पर निर्भर हैं।
      • सरकार ने इन बैंकों को स्थिर करने के लिये सत्र 2016-17 और 2020-21 के दौरान इनमें 3.1 लाख करोड़ रुपए का समर्थन प्रदान किया।
      • इससे पता चलता है कि जोखिम प्रबंधन और प्रशासन में अकुशलताएँ बैंकों को अपनी आंतरिक कमज़ोरियों को सुधारने के बजाय सार्वजनिक धन पर निर्भरता की ओर निर्दिष्ट करती हैं।
    • लालफीताशाही और प्रशासनिक बाधाएँ: जटिल नियम और प्रशासनिक विलंब NPA के लिये समय पर कार्रवाई को बाधित करती है। इसका एक उदाहरण बैंकों की परिसंपत्तियों की शीघ्रता से नीलामी करने या त्वरित सुधारात्मक कार्रवाई करने में असमर्थता है, जिससे वसूली की लागत एवं विलंब बढ़ जाता है, जिससे NPA का स्तर और बढ़ जाता है।

    NPA से निपटने के लिये एकीकृत रणनीति:

    • शासन को सुदृढ़ बनाना: यह सुनिश्चित किया जाना चाहिये कि सार्वजनिक क्षेत्र के बैंक अधिक स्वायत्तता के साथ तथा बिना किसी राजनीतिक दबाव के काम करें, इससे अकुशल ऋण प्रथाओं में कमी आ सकती है। 
      • कुशल प्रबंधन का चयन करने के लिये बैंक बोर्ड ब्यूरो (BBB) का कार्यान्वयन एक सकारात्मक कदम है, लेकिन अधिक जवाबदेही के लिये इसकी शक्तियों का विस्तार करने की आवश्यकता है।
    • ऋण वसूली तंत्र को बढ़ाना: IBC कार्यढाँचे को अधिक प्रभावी ढंग से क्रियान्वित किया जाना चाहिये, जिसमें दिवालियापन के लिये सुव्यवस्थित प्रक्रिया और त्वरित समाधान समयसीमा होनी चाहिये।
      • इसके अतिरिक्त, बैंकों में समर्पित NPA प्रबंधन प्रकोष्ठों की स्थापना से संकटग्रस्त परिसंपत्तियों का अभिनिर्धारण और समाधान में तेज़ी लाने में मदद मिल सकती है।
    • सूचित ऋण और उन्नत विश्लेषण: बैंकों को ऋण जोखिम का अधिक प्रभावी ढंग से आकलन करने के लिये डेटा-संचालित दृष्टिकोण का उपयोग करना चाहिये। AI और मशीन लर्निंग का उपयोग करके, वे ऋण जोखिम से पहले ही चूक का अनुमान लगा सकते हैं। 
      • उदाहरण के लिये, ICICI बैंक ने AI-आधारित क्रेडिट स्कोरिंग मॉडल लागू किया है, जो उधारकर्त्ता की ऋण-पात्रता का आकलन करने के लिये खर्च करने के पैटर्न और सामाजिक व्यवहार जैसे विभिन्न डेटा बिंदुओं का विश्लेषण करता है, जिससे बेहतर जानकारी के साथ ऋण देने के निर्णय लिये जा सकते हैं।
    • वित्तीय क्षेत्र सुधारों के लिये एकीकृत नीति: RBI, वित्त मंत्रालय और बैंकों के बीच बेहतर समन्वय सहित एक एकीकृत दृष्टिकोण आवश्यक है। 
      • इसमें विनियामक कार्यढाँचे को मज़बूत करना, संभावित ऋण घाटे से निपटने के लिये सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों का पर्याप्त पूंजीकरण सुनिश्चित करना शामिल है।

    निष्कर्ष: 

    NPA भारतीय बैंकिंग क्षेत्र में शासन की विफलताओं से लेकर बुनियादी अवसंरचना की बाधाओं तक की गहरी प्रणालीगत अक्षमताओं के लक्षण हैं। NPA समस्या को सुलझाने के लिये बहुआयामी दृष्टिकोण की आवश्यकता है, जिसमें शासन में सुधार, ऋण वसूली कार्यढाँचे को बढ़ाना और आधुनिक जोखिम-मूल्यांकन तकनीकों को अपनाना शामिल है। एक समन्वित रणनीति जो मूल कारणों का आकलन करती है और प्रणालीगत सुधार सुनिश्चित करती है, NPA को कम करने एवं बैंकिंग क्षेत्र की स्थिरता को सुदृढ़ करने में मदद कर सकती है, जिससे भविष्य में बैंकिंग संकटों से बचा जा सकता है।

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